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यीशु मसीह—क्या उसे परमेश्‍वर ने भेजा?

यीशु मसीह—क्या उसे परमेश्‍वर ने भेजा?

अध्याय ६

यीशु मसीह—क्या उसे परमेश्‍वर ने भेजा?

१, २. (क) इस बात का क्या प्रमाण है कि यीशु मसीह एक वास्तविक व्यक्‍ति था? (ख) यीशु के विषय में क्या प्रश्‍न उठाये जाते हैं?

आज लगभग सभी यीशु मसीह के बारे में जानते हैं। इतिहास पर किसी अन्य मनुष्य की अपेक्षा यीशु मसीह का प्रभाव अत्यधिक रहा है। वास्तव में दुनिया के अधिकतर भागों में जिस कैलेंडर का उपयोग होता है वह उस वर्ष पर आधारित है जिस में उसका जन्म हुआ ऐसा माना जाता है! जैसा कि वर्ल्ड बुक एनसाइक्लोपीडिया कहती है: “उस वर्ष से पूर्व की तिथियाँ बी.सी. अर्थात्‌ ईसा पूर्व के अधीन सूचीबद्ध हैं। और उस वर्ष के पश्‍चात्‌ की तिथियाँ ए.डी. अथवा एनो डोमीनी (हमारे प्रभु के वर्ष में) सूचीबद्ध हैं।”

यीशु एक काल्पनिक व्यक्‍ति नहीं था। वह वास्तव में मानव था जो पृथ्वी पर रहा था। एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका यह कहती है: “प्राचीन समय में मसीही धर्म के विरोधियों ने भी कभी यीशु के वास्तविक अस्तित्व पर सन्देह नहीं किया था।” अतः यीशु कौन था? क्या उसे वास्तव में परमेश्‍वर ने भेजा था? वह क्यों इतना सुप्रसिद्ध है?

वह पहले कहीं रह चुका था

३. (क) स्वर्गदूत के शब्दों के अनुसार मरियम किसके पुत्र को जन्म देगी? (ख) कुंआरी मरियम के लिए यीशु का उत्पन्‍न करना कैसे संभव हुआ था?

अन्य किसी मनुष्य के असमान यीशु एक कुंआरी से पैदा हुआ था। उस कुंआरी का नाम मरियम था। एक स्वर्गदूत ने उसके बालक के विषय में यह कहा था: “वह महान होगा और परम प्रधान का पुत्र कहलायेगा।” (लूका १:२८-३३; मत्ती १:२०-२५) परन्तु, कैसे एक स्त्री गर्भवती हो सकती है, जबकि उसका किसी पुरुष से कभी मैथुनिक सम्बन्ध नहीं हुआ है? यह परमेश्‍वर की पवित्र आत्मा के द्वारा सम्भव हुआ। यहोवा ने अपने शक्‍तिमान आत्मिक पुत्र के जीवन को स्वर्ग से कुंआरी मरियम के गर्भ में स्थानान्तरित किया। यह एक आश्‍चर्यजनक कार्य था! निश्‍चय वह व्यक्‍ति जिसने प्रथम स्त्री को बच्चे उत्पन्‍न करने की अद्‌भुत क्षमता सहित बनाया, एक स्त्री को मानव पिता के बिना सन्तान दे सकता है। बाइबल व्याख्या करती है: “जब नियत समय पूरा हुआ तब परमेश्‍वर ने अपने पुत्र को भेजा जो एक स्त्री से उत्पन्‍न हुआ।”—गलतियों ४:४.

४. (क) बालक के रूप में जन्म लेने से पहले यीशु किस तरह का जीवन व्यतीत करता था? (ख) यीशु ने यह प्रदर्शित करने के लिए कि वह इससे पहले स्वर्ग में रह चुका था, क्या कहा था?

अतः पृथ्वी पर मनुष्य बनकर पैदा होने से पहले यीशु स्वर्ग में एक शक्‍तिवान आत्मिक व्यक्‍ति था। उसकी परमेश्‍वर के समान एक आत्मिक देह थी जो मनुष्य के प्रति अदृश्‍य थी। (यूहन्‍ना ४:२४) यीशु स्वयं उसे उच्च स्थिति के विषय में अक्सर ज़िक्र किया जो वह स्वर्ग में रखता था। एक बार उसने यह प्रार्थना की: “हे पिता, तू अपने साथ मेरी महिमा उस महिमा से कर जो जगत के होने से पहले, मेरी तेरे साथ थी।” (यूहन्‍ना १७:५) उसने अपने श्रोताओं से यह भी कहा: “तुम नीचे के क्षेत्र से हो और मैं ऊपर के क्षेत्र से हूँ।” “यदि तुम मनुष्य के पुत्र को ऊपर जाते देखो जहाँ वह पहले था तो क्या हो?” “इब्राहीम के अस्तित्व में आने से पहले, मैं रहा हूँ।”—यूहन्‍ना ८:२३; ६:६२; ८:५८; ३:१३; ६:५१.

