इस जानकारी को छोड़ दें

विषय-सूची को छोड़ दें

क्या हम दस आज्ञाओं के अधीन हैं?

क्या हम दस आज्ञाओं के अधीन हैं?

अध्याय २४

क्या हम दस आज्ञाओं के अधीन हैं?

१. मूसा ने लोगों तक कौनसी व्यवस्था पहुंचायी थी?

वे नियम क्या हैं जिनका अनुपालन यहोवा परमेश्‍वर हमसे चाहता है? क्या हमारे लिये उनका पालन करना जिसे बाइबल “मूसा की व्यवस्था” या कभी केवल “व्यवस्था” कहती है? (१ राजा २:३; तीतुस ३:९) इसे “यहोवा की व्यवस्था” भी कहते हैं क्योंकि वही था जिसने वह व्यवस्था दी। (१ इतिहास १६:४०) मूसा ने केवल उस व्यवस्था को लोगों तक पहुंचाया था।

२. इस व्यवस्था में क्या सम्मिलित है?

मूसा की व्यवस्था में ६०० पृथक विधियाँ अथवा आज्ञाएं हैं जिनमें दस मुख्य आज्ञाएं सम्मिलित हैं। जैसाकि मूसा ने कहा: “उसने [यहोवा ने] तुमको दस आज्ञाओं का भी पालन करने का आदेश दिया और उसने उनको पत्थर की दो तख्तियों पर लिख दिया।” (व्यवस्थाविवरण ४:१३; निर्गमन ३१:१८, किंग जेम्स वर्शन) परन्तु यहोवा ने किनको यह व्यवस्था दी थी जिसमें ये दस आज्ञाएं सम्मिलित थीं? क्या उसने सारी मानवजाति को यह व्यवस्था दी थी? उस व्यवस्था का उद्देश्‍य क्या था?

इस्राएल को एक विशेष उद्देश्‍य के लिये

३. हम यह कैसे जानते हैं कि यह व्यवस्था केवल इस्राएल को दी गयी थी?

यह व्यवस्था सारी मानवजाति को नहीं दी गयी थी। यहोवा ने याकूब के वंशज के साथ जिससे इस्राएल की जाति बनी एक वाचा की अथवा उनके साथ एक करार किया था। यहोवा ने केवल उसी जाति को अपनी विधियाँ दी थीं। बाइबल इसे व्यवस्थाविवरण ५:१-३ और भजन संहिता १४७:१९, २० में स्पष्ट करती है।

४. क्यों यह व्यवस्था इस्राएल जाति को दी गयी थी?

प्रेरित पौलुस ने यह प्रश्‍न पूछा था: “क्यों तब यह व्यवस्था दी गयी?” हाँ, किस उद्देश्‍य के लिये यहोवा ने इस्राएल जाति को यह व्यवस्था दी थी? पौलुस ने उत्तर दिया: “अपराधों को ज़ाहिर करने के लिये जब तक कि वह वंश न पहुंचे जिसके विषय में प्रतिज्ञा की गयी थी . . . इसलिये व्यवस्था मसीह तक पहुंचाने के लिये हमारा शिक्षक सिद्ध हुई।” (गलतियों ३:१९-२४) व्यवस्था का विशेष उद्देश्‍य यह था कि वह इस्राएल जाति का पथ-प्रदर्शन करे और उसे सुरक्षित रखे जिससे कि वे मसीह को जब वह आये, स्वीकार करने के लिये तैयार रहे। अनेक बलिदान जो व्यवस्था द्वारा अपेक्षित थे, इस्राएलियों को इस बात की याद दिलाते थे कि वे पापी थे और उनको एक उद्धारकर्त्ता की आवश्‍यकता थी।—इब्रानियों १०:१-४.

“मसीह व्यवस्था का अन्त है”

५. जब मसीह आया और हमारे लिए मरा तो इस व्यवस्था का क्या हुआ?

यीशु मसीह, निःसन्देह वही प्रतिज्ञित उद्धारकर्त्ता था जैसा कि स्वर्गदूत ने उसके जन्म पर घोषणा की थी। (लूका २:८-१४) अतः जब मसीह आया और उसने अपने सिद्ध जीवन का बलिदान दिया तो उस व्यवस्था का क्या हुआ? वह हटा दी गयी। पौलुस ने यह व्याख्या की: “अब हम एक शिक्षक के अधीन नहीं रहे हैं।” (गलतियों ३:२५) व्यवस्था के हटाये जाने से इस्राएलियों को छुटकारा मिला। उस व्यवस्था ने उनको पापियों के रूप में प्रदर्शित किया था क्योंकि सब उस व्यवस्था का पूर्ण रूप से पालन नहीं कर सके थे। पौलुस ने कहा था: “मसीह ने हमें मोल लेकर व्यवस्था के श्राप से छुड़ाया है।” (गलतियों ३:१०-१४) इसलिए बाइबल यह भी कहती है: “मसीह व्यवस्था का अन्त है।”—रोमियों १०:४; ६:१४.

