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अनन्त जीवन का एक शत्रु

अनन्त जीवन का एक शत्रु

अध्याय २

अनन्त जीवन का एक शत्रु

१. क्योंकि आनंद और शांति प्रायः नहीं पाई जाती हैं तो क्या प्रश्‍न उठते हैं?

पृथ्वी पर आनंद—प्रायः सभी चाहते हैं। तब क्यों अनेक लोग दुःखी हैं? कौनसी बात अनुचित है? जबकि सभी शान्ति चाहते हैं तो राष्ट्र क्यों युद्धग्रस्त रहते हैं और लोग क्यों एक दूसरे से घृणा करते हैं? क्या कोई निर्देशक शक्‍ति है जो लोगों को ये बुरे काम करने के लिए प्रेरित करती है? क्या यह ऐसा तो नहीं कि इन राष्ट्रों पर किसी सामान्य अदृश्‍य शक्‍ति का नियन्त्रण है?

२. इतिहास में वर्णित वे कौनसे अपराध हैं जिनसे अनेक लोग ये सोचते हैं कि शायद एक दुष्ट अदृश्‍य शक्‍ति मनुष्यों को नियन्त्रित कर रही है?

कई लोगों ने इस विषय में अचम्भा व्यक्‍त किया जब उन्होंने मानवजाति की भयंकर क्रूरता पर विचार किया जैसा कि युद्ध में नेपाम बम और परमाणु बम और ज़हरीली गैसों का उपयोग जिससे अनेक व्यक्‍ति दम घुटने और जलने से मरे हैं। इसके अतिरिक्‍त ज्वालाफेंक यंत्र, नज़रबन्दी शिविर और हाल के वर्षों में कम्बोडिया देश में लाखों निःसहाय लोगों की हुई सामूहिक हत्या पर विचार कीजिए। क्या आप यह सोचते हैं कि ये सारी दुष्टताएँ संयोग मात्र हुई थीं? यद्यपि मनुष्य निजी तौर पर भयंकर कार्य करने की क्षमता रखता है परन्तु जब उसके घोर दुष्टतापूर्ण कार्यों पर आप विचार करते हैं तब आपको क्या ऐसा नहीं लगता कि वह किसी दुष्ट अदृश्‍य शक्‍ति द्वारा प्रभावित हुआ है?

३. संसार के शासन के विषय में बाइबल क्या कहती है?

इस विषय में आपको अनुमान लगाने की आवश्‍यकता नहीं है। बाइबल स्पष्टता प्रदर्शित करती है कि मनुष्यों और राष्ट्रों पर एक बुद्धिसम्पन्‍न अदृश्‍य शक्‍ति का नियन्त्रण रहा है। बाइबल में यीशु मसीह इस सामर्थ्यपूर्ण व्यक्‍ति को “इस संसार का शासक” बताता है। (यूहन्‍ना १२:३१; १४:३०; १६:११) वह कौन है?

४. इबलीस ने यीशु को क्या दिखाया और उसके सम्मुख क्या प्रस्तुत किया?

यह मालूम करने में हमारी सहायता देने के लिए कि वह कौन है आप उस घटना पर विचार कीजिए जो यहाँ पृथ्वी पर यीशु की सेवकाई के प्रारम्भ में घटित हुई थी। बाइबल हमें बताती है कि यीशु अपने बपतिस्मा पाने के बाद जब वीराने में गया तब वहाँ शैतान अर्थात्‌ इबलीस नामक एक अदृश्‍य प्राणी ने उसे प्रलोभित करने का प्रयत्न किया। उस प्रलोभन के एक भाग का इस विधि से वर्णन किया गया है: “फिर इबलीस उसे एक असाधारण ऊँचे पर्वत पर ले गया और संसार के सब राज्य और उनका प्रताप दिखाया और उससे कहा: ‘ये सब कुछ मैं तुझे दे दूंगा यदि तू झुककर मेरी उपासना करे।’”—मत्ती ४:८, ९.

५. (क) यह कैसे प्रदर्शित होता है कि संसार की सारी सरकार इबलीस की संपत्ति हैं? (ख) बाइबल के अनुसार कौन “इस रीति-व्यवहार का ईश्‍वर” है?

