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“जगत का अन्त” निकट है!

“जगत का अन्त” निकट है!

अध्याय १८

जगत का अन्तनिकट है!

१. मसीह के पार्थिव अनुयायियों को कैसे ज्ञात होगा कि कब उसने स्वर्ग में शासन करना आरंभ कर दिया था?

जब यीशु मसीह ने शैतान और उसके दूतों को स्वर्ग से निकाल दिया और अपना राजकीय शासन आरंभ किया तो इसका यह अर्थ था कि शैतान और उसकी दुष्ट व्यवस्था का अंत निकट था। (प्रकाशितवाक्य १२:७-१२) परन्तु पृथ्वी पर मसीह के अनुयायियों को यह कैसे मालूम हो सकता था कि स्वर्ग में यह घटना जो उनकी आँखों के प्रति अदृश्‍य थी, घटित हो चुकी थी? वे यह कैसे मालूम कर सकते थे कि मसीह अपनी राजसत्ता में अदृश्‍य रूप से मौजूद था और कि “जगत का अन्त” निकट था? वे यह देखकर इस बात की जाँच करके मालूम कर सकते थे कि यदि उस “चिन्ह” की पूर्ति हो रही थी जो यीशु ने दिया था।

२. मसीह के शिष्यों ने उससे क्या प्रश्‍न पूछा था?

यीशु की मृत्यु से थोड़े समय पहले जबकि वह जैतून के पर्वत पर बैठा हुआ था, उसके चार प्रेरित उसके पास “चिन्ह” के विषय में पूछने के लिए आये। यह है उनका प्रश्‍न जो इस रीति से बाइबल के किंग जेम्स वर्शन में लाखों लोगों द्वारा पढ़ा जाता है: “हमें बता, कि ये बातें कब होंगी? और तेरे आने का और जगत के अन्त का क्या चिंह होगा?” (मत्ती २४:३) परन्तु इन वाक्यांशों “तेरे आने” और “जगत के अन्त” का वास्तविक अर्थ क्या है?

३. (क) इन वाक्यांशों “तेरे आने” और “जगत के अन्त” का वास्तविक अर्थ क्या है? (ख) तब मसीह के शिष्यों द्वारा पूछे गये प्रश्‍न का सही रूप से अनुवाद कैसे किया गया है?

जिस यूनानी शब्द का अनुवाद यहाँ “आना” हुआ है वह परूज़िया है उसका अर्थ है “उपस्थिति”। अतः तब, जब वह “चिंह” देखा जाय तो उसका यह अर्थ है कि हमें मालूम हो जाय कि मसीह यद्यपि अदृश्‍य है, उपस्थित है और वह अपनी राजसत्ता में आ चुका है। यह वाक्यांश “जगत का अन्त” भी अति भ्रमजनक है। इसका अर्थ पृथ्वी का अंत नहीं बल्कि इसकी अपेक्षा शैतान के रीति-व्यवहार का अंत है। (२ कुरिन्थियों ४:४) अतः प्रेरितों का प्रश्‍न यथार्थ रूप से इस तरह पढ़ा जाता है: “हमें बता, ये बातें कब होंगी और तेरी उपस्थिति का और इस रीति-व्यवहार की समाप्त का क्या चिन्ह होगा?”—मत्ती २४:३; न्यू वर्ल्ड ट्रांसलेशन।

४. (क) किन घटनाओं से वह “चिन्ह” बनता है जो मसीह ने दिया था? (ख) किस तरीके से उस “चिन्ह” की तुलना किसी अंगुली छाप से की जाती है?

यीशु ने “चिंह” के रूप में केवल एक घटना होने का ज़िक्र नहीं किया था। बल्कि उसने कई घटनाएं और परिस्थितियाँ बतायी थीं जिनसे वह चिंह बनेगा। प्रेरित मत्ती के अतिरिक्‍त अन्य बाइबल लेखकों ने अतिरिक्‍त घटनाओं का वर्णन किया था जो “अंतिम दिनों” को चिंहित करेंगी। ये सब घटनाएं जिनकी भविष्य सूचना दी गयी थी उस समय के दौरान घटित होंगी जिसको बाइबल के लेखक “अन्तिम दिन” कहते हैं! (२ तीमुथियुस ३:१-५; २ पतरस ३:३, ४) ये घटनाएं उन भिन्‍न रेखाओं के समान हैं जिनसे एक व्यक्‍ति की अंगुली छाप बनती है, अर्थात्‌ वह छाप जो किसी दूसरे व्यक्‍ति की नहीं हो सकती है। ये “अंतिम दिन” चिंहों अथवा घटनाओं का अपना ही नमूना रखते हैं। वे घटनाएं एक वास्तविक “अंगुली छाप” बनाती हैं जो किसी अन्य समयावधि की नहीं हो सकती है।