५. (क) क्यों यीशु “वचन”, “पहिलौठा” और “एकलौता” कहलाया गया था? (ख) वह कार्य क्या था जिसमें यीशु परमेश्‍वर का सहभागी था?

पृथ्वी पर आने से पहले यीशु परमेश्‍वर का वचन कहलाता था। यह उपाधि यह प्रदर्शित करती है, कि वह स्वर्ग में परमेश्‍वर का प्रतिनिधि था जो परमेश्‍वर की ओर से बोलता था। वह परमेश्‍वर का “पहिलौठा” और “एकलौता पुत्र” भी कहलाया गया है। (यूहन्‍ना १:१४; ३:१६; इब्रानियों १:६) इसका यह अर्थ है कि वह परमेश्‍वर के सब अन्य आत्मिक पुत्रों से पहले सृष्ट किया गया था, और वह केवल वही व्यक्‍ति है जिसे परमेश्‍वर ने स्वयं सृष्ट किया। बाइबल व्याख्या करती है कि यह “पहिलौठा” पुत्र अन्य सब वस्तुओं के सृष्ट करने में परमेश्‍वर का सहभागी रहा था। (कुलुस्सियों १:१५, १६) अतः जब परमेश्‍वर ने यह कहा: “आओ हम मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार बनायें,” तो वह अपने पुत्र से बात कर रहा था। हाँ, यही है वह व्यक्‍ति जो पृथ्वी पर बाद में आया और जिसने एक स्त्री से जन्म लिया था, जिसने सब वस्तुओं के सृष्ट करने में भाग लिया था! वह स्वर्ग में अपने पिता के साथ कई अज्ञात वर्षों तक रह चुका था!—उत्पत्ति १:२६; नीतिवचन ८:२२, ३०; यूहन्‍ना १:३.

पृथ्वी पर उसका जीवन

६. (क) यीशु के जन्म लेने से कुछ समय पहले और कुछ समय पश्‍चात्‌ क्या घटनाएं हुई थीं? (ख) यीशु का जन्म कहाँ हुआ था और वह कहाँ बड़ा हुआ था?

मरियम का विवाह यूसुफ नामक पुरुष के साथ होना तय हुआ था। परन्तु जब यूसुफ को यह मालूम हुआ कि वह गर्भवती थी तो उसने यही सोचा कि उसका किसी अन्य पुरुष के साथ मैथुनिक संबंध हुआ है, और इसलिये वह उससे विवाह नहीं करना चाहता था। तथापि, जब यहोवा ने उसे यह बताया, कि वह उसकी पवित्र आत्मा द्वारा इस बालक से गर्भवती हुई है तो यूसुफ ने मरियम को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया। (मत्ती १:१८-२०, २४, २५) बाद में जब वे बेथलेहम के नगर गये, तो यीशु का जन्म हुआ। (लूका २:१-७; मीका ५:२) जब यीशु अभी बालक ही था, तो राजा हेरोदेस ने उसे जान से मारने का प्रयत्न किया। परन्तु यहोवा ने यूसुफ को चेतावनी दी और वह अपने परिवार को लेकर मिस्र देश को भाग गया। राजा हेरोदेस के मरने के बाद यूसुफ और मरियम गलील के नाज़रथ नामक नगर में लौट आये। यहाँ वह बड़ा हुआ।—मत्ती २:१३-१५, १९-२३.

७. (क) जब यीशु १२ वर्ष का था तो क्या घटना हुई? (ख) जब यीशु बड़ा हो रहा था तो उसने कौनसा काम सीखा?

जब यीशु १२ वर्ष का हुआ था, तो वह अपने परिवार के साथ फसह के विशेष उत्सव में सम्मिलित होने के लिये यरूशलेम गया। जब वह वहाँ था तो उसने मन्दिर में शिक्षकों का उपदेश सुनने और उनसे प्रश्‍न करने में तीन दिन व्यतीत किये। वे सब लोग जो उसकी बात सुन रहे थे, आश्‍चर्यचकित थे कि वह कितना अधिक ज्ञान रखता था। (लूका २:४१-५२) यीशु नाज़रथ में जवान हुआ, और उसने वहाँ बढ़ई का काम सीखा। निःसन्देह वह यह काम करने के लिये अपने पालक पिता यूसुफ द्वारा शिक्षित किया गया था, जो स्वयं एक बढ़ई था।—मरकुस ६:३; मत्ती १३:५५.

८. जब यीशु ३० वर्ष का हुआ तो क्या घटना हुई?

