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सच्चे धर्म की पहचान करना

सच्चे धर्म की पहचान करना

अध्याय २२

सच्चे धर्म की पहचान करना

१. कौन थे जो पहली शताब्दी में सच्चे धर्म का पालन कर रहे थे?

इस विषय में कोई शंका नहीं हो सकती है कि वे कौन व्यक्‍ति थे जो पहली शताब्दी में सच्चे धर्म का पालन कर रहे थे। वे यीशु मसीह के अनुयायी थे। वे सब एक ही मसीही संस्था से सम्बद्ध थे। आज इस विषय में क्या कहा जाय? किस प्रकार उन व्यक्‍तियों की पहचान हो सकती है जो सच्चे धर्म का पालन कर रहे हैं?

२. वे जो सच्चे धर्म का पालन कर रहे हैं, कैसे पहचाने जा सकते हैं?

उन व्यक्‍तियों की पहचान हम कैसे कर सकते हैं, यीशु ने इसकी व्याख्या की और कहा: “उनके फलों से तुम उनको पहचानोगे . . . हर अच्छा वृक्ष अच्छा फल उत्पन्‍न करता है परन्तु हर बेकार वृक्ष व्यर्थ फल उत्पन्‍न करता है; वास्तव में तब तुम उनके फलों से उन मनुष्यों को पहचानोगे।” (मत्ती ७:१६-२०) आप परमेश्‍वर के सच्चे उपासकों के किस प्रकार के अच्छे फल उत्पन्‍न करने की प्रत्याशा करेंगे? उन्हें अब क्या कहना और क्या करते रहना चाहिये?

परमेश्‍वर के नाम का पवित्रीकरण

३, ४. (क) वह पहली विनती क्या थी जो यीशु की आदर्श-प्रार्थना में की गयी थी? (ख) यीशु ने कैसे परमेश्‍वर के नाम का पवित्रीकरण किया?

परमेश्‍वर के सच्चे उपासकों के कार्य उस आदर्श-प्रार्थना के सामंजस्य में होते हैं जो यीशु ने अपने अनुयायियों को सिखायी थी। पहली बात जिसका यीशु ने वहाँ जिक्र किया था वह यही थी: “हे हमारे पिता जो स्वर्ग में है तेरे नाम का पवित्रीकरण हो।” बाइबल का दूसरा अनुवाद इन शब्दों को इस रीति से प्रस्तुत करता है: “तेरा नाम पवित्र माना जाय।” (मत्ती ६:९, जेरुसलम बाइबल) परमेश्‍वर के नाम का पवित्रीकरण अथवा उसे पवित्र माने जाने का क्या अर्थ है? यीशु ने उस नाम का पवित्रीकरण कैसे किया?

यीशु ने यह कैसे किया, उसको उसने इस प्रकार प्रदर्शित किया जब उसने अपने पिता से प्रार्थना में यह कहा: “मैंने तेरे नाम को उन मनुष्यों पर प्रकट किया जिन्हें तूने जगत में से मुझे दिया।” (यूहन्‍ना १७:६) हाँ, यीशु ने दूसरों को परमेश्‍वर का नाम यहोवा है ऐसे प्रकट किया। वह उस नाम का प्रयोग करने में कभी असफल नहीं रहा। यीशु जानता था कि यह उसके पिता का उद्देश्‍य था कि उसके नाम की सारी पृथ्वी पर महिमा हो। अतः उसने उस नाम की घोषणा करके और उसे पवित्र मानकर आदर्श प्रस्तुत किया।—यूहन्‍ना १२:२८; यशायाह १२:४, ५.

५. (क) क्यों मसीही कलीसिया परमेश्‍वर के नाम से संबंधित है? (ख) यदि हम उद्धार प्राप्त करना चाहते हैं तो हमें क्या करना आवश्‍यक है?