५, ६. जब आप आगामी पृष्ठों पर अंतिम दिनों के ११ प्रभावों का निरीक्षण करते हैं तो आप इस वाक्यांश, “इस रीति-व्यवहार के अन्त” के विषय में क्या समझते हैं?

इस पुस्तक के अध्याय १६ में हमने उस बाइबल प्रमाण पर विचार किया था कि मसीह वर्ष १९१४ में वापस लौट आया और अपने शत्रुओं के मध्य शासन करना आरंभ कर दिया है। अब मसीह की उपस्थिति के “चिंह” की विभिन्‍न विशेषताओं को और शैतान के दुष्ट रीति-व्यवहार के “अंतिम दिनों” के अतिरिक्‍त प्रमाण को सावधानीपूर्वक देखिये। जब आप अगले चार पृष्ठों पर भविष्य सूचित बातों की जाँच करते हैं तो ग़ौर कीजिये कि उनकी वर्ष १९१४ से कैसे पूर्ति हो रही है।

“जाति पर जाति और राज्य पर राज्य चढ़ाई करेगा”—मत्ती २४:७.

निश्‍चय आप “चिंह” का यह भाग देख चुके हैं जिसकी पूर्ति वर्ष १९१४ से हो रही है! उस वर्ष प्रथम विश्‍वयुद्ध का प्रारंभ हुआ। इतिहास में पहले कभी इस प्रकार का भयंकर युद्ध नहीं हुआ था। वह सार्वत्रिक युद्ध था। प्रथम विश्‍व युद्ध उन समस्त मुख्य युद्धों से कहीं बृहत था जो १९१४ से पहले २४०० वर्षों के दौरान लड़े गये थे। फिर भी जब वह युद्ध समाप्त हुआ तो उसके २१ वर्ष पश्‍चात्‌ द्वितीय विश्‍वयुद्ध आरंभ हो गया और वह प्रथम विश्‍वयुद्ध से चार गुना अधिक विनाशकारी था।

भयंकर युद्धों का सिलसिला अभी तक जारी है। जब वर्ष १९४५ में द्वितीय विश्‍वयुद्ध समाप्त हुआ तब से लगभग १५० युद्धों में जो संसार के सब स्थानों में लड़े जा चुके हैं, उनमें २ करोड़ ५० लाख व्यक्‍ति मारे गये हैं। अब तक के किसी भी ज्ञात दिन में संसार में कहीं न कहीं औसत १२ युद्ध लड़े जा रहे हैं। और अन्य विश्‍वयुद्ध की आशंका निरन्तर बनी हुई है। संयुक्‍त राज्य अमेरिका के पास केवल इतने न्यूक्लियर अस्त्र हैं कि वे पृथ्वी पर पुरुष, स्त्री और बालक को १२ बार नष्ट कर सकते हैं!

“खाद्यपदार्थ की न्यूनता होगी”—मत्ती २४:७.

प्रथम विश्‍वयुद्ध के बाद ही इतना बड़ा अकाल पड़ा जो पूरे इतिहास में पहले कभी नहीं आया था। केवल उत्तरी चीन में ही १५,००० व्यक्‍ति प्रति दिन भुखमरी से मरे थे। परन्तु द्वितीय विश्‍व युद्ध के बाद खाद्यपदार्थ की न्यूनता इससे भी अधिक हो गयी थी। उस समय चौथाई विश्‍व भूखों मर रहा था! और उस समय से पृथ्वी पर अनेक लोगों के लिये खाद्यपदार्थ अपर्याप्त रहा है।

“एक अल्पविकसित देश में कोई न कोई व्यक्‍ति हर ८.६ सेकिण्ड में कुपोषण से उत्पन्‍न रोग के परिणामस्वरूप मरता है।” यह सूचना १९६७ में न्यूयॉर्क टाइम्स ने दी थी। करोड़ों लोग अब भी भुखमरी से मरते हैं अर्थात्‌ प्रत्येक वर्ष उनकी संख्या ५ करोड़ है! १९८० तक पृथ्वी के चौथाई लोग (१,००,००,००,००० व्यक्‍ति) इसलिये भूखे थे क्योंकि उनके पास खाने के लिये पर्याप्त भोजन नहीं था। यहाँ तक कि उन स्थानों में जहाँ भोजन प्रचुर मात्रा में है लोग इतने ग़रीब है कि उसे खरीद नहीं सकते।

“जगह-जगह महामारी होंगी” —लूका २१:११.

