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परमेश्‍वर की सरकार की एक प्रजा बनना

परमेश्‍वर की सरकार की एक प्रजा बनना

अध्याय १५

परमेश्‍वर की सरकार की एक प्रजा बनना

१, २. परमेश्‍वर की सरकार की एक प्रजा बनने के लिए किस बात की आवश्‍यकता है?

क्या आप परमेश्‍वर की सरकार के अधीन सर्वदा जीवित रहना चाहते हैं? कोई भी व्यक्‍ति जो बुद्धि रखता है इसका उत्तर हाँ में देगा! वहाँ उनको अद्‌भुत लाभ प्राप्त होंगे। परन्तु उनको प्राप्त करने के लिये आप केवल अपना हाथ उठाकर यह नहीं कह सकते हैं: “मैं परमेश्‍वर की सरकार की एक प्रजा बनना चाहता हूँ।” आपको इसके लिये इससे अधिक करने की आवश्‍यकता है।

उदाहरण के रूप में आप यह मान लीजिए कि आप एक दूसरे देश का नागरिक बनना चाहते हैं। नागरिक बनने के लिये, आपको उन शर्त्तों का पूरा करना आवश्‍यक होगा जो उस देश के शासकों द्वारा स्थापित हैं। परन्तु उन शर्त्तों को पूरा करने से पहले आपको मालूम करना पड़ेगा कि वे शर्त्तें क्या हैं। इसी समान रीति से आपको यह जानने की आवश्‍यकता है कि परमेश्‍वर उन लोगों से जो उसकी सरकार की प्रजा बनना चाहते हैं, क्या अपेक्षा करता है। और तब आपके लिये इन शर्त्तों का पूरा करना आवश्‍यक होगा।

ज्ञान की आवश्‍यकता

३. परमेश्‍वर की सरकार की एक प्रजा बनने के लिए एक शर्त्त क्या है?

परमेश्‍वर की सरकार की एक प्रजा बनने के लिये एक अतिमहत्वपूर्ण शर्त्त उसकी “भाषा” के ज्ञान की प्राप्ति है। निश्‍चय यह एक तर्कसंगत शर्त्त है। कुछ मानवीय सरकारें भी इस बात की अपेक्षा करती हैं कि उसके नये नागरिक उस देश की भाषा बोलने की योग्यता रखें। तब, उन लोगों को जो परमेश्‍वर की सरकार के अधीन जीवन प्राप्त करेंगे, किस “भाषा” सीखनी होगी?

४. वह “शुद्ध भाषा” कौनसी है जिसे परमेश्‍वर के लोगों को सीखने की आवश्‍यकता है?

यहाँ गौर कीजिये कि यहोवा अपने वचन बाइबल में क्या कहता है: “क्योंकि उस समय में लोगों से एक नयी और शुद्ध भाषा बुलवाऊंगा जिससे कि वे यहोवा का नाम पुकारें और एक मन से कंधे से कंधा मिलाकर उसकी सेवा करें।” (सपन्याह ३:९) यह “शुद्ध भाषा” परमेश्‍वर का सत्य है जो बाइबल में पाया जाता है। विशेष रूप से यह परमेश्‍वर की राजकीय सरकार से संबंधित सत्य है। अतः परमेश्‍वर की सरकार के अधीन नागरिक बनने के लिये आपको यहोवा और उसके राज्य प्रबंध के विषय में जानकारी प्राप्त करके इस “भाषा” को सीखना चाहिये।—कुलुस्सियों १:९, १०; नीतिवचन २:१-५.

५. (क) हमें परमेश्‍वर की सरकार के विषय में क्या जानकारी होनी चाहिये? (ख) अनन्त जीवन प्राप्त करने के लिए हमें क्या जानना आवश्‍यक है?

आज कुछ मानवीय सरकारें इस बात की अपेक्षा करती हैं कि वे लोग जो इस नागरिकता को प्राप्त करना चाहते हैं उनकी सरकार के इतिहास के विषय में और उसके संचालन से संबंधित वास्तविकताओं के विषय में भी जानकारी रखें। इसी प्रकार यदि आप परमेश्‍वर की सरकार के अधीन नागरिक बनना चाहते हैं तो आपको उसके विषय में इस प्रकार की बातों को जानना आवश्‍यक है। यह ज्ञान आपको अनन्त जीवन की ओर ले जा सकता है। अपने पिता से प्रार्थना में यीशु ने यह कहा था: “अनन्त जीवन यह है कि तुझ अद्वैत सच्चे परमेश्‍वर को और यीशु मसीह को जिसे तूने भेजा है जानें।”—यूहन्‍ना १७:३.

