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शैतान की दुनिया के लिये या परमेश्‍वर की नयी व्यवस्था के लिये?

शैतान की दुनिया के लिये या परमेश्‍वर की नयी व्यवस्था के लिये?

अध्याय २५

शैतान की दुनिया के लिये या परमेश्‍वर की नयी व्यवस्था के लिये?

१. क्या वास्तविक रूप से सिद्ध करता है कि आप परमेश्‍वर की नयी व्यवस्था के लिए हैं?

क्या आप परमेश्‍वर की न्याययुक्‍त नयी व्यवस्था के लिये हैं और क्या आप चाहते हैं कि वह आये? क्या आप शैतान के विरुद्ध हैं और क्या आप उसकी दुनिया का अन्त चाहते हैं? आप शायद दोनों प्रश्‍नों का उत्तर हाँ में दें। क्या केवल हाँ कहना काफी है? एक पुरानी कहावत है कि शब्दों की अपेक्षा कार्य ज्यादा बोलते हैं। यदि आप परमेश्‍वर की नयी व्यवस्था में विश्‍वास रखते हैं तो जिस रीति से आप अपना जीवन व्यतीत करते हैं वह वास्तव में आपके विश्‍वास को प्रमाणित करेगा।—मत्ती ७:२१-२३; १५:७, ८.

२. (क) वे दो मालिक कौन हैं जिनकी हम सेवा कर सकते हैं? (ख) किससे प्रदर्शित होता है कि हम किसके दास अथवा सेवक हैं?

वास्तविकता यह है कि आपकी जीवन-रीति दो मालिकों में केवल एक को प्रसन्‍न कर सकती है। आप या तो यहोवा की सेवा कर रहे हैं या शैतान अर्थात्‌ इबलीस की। बाइबल में दिया हुआ यह सिद्धान्त इसका मूल्यांकन करने में हमारी सहायता करता है। वह यह कहता है: “क्या तुम नहीं जानते कि जिसकी आज्ञा मानने के लिये तुम उसके दास के रूप में अपने आपको प्रस्तुत करते हो तुम उसी के दास हो, क्योंकि तुम उसकी आज्ञा का पालन करते हो?” (रोमियों ६:१६) आप किसकी आज्ञा का पालन करते हैं? किसकी इच्छा आप पूरी करते हैं? चाहे आपका जो भी उत्तर हो, यदि आप दुनिया की अधर्मी रीतियों का अनुसरण करते हैं तो आप सच्चे परमेश्‍वर यहोवा की सेवा नहीं कर सकेंगे।

शैतान की दुनिया—क्या है वह?

३. (क) बाइबल किसको संसार का शासक प्रदर्शित करती है? (ख) प्रार्थना में यीशु ने कैसे संसार और अपने शिष्यों के मध्य भिन्‍नता प्रदर्शित की थी?

यीशु ने शैतान को “इस दुनिया का हाकिम” कहा। और प्रेरित यूहन्‍ना ने कहा कि “सारा संसार उस दुष्ट के वश में पड़ा है।” (यूहन्‍ना १२:३१; १ यूहन्‍ना ५:१९) ग़ौर कीजिये कि परमेश्‍वर से अपनी प्रार्थना में यीशु ने अपने शिष्यों को शैतान की दुनिया का भाग बताकर सम्मिलित नहीं किया था। उसने कहा: “मैं उनके [अपने शिष्यों के] लिए बिनती करता हूँ मैं संसार के लिये बिनती नहीं करता हूँ . . . जैसे मैं संसार का भाग नहीं।” (यूहन्‍ना १७:९, १६; १५:१८, १९) इससे यह बात स्पष्ट हो जाती है कि सच्चे मसीहियों को संसार से अलग होकर रहना है।

४. (क) यूहन्‍ना ३:१६ में यह शब्द “संसार” किसको इंगित करता है? (ख) वह “संसार” क्या है जिससे मसीह के अनुयायियों को अलग रहना आवश्‍यक है?