मानवजाति के इतिहास में किसी भी रोग की महामारी से जितने लोग मरे हैं उसकी अपेक्षा प्रथम विश्‍वयुद्ध के तुरन्त पश्‍चात्‌ कहीं अधिक लोग स्पेनिष इन्फ्लूएंजा से मरे थे। इससे २ करोड़ १० लाख व्यक्‍तियों की मृत्यु हुई थी! आज महामारी और रोग का प्रकोप जारी है। प्रत्येक वर्ष करोड़ों लोग दिल की बीमारी और कैन्सर से मरते हैं। यौन रोग शीघ्रता से फैलता जा रहा है अन्य भयंकर रोग जैसे कि मलेरिया, स्नेल फीवर, दरियाई घोड़ा अन्धापन विशेष रूप से एशिया, अफ्रीका और लेटिन अमेरिका के प्रत्येक देश में फैलते रहे हैं।

“जगह-जगह भूकम्प होंगे”—मत्ती २४:७.

अभिलिखित इतिहास में किसी भी नियत अवधि में जितने भी भूकम्प आये हैं उनसे कहीं बृहत भूकम्प वर्ष १९१४ से अब तक आ चुके हैं। वर्ष ८५६ सा.यु. से वर्ष १९१४ तक १००० से अधिक वर्षों के दौरान २४ बृहत भूकम्प आये थे जिनसे लगभग १९,७३,००० मौत हुई है। परन्तु १९१५ से १९७८ तक ६३ वर्षों के दौरान कुल १६,००,००० व्यक्‍ति ४३ बृहत भूकम्पों से मरे हैं।

“अराजकता की वृद्धि”—मत्ती २४:१२.

संसार के सब स्थानों से बढ़ती हुई अराजकता और अपराध की सूचनाएं प्राप्त होती हैं। हिंसा के अपराध जैसे कि कत्ल, बलात्कार, डकैती इत्यादि अन्धाधुंध हो रहे हैं। केवल संयुक्‍त राज्य अमेरिका में एक गंभीर अपराध लगभग प्रत्येक सेकिण्ड होता है। कई स्थानों में सड़कों पर कोई भी यहाँ तक कि दिन के समय में भी सुरक्षित महसूस नहीं करता है। रात में लोग अपने घरों में दरवाजों पर ताले व सलाख लगाकर रहते हैं और बाहर जाने से डरते हैं।

“भय के कारण लोगों के जी में जी न रहेगा”—लूका २१:२६.

आज लोगों के जीवन में भय शायद सबसे बड़ा एकमात्र मनोभाव है। प्रथम न्यूक्लियर बम के विस्फोट होने के थोड़े समय पश्‍चात्‌ परमाणविक वैज्ञानिक हैरल्ड सी. यूरे ने यह कहा: “हम भय में खायेंगे, भय में सोयेंगे, भय में रहेंगे और भय में मरेंगे।” अधिकतर मनुष्यों के साथ यही घटित हो रहा है। और वह केवल इसलिये नहीं है कि उनको हर दम न्यूक्लियर युद्ध की आशंका रहती है। लोगों को अपराध, प्रदूषण, रोग, मुद्रास्फीति और अन्य अनेक बातों का डर लगा रहता है जो उनकी सुरक्षा को और उनके जीवन को भी जोखिम में डाले रखता है।

“माता-पिता की आज्ञा टालना” —२ तीमुथियुस ३:२

आजकल माता-पिता अक्सर अपने बालकों पर बहुत कम नियंत्रण करते हैं। युवक सब अधिकार के विरुद्ध विद्रोह करते हैं। इसलिए पृथ्वी के हर देश युवक अपराध के रोग से प्रभावित है। कई देशों में, सब गंभीर अपराधों के अर्ध भाग से अधिक, १० से १७ साल के युवक करते हैं। हत्या, बलात्कार, हमला, लूटमार, सेंधमारी, मोटरकार की चोरी—ये सब कार्य बालक कर रहे हैं। इतिहास में पहले कभी भी माता-पिता के प्रति अवज्ञाकारिता इतना सामान्य नहीं था।

“धन के प्रेमी”—२ तीमुथियुस ३:२.