ज़रा सोचिये कि इबलीस ने यीशु मसीह के सम्मुख क्या प्रस्तुत किया—“संसार के सारे राज्य।” क्या वास्तव में ये सब सांसारिक सरकार इबलीस की सम्पत्ति हैं? हाँ, वरना वह कैसे ये सब यीशु के सम्मुख प्रस्तुत कर सकता था? यीशु ने इस बात से इन्कार नहीं किया कि वह शैतान की सम्पत्ति थी, यदि शैतान उनका स्वामी न होता तो वह इस बात से अवश्‍य इन्कार करता। शैतान वास्तव में संसार के सब राष्ट्रों का अदृश्‍य शासक है! बाइबल स्पष्ट रूप से यह कहती है: “यह सारा संसार उस दुष्ट के वश में है।” (१ यूहन्‍ना ५:१९) परमेश्‍वर का वचन वास्तव में, शैतान को “इस रीति-व्यवहार का ईश्‍वर” बताता है।—२ कुरिन्थियों ४:४.

६. (क) शैतान के शासन के विषय में यह सूचना हमें क्या समझने में सहायता देती है? (ख) शैतान हमारे साथ क्या करना चाहता है, अतः हमें क्या करना चाहिये?

यह सूचना हमें यह समझने में सहायता देती है कि यीशु ने क्यों यह कहा था: “मेरा राज्य इस संसार का भाग नहीं है।” (यूहन्‍ना १८:३६) इससे हमें यह समझने में भी सहायता मिलती है कि राष्ट्र क्यों एक दूसरे से घृणा करते हैं और एक दूसरे को नष्ट करने का प्रयत्न करते हैं जबकि सब सामान्य व्यक्‍तियों की यह इच्छा है कि वे शान्ति से रहें। हाँ, “शैतान . . . सारे संसार को गुमराह कर रहा है।” (प्रकाशितवाक्य १२:९) वह हमें भी गुमराह करना चाहता है। वह नहीं चाहता है कि हम परमेश्‍वर का वरदान अर्थात्‌ अनन्त जीवन प्राप्त करें। अतः हमें उससे प्रभावित होकर बुरे कार्य करने से बचने के लिये उसका मुकाबला करते रहना चाहिये। (इफिसियों ६:१२) हमें शैतान और उसकी कार्यप्रणाली के विषय में जानकारी प्राप्त करने की आवश्‍यकता है जिससे कि हम उसके प्रयत्नों का जिनके द्वारा वह हमें गुमराह करता है मुकाबला कर सकें।

इबलीस कौन है

७. हम इबलीस को क्यों नहीं देख सकते हैं?

शैतान अर्थात्‌ इबलीस एक वास्तविक व्यक्‍ति है। वह सारी मानवजाति में केवल बुराई का गुण नहीं है जैसा कि कुछ लोग विश्‍वास करते हैं। निश्‍चय ही मनुष्य इबलीस को नहीं देख सकते हैं, उसी तरह वे परमेश्‍वर को भी नहीं देख पाते। परमेश्‍वर और इबलीस दोनों आत्मिक व्यक्‍ति हैं, उस प्रकार के प्राणी जो मनुष्यों में उच्च और हमारी आँखों के प्रति अदृश्‍य हैं।—यूहन्‍ना ४:२४.

८. अनेक लोग क्यों विश्‍वास करते हैं कि परमेश्‍वर ने इबलीस को सृष्ट किया?

शायद कोई यह पूछे, ‘यदि परमेश्‍वर है तो उसने इबलीस को क्यों बनाया?’ (१ यूहन्‍ना ४:८) वास्तविकता यह है कि परमेश्‍वर ने इबलीस को सृष्ट नहीं किया था। कोई व्यक्‍ति यह कहे: ‘यदि परमेश्‍वर ने सबको सृष्ट किया तो उसने इबलीस को भी सृष्ट किया होगा। और कौन उसे सृष्ट कर सकता था? इबलीस कहाँ से आया?’

९. (क) स्वर्गदूत किस प्रकार के व्यक्‍ति हैं? (ख) दोनों शब्द “इबलीस” और “शैतान” का क्या अर्थ है?

बाइबल व्याख्या करती है कि परमेश्‍वर ने अपने समान अनेकों आत्मिक प्राणी सृष्ट किये थे। बाइबल में इन आत्मिक प्राणियों को स्वर्गदूत कहते हैं। वे “परमेश्‍वर के पुत्र” भी कहलाते हैं। (अय्यूब ३८:७; भजन संहिता १०४:४; इब्रानियों १:७, १३, १४) परमेश्‍वर ने उन सब को पूर्ण बनाया था। उनमें कोई भी इबलीस या शैतान नहीं था। “इबलीस” शब्द का अर्थ है निन्दक और “शैतान” शब्द का अर्थ है विरोधी।

१०. (क) किसने शैतान अर्थात्‌ इबलीस को बनाया? (ख) कैसे एक अच्छा व्यक्‍ति अपने आपको अपराधी बना सकता है?

