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मृत्यु होने पर क्या घटित होता है?

मृत्यु होने पर क्या घटित होता है?

अध्याय ८

मृत्यु होने पर क्या घटित होता है?

१. मरे हुओं के विषय में अक्सर लोग क्या प्रश्‍न पूछते हैं?

शायद आप उस शून्य भावना से परिचित हैं जो किसी प्रिय व्यक्‍ति के मरने पर उत्पन्‍न होती है। आप अपने आप को कितना अधिक दुःखी और निःसहाय महसूस करते होंगे! यह पूछना केवल स्वाभाविक है: उस व्यक्‍ति का क्या होता है जब वह मरता है? क्या वह कहीं अभी तक जीवित है? वे लोग जो जीवित हैं क्या कभी पृथ्वी पर जो अभी मरे हुए हैं उनकी संगति का आनन्द उठा पाएंगे?

२. प्रथम मनुष्य आदम के साथ उसकी मृत्यु पर क्या हुआ?

इस प्रकार के प्रश्‍नों का उत्तर देने के लिये यह जानने में हमें सहायता मिलेगी कि मृत्यु पर आदम के साथ क्या घटित हुआ था। जब उसने पाप किया तो परमेश्‍वर ने उससे कहा: “तू मिट्टी में लौट जायेगा क्योंकि तू उसी में से निकाला गया था। क्योंकि तू मिट्टी है और मिट्टी में ही तू मिल जायेगा।” (उत्पत्ति ३:१९) इस बात पर विचार कीजिए कि इसका अर्थ क्या है। परमेश्‍वर द्वारा मिट्टी से सृष्ट होने से पहले आदम कहीं नहीं था। वह अस्तित्व में नहीं था। अतः जब वह मर गया तो उसके पश्‍चात्‌ आदम अपनी अनास्तित्व की पूर्व स्थिति में लौट गया।

३. (क) मृत्यु क्या है? (ख) सभोपदेशक ९:५, १० मरे हुओं की दशा के विषय में क्या कहता है?

स्पष्ट रूप से यह कहा जा सकता है कि मृत्यु जीवन के विपरीत है। बाइबल इस तथ्य को सभोपदेशक ९:५, १० में प्रदर्शित करती है। ऑथराइज़्ड अथवा किंग जेम्स वर्शन के अनुसार ये पद यह कहते हैं: “जीवित व्यक्‍ति इतना जानते हैं कि वे मरेंगे परन्तु मरे हुए कुछ भी नहीं जानते और न उनको कुछ और प्रतिफल मिल सकता है क्योंकि उनकी स्मरण शक्‍ति मिट गयी है। जो काम तेरे हाथ को करने के लिये मिले उसे अपनी शक्‍ति भर कर; क्योंकि क़ब्र में जहाँ तुझे जाना है, न काम है न युक्‍ति, न ज्ञान और न बुद्धि है।”

४. (क) मृत्यु पर एक व्यक्‍ति की विचार-योग्यता का क्या होता है? (ख) क्यों मृत्यु पर एक व्यक्‍ति की इन्द्रियाँ काम करना बन्द कर देती हैं?

इसका यह अर्थ है कि मरे हुए कोई भी कार्य नहीं कर सकते हैं और कुछ भी नहीं महसूस कर सकते हैं। उनमें अब कोई कल्पना करने की शक्‍ति नहीं रही, जैसाकि बाइबल कहती है: “तुम प्रधानों पर भरोसा न रखना, न किसी आदमी पर क्योंकि उसमें उद्धार करने की शक्‍ति नहीं, उसकी आत्मा [अंग्रेज़ी में स्पिरिट] निकल जाती है और वह मिट्टी में मिल जाता है; उसी दिन उसकी सब कल्पनायें नष्ट हो जाती हैं।” (भजन संहिता १४६:३, ४) मृत्यु होने पर मनुष्य की आत्मा (स्पिरिट) अर्थात्‌ उसकी जीवन-शक्‍ति (लैफ-फोर्स) जो श्‍वास द्वारा कायम रहती है, “निकल जाती है।” वह अब अस्तित्व में नहीं रहती है। अतः मनुष्य की सुनने, देखने, छूने, सूंघने और चखने की इन्द्रियाँ जो उसके विचार करने की योग्यता पर निर्भर रहती हैं, सब कार्य करना बंद कर देती हैं। बाइबल के अनुसार मरे हुए पूर्ण अचेतन अवस्था में चले जाते हैं।

५. (क) बाइबल कैसे प्रदर्शित करती है कि मृत मनुष्यों और मृत पशुओं की अवस्था एक समान है? (ख) वह “आत्मा” (स्पिरिट) क्या है जो मनुष्यों और पशुओं दोनों को जीवित रखती है?

