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आप एक अति आवश्‍यक विषय में अन्तर्ग्रस्त हैं

आप एक अति आवश्‍यक विषय में अन्तर्ग्रस्त हैं

अध्याय १२

आप एक अति आवश्‍यक विषय में अन्तर्ग्रस्त हैं

१, २. (क) जिस रीति से आप अपना जीवन व्यतीत करते हैं वह वास्तव में क्यों आपके लिए महत्व रखता है? (ख) इससे अन्य कौन प्रभावित होता है और क्यों?

आप अपना जीवन कैसे व्यतीत करते हैं, यह वास्तव में महत्व रखता है। उसका अभिप्राय आपके लिये एक सुखद भविष्य या एक दुःखद भविष्य होगा। अन्ततः वह इस बात का निर्णय करेगा, कि क्या आप इस संसार के साथ समाप्त हो जाते हैं, या आप उसके अन्त से बचकर परमेश्‍वर की उस न्याययुक्‍त नयी व्यवस्था में प्रवेश करते हैं, जहाँ आप सर्वदा जीवित रह सकते हैं।—१ यूहन्‍ना २:१७; २ पतरस ३:१३.

परन्तु आप अपना जीवन जिस प्रकार व्यतीत करते हैं उसका प्रभाव केवल आप पर ही नहीं, औरों पर भी पड़ता है। अन्य व्यक्‍ति भी अंतर्ग्रस्त होते हैं। आप जो कुछ भी करते हैं, वह उनको भी प्रभावित करता है। उदाहरणतया, यदि आपके माता-पिता जीवित हैं तो जो कुछ आप करते हैं उससे उनका या तो सम्मान होता है या अपमान होता है। बाइबल कहती है: “बुद्धिमान पुत्र वह है जो अपने पिता को आनन्दित करता है और मूर्ख पुत्र अपनी माता के लिये दुःख का कारण है।” (नीतिवचन १०:१) अत्यधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि जिस प्रकार का जीवन आप व्यतीत करते हैं उससे यहोवा परमेश्‍वर भी प्रभावित होता है। उससे या तो वह खुश हो सकता है या उससे उसको दुःख हो सकता है। क्यों? एक अति आवश्‍यक विषय के कारण जिसमें आप अन्तर्ग्रस्त हैं।

क्या मनुष्य परमेश्‍वर के प्रति वफ़ादार रहेंगे?

३. शैतान ने यहोवा को क्या चुनौती दी थी?

इस विषय को शैतान अर्थात्‌ इबलीस ने उठाया था। यह विषय उसने उस समय उठाया, जब वह आदम और हव्वा द्वारा परमेश्‍वर के नियम को तोडने में सफल हुआ, और परमेश्‍वर के विरुद्ध विद्रोह में उसका साथ दिया। (उत्पत्ति ३:१-६) इससे शैतान को जो उसने सोचा था उसके अनुसार यह आधार मिला जिससे उसने यहोवा को इस चुनौती द्वारा संबोधित किया: ‘लोग केवल तुझसे कुछ प्राप्त करने के लिये तेरी सेवा करते हैं। मुझे ज़रा मौका दे मैं किसी को भी तुझसे विमुख कर सकता हूँ।’ यद्यपि ये शब्द वस्तुतः बाइबल में नहीं है, यह स्पष्ट है कि शैतान ने कुछ इसी प्रकार की बात परमेश्‍वर से कही थी। यह बाइबल की अय्यूब नामक पुस्तक में प्रदर्शित है।

४, ५. (क) अय्यूब कौन था? (ख) अय्यूब के दिनों में स्वर्ग में क्या घटना हुई?

अय्यूब नामक एक पुरुष अदन के उद्यान में विद्रोह होने के कई शताब्दियों पश्‍चात्‌ हुआ। वह एक धर्मी पुरुष और परमेश्‍वर का वफ़ादार सेवक था। परन्तु क्या अय्यूब का वफ़ादार रहना वास्तव में परमेश्‍वर के प्रति या शैतान के लिये कोई महत्व रखता था? बाइबल यह प्रदर्शित करती है कि यह वास्तव में महत्व रखता था। वह हमें स्वर्ग के दरबार यहोवा के सम्मुख शैतान की उपस्थिति के विषय में बताती है। उनके वार्तालाप के विषय पर गौर कीजिए:

