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सर्वदा जीवित रहना केवल एक स्वप्न नहीं

सर्वदा जीवित रहना केवल एक स्वप्न नहीं

अध्याय १

सर्वदा जीवित रहना केवल एक स्वप्न नहीं

१, २. यह विश्‍वास करना क्यों कठिन है कि लोग इस पृथ्वी पर खुशी में सर्वदा जीवित रह सकते हैं?

पृथ्वी पर आनंद—उसे अल्प समय के लिये भी अनुभव करना संभव प्रतीत नहीं होता है। बीमारी, बुढ़ापा, भूख, अपराध—कुछेक समस्याएँ—बहुधा जीवन को दुःखमय बना देती हैं। अतः शायद आप यह कहें कि पृथ्वी पर परादीस में सर्वदा जीवित रहने के विषय में बात करना सच्चाई के प्रति अपनी आँखों को बंद करना है। आप शायद यह महसूस करें कि उसके विषय में बात करना समय की बरबादी है और सर्वदा जीवित रहना केवल एक स्वप्न है।

इसमें सन्देह नहीं कि अधिकतर लोग आप से सहमत हों। अतः, तब हम क्यों आश्‍वस्त हो सकते हैं कि आप इस पृथ्वी पर परादीस में सर्वदा जीवित रह सकते हैं? हम क्यों विश्‍वास कर सकते हैं कि अनन्त जीवन केवल एक स्वप्न नहीं है?

हम क्यों विश्‍वास कर सकते हैं

३. यह कैसे प्रदर्शित होता है कि परमेश्‍वर मनुष्यों को पृथ्वी पर खुश देखना चाहता है?

हम विश्‍वास कर सकते हैं क्योंकि एक सर्वोच्च शक्‍ति, सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर ने इस पृथ्वी को उन सब वस्तुओं से तैयार किया है जो हमारी इच्छाओं को पूरा करने के लिए आवश्‍यक हैं। उसने पृथ्वी को हमारे लिए बिल्कुल पूर्ण बनाया है! और पुरुष और स्त्री को अत्युत्तम मार्ग से उत्पन्‍न किया जिससे कि वे इस पार्थिव निवास-स्थान में पूर्ण रूप से जीवन का आनन्द उठायें—और वह भी सर्वदा के लिए।—भजन संहिता ११५:१६.

४. वैज्ञानिकों ने मानव शरीर के बारे में क्या मालुम किया कि जिससे यह प्रदर्शित होता है कि उसे सर्वदा जीवित रहने के लिए बनाया गया था?

वैज्ञानिकों को बहुत समय से यह मालूम था कि मानव शरीर में नवीनीकरण की क्षमता पायी जाती है। शरीर कोशिकाओं को जैसी आवश्‍यकता होती है वे उसके अनुसार अद्‌भुत साधनों द्वारा अपने आपको प्रतिस्थापित कर लेती हैं या अपना सुधार स्वयं करती रहती हैं। और ऐसा लगता है कि यह स्वःनवीनीकरण की प्रक्रिया निरन्तर चलती रहनी चाहिए। परन्तु ऐसा नहीं होता है, और इस विचार को वैज्ञानिक अभी तक नहीं समझ पाए हैं। वे अभी तक पूर्ण रूप से नहीं समझ सके हैं कि लोग क्यों बूढ़े हो जाते हैं। वे कहते हैं कि उचित परिस्थितियों के अधीन, मनुष्यों को सर्वदा जीवित रहने के योग्य होना चाहिये।—भजन संहिता १३९:१४.

५. बाइबल पृथ्वी के प्रति परमेश्‍वर के उद्देश्‍य के विषय में क्या कहती है?

फिर भी, क्या यह वास्तव में परमेश्‍वर का उद्देश्‍य है कि लोग पृथ्वी पर सर्वदा सुखपूर्वक जीवित रहें? यदि यही उद्देश्‍य है तब अनन्त जीवन केवल अभिलाषा या स्वप्न नहीं है—यह निश्‍चित पूरा होगा! इस विषय में बाइबल, जो पुस्तक परमेश्‍वर के उद्देश्‍यों के विषय में बताती है, क्या कहती है? वह परमेश्‍वर को “पृथ्वी का रचयिता और निर्माणकर्त्ता” कहती है, और यह भी कहती है: “उसी ने उसको स्थिर भी किया; उसने उसे सुनसान रहने के लिये नहीं परन्तु बसने के लिये उसे रचा है।”यशायाह ४५:१८.

६. (क) आज पृथ्वी पर किस तरह की परिस्थितियाँ पायी जाती हैं? (ख) क्या इसी रीति से परमेश्‍वर यही चाहता था?

