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श्रेष्ठ बुद्धि का एक अद्वितीय स्रोत

श्रेष्ठ बुद्धि का एक अद्वितीय स्रोत

भाग ३

श्रेष्ठ बुद्धि का एक अद्वितीय स्रोत

१, २. हमें बाइबल की जाँच क्यों करनी चाहिए?

क्या बाइबल उस श्रेष्ठ बुद्धि का अभिलेख है? क्या यह जीवन के उद्देश्‍य से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण प्रश्‍नों के सही उत्तर दे सकती है?

निश्‍चय ही बाइबल हमारी जाँच के योग्य है। एक कारण यह है कि यह किसी भी अन्य पुस्तक से बहुत भिन्‍न, अब तक संकलित सबसे असाधारण पुस्तक है। निम्नलिखित तथ्यों पर विचार कीजिए।

सबसे पुरानी, सबसे व्यापक रूप से वितरित पुस्तक

३, ४. बाइबल कितनी पुरानी है?

बाइबल सबसे पुरानी लिखी गई पुस्तक है, इसके कुछ भाग क़रीब ३,५०० साल पहले लिखे गए थे। पवित्र मानी जानेवाली किसी भी अन्य पुस्तक से यह अनेक शताब्दियों पुरानी है। इसमें सम्मिलित ६६ पुस्तकों की पहली पुस्तक बुद्ध और कनफ्यूशियस से लगभग एक हज़ार साल पहले और मुहम्मद से कुछ दो हज़ार साल पहले लिखी गई थी।

बाइबल में अभिलिखित इतिहास मानव परिवार की शुरूआत तक जाता है और व्याख्या करता है कि हम यहाँ पृथ्वी पर कैसे आए। हमें पृथ्वी की रचना के बारे में तथ्य बताते हुए, यह हमें मनुष्य की सृष्टि के समय से भी पहले के समय तक ले जाता है।

५. प्राचीन लौकिक लेखनों की तुलना में, बाइबल की कितनी सारी प्राचीन हस्तलिपियाँ विद्यमान हैं?

अन्य धार्मिक पुस्तकों की, और ग़ैर-धार्मिक पुस्तकों की भी पुरानी हस्तलिपियों की केवल कुछ ही प्रतियाँ विद्यमान हैं। बाइबल की या इसके भागों की क़रीब ११,००० हस्तलिखित प्रतियाँ इब्रानी और यूनानी भाषा में विद्यमान हैं, जिनमें से कुछ प्रतियाँ मौलिक लिखाई के कुछ ही समय बाद की हैं। जबकि बाइबल के विरुद्ध कल्पना किए जा सकनेवाले सबसे संकेंद्रित घातक आक्रमणों की कोशिशें हुई हैं, ये बची हुई हैं।

६. बाइबल कितने व्यापक रूप से वितरित की गई है?

साथ ही, इतिहास में बाइबल अन्य पुस्तकों से कहीं ज़्यादा व्यापक रूप से वितरित होनेवाली पुस्तक है। क़रीब तीन अरब बाइबल प्रतियाँ या इसके भाग कुछ दो हज़ार भाषाओं में वितरित किए जा चुके हैं। कहा जाता है कि ९८ प्रतिशत मानव परिवार को अपनी ही भाषा में बाइबल की पहुँच है। किसी अन्य पुस्तक का वितरण इतना ज़्यादा नहीं है।

७. बाइबल की यथार्थता के बारे में क्या कहा जा सकता है?

इसके अतिरिक्‍त, कोई अन्य प्राचीन पुस्तक यथार्थता में बाइबल के तुल्य नहीं है। वैज्ञानिक, इतिहासकार, पुरातत्वज्ञ, भूगोलज्ञ, भाषा विशेषज्ञ, और अन्य लोग निरन्तर बाइबल वृत्तान्तों को प्रमाणित करते हैं।

वैज्ञानिक यथार्थता

८. विज्ञान के विषयों में बाइबल कितनी यथार्थ है?