१० तथापि वह समय आया, जब परमेश्‍वर के आत्मिक पुत्रों में से एक ने अपने आपको इबलीस बना लिया अर्थात्‌ एक घृणापूर्ण झूठा व्यक्‍ति जो दूसरों के विषय में बुरी बातें कहता है। उसने अपने आपको शैतान भी बना लिया अर्थात्‌ परमेश्‍वर का विरोधी। वह इस प्रकार सृष्ट नहीं किया गया था परन्तु बाद में वह उस प्रकार का व्यक्‍ति बन गया। उदाहरणतया, एक चोर जन्म से चोर नहीं होता। वह एक अच्छे परिवार से संबंधित हो सकता है, या उसका माता-पिता ईमानदार और उसके भाई-बहन कानून का पालन करनेवाले व्यक्‍ति हों। परन्तु धन द्वारा खरीदी जानेवाली वस्तुओं की अपनी लालसा ने उसे चोर बनने के लिये प्रेरित किया होगा। तब परमेश्‍वर के आत्मिक पुत्रों में से एक ने अपने आपको शैतान अर्थात्‌ इबलीस कैसे बनाया?

११. (क) परमेश्‍वर के किस उद्देश्‍य को एक विद्रोही स्वर्गदूत जानता था? (ख) इस स्वर्गदूत की क्या लालसा थी, और उसने उसे क्या करने के लिए प्रेरित किया?

११ वह स्वर्गदूत जो इबलीस बना उस समय मौजूद था जब परमेश्‍वर ने पृथ्वी और बाद में प्रथम मानव दम्पत्ति आदम और हव्वा को सृष्ट किया था। (अय्यूब ३८:४, ७) तब उसने परमेश्‍वर को उनसे यह कहते सुना होगा कि वे बच्चे उत्पन्‍न करें। (उत्पत्ति १:२७, २८) वह जानता था कि कुछ समय बाद सम्पूर्ण पृथ्वी उन धर्मी लोगों से भर जायेगी जो परमेश्‍वर की उपासना करेंगे। वही परमेश्‍वर का उद्देश्‍य था। तथापि, यह स्वर्गदूत अपनी सुन्दरता और बुद्धि के कारण अपने आपको महत्वपूर्ण समझता था और अपने लिए वह उपासना चाहता था जिस पर परमेश्‍वर का अधिकार था। (यहेज़केल २८:१३-१५; मत्ती ४:१०) अपने मन से उस अनुचित इच्छा को दूर करने की अपेक्षा वह उसके विषय में सोचता रहा। इसलिए उसने वह आदर और महत्व प्राप्त करने के लिए जो वह चाहता था, कार्यवाही की। उसने क्या किया?—याकूब १:१४, १५.

१२. (क) इस स्वर्गदूत ने हव्वा से कैसे बात की और उसने उसे क्या बताया? (ख) यह स्वर्गदूत कैसे शैतान अर्थात्‌ इबलीस बना? (ग) इबलीस के रूपरंग के विषय में क्या अनुचित राय है?

१२ विद्रोही स्वर्गदूत ने प्रथम स्त्री हव्वा से बात करने के लिये दीन सर्प का प्रयोग किया। उसने ऐसा किया जैसा कि एक प्रवीण व्यक्‍ति अपने हुनर का प्रयोग इस रीति से करता है कि ऐसा प्रतीत होता है जैसे कि नज़दीक कोई पशु बोल रहा है या कोई कठपुतली बात कर रही है। परन्तु वास्तव में वह विद्रोही स्वर्गदूत था जो हव्वा से बात कर रहा था और बाइबल में वह “पुराना साँप” कहलाया गया है। (प्रकाशितवाक्य १२:९) उसने कहा कि परमेश्‍वर उससे सच नहीं बोल रहा था और जो ज्ञान उसे मिलना चाहिए था वह नहीं दे रहा था। (उत्पत्ति ३:१-५) यह एक घृणापूर्ण झूठ था और इसने उसे इबलीस बना दिया। इस प्रकार वह परमेश्‍वर का विरोधी अर्थात्‌ शैतान भी बन गया। जैसा कि आप देख सकते हैं कि इबलीस के बारे में यह सोचना गलत है कि वह एक ऐसा प्राणी है जिसके सींग हैं और उसके पास एक पाँचा है और जो पाताल में यातना के स्थान का सर्वेक्षण करता है। वह वास्तव में एक सामर्थ्यवान परन्तु एक दुष्ट स्वर्गदूत है।