आज आप जहाँ कहीं भी देखें तो आप लालच के कार्य देख सकते हैं। कई लोग व्यावहारिक रूप से पैसे की ख़ातिर सब कुछ करने के लिये तैयार हो जाते हैं। वे चोरी भी करेंगे यहाँ तक कि किसी को जान से भी मार देंगे। लालची व्यक्‍तियों के लिये यह बात असामान्य नहीं है कि वे उन वस्तुओं का उत्पादन करते हैं और उन उत्पादित वस्तुओं को बेचते हैं जिनके लिये सब जानते हैं कि वे किसी न किसी रूप में दूसरों को बीमार करती हैं या जान से मार सकती हैं। खुले तौर पर या जिस रीति से वे अपना जीवन व्यतीत करते हैं लोग पैसे के लिये यही कहते हैं: ‘यही मेरा ईश्‍वर है।’

“परमेश्‍वर के नहीं बल्कि सुखविलास के चाहने वाले होंगे”—२ तीमुथियुस ३:४.

अधिकतर लोग आज केवल वही करने की सोचते हैं जिनसे वे या उनके परिवार प्रसन्‍न होते हैं और वे कार्य नहीं करते जिनसे परमेश्‍वर प्रसन्‍न होता है। विशेष रूप से अधिकतर लोग वही करना पसंद करते हैं जिनकी परमेश्‍वर निंदा करता है और उन कार्यों में व्यभिचार, परगमन, मतवालापन, नशीली वस्तुओं का सेवन और अन्य तथाकथित विलास सम्मिलित है। यहाँ तक कि वे विलास जो स्वयं स्वास्थ्यकर हो सकते हैं, परमेश्‍वर के विषय में जानकारी और उसकी सेवा करने के प्रयत्न से अधिक महत्वपूर्ण माने जाते हैं।

“ईश्‍वरीय भक्‍ति का भेष धारण करेंगे परन्तु उसकी शक्‍ति के प्रति झूठे सिद्ध होंगे” —२ तीमुथियुस ३:५.

विश्‍वनेता और सामान्य लोग अक्सर एक समान ईश्‍वर भक्‍त होने का सतही प्रदर्शन करते हैं। वे धार्मिक सभाओं के कार्यक्रमों में सम्मिलित होते हैं। और धर्म के निमित कृत्यों के लिये चंदा देते हैं। वे लोग जो राज्य सेवा में हैं अपना पदभार संभालने के समय बाइबल पर हाथ रखकर शपथ ग्रहण करते हैं। परन्तु अक्सर यह केवल “ईश्‍वरीय भक्‍ति का भेष धारण करना है।” जैसाकि बाइबल ने भविष्य सूचना दी थी कि परमेश्‍वर की सत्य उपासना आज अधिकतर लोगों के जीवन में कोई वास्तविक शक्‍ति नहीं है। वे भलाई के कार्य करने के लिये वास्तविक शक्‍ति द्वारा प्रेरित नहीं होते हैं।

“पृथ्वी को बिगाड़ना”—प्रकाशितवाक्य ११:१८.

हवा जिसमें हम सांस लेते हैं, पानी जो हम पीते हैं और भूमि जिसपर हमारे खाद्यपदार्थ का उत्पादन होता है, वे सब प्रदूषित हो रहे हैं। यह इतनी गंभीर बात है कि बॅरी कॉमनर नामक वैज्ञानिक ने इस बात की चेतावनी दी थी: “मेरा विश्‍वास है कि पृथ्वी पर यह लगातार प्रदूषण यदि रोका न गया तो अन्त में प्रदूषण से मनुष्यों के रहने के लिये इस ग्रह की उपयुक्‍तता समाप्त हो जायेगी।”