६. (क) वे कुछेक प्रश्‍न क्या हैं जिनका उत्तर परमेश्‍वर की सरकार के अधीन नागरिकों को देने योग्य होना चाहिये? (ख) क्या आप उनका उत्तर दे सकते हैं?

यदि आपने इस पुस्तक के पिछले अध्यायों का अध्ययन किया है तो अब तक आपको यह अति महत्वपूर्ण ज्ञान प्राप्त हो जाना चाहिये। क्या आपको इसका ज्ञान हो गया है? क्या आप इस प्रकार के निम्न प्रश्‍नों का उत्तर देकर इस विषय में ज्ञान की प्राप्ति प्रकट कर सकते हैं: कब परमेश्‍वर ने पहली बार एक राजकीय सरकार के लिये अपने उद्देश्‍य का ज़िक्र किया था? कौन परमेश्‍वर के कुछेक सेवक थे जो उस राज्य की पार्थिव प्रजा होने की प्रत्याशा करते थे? परमेश्‍वर की सरकार में कितने शासक, या राजा होंगे? कहाँ से ये राजा शासन करेंगे? कौन वे पहले व्यक्‍ति थे जो परमेश्‍वर की सरकार में राजा होने के लिये चुने गये थे? यीशु ने कैसे सिद्ध किया कि वह एक भला राजा होगा? फिर भी, परमेश्‍वर की सरकार के अधीन नागरिक बनने के लिए उस विषय में केवल ज्ञान प्राप्त करने की अपेक्षा कुछ अधिक करने की आवश्‍यकता है।

धर्मी आचरण की आवश्‍यकता है

७. जहाँ तक मानव सरकारों का संबंध है नागरिकता के लिए शर्त्तें कैसे भिन्‍न होती हैं?

आज की सरकारें अपने नये नागरिकों से इस बात की अपेक्षा करती हैं कि उनका आचरण एक निश्‍चित आदर्शों के अनुकूल होना चाहिये। उदाहरणतया, वे शायद यह कहें कि एक पुरुष की केवल एक पत्नी और एक स्त्री का केवल एक पति हो सकता है। फिर भी कुछ अन्य सरकारों के भिन्‍न कानून होते हैं। वे अपने नागरिकों को एक से अधिक विवाहित साथी रखने की अनुमति देते हैं। उन व्यक्‍तियों से जो परमेश्‍वर की सरकार की प्रजा बनना चाहते हैं, किस प्रकार के आचरण की आशा की जाती है? विवाह के विषय में परमेश्‍वर किस बात को उचित कहता है?

८. (क) विवाह के लिए परमेश्‍वर का मानदंड क्या है? (ख) व्यभिचार क्या है और परमेश्‍वर उसके विषय में क्या कहता है?

प्रारंभ में यहोवा ने जब आदम को केवल एक पत्नी दी थी, तो उसने विवाह के लिए उस समय एक मानदंड निर्धारित किया था। परमेश्‍वर ने कहा: “एक पुरुष अपने पिता और अपनी माता को छोड़कर अपनी पत्नी के साथ रहेगा। और वे एक तन होंगे। (उत्पत्ति २:२१-२४) यीशु ने इसकी व्याख्या की, कि यही मसीहियों के लिये उचित मानदंड है। (मत्ती १९:४-६) क्योंकि एक दूसरे से विवाहित साथी “एक तन” हो जाते हैं तो यदि वे किसी दूसरे के साथ मैथुनिक संबंध रखते हैं तो वे विवाह का अनादर करते हैं। यह कार्य व्यभिचार कहलाता है और परमेश्‍वर कहता है कि वह व्यभिचारियों को दंड देगा।—इब्रानियों १३:४; मलाकी ३:५.

९. (क) अविवाहित व्यक्‍तियों का एक दूसरे के साथ मैथुनिक संबंध रखने के विषय में परमेश्‍वर का दृष्टिकोण क्या है? (ख) परगमन क्या है?