संसार की विपत्तियों का उद्‌गम

१३. (क) इबलीस के झूठ के प्रति हव्वा का क्या प्रत्युत्तर था? (ख) इबलीस ने क्या दावे किये थे?

१३ इबलीस ने हव्वा से जो झूठ बोला था वह उसी प्रकार कार्यान्वित हुआ जिस प्रकार उसने योजना बनायी थी। हव्वा ने झूठ पर विश्‍वास किया और परमेश्‍वर की आज्ञा का उल्लंघन किया। उसने अपने पति को भी परमेश्‍वर का नियम तोड़ने के लिये विवश किया। (उत्पत्ति ३:६) इबलीस का यह दावा था कि मनुष्य परमेश्‍वर के बिना भी रह सकते हैं। उसने यह तर्क-वितर्क किया कि लोग परमेश्‍वर की सहायता के बिना स्वयं के नियमों के अधीन, सफलतापूर्वक अपना जीवन चला सकते हैं। इबलीस ने यह दावा भी किया कि वह उन सबको जो आदम और हव्वा की संतान होंगे, परमेश्‍वर से दूर कर सकता है।

१४. परमेश्‍वर ने शैतान को उसी समय नष्ट क्यों नहीं कर दिया?

१४ निश्‍चय, परमेश्‍वर शैतान को उसी समय नष्ट कर सकता था। परन्तु यह उन प्रश्‍नों का उत्तर न होता जो शैतान ने उठाये थे, वे प्रश्‍न जो उन स्वर्गदूतों के मन में उठते जो इन बातों को देख रहे थे। इसलिए परमेश्‍वर ने शैतान को अपने दावे सिद्ध करने के प्रयत्न को समय दिया। परिणाम क्या हुआ?

१५, १६. (क) अभी तक जो समय गुज़रा है उसने इबलीस के दावों के सम्बन्ध में क्या सिद्ध किया है? (ख) कौनसी घटना निकट आ पहुंची है?

१५ अब तक जो समय गुज़रा है उससे यह सिद्ध हुआ है कि मनुष्य परमेश्‍वर की सहायता के बिना स्वयं सफलतापूर्वक शासन नहीं कर सकते हैं। उनके प्रयत्न पूर्ण रूप से असफल हुए हैं। मनुष्यों के इन राज्यों के अधीन लोग भयंकर रूप से दुःख उठाते रहे हैं क्योंकि जैसा कि पवित्र शास्त्र प्रदर्शित करते हैं वे अदृश्‍य रूप से इबलीस द्वारा नियंत्रित रहे हैं। इसके अतिरिक्‍त परमेश्‍वर ने जो समय दिया है उसने स्पष्ट रूप से यह प्रदर्शित किया है कि शैतान सब व्यक्‍तियों को परमेश्‍वर की उपासना करने से रोकने में सफल नहीं हुआ है। हमेशा कुछ लोग ऐसे रहे हैं जो परमेश्‍वर की शासकता के प्रति वफ़ादार रहे हैं। उदाहरण के रूप में आप बाइबल में पढ़ सकते हैं कि शैतान ने अय्यूब को परमेश्‍वर की सेवा करने से रोकने का प्रयत्न किया और असफल रहा।—अय्यूब १:६-१२.

१६ अतः इबलीस के सब दावे झूठे सिद्ध हुए हैं। परमेश्‍वर के विरुद्ध एक दुष्ट विद्रोह शुरू करने के लिये वह निश्‍चय ही नष्ट होने के योग्य है। खुशी की बात यह है कि अब हम उस समय में पहुंच गये हैं जब परमेश्‍वर शैतान के शासन का अन्त करेगा। इस कार्य में पहला कदम लेने का विवरण देते हुए बाइबल स्वर्ग में एक महत्वपूर्ण युद्ध के विषय में बताती है जो निश्‍चय पृथ्वी पर लोगों ने न देखा और न सुना। ध्यानपूर्वक आप बाइबल का निम्नलिखित विवरण पढ़िये:

१७. (क) बाइबल स्वर्ग में लड़ाई होने का कैसे विवरण देती है? (ख) उस लड़ाई का परिणाम उनके प्रति जो स्वर्ग में हैं और उनके प्रति जो पृथ्वी पर हैं, क्या रहा?