जब मनुष्य और पशु मरते हैं तो दोनों इसी समान पूर्ण अचेतन अवस्था में होते हैं। यहाँ गौर कीजिए कि बाइबल इस विषय को कैसे स्पष्ट करती है: “जैसे एक मरता है वैसे ही दूसरा भी मरता है, उन दोनों में एक ही आत्मा [स्पिरिट] है, और मनुष्य पशु से कुछ बढ़कर नहीं, क्योंकि सब कुछ व्यर्थ है, सब एक स्थान में जाते हैं। वे सब मिट्टी से बने हैं और वे सब मिट्टी में मिल जाते हैं।” (सभोपदेशक ३:१९, २०) वह “आत्मा” जो पशुओं को जीवित रखती है वही है जो मनुष्यों को भी जीवित रखती है। जब यह “आत्मा” अथवा अदृश्‍य जीवन-शक्‍ति निकल जाती है, तब मनुष्य और पशु दोनों उस मिट्टी में मिल जाते हैं जिसमें से वे बनाये गये थे।

प्राण (सोल) मरता है

६. बाइबल कैसे प्रदर्शित करती है कि मनुष्य प्राण (सोल) हैं?

कुछ व्यक्‍तियों ने यह कहा है जो बात मनुष्य को पशुओं से भिन्‍न करती है वह यह है कि मनुष्य में प्राण (सोल) होता है परन्तु पशुओं में नहीं होता। तथापि उत्पत्ति की पुस्तक १:२० और ३० यह कहती है कि परमेश्‍वर ने जल में रहने के लिये “जीवित प्राणों” (सोल्स्‌) को सृष्ट किया था, और कि पशु में “जीवन समान प्राण” (सोल) है। कुछेक बाइबल के अनुवाद इन पदों में “प्राण” (सोल) के स्थान पर शब्द “प्राणी” (क्रीचर) और “जीव” (लैफ) का प्रयोग करते हैं, परन्तु उनके हाशिये पर दिये हुए पठन इस बात पर सहमत हैं कि मूल भाषा में शब्द “प्राण” (सोल) दिया हुआ है। उन बाइबल के हवालों में जहाँ पशुओं को प्राण कहा गया है एक हवाला गिनती ३१:२८ है। यह हवाला यह कहता है कि “क्या मनुष्य, क्या गाय-बैल, क्या गधे, क्या भेड़-बकरियों अर्थात्‌ हर पांच सौ के पीछे एक प्राण [सोल] को ले।”

७. बाइबल यह सिद्ध करने के लिए कि पशु प्राण (सोल) और मनाव प्राण (सोल) मरते हैं, क्या कहती है?

क्योंकि पशु प्राण हैं इसलिये जब वे मरते हैं तो उनका प्राण मर जाता है। जैसा कि बाइबल कहती है: “समुद्र का प्रत्येक जीवधारी प्राण (सोल) मर गया।” (प्रकाशितवाक्य १६:३) मानव प्राण के विषय में क्या कहें? जैसा कि हम पिछले अध्याय में मालूम कर चुके हैं कि परमेश्‍वर ने मनुष्य को इस प्रकार सृष्ट नहीं किया कि उसके अन्दर प्राण रखा। मनुष्य स्वयं एक प्राण है। अतः जैसा कि हम आशा करते हैं कि जब एक मनुष्य मरता है तो उसका प्राण मर जाता है। बारम्बार बाइबल कहती है कि यही वास्तविकता है। बाइबल यह कभी नहीं कहती है कि प्राण अमर है, अथवा कि उसकी मृत्यु नहीं हो सकती है। भजन संहिता २२:२९ यह कहता है: “वे सब जो मिट्टी में मिल जायेंगे उसके सम्मुख घुटने टेकेंगे और उनमें कोई अपना प्राण [सोल] अथवा अपने आपको कभी सुरक्षित नहीं रख सकेगा।” यहेजकेल १८:४ और २० यह व्याख्या करता है: “जो प्राण [सोल] पाप करता है . . . वह स्वयं मर जायेगा।” यदि आप यहोशू १०:२८-३९ को पढ़े तो आप वहाँ सात स्थान ऐसे पायेंगे जहाँ प्राण के लिये यह कहा गया है कि वह प्राण जान से मार दिया गया अथवा नष्ट कर दिया गया।