दूसरी ओर अनेक जोड़े एक साथ इकट्ठे रहते हैं और मैथुनिक संबंध रखते हैं परन्तु वे विवाह नहीं करते हैं। तथापि, परमेश्‍वर का यह अर्थ नहीं था कि एक पुरुष और एक स्त्री के मध्य यह नज़दीकी संबंध परीक्षण विवाह का आधार हो। अतः बिना विवाह किये इकट्ठे रहना परमेश्‍वर के विरुद्ध, जिसने यह विवाह प्रबंध स्थापित किया था, पाप है। यह परगमन कहलाता है। किसी व्यक्‍ति के साथ जिसके साथ आपका विवाह नहीं हुआ है, मैथुनिक संबंध रखना परगमन है। और बाइबल यह कहती है: “परमेश्‍वर की इच्छा यही है . . . कि तुम परगमन से बचे रहो।” (१ थिस्सलुनीकियों ४:३-५) अतः तब एक अविवाहित व्यक्‍ति का किसी एक अन्य व्यक्‍ति के साथ मैथुनिक संबंध रखना अनुचित है।

१०. अन्य यौन संबंधी कार्य क्या हैं जो परमेश्‍वर के नियम के विरुद्ध हैं?

१० आज अनेक पुरुष और स्त्रियाँ अपने समलिंगी व्यक्‍तियों के साथ मैथुनिक कार्य संपन्‍न करते हैं—पुरुष-पुरुष के साथ और स्त्री-स्त्री के साथ। इस प्रकार के व्यक्‍ति समलिंगकामी कहलाते हैं। कभी-कभी ये समलिंगकामी स्त्रियाँ लेज़बिअन्स कहलाती हैं। परन्तु परमेश्‍वर का वचन कहता है कि जो वे करते हैं अनुचित हैं, अर्थात्‌ उनके ये कार्य “अश्‍लील” है। (रोमियों १:२६, २७) इसके अतिरिक्‍त एक व्यक्‍ति का एक पशु के साथ मैथुनिक संबंध रखना परमेश्‍वर के नियम के विरुद्ध है। (लैव्यव्यवस्था १८:२३) किसी भी व्यक्‍ति को जो परमेश्‍वर की सरकार के अधीन रहना चाहता है, उसे इन अनैतिक कार्यों से दूर रहने की आवश्‍यकता है।

११. (क) मद्यसार द्रव के प्रयोग के विषय में परमेश्‍वर का दृष्टिकोण क्या है? (ख) वे जो परमेश्‍वर की सरकार की प्रजा बनना चाहते हैं उन्हें किन कार्यों के अभ्यास से दूर रहना चाहिये जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं?

११ कम मात्रा में दाख मधु, बीयर या मदिरा का पीना परमेश्‍वर के नियम के विरुद्ध नहीं है। वास्तविकता यह है, कि बाइबल यह प्रदर्शित करती है कि एक व्यक्‍ति के लिये ज़रा सी दाख मधु का लेना स्वास्थ्य के लिये लाभप्रद हो सकता है। (भजन संहिता १०४:१५; १ तीमुथियुस ५:२३) परन्तु शराब में धुत होना और उन वहशी समारोहों में भाग लेना जहाँ लोग अनैतिक आचरण के कार्य करते हैं, परमेश्‍वर के नियम के विरुद्ध है। (इफिसियों ५:१८; १ पतरस ४:३, ४) मद्यसार द्रव के प्रयोग करने के अतिरिक्‍त अनेक व्यक्‍ति नशे में “धुत” होने के लिये अनेक प्रकार की नशीली दवाओं का प्रयोग करते हैं। विलास के लिये वे गाँजा अथवा तम्बाकू का प्रयोग भी करते हैं, जबकि अन्य लोग सुपारी और कोका के पत्ते चबाते हैं। परन्तु इन वस्तुओं के प्रयोग से उनके शरीर अशुद्ध हो जाते हैं और उनके स्वास्थ्य को हानि पहुंचती है। अतः, यदि आप परमेश्‍वर की सरकार के अधीन नागरिक बनना चाहते हैं तो आपको इन हानिकारक वस्तुओं से अलग रहना आवश्‍यक है।—२ कुरिन्थियों ७:१.