क्या आपको ऐसा प्रतीत होता है कि पृथ्वी अब उसी रीति से बसी हुई है जिस रीति से परमेश्‍वर चाहता था? यह सच है, कि वास्तव में लोग पृथ्वी के सभी भागों में रहते हैं। परन्तु क्या वे सब मिल-जुलकर एक परिवार के समान इकट्ठे उस उत्तम रीति से सुखपूर्वक रहते हैं जैसा कि उनका सृष्टिकर्त्ता उनके लिए चाहता था? आज संसार में फूट पड़ी हुई है। यहाँ घृणा है। जगह-जगह अपराध और युद्ध होते हैं। लाखों लोग भूखे और बीमार हैं। अन्य लोगों को मकानों, नौकरी और खर्चे के विषय में प्रतिदिन चिन्ताएँ रहती हैं। इनमें से किसी से भी परमेश्‍वर का सम्मान नहीं होता है। प्रत्यक्षतः, तब, यह पृथ्वी उस रीति से नहीं बसी हुई है जिस रीति से सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर प्रारम्भ में चाहता था।

७. जब परमेश्‍वर ने प्रथम मानव दंपत्ति को सृष्ट किया तो उसका पृथ्वी के प्रति क्या उद्देश्‍य था?

प्रथम मानव दंपत्ति को उत्पन्‍न करने के बाद परमेश्‍वर ने उनको एक पार्थिव परादीस में रखा था। वह चाहता था कि वे पृथ्वी पर सर्वदा जीवन का आनन्द लेते रहें। उनके लिये उसका उद्देश्‍य यह था कि वे सारी पृथ्वी पर अपने इस परादीस को विस्तृत करें। यह उनको दिये हुए उन निर्देशों से प्रकट होता है: “फूलो-फलो और पृथ्वी में भर जाओ और उसको अपने वश में कर लो।” (उत्पत्ति १:२८) हाँ, परमेश्‍वर का यही उद्देश्‍य था कि समय आने पर सम्पूर्ण पृथ्वी एक ऐसे धर्मी मानव परिवार के नियन्त्रण के अधीन हो जाये जहाँ सब मिलकर सुख और शांति में इकट्ठे रहें।

८. यद्यपि प्रथम दंपति ने परमेश्‍वर का उल्लंघन किया, हम क्यों निश्‍चित हो सकते हैं कि पृथ्वी के लिए परमेश्‍वर का उद्देश्‍य नहीं बदला?

यद्यपि प्रथम मानव दम्पत्ति ने परमेश्‍वर की आज्ञा का उल्लंघन किया, और इस प्रकार वे सर्वदा जीवित रहने के लिए अयोग्य सिद्ध हुए थे, परमेश्‍वर का प्रारम्भिक उद्देश्‍य नहीं बदला। वह अवश्‍य पूरा होना चाहिए! (यशायाह ५५:११) बाइबल वचन देती है: “धर्मी लोग पृथ्वी के अधिकारी होंगे और वे उसमें सदा बसे रहेंगे।” (भजन संहिता ३७:२९) अक्सर बाइबल परमेश्‍वर की व्यवस्था के संबंध में कहती है, जो मनुष्य उसकी सेवा करता है उन्हें वह अनन्त जीवन देगा।—यूहन्‍ना ३:१४-१६, ३६; यशायाह २५:८; प्रकाशितवाक्य २१:३, ४.

जीवित रहने की इच्छा—कहाँ?

९. (क) मनुष्यों की सामान्य रूप से क्या इच्छा होती है? (ख) इसका अर्थ क्या है जहाँ बाइबल यह कहती है कि ‘परमेश्‍वर ने उनके मन में शाश्‍वतत्व का बोध उत्पन्‍न किया’?

हम वास्तव में इस बात से खुश हो सकते हैं कि परमेश्‍वर का यह उद्देश्‍य है कि हम सर्वदा जीवित रहें। जरा सोचिये: यदि आपको यह फैसला करना पड़े, तो आप किस दिन मरना पसन्द करेंगे? क्या आप वास्तव में दिन चुन सकते हैं? नहीं, आप मरना नहीं चाहते हैं और न ही कोई सामान्य स्वस्थ व्यक्‍ति मरना चाहता है। परमेश्‍वर ने हमें जीवित रहने की इच्छा से बनाया है, न कि मरने की इच्छा से। जिस रीति से परमेश्‍वर ने मनुष्यों को बनाया, उस विषय में बाइबल यह कहती है: “उसने मनुष्यों के मन में शाश्‍वतत्व का बोध उत्पन्‍न किया।” (सभोपदेशक ३:११, बाइंगटन) इसका क्या अर्थ है? इसका यह अर्थ है कि साधारण रूप से लोग बिना मरे सदा जीवित रहना चाहते हैं। अन्तहीन भविष्य की इस इच्छा के कारण मनुष्य बहुत समय से सर्वदा जवान बने रहने के तरीके की खोज करते रहे हैं।

१०. (क) मनुष्य की सर्वदा जीवित रहने की कहाँ इच्छा होती है? (ख) हम क्यों विश्‍वस्त हो सकते हैं कि परमेश्‍वर पृथ्वी पर हमारे लिए सर्वदा जीवित रहना संभव करेगा?