बाइबल प्रदर्शित करती है कि सच्ची मसीही कलीसिया के अस्तित्व के कारण का आधार यह है कि वह परमेश्‍वर के नाम से संबंधित है। प्रेरित पतरस ने यह व्याख्या की कि परमेश्‍वर ने “दूसरी जातियों की ओर अपना ध्यान दिया कि उनमें से अपने नाम के लिये लोगों को निकाले।” (प्रेरितों के काम १५:१४) अतः वे जो वास्तविक रूप से परमेश्‍वर के लोग हैं उनके लिये उसके नाम को पवित्र मानना और सारी पृथ्वी पर उसे प्रकट करना आवश्‍यक है। वास्तव में उस नाम का जानना उद्धार के लिये आवश्‍यक है जैसा कि बाइबल कहती है: “क्योंकि ‘प्रत्येक व्यक्‍ति जो यहोवा का नाम लेता है, उद्धार पायेगा।’”—रोमियों १०:१३, १४.

६. (क) क्या मसीही संसार की संस्थाएं समान्य रूप से परमेश्‍वर के नाम को पवित्र मानती हैं? (ख) क्या कोई व्यक्‍ति हैं जो परमेश्‍वर के नाम की गवाही देते हैं?

तब, अब वे कौन लोग हैं जो परमेश्‍वर के नाम को पवित्र मानते हैं और उसको सारी पृथ्वी पर प्रकट करते हैं? सामान्य रूप से धार्मिक संस्थाएं यहोवा के नाम के प्रयोग करने को टालते हैं। उनमें कुछेक ने अपने बाइबल अनुवादों में से उस नाम को भी हटा दिया है। तथापि यदि आप अपने पड़ोसियों से बात करते समय यहोवा नाम का प्रयोग करके उसका प्रसंग दें तो आपका क्या ख्याल है कि वे आपको किस संगठन से संयुक्‍त करेंगे? केवल एक ही प्रकार के लोग हैं जो वास्तव में इस विषय में यीशु के उदाहरण का अनुसरण कर रहे हैं। उनके जीवन का प्रमुख उद्देश्‍य यही है कि वे परमेश्‍वर की सेवा करें और जिस प्रकार यीशु ने किया वे उसके नाम की गवाही देते रहें। अतः उन्होंने अपने लिये पवित्र शास्त्र का यह नाम “यहोवा के गवाह” ग्रहण कर लिया है।—यशायाह ४३:१०-१२.

परमेश्‍वर के राज्य की घोषणा करना

७. यीशु ने कैसे परमेश्‍वर के राज्य के महत्व को प्रदर्शित किया था?

उस आदर्श-प्रार्थना में जो यीशु ने सिखायी, उसमें उसने परमेश्‍वर के राज्य के महत्व को भी प्रदर्शित किया था। उसने लोगों को यह प्रार्थना करने की शिक्षा दी: “तेरा राज्य आये।” (मत्ती ६:१०) बारम्बार यीशु ने इस बात पर ज़ोर दिया कि राज्य मानवजाति के संकटों का केवल एकमात्र हल है। वह और उसके प्रेरितों ने “गाँव-गाँव” और “घर-घर” जाकर लोगों को इस राज्य के विषय में प्रचार करके सूचना दी। (लूका ८:१; प्रेरितों के काम ५:४२; २०:२०) परमेश्‍वर का राज्य उनके प्रचार और शिक्षा का विषय था।

८. यीशु ने यह कैसे प्रदर्शित किया कि उसके सच्चे अनुयायियों का मुख्य संदेश क्या होगा जो इन “अंतिम दिनों” में दिया जायेगा?

हमारे दिनों के लिये क्या कहा जाय? परमेश्‍वर के सच्चे मसीही संगठन की केन्द्रीय शिक्षा क्या है? “इन अंतिम दिनों” के विषय में भविष्यवाणी करते हुए यीशु ने कहा: “राज्य के सुसमाचार का प्रचार सारी बसी हुई पृथ्वी पर होगा जिससे सब जातियों पर गवाही हो; और फिर अन्त आ जायेगा।” (मत्ती २४:१४) अतः आज परमेश्‍वर के लोगों का मुख्य संदेश राज्य होना चाहिये।

९. आज कौन हैं वे लोग जो परमेश्‍वर के राज्य के संदेश का प्रचार कर रहे हैं?

