जीवन का एक महान उद्देश्य है
भाग ५
जीवन का एक महान उद्देश्य है
१, २. हम कैसे बता सकते हैं कि परमेश्वर हमारी परवाह करता है, और जीवन के प्रश्नों के लिए हमें कहाँ जाना चाहिए?
१ पृथ्वी और उसकी जीवित वस्तुओं की रचना का तरीक़ा यह दिखाता है कि उनका सृष्टिकर्ता एक प्रेम का परमेश्वर है जो वास्तव में परवाह करता है। और उसका वचन, बाइबल दिखाती है कि वह परवाह करता है; यह हमें इन प्रश्नों के सम्बन्ध में सर्वोत्तम उत्तर देती है: हम यहाँ पृथ्वी पर क्यों हैं? और हम कहाँ जा रहे हैं?
२ इन उत्तरों के लिए हमें बाइबल से खोज करने की ज़रूरत है। परमेश्वर का वचन कहता है: “यदि तुम उसकी खोज में लगे रहो, तब तो वह तुम से मिला करेगा, परन्तु यदि तुम उसको त्याग दोगे तो वह भी तुम को त्याग देगा।” (२ इतिहास १५:२) तो फिर, परमेश्वर के वचन की खोज हमारे लिए उसके उद्देश्य के बारे में क्या प्रकट करती है?
परमेश्वर ने मनुष्यों की सृष्टि क्यों की
३. परमेश्वर ने पृथ्वी को क्यों रचा?
३ बाइबल दिखाती है कि परमेश्वर ने ख़ासकर मनुष्यों को मन में रखते हुए पृथ्वी को तैयार किया। पृथ्वी के सम्बन्ध में यशायाह ४५:१८ कहता है कि परमेश्वर ने “उसे सुनसान रहने के लिये नहीं परन्तु बसने के लिये उसे रचा है।” और उसने पृथ्वी में वह हर वस्तु प्रदान की जो लोगों को मात्र अस्तित्व में रहने के लिए ही नहीं, बल्कि जीवन का पूर्ण आनन्द लेने के लिए ज़रूरी होगी।—उत्पत्ति, अध्याय १ और २.
४. परमेश्वर ने पहले मनुष्यों की सृष्टि क्यों की?
४ अपने वचन में, परमेश्वर पहले मनुष्यों, आदम और हव्वा की सृष्टि के बारे में बताता है, और प्रकट करता है कि उसके मन में मानव परिवार के लिए क्या था। उसने कहा: “हम मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार अपनी समानता में बनाएं; और वे समुद्र की मछलियों, और आकाश के पक्षियों, और घरेलू पशुओं, और सारी पृथ्वी पर, और सब रेंगनेवाले जन्तुओं पर जो पृथ्वी पर रेंगते हैं, अधिकार रखें।” (उत्पत्ति १:२६) मनुष्यों को “सारी पृथ्वी पर” और उसके जीव-जन्तुओं पर निरीक्षण रखना था।
५. पहले मनुष्यों को कहाँ रखा गया?
५ मध्य पूर्व में स्थित, अदन नामक क्षेत्र में परमेश्वर ने एक बड़ी, उद्यान रूपी बाटिका बनाई। फिर उसने “[मनुष्य, फुटनोट] को लेकर अदन की बाटिका में रख दिया, कि वह उस में काम करे और उसकी रक्षा करे।” वह एक ऐसा परादीस था जिसमें पहले मनुष्यों के खाने के लिए ज़रूरी सब कुछ था। और उसमें “सब भांति के वृक्ष, जो देखने में मनोहर और जिनके फल खाने में अच्छे हैं,” और साथ ही अन्य वनस्पति और अनेक रुचिकर क़िस्म के जीव-जन्तु सम्मिलित थे।—उत्पत्ति २:७-९, १५.
६. किन मानसिक और शारीरिक गुणों के साथ मनुष्यों को रचा गया?