१२. (क) वे कुछेक बेईमानी के कार्य क्या हैं जो परमेश्‍वर के नियमों के विरुद्ध हैं? (ख) वह व्यक्‍ति जो इन कार्यों में लिप्त रहता है कैसे परमेश्‍वर की कृपा प्राप्त कर सकता है?

१२ यह प्रत्यक्ष है कि मानवीय सरकारें नहीं चाहती हैं कि अपराधी उनके नये नागरिक बने। और यहोवा के मानदंड मानवीय सरकारों से भी ऊंचे होते हैं। वह इस बात की अपेक्षा करता है कि “सब बातों में हमारा व्यवहार ईमानदारीपूर्ण हो।” (इब्रानियों १३:१८) यदि लोग परमेश्‍वर के नियमों का पालन नहीं करते हैं, तो उनको उसके राज्य के अधीन रहने की अनुज्ञा नहीं मिलेगी। आज लोग अक्सर ईमानदार होने का स्वांग भरते हैं परन्तु वे उनके नियमों का उल्लंघन करते हैं। तथापि परमेश्‍वर सब बातों को देख सकता है। कोई उसे मूर्ख नहीं बना सकता है। (इब्रानियों ४:१३; नीतिवचन १५:३; गलतियों ६:७, ८) अतः यहोवा निश्‍चित रूप से इस बात को देखेगा कि वे व्यक्‍ति जो झूठ बोलने और चोरी करने के विरुद्ध जैसे उसके नियमों का उल्लंघन करते हैं, उसकी सरकार की प्रजा नहीं बनेंगे। (इफ़िसियों ४:२५, २८; प्रकाशितवाक्य २१:८) फिर भी परमेश्‍वर धैर्यवान और क्षमाशील है। इसलिये यदि एक अनुचित कार्यकर्त्ता अपने बुरे कार्यों का करना बंद कर देता है और भले काम करने लगता है तो परमेश्‍वर उसको स्वीकार करेगा।—यशायाह ५५:७.

१३. मानव सरकारों के नियमों के प्रति परमेश्‍वर के सेवकों का क्या दृष्टिकोण होना चाहिये?

१३ परन्तु मानवीय सरकारों के नियमों के पालन के विषय में क्या कहा जाय? जब तक मनुष्यों की हुकूमतें अस्तित्व में रहती हैं, परमेश्‍वर इस बात की अपेक्षा करता है कि उसके सेवक इन “उच्च अधिकारियों” की अधीनता में रहें। उनको कर अवश्‍य अदा करना चाहिये, यद्यपि कर की राशि अधिक हो और एक व्यक्‍ति उस रीति से सहमत न हो कि जिसके अनुसार उस कर राशि का व्यय किया जाता है। इसके अतिरिक्‍त इन हुकूमतों के अन्य नियमों का पालन भी होना चाहिये। (रोमियों १३:१, ७; तीतुस ३:१) इस विषय में केवल एक अपवाद यह होगा जब एक व्यक्‍ति के लिये किसी सरकारी नियम का पालन करने से परमेश्‍वर के निमय का उल्लंघन हो। उस स्थिति में जैसा कि पतरस और अन्य प्रेरितों ने कहा “मनुष्यों की अपेक्षा परमेश्‍वर को शासक मानकर उसकी आज्ञा का पालन करना हमारा कर्त्तव्य है।”—प्रेरितों के काम ५:२९.

१४. हम कैसे प्रदर्शित कर सकते हैं कि हम जीवन के मूल्य के संबंध में परमेश्‍वर के दृष्टिकोण के सहभागी हैं?