उदाहरण के लिए, जबकि बाइबल एक विज्ञान पाठ्य-पुस्तक के रूप में नहीं लिखी गई थी, वैज्ञानिक विषयों के बारे में इसमें जो कुछ लिखा है वह यथार्थ विज्ञान के सामंजस्य में है। लेकिन पवित्र मानी जानेवाली अन्य प्राचीन पुस्तकों में वैज्ञानिक पुराणकथाएँ, अयथार्थता, और सरासर झूठ हैं। बाइबल की वैज्ञानिक यथार्थता के अनेक उदाहरणों में से मात्र चार उदाहरणों पर ध्यान दीजिए:

९, १०. अपने समय के अवैज्ञानिक दृष्टिकोणों को प्रतिबिम्बित करने के बजाय, बाइबल ने पृथ्वी के टेक के बारे में क्या कहा?

पृथ्वी अंतरिक्ष में कैसे टिकी हुई है। प्राचीन समयों में जब बाइबल लिखी जा रही थी, इस विषय में काफ़ी अनुमान लगाया जा रहा था कि पृथ्वी अंतरिक्ष में कैसे टिकी हुई थी। कुछ लोगों का विश्‍वास था कि पृथ्वी चार हाथियों पर टिकी हुई थी जो एक बड़े समुद्री कछुए पर खड़े थे। सामान्य युग पूर्व चौथी शताब्दी के एक यूनानी तत्त्वज्ञ और वैज्ञानिक, ऐरिसटॉटल ने सिखाया कि पृथ्वी खाली अंतरिक्ष में कभी नहीं टिकी रह सकती। इसके बजाय, उसने सिखाया कि खगोलीय पिण्ड ठोस, पारदर्शी गोलों की सतह पर टिके हुए थे, और हर गोला दूसरे गोले के अन्दर टिका हुआ था। कल्पना के अनुसार, पृथ्वी अन्तरतम गोले पर टिकी हुई थी, और बाह्‍यतम गोले पर तारे टिके हुए थे।

१० फिर भी, बाइबल की लिखाई के समय विद्यमान कल्पनाशील, अवैज्ञानिक विचारों को प्रतिबिम्बित करने के बजाय, बाइबल ने (लगभग वर्ष सा.यु.पू. १४७३ में) सरल रूप से कहा: “[परमेश्‍वर] . . . बिना टेक पृथ्वी को लटकाए रखता है।” (अय्यूब २६:७) मौलिक इब्रानी भाषा में, यहाँ “बिना टेक” के लिए प्रयुक्‍त शब्द का अर्थ है “कोई वस्तु नहीं,” और यह शब्द बाइबल में केवल एक ही बार, इसी जगह पर आता है। बाइबल द्वारा प्रस्तुत की गई खाली अंतरिक्ष से घिरी हुई पृथ्वी की यह तस्वीर, विद्वानों द्वारा बाइबल के समय की उल्लेखनीय दूरदृष्टि मानी जाती है। थिओलॉजिकल वर्डबुक ऑफ दी ओल्ड टेस्टामेंट कहती है: “अय्यूब २६:७ असाधारण रीति से तब के परिचित संसार को अंतरिक्ष में लटका हुआ चित्रित करता है, और इस प्रकार भावी वैज्ञानिक खोज का पूर्वानुमान लगाता है।”

११, १२. अय्यूब २६:७ के सत्य को मनुष्यों ने कब समझा?

११ बाइबल का यथार्थ कथन ऐरिसटॉटल से १,१०० से अधिक साल पूर्व दिनांकित था। फिर भी, ऐरिसटॉटल के विचारों को उसकी मृत्यु के कुछ २,००० साल बाद तक तथ्य के रूप में सिखाया जाता रहा! अन्त में, सा.यु. १६८७ में, सर आइज़क न्यूटन ने अपनी प्राप्ति को प्रकाशित किया कि अन्य खगोलीय पिण्डों के सम्बन्ध में पृथ्वी आपसी आकर्षण, अर्थात्‌, गुरुत्व के द्वारा अंतरिक्ष में टिकी हुई थी। लेकिन बाइबल द्वारा सुरुचिपूर्ण सरलता के साथ यह कहने के कि पृथ्वी “बिना टेक” लटक रही है, लगभग ३,२०० साल बाद इस बात को स्वीकार किया गया।

१२ जी हाँ, करीब़न ३,५०० साल पहले, बाइबल ने सही तरह से कहा कि पृथ्वी की कोई दृश्‍य टेक नहीं है, एक ऐसा तथ्य जो बिलकुल हाल ही में समझे गए गुरुत्व और गति के नियमों के सामन्जस्य में है। “अय्यूब सच्चाई कैसे जानता था,” एक विद्वान ने कहा, “यह एक ऐसा प्रश्‍न है जिसका उत्तर पवित्र शास्त्रों की उत्प्रेरणा से इनकार करनेवाले लोग आसानी से नहीं दे पाते हैं।”

१३. शताब्दियों पहले लोगों ने पृथ्वी के आकार के बारे में क्या सोचा था, लेकिन किस बात ने उनका विचार बदल दिया?