परन्तु यीशु ने जब शब्द “संसार” का प्रयोग किया तो वह उससे किस बात का प्रसंग दे रहा था? बाइबल में शब्द “संसार” का अर्थ कभी-कभी केवल सामान्य रूप से मानवजाति से है। परमेश्‍वर ने अपने पुत्र को मानवजाति के इस संसार के लिये अपना जीवन छुड़ौती के रूप में देने के लिये भेजा। (यूहन्‍ना ३:१६) इस पर भी शैतान ने अधिकतर मनुष्यों को परमेश्‍वर के विरुद्ध व्यवस्थित किया है। अतः शैतान की दुनिया यह व्यवस्थित मानव समाज है जो परमेश्‍वर के दृश्‍य संगठन के बाहर या उससे अलग अस्तित्व में है। यह है वह दुनिया जिससे सच्चे मसीहियों का अलग रहना आवश्‍यक है—याकूब १:२७.

५. संसार का महत्वपूर्ण भाग क्या है और बाइबल में उसका प्रतिनिधित्व किसके द्वारा किया गया है?

शैतान की दुनिया—उसका व्यवस्थित मानव समाज—अनेक प्रकार के एक दूसरे से संबंधित भागों से बनी है। उसका एक महत्वपूर्ण भाग मिथ्या धर्म है। बाइबल में मिथ्या धर्म का प्रतिनिधित्व एक “बड़ी वेश्‍या” द्वारा हुआ है जिसका नाम “महाबाबुल” है। वह सांसारिक साम्राज्य है जैसा कि वह इस वास्तविकता द्वारा प्रदर्शित हुआ है कि “पृथ्वी के सब राजाओं के ऊपर उसका राज्य है।” (प्रकाशितवाक्य १७:१, ५, १८) परन्तु किस बात से यह प्रमाणित होता है कि महाबाबुल एक धार्मिक सांसारिक साम्राज्य है?

६, ७. (क) किस बात से सिद्ध होता है कि महाबाबुल एक धार्मिक साम्राज्य है? (ख) राजनैतिक सरकारों से मिथ्या धर्म का क्या संबंध रहा है?

क्योंकि “पृथ्वी के राजाओं” के विषय में कहा गया है कि वे उस वेश्‍या के साथ ‘व्यभिचार करते हैं’ इसलिये महाबाबुल एक राजनीतिक सांसारिक साम्राज्य नहीं हो सकता। और क्योंकि “पृथ्वी के व्यापारी” फासले पर खड़े होकर उसके विनाश पर शोक मनाते हैं, इसलिये वेश्‍या रूपी महाबाबुल एक व्यापारिक सांसारिक साम्राज्य नहीं हो सकता। (प्रकाशितवाक्य १७:२; १८:१५) तथापि वह वेश्‍या वास्तव में एक धार्मिक साम्राज्य है, बाइबल के इस कथन से प्रदर्शित होता है कि उसके “आत्मविद्या संबंधी कार्यों द्वारा सारी जातियाँ पथभ्रष्ट हुईं।”—प्रकाशितवाक्य १८:२३.

“वन्य पशु” से महाबाबुल का संबंध यह सिद्ध करता है कि महाबाबुल एक धार्मिक साम्राज्य है। बाइबल में इस प्रकार के पशु राजनीतिक हुकूमतों का प्रतिनिधित्व करते हैं। (दानिय्येल ८:२०, २१) महाबाबुल का विवरण इस प्रकार किया गया है कि वह एक स्त्री है जो “किरमिज़ी रंग के पशु पर . . . जिसके सात सिर और दस सींग हैं,” बैठी हुई है। वह इस प्रकार इस “वन्य पशु” अथवा विश्‍व सरकार को प्रभावित करने का प्रयत्न कर रही है। (प्रकाशितवाक्य १७:३) यह एक वास्तविकता है कि पूरे इतिहास में धर्म, राजनीति के साथ मिश्रित रहा है और वह अक्सर सरकारों को क्या करने के लिये बताता रहा है। वास्तव में, वह स्त्री “पृथ्वी के राजाओं के ऊपर राज्य” करती रही है।”—प्रकाशितवाक्य १७:१८.

८. शैतान के संसार का एक दूसरा महत्वपूर्ण भाग क्या है और बाइबल में उनका प्रतिनिधित्व किनके द्वारा हुआ है?