६. (क) जब यह व्यवस्था समाप्त हुई तो इस्राएली और गैर-इस्राएली उससे कैसे प्रभावित हुए और क्यों? (ख) यहोवा ने व्यवस्था के प्रति क्या कार्यवाही की?

वह व्यवस्था वास्तविक रूप से इस्राएलियों और अन्य लोगों के मध्य जो इस व्यवस्था के अधीन नहीं थे, बाधा के रूप में अथवा एक “दीवार” थी। तथापि अपने जीवन के बलिदान द्वारा मसीह ने “उस व्यवस्था को जिसकी आज्ञाएं विधियों की रीति पर थीं, मिटा दिया कि वह दोनों प्रकार के लोगों [इस्राएलियों और गैर-इस्राएली] को अपने में एक करके नया मनुष्य उत्पन्‍न करे।” (इफिसियों २:११-१८) उस कार्यवाही के संबंध में जो यहोवा परमेश्‍वर ने स्वयं मूसा की व्यवस्था के प्रति की, हम पढ़ते हैं: “उसने कृपापूर्वक हमारे सब अपराधों को क्षमा किया और विधियों का वह लेख [जिसमें दस आज्ञाएं सम्मिलित हैं] जो हमारे नाम पर हमारे विरोध में था, [जिससे इस्राएली पापियों के रूप में दोषी ठहरते थे] मिटा डाला; और उसको सूली पर कीलों से जड़कर रास्ते से हटा दिया।” (कुलुस्सियों २:१३, १४) अतः मसीह के सिद्ध बलिदान द्वारा व्यवस्था का अंत किया गया।

७, ८. क्या सिद्ध करता है कि व्यवस्था दो भागों में विभाजित नहीं थी?

तथापि कुछ लोग यह कहते हैं कि व्यवस्था दो भागों में विभाजित है: दस आज्ञाएं और अतिरिक्‍त शेष विधियाँ। वे कहते हैं कि शेष विधियों का अन्त हुआ था परन्तु दस आज्ञाओं का पालन करना आवश्‍यक है। यह सही नहीं है। यीशु ने अपने पर्वतीय उपदेश में दस आज्ञाओं और व्यवस्था के अन्य भागों में से उद्धरण दिये थे और उनके मध्य कोई भिन्‍नता नहीं बताई थी। यीशु ने इस प्रकार यह प्रदर्शित किया था कि मूसा की व्यवस्था दो भागों में विभाजित नहीं थी।—मत्ती ५:२१-४२.

इस बात पर भी ग़ौर कीजिये कि प्रेरित पौलुस परमेश्‍वर द्वारा यह लिखने के लिये उत्प्रेरित हुआ था: “हम व्यवस्था से मुक्‍त कर दिये गये हैं।” क्या केवल दस आज्ञाओं के अतिरिक्‍त व्यवस्था की अन्य विधियों से यहूदी जन मुक्‍त कर दिये थे? नहीं, क्योंकि पौलुस फिर यह कहता है: “वास्तव में यदि व्यवस्था न होती तो मुझे पाप की पहचान न होती, उदाहरणतया, व्यवस्था यदि न कहती: ‘तू लालच न कर!’ तो मैं लालच को न जानता।” (रोमियों ७:६, ७; निर्गमन २०:१७) क्योंकि यह आज्ञा “तू लालच न कर” दस आज्ञाओं में अंतिम आज्ञा है तो उससे यह अर्थ निकलता है कि इस्राएली दस आज्ञाओं से भी मुक्‍त कर दिये गये थे।

९. किससे प्रदर्शित होता है कि साप्ताहिक सबत का नियम भी समाप्त कर दिया गया था?

क्या इसका यह अर्थ है कि साप्ताहिक सबत रखने का नियम जो दस अज्ञाओं में चौथी आज्ञा है, भी हटा दिया गया था? हाँ, इसका यही अर्थ है। गलतियों ४:८-११ और कुलुस्सियों २:१६, १७ में बाइबल जो कहती है उससे यह प्रदर्शित होता है कि मसीही जन इस्राएलियों को दी गयी परमेश्‍वर की व्यवस्था के अधीन नहीं है जिसमें साप्ताहिक सबत रखना और वर्ष में अन्य विशेष दिनों का मनाना अपेक्षित था। साप्ताहिक सबत का रखना एक मसीही शर्त्त नहीं है वह रोमियों १४:५ से भी देखा जा सकता है।

नियम जो मसीहियों पर लागू होते हैं

१०. (क) मसीही किन नियमों के अधीन हैं? (ख) इनमें अनेक नियम कहाँ से लिये गये थे और यह उनका कि वहाँ से लिया जाना क्यों तर्कसंगत था?