१० कहाँ है वह स्थान, जहाँ मनुष्य सामान्य रूप से सर्वदा जीवित रहना चाहते हैं? वह स्थान है जहाँ वे रहने के आदी हो गये हैं, इसी पृथ्वी पर। मनुष्य पृथ्वी पर रहने के लिए बनाया गया था और यह पृथ्वी मनुष्य के लिए बनायी गयी थी। (उत्पत्ति २:८, ९, १५) बाइबल कहती है: “उसने [परमेश्‍वर ने] पृथ्वी की नींव को उसके स्थापित स्थानों पर रखा है जिससे कि वह अनिश्‍चित समय अर्थात्‌ अनन्त काल के लिये न डगमगाये।” (भजन संहिता १०४:५) क्योंकि पृथ्वी सर्वदा स्थिर रहने के लिये बनायी गयी थी, तब मनुष्य को भी सर्वदा जीवित रहना चाहिये। निश्‍चय ही ऐसा नहीं होगा कि एक प्रिय परमेश्‍वर मनुष्यों को सर्वदा जीवित रहने की इच्छा के साथ उत्पन्‍न करे और फिर उनके लिए उस इच्छा को पूरा करना संभव न करे!—१ यूहन्‍ना ४:८; भजन संहिता १३३:३.

उस प्रकार का जीवन जिसकी आप इच्छा करते हैं

११. यह प्रदर्शित करने के लिए कि लोग पूर्ण स्वास्थ्य सहित सर्वदा जीवित रह सकते हैं, बाइबल क्या कहती है?

११ आगामी पृष्ठ को देखिये। किस प्रकार के जीवन का ये लोग आनन्द ले रहे हैं? क्या आप भी उनमें सम्मिलित होना चाहते हैं? क्यों नहीं, आप हाँ कहेंगे! देखिये वे कैसे स्वस्थ और जवान नज़र आ रहे हैं! यदि आपको यह बताया जाये कि ये लोग हज़ारों वर्ष जीवित रह चुके हैं तब क्या आप विश्‍वास करेंगे? बाइबल हमें बताती है कि बूढ़े लोग फिर से जवान हो जायेंगे, बीमार अच्छे हो जायेंगे और वे लोग जो लंगड़े, अंधे, बहरे और गूंगे हैं अपनी सभी अस्वस्थता से चंगे हो जायेंगे। जब यीशु मसीह पृथ्वी पर था तब उसने रोगियों को स्वस्थ करने के लिए अनेक चमत्कार किये थे। ऐसा करके उसने यह प्रदर्शित किया कि उस शानदार समय में जो दूर नहीं, वे सब जो जीवित हैं, पुनः पूर्ण स्वास्थ्य को प्राप्त कर लेंगे।—अय्यूब ३३:२५; यशायाह ३३:२४; ३५:५, ६; मत्ती १५:३०, ३१.

१२. हम इन चित्रों में कैसी परिस्थितियाँ देखते हैं?

१२ देखिये यह कितना प्यारा उद्यान रूपी निवास-स्थान है! जैसे कि मसीह ने वचन दिया था यह सचमुच एक परादीस है, उस परादीस के समान जिसे प्रथम अवज्ञाकारी पुरुष और स्त्री ने खो दिया था। (लूका २३:४३) उस शान्ति और मैत्रीभाव पर ध्यान दीजिए जो यहाँ विद्यमान है। सब प्रजातियों के लोग—काले, गोरे, पीले—एक परिवार के समान रह रहे हैं। यहाँ तक कि जानवर भी शान्तिमय हैं। बच्चे को शेर के साथ खेलते हुए देखिये। लेकिन यहाँ डरने का कोई कारण नहीं है। इस सम्बन्ध में सृष्टिकर्त्ता की यह घोषणा है: “चीता बकरी के बच्चे के साथ बैठा करेगा, और बछड़ा और जवान सिंह और पाला-पोसा हुआ बैल सब इकट्ठे रहेंगे; और केवल एक छोटा लड़का उनकी अगुवाई करेगा . . . और सिंह बैल के समान भूसा खाया करेगा। और दूध पिउवा बच्चा नाग के बिल पर खेलेगा।”—यशायाह ११:६-९.

