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प्रार्थना द्वारा सहायता कैसे प्राप्त की जा सकती है

प्रार्थना द्वारा सहायता कैसे प्राप्त की जा सकती है

अध्याय २७

प्रार्थना द्वारा सहायता कैसे प्राप्त की जा सकती है

१. हमें परमेश्‍वर से किस सहायता की आवश्‍यकता है और हम उसे कैसे प्राप्त करते हैं?

दुनिया के दुष्ट प्रभाव से आजाद रहने के लिये मसीहियों के विशेष रूप से प्रार्थना द्वारा सहायता प्राप्त करने की आवश्‍यकता है। यीशु ने कहा: “स्वर्गीय पिता अपने मांगने वालों को पवित्र आत्मा देगा।” (लूका ११:१३) जिस प्रकार हमें परमेश्‍वर के वचन का अध्ययन करने और उसके संगठन की संगति में रहने की आवश्‍यकता है उसी प्रकार हमें उसकी पवित्र आत्मा अथवा सक्रिय शक्‍ति की आवश्‍यकता है। परन्तु पवित्र आत्मा प्राप्त करने के लिये हमें उसके लिये प्रार्थना करना आवश्‍यक है।

२. (क) प्रार्थना क्या है? (ख) कितने प्रकार की प्रार्थनाएं हैं? (ग) प्रार्थना करना क्यों महत्वपूर्ण है?

प्रार्थना परमेश्‍वर के प्रति आदरपूर्ण कथन है। वह निवेदन के रूप में भी हो सकती है जैसा कि हम परमेश्‍वर से कुछ बातों की याचना करते हैं। परन्तु प्रार्थना परमेश्‍वर की प्रशंसा अथवा धन्यवाद करने की अभिव्यक्‍ति भी हो सकती है। (१ इतिहास २९:१०-१३) अपने स्वर्गीय पिता के साथ एक अच्छा संबंध रखने के लिये हमें प्रार्थना में उससे नियमित रूप से बात करना आवश्‍यक है। (रोमियों १२:१२; इफिसियों ६:१८) उसकी सक्रिय शक्‍ति जो हमारे मांगने पर प्राप्त होती है, हमें किसी भी परेशानी और प्रलोभन के बावजूद जो शैतान अथवा उसकी दुनिया हम पर लाये, उसकी इच्छा पूरी करने के लिये हमें शक्‍ति दे सकती है।—१ कुरिन्थियों १०:१३; इफिसियों ३:२०.

३. (क) हम परमेश्‍वर से किस प्रकार की शक्‍ति प्राप्त कर सकते हैं? (ख) हम परमेश्‍वर के साथ एक अच्छा संबंध केवल कैसे बनाये रख सकते हैं?

शायद आप किसी आदत या कार्य से जो परमेश्‍वर को पसंद नहीं है छुटकारा पाने के लिये एक वास्तविक युद्ध कर रहे हों। यदि ऐसा है तो यहोवा से सहायता की खोज कीजिए। उससे प्रार्थना कीजिए। प्रेरित पौलुस ने यही किया और लिखा: “उसके बल पर जो मुझे सामर्थ्य देता है मेरे पास सब कुछ करने की शक्‍ति है।” (फिलिप्पियों ४:१३; भजन संहिता ५५:२२; १२१:१, २) एक स्त्री जो अनैतिकता के कार्य में लिप्त थी, उससे जब मुक्‍त हुई तो यह कहा: “केवल वही है जो आपको उस स्थिति में से निकालने में सहायता देने का सामर्थ्य रखता है। आपके लिये यहोवा के साथ वैयक्‍तिक संबंध रखना अति आवश्‍यक है और उस वैयक्‍तिक संबंध कायम रखने का केवल एक तरीका है कि आप उससे प्रार्थना करते रहें।”

४. धूम्रपान की आदत से स्वतंत्र होने के लिए एक व्यक्‍ति ने कैसे शक्‍ति प्राप्त की?