६ पहले मनुष्यों के शरीर परिपूर्ण सृजे गए थे, इसलिए वे बीमार, या बूढ़े नहीं होते और न ही मरते। उन्हें अन्य गुणों से भी सम्पन्न किया गया था, जैसे कि स्वतंत्र इच्छा का गुण। जिस तरीक़े से वे बनाए गए थे उसे उत्पत्ति १:२७ में समझाया गया है: “परमेश्वर ने मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार उत्पन्न किया, अपने ही स्वरूप के अनुसार परमेश्वर ने उसको उत्पन्न किया, नर और नारी करके उस ने मनुष्यों की सृष्टि की।” क्योंकि हम परमेश्वर के स्वरूप में सृजे गए हैं, हमें केवल शारीरिक और मानसिक गुण ही नहीं बल्कि नैतिक और आध्यात्मिक पहलू भी दिए गए थे, और यदि हमें सचमुच ख़ुश होना है तो इन्हें संतुष्ट करना ज़रूरी है। परमेश्वर इन ज़रूरतों को और साथ ही भोजन, पानी, और हवा की जरूरत को पूरा करने के साधन प्रदान करेगा। जैसा यीशु मसीह ने कहा, “मनुष्य केवल रोटी ही से नहीं, परन्तु हर एक वचन से जो परमेश्वर के मुख से निकलता है जीवित रहेगा।”—मत्ती ४:४.
७. पहले जोड़े को क्या आज्ञा दी गई?
७ इसके अलावा, परमेश्वर ने पहले जोड़े को, जब वे अदन में ही थे एक अद्भुत आज्ञा दी: “फूलो-फलो, और पृथ्वी में उत्पत्ति १:२८) सो वे प्रजनन करने और परिपूर्ण बच्चे पैदा करने में समर्थ होते। और जैसे-जैसे मानव जनसंख्या बढ़ती, उनके पास आरंभिक उद्यानरूपी, अदन के परादीस क्षेत्र की सीमाओं को विस्तृत करने का आनन्ददायी कार्य होता। अन्त में, पूरी पृथ्वी एक परादीस में विकसित हो जाती, जिसमें परिपूर्ण, ख़ुश लोग होते जो सर्वदा जीवित रह सकते। बाइबल हमें सूचित करती है कि इन सब बातों को शुरूआत देने के बाद, “परमेश्वर ने जो कुछ बनाया था, सब को देखा, तो क्या देखा, कि वह बहुत ही अच्छा है।”—उत्पत्ति १:३१; साथ ही भजन ११८:१७ भी देखिए.
भर जाओ।” (८. मनुष्यों को पृथ्वी की देखरेख किस प्रकार करनी थी?
८ यह स्पष्ट है कि मनुष्यों को वशीकृत पृथ्वी को अपने लाभ के लिए प्रयोग करना था। लेकिन यह एक ज़िम्मेदार तरीक़े से किया जाना था। मनुष्यों को पृथ्वी के आदरपूर्ण प्रबन्धक होना था, उसके लुटेरे नहीं। आज हम जो पृथ्वी का नाश देख रहे हैं वह परमेश्वर की इच्छा के विरुद्ध है, और जो लोग उसमें हिस्सा लेते हैं वे पृथ्वी पर जीवन के उद्देश्य के विपरीत जा रहे हैं। उन्हें उसके लिए दण्ड भोगना पड़ेगा, क्योंकि बाइबल कहती है कि परमेश्वर ‘पृथ्वी के बिगाड़नेवालों का नाश करेगा।’—प्रकाशितवाक्य ११:१८.
अभी भी परमेश्वर का उद्देश्य
९. हम क्यों विश्वस्त हैं कि परमेश्वर का उद्देश्य पूरा होगा?