८. हम कैसे मालूम करते हैं कि यीशु मसीह अर्थात्‌ एक मानव प्राण (सोल) मरा था?

यीशु मसीह के विषय में दी गयी एक भविष्यवाणी में बाइबल यह कहती है: “उसने अपना प्राण [सोल] मृत्यु में उंड़ेल दिया . . . और उसने बहुतों के पाप का बोझ स्वयं उठा लिया।” (यशायाह ५३:१२) छुड़ौती की शिक्षा यह सिद्ध करती है कि एक प्राण (सोल) (आदम) ने पाप किया था और कि मनुष्यों की छुड़ौती के लिये एक अनुरूप प्राण (सोल) (एक मनुष्य) का बलिदान होना आवश्‍यक था। मसीह ने ‘अपना प्राण मृत्यु में उंडेलकर’ छुड़ौती के मूल्य को प्रस्तुत किया था। यीशु जो मानव प्राण था, मर गया।

९. इन शब्दों का कि ‘आत्मा [स्पिरिट] स्वयं परमेश्‍वर के पास जिसने उसे दिया लौट जाता है,’ क्या अर्थ है?

जैसाकि हम देख चुके हैं कि “आत्मा” (स्पिरिट) हमारे प्राण (सोल) से भिन्‍न है। आत्मा हमारी जीवन-शक्‍ति (लैफ-फोर्स) है। यह जीवन-शक्‍ति मनुष्यों और पशुओं दोनों के शरीर की प्रत्येक कोशिका में पायी जाती है। वह श्‍वास द्वारा कायम अथवा जीवित रखी जाती है। तब इसका क्या अर्थ है जब बाइबल यह कहती है कि मृत्यु पर “मिट्टी, मिट्टी में मिल जाएगी . . . और आत्मा [स्पिरिट] स्वयं उस सच्चे परमेश्‍वर के पास जिसने उसे दिया, लौट जाएगी”? (सभोपदेशक १२:७) मृत्यु होने पर जीवन-शक्‍ति शरीर की सब कोशिकाओं को छोड़ने लगती है और शरीर सड़ने लगता है। परन्तु इसका यह अर्थ नहीं है, कि हमारी जीवन-शक्‍ति अक्षरशः पृथ्वी को छोड़कर अंतरिक्ष में होते हुए परमेश्‍वर के पास पहुंच जाती है। इसकी अपेक्षा, आत्मा इस अर्थ में परमेश्‍वर के पास लौट जाती है कि अब हमारे भविष्य के जीवन की आशा पूर्ण रूप से परमेश्‍वर पर निर्भर है। केवल उसकी सामर्थ्य से आत्मा अथवा जीवन-शक्‍ति वापस दी जा सकती है जिससे कि हम पुनःजीवित हो सकते हैं।—भजन संहिता १०४:२९, ३०.

लाज़र—एक पुरुष जो चार दिन से मरा हुआ था

१०. यद्यपि लाजर मर गया था फिर भी यीशु ने उसकी दशा के विषय में क्या कहा था?

१० चार दिन से मरे हुए लाज़र के साथ जो घटित हुआ था, वह हमें मरे हुओं की दशा को समझने में सहायता देता है। यीशु ने अपने शिष्यों से यह कहा था: “हमारा मित्र लाज़र सो गया है परन्तु मैं उसे नींद से जगाने के लिये वहाँ जा रहा हूँ।” तथापि शिष्यों ने यह उत्तर दिया: “हे प्रभु, यदि वह सो गया है तो वह अच्छा हो जाएगा।” इसपर यीशु ने उनको स्पष्ट रूप से बताया: “लाज़र मर गया है।” यीशु ने यह क्यों कहा कि लाज़र सो रहा था, जबकि वास्तव में वह मर गया था? आइये हम देखें।

११. यीशु ने मृत लाजर के लिये क्या किया था?