फिर भी एक व्यक्‍ति यह कहे: ‘मैंने परमेश्‍वर से सहायता के लिये अनेक बार प्रार्थना की है परन्तु फिर भी मैं अभी तक अपने आपको अनुचित कार्य करने से रोक नहीं सका हूँ।’ उन व्यक्‍तियों ने जो धूम्रपान करते हैं, यही कहते रहे हैं। जब इस प्रकार के पुरुष से यह पूछा गया: “आप कब प्रार्थना करते हैं?” तो उसने उत्तर दिया: “शाम को बिस्तर पर जाने से पहले और सुबह उठने से पहले और जब मैं अपने संकल्प में कमजोर पड़ जाता हूँ और धूम्रपान करता हूँ तब उसके पश्‍चात्‌ मैं यहोवा से कहता हूँ कि मुझे अफसोस है कि मैंने यह किया है।” उसके मित्र ने कहा: “वह समय जब वास्तव में परमेश्‍वर की सहायता की आवश्‍यकता है वह क्षण है जब आप धूम्रपान करने जा रहे हैं, क्या यह सही नहीं? यही है वह समय जब आपको यहोवा से प्रार्थना करनी चाहिये कि वह आपको शक्‍ति दे।” जब उस पुरुष ने ऐसा किया तब उसे धूम्रपान बंद करने के लिये सहायता मिली।

५. (क) उपयुक्‍त रूप से परमेश्‍वर की सेवा करने के लिए क्या करने की आवश्‍यकता है? (ख) किस बात से सूचित होता है कि पापपूर्ण क्रियाकलापों से अपने आपको हटाने में अक्सर दुःख उठाना पड़ता है?

इसका यह अर्थ नहीं है कि परमेश्‍वर से प्रार्थना करने और उसके साथ उसके वचन का अध्ययन करने और उसके दृश्‍य संगठन की संगति में रहने से आपके लिये वह करना आसान हो जाएगा जो सही है। फिर भी प्रयत्न करने की आवश्‍यकता है; हाँ, एक कठिन युद्ध लड़ने की, जिसमें दुःख उठाना भी सम्मिलित है। (१ कुरिन्थियों ९:२७) बुरी आदतों का परिणाम यह भी हो सकता है कि जो बुरा है उसी के लिये एक भयंकर लालसा उत्पन्‍न होती है। अतः जब एक व्यक्‍ति अपने पापपूर्ण क्रियाकलापों से अपने आपको हटाता है तो सामान्यतया यही होता है कि उसे दुःख उठाना पड़ता है। क्या आप वही करने के लिये जो सही है, दुःख उठाने के इच्छुक हैं?—१ पतरस २:२०, २१.

प्रार्थनाएं जो परमेश्‍वर सुनता है

६. (क) क्या कारण है कि अनेक व्यक्‍तियों को प्रार्थना करने में कठिनाई होती है? (ख) हमारी प्रार्थनाएं सुनी जाने के लिए हमारे लिए क्या करना आवश्‍यक है?

अनेक व्यक्‍ति प्रार्थना में कठिनाई महसूस करते हैं। एक युवा स्त्री ने यह स्वीकार किया: “मुझे उस व्यक्‍ति से प्रार्थना करने में जिसे मैं नहीं देख सकता हूँ, कठिनाई होती है।” क्योंकि किसी मनुष्य ने परमेश्‍वर को नहीं देखा है इसलिये हमें इस विषय में विश्‍वास रखने की आवश्‍यकता है कि यहोवा वास्तव में अस्तित्व में है और कि वह हमारी मांगों को पूरा कर सकता है। (इब्रानियों ११:६) यदि हम उस प्रकार का विश्‍वास रखते हैं और यदि हम एक निष्कपट हृदय से परमेश्‍वर के समीप जाते हैं तो हम निश्‍चित हो सकते हैं कि वह अवश्‍य हमारी सहायता करेगा। (मरकुस ९:२३) इस प्रकार यदि कुरनेलियुस नामक रोमी सेना अधिकारी उस समय परमेश्‍वर के संगठन का भाग नहीं था परन्तु जब उसने निष्कपट रूप से पथ-प्रदर्शन के लिये परमेश्‍वर से प्रार्थना की तो उसे अपनी प्रार्थना का उत्तर मिला।—प्रेरितों के काम १०:३०-३३.

७. (क) किस प्रकार की प्रार्थनाओं से परमेश्‍वर प्रसन्‍न होता है? (ख) किस प्रकार की प्रार्थनाएं परमेश्‍वर नहीं सुनेगा?

कुछ व्यक्‍ति शब्दों में अपने आपको अभिव्यक्‍त करने में कठिनाई अनुभव करते हैं। तथापि, उनको इस कारण से परमेश्‍वर से प्रार्थना करने में बाधा अनुभव नहीं होनी चाहिये। हम निश्‍चित हो सकते हैं कि वह हमारी आवश्‍यकताओं को जानता है और जो हम कहना चाहते हैं वह उसे अवश्‍य समझ लेगा। (मत्ती ६:८) ज़रा इस विषय में सोचिये: आप एक बच्चे से किस अभिव्यक्‍ति की कद्र ज्यादा करते हैं—उसके सादा निष्कपट धन्यवाद की या उन विशेष शब्दों की जो किसी ने कहने के लिये उसे सिखाये हों? हमारा स्वर्गीय पिता इसी समान रीति से हमारी सादा निष्कपट अभिव्यक्‍तियों की कद्र करता है। (याकूब ४:६; लूका १८:९-१४) कोई विशेष शब्दों अथवा धार्मिक भाषा की आवश्‍यकता नहीं है। वह उन लोगों की सुनेगा भी नहीं जो दूसरों को प्रभावित करने के लिये असामान्य अथवा आडम्बरपूर्ण भाषा में प्रार्थना करते हैं या जो एक ही प्रकार की बातों को पाखंड पूर्ण तरीके से बारम्बार दुहराते रहते हैं।—मत्ती ६:५, ७.