अपने आपसे पूछिये: यदि कोई व्यक्‍ति आपके द्वार पर आता है और परमेश्‍वर के राज्य के विषय में यह बताता है कि केवल वही मानवजाति के लिये सच्ची आशा है तो आप उस व्यक्‍ति को किस संगठन से संयुक्‍त करते हैं? क्या यहोवा के गवाहों के अतिरिक्‍त किसी अन्य धर्म के लोगों ने परमेश्‍वर के राज्य के विषय में वार्त्ता की? बहुत थोड़े व्यक्‍ति ही इस विषय में जानते हैं कि वह क्या है। वे परमेश्‍वर की सरकार के विषय में चुप रहते हैं। फिर भी वह सरकार दुनिया को हिला देनेवाली ख़बर है। दानिय्येल नबी ने इस बात की भविष्य सूचना दी थी कि यह राज्य अन्य ‘सारी हुकूमतों को कुचल देगा और समाप्त कर देगा और पृथ्वी पर केवल उसी का शासन होगा।’—दानिय्येल २:४४.

परमेश्‍वर के वचन का सम्मान

१०. यीशु ने कैसे परमेश्‍वर के वचन का सम्मान प्रदर्शित किया?

१० एक दूसरा तरीका जिससे वे लोग जो सच्चे धर्म का पालन करते हैं जिसके द्वारा वे पहचाने जा सकते हैं, बाइबल के प्रति उनकी मनोवृत्ति है। यीशु ने हर समय परमेश्‍वर के वचन के लिये सम्मान प्रदर्शित किया। हर समय और हमेशा वह सब बातों पर परमेश्‍वर के वचन की सहायता लेता था और उसे अंतिम निर्णायक आधार मानता था। (मत्ती ४:४, ७, १०; १९:४-६) यीशु बाइबल की शिक्षाओं के अनुसार जीवन व्यतीत करके उसके प्रति सम्मान भी प्रदर्शित करता था। उसने बाइबल को कभी तुच्छ नहीं समझा। इसकी अपेक्षा वह उन लोगों की निन्दा करता था जो बाइबल के सामंजस्य में शिक्षा देने में असफल रहे थे और जो अपने निजी विचार को प्राथमिकता देकर बाइबल की शिक्षाओं की शक्‍ति को कमज़ोर करने का प्रयत्न करते थे।—मरकुस ७:९-१३.

११. परमेश्‍वर के वचन के प्रति संस्थाएं अक्सर क्या मनोवृत्ति प्रदर्शित करती हैं?

११ इस संबंध में मसीही संसार की संस्थाएं मसीह द्वारा प्रस्तुत उदाहरण के मानदंड पर कहाँ तक सही उतरती हैं? क्या वे बाइबल के प्रति अगाध सम्मान रखती हैं? आज अनेक धार्मिक नेता बाइबल में दिये हुए इन वृत्तांतों पर विश्‍वास नहीं करते हैं जैसे आदम का पापी बनना, नूह के दिनों का जलप्रलय, योना और उस बड़ी मछली की घटना और अन्य घटनाओं की वास्तविकता। वे ये भी कहते हैं कि मनुष्य यहाँ क्रम विकास द्वारा अस्तित्व में आया न कि परमेश्‍वर ने उसे सृष्ट किया है। क्या वे इस प्रकार परमेश्‍वर के वचन के प्रति सम्मान को प्रोत्साहन देते हैं? इसके अतिरिक्‍त कुछ धार्मिक नेता ये तर्क करते हैं कि विवाह किये बिना यौन संबंध रखना अनुचित कार्य नहीं है और समलैंगिकता और बहु विवाह की प्रथा भी उपयुक्‍त माने जा सकते हैं। क्या आप यह कहेंगे कि वे लोगों को अपने पथ-प्रदर्शन के लिये बाइबल का प्रयोग करने का प्रोत्साहन दे रहे हैं? वे निश्‍चित रूप से परमेश्‍वर के पुत्र और उसके प्रेरितों के उदाहरण का अनुसरण नहीं कर रहे हैं।—मत्ती १५:१८, १९; रोमियों १:२४-२७.