१३पृथ्वी का आकार। दी एन्साइक्लोपीडिया अमेरिकाना ने कहा: “पृथ्वी के विषय में मनुष्य का प्रारंभिक चित्र यह था कि यह विश्‍व-मंडल के बीच में एक सपाट, स्थिर मंच था। . . . गोलाकार पृथ्वी की धारणा पुनर्जागरण युग (Renaissance) से पहले व्यापक रूप से स्वीकार नहीं की गई।” कुछेक आरंभिक नाविकों को यह डर भी था कि कहीं वे सपाट पृथ्वी के किनारे से गिर न जाएँ। लेकिन फिर कम्पास और अन्य प्रगति के प्रवेश से लंबी समुद्र-यात्राएँ संभव हुईं। एक और विश्‍वकोश समझाता है, इन “खोज यात्राओं ने दिखाया कि पृथ्वी गोल है, न कि सपाट जैसे अधिकांश लोगों ने विश्‍वास किया था।”

१४. बाइबल ने पृथ्वी के आकार का वर्णन कैसे किया, और कब?

१४ फिर भी, ऐसी यात्राओं से कहीं पहले, क़रीब २,७०० साल पहले, बाइबल ने कहा: “यह वह है जो पृथ्वी के घेरे के ऊपर आकाशमण्डल पर विराजमान है।” (यशायाह ४०:२२) यहाँ ‘घेरा’ अनुवादित इब्रानी शब्द का अर्थ “गोल” भी हो सकता है, जैसे विभिन्‍न संदर्भ कार्य बताते हैं। इसलिए, अन्य बाइबल अनुवाद कहते हैं, “पृथ्वी का गोला” (डुए वर्शन) और, “गोल पृथ्वी।”—मौफ़ट.

१५. पृथ्वी के बारे में अवैज्ञानिक दृष्टिकोणों से बाइबल क्यों प्रभावित नहीं हुई?

१५ अतः, पृथ्वी के टेक और उसके आकार के सम्बन्ध में उस समय प्रचलित अवैज्ञानिक दृष्टिकोणों से बाइबल प्रभावित नहीं थी। कारण सरल है: बाइबल का रचयिता ही विश्‍व-मंडल का रचयिता है। उसने पृथ्वी की सृष्टि की, सो उसे पता होना चाहिए कि वह किस पर लटक रही है और उसका आकार क्या है। इसलिए, जब उसने बाइबल को उत्प्रेरित किया, उसने यह निश्‍चित किया कि कोई भी अवैज्ञानिक दृष्टिकोण इसमें समाविष्ट न किए जाएँ, चाहे उन पर उस समय के लोगों का कितना ही विश्‍वास क्यों न हो।

१६. जीवित वस्तुओं का संघटन बाइबल के कथन से किस प्रकार सहमत है?

१६जीवित वस्तुओं का संघटन। उत्पत्ति २:७ कहता है, “यहोवा परमेश्‍वर ने [मनुष्य, फुटनोट] को भूमि की मिट्टी से रचा।” द वर्ल्ड बुक एन्साइक्लोपीडिया कहती है: “वे सभी रासायनिक तत्त्व जिनसे जीवित वस्तुएँ बनती हैं निर्जीव पदार्थों में भी पाए जाते हैं।” इसलिए, वे सभी मूल रसायन जिनसे जीवित प्राणी बनते हैं, जिसमें मनुष्य भी सम्मिलित है, स्वयं पृथ्वी में भी पाए जाते हैं। यह बाइबल के कथन के सामन्जस्य में है जो उस पदार्थ की पहचान कराता है जिसे परमेश्‍वर ने मनुष्यों और सभी अन्य जीवित वस्तुओं की सृष्टि करने में प्रयोग किया।

१७. जीवित वस्तुएँ किस प्रकार अस्तित्व में आयीं, इस विषय में सत्य क्या है?