तीस वर्ष की आयु में, यीशु के जीवन में एक महान परिवर्तन हुआ। वह यूहन्‍ना बपतिस्मा देनेवाले के पास गया और उससे बपतिस्मा लेने के लिये निवेदन किया, अर्थात्‌ यरदन नदी के पानी में पूर्ण रूप से डुबकी दी जाय। बाइबल यह सूचना देती है: “यीशु बपतिस्मा लेने के तुरन्त पश्‍चात्‌ पानी में से ऊपर आया; और देखो! आकाश खुल गया और उसने परमेश्‍वर की आत्मा को कबूतर के समान उतरते और अपने ऊपर आते देखा। और देखो! इसके अतिरिक्‍त स्वर्ग से यह वाणी भी हुई: ‘यह मेरा प्रिय पुत्र है जिससे मैं अत्यन्त प्रसन्‍न हूँ।’” (मत्ती ३:१६, १७) यूहन्‍ना के मन में इस विषय में कोई शंका नहीं हुई कि परमेश्‍वर ने यीशु को भेजा था।

९. (क) यीशु वास्तव में कब मसीह बना और क्यों उसी समय? (ख) अपने बपतिस्मा द्वारा यीशु क्या करने के लिए अपने आपको प्रस्तुत कर रहा था?

यीशु पर अपनी पवित्र आत्मा डाल कर यहोवा ने अपने आनेवाले राज्य का राजा बनने के लिये उसका अभिषेक अर्थात्‌ उसको नियुक्‍त कर रहा था। इस प्रकार आत्मा द्वारा अभिषिक्‍त होकर यीशु “मसीहा” अथवा “मसीह” बना, जिन शब्दों का अर्थ यूनानी और इब्रानी भाषा में “अभिषिक्‍त” है। अतः वह वास्तव में यीशु मसीह अथवा यीशु अभिषिक्‍त बना। अतः उसके प्रेरित पतरस ने यह कहा कि “परमेश्‍वर ने किस रीति से नाज़रथ के यीशु को पवित्र आत्मा और सामर्थ्य से अभिषिक्‍त किया।” (प्रेरितों के काम १०:३८) इसके अतिरिक्‍त पानी में अपने बपतिस्मा द्वारा, यीशु परमेश्‍वर के प्रति अपने आपको वह कार्य जिसे करने के लिये परमेश्‍वर ने उसे पृथ्वी पर भेजा था, प्रस्तुत कर रहा था। वह महत्वपूर्ण कार्य क्या था?

वह पृथ्वी पर क्यों आया

१०. कौनसी सच्चाइयाँ बताने के लिए यीशु पृथ्वी पर आया था?

१० इस बात की व्याख्या करते हुए कि वह पृथ्वी पर क्यों आया था, यीशु ने रोमी राज्यपाल पिन्तुस पीलातुस से यह कहा था: “मैंने इसलिये जन्म लिया और इसलिये इस उद्देश्‍य से जगत में आया हूँ कि सत्य की गवाही दूँ।” (यूहन्‍ना १८:३७) परन्तु वे क्या विशेष सत्य थे जिसको प्रकट कराने के लिये यीशु पृथ्वी पर भेजा गया था? प्रथम, वे सत्य जो उसके स्वर्गीय पिता के विषय में थे। उसने अपने अनुयायियों को यह प्रार्थना करने की शिक्षा दी कि उसके पिता का नाम “पवित्र माना जाय।” (मत्ती ६:९; किंग जेम्स वर्शन) और उसने यह प्रार्थना की: “मैंने तेरा नाम उन मनुष्यों पर प्रकट किया जिनको तूने मुझे दिया।” (यूहन्‍ना १७:६) इसके अतिरिक्‍त उसने यह भी कहा: “मेरे लिये परमेश्‍वर के राज्य के सुसमाचार की घोषणा करना आवश्‍यक है क्योंकि मैं इसी लिए भेजा गया हूँ।”—लूका ४:४३.

११. (क) क्यों यीशु अपने काम को इतना महत्वपूर्ण समझता था? (ख) क्या करने से यीशु ने अपने आपको पीछे नहीं रखा? इसलिए हमें क्या करना चाहिए?