पूर्वलिखित बातों पर ग़ौर करने के पश्‍चात्‌ क्या यह स्पष्ट नहीं हो जाता है कि वह “चिन्ह” जो मसीह ने दिया और वे प्रमाण जिनकी भविष्यसूचना उसके शिष्यों ने दी थी, अब पूरे हो रहे हैं? यद्यपि इसके अनेक अन्य प्रमाण हैं परन्तु जिन प्रमाणों की यहाँ सूची दी गयी है वे यह प्रदर्शित करने के लिये काफ़ी होने चाहिये कि वास्तव में हम उस समय में रह रहे हैं जिसकी भविष्य सूचना बाइबल ने “अन्तिम दिन” कहकर दी थी।

७. (क) किन बातों से मसीह की उपस्थिति और “अंतिम दिनों” के संबंध में दी गयी बाइबल की भविष्यवाणियाँ असाधारण मानी जाती हैं? (ख) बाइबल में जिन बातों की भविष्यवाणी दी थी उसके विपरीत विश्‍वनेता १९१४ से पहले किन बातों की पूर्वसूचना दे रहे थे?

फिर भी कुछ व्यक्‍ति शायद यह कहें: ‘इस प्रकार की घटनाएँ जैसे कि युद्ध, अकाल, महामारियाँ और भूकम्प अक्सर पूरे इतिहास में शुरू से अन्त तक घटित होती रही हैं। इसलिए इस बात की भविष्यसूचना देना कठिन नहीं कि वे फिर घटित होंगी।’ ज़रा सोचिये: “बाइबल ने न केवल इन बातों की भविष्य सूचना दी थी बल्कि यह भी सूचित किया था कि वे विश्‍वव्यापी स्तर पर घटित होंगी। इसके अतिरिक्‍त बाइबल ने यह कहा था कि ये सब बातें उस पीढ़ी के समय के दौरान होंगी जो १९१४ में जीवित थी। फिर भी वर्ष १९१४ से पहले प्रमुख विश्‍वनेता किस बात की भविष्य सूचना दे रहे थे? वे यह कह रहे थे कि विश्‍व शांति के लिये आशाजनक स्थितियाँ इससे पहले कभी इतनी अनुकूल नहीं थी। फिर भी भयंकर विपत्तियाँ जिनकी भविष्यसूचना बाइबल ने दी बिल्कुल सही समय पर अर्थात्‌ वर्ष १९१४ में आरंभ हुई! वास्तविकता यह है कि विश्‍वनेता अब यह कहते हैं कि वर्ष १९१४ इतिहास में एक वर्तन बिन्दु था।

८. (क) यीशु ने किस पीढ़ी की ओर संकेत किया था कि वह इस रीति-व्यवहार का अन्त देखेगी? (ख) अतः हम किस बात के विषय में निश्‍चित हो सकते हैं?

उन तमाम बातों की तरफ ध्यान आकर्षित करने के बाद जिन्होंने वर्ष १९१४ से प्रारंभ होनेवाली अवधि को चिंहित किया, यीशु ने कहा: “जब तक ये सब बातें [जिसमें इस रीति-व्यवहार का अन्त सम्मिलित है] पूरी न हो लें तब तक यह पीढ़ी कदापि जाती न रहेगी।” (मत्ती २४:३४, १४) यीशु का अभिप्राय किस पीढ़ी से था? उसका अभिप्राय उन लोगों की पीढ़ी से था जो वर्ष १९१४ में जीवित थे। वे व्यक्‍ति जो उस पीढ़ी में से बाक़ी रह गये हैं, अब बहुत ही बूढ़े हैं। तथापि, उनमें से कुछेक फिर भी इस दुष्ट रीति-व्यवहार का अंत देखने के लिये जीवित रहेंगे। अतः हम इस विषयों में निश्‍चित हो सकते हैं: बहुत शीघ्र अब आरमागेदोन के समय सारी दुष्टता और सब दुष्ट लोगों का अचानक अन्त होगा।

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज १४९ पर तसवीर]

यीशु ने अपने शिष्यों को बताया कि राजसत्ता में उसकी अदृश्‍य उपस्थिति का दृश्‍य प्रमाण क्या होगा

[पेज १५४ पर तसवीर]

१९१४–आरमागेदोन

उस पीढ़ी के कुछेक लोग जो वर्ष १९१४ में जीवित थे इस रीति-व्यवहार का अन्त देखेंगे और उससे बच निकलेंगे