८. (क) कैसे प्रदर्शित होता है कि परमेश्‍वर खामोशी से कही गयी प्रार्थनाओं को सुन सकता है? (ख) क्या बाइबल यह सूचित करती है कि हमें कोई भी निश्‍चित स्थिति ग्रहण करके या निश्‍चित स्थान पर प्रार्थना करनी चाहिये?

यहाँ तक कि जब आप खामोशी से प्रार्थना करते हैं, तो परमेश्‍वर उसे सुन सकता है। जब नहेम्याह ने मन में प्रार्थना की तो परमेश्‍वर ने उसके निष्कपट निवेदन को सुना और, इसी प्रकार उसने हन्‍ना के साथ भी किया। (नहेम्याह २:४-८; १ शमूएल १:११-१३, १९, २०) जब प्रार्थना की जाती है तब उस समय किसी व्यक्‍ति की शारीरिक स्थिति महत्वपूर्ण नहीं है। आप किसी भी समय और किसी भी जगह कोई भी स्थिति ग्रहण करें, आप प्रार्थना कर सकते हैं। तथापि, बाइबल प्रदर्शित करती है कि प्रार्थना में नम्रता की स्थिति जैसे कि सिर झुकाना या घुटने टेकना उपयुक्‍त है। (१ राजा ८:५४; नहेम्याह ८:६; दानिय्येल ६:१०; मरकुस ११:२५; यूहन्‍ना ११:४१) और यीशु ने संकेत किया था कि यदि व्यक्‍तिगत प्रार्थनाएं मनुष्यों की नज़रों से दूर एकान्त में की जायें तो वह अच्छा है।—मत्ती ६:६.

९. (क) हमारी प्रार्थनाएं किसके प्रति संबोधित होनी चाहिये और क्यों? (ख) परमेश्‍वर के प्रति हमारी प्रार्थनाएं स्वीकार्य होने के लिए किसके नाम में उन्हें अर्पित होना चाहिये?

प्रार्थना हमारी उपासना का एक भाग है। इस कारण से, हमारी प्रार्थनाएं केवल हमारे सृष्टिकर्त्ता यहोवा परमेश्‍वर के प्रति न कि किसी अन्य व्यक्‍ति के प्रति संबोधित होनी चाहिये। (मत्ती ४:१०) और बाइबल प्रदर्शित करती है कि मसीहियों को यीशु के द्वारा जिसने हमारे पापों को दूर करने के लिये अपनी जान दी, परमेश्‍वर के समीप जाना आवश्‍यक है। इसका यह अर्थ है हमें यीशु के नाम में प्रार्थनाएं करनी चाहिये।—यूहन्‍ना १४:६, १४; १६:२३; इफिसियों ५:२०; १ यूहन्‍ना २:१, २.

१०. (क) किनकी प्रार्थनाओं से परमेश्‍वर प्रसन्‍न नहीं होता है? (ख) यदि प्रार्थनाएं परमेश्‍वर द्वारा सुनी जायें तो हमें किस आधारभूत आवश्‍यकता को पूरा करना चाहिये?

१० तथापि, क्या सब प्रार्थनाएं यहोवा को प्रसन्‍न करती हैं? बाइबल कहती है: “जो अपने कान व्यवस्था सुनने से फेर लेता है उसकी प्रार्थना घृणित ठहरती है।” (नीतिवचन २८:९; १५:२९; यशायाह १:१५) इसलिये यदि हम यह चाहते हैं कि परमेश्‍वर हमारी प्रार्थनाएं सुने तो आधारभूत शर्त्त यह है कि हम उसकी इच्छा पूरी करें और हम उसके नियमों का पालन करें। वरना परमेश्‍वर हमारी नहीं सुनेगा जिस प्रकार कि एक ईमानदार व्यक्‍ति उस रेडियो कार्यक्रम को नहीं सुनता है जिसे वह अनैतिक समझता है। बाइबल कहती है: “जो कुछ हम मांगते हैं वह हमें उससे मिलता है, क्योंकि हम उसकी आज्ञाओं का पालन करते हैं और हम वही करते हैं जो उसकी दृष्ट में मन-भावना है।”१ यूहन्‍ना ३:२२.