११ अपने पिता के नाम और उसके राज्य के विषय में प्रकट कराने का यह काम यीशु के लिये कितना महत्वपूर्ण था? उसने अपने शिष्यों से कहा: “मेरा भोजन यह है कि मैं उसकी जिसने मुझे भेजा, इच्छा पूरी करूँ और उसका कार्य पूरा करूँ।” (यूहन्‍ना ४:३४) यीशु परमेश्‍वर के कार्य को भोजन के समान क्यों महत्वपूर्ण समझता था? इसलिये कि राज्य वह साधन है जिसके द्वारा परमेश्‍वर मानवजाति के लिये अपने अद्‌भुत उद्देश्‍यों को पूरा करेगा। यही है वह राज्य जो सारी दुष्टता का अन्त करेगा और यहोवा के नाम को उस निन्दा से जो उस नाम पर आरोपित हुई है स्वच्छ करेगा। (दानिय्येल २:४४; प्रकाशितवाक्य २१:३, ४) अतः यीशु परमेश्‍वर का नाम और राज्य के विषय में बताने से कभी पीछे नहीं हटा। (मत्ती ४:१७; लूका ८:१; यूहन्‍ना १७:२६; इब्रानियों २:१२) उसने हमेशा सच बात कही चाहे वह लोकप्रिय होती थी या नहीं। इस प्रकार उसने एक उदाहरण प्रस्तुत किया जिसका हमें यदि हम परमेश्‍वर को प्रसन्‍न करना चाहते हैं, अनुसरण करना चाहिये।—१ पतरस २:२१.

१२. किस अन्य महत्वपूर्ण कारण से यीशु पृथ्वी पर आया था?

१२ फिर भी हमारे लिये परमेश्‍वर के राज्य के शासन के अधीन अनन्त जीवन की प्राप्ति को सम्भव करने के लिये यीशु को मौत में अपना जीवन-लहू देना पड़ा था। जैसा कि यीशु के दो प्रेरितों ने कहा: “अब हम उसके लहू के द्वारा धर्मी ठहरे हैं।” “[परमेश्‍वर के] पुत्र यीशु का लहू हमें सब पापों से शुद्ध करता है।” (रोमियों ५:९; १ यूहन्‍ना १:७) अतः यीशु के पृथ्वी पर आने का एक महत्वपूर्ण कारण यह था कि वह हमारे लिये जान दे। उसने कहा: “मनुष्य का पुत्र इसलिये नहीं आया, कि उसकी सेवा की जाय, परन्तु इसलिये आया, कि वह सेवा करे और बहुतों के बदले में एक छुड़ौती के रूप में अपने प्राण [या जीवन] दे।” (मत्ती २०:२८) परन्तु इसका क्या अर्थ है, कि मसीह ने अपना जीवन “एक छुड़ौती” के रूप में दिया? मृत्यु में उसके जीवन-लहू का उंड़ेला जाना हमारे उद्धार के लिये क्यों आवश्‍यक था?

उसने अपना जीवन एक छुड़ौती के रूप में दिया

१३. (क) एक छुड़ौती क्या है? (ख) उस छुड़ौती का मूल्य क्या है जो यीशु ने हमें पाप और मृत्यु से छुटकारे के लिए दिया?

१३ शब्द “छुड़ौती” का प्रयोग अक्सर उस समय किया जाता है जब किसी का अपहरण होता है। अपहरणकर्ता जब किसी व्यक्‍ति को गिरफ्तार कर लेता है तो उसके बाद वह शायद यह कहे कि वह उस व्यक्‍ति को उस समय छोड़ेगा जब एक निश्‍चित धनराशि छुड़ौती के रूप में दी जायेगी। अतः छुडौती वह वस्तु है जो बंदीस्थिति में पड़े व्यक्‍ति को छुड़ाने के लिये दी जाती है। यह वह वस्तु है जो इसलिये दी जाती है कि अपहृत व्यक्‍ति अपनी जान को न खो दे। यीशु का पूर्ण मानव जीवन, मानवजाति को पाप और मृत्यु के दासत्व से छुड़ाने के लिये दिया गया था। (१ पतरस १:१८, १९; इफिसियों १:७) इस प्रकार की मुक्‍ति की आवश्‍यकता क्यों हुई?

१४. क्यों यीशु द्वारा दी गई छुड़ौती की आवश्‍यकता थी?

१४ इसकी आवश्‍यकता इसलिये हुई क्योंकि आदम ने, जो हम सबका पूर्वज था, परमेश्‍वर के विरुद्ध विद्रोह किया था। उसके अधर्मी कार्य ने इस प्रकार उसे एक पापी बना दिया क्योंकि बाइबल यह व्याख्या देती है कि “पाप व्यवस्था का विरोध है।” (१ यूहन्‍ना ३:४; ५:१७) इसके परिणामस्वरूप वह परमेश्‍वर के अनन्त जीवन के वरदान को प्राप्त करने के योग्य नहीं था। (रोमियों ६:२३) अतः आदम ने परादीस रूपी पृथ्वी पर अपने आप के लिये पूर्ण मानव जीवन खो दिया। उसने अपनी सन्तान के लिये भी जो वह उत्पन्‍न करेगा अद्‌भुत भविष्य खो दिया। शायद आप यह पूछे कि ‘क्यों उसकी सारी सन्तान को मरना पड़ा जबकि केवल आदम ने ही पाप किया था?’