ये राजनीतिक सरकारें शैतान की दुनिया का दूसरा महत्वपूर्ण भाग हैं। जैसा कि हम देख चुके हैं बाइबल में इन सरकारों को पशु के समान बताया गया है। (दानिय्येल ७:१-८, १७, २३) यह वास्तविकता कि ये पशु समान सरकारें अपने लिये सामर्थ्य शैतान से प्राप्त करती हैं एक दर्शन द्वारा प्रदर्शित की गयी है जिसे प्रेरित यूहन्‍ना ने लेखबद्ध किया था: “मैंने एक वन्य पशु को समुद्र में से निकलते हुए देखा जिसके दस सींग और सात सिर थे . . . और अजगर ने अपनी सामर्थ्य . . . पशु को दे दी।” (प्रकाशितवाक्य १३:१, २; १२:९) एक अतिरिक्‍त प्रमाण कि ये राज्य अथवा सरकारें शैतान की दुनिया का भाग हैं इस वास्तविकता से प्रकट होता है कि शैतान ने यीशु को यह राज्य देने के लिये प्रलोभित किया था। शैतान ऐसा नहीं कर सकता था यदि वह उनका हाकिम न होता।—मत्ती ४:८, ९.

९. (क) प्रकाशितवाक्य १८:११ में शैतान के संसार का एक दूसरे भाग का विवरण कैसे दिया गया है? (ख) वह क्या करता है और किस प्रकार प्रोत्साहन देता है जिससे यह सिद्ध होता है कि इन सबमें शैतान का हाथ है?

शैतान की दुनिया का एक मुख्य भाग लोभी और अत्याचारी व्यापारिक व्यवस्था है जो प्रकाशितवाक्य १८:११ में “व्यापारियों” के रूप में निर्देश किये गये हैं। यह व्यापारिक व्यवस्था लोगों में उन वस्तुओं को प्राप्त करने के लिये जो वह उत्पादित करती है, एक स्वार्थपूर्ण अभिलाषा को प्रोत्साहन देती है, यद्यपि कि उनको उन वस्तुओं को आवश्‍यकता न हो और शायद उनकी स्थिति उनके बिना ही अच्छे हों। उसी समय यह लोभी व्यापारिक व्यवस्था भंडारों में खाद्य पदार्थ इकट्ठा करती हैं परन्तु लाखों लोगों को भूखा मरने देती है क्योंकि वे लोग उसका मूल्य नहीं दे सकते। दूसरी ओर, सैनिक शस्त्रों का उत्पादन होता है जो समस्त मानव परिवार को नष्ट करने की क्षमता रखते हैं और वे लाभ के लिये बचे जाते हैं। इस प्रकार शैतान की व्यापारिक व्यवस्था मिथ्या धर्म और राजनीतिक सरकारों के साथ मिलकर स्वार्थ, अपराध और भयंकर युद्धों के होने को उत्तेजित करती है।

१०, ११. (क) शैतान के संसार की एक दूसरी विशेषता क्या है? (ख) शैतान की इस विशेषता में अंतर्ग्रस्त होने के विरुद्ध बाइबल में क्या चेतावनियाँ दी हुई हैं?

१० शैतान अर्थात्‌ इबलीस की अधीनता में यह व्यवस्थित मानव समाज वास्तव में दुष्ट और पथभ्रष्ट हो चुका है। वह परमेश्‍वर के न्याययुक्‍त नियमों के विरुद्ध है और सब प्रकार के अनैतिक कार्यों से भरपूर है। अतः शैतान की दुनिया की दूसरी विशेषता उसकी बंधनमुक्‍त जीवन और अनैतिक रीतियाँ हैं। इस कारण से दोनों प्रेरितों पौलुस और पतरस ने मसीहियों को अन्य जातियों के दुष्ट कार्यों से दूर रहने की चेतावनी दी थी।—इफिसियों २:१-३; ४:१७-१९; १ पतरस ४:३, ४.