१२. (क) क्यों अनेक लोगों की उपासना जो बाइबल भी रखते हैं, परमेश्‍वर को प्रसन्‍न नहीं करती है? (ख) यदि स्वेच्छा से अनुचित कार्य करनेवालों को किसी संस्था में सम्मानजनक स्थिति में रहने की अनुज्ञा प्राप्त है तो हमें क्या निष्कर्ष निकालना चाहिये?

१२ इन धार्मिक संस्थाओं के कुछ सदस्य ऐसे हैं जो बाइबल रखते हैं और उसका अध्ययन भी करते हैं परन्तु जिस रीति से वह अपना जीवन व्यतीत करते हैं उससे यह प्रदर्शित होता है कि वे उसका अनुसरण नहीं कर रहे हैं। इस प्रकार के व्यक्‍तियों के लिये बाइबल कहती है: “वे खुले आम कहते हैं कि वे परमेश्‍वर को मानते हैं परन्तु अपने कामों से वे उनका इन्कार करते हैं। (तीतुस १:१६; २ तीमुथियुस ३:५) यदि इन धार्मिक संस्थाओं के सदस्यों को जो जुआ खेलते हैं, शराब में मतवाले हो जाते हैं और अन्य अनुचित कार्य करते हैं, अपनी संस्था में सम्मानजनक स्थिति में रहने की अनुज्ञा प्राप्त है तो इससे क्या प्रदर्शित होता है? यह इस बात का प्रमाण है कि उनके धार्मिक संगठन को परमेश्‍वर की स्वीकृति नहीं प्राप्त है।—१ कुरिन्थियों ५:११-१३.

१३. यदि किसी व्यक्‍ति को यह मालूम हो जाय कि उसकी संस्था की शिक्षाएं बाइबल से मेल नहीं खाती हैं तो उसे क्या गंभीर निर्णय करने की आवश्‍यकता है?

१३ यदि आपने इस पुस्तक के पिछले अध्यायों की विषय वस्तु पर ध्यान दिया है और उसमें दिये हुए बाइबल-पाठ पर सोच-विचार किया है तो निश्‍चय आप परमेश्‍वर के वचन की आधारभूत शिक्षाओं को जान गये हैं। परन्तु यदि उस धार्मिक संगठन की शिक्षाएं जिससे आप संयुक्‍त हैं, परमेश्‍वर के वचन की शिक्षाओं के सामंजस्य में नहीं हैं, तो क्या हो? तब आपके सम्मुख एक गम्भीर समस्या है। वह यह फैसला करने की समस्या है कि आप बाइबल की सच्चाई को स्वीकार करें या उसे उन शिक्षाओं के पक्ष होने के कारण रद्द करें जिनका समर्थन बाइबल नहीं करती है। आप जो करते हैं निश्‍चय वह आपका अपना निर्णय होना चाहिये। तथापि, आपको सब बातों पर सोच-विचार करके सावधानीपूर्वक फैसला करना चाहिये। यह इसलिये कि जो निर्णय आप करेंगे वह परमेश्‍वर के साथ आपकी स्थिति को और पृथ्वी पर परादीस में सर्वदा जीवित रहने की प्रत्याशाओं को प्रभावित करेगा।

संसार से अलग रहना

१४. (क) सच्चे धर्म को पहचानने का एक दूसरा चिन्ह क्या है? (ख) यह महत्वपूर्ण बात क्यों है कि सच्चे उपासक इस शर्त्त को पूरा करें?

१४ फिर भी उन व्यक्‍तियों को जो सच्चे धर्म का पालन करते हैं पहचानने का एक दूसरा चिन्ह यह है जैसा कि यीशु ने कहा, “वे संसार का भाग नहीं हैं।” (यूहन्‍ना १७:१४) इसका यह अर्थ है कि सच्चे उपासक इस पथभ्रष्ट संसार और उसके कार्यों से अपने आपको अलग रखते हैं। यीशु मसीह ने राजनीतिक शासक बनने से इन्कार कर दिया था। (यूहन्‍ना ६:१५) आप इस बात का मूल्यांकन कर सकते हैं कि संसार से अपने आपको अलग रखना क्यों इतना महत्वपूर्ण है जब आप यह याद रखते हैं कि बाइबल यह कहती है कि शैतान अर्थात्‌ इबलीस संसार का शासक है। (यूहन्‍ना १२:३१; २ कुरिन्थियों ४:४) इस विषय की गंभीरता बाइबल के इस कथन से भी देखी जा सकती है: “इसलिये जो कोई भी संसार का मित्र बनना चाहता है वह अपने आपको परमेश्‍वर का शत्रु बनाता है।”—याकूब ४:४.