१७“एक एक की जाति के अनुसार।” बाइबल कहती है कि परमेश्‍वर ने पहले मानव जोड़े की सृष्टि की और सभी अन्य मनुष्य उनसे आए हैं। (उत्पत्ति १:२६-२८; ३:२०) यह कहती है कि अन्य जीवित वस्तुएँ, जैसे कि मछली, पक्षी, स्तनधारी, भी उसी प्रकार, “एक एक की जाति के अनुसार” आए हैं। (उत्पत्ति १:११, १२, २१, २४, २५) वैज्ञानिकों ने प्राकृतिक सृष्टि में ठीक यही पाया है, कि हर जीवित वस्तु समान जाति के जनक से आती है। कोई अपवाद नहीं है। इस सम्बन्ध में भौतिकविज्ञानी रेमो कहता है: “जीव से जीव बनता है; यह हर कोशिका में हमेशा होता रहता है। लेकिन अजीव ने जीव कैसे बनाया? यह जीवविज्ञान में एक सबसे बड़ा अनुत्तरित प्रश्‍न है, और अब तक जीवविज्ञानी सिर्फ़ ख़्याली अंदाज़ा ही लगा सकते हैं। किसी तरह निर्जीव पदार्थ ने अपने आपको सजीव तरीक़े से व्यवस्थित कर लिया। . . . फिर भी, हो सकता है कि उत्पत्ति के रचियता ने इसे सही तरीक़े से अभिव्यक्‍त किया हो।”

ऐतिहासिक यथार्थता

१८. बाइबल की ऐतिहासिक यथार्थता के बारे में एक वक़ील क्या कहता है?

१८ विद्यमान किसी भी पुस्तक की तुलना में बाइबल में सबसे यथार्थ प्राचीन इतिहास है। पुस्तक एक वक़ील बाइबल की जाँच करता है (A Lawyer Examines the Bible) इसकी ऐतिहासिक यथार्थता को इस प्रकार विशिष्ट करती है: “जबकि कल्प-कथाओं, पौराणिक कथाओं और झूठे प्रमाणों में वर्णित घटनाओं को ध्यानपूर्वक किसी दूर स्थान और किसी अनिश्‍चित समय में रखा जाता है, और इस प्रकार ये अच्छे तर्क के लिए हम वक़ीलों द्वारा सीखे गए पहले नियमों का उलंघन करती हैं, कि ‘विवरण में समय और स्थान दिया जाना चाहिए,’ बाइबल वृत्तान्त सम्बन्धित बातों की तारीख़ और स्थान भरसक यथार्थता से देते हैं।”

१९. बाइबल के ऐतिहासिक विवरण के बारे में एक स्रोत किस प्रकार टिप्पणी करता है?

१९द न्यू बाइबल डिक्शनरि टिप्पणी करती है: “[प्रेरितों के काम का लेखक] अपने वृत्तान्त को समकालिक इतिहास के ढाँचे में प्रस्तुत करता है; उसके पृष्ठ नगराधिकारियों, प्रांतीय राज्यपालों, परतंत्र राजाओं, और इसी प्रकार के उल्लेखों से भरे हुए हैं, और हर बार जिस समय और स्थान की बात हो रही है उसके लिए ये उल्लेख एकदम सही प्रमाणित होते हैं।

२०, २१. बाइबल के इतिहास के बारे में एक बाइबल विद्वान क्या कहता है?

२०दी यूनियन बाइबल कम्पैनियन में लिखते हुए, एस. ऑस्टिन एलिबोन कहता है: “सर आइज़क न्यूटन . . . प्राचीन लेखों के आलोचक के तौर पर भी श्रेष्ठ था, और उसने पवित्र शास्त्र की ध्यानपूर्वक जाँच की। इस विषय पर उसका निर्णय क्या है? वह कहता है, ‘किसी भी [लौकिक] इतिहास से ज़्यादा मैं नए नियम में प्रामाणिकता के अधिक ठोस प्रमाण पाता हूँ।’ डॉ. जॉनसन कहता है कि जूलियस सीज़र कॅपिटल में मरा, इस बात के प्रमाण से ज़्यादा प्रमाण हमारे पास इस बात का है कि यीशु कलवरी पर मरा, जैसे सुसमाचार वृत्तान्तों में कहा गया है। सचमुच, हमारे पास काफ़ी ज़्यादा प्रमाण है।”