“अब एक दिन ऐसा आया जब सच्चे परमेश्‍वर के पुत्र यहोवा के सम्मुख उपस्थित होने के लिये दाखिल हुए, और शैतान भी उनके बीच में आया। तब यहोवा ने शैतान से कहा: ‘तू कहाँ से आता है?’ इस पर शैतान ने यहोवा को उत्तर दिया और कहा: ‘पृथ्वी पर इधर-उधर घूमता-फिरता आया हूँ।’ और यहोवा शैतान से कहने लगा: ‘क्या तूने मेरे सेवक अय्यूब पर ध्यान दिया है, कि उसके तुल्य पृथ्वी पर निर्दोष, सच्चा और परमेश्‍वर का भय माननेवाला और बुराई से दूर रहनेवाला मनुष्य कोई नहीं है?’”—अय्यूब १:६-८.

६. अय्यूब के दिनों में वह वाद-विषय क्या था जिसे बाइबल प्रदर्शित करती है?

यहोवा ने शैतान से इस बात का ज़िक्र क्यों किया कि अय्यूब एक सच्चा पुरुष था? स्पष्टतया, यहाँ एक वाद-विषय उठा था कि क्या अय्यूब यहोवा के प्रति वफ़ादार रहेगा या नहीं। परमेश्‍वर के इस प्रश्‍न पर कि “तू कहाँ से आता है?” और शैतान के इस उत्तर पर कि “पृथ्वी पर इधर-उधर घूमता-फिरता आया हूँ” विचार कीजिए। इस प्रश्‍न और शैतान के उत्तर से यह प्रदर्शित हुआ, कि यहोवा परमेश्‍वर शैतान को उसकी चुनौती, कि वह किसी को भी परमेश्‍वर से विमुख कर सकता था, को कार्यान्वित करने के लिये पूरा मौक़ा दे रहा था। अय्यूब की वफ़ादारी के विषय में यहोवा के प्रश्‍न का शैतान का क्या उत्तर था?

७, ८. (क) शैतान ने अय्यूब द्वारा परमेश्‍वर की सेवा करने का क्या कारण बताया था? (ख) यहोवा ने उस विषय का फैसला करने के लिए क्या किया?

“शैतान ने यहोवा को उत्तर दिया और कहा: ‘क्या अय्यूब बिना लाभ के परमेश्‍वर का भय मानता है? क्या तूने स्वयं उसके और उसके घर और जो कुछ उसका है, उसके चारों ओर बाढ़ नहीं बांधी है? तूने उसके काम को आशीष दी है और उसका स्वयं पशुधन पृथ्वी पर हर तरफ फैल गया है। परन्तु परिवर्तन स्वरूप, कृपा करके अपना हाथ बढ़ा, और जो कुछ उसका है उसको लेने के लिये छू, और देख कि वह तेरे मुँह पर तेरी निन्दा करेगा।’”—अय्यूब १:९-११.

अपने उत्तर द्वारा शैतान परमेश्‍वर के प्रति अय्यूब की वफादारी का कारण बता रहा था। शैतान यह तर्क कर रहा था कि ‘अय्यूब तेरी सेवा इसलिये करता है कि तूने उसको सब भौतिक संपत्ति दी है न कि इसलिये कि वह तुझसे प्रेम करता है।’ शैतान इस बात की भी शिकायत कर रहा था कि यहोवा परमेश्‍वर अपनी महान शक्‍ति को अनुचित रीति से प्रयोग कर रहा था। उसने कहा: ‘तूने उसकी हमेशा रक्षा की है।’ अतः, इस वाद विषय का फैसला करने के लिए यहोवा ने यह उत्तर दिया: “देख! जो कुछ उसका है, वह तेरे हाथ में है। केवल स्वयं उसके शरीर पर अपना हाथ न लगाना!”—अय्यूब १:१२.

९. शैतान ने अय्यूब के लिए क्या विपत्तियाँ उत्पन्‍न कीं और उसका परिणाम क्या हुआ?

तुरन्त शैतान अय्यूब के लिये विपत्तियाँ पैदा करने लगा। उसने अय्यूब के सारे पशुधन को मरवा डाला या उनकी चोरी करा दी। तब उसने इस बात पर भी ध्यान दिया कि अय्यूब के सब १० बच्चे भी जान से मार दिये जायें। अय्यूब ने प्रायः सब कुछ खो दिया, फिर भी वह यहोवा परमेश्‍वर के प्रति वफ़ादार रहा। उसने परमेश्‍वर की निन्दा नहीं की। (अय्यूब १:२, १३-२२) परन्तु, इससे वाद विषय का फैसला नहीं हुआ।

१०. किस बात से प्रदर्शित होता है कि शैतान अपनी चुनौती पर अटल रहा?