१५. (क) क्या वे संस्थाएं जिनसे आप परिचित हैं, वास्तव में “संसार का भाग नहीं है”? (ख) क्या आप किसी ऐसे धर्म के विषय में जानते हैं जो इस शर्त्त को पूरा कर सकता है?

१५ क्या वास्तविकताएं प्रदर्शित करती हैं कि आपके समाज में धार्मिक संस्थाएं इस विषय को गंभीरतापूर्वक लेती हैं? क्या इन सभाओं के धार्मिक नेता और सदस्य भी वास्तव में “संसार के भाग” नहीं हैं? या क्या वे संसार की राष्ट्रीयता, राजनीति और वर्ग-संघर्ष में गहन रूप से अंतर्ग्रस्त नहीं है? इन प्रश्‍नों का उत्तर देना कठिन नहीं क्योंकि इन संस्थाओं के क्रियाकलाप विस्तृत रूप से ज्ञात हैं। इसके दूसरी ओर यहोवा के गवाहों के क्रियाकलापों की जाँच करना भी आसान है। ऐसा करके आप मालूम करेंगे कि वे वास्तव में संसार से, उसके राजनीतिक मामलों से और उसके स्वार्थी, अनैतिक और हिंसक तरीकों से अपने आपको अलग रखकर मसीह और उसके प्रारंभिक अनुयायियों के उदाहरण का अनुसरण करते हैं।—१ यूहन्‍ना २:१५-१७.

आपस में प्रेम रखना

१६. वह महत्वपूर्ण तरीका क्या है जिससे मसीह के सच्चे शिष्य पहचाने जा सकते हैं?

१६ एक अतिमहत्वपूर्ण तरीका जिससे मसीह के सच्चे शिष्य पहचाने जा सकते हैं वह प्रेम है जो वे अपने मध्य एक दूसरे से रखते हैं। यीशु ने इस विषय में यह कहा: “यदि तुम आपस में प्रेम रखोगे तो इससे सब जानेंगे कि तुम मेरे शिष्य हो।” (यूहन्‍ना १३:३५) क्या वे धार्मिक संस्थाएं जिनसे आप परिचित हैं इस प्रकार का प्रेम रखती हैं? उदाहरणतया, वे लोग क्या करते हैं जब उनके देश जिनमें ये संस्थाएं हैं एक दूसरे के विरुद्ध युद्ध करते हैं?

१७. अपने मध्य एक दूसरे के प्रति प्रेम रखने की शर्त्त को पूरा करने के मानदंड पर धार्मिक संस्थाएँ और उनके सदस्य कहाँ तक सही उतरते हैं?

१७ आप जानते हैं कि सामान्य रूप से क्या होता है। सांसारिक मनुष्यों के आदेश पर अनेक धार्मिक संस्थाओं के सदस्य रणभूमि पर जाते हैं और दूसरे देश के संगी विश्‍वासियों का कत्ले आम करते हैं। इस प्रकार कैथोलिक-कैथोलिक का कत्ल करता है, प्रोटेस्टेंट दूसरे प्रोटेस्टेंट को जान से मारता है और मुस्लिम दूसरे मुस्लिम को कत्ल करता है। क्या आप सोचते हैं कि इस प्रकार का जीवन-क्रम परमेश्‍वर के वचन के अनुसार है और क्या वास्तव में परमेश्‍वर की आत्मा को प्रदर्शित करता है?—१ यूहन्‍ना ३:१०-१२.