२१ यह स्रोत आगे कहता है: “सुसमाचार के इतिहास की सच्चाई पर संदेह करने का दावा करनेवाले किसी भी व्यक्‍ति से पूछिए कि उसके पास इस बात पर विश्‍वास करने का क्या कारण है कि सीज़र कॅपिटल में मरा, या यह कि सम्राट शार्लमेन को पोप लिओ III द्वारा वर्ष ८०० में पश्‍चिम का सम्राट अभिषिक्‍त किया गया? . . . आप कैसे जानते हैं कि [इंग्लैंड का] चार्ल्स्‌ I जैसा व्यक्‍ति भी कभी जीवित था, और उसका सिर काटा गया, और कि उसके स्थान में ओलिवर क्रॉमवॅल शासक बना? . . . सर आइज़क न्यूटन को गुरुत्वाकर्षण के नियम के आविष्कार का श्रेय दिया जाता है . . . इन मनुष्यों के विषय में किए गए इन सभी दावों पर हम विश्‍वास करते हैं; और इसलिए कि इनकी सच्चाई के बारे में हमारे पास ऐतिहासिक प्रमाण है। . . . यदि, ऐसे प्रमाण दिखाने पर भी कोई व्यक्‍ति इन पर विश्‍वास न करें, तो हम उन्हें मूर्ख रूप से दुष्ट या आशाहीन रूप से अज्ञानी व्यक्‍ति कहकर त्याग देते हैं।”

२२. कुछ लोग बाइबल की प्रामाणिकता को स्वीकार करने से क्यों इनकार करते हैं?

२२ फिर यह स्रोत निष्कर्ष निकालता है: “उन व्यक्‍तियों के बारे में फिर हम क्या कहें, जो अब पवित्र शास्त्र की प्रामाणिकता के भरपूर प्रमाण प्रस्तुत किए जाने के बावजूद भी दावा करते हैं कि वे क़ायल नहीं हुए हैं? . . . निश्‍चय ही हमारे पास यह निष्कर्ष निकालने का कारण है कि सिर के बदले हृदय में दोष है;—कि वे उस बात का विश्‍वास नहीं करना चाहते हैं जो उनके घमण्ड को तोड़ती है, और जो उन्हें भिन्‍न जीवन जीने के लिए मजबूर करेगी।”

आन्तरिक तालमेल और स्पष्टवादिता

२३, २४. बाइबल का आन्तरिक तालमेल इतना असाधारण क्यों है?

२३ कल्पना कीजिए कि एक पुस्तक का लेखन रोमी साम्राज्य के समय में शुरू हुआ, मध्य युग के दौरान जारी रहा, और इस २०वीं शताब्दी में समाप्त हुआ, जिसमें अनेक भिन्‍न लेखकों ने योगदान दिया। आप कैसे परिणाम की अपेक्षा करेंगे यदि लेखक अपने पेशों में इतने भिन्‍न होते जितने कि सैनिक, राजा, याजक, मछुए, चरवाहे, और डॉक्टर? क्या आप अपेक्षा करेंगे कि पुस्तक सुसंगत और संसक्‍त होगी? शायद आप कहें, ‘मुश्‍किल है!’ ख़ैर, बाइबल इन्हीं परिस्थितियों में लिखी गई थी। फिर भी, यह मात्र समस्त धारणाओं में ही नहीं बल्कि अतिलघु विवरण में भी पूर्णता से सुसंगत है।

२४ बाइबल कुछ ४० अलग-अलग लेखकों द्वारा १,६०० वर्षों की अवधि में लिखित ६६ पुस्तकों का संग्रह है, जिसका लेखन सा.यु.पू. १५१३ में शुरू हुआ और सा.यु. ९८ में समाप्त हुआ। लिखनेवाले विभिन्‍न सामाजिक स्तर और पेशों से थे, और अनेक लेखकों का अन्य लेखकों के साथ कोई सम्पर्क नहीं था। फिर भी, जो पुस्तक बनी, उसमें शुरू से अन्त तक एक केंद्रीय, संसक्‍त विषय है, मानो एक ही मस्तिष्क द्वारा लिखी गई हो। और कुछ लोगों के विश्‍वास के विपरीत, बाइबल पश्‍चिमी सभ्यता का उत्पादन नहीं है, बल्कि यह पूर्वियों द्वारा लिखी गई थी।

२५. बाइबल की ईमानदारी और स्पष्टवादिता बाइबल लेखकों के कौन-से दावे का समर्थन करती है?