१० क्या इसका यह अर्थ है क्योंकि मसीही दस आज्ञाओं के अधीन नहीं हैं, इसलिये उनको किसी भी प्रकार के नियमों का पालन करने की आवश्‍यकता नहीं है? बिल्कुल नहीं। मसीही ने एक “नयी वाचा” का आरंभ किया था जो उसके अपने सिद्ध मानव जीवन के उत्तम बलिदान पर आधारित थी, मसीही इस नयी वाचा के अधीन आते हैं और मसीही नियमों के अधीनस्थ हैं। (इब्रानियों ८:७-१३; लूका २२:२०) ये अनेक नियम मूसा की व्यवस्था से लिये गये हैं। यह कोई अप्रत्याशित अथवा असामान्य बात नहीं है। अक्सर इसी समान होता है जब एक नयी हुकूमत किसी देश के शासन की बागडोर अपने हाथ में लेती है। पुरानी सरकार के अधीन जो संविधान होता है वह शायद रद्द कर दिया जाये और नया संविधान प्रतिस्थापित किया जाये परन्तु जिसमें नये संविधान पुराने संविधान के अनेक नियम रखे जायें। इसी समान रीति से व्यवस्था की वाचा का अन्त हुआ परन्तु उसकी अनेक बुनियादी विधियाँ और सिद्धान्त मसीही धर्म में अपनायी गयी हैं।

११. मसीहियों को दिये गये कौनसे नियम अथवा शिक्षाएं दस आज्ञाओं के प्रति समरूप है?

११ यह कैसे होता है इस पर गौर कीजिये जब आप इस पुस्तक के पृष्ठ २०३ पर लिखी हुई दस आज्ञाओं को पढ़ते हैं और फिर उनकी तुलना इन निम्नलिखित मसीही नियमों और शिक्षाओं से तुलना कीजिये: “तू केवल यहोवा अपने परमेश्‍वर की उपासना कर।” (मत्ती ४:१०; १ कुरिन्थियों १०:२०-२२) “अपने आपको मूर्तियों से बचाए रखो।” (१ यूहन्‍ना ५:२१; १ कुरिन्थियों १०:१४) “हे हमारे पिता जो स्वर्ग में है, तेरा नाम पवित्र माना जाये [व्यर्थ रीति से उसको व्यवहार में न लिया जाये।]” (मत्ती ६:९) “बच्चो, अपने माता-पिता के आज्ञाकारी रहो।” (इफिसियों ६:१, २) और बाइबल यह भी स्पष्ट करती है कि कत्ल, व्यभिचार, चोरी, झूठ और लालच मसीहियों को दिये गये नियमों के विरुद्ध कार्य हैं।—प्रकाशितवाक्य २१:८; १ यूहन्‍ना ३:१५; इब्रानियों १३:४; १ थिस्सलुनीकियों ४:३-७; इफ़िसियों ४:२५, २८; १ कुरिन्थियों ६:९-११; लूका १२:१५; कुलुस्सियों ३:५.

१२. सबत के नियम का सिद्धांत कैसे मसीही व्यवस्था में लिया गया है?

१२ यद्यपि मसीहियों को साप्ताहिक सबत रखने का आदेश नहीं दिया गया है, हम उस व्यवस्था से अवश्‍य कुछ सीखते हैं। इस्राएली शाब्दिक रीति से विश्राम करते थे परन्तु मसीहियों को आध्यात्मिक रीति से विश्राम करना चाहिए। कैसे? क्योंकि विश्‍वास और आज्ञाकारिता के कारण सच्चे मसीही स्वार्थपूर्ण कार्य करना छोड़ देते हैं। इस स्वार्थपूर्ण कार्यों में अपनी निजी धार्मिकता को स्थापित करने के प्रयत्न भी सम्मिलित हैं। (इब्रानियों ४:१०) यह आध्यात्मिक विश्राम सप्ताह में एक दिन नहीं बल्कि सब सातों दिन रखा जाता है। शाब्दिक सबत का नियम रखने की यह शर्त कि आध्यात्मिक रुचियों के लिये एक दिन अलग रखा जाये जो इस्राएलियों को सुरक्षित रखती थीं जिससे कि वे अपना सारा समय स्वार्थपूर्ण रीति से अपने निजी भौतिक लाभ खोजने में न लगायें। प्रतिदिन इस सिद्धान्त को आध्यात्मिक रीति से प्रयोग करना भौतिकवाद के विरुद्ध एक अति प्रभावशाली रक्षा है।

१३. (क) कौनसे नियम को पूरा करने के लिए मसीहियों को प्रेरित किया गया है और वे उसे कैसे पूरा करते हैं? (ख) यीशु ने किस नियम पर जोर दिया था? (ग) किस नियम पर मूसा की संपूर्ण व्यवस्था आधारित है?