९ अतः, शुरूआत से ही परमेश्वर का यह उद्देश्य था कि परिपूर्ण मानव परिवार पृथ्वी पर परादीस में सर्वदा जीवित रहे। और यह अभी भी उसका उद्देश्य है! बिना चूके, यह उद्देश्य पूरा होगा। बाइबल कहती है: “सेनाओं के यहोवा ने यह शपथ खाई है, निःसन्देह जैसा मैं ने ठाना है, वैसा ही हो जाएगा, और जैसी मैं ने युक्ति की है, वैसी ही पूरी होगी।” “मैं ही ने यह बात कही है और उसे पूरी भी करूंगा; मैं ने यह विचार बान्धा है और उसे सुफल भी करूंगा।”—यशायाह १४:२४; ४६:११.
१०, ११. यीशु, पतरस, और भजनहार दाऊद ने परादीस के बारे में किस प्रकार कहा?
१० यीशु मसीह ने पृथ्वी पर परादीस पुनःस्थापित करने के परमेश्वर के उद्देश्य के बारे में कहा जब उसने भविष्य के लिए आशा चाहनेवाले एक व्यक्ति को बताया: “तू मेरे साथ परादीस में होगा।” (लूका २३:४३, NW) प्रेरित पतरस ने भी आनेवाले नए संसार के बारे में सूचित किया जब उसने पूर्वबताया: “[परमेश्वर की] प्रतिज्ञा के अनुसार हम एक नए आकाश [स्वर्ग से शासन करनेवाले एक नए शासकीय प्रबन्ध] और नई पृथ्वी [नए पार्थिव समाज] की आस देखते हैं जिन में धार्मिकता बास करेगी।”—२ पतरस ३:१३.
११ भजनहार दाऊद ने भी आनेवाले नए संसार और यह कितना स्थायी होगा, इसके के बारे में लिखा। उसने पूर्वबताया: “धर्मी लोग पृथ्वी के अधिकारी होंगे, और उस में सदा बसे रहेंगे।” (भजन ३७:२९) इसीलिए यीशु ने प्रतिज्ञा की: “धन्य हैं वे, जो नम्र हैं, क्योंकि वे पृथ्वी के अधिकारी होंगे।”—मत्ती ५:५.
१२, १३. मानवजाति के लिए परमेश्वर के महान उद्देश्य का सार प्रस्तुत कीजिए।
१२ यह क्या ही महान प्रत्याशा है, सब दुष्टता, अपराध, बीमारी, दुःख, और दर्द से मुक्त परादीस पृथ्वी पर अनन्त काल के लिए जीना! बाइबल की अंतिम पुस्तक में, परमेश्वर का भविष्यसूचक वचन यह घोषित करने के द्वारा इस महान उद्देश्य का सार प्रस्तुत करता है: “[परमेश्वर] उन की आंखों से सब आंसू पोंछ डालेगा; और इस के बाद मृत्यु न रहेगी, और न शोक, न विलाप, न पीड़ा रहेगी; पहिली बातें जाती रहीं।” यह आगे कहता है: “और जो सिंहासन पर बैठा था, उस ने कहा, कि देख, मैं सब कुछ नया कर देता हूं: फिर उस ने कहा, कि लिख ले, क्योंकि ये वचन विश्वास के योग्य और सत्य हैं।”—प्रकाशितवाक्य २१:४, ५.
१३ जी हाँ, परमेश्वर के मन में एक महान उद्देश्य है। वह व्यक्ति जो अपनी प्रतिज्ञाओं को पूरा कर सकता है और करेगा, क्योंकि उसके “वचन विश्वास के योग्य और सत्य हैं,” यह उसके द्वारा पूर्वकथित धार्मिकता का एक नया संसार, एक अनन्तकालीन परादीस होगा।
[अध्ययन के लिए सवाल]
[पेज २०, २१ पर तसवीरें]
परमेश्वर का उद्देश्य था कि मनुष्य एक परादीस पृथ्वी पर सर्वदा जीवित रहें। यह अभी भी उसका उद्देश्य है
[पेज २२ पर तसवीर]
मालिक किराएदारों से लेखा ले सकता है जो उसके घर को बिगाड़ते हैं