११ प्रेरित यूहन्‍ना ने भी मसीहियों को दुनिया की अनुचित अभिलाषाओं और अनैतिक तरीकों के विरुद्ध अपने को बचाए रखने की आवश्‍यकता पर जोर दिया था। उसने लिखा: “तुम न तो संसार से और न संसार में की वस्तुओं से प्रेम रखो। यदि कोई संसार से प्रेम रखता है तो उसमें पिता का प्रेम नहीं है क्योंकि जो कुछ संसार में है अर्थात्‌ शरीर की अभिलाषा और आँखों की अभिलाषा और जीविका का दिखावटी प्रदर्शन—पिता की ओर से नहीं है परन्तु संसार की ओर से है।” (१ यूहन्‍ना २:१५, १६) शिष्य याकूब ने कहा था कि ‘यदि कोई संसार की मित्र बनना चाहता है तो वह अपने आपको परमेश्‍वर का शत्रु बनाता है।’—याकूब ४:४.

संसार का भाग बने रहने से कैसे दूर रखें

१२, १३. (क) यीशु ने कैसे प्रदर्शित किया कि मसीहियों को संसार में ही रहना है? (ख) यह कैसे संभव है कि संसार में रहते हुए भी वे उसका भाग न बनें?

१२ जब तक शैतान की दुनिया अस्तित्व में रहती है तब तक मसीहियों को उसमें रहना आवश्‍यक है। यीशु ने यह प्रदर्शित किया जब उसने अपने पिता से प्रार्थना में यह कहा: “मैं तुझसे यह बिनती नहीं करता हूँ कि तू उन्हें संसार में से निकाल दे।” परन्तु फिर यीशु ने अपने शिष्यों के विषय में यह बात कही: “वे संसार का भाग नहीं है।” (यूहन्‍ना १७:१५, १६) परन्तु शैतान की दुनिया में रहते हुए भी फिर भी उसका भाग न बना रहना कैसा संभव है?

१३ आप उन लोगों के बीच में रहते हैं जिनसे आप का व्यवस्थित मानव समाज बना है। इस लोगों में परगामी, लोभी और अन्य व्यक्‍ति सम्मिलित हैं जो दुष्ट कार्य करते हैं। आप उनके साथ काम करते हों, उनके साथ पढ़ने जाते हों, उनके साथ-साथ खाते पीते हों, और उनके साथ अन्य क्रियाकलापों में हिस्सा लेते हों। (१ कुरिन्थियों ५:९, १०) जिस प्रकार परमेश्‍वर सबसे प्रेम करता है उसी प्रकार आपके लिए भी उनसे प्रेम रखना आवश्‍यक है। (यूहन्‍ना ३:१६) परन्तु एक सच्चा मसीही उन दुष्ट कार्यों से प्रेम नहीं करता है जो वे लोग करते हैं। वह उनकी मनोवृत्ति, कार्य और जीवन में उनके लक्ष्यों को नहीं अपनाता है। वह उनके भ्रष्ट धर्म और राजनीति में हिस्सा नहीं लेता है। और जबकि उसे अपनी रोज़ी कमाने के लिये व्यापारिक संसार में कार्य करना पड़ता है वह उनके बेईमानीपूर्ण व्यापारिक कार्यों में नहीं उलझता है, न ही भौतिक वस्तुओं की प्राप्ति जीवन में उसका मुख्य लक्ष्य है। क्योंकि वह परमेश्‍वर की नयी व्यवस्था के लिये है इसलिये वह उन लोगों की बुरी संगति से दूर रहता है जो शैतान की दुनिया के लिये जीवित रहते हैं। (१ कुरिन्थियों १५:३३; भजन संहिता १:१; २६:३-६, ९, १०) परिणाम यह होता है कि वह शैतान की दुनिया में रहते हुए भी उसका भाग नहीं है।

१४. यदि आप परमेश्‍वर की नयी व्यवस्था के लिये हैं तो आप बाइबल के किस आदेश का पालन करेंगे?