१७ “स्वर्ग में लड़ाई हुई: मीकाईल [जो पुनरुत्थित यीशु मसीह है] और उसके स्वर्गदूत अजगर से लड़ने को निकले और अजगर और उसके दूत उससे लड़े परन्तु, प्रबल न हुए और स्वर्ग में उनके लिए फिर जगह न रही। और वह बड़ा अजगर अर्थात्‌ वही पुराना सांप जो इबलीस और शैतान कहलाता है और सारे संसार को गुमराह कर रहा है, पृथ्वी पर, नीचे फेंक दिया गया; और उसके दूत उसके साथ नीचे फेंके गये। ‘इस कारण हे स्वर्गो और उनमें के रहनेवालो, मगन हो! हे पृथ्वी और समुद्र तुम पर हाय, क्योंकि इबलीस बड़े क्रोध में तुम्हारे पास नीचे उतर आया है, क्योंकि वह जानता है कि उसका थोड़ा ही समय रह गया है।’”—प्रकाशितवाक्य १२:७-९, १२.

१८. (क) स्वर्ग में कब लड़ाई हुई? (ख) उस समय से पृथ्वी पर क्या घटित हो रहा है जब से शैतान “नीचे फेंक दिया गया”?

१८ स्वर्ग में यह लड़ाई कब हुई थी? साक्ष्य यह प्रदर्शित करता है कि यह घटना प्रथम विश्‍व युद्ध के समय घटित हुई जो वर्ष १९१४ में प्रारंभ हुआ था। जैसा कि प्रकाशितवाक्य की पुस्तक संकेत करती है कि शैतान उसी समय स्वर्ग से निकाल दिया गया था जिसका यह अर्थ है कि हम उस समय से उसी के “थोड़े समय” में रह रहे हैं। इस प्रकार ये शैतान के संसार के “अन्तिम दिन” हैं। बढ़ती हुई अराजकता, डर, युद्ध, खाद्य पदार्थ की न्यूनता, बीमारियाँ और अन्य दुःखद परिस्थितियाँ जिनका हम अनुभव कर रहे हैं, इसी वास्तविकता का प्रमाण हैं।—मत्ती २४:३-१२; लूका २१:२६; २ तीमुथियुस ३:१-५.

१९. (क) शैतान अब क्या करने का अत्यधिक प्रयत्न कर रहा है? (ख) हमारे लिए क्या करना बुद्धिमता की बात होगी?

१९ क्योंकि शैतान जानता है कि उसका “थोड़ा समय” समाप्त होने पर है, वह व्यक्‍तियों को परमेश्‍वर की सेवा करने से रोकने में पहले से भी अधिक कोशिश कर रहा है। वह अपने अत्यधिक प्रयत्नों द्वारा अधिकाधिक व्यक्‍तियों को विनाश की ओर ले जाना चाहता है। इस उपयुक्‍त कारण से बाइबल उसको एक दहाड़ते हुए शेर के समान बताती है जो किसी को भी फाड़ खाने की खोज कर रहा है। (१ पतरस ५:८, ९) यदि हम नहीं चाहते हैं कि वह हमें पकड़े तो हमें यह मालूम करने की आवश्‍यकता है कि वह कैसे आक्रमण करता है और उसके क्या तरीके हैं जिनके द्वारा वह लोगों को गुमराह करता है।—२ कुरिन्थियों २:११.

शैतान लोगों को कैसे गुमराह करता है

२०. (क) शैतान अपने हमले में कितना सफल रहा है? (ख) हम क्यों इस बात की आशा कर सकते हैं कि उसकी योजनाएं निष्कपट यहाँ तक हितकर दिखाई देंगी?