१५. चूँकि आदम जिसने पाप किया था तो क्यों उसके बच्चों को दुःख उठाना और मरना पड़ा?

१५ इसका कारण यह था कि जब आदम पापी बन गया, तो उसने अपनी संतान को जिनमें अब तक के सब जीवित मनुष्य सम्मिलित है; पाप और मृत्यु विरासत में दी। (अय्यूब १४:४; रोमियों ५:१२) बाइबल कहती है: “सब ने पाप किया है और वे परमेश्‍वर की महिमा से रहित हैं।” (रोमियों ३:२३; १ राजा ८:४६) भक्‍त दाऊद ने भी यह कहा: “मैं अधर्म के साथ उत्पन्‍न हुआ और पाप के साथ अपनी माता के गर्भ में पड़ा।” (भजन संहिता ५१:५) अतः लोग उस पाप के कारण मर रहे हैं जो उन्होंने आदम से विरासत में पाया। तब यीशु के जीवन बलिदान द्वारा पाप और मृत्यु के दासत्व से सब लोगों का छुड़ाया जाना कैसे संभव था?

१६. (क) छुड़ौती प्रस्तुत करके परमेश्‍वर ने कैसे अपने उस नियम के लिए आदर प्रदर्शित किया कि ‘जान के बदले जान दी जानी चाहिये’? (ख) क्यों यीशु ही केवल वह मनुष्य था जो छुड़ौती का मूल्य दे सकता था?

१६ इसमें इस्राएल राष्ट्र के लिये परमेश्‍वर के नियम में दिया हुआ एक कानूनी सिद्धान्त अंतर्ग्रस्त था। वह यह कहता है कि ‘जान के बदले जान दी जानी चाहिये।’ (निर्गमन २१:२३; व्यवस्थाविवरण १९:२१) अपनी अवज्ञाकारिता के कारण पूर्ण मनुष्य आदम ने इस परादीस रूपी पृथ्वी पर अपने लिये व अपनी सन्तान के लिये सिद्ध जीवन खो दिया। यीशु मसीह ने उस वस्तु को वापस खरीदने के लिये जो आदम ने खो दिया था, अपना सिद्ध जीवन दिया। हाँ, यीशु ने “अपने आपको सबके लिये अनुरूप छुड़ौती के रूप में दे दिया।” (१ तीमुथियुस २:५, ६) क्योंकि वह एक सिद्ध मनुष्य था जैसाकि आदम भी था, यीशु “अन्तिम आदम” कहलाया गया है। (१ कुरिन्थियों १५:४५) यीशु की अपेक्षा कोई अन्य मनुष्य यह छुड़ौती प्रस्तुत नहीं कर सकता था। यह इसलिये कि यीशु केवल अब तक वही मनुष्य रहा है जो परमेश्‍वर के सिद्ध मानव पुत्र के रूप में आदम के तुल्य था।—भजन संहिता ४९:७; लूका १:३२; ३:३८.

१७. कब परमेश्‍वर को छुड़ौती का मूल्य दिया गया?

१७ यीशु ३३/वर्ष की आयु में मरा। परन्तु उसकी मृत्यु के बाद तीसरे दिन उसे पुनर्जीवित किया गया। चालीस दिन बाद वह स्वर्ग को लौट गया। (प्रेरितों के काम १:३, ९-११) वहाँ, एक बार फिर आत्मिक व्यक्‍ति के रूप में वह “हमारे लिये परमेश्‍वर के सम्मुख” अपनी बलिदान रूपी छुड़ौती का मूल्य लेकर प्रस्तुत हुआ। (इब्रानियों ९:१२, २४) उस समय स्वर्ग में परमेश्‍वर को यह छुड़ौती का मूल्य दिया गया। अब मानवजाति के लिये उद्धार उपलब्ध था। परन्तु कब उसके लाभ प्राप्त होंगे?

१८. (क) कैसे हम अब भी उस छुड़ौती से लाभान्वित हो सकते हैं? (ख) किन बातों को भविष्य में यह छुड़ौती संभव कर सकती है?