१४ आप अपने लिये क्या कहते हैं? क्या आप शैतान की दुनिया का भाग बनना चाहते हैं? या आप परमेश्‍वर की नयी व्यवस्था के लिये हैं? यदि आप परमेश्‍वर की नयी व्यवस्था के लिये हैं तो आप इस दुनिया से जिसमें मिथ्या धर्म सम्मिलित है, अलग रहेंगे। आप इस आज्ञा के प्रति ध्यान देंगे: “उसमें [महाबाबुल] से निकल आओ, मेरे लोगो।” (प्रकाशितवाक्य १८:४) तथापि महाबाबुल अर्थात्‌ मिथ्या धर्म का सांसारिक साम्राज्य में से निकलने में मिथ्या धार्मिक व्यवस्थाओं से संबंध तोड़ने से कुछ अधिक शर्त्तें सम्मिलित हैं। इसका यह भी अर्थ है कि आप संसार के धार्मिक उत्सवों से बिल्कुल कोई संबंध न रखें।—२ कुरिन्थियों ६:१४-१८.

१५. (क) यीशु की जन्म तिथि मनाने की अपेक्षा मसीहियों को क्या मनाने का आदेश दिया गया था? (ख) किस बात से यह प्रदर्शित होता है कि यीशु का जन्म सर्दियों में नहीं हो सकता था? (ग) यीशु का जन्मदिन मनाने के लिए २५ दिसम्बर की तिथि क्यों चुनी गयी थी?

१५ क्रिसमस का समारोह आज एक प्रसिद्ध धार्मिक पुण्य-दिवस है। परन्तु इतिहास यह प्रदर्शित करता है कि यह वह समारोह नहीं था जिसे प्रारंभिक मसीही मनाते थे। यीशु ने अपने अनुयायियों को उसके जन्म की नहीं बल्कि मृत्यु की यादगार मनाने के लिये कहा था। (१ कुरिन्थियों ११:२४-२६) वास्तविकता यह है कि दिसम्बर २५ यीशु के जन्म की तिथि नहीं है। वह उसके जन्म की तिथि नहीं हो सकती थी क्योंकि बाइबल प्रदर्शित करती है कि उसके जन्म के समय चरवाहे रात को मैदान में ही थे। वे वहाँ सर्दी के मौसम की वर्षा और ठंड में नहीं रहे होंगे। (लूका २:८-१२) वास्तव में दिसम्बर २५ को यीशु के जन्म दिवस मनाने के लिये इसलिये चुना गया था कि जैसा कि वर्ल्ड बुक एन्साइक्लोपीडिया व्याख्या करती है: “रोम के लोग उस दिन को शनि का उत्सव अर्थात्‌ सूर्य के जन्म दिवस के रूप में मनाया करते थे।”

१६. (क) वह कौनसा अन्य धार्मिक पुण्य दिवस है जिसका प्रारंभ गैर मसीही धर्मों से हुआ है? (ख) किन उचित कारणों से सच्चे मसीही क्रिसमस और ईस्टर का उत्सव नहीं मनाते हैं?

१६ ईस्टर एक दूसरा मुख्य धार्मिक दिवस है। उसके समान कुछ लातीनी अमरीकी देशों में पवित्र सप्ताह मनाया जाता है। परन्तु प्रारंभिक मसीही ईस्टर का उत्सव भी नहीं मनाते थे। उसका प्रारंभ भी ग़ैर-मसीही उत्सवों से हुआ था। एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका कहती है: “बाइबल के नये नियम में ईस्टर के मनाने का कोई चिन्ह नहीं मिलता है।” परन्तु क्या यह वास्तव में महत्व रखता है कि क्रिसमस और ईस्टर मसीही उत्सव नहीं हैं बल्कि उनका प्रारंभ वास्तव में असत्य ईश्‍वरों के उपासकों से संबंधित है? प्रेरित पौलुस ने सत्य और असत्य के मिश्रित होने के विरुद्ध यह कहकर चेतावनी दी थी कि “थोड़ा सा खमीर सारे गूंधे हुए आटे को खमीर कर देता है।” (गलतियों ५:९) उसने प्रारंभिक मसीहियों को बताया था कि उनके लिये उन दिनों का मनाना अनुचित था जो मूसा की व्यवस्था के अधीन मनाये जाते थे, परन्तु जो मसीहियों के लिये परमेश्‍वर द्वारा रद्द कर दिये गये थे। (गलतियों ४:१०, ११) सच्चे मसीहियों के लिये आज यह कितनी महत्वपूर्ण बात है कि वे उन दिवसों के मनाने से दूर रहें जिनके विषय परमेश्‍वर ने कहा था कि वे कभी नहीं मनाये जाने चाहिये क्योंकि उनका प्रारंभ मिथ्या धर्म से हुआ है!