१० शैतान फिर परमेश्‍वर यहोवा के सम्मुख अन्य स्वर्गदूतों के साथ उपस्थित हुआ। यहोवा परमेश्‍वर ने पुनः शैतान से पूछा कि क्या उसने अय्यूब की विश्‍वस्तता देखी है और कहा: “फिर भी वह अपनी वफादारी पर स्थिर है।” इसपर शैतान ने उत्तर दिया: “खाल के बदले खाल, परन्तु वह कोई भी मनुष्य अपना सब कुछ जो उसके पास अपने प्राण के लिये दे देगा। परिवर्तन के लिये कृपया अपना हाथ बढ़ा और उसकी हड्डी और मांस तक छू और देख वह तेरे मुँह पर तेरी निन्दा करेगा।”—अय्यूब २:१-५.

११. (क) शैतान ने अय्यूब की क्या अतिरिक्‍त परीक्षाएं लीं? (ख) उनका परिणाम क्या हुआ?

११ इसके उत्तर में यहोवा परमेश्‍वर ने शैतान को अय्यूब के साथ जो कुछ भी वह करना चाहता है, करने की अनुमति दी, यद्यपि परमेश्‍वर ने कहा: “तू उसकी जान मत लेना।’ (अय्यूब २:६) अतः शैतान ने अय्यूब को एक भयंकर रोग से ग्रस्त किया। अय्यूब का दुःख इतना गहन था कि उसने मरने की प्रार्थना की। (अय्यूब २:७, १४:१३, १४) उसकी अपनी पत्नी यह कहकर उसका विरोध करने लगी: “परमेश्‍वर की निन्दा कर और मर जा!” (अय्यूब २:९) परन्तु अय्यूब ने ऐसा करने से इन्कार किया। उसने कहा: “जब तक मेरा प्राण न छूटे तब तक मैं अपनी वफादारी से नहीं हटूंगा!” (अय्यूब २७:५) अय्यूब परमेश्‍वर के प्रति वफ़ादार रहा। अतः यह बात सिद्ध हुई कि शैतान अपनी इस चुनौती में गलत निकला कि अय्यूब केवल भौतिक लाभ के लिये न कि परमेश्‍वर से प्रेम करने के कारण उसकी सेवा करता था। इस बात का भी प्रदर्शन हुआ कि शैतान प्रत्येक व्यक्‍ति को परमेश्‍वर की सेवा करने से विमुख नहीं कर सकता था।

१२. (क) अय्यूब ने परमेश्‍वर को शैतान की चुनौती का क्या उत्तर दिया? (ख) परमेश्‍वर के प्रति यीशु की वफादारी ने क्या सिद्ध किया?

१२ आप क्या सोचते हैं कि यहोवा परमेश्‍वर ने अय्यूब के वफादार रहने पर कैसा महसूस किया होगा? उसे अति प्रसन्‍नता हुई! परमेश्‍वर का वचन हमें उत्तेजित करता है: “हे मेरे पुत्र बुद्धिमान होकर मेरा मन आनन्दित कर, ताकि मैं उसको जो मेरी निन्दा करता है, उत्तर दे सकूं।” (नीतिवचन २७:११) यह शैतान है जो यहोवा परमेश्‍वर को ताना देता है। अय्यूब ने अपनी वफ़ादारी के मार्ग पर चलकर परमेश्‍वर के मन को आनन्दित किया। अय्यूब के वफ़ादार रहने से परमेश्‍वर ने शैतान के इस अहंकारयुक्‍त ताने अथवा चुनौती का उत्तर दिया कि मनुष्य परीक्षा के अधीन परमेश्‍वर की सेवा नहीं करेंगे। अनेक अन्य व्यक्‍तियों ने भी परमेश्‍वर को इस प्रकार का उत्तर दिया है। इस प्रकार की वफ़ादारी के प्रदर्शन का अति उत्तम उदाहरण सिद्ध पुरुष यीशु ने पेश किया। उन समस्त परीक्षाओं और कष्टों के बावजूद जो शैतान द्वारा यीशु पर आयीं उसने दृढ़तापूर्वक परमेश्‍वर के प्रति अपनी वफ़ादारी को कायम रखा। इससे यह सिद्ध हुआ कि परिपूर्ण मनुष्य आदम यदि चाहता तो इसी प्रकार वफ़ादार रह सकता था, और कि परमेश्‍वर मनुष्य से पूर्ण आज्ञाकारिता की अपेक्षा करने में अन्यायी नहीं था।

आपकी क्या स्थिति है?