१८ अब भी यीशु का छुड़ौती बलिदान हमें लाभ पहुंचा सकता है। कैसे? उसपर विश्‍वास करके हम परमेश्‍वर के सम्मुख एक स्वच्छ स्थिति को प्राप्त कर सकते हैं और उसके प्रेममय और स्नेहशील सुरक्षा के अधीन आ सकते हैं। (प्रकाशितवाक्य ७:९, १०, १३-१५) हममें से अनेकों ने परमेश्‍वर के विषय में जानकारी प्राप्त करने से पहले भयंकर पाप किये होंगे। और अब भी हमसे गलतियाँ होती हैं और कभी-कभी वे बड़ी गंभीर होती हैं। परन्तु हम छुड़ौती के आधार पर परमेश्‍वर से स्वेच्छा से इस विश्‍वास के साथ क्षमा-याचना कर सकते हैं कि वह हमारी प्रार्थना अवश्‍य सुनेगा। (१ यूहन्‍ना २:१, २; १ कुरिन्थियों ६:९-११) इसके अतिरिक्‍त भविष्य में यह छुड़ौती बलिदान हमारे लिये न्याययुक्‍त नयी व्यवस्था में परमेश्‍वर का अनन्त जीवन का वरदान प्राप्त करने के लिये मार्ग खोल देगा। (२ पतरस ३:१३) उस समय वे सब जो उस छुड़ौती बलिदान में विश्‍वास करते हैं पाप और मृत्यु के दासत्व के पूर्ण रूप से छुटकारा पा लेंगे। वे सिद्धता में सर्वदा जीवित रहने की प्रत्याशा कर सकते हैं!

१९. (क) छुड़ौती के प्रबन्ध का आप पर क्या प्रभाव पड़ा है? (ख) प्रेरित पौलुस ने कैसे व्याख्या की कि हमें छुड़ौती के लिए अपनी कृतज्ञता प्रदर्शित करनी चाहिये?

१९ आप छुड़ौती बलिदान के विषय में मालूम करके कैसा महसूस करते हैं? क्या आपका हृदय यहोवा परमेश्‍वर के प्रति यह जानकर उत्साह से नहीं भर जाता है कि वह आपकी इतनी परवाह करता है कि उसने आपके लिये अपने प्रिय पुत्र को बलिदान में दे दिया? (यूहन्‍ना ३:१६; १ यूहन्‍ना ४:९, १०) परन्तु उस प्रेम पर भी विचार कीजिये जो मसीह ने प्रकट किया। वह स्वेच्छा से हमारे लिये प्राण देने पृथ्वी पर आया। क्या हमें उसके लिये कृतज्ञ नहीं होना चाहिये? प्रेरित पौलुस ने व्याख्या की कि हमें अपनी कृतज्ञता को कैसे प्रकट करना चाहिये जब उसने यह कहा: “वह इस निमित सबके लिये मरा जो जीवित हैं वे आगे को अपने लिये न जीयें, परन्तु उसके लिये जीयें जो उनके लिये मरा और फिर जी उठाया गया। (२ कुरिन्थियों ५:१४, १५) क्या आप परमेश्‍वर और उसके स्वर्गीय पुत्र यीशु मसीह की सेवा में अपना जीवन व्यतीत करके अपनी कृतज्ञता का प्रदर्शन करेंगे?

यीशु ने चमत्कार क्यों किये

२०. यीशु द्वारा कोढ़ी को ठीक होने की घटना से हम उसके विषय में क्या सीखते हैं?

२० यीशु उन चमत्कारों के लिये जो उसने संपन्‍न किये, सुप्रसिद्ध है। वह उन लोगों के लिये जो दुःख में थे, गहरी सहानुभूति रखता था, और वह उनकी सहायता करने के लिये अपनी ईश्‍वरदत्त सामर्थ्य का प्रयोग करने के लिये उत्सुक रहता था। उदाहरणतया, एक व्यक्‍ति जो कोढ़ के भयंकर रोग से ग्रस्त था उसके पास आया और कहा: “यदि तू चाहे तो तू मुझे शुद्ध कर सकता है।” यीशु को उस पर “दया आयी और उसने अपना हाथ बढ़ाया और उसे छूकर कहा: “मैं यही चाहता हूँ। तू शुद्ध हो जा।” और वह रोगग्रस्त पुरुष स्वस्थ हो गया!—मरकुस १:४०-४२.

२१. यीशु ने लोगों की भीड़ की कैसे सहायता की?

२१ एक दूसरी बाइबल घटना पर विचार कीजिये और लोगों के प्रति यीशु की उस स्नेहशील भावना की कल्पना कीजिये जो वहाँ वर्णित है: “तब भीड़ की भीड़ उसके पास आयी जिनमें लंगड़े, टुंडे, गूंगे, अंधे और अनेकों अन्य लोग थे और उन्होंने उनको लाकर उसके पैरों पर डाल दिया और उसने उन्हें अच्छा कर दिया जिससे कि भीड़ आश्‍चर्य करने लगी। जब उन्होंने गूंगों को बोलते, लंगड़ों को चलते और अन्धों को देखते देखा और वे इस्राएल के परमेश्‍वर की प्रशंसा करने लगे।”—मत्ती १५:३०, ३१.

२२. किस बात से प्रदर्शित होता है कि यीशु उन लोगों की जिनकी उसने सहायता की, वास्तव में परवाह करता था?