२५ जबकि अधिकांश प्राचीन लेखकों ने सिर्फ़ अपनी सफलताएँ और सद्‌गुण ही लिखे, बाइबल लेखकों ने स्वयं अपनी ग़लतियों को, और साथ ही अपने राजाओं और नेताओं की कमियों को खुलकर स्वीकार किया। गिनती २०:१-१३ और व्यवस्थाविवरण ३२:५०-५२ में मूसा की कमियाँ लिखी गई हैं, और उसी ने इन पुस्तकों को लिखा। योना १:१-३ और ४:१ योना की कमियों को सूचीबद्ध करता है, जिस ने इन वृत्तान्तों को लिखा। मत्ती १७:१८-२०; १८:१-६; २०:२०-२८; और २६:५६ में यीशु के चेलों द्वारा दिखाए गए घटिया गुण लेखबद्ध हैं। अतः, बाइबल लेखकों की ईमानदारी और स्पष्टवादिता परमेश्‍वर द्वारा उत्प्रेरित होने के उनके दावे का समर्थन करती है।

इसका सबसे विशिष्ट लक्षण

२६, २७. वैज्ञानिक और अन्य विषयों में बाइबल इतनी यथार्थ क्यों है?

२६ बाइबल स्वयं प्रकट करती है कि यह वैज्ञानिक, ऐतिहासिक, और अन्य विषयों में इतनी यथार्थ क्यों है और यह इतनी सुसंगत और खरी क्यों है। यह दिखाती है कि सर्वोच्च व्यक्‍ति, सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर, सृष्टिकर्ता जिसने विश्‍व-मंडल की रचना की, बाइबल का रचयिता है। उसने मानवी बाइबल लेखकों को मात्र अपने सुलेखकों के रूप में प्रयोग किया, और जो कुछ वह उनसे लिखवाना चाहता था, उसने अपनी शक्‍तिशाली सक्रिय शक्‍ति द्वारा उन्हें लिखने के लिए उत्प्रेरित किया।

२७ बाइबल में प्रेरित पौलुस कहता है: “हर एक पवित्रशास्त्र परमेश्‍वर की प्रेरणा से रचा गया है और उपदेश, और समझाने, और सुधारने, और धर्म की शिक्षा के लिये लाभदायक है। ताकि परमेश्‍वर का जन सिद्ध बने, और हर एक भले काम के लिये तत्पर हो जाए।” और प्रेरित पौलुस ने यह भी कहा: “जब हमारे द्वारा परमेश्‍वर के सुसमाचार का वचन तुम्हारे पास पहुंचा, तो तुम ने उसे मनुष्यों का नहीं, परन्तु परमेश्‍वर का वचन समझकर (और सचमुच यह ऐसा ही है) ग्रहण किया।”—२ तीमुथियुस ३:१६, १७; १ थिस्सलुनीकियों २:१३.

२८. तो फिर, बाइबल कहाँ से आयी है?

२८ अतः, बाइबल एक रचयिता—परमेश्‍वर—के मस्तिष्क से आयी है। और उसकी विस्मयकारी शक्‍ति के साथ, उसके लिए यह निश्‍चित करना एक सरल कार्य था कि जो लिखा गया था उसकी अखण्डता हमारे दिनों तक बनी रहे। इसके बारे में बाइबल हस्तलिपियों के एक उच्च अधिकारी, सर फ्रेडरिक केनयन, ने १९४० में कहा: “इस विषय में किसी प्रकार के सन्देह की अंतिम नींव कि शास्त्र तात्विक रूप से हमारे पास वैसे ही पहुँचे हैं, जैसे कि वे लिखे गए थे, अब ढह चुकी है।”

२९. परमेश्‍वर की संचार करने की योग्यता किस प्रकार सुचित्रित की जा सकती है?