१८. इस विषय में यहोवा के गवाह एक दूसरे के साथ प्रेम रखने के मानदंड पर कहाँ तक सही उतरते हैं?

१८ इस विषय में यहोवा के गवाह एक दूसरे के साथ प्रेम रखने के मानदंड पर कहाँ तक सही उतरते हैं? वे सांसारिक धर्मों के मार्ग का अनुसरण नहीं करते हैं। वे रणभूमि पर संगी विश्‍वासियों का कत्लेआम नहीं करते हैं। उनका यह कहना कि “उन्हें परमेश्‍वर से प्रेम है,” परन्तु उनका दूसरी राष्ट्रीयता, कुल अथवा प्रजाति से संबंधित अपने भाई से घृणा करना वह झूठ है जिसके अनुसार जीवन व्यतीत करने के वे दोषी नहीं हैं। (१ यूहन्‍ना ४:२०, २१) परन्तु वे दूसरे तरीकों से भी प्रेम का प्रदर्शन करते हैं। कैसे? उस तरीके से जैसा उनका अपने पड़ोसियों के साथ व्यवहार होता है जिस तरीके से वे उनको परमेश्‍वर के विषय में जानकारी देने में प्रेममय सहायता देते हैं।—गलतियों ६:१०.

एक सच्चा धर्म

१९. यह कहना कि केवल एक ही सच्चा धर्म है क्यों तर्कसंगत और शास्त्रसम्मत भी है?

१९ यह तर्कसंगत बात है कि सच्चा धर्म केवल एक होगा। यह इस वास्तविकता के सामंजस्य में है कि सच्चा परमेश्‍वर “अव्यवस्था का नहीं बल्कि शांति का” परमेश्‍वर है। (१ कुरिन्थियों १४:३३) बाइबल यह कहती है कि वास्तव में केवल “एक ही विश्‍वास” है। (इफिसियों ४:५) तब वे कौन लोग हैं जिनसे आज सच्चे उपासकों का निकाय बनता है?

२०. (क) प्रमाण के प्रकाश में यह पुस्तक आज किन व्यक्‍तियों की ओर सच्चे उपासकों के रूप में संकेत करती है? (ख) क्या यही है जो आप विश्‍वास करते हैं? (ग) यहोवा के गवाहों से भली प्रकार परिचित होने का उत्तम तरीका क्या है?

२० हम यह कहने में संकोच नहीं करते हैं कि वे यहोवा के गवाह हैं। इस विषय में आपको कायल करने के लिये हम आपको उन लोगों से भली प्रकार परिचित होने के लिये निमंत्रण देते हैं। उनसे परिचित होने के लिये उत्तम तरीका यह है कि यहोवा के गवाहों के किंगडम हॉल में उनकी सभाओं में उनके साथ सम्मिलित होइये। क्योंकि बाइबल प्रदर्शित करती है कि सच्चे धर्म का पालन करने से अब भी अत्यधिक संतुष्टि प्राप्त होती है और पृथ्वी पर परादीस में अनन्त जीवन का आनन्द उठाने का मार्ग प्रशस्त होता है, इसलिये आपके लिये इस प्रकार की छानबीन करना निश्‍चित रूप से लाभदायक होगा। (व्यवस्थाविवरण ३०:१९, २०) हम आपको ऐसा करने के लिये हार्दिक निमंत्रण देते हैं। आप क्यों नहीं अभी इसकी छानबीन करते?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज १८५ पर तसवीर]

यदि आप किसी से यहोवा और उसके राज्य के विषय में वार्ता करें तो लोग आपको किस धर्म से संयुक्‍त करेंगे?

[पेज १८६ पर तसवीर]

क्या एक व्यक्‍ति परमेश्‍वर के वचन का सम्मान करता है यदि वह उसके अनुसार जीवन व्यतीत करने में असफल रहता है?

[पेज १८८, १८९ पर तसवीरें]

यीशु ने एक राजनीतिक शासक बनने से इन्कार किया था

[पेज १९० पर तसवीर]

आप यहोवा के गवाहों की सभाओं में सम्मिलित होने के लिए हार्दिक रूप से निमंत्रित किये जाते हैं