१३. कौनसी बातें पृथ्वी पर से जाती रहेंगी जब परमेश्‍वर के उद्देश्‍य की पूर्ति होगी?

१३ इस परादीस में जिसका संकल्प परमेश्‍वर ने मनुष्यों के लिये किया है, खुश रहने का प्रत्येक कारण होगा। खाने के लिए, पृथ्वी अधिक उत्तम खाद्य पदार्थ उत्पादित करेगी। फिर कभी कोई भूखा नहीं रहेगा। (भजन संहिता ७२:१६; ६७:६) युद्ध, अपराध, हिंसा यहाँ तक कि घृणा और स्वार्थ भी भूतकाल की बातें होंगी। हाँ, वे सदा के लिये जाती रहेंगी! (भजन संहिता ४६:८, ९; ३७:९-११) क्या आपको विश्‍वास है कि ये सब बातें सम्भव हैं?

१४. किन बातों से आपको विश्‍वास होता है कि परमेश्‍वर दुःखों का अन्त करेगा?

१४ अच्छा, सोचिये: यदि आपके पास सामर्थ्य होता तो क्या आप उन तमाम बातों को जो मानव दुःखों का कारण हैं, खत्म नहीं कर देते? और क्या आप उन परिस्थितियों को उत्पन्‍न नहीं करते जिनके लिए मानव हृदय लालसा रखता है? अवश्‍य आप यही करते। हमारा प्रिय स्वर्गीय पिता बिल्कुल यही करेगा। वह हमारी आवश्‍यकताओं और इच्छाओं को सन्तुष्ट करेगा, क्योंकि भजन संहिता १४५:१६ परमेश्‍वर के विषय में कहता है: “तू अपनी मुट्ठी खोलकर प्रत्येक जीवित प्राणी की इच्छा को सन्तुष्ट करता है।” परन्तु यह कब होगा?

महान आशीषें निकट हैं

१५. (क) पृथ्वी के लिए संसार का अन्त क्या अर्थ रखेगा? (ख) दुष्ट लोगों के लिए इसका क्या अर्थ होगा? (ग) उन लोगों के लिए जो परमेश्‍वर की इच्छा पूरी करते हैं, क्या अर्थ होगा?

१५ पृथ्वी पर इन उत्तम आशीषों को सम्भव करने के लिये परमेश्‍वर दुष्टता और उसके प्रेरित करनेवालों दोनों को समाप्त करने की प्रतिज्ञा करता है। और साथ ही जो उसकी सेवा करते हैं उनकी रक्षा करेगा क्योंकि बाइबल कहती है: “संसार और उसकी अभिलाषाएं दोनों मिटते जाते हैं पर वह जो परमेश्‍वर की इच्छा पर चलता है, सर्वदा बना रहेगा।” (१ यूहन्‍ना २:१७) वह कितना महान परिवर्तन होगा! संसार के अन्त का यह अर्थ नहीं कि हमारी पृथ्वी का अन्त होगा। इसकी अपेक्षा इसका यह अर्थ है कि दुष्ट लोगों और उनकी जीवन-रीति का अन्त होगा जैसा कि नूह के दिनों में विश्‍वव्यापी जलप्रलय के समय हुआ था। परन्तु वे जो परमेश्‍वर की सेवा करते हैं इस अन्त से बच निकलेंगे। तब, इस स्वच्छ पृथ्वी पर वे उन लोगों से जो उनको हानि पहुंचाना और दुःख देना चाहते हैं, मुक्‍त होकर आनन्दित होंगे।—मत्ती २४:३, ३७-३९; नीतिवचन २:२१, २२.

१६. “अन्तिम दिनों” के लिए किन घटनाओं की सूचना दी गई थी?

१६ परन्तु कोई शायद यह कहे: ‘परिस्थितियाँ बदतर होती जा रही हैं न कि बेहतर। हम कैसे निश्‍चित हो सकते हैं कि यह महान परिवर्तन निकट है?’ यीशु मसीह ने उन अनेक बातों की सूचना दी थी जिनके प्रति उसके भावी अनुयायी चौकस रहें जिससे कि वे जान लेंगे कि परमेश्‍वर द्वारा संसार को समाप्त करने का समय आ गया है। यीशु ने कहा था कि इस रीति-व्यवहार के अन्तिम दिन निम्न प्रकार की बातों से चिन्हित होंगे जैसे कि महायुद्ध, खाद्य पदार्थ की न्यूनता, महाभूकम्प, बढ़ती हुई अराजकता और प्रेमहीनता होगी। (मत्ती २४:३-१२) उसने कहा था कि “राष्ट्रों में वेदना होगी और कोई उपाय नहीं सूझेगा।” (लूका २१:२५) इसके अतिरिक्‍त बाइबल यह भी कहती है: “अन्तिम दिनों में संकटपूर्ण समय होंगे जिनका मुकाबला करना कठिन होगा।” (२ तीमुथियुस ३:१-५) क्या ये वही परिस्थितियाँ नहीं हैं जिन्हें हम अब अनुभव कर रहे हैं?