११ जब यीशु उस गांव के निकट पहुंचा जहाँ लाज़र रहता था, वहाँ उसे लाज़र की बहन मरथा मिली। शीघ्र वे अन्य लोगों के साथ उस क़ब्र के पास पहुंचे जहाँ लाज़र को रखा गया था। वह एक गुफ़ा थी और गुफ़ा के मुंह पर एक पत्थर रखा हुआ था। यीशु ने कहा: “इस पत्थर को हटाओ।” क्योंकि लाज़र को मरे हुए चार दिन हो गये थे, मरथा ने यह कहकर विरोध किया: “हे प्रभु, अब उसमें दुर्गन्ध आने लगी होगी।” परन्तु पत्थर को हटाया गया और यीशु ने पुकारा: “लाज़र, बाहर निकल आ!” और वह बाहर निकल आया! वह कफ़न के कपड़ों में लिपटा हुआ जीवित बाहर निकला। यीशु ने कहा: “कफ़न के कपड़े खोल दो और उसे जाने दो।”—यूहन्‍ना ११:११-४४.

१२, १३. (क) हम क्यों निश्‍चित हो सकते हैं कि लाजर जब मृत था तो वह अचेत था? (ख) यीशु ने क्यों कहा कि लाजर सो रहा था जबकि वास्तव में वह मृत था?

१२ अब आप इस बात पर विचार कीजिये: जब लाज़र चार दिनों से मरा पड़ा था तो उसकी स्थिति क्या थी? क्या वह स्वर्ग में था? वह एक अच्छा व्यक्‍ति था। फिर भी लाज़र ने अपने स्वर्ग में होने के विषय में कुछ नहीं कहा था, यदि वह वहाँ होता तो निश्‍चय कुछ कहता। नहीं, लाज़र वास्तव में मृत था जैसा कि यीशु ने भी कहा था कि वह मर गया था। तब यीशु ने अपने शिष्यों से पहले यह क्यों कहा था कि लाज़र केवल सो रहा था?

१३ यीशु जानता था कि मृत लाज़र अचेत था जैसा कि बाइबल कहती है: “मरे हुए कुछ भी नहीं जानते हैं।” (सभोपदेशक ९:५) परन्तु एक जीवित व्यक्‍ति गहरी नींद से जगाया जा सकता है। अतः यीशु यह प्रदर्शित करने जा रहा था, कि उस परमेश्‍वर की सामर्थ्य द्वारा जो उसे दी गयी थी उसका मित्र लाज़र मृत्यु की नींद से जगाया जा सकता था।

१४. मसीह की मरे हुओं को जी उठाने की शक्‍ति के ज्ञान से हमें क्या करने के लिए प्रेरणा मिलनी चाहिये?

१४ जब एक व्यक्‍ति अति गहरी नींद में होता है, तो उसे किसी भी बात का स्मरण नहीं रहता है। मरे हुओं की भी इसी समान दशा होती है। उन्हें किसी बात की भावना नहीं रहती है। वे अब अस्तित्व में नहीं होते हैं। परन्तु परमेश्‍वर के नियत समय में, वे मरे हुए लोग जिनको परमेश्‍वर द्वारा छुडौती प्राप्त हुई है, जीवित किये जायेंगे। (यूहन्‍ना ५:२८) निश्‍चय इस ज्ञान से हमें इस बात की प्रेरणा मिलनी चाहिये कि हम परमेश्‍वर का अनुग्रह प्राप्त करने के लिये इच्छुक हों। यदि हम ऐसा करते हैं, यद्यपि हम मर भी जायें तो परमेश्‍वर हमें याद करेगा और वह हमें जी उठाएगा।—१ थिस्सलुनीकियों ४:१३, १४.

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज ७६ पर तसवीरें]

आदम—मिट्टी से बनाया गया . . . मिट्टी में लौट गया

[पेज ७८ पर तसवीरें]

यीशु द्वारा लाजर को जी उठाये जाने से पहले उसकी क्या दशा थी?