२२ यीशु वास्तव में उन दुःखी लोगों की परवाह करता था और वस्तुतः उनकी सहायता करना चाहता था। यह इस बात से देखा जा सकता है जो उसने चमत्कार संपन्‍न करने के बाद अपने शिष्यों से कही। उसने कहा: “मुझे इस भीड़ पर तरस आता है क्योंकि वे तीन दिन से मेरे साथ है और उनके पास खाने के लिये कुछ नहीं, मैं उन्हें भूखा विदा करना नहीं चाहता हूँ। कहीं ऐसा न हो कि वे मार्ग में थककर चूर हो जायें।” अतः यीशु ने केवल सात रोटियों और कुछ छोटी मछलियों से आश्‍चर्यजनक रीति से “स्रियों और बालकों के अतिरिक्‍त चार हज़ार पुरुषों को” भोजन खिलाया।—मत्ती १५:३२-३८.

२३. किस बात ने यीशु को विधवा के मृत पुत्र को पुनरुत्थित करने के लिए प्रेरित किया?

२३ एक दूसरे अवसर पर यीशु को मार्ग में एक अन्त्येष्टि का जुलूस मिला जो नाईन नगर से बाहर आ रहा था। बाइबल यह कहकर उसका विवरण देती है: “लोग एक मृत पुरुष को बाहर लिये जा रहे थे जो अपनी माँ का एकलौता पुत्र था। और वह विधवा थी। . . . और जब प्रभु ने उसे देखा तो उसे उस पर तरस आया।” उसने अगाध रूप से उसके दुःख को महसूस किया। अतः उस मृत शरीर को संबोधित करते हुए यीशु ने उसको हुक्म दिया: “हे जवान, मैं तुझसे कहता हूँ, उठ!” आश्‍चर्य पर आश्‍चर्य यह हुआ! “तब वह मृत पुरुष उठ बैठा और बोलने लगा, और यीशु ने उसे उसकी माँ को सौंप दिया।” ज़रा सोचिये उसकी माँ ने कैसा महसूस किया होगा! आप भी कैसा महसूस करते? इस असाधारण घटना का समाचार दूर दूर फैल गया। इसमें कोई सन्देह नहीं कि यीशु इतना सुप्रसिद्ध है।—लूका ७:११-१७.

२४. यीशु के चमत्कारों ने भविष्य के विषय में क्या प्रदर्शित किया?

२४ तो भी उन चमत्कारों से जो यीशु ने संपन्‍न किये, केवल अस्थायी रूप से लाभ प्राप्त हुआ था। जिन लोगों को उसने अच्छा किया था उन्होंने फिर कुछ शारीरिक पीड़ाएं अनुभव कीं। और जिनको उसने जी उठाया था वे फिर मर गये। परन्तु यीशु के चमत्कारों ने यह सिद्ध किया कि उसे परमेश्‍वर ने भेजा था और वह वास्तव में परमेश्‍वर का पुत्र था। और उनसे यह भी सिद्ध हुआ कि परमेश्‍वर की सामर्थ्य से समस्त मानव समस्याएं हल की जा सकती हैं। हाँ, उन चमत्कारों से छोटे पैमाने पर यह प्रदर्शित हुआ कि परमेश्‍वर के राज्य के अधीन पृथ्वी पर क्या स्थिति होगी। उस समय भूखों को भोजन मिलेगा, बीमार अच्छे हो जायेंगे और यहाँ तक कि मरे हुए लोग भी जी उठाये जायेंगे! और फिर कभी बीमारी, मृत्यु और अन्य संकटों से दुःख उत्पन्‍न नहीं होगा। और वह क्या ही महान आशीष होगी!—प्रकाशितवाक्य २१:३, ४; मत्ती ११:४, ५.

परमेश्‍वर के राज्य का शासक

२५. किन तीन भागों में यीशु का जीवन विभाजित किया जा सकता है?

२५ परमेश्‍वर के पुत्र के जीवन के तीन भाग हैं। प्रथम, अज्ञात संख्या के वे वर्ष जो उसने मनुष्य बनने से पहले अपने पिता के साथ स्वर्ग में व्यतीत किये थे। फिर उसके जन्म के पश्‍चात्‌ ३३/वर्ष जो उसने पृथ्वी पर व्यतीत किये। और अब वह एक आत्मिक व्यक्‍ति के रूप में स्वर्ग में अपना जीवन व्यतीत कर रहा है। अपने जी उठाये जाने के समय से, स्वर्ग में अब उसकी क्या स्थिति है?

२६. यीशु ने पृथ्वी पर वफादार रहकर स्वयं को क्या बनने के योग्य सिद्ध किया था?