१४ परमेश्‍वर जीवन को बहुमूल्य समझता है। यह बात उन व्यक्‍तियों को जो उसकी सरकार की प्रजा बनना चाहते हैं, अवश्‍य समझनी चाहिये। प्रत्यक्षतया, हत्या करना परमेश्‍वर के नियम के विरुद्ध है। परन्तु घृणा द्वारा अक्सर हत्या होती है, और यहाँ तक कि यदि कोई अपने संगी साथी से घृणा करता रहे तो वह परमेश्‍वर की हुकूमत के अधीन नागरिक नहीं बन सकता है। (१ यूहन्‍ना ३:१५) अतः बाइबल की पुस्तक यशायाह २:४ में जो कहा गया है कि पड़ोसियों की जान लेने के लिये शस्त्रों का प्रयोग न किया जाय, उसे अपने जीवन में उतारना अत्यन्त आवश्‍यक है। परमेश्‍वर का वचन प्रदर्शित करता है कि माँ के गर्भ में अजन्मे बच्चे की जान भी यहोवा के लिये बहुमूल्य है। (निर्गमन २१:२२, २३; भजन संहिता १२७:३) फिर भी हर वर्ष लाखों की संख्या में गर्भपात करवाये जाते हैं। जीवन का यह विनाश परमेश्‍वर के नियम के विरुद्ध है, क्योंकि वह मनुष्य जो अपनी माँ के गर्भ में है, एक जीवित व्यक्‍ति है और उसको नष्ट नहीं करना चाहिये।

१५. परमेश्‍वर के राजा के वे आदेश क्या हैं जिनका पालन करना सारी राज्य प्रजा के लिए आवश्‍यक है?

१५ फिर भी, उनसे जो परमेश्‍वर के राज्य की प्रजा बनेंगे, केवल अनुचित अथवा अनैतिक कार्य करने की अपेक्षा, कुछ अधिक करने की आवश्‍यकता होती है। उनका दूसरों के प्रति भले और निस्वार्थ कार्य करने के लिये वास्तविक प्रयत्न करना भी आवश्‍यक है। उसको राजा यीशु मसीह द्वारा दिये हुए इस धार्मिक नियम के अनुसार जीवन व्यतीत करना चाहिये: “इसलिए जो व्यवहार तुम दूसरे मनुष्यों से अपने प्रति चाहते हो, समान रीति से वही व्यवहार तुम्हें उनके साथ भी करना चाहिये।” (मत्ती ७:१२) मसीह ने दूसरों के लिये प्रेम प्रदर्शित करने में एक उदाहरण स्थापित किया था। यहाँ तक कि उसने मानवजाति के लिये अपनी जान दी और अपने अनुयायियों को यह आदेश दिया: “एक दूसरे से प्रेम रखो जैसा मैंने तुमसे प्रेम रखा है।” (यूहन्‍ना १३:३४; १ यूहन्‍ना ३:१६) दूसरों के लिए इस प्रकार का यह निस्वार्थ प्रेम करना और चिन्ता प्रकट करना परमेश्‍वर के राज्य के शासन के अधीन हमारे जीवन को वास्तविक रूप से सुखद बनायेगा।—याकूब २:८.

१६, १७. (क) अपने जीवन में परिवर्तन लाने के लिए वे उत्तम कारण क्या हैं जिनसे हम परमेश्‍वर की शर्त्तों को पूरा कर सकते हैं? (ख) हम कैसे निश्‍चित हो सकते हैं कि हम जीवन में आवश्‍यक परिवर्तन ला सकते हैं?

१६ बाइबल प्रदर्शित करती है कि परमेश्‍वर की सरकार की प्रजा बनने की शर्त्तों को पूरा करने के लिये व्यक्‍तियों को अपने जीवन में परिवर्तन लाना आवश्‍यक है। (इफिसियों ४:२०-२४) क्या आप इस प्रकार के परिवर्तन लाने का प्रयास कर रहे हैं? निश्‍चय ऐसा करने के लिये कोई भी प्रयत्न करना उचित है। ऐसा क्यों? इसका यह अर्थ नहीं होगा कि आप किसी मानवीय सरकार के अधीन केवल कुछ वर्षों के लिये बेहतर जीवन व्यतीत करेंगे। नहीं, आप परमेश्‍वर द्वारा शासित सरकार के अधीन परादीस रूपी पृथ्वी पर पूर्ण स्वास्थ्य में अनन्त जीवन प्राप्त करेंगे!