११. जिस बात की हम प्रार्थना करते हैं उसे कार्यान्वित करने का क्या अर्थ है?

११ इसका यह अर्थ है कि हम जिस बात के लिये प्रार्थना करते हैं उसे हमें व्यवहार में भी लाना चाहिये। उदाहरणतया यदि कोई व्यक्‍ति परमेश्‍वर से तम्बाकू अथवा गाँजा का प्रयोग करने से रोकने के लिये प्रार्थना में सहायता मांगे और फिर वह जाकर इन्ही वस्तुओं को खरीदे तो यह अनुचित होगा। न ही वह यहोवा से अनैतिकता से बचे रहने के लिये प्रार्थना में सहायता मांग सकता है जबकि वह वही साहित्य पढ़ता है और सिनेमा और टेलीविजन कार्यक्रम देखता है जो अनैतिकता को प्रस्तुत करते हैं। यदि जुआबाजी एक व्यक्‍ति की कमजोरी है तो वह परमेश्‍वर से स्वयं को जुआ खेलने से रोकने के लिये प्रार्थना में सहायता नहीं मांग सकता है जबकि वह घुड़दौड़ के मैदान और अन्य इस प्रकार के स्थानों में जाता है जहाँ जुआबाज़ी होती है। परमेश्‍वर द्वारा हमारी प्रार्थनाएं सुनी जाने के लिये हमें उसको यह प्रदर्शित करने की आवश्‍यकता है कि जो हम कहते हैं उसे वास्तव में कार्यान्वित करते हैं।

१२. (क) किन याचनाओं को हम प्रार्थना में सम्मिलित कर सकते हैं? (ख) परमेश्‍वर को अपनी प्रार्थनाओं से प्रसन्‍न करने के लिए हमें क्या मालूम करने की आवश्‍यकता है?

१२ तब वह क्या व्यक्‍तिगत वस्तुएं हैं जिनको हम परमेश्‍वर से अपनी प्रार्थनाओं में सम्मिलित कर सकते हैं? वास्तव में कोई भी बात जो परमेश्‍वर के साथ हमारे संबंध को प्रभावित करेगी प्रार्थना के लिये एक उपयुक्‍त विषय है जिसमें हमारा शारीरिक स्वास्थ्य और बच्चों का पालन-पोषण भी सम्मिलित है। (२ राजा २०:१-३; न्यायियों १३:८) प्रेरित यूहन्‍ना ने लिखा: “हम जो कुछ भी उसकी इच्छा के अनुसार मांगते हैं वह हमारी सुनता है।” (१ यूहन्‍ना ५:१४) अतः महत्वपूर्ण बात यह है कि हमारे निवेदन परमेश्‍वर की इच्छा के सामंजस्य में हों। इसका यह अर्थ है कि सबसे पहले हमें यह मालूम करने की आवश्‍यकता है कि उसकी क्या इच्छा है। (नीतिवचन ३:५, ६) और तब अपनी स्वयं की वैयक्‍तिक रुचियों के विषय में चिन्तित होने की अपेक्षा यदि हम परमेश्‍वर की इच्छा और उद्देश्‍य को ध्यान में रखते हुए प्रार्थना करते हैं तो हमारी प्रार्थनाएं यहोवा को स्वीकार्य होंगी। यह उपयुक्‍त है कि हम प्रतिदिन उन तमाम उत्तम वस्तुओं के लिये जो यहोवा हमें देता है उसका धन्यवाद करें।—यूहन्‍ना ६:११, २३; प्रेरितों के काम १४:१६, १७.

१३. (क) यीशु ने कैसे प्रदर्शित किया कि हमारी प्रार्थनाओं में किन बातों को प्राथमिकता दी जानी चाहिये? (ख) अन्य महत्वपूर्ण विषय क्या हैं जिनके लिए हमें प्रार्थनाएं करनी चाहिये?