१७. (क) उन पुण्य दिवसों का मनाना क्यों अनुचित है जो प्रसिद्ध मुनष्यों अथवा राष्ट्रों का सम्मान करते हैं? (ख) बाइबल कैसे प्रदर्शित करती है कि मसीहियों को कौनसा क्रियामार्ग लेना चाहिये?

१७ संसार के अन्य दिवस प्रसिद्ध मनुष्यों के आदर में मनाये जाते हैं। इसके अतिरिक्‍त अन्य दिवस राष्ट्रों अथवा सांसारिक संगठनों का आदर और उनकी प्रशंसा करते हैं। परन्तु बाइबल मनुष्यों को उपासनापूर्ण आदर देने और कार्य सफलता के लिये उन मानव संगठनों पर भरोसा रखने के विरुद्ध चेतावनी देती है जो केवल परमेश्‍वर द्वारा ही हो सकता है। (प्रेरितों के काम १०:२५, २६; १२:२१-२३; प्रकाशितवाक्य १९:१०; यिर्मयाह १७:५-७) अतः दिवस जिनकी प्रवृति मनुष्य अथवा एक मानव संगठन की प्रशंसा करने के प्रति होती है; परमेश्‍वर की इच्छा के सामंजस्य में नहीं है और सच्चे मसीही उनमें भाग नहीं लेंगे।—रोमियों १२:२.

१८. (क) वे वस्तुएं क्या हैं जो मनुष्यों ने सम्मान देने अथवा उपासना करने के लिए बनायी हैं? (ख) किसी वस्तु को उपासनापूर्ण सम्मान देने के विषय में परमेश्‍वर का नियम क्या कहता है?

१८ अनेक वस्तुएं मनुष्यों द्वारा बनायी गयी हैं जिनके लिए लोगों से कहा गया है कि वे उनका सम्मान अथवा उनकी उपासना करें। इनमें कुछ वस्तुएं धातु अथवा लकड़ी से बनी हुई होती हैं। अन्य वस्तुएं कपड़े की बनी होती हैं जिनपर आकाश या पृथ्वी पर किसी वस्तु का रंगभरा चित्र होता है या उसपर सिया हुआ होता है। कोई जाति यह कानून भी बनाये जो यह कहता है कि प्रत्येक व्यक्‍ति को इस प्रकार की वस्तु के प्रति आराधनापूर्ण सम्मान देना चाहिये। परन्तु परमेश्‍वर का नियम यह कहता है कि परमेश्‍वर के सेवकों द्वारा इस प्रकार का सम्मान नहीं होना चाहिये। (निर्गमन २०:४, ५; मत्ती ४:१०) इस प्रकार की स्थिति में परमेश्‍वर के लोगों ने क्या किया है?

१९. (क) बाबुल के राजा ने प्रत्येक व्यक्‍ति को क्या करने का आदेश दिया था? (ख) किसके उदाहरण का अनुसरण करना मसीहियों के लिए अच्छा है?

१९ प्राचीन बाबुल में राजा नबूकदनेस्सर ने सोने की एक विशाल प्रतिमा निर्मित की और प्रत्येक को उसके आगे दंडवत करने का आदेश दिया। उसने कहा ‘जो कोई भी उसके आगे नहीं झुकेगा, आग की जलती हुई भट्टी में फेंक दिया जायेगा।’ बाइबल हमें बताती है कि शद्रक, मेशक और अबेदनगो नामक तीन इब्रानी युवकों ने राजा के इस आदेश का पालन करने से इन्कार कर दिया था। क्यों? इसलिये कि उस आदेश में उपासना अंतर्ग्रस्त थी और उनकी उपासना केवल यहोवा के लिये थी। जो कुछ उन्होंने किया परमेश्‍वर ने उसका अनुमोदन किया और उसने उनको राजा के क्रोध से बचाया। वास्तव में नबूकदनेस्सर ने देखा कि यहोवा के ये सेवक राज्य के लिये खतरनाक नहीं थे, अतः उसने उनकी उपासना की आज़ादी को सुरक्षित रखने के लिये नियम बनाया। (दानिय्येल ३:१-३०) क्या आप इन युवकों की वफ़ादारी की प्रशंसा नहीं करते हैं? क्या आप परमेश्‍वर के सब नियमों का पालन करके प्रदर्शित करेंगे कि आप वास्तव में परमेश्‍वर की नयी व्यवस्था के लिये हैं?—प्रेरितों के काम ५:२९.