१७ अब भी, आप परमेश्‍वर की शर्त्तों को पूरा करके एक बेहतर खुशी का जीवन व्यतीत करेंगे। परन्तु आपके लिये शायद परिवर्तन लाना आवश्‍यक हो। तथापि अनेक और अधिक व्यक्‍तियों ने जो घृणित अथवा लोभी थे, अपनी जीवन-रीति को बदला है। इसके अतिरिक्‍त व्यभिचारियों, परगामियों, समलिंगकामियों, शराबियों, कातिलों, चोरों और उन लोगों ने जो नशीली वस्तुओं के आदी व्यक्‍तियों ने और तम्बाकू का प्रयोग करनेवालों ने अपनी जीवन-रीति को बदला है। यह उन्होंने वास्तविक प्रयत्न और परमेश्‍वर की सहायता द्वारा किया है। (१ कुरिन्थियों ६:९-११; कुलुस्सियों ३:५-९) अतः परमेश्‍वर की शर्त्तों को पूरा करने के लिये यदि आपके लिये अपनी अति बुरी आदतें बदलना मुश्‍किल है तो आप निराश न होइये। आप अवश्‍य अपने जीवन में परिवर्तन ला सकते हैं!

परमेश्‍वर की सरकार के प्रति वफ़ादार रहना

१८. किस विशेष रीति से परमेश्‍वर हमसे उसके राज्य का वफादारी से समर्थन करने की प्रत्याशा करता है?

१८ यदि यहोवा परमेश्‍वर अपनी प्रजा से यह चाहता है कि वे उसकी राजकीय सरकार का समर्थन वफ़ादारी से करें, तो इसमें आश्‍चर्य की बात नहीं है। मनुष्यों की सरकारें भी अपने नागरिकों से इसी प्रकार के समर्थन की अपेक्षा करती हैं। परन्तु किस विशेष रूप से परमेश्‍वर अपने राज्य का वफ़ादारी से समर्थन करने की आशा रखता है? क्या उसकी प्रजा शस्त्रों द्वारा उसके राज्य के लिये युद्ध करे? नहीं; इसकी अपेक्षा यीशु मसीह और उसके प्रारंभिक अनुयायियों के समान उनको परमेश्‍वर के राज्य का वफ़ादार प्रवक्‍ता अथवा प्रचारक होना चाहिये। (मत्ती ४:१७; १०:५-७; २४:१४) यह यहोवा की इच्छा है कि प्रत्येक व्यक्‍ति को इस बात की जानकारी हो जाय कि उसका राज्य क्या है और वह मनुष्यों की समस्याओं को कैसे हल करेगा। क्या आपने अपने संबंधियों, मित्रों और अन्य लोगों को वे बातें बतायी हैं जो आपने परमेश्‍वर के वचन से सीखी हैं? परमेश्‍वर की यही इच्छा है कि आप ऐसा ही करें।—रोमियों १०:१०; १ पतरस ३:१५.

१९. (क) जब हम दूसरों को परमेश्‍वर के राज्य के विषय में बताते हैं तो हम क्या विरोध की प्रत्याशा कर सकते हैं? (ख) आपके लिए किन प्रश्‍नों का उत्तर देना आवश्‍यक है?

१९ दूसरों को राज्य के विषय में बताने के लिए मसीह और उसके प्रारंभिक अनुयायियों को हिम्मत की आवश्‍यकता होती थी, क्योंकि अक्सर उनको विरोध का सामना करना पड़ता था। (प्रेरितों के काम ५:४१, ४२) यह आज की स्थिति के लिए भी सही है। इबलीस द्वारा शासित संसार नहीं चाहता है कि इस राज्य के सुसमाचार का प्रचार किया जाय। अतः प्रश्‍न ये हैं: आपकी स्थिति क्या है? क्या आप वफ़ादारी से परमेश्‍वर के राज्य का समर्थन करेंगे? उसकी इच्छा यह है कि अन्त आने से पहले इस राज्य के विषय में महान गवाही दी जाय। क्या आप उस गवाही देने में भाग लेंगे?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज १२८ पर तसवीरें]

उनको जो परमेश्‍वर की सरकार की प्रजा बनेंगे, उसके विषय में ज्ञान लेने की आवश्‍यकता है

[पेज १३१ पर तसवीरें]

परमेश्‍वर की सरकार की प्रजा को उन कार्यों से अलग रहने की आवश्‍यकता है जिनकी निन्दा परमेश्‍वर करता है

[पेज १३३ पर तसवीरें]

परमेश्‍वर की सरकार की प्रजा को उसके विषय में दूसरों को बताना आवश्‍यक है