२६ स्पष्ट है कि यीशु को एक राजा बनना था। स्वर्गदूत ने भी मरियम के प्रति यह घोषणा की थी: “वह राजा के रूप में सदा राज्य करेगा . . . और उसके राज्य का कभी अन्त न होगा।” (लूका १:३३) अपनी पार्थिव सेवा के दौरान वह प्रत्येक समय परमेश्‍वर के राज्य के विषय में लोगों को बताता रहता था। उसने अपने शिष्यों को यह प्रार्थना करना सिखाया: “तेरा राज्य आये। तेरी इच्छा जैसी स्वर्ग में पूरी होती है वैसे पृथ्वी पर भी हो।” और उनको यह प्रेरणा देता था कि “पहले उसके राज्य की खोज करते रहो।” (मत्ती ६:१०, ३३) पृथ्वी पर वफ़ादार रहकर यीशु ने यह सिद्ध किया कि वह परमेश्‍वर के राज्य का राजा बनने योग्य था। क्या उसने उस समय से जब वह स्वर्ग लौटा था, राजा के रूप में राज्य करना आरम्भ कर दिया था?

२७. (क) स्वर्ग को अपनी वापसी के पश्‍चात्‌ यीशु ने क्या किया? (ख) परमेश्‍वर के राज्य के राजा के रूप में यीशु का पहला कार्य क्या था?

२७ नहीं, उसने राज्य करना आरम्भ नहीं किया था। प्रेरित पौलुस भजन संहिता ११०:१ का प्रसंग देते हुए यह व्याख्या देता है: “पर यह व्यक्‍ति [यीशु] पापों के बदले एक ही बलिदान सर्वदा के लिये चढ़ाकर परमेश्‍वर के दाहिने हाथ जा बैठा और उस समय से इस बात की प्रतीक्षा कर रहा है कि उसके शत्रु उसके पांव के नीचे की चौकी बनें।” (इब्रानियों १०:१२, १३) यीशु यहोवा के इस आदेश की प्रतीक्षा कर रहा था: “तू अपने शत्रुओं के मध्य शासन कर।” (भजन संहिता ११०:२) जब वह समय आया तो उसने स्वर्ग को शैतान और उसके दूतों से स्वच्छ करना आरंभ किया। स्वर्ग में जो लड़ाई हुई उसका परिणाम इन शब्दों में वर्णित है: “अब हमारे परमेश्‍वर का उद्धार और सामर्थ्य और राज्य और इसके मसीह का अधिकार प्रकट हुआ है क्योंकि हमारे भाइयों पर दोष लगानेवाला जो रात दिन हमारे परमेश्‍वर के सामने उनपर दोष लगाया करता था गिरा दिया गया है!” (प्रकाशितवाक्य १२:१०) जैसाकि इस पुस्तक के एक प्रारंभिक अध्याय में हम देख चुके हैं कि वास्तविकताएं यह प्रदर्शित करती हैं कि स्वर्ग में यह लड़ाई हो चुकी है और यीशु मसीह अपने शत्रुओं के मध्य अब शासन कर रहा है।

२८. (क) मसीह शीघ्र क्या करेगा? (ख) उसके द्वारा सुरक्षा प्राप्त करने के लिए हमें क्या करना चाहिये?

२८ शीघ्र ही मसीह और उसके स्वर्गदूत पृथ्वी पर से सब वर्तमान सांसारिक सरकारों को हटाने के लिये कार्यवाही करेंगे। (दानिय्येल २:४४; प्रकाशितवाक्य १७:१४) बाइबल यह कहती है कि उसके पास “एक तेज़ लम्बी तलवार हैं जिससे वह सब राष्ट्रों को मारे और एक लोहे के राजदंड से उनपर राज्य करेगा।” (प्रकाशितवाक्य १९:११-१६) यह सिद्ध करने के लिये कि हम इस आनेवाले विनाश के दौरान सुरक्षित रहने के योग्य हैं हमें यीशु मसीह में विश्‍वास व्यक्‍त करते रहना चाहिये (यूहन्‍ना ३:३६) हमें उसका शिष्य बनना चाहिये और उसे अपना स्वर्गीय राजा मानकर अपने आपको उसके अधीन करना चाहिये। क्या आप ऐसा करेंगे?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज ५८ पर तसवीरें]

यीशु ने बपतिस्मा लेने और यहोवा द्वारा अभिषिक्‍त होने के लिये अपना बढ़ई का काम छोड़ा था

[पेज ६३ पर तसवीरें]

यीशु पूर्ण मनुष्य आदम के तुल्य था

[पेज ६४ पर तसवीरें]

यीशु दया के कारण बीमारों और भूखों की सहायता करता था

[पेज ६७ पर तसवीरें]

मरे हुओं को जी उठाकर यीशु ने यह प्रदर्शित किया कि वह बड़े पैमाने पर वही करेगा जब परमेश्‍वर के राज्य का शासन होगा