२० आप यह न सोचिये कि लोगों द्वारा शैतान का अनुसरण करने के तरीक़े हमेशा आसानी से देखे जा सकते हैं। लोगों को बेवकूफ बनाने में वह प्रवीण है। हज़ारों वर्षों से उसके तरीक़े वास्तव में इतने चतुरतापूर्ण रहे हैं कि आज अनेक लोग यह भी विश्‍वास नहीं करते हैं कि वह अस्तित्व में है। उनके लिये दुष्टता और बुराई केवल वे सामान्य परिस्थितियाँ हैं जो हमेशा रहेंगी। शैतान बहुत कुछ आधुनिक काल के अपराधी नेताओं के समान कार्यवाही करता है जो सम्मानीयता का जामा पहने रहते हैं परन्तु पीठपीछे अति दुष्ट कार्य करते हैं। बाइबल व्याख्या करती है: “शैतान स्वयं ज्योतिर्मय स्वर्गदूत का रूप धारण करता रहता है।” (२ कुरिन्थियों ११:१४) इसलिये हम इसकी प्रत्याशा कर सकते हैं कि लोगों को गुमराह करने की उसकी योजनाएं अक्सर निष्कपट यहाँ तक हितकर दिखाई देंगी।

२१. वह एक योजना क्या है जिसका शैतान ने प्रयोग किया है?

२१ याद कीजिए कि शैतान ने अपने आपको हव्वा का मित्र प्रस्तुत किया था। तब फिर उसने चालाकी से उसे वह काम करने के लिए विवश किया जिससे वह यह समझी कि वह कार्य उसकी अपनी भलाई के लिये था। (उत्पत्ति ३:४-६) आज भी यही परिस्थिति है। उदाहरणतया शैतान अपने मानव प्रतिनिधियों के द्वारा, चालाकी से लोगों को इस बात का प्रोत्साहन देता है कि वे परमेश्‍वर के प्रति अपनी सेवा के ज़्यादा मानव राज्यों के हितों को प्राथमिकता दें। इसने राष्ट्रीयता की भावना को जन्म दिया है, जिसके परिणामस्वरूप भयंकर युद्ध हुए हैं। हाल के दिनों में शैतान ने लोगों को अपनी शांति और सुरक्षा की खोज में अनेक योजनाएं बनाने के लिए प्रेरित किया है। उनमें से एक योजना संयुक्‍त राष्ट्र संघ है। परन्तु क्या इस योजना ने शांतिपूर्ण संसार उत्पन्‍न किया है? बिल्कुल नहीं! इसकी अपेक्षा वह एक ऐसा साधन सिद्ध हुआ है जिसने लोगों के ध्यान को मानवजाति के लिए शांति लानेवाली परमेश्‍वर की उस व्यवस्था से हटाया है जो “शांति के राजकुमार” यीशु मसीह के अधीन, उसका आनेवाला राज्य है।—यशायाह ९:६; मत्ती ६:९, १०.

२२. वह कौनसा ज्ञान है जो शैतान नहीं चाहता है कि हम प्राप्त करें?

२२ यदि हम अनन्त जीवन प्राप्त करना चाहते हैं तो हमें परमेश्‍वर, उसके पुत्र जो राजा है और उसके राज्य के विषय में यथार्थ ज्ञान लेने की आवश्‍यकता है। (यूहन्‍ना १७:३) आप निश्‍चित हो सकते हैं कि शैतान अर्थात्‌ इबलीस नहीं चाहता है कि आप यह ज्ञान प्राप्त करें और वह अपनी पूर्ण सामर्थ्य से आपको उस ज्ञान के पाने से रोकने का प्रयत्न करेगा। वह यह कैसे करेगा? एक तरीका यह है कि वह यह देखेगा कि आपको विरोध शायद उपहास के रूप में भी मिलता रहे। बाइबल हमें बताती है: “वे सब जो मसीह यीशु की संगति में भक्‍ति के साथ जीवन व्यतीत करना चाहते हैं, अवश्‍य सताये जायेंगे।”—२ तीमुथियुस ३:१२.

२३. (क) हमें निरुत्साहित करने के लिए शैतान मित्रों और संबंधियों का प्रयोग कैसे कर सकता है? (ख) आपको क्यों विरोध के सम्मुख अपनी हार नहीं माननी चाहिये?