१३. (क) जिस रीति से आप अपना जीवन व्यतीत करते हैं उसका इस वाद-विषय से क्या संबंध है? (ख) हम परमेश्‍वर को कैसे खुश कर सकते हैं अथवा उसे दुःख पहुंचा सकते हैं?

१३ आपके जीवन की क्या स्थिति है? आप शायद यह न सोचें कि जिस प्रकार का जीवन आप व्यतीत करते हैं, वास्तव में कोई महत्व रखता है। वह अवश्‍य महत्व रखता है। चाहे इस बात से आप परिचित हों या न हों, वह परमेश्‍वर के पक्ष या शैतान के पक्ष में इस वाद विषय का समर्थन करता है। यहोवा आपकी परवाह करता है और वह यह देखना चाहता है कि आप उसकी सेवा करें और परादीस रूपी पृथ्वी पर सर्वदा जीवित रहें। (यूहन्‍ना ३:१६) जब इस्राएली परमेश्‍वर के विरुद्ध विद्रोह करते थे, तो उसे दुःख होता था अथवा उसके दिल को चोट लगती थी। (भजन संहिता ७८:४०, ४१) क्या आपका जीवन मार्ग इस प्रकार का है जिससे परमेश्‍वर प्रसन्‍न होता है अथवा उससे उसको दुःख होता है? निश्‍चय, परमेश्‍वर को प्रसन्‍न करने के लिये आवश्‍यक है कि आप उसके नियमों के विषय में जानकारी प्राप्त करें और उनका पालन करें।

१४. (क) मैथुनिक संबंधों के विषय में हमें परमेश्‍वर को खुश करने के लिए किन नियमों का पालन करने की आवश्‍यकता है? (ख) इस प्रकार के नियमों को तोड़ना क्यों अपराध है?

१४ शैतान का प्रमुख लक्ष्य यह है कि वह व्यक्‍तियों को परमेश्‍वर के उन नियमों का उल्लंघन करने के लिये विवश करे जो उनकी प्रजनन शक्‍तियों के प्रयोग और विवाह की और परिवार की व्यवस्था को नियंत्रित करते हैं। परमेश्‍वर के नियम जो हमारी खुशी की सुरक्षा के लिये है यह कहते हैं कि अविवाहित व्यक्‍तियों को एक दूसरे के साथ मैथुनिक सम्बन्ध में लिप्त नहीं होना चाहिये और विवाहित व्यक्‍तियों को अपने विवाहित साथी के अतिरिक्‍त किसी दूसरे व्यक्‍ति के साथ मैथुनिक सम्बन्ध नहीं रखना चाहिये। (१ थिस्सलुनीकियों ४:३-८; इब्रानियों १३:४) जब परमेश्‍वर के नियम का उल्लंघन होता है तो बहुधा ऐसे बच्चे पैदा होते हैं जिनके माता-पिता न उनसे प्रेम करते हैं और न उनको रखना चाहते हैं। ऐसी माताएँ गर्भपात द्वारा बच्चों को उनके पैदा होने से पहले मार देती हैं। इसके अतिरिक्‍त अनेक व्यक्‍ति जो परगमन करते हैं भयंकर यौन रोगों से ग्रस्त हो जाते हैं जिनसे उन बच्चों को जो वे पैदा करें, हानि पहुँच सकती है। उस व्यक्‍ति से मैथुनिक संबंध रखना जिससे आपका विवाह नहीं हुआ है, परमेश्‍वर के विरुद्ध अपराध अथवा उसके प्रति वफादार न रहने का कार्य है। अय्यूब ने कहा: “यदि मेरा हृदय किसी स्त्री पर मोहित हो गया है और मैं पड़ोसी के द्वार पर घात लगाये बैठा हूँ . . . वह एक महापाप होगा और दंड योग्य अपराध।”—अय्यूब ३१:१, ९, ११, द न्यू अमेरिकन बाइबल।

१५. (क) यदि हम परगमन करते हैं तो हम किसे खुश करते हैं? (ख) परमेश्‍वर के नियमों का पालन करना क्यों बुद्धिमता है?