१७. आज की परिस्थितियों के विषय में विचारशील व्यक्‍ति क्या कहते हैं?

१७ अनेक लोग जो संसार की घटनाओं को अध्ययन करते हैं यह कहते हैं कि एक महान परिवर्त्तन का निर्माण हो रहा है। उदाहरण के तौर पर मियामी, संयुक्‍त राज्य अमेरिका के हेरल्ड नामक अख़बार के संपादक ने यह लिखा: “कोई भी व्यक्‍ति जो थोड़ी भी तार्किक बुद्धि रखता है, पिछले कुछेक वर्षों की प्रलय रूपी घटनाओं को एक साथ रखकर यह देख सकता है कि यह संसार एक ऐतिहासिक दहलीज़ पर खड़ा है। . . . वह हमेशा के लिए मनुष्यों की जीवन-रीति को बदल देगा।” इसी समान रीति से अमेरिकन लेखक लुईस ममफोर्ड ने यह कहा: “सभ्यता लुढ़कती जा रही है। अति निश्‍चित रूप से। . . . अतीत में जब सभ्यता का ह्रास होता था तब वह एक अपेक्षाकृत स्थानीय घटना होती थी। . . . अब जबकि संसार की सभ्यता आधुनिक संचार साधनों द्वारा एक दूसरे से जुड़ी हुई है, इसलिए जब सभ्यता का ह्रास होता है, तब सम्पूर्ण ग्रह समाप्त हो सकता है।”

१८. (क) भविष्य के विषय में संसार की परिस्थितियाँ क्या प्रदर्शित करती हैं? (ख) वर्तमान सरकारों के स्थान पर क्या आयेगा?

१८ आज संसार में जो परिस्थितियाँ विद्यमान हैं उनसे यह प्रदर्शित होता है कि हम अब उस समय में रह रहे हैं कि जब इस सम्पूर्ण रीति-व्यवहार का विनाश निश्‍चित होगा। हाँ, अब अतिशीघ्र ही परमेश्‍वर इस पृथ्वी को उन सब लोगों से जो उसे बरबाद करते हैं, स्वच्छ करेगा। (प्रकाशितवाक्य ११:१८) वह सारी पृथ्वी पर अपनी धर्मी सरकार द्वारा राज्य लाने के लिये वर्तमान सरकारों को हटायेगा। यही वह राज्य-शासन है जिसके लिए मसीह ने अपने अनुयायियों को प्रार्थना करना सिखाया था।—दानिय्येल २:४४; मत्ती ६:९, १०.

१९. यदि हम सर्वदा जीवित रहना चाहते हैं तो हमें क्या करना चाहिये?

१९ यदि आप जीवन से प्यार करते हैं और परमेश्‍वर के शासन के अधीन सर्वदा जीवित रहना चाहते हैं, तब आपको परमेश्‍वर और उसके उद्देश्‍यों और उसकी आवश्‍यकताओं का यथार्थ ज्ञान लेने के लिये शीघ्रता करनी चाहिये। यीशु मसीह ने परमेश्‍वर के प्रति अपनी प्रार्थना में कहा था: “अनन्त जीवन यह है कि वे तुझ अद्वैत सच्चे परमेश्‍वर को और यीशु मसीह को जिसे तू ने भेजा है, जानें।” (यूहन्‍ना १७:३) यह जानकर कितना हर्ष होता है कि हम सर्वदा जीवित रह सकते हैं—कि वह केवल एक स्वप्न नहीं! परन्तु परमेश्‍वर की ओर से इस उत्तम आशीष का आनन्द लेने के लिए हमें उस शत्रु के विषय में जानकारी प्राप्त करने की आवश्‍यकता है जो हमें इस आशीष को प्राप्त करने से दूर रखने की कोशिश कर रहा है।

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज ८, ९ पर तसवीरें]

क्या परमेश्‍वर ने संसार को इस प्रकार का होना नियत किया था?

[पेज ११ पर पूरे पेज पर तसवीर]