२९ मनुष्यों के पास हज़ारों किलोमीटर दूर अंतरिक्ष से, यहाँ तक कि चन्द्रमा से भी, पृथ्वी पर रेडियो और टेलिविजन संकेत भेजने की योग्यता है। अंतरिक्ष-अन्वेषणों ने करोड़ों किलोमीटर दूर ग्रहों से वापस पृथ्वी पर भौतिक जानकारी और तस्वीरें भेजी हैं। निश्‍चित ही मनुष्य का सृष्टिकर्ता, रेडियो तरंगों का सृष्टिकर्ता, कम से कम उतना तो कर ही सकता था। सचमुच, उसके लिए उन व्यक्‍तियों के मन में शब्दों और तस्वीरों को संचारित करने के लिए अपनी सर्वशक्‍ति का प्रयोग करना एक सरल कार्य था, जिन्हें उसने बाइबल लिखने के लिए चुना था।

३०. क्या परमेश्‍वर चाहता है कि मनुष्य यह पता लगाएँ कि उनके लिए उसका उद्देश्‍य क्या है?

३० इसके अलावा, पृथ्वी और इस पर जीवन के बारे में अनेक बातें हैं जो मनुष्यजाति में परमेश्‍वर की रुचि का प्रमाण देती हैं। इसलिए, यह स्वाभाविक है कि वह इन बातों को स्पष्ट रूप से एक पुस्तक—एक स्थायी दस्तावेज़—में अभिव्यक्‍त करने के द्वारा, मनुष्यों को यह जानने में मदद करना चाहेगा कि वह कौन है और उनके लिए उसका क्या उद्देश्‍य है।

३१. लिखित उत्प्रेरित संदेश मौखिक रूप से आगे बढ़ाई गई जानकारी से कहीं श्रेष्ठ क्यों है?

३१ मनुष्यों द्वारा केवल मौखिक रूप से जानकारी को आगे बढ़ाने की तुलना में परमेश्‍वर द्वारा रचित पुस्तक की श्रेष्ठता पर भी विचार कीजिए। मौखिक बातें विश्‍वसनीय न होतीं, क्योंकि लोग संदेश का भावानुवाद करते, और कुछ समय बाद, उसका अर्थ विकृत हो जाता। वे मौखिक वचन के द्वारा जानकारी को स्वयं अपने दृष्टिकोण से आगे बताते। लेकिन एक परमेश्‍वर-प्रेरित, स्थायी लिखित अभिलेख में त्रुटियाँ होने की सम्भावनाएँ काफ़ी कम हैं। साथ ही, एक पुस्तक पुनरुत्पादित और अनुवादित हो सकती है ताकि विभिन्‍न भाषाएँ पढ़नेवाले लोग उससे लाभ उठा सकें। तो क्या यह तर्कसंगत नहीं कि हमारे सृष्टिकर्ता ने जानकारी प्रदान करने के लिए एक ऐसे तरीक़े का प्रयोग किया? सचमुच, यह तर्कसंगत से भी ज़्यादा है, क्योंकि सृष्टिकर्ता कहता है कि उसने यही किया।

पूरित भविष्यवाणी

३२-३४. बाइबल में क्या है जो किसी अन्य पुस्तक में नहीं है?

३२ इसके अतिरिक्‍त, एक अद्वितीय रूप से उत्कृष्ट तरीक़े से बाइबल ईश्‍वरीय उत्प्रेरणा का चिह्न दिखाती है: यह भविष्यवाणियों की ऐसी पुस्तक है जिनकी अचूक पूर्ति हुई है और अभी भी हो रही है।

३३ उदाहरण के लिए, प्राचीन सोर का विनाश, बाबुल का पतन, यरूशलेम का पुनर्निर्माण, और मादियों और फारसियों और यूनान के राजाओं का उत्थान-पतन बाइबल में बड़े विस्तृत रूप से पूर्वबताया गया था। ये भविष्यवाणियाँ इतनी यथार्थ थीं कि कुछ आलोचकों ने व्यर्थ ही यह कहने की कोशिश की कि ये घटनाओं के घटित होने के बाद लिखी गई थीं।—यशायाह १३:१७-१९; ४४:२७-४५:१; यहेजकेल २६:३-६; दानिय्येल ८:१-७, २०-२२.

३४ सामान्य युग ७० में यरूशलेम के विनाश के बारे में जो भविष्यवाणियाँ यीशु ने दी थीं, यथार्थ रूप से पूरी हुईं। (लूका १९:४१-४४; २१:२०, २१) और अंतिम दिनों के बारे में यीशु और प्रेरित पौलुस द्वारा दी गयी भविष्यवाणियाँ ठीक हमारे ही समय में विस्तृत रूप से पूरी हो रही हैं।—२ तीमुथियुस ३:१-५, १३; मत्ती २४; मरकुस १३; लूका २१.