१५ हमें इस बात पर आश्‍चर्य नहीं होना चाहिये कि इबलीस द्वारा शासित संसार इसको कि आपका उस व्यक्‍ति के साथ मैथुनिक सम्बन्ध रखना जिससे आपका विवाह नहीं हुआ है, सामान्य और उचित बात प्रदर्शित करेगा। यदि आप ऐसा करते हैं तो आप किसको प्रसन्‍न कर रहे हैं? शैतान को, न कि यहोवा को। परमेश्‍वर को प्रसन्‍न करने के लिये आपको “परगमन से दूर भागना” आवश्‍यक है। (१ कुरिन्थियों ६:१८) यह बात सत्य है, कि परमेश्‍वर के प्रति वफ़ादार रहना हमेशा आसान नहीं होता है। अय्यूब के लिये भी यह एक आसान बात नहीं थी। परन्तु याद रखिये, कि परमेश्‍वर के नियमों का पालन करना बुद्धिमता है। यदि आप ऐसा करते हैं तो आप अभी भी सुखी रहेंगे। परन्तु इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि आप इस वाद विषय में परमेश्‍वर के पक्ष का समर्थन करेंगे और उसे प्रसन्‍न करेंगे। और वह आपको इस पृथ्वी पर सुखमय अनन्त जीवन की आशीष देगा।

१६. (क) अय्यूब ने अपनी वफादारी के लिए क्या आशीषें प्राप्त कीं? (ख) उस हानि के विषय में जो शैतान उत्पन्‍न करता है जैसे कि अय्यूब के १० बच्चों का मारा जाना, क्या कहा जा सकता है?

१६ यह सच है, कि शैतान ने अय्यूब को कंगाल कर दिया था और वह उसके १० बच्चों की मृत्यु का कारण भी बना। इसमें कोई सन्देह नहीं कि यह अय्यूब के लिये अगाध क्षति थी। परन्तु जब अय्यूब ने अपनी वफ़ादारी का प्रमाण दिया, तो उस समय जब शैतान को उसकी परीक्षा लेने की आज्ञा दी गयी थी, उसके पास जितना था उससे दुगना परमेश्‍वर ने उसको दिया। अय्यूब १० अतिरिक्‍त बच्चों का पिता भी बना। (अय्यूब ४२:१०-१७) इसके अतिरिक्‍त हम निश्‍चित हो सकते हैं कि अय्यूब के १० बच्चे जिनको शैतान ने जान से मार दिया था मृतकों के पुनरुत्थान के समय जी उठाये जायेंगे। यह सच है कि कोई भी हानि या विपत्ति ऐसी नहीं है जिसके लाने की इज़ाजत शैतान को मिली है, और जिसे हमारा प्रिय पिता यहोवा अपने नियत समय में दूर नहीं करेगा।

१७. जिस रीति से हम अपना जीवन व्यतीत करते हैं वह वास्तव में क्यों महत्व रखता है?

१७ अतः आप इस बात को हमेशा अपने मन में रखेंगे कि जिस प्रकार का जीवन आप व्यतीत करते हैं, वह वास्तव में महत्व रखता है। विशेष रूप से वह यहोवा परमेश्‍वर और शैतान अर्थात्‌ इबलीस के प्रति महत्व रखता है। यह इसलिये है क्योंकि आप उस वाद विषय में अंतर्ग्रस्त हैं कि क्या मनुष्य परमेश्‍वर के प्रति वफ़ादार रहेंगे कि नहीं।

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज १०६ पर तसवीरें]

अय्यूब ने शैतान की इस चुनौती का खंडन किया कि कोई भी परीक्षा के अधीन परमेश्‍वर के प्रति वफादार नहीं रह सकता

[पेज ११० पर तसवीरें]

किसी व्यक्‍ति के साथ मैथुनिक संबंध रखना जिससे आपका विवाह नहीं हुआ है, परमेश्‍वर के विरुद्ध एक अपराध है

[पेज १११ पर तसवीरें]

यहोवा ने अय्यूब को उसकी वफादारी के लिये उसकी अपेक्षा जो कुछ उसके पास पहले था, कहीं अधिक दिया