१३ अतः मसीहियों को दस आज्ञाओं का पालन करने की अपेक्षा “मसीही की व्यवस्था को पूरा करने के लिये” प्रेरित किया जाता है। (गलतियों ६:२) यीशु ने अनेक आज्ञाएं और शिक्षाएं दी थीं, और हमारा उनका पालन करने से हम उसकी व्यवस्था को रखते या पूरी करते हैं। विशेष रूप से यीशु ने प्रेम के महत्व पर जोर दिया था। (मत्ती २२:३६-४०; यूहन्‍ना १३:३४, ३५) हाँ, दूसरों से प्रेम रखना एक मसीही नियम है। वह मूसा की संपूर्ण व्यवस्था का आधार है जैसा कि बाइबल कहती है: “ये सारी व्यवस्था इस कथन में पूरी हो जाती है अर्थात्‌: “तू अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रख।’”—गलतियों ५:१३, १४; रोमियों १३:८-१०.

१४. (क) हमारे मूसा की व्यवस्था के सिद्धान्तों का अध्ययन करने और उनका पालन करने से क्या उत्तम परिणाम होगा? (ख) प्रेम हमें क्या करने के लिए प्रेरित करेगा?

१४ मूसा द्वारा दी हुई व्यवस्था अपनी दस आज्ञाओं सहित परमेश्‍वर की ओर से न्याययुक्‍त नियमों का एक समूह था। यद्यपि आज हम उस व्यवस्था के अधीन नहीं हैं, परन्तु उसके पीछे जो ईश्‍वरीय सिद्धान्त है वे अभी तक हमारे लिये अति मूल्यवान हैं। उनका अध्ययन करने से और उनका पालन करके हम उस महान विधिदायक यहोवा परमेश्‍वर के प्रति मूल्यांकन करने में बढ़ते जायेंगे। परन्तु विशेष रूप से हमें इन मसीही नियमों और शिक्षाओं का अध्ययन करके अपने जीवन में उतारना चाहिये। यहोवा के लिये हमारा प्रेम हमें उन सब बातों का पालन करने के लिये प्रेरित करेगा जिसकी वह हमसे अब अपेक्षा रखता है।—१ यूहन्‍ना ५:३.

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज २०३ पर बक्स]

दस आज्ञाएं

१. “मैं तेरा परमेश्‍वर यहोवा हूँ . . . तू मुझे छोड़ दूसरों को ईश्‍वर न मानना।

२. “तू अपने लिए कोई मूर्ति खोदकर न बनाना, न किसी की प्रतिमा बनाना जो आकाश में या पृथ्वी पर या पृथ्वी के नीचे जल में। तू उनको दंडवत न करना न उनकी उपासना करने के लिए प्रवृत होना . . .

३. “तू अपने परमेश्‍वर का नाम व्यर्थ न लेना . . .

४. “तू सबत के दिन को पवित्र मानने के लिए स्मरण रखना, छः दिन तू परिश्रम करके अपना सब काम-काज करना परन्तु सातवाँ दिन तेरे परमेश्‍वर यहोवा के लिए सबत का दिन है। उसमें तू किसी भांति का काम-काज न करना, न तेरा बेटा न तेरी बेटी . . .

५. “तू अपने पिता और अपनी माता का आदर करना जिससे जो देश तेरा परमेश्‍वर यहोवा तुझे देता है उसमें तू बहुत दिनों तक रहने पाये।

६. “तू खून न करना।

७. “तू व्यभिचार न करना।

८. “तू चोरी न करना।

९. “तू किसी के विरुद्ध झूठी साक्षी न देना।

१०. “तू किसी के घर का लालच न करना। तू किसी की स्त्री का लालच न करना, न किसी के दास या दासी का, न बैल और गधे का, न किसी की किसी वस्तु का लालच।”—निर्गमन २०:२-१७.

[पेज २०४, २०५ पर तसवीरें]

इस्राएलियों और अन्य जातियों के मध्य व्यवस्था एक दीवार के समान थी