३५. बाइबल भविष्यवाणी क्यों केवल सृष्टिकर्ता से ही आ सकती है?

३५ कोई भी मानवी मस्तिष्क, चाहे कितना ही बुद्धिमान क्यों न हो, इतनी यथार्थता से भावी घटनाओं को नहीं पूर्वबता सकता। सिर्फ़ विश्‍व-मंडल के सर्वशक्‍तिमान और सर्वज्ञानी सृष्टिकर्ता का मस्तिष्क ही ऐसा कर सकता है, जैसे हम २ पतरस १:२०, २१ में पढ़ते हैं: “पवित्र शास्त्र की कोई भी भविष्यद्वाणी किसी के अपने ही विचारधारा के आधार पर पूर्ण नहीं होती। क्योंकि कोई भी भविष्यद्वाणी मनुष्य की इच्छा से कभी नहीं हुई पर भक्‍त जन पवित्र आत्मा के द्वारा उभारे जाकर परमेश्‍वर की ओर से बोलते थे।”

यह उत्तर देती है

३६. बाइबल हमें क्या बताती है?

३६ इसलिए, अनेक तरीक़ों से, बाइबल सर्वोच्च व्यक्‍ति का उत्प्रेरित वचन होने का प्रमाण प्रस्तुत करती है। परमेश्‍वर का वचन होने के नाते, यह हमें बताती है कि मनुष्य पृथ्वी पर क्यों हैं, इतने दुःख क्यों हैं, हम कहाँ जा रहे हैं, और किस प्रकार परिस्थितियों में सुधार आएगा। यह हमारे लिए प्रकट करती है कि एक सर्वोच्च परमेश्‍वर है जिसने एक उद्देश्‍य के लिए मनुष्यों की और इस पृथ्वी की सृष्टि की और यह कि उसका उद्देश्‍य पूरा होगा। (यशायाह १४:२४) बाइबल हमारे लिए यह भी प्रकट करती है कि सच्चा धर्म क्या है और हम इसे कैसे पा सकते हैं। अतः, यह श्रेष्ठ बुद्धि का एकमात्र स्रोत है जो हमें जीवन के सभी महत्त्वपूर्ण प्रश्‍नों के बारे में सत्य बता सकता है।—भजन १४६:३; नीतिवचन ३:५; यशायाह २:२-४.

३७. मसीहीजगत के बारे में क्या पूछा जाना चाहिए?

३७ जबकि बाइबल की प्रामाणिकता और सत्यता के भरपूर प्रमाण हैं, क्या कथनी में इसे स्वीकार करनेवाले सभी लोग इसकी शिक्षाओं का अनुसरण करते हैं? उदाहरण के लिए, उन राष्ट्रों पर ध्यान दीजिए जो मसीहियत का अनुसरण करने का दावा करते हैं, अर्थात्‌ मसीहीजगत। अनेक शताब्दियों से उनके पास बाइबल की पहुँच रही है। लेकिन क्या उनके विचार और कार्य सचमुच परमेश्‍वर की श्रेष्ठ बुद्धि को प्रतिबिम्बित करते हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज ११ पर तसवीरें]

सर आइज़क न्यूटन का विश्‍वास था कि अन्य खगोलीय पिण्डों के सम्बन्ध में पृथ्वी गुरुत्व के द्वारा अंतरिक्ष में टिकी हुई थी

बाइबल द्वारा प्रस्तुत की गई खाली अंतरिक्ष से घिरी हुई पृथ्वी की तस्वीर विद्वानों द्वारा बाइबल के समय की उल्लेखनीय दूरदृष्टि मानी जाती है

[पेज १२ पर तसवीर]

कुछेक आरंभिक नाविकों को सपाट पृथ्वी के किनारे से गिर जाने का भी डर था

[पेज १३ पर तसवीर]

जूलियस सीज़र, सम्राट शार्लमेन, ओलिवर क्रॉमवॅल, या पोप लियो III जीवित रहे, इस बात के प्रमाण से ज़्यादा प्रमाण हमारे पास इस बात का है कि यीशु मसीह अस्तित्व में था

[पेज १५ पर तसवीर]

सामान्य युग ७० में यरूशलेम के विनाश के बारे में यीशु द्वारा दी गई भविष्यवाणियों की पूर्ति रोम में तीतुस के मेहराब द्वारा प्रमाणित है