२०. शैतान किन अनेक साधनों का प्रयोग करता है जिसके द्वारा वह हमें यौन नैतिकता पर परमेश्‍वर के दिये हुए नियमों को तोड़ने के लिए उत्तेजित करता है?

२० शैतान, निःसन्देह नहीं चाहता है कि हम यहोवा की सेवा करें। वह चाहता है कि हम उसकी सेवा करें। अतः, वह प्रयत्न करता है कि जो वह चाहता है हम वही करें, क्योंकि वह जानता है कि हम जिसके प्रति आज्ञाकारी होते हैं हम उसके ही दास अथवा सेवक बन जाते हैं। (रोमियों ६:१६) अनेक साधनों द्वारा जिनमें टेलीविज़न, सिनेमा, नृत्य के कुछ रूप और अनैतिक साहित्य सम्मिलित है, शैतान अविवाहित व्यक्‍तियों के मध्य मैथुनिक संबंध रखने और व्यभिचार करने के लिये भी प्रेरित करता है। इस प्रकार के आचरण को ऐसा प्रदर्शित किया जाता है कि वह योग्य और उचित है। तथापि ऐसा आचरण परमेश्‍वर के नियम के विरुद्ध है। (इब्रानियों १३:४; इफिसियों ५:३-५) और वह व्यक्‍ति जो इस प्रकार के कामों में लिप्त रहता है, वास्तव में यह प्रदर्शित करता है कि वह शैतान की दुनिया के लिये है।

२१. वे अन्य आदतें क्या हैं जो यदि किसी व्यक्‍ति को लग जाती हैं तो उससे यह प्रदर्शित होता है कि वह शैतान के संसार के लिए है?

२१ कुछेक अन्य आदतें भी हैं जिनको शैतान की दुनिया ने लोकप्रिय बना दिया है, परन्तु वे आदतें परमेश्‍वर के नियमों के विरुद्ध हैं। शराब में मतवाला हो जाना उन आदतों में से एक है। (१ कुरिन्थियों ६:९, १०) एक दूसरी आदत सुखविलास के लिये मारीहआना और हेरोईन जैसी नशीली दवाओं और तम्बाकू का भी प्रयोग है। ये वस्तुएं शरीर के लिये हानिकारक और अस्वच्छ हैं। इनका उपयोग स्पष्ट रूप से परमेश्‍वर के इस आदेश का उल्लंघन है जो यह कहता है कि “हम अपने आपको शरीर और आत्मा की सब प्रकार की मलिनता से शुद्ध करें।” (२ कुरिन्थियों ७:१) तम्बाकू सेवन से उन लोगों के स्वास्थ्य को भी हानि पहुंचती है जो आपके नज़दीक होते हैं और जिनको उसका धुंआ सांस के साथ लेना पड़ता है। अतः तम्बाकू का प्रयोग करने वाला परमेश्‍वर के उस नियम का उल्लंघन करता है जो यह कहता है कि एक मसीही को अपने पड़ोसी से प्रेम रखना चाहिये।—मत्ती २२:३९.

२२. (क) रक्‍त के विषय में बाइबल क्या कहती है? (ख) क्यों रक्‍त-आधान करना वास्तव में “रक्‍त सेवन” से भिन्‍न नहीं है? (ग) किस बात से यह प्रदर्शित होता है कि ‘लहू से दूर रहने’ का क्या अर्थ है कि उसे अपने शरीर में बिल्कुल नहीं लिया जाय?