२३ ऐसा भी हो सकता है कि आपके नज़दीकी मित्र और सम्बन्धी भी आप से यही कहेंगे कि वे आपका धर्मशास्त्र की जाँच-पड़ताल करना पसंद नहीं करते हैं। स्वयं यीशु मसीह ने भी यही चेतावनी दी थी: “मनुष्य के शत्रु उसके घर ही के लोग होंगे। जो माता और पिता को मुझसे अधिक प्रिय जानता है वह मेरे योग्य नहीं; जो पुत्र या पुत्री को मुझसे अधिक प्रिय जानता है वह मेरे योग्य नहीं।” (मत्ती १०:३६, ३७) शायद आपके रिश्‍तेदार आपको निरुत्साहित करने का प्रयत्न करें और वे ये सब निष्कपटता से करें क्योंकि वे उन अद्‌भुत सच्चाइयों को नहीं जानते हैं जो बाइबल में पायी जाती हैं। परन्तु यदि आप विरोध के आने पर परमेश्‍वर के वचन का अध्ययन करना त्याग देते हैं तो परमेश्‍वर आपको किस दृष्टि से देखेगा? यदि आप बाइबल का अध्ययन त्याग भी दें तो आप अपने मित्रों और प्रियजनों की सहायता, यह समझने में कैसे करेंगे कि बाइबल का यथार्थ ज्ञान इतना महत्वपूर्ण है कि उसका परिणाम जिन्दगी या मौत है? आपका उन बातों पर कायम रहना जो आप परमेश्‍वर के वचन से सीखते हैं, समय आने पर शायद उसी समान उनको सच्चाई सीखने के लिये प्रभावित करे।

२४. (क) वे अन्य तरीके क्या हैं जिनका प्रयोग इबलीस लोगों को जीवनदायक ज्ञान लेने से रोकने के लिए करता है? (ख) आप परमेश्‍वर के वचन का अध्ययन करना कितना महत्वपूर्ण समझते हैं?

२४ दूसरी ओर, शैतान आपको किसी अनैतिक कार्य में जिससे परमेश्‍वर प्रसन्‍न नहीं होता है, भाग लेने के लिए प्रलोभित करे। (१ कुरिन्थियों ६:९-११) और यह भी हो सकता है कि वह आपको यह महसूस कराये कि आप इतने व्यस्थ रहते हैं कि आपके पास बाइबल के अध्ययन करने का समय नहीं है। परन्तु जब आप इस विषय पर विचार करते हैं तो क्या कोई ऐसी अन्य बात हो सकती है जो इस प्रकार का ज्ञान प्राप्त करने से अधिक महत्व रखती है? आप किसी बात को इस ज्ञान की प्राप्ति में बाधक सिद्ध न होने दीजिए जो आपके पृथ्वी पर परादीस में अनन्त जीवन प्राप्त करने में सहायक हो सकता है!

२५. यदि हम इबलीस का विरोध करते रहेंगे तो वह हमारे प्रति क्या करने के योग्य नहीं होगा?

२५ बाइबल प्रेरित करती है: “इबलीस का विरोध करो।” यदि आप ऐसा करते हैं तो “वह आप से दूर भाग जायेगा।” (याकूब ४:७) क्या इसका यह अर्थ है कि यदि आप शैतान के हमले का मुकाबला करते हैं तो वह आपको छोड़ देगा और फिर आपको कभी परेशान नहीं करेगा? नहीं, वह बारम्बार यही कोशिश करेगा कि आप वही करें जो वह चाहता है। परन्तु यदि आप उसका विरोध करते ही रहेंगे तो वह कभी आपको वह रास्ता लेने के लिये विवश करने में सफल नहीं होगा जो परमेश्‍वर के विरुद्ध जाता है। अतः बाइबल का अत्यन्त महत्वपूर्ण ज्ञान लेने के लिये परिश्रम कीजिए और जो आप सीखते हैं उसे व्यवहार में लाइये। यह अत्यावश्‍यक बात है जिससे आप लोगों को गुमराह करनेवाले शैतान के दूसरे साधन द्वारा धोखा खाने से बच सकते हैं और वह है झूठा धर्म।

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज १६, १७ पर तसवीरें]

क्या शैतान मसीह को संसार की ये सब सरकारें प्रस्तुत कर सकता था यदि वे उसकी संपत्ति न होतीं?

[पेज १९ पर तसवीर]

यह चोर जन्म से चोर नहीं था जैसा कि इबलीस एक “इबलीस” सृष्ट नहीं किया था

[पेज २०, २१ पर तसवीरें]

शैतान और पिशाचों को पृथ्वी पर फेंके जाने से स्वर्ग में लड़ाई समाप्त हुई। आप उसके प्रभाव अब महसूस कर रहे हैं

[पेज २४ पर तसवीर]

आपके निरन्तर बाइबल अध्ययन का शायद विरोध हो