१३ यीशु ने अपने अनुयायियों को उनके पथ-प्रदर्शन के लिये कि किस प्रकार की प्रार्थना परमेश्‍वर स्वीकार करता है, एक आदर्श-प्रार्थना की शिक्षा दी। (मत्ती ६:९-१३) यह प्रार्थना यह प्रदर्शित करती है कि परमेश्‍वर का नाम, उसका राज्य और पृथ्वी पर उसकी इच्छा-पूर्ति प्रथम स्थान रखते हैं। उसके बाद हम अपनी व्यक्‍तिगत आवश्‍यकताओं के लिये जैसे कि हमारा प्रतिदिन का भोजन, अपने पापों की क्षमा और प्रलोभन और उस दुष्ट व्यक्‍ति शैतान अर्थात्‌ इबलीस से बचाए रखने के लिये प्रार्थना कर सकते हैं।

दूसरों की सहायता के लिये प्रार्थनाएं

१४. दूसरों के लिए प्रार्थना करने के महत्व को बाइबल कैसे प्रदर्शित करती है?

१४ यीशु ने अपने उदाहरण द्वारा दूसरों के लिए प्रार्थना करने के महत्व को प्रदर्शित किया। (लूका २२:३२; २३:३४; यूहन्‍ना १७:२०) प्रेरित पौलुस इस प्रकार की प्रार्थनाओं के मूल्य को जानता था और अक्सर दूसरों से उसके लिये प्रार्थना करने का निवेदन करता था। (१ थिस्सलुनीकियों ५:२५; २ थिस्सलुनीकियों ३:१; रोमियों १५:३०) जब वह कैद में था तो उसने यह लिखा: “मुझे आशा है कि तुम लोगों की प्रार्थनाओं द्वारा मैं रिहा कर दिया जाऊँगा।” (फिलेमोन २२; इफिसियों ६:१८-२०) उसके शीघ्र पश्‍चात्‌ पौलुस कैद से रिहा कर दिया गया जो उसके लिये कही गयी प्रार्थनाओं के लाभ को सूचित करता है।

१५. उन व्यक्‍तियों के विषय में जिनसे हम प्रेम करते हैं, हम क्या बिनती कर सकते हैं?

१५ पौलुस भी दूसरों के लिये सहायतापूर्ण प्रर्थनाएं करता था। उसने लिखा: “हम हमेशा तुम्हारे लिये प्रार्थना करते हैं कि हमारा परमेश्‍वर तुम्हें इस बुलाहट के योग्य समझे।” (२ थिस्सलुनीकियों १:११) और एक दूसरी मंडली को उसने यह व्याख्या दी: “हम परमेश्‍वर से यह प्रार्थना करते हैं कि तुम कोई अनुचित कार्य न करो . . . बल्कि यह कि तुम वही करते रहो जो उत्तम है।” (२ कुरिन्थियों १३:७) निश्‍चय हमें पौलुस के उदाहरण का अनुसरण करना और उन व्यक्‍तियों के लिये विशेष तौर पर बिनती करना जिनसे हम प्रेम करते हैं, अच्छा है। वास्तव में, “एक धर्मी पुरुष की प्रार्थना [निष्कपट अभिवचन] कार्यान्विति के लिये अधिक शक्‍ति रखती है।”—याकूब ५:१३-१६.

१६. (क) आवश्‍यक सहायता प्राप्त करने के लिए हमें कब प्रार्थना करनी चाहिये? (ख) प्रार्थना क्यों इतना बृहत विशेषाधिकार है?

१६ एक सेवक जब वह बाइबल के अध्ययन का संचालन करता है तो वह अक्सर यह पूछता है: “क्या आप अपने इस साप्ताहिक बाइबल अध्ययन के अवसर के अतिरिक्‍त अन्य समय भी प्रार्थना करते हैं?” आवश्‍यक सहायता प्राप्त करने के लिये हमें अक्सर परमेश्‍वर से प्रार्थना में वार्त्ता करनी चाहिये। (१ थिस्सलुनीकियों ५:१७; लूका १८:१-८) नम्रतापूर्वक उससे बात करना सीखिए जैसा कि आप प्रिय और विश्‍वसनीय मित्र से बात करेंगे। वास्तव में सारे विश्‍व के महिमावान शासक, प्रार्थना के श्रोता को प्रार्थना में संबोधित करने के योग्य होना और यह जानना कि वह आपकी सुनता है क्या ही अद्‌भुत विशेषाधिकार है!—भजन संहिता ६५:२.

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज २२७ पर तसवीरें]

किसी को क्या करना चाहिये जब वह धूम्रपान करने के लिए प्रलोभित होता है—सहायता के लिए प्रार्थना करे या हार मान ले?

[पेज २२९ पर तसवीरें]

क्या आप सहायता के लिए प्रार्थना करते हैं और फिर उस कार्य में अंतर्ग्रस्त हो जाते हैं जो आपको अनुचित कार्य की ओर ले जा सकता है?

[पेज २३० पर तसवीरें]

क्या आप एकान्त में प्रार्थना करते हैं या केवल उस समय जब आप दूसरों के साथ होते हैं?