२२ एक दूसरी सामान्य आदत जो दुनिया के अनेक भागों में पायी जाती है वह रक्‍त सेवन है। इस प्रकार वे पशु जिनका रक्‍त उपयुक्‍त रूप से नहीं निकाला गया है, खाये जाते हैं या उनका रक्‍त निकालकर उसे खाद्य पदार्थ के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। फिर भी परमेश्‍वर का वचन कहता है कि रक्‍त सेवन निषिद्ध है। (उत्पत्ति ९:३, ४; लैव्यव्यवस्था १७:१०) फिर रक्‍त-आधान के लिये क्या कहा जाय? कुछ व्यक्‍ति यह तर्क करें कि रक्‍त-आधान लेने का यह अर्थ नहीं है कि वह वास्तव में “भोजन के रूप में” लिया जा रहा है। परन्तु क्या यह बात सच नहीं है कि जब एक मरीज़ अपने मुंह से खाना खाने के योग्य नहीं होता है तब एक डॉक्टर उसे अक्सर उस तरीके से भोजन देने की सलाह देता है जिस तरीके से रक्‍त-आधान कराया जाता है? बाइबल हमें बताती है कि हम “लहू से दूर रहें।” (प्रेरितों के काम १५:२०, २९) इसका क्या अर्थ है? यदि डॉक्टर आपको शराब से दूर रहने के लिये कहे तो क्या उसका केवल यह अर्थ है कि आपको उसे मुंह से नहीं लेना चाहिये। परन्तु आप उसे अपनी नसों में सीधे रूप से आधान करा सकते हैं? निश्‍चय नहीं! अतः ‘लहू से दूर रहने’ का अर्थ है कि आप उसे किसी भी तरीके से अपने शरीर में न लें।

२३. (क) आपको क्या फैसला करने की आवश्‍यकता है? (ख) आपने जो फैसला किया है वह किस बात से प्रदर्शित होगा?

२३ आपके लिये यहोवा परमेश्‍वर को यह प्रदर्शित करना जरूरी है कि आप उसकी नयी व्यवस्था के लिये हैं और इस दुनिया के भाग नहीं हैं। इसके लिये निर्णय की आवश्‍यकता है। जो निर्णय करने की आपको आवश्‍यकता है वह यह है कि आप यहोवा की सेवा करें और उसकी इच्छा पूरी करें। आप इस विषय में अनिर्णीत नहीं हो सकते हैं जैसा कि प्राचीन काल में कुछ इस्राएली अनिर्णीत थे। (१ राजा १८:२१) यह आप याद रखिये कि यदि आप यहोवा की सेवा नहीं करते हैं तब आप शैतान की सेवा कर रहे हैं। आप शायद यह कहें कि आप परमेश्‍वर की नयी व्यवस्था के लिये हैं। परन्तु आपका आचरण क्या कहता है? यदि आप परमेश्‍वर की नयी व्यवस्था के लिये हैं तो उसमें उन तमाम कार्यों से दूर रहना आवश्‍यक है जिनकी परमेश्‍वर निन्दा करता है और जो उसकी न्याययुक्‍त नयी व्यवस्था में नहीं होंगे।

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज २०९ पर तसवीरें]

वह संसार क्या है जिसके लिए यीशु प्रार्थना नहीं करता था और उसके शिष्य उसका भाग नहीं थे?

[पेज २११ पर तसवीरें]

बाइबल में, मिथ्या धर्म का प्रतिनिधित्व एक मद्यप वेश्‍या द्वारा और विश्‍व सरकार जिस पर वह बैठी हुई है एक वन्य पशु द्वारा हुआ है

बंधन मुक्‍त जीवन शैतान की दुनिया की एक विशेषता है। लोभी व्यापारिक व्यवस्था भी उसका एक प्रमुख भाग है

[पेज २१३ पर तसवीरें]

क्योंकि यीशु के जन्मदिन पर चरवाहे अपनी भेड़ों के साथ मैदान में रात गुजार रहे थे इसलिए वह २५ दिसम्बर के दिन जन्म नहीं ले सकता था।

[पेज २१४ पर तसवीरें]

परमेश्‍वर के सेवकों ने एक राजा द्वारा स्थापित प्रतिमा की उपासना करने से इन्कार किया था। आप समान परिस्थिति में क्या करेंगे?