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सर्वदा जीवित रहने के लिए आपको क्या करना चाहिये

सर्वदा जीवित रहने के लिए आपको क्या करना चाहिये

अध्याय ३०

सर्वदा जीवित रहने के लिए आपको क्या करना चाहिये

१. (क) आपके सम्मुख कौनसे दो रास्ते खुले हैं? (ख) आप कैसे सही रास्ता चुन सकते हैं?

यहोवा परमेश्‍वर आपको एक अद्‌भुत वस्तु प्रस्तुत करता है अर्थात्‌ न्याययुक्‍त नयी व्यवस्था में शाश्‍वत जीवन। (२ पतरस ३:१३) परन्तु उस समय का जीवन आपके इस समय परमेश्‍वर की इच्छा पूरी करने पर निर्भर है। वर्तमान दुष्ट संसार जिसमें वे सब सम्मिलित हैं जो उसका भाग बने हुए हैं, समाप्त होने जा रहा है, “परन्तु जो परमेश्‍वर की इच्छा पूरी करता है सर्वदा बना रहेगा।” (१ यूहन्‍ना २:१७) अतः आपके लिए दो मार्गों में से एक को चुनना आवश्‍यक है। एक मृत्यु की ओर ले जाता है और दूसरा अनन्त जीवन की ओर। (व्यवस्थाविवरण ३०:१९, २०) आप कौनसा रास्ता लेंगे?

२. (क) यदि आपका विश्‍वास सच्चा है तो आप किस बात के कायल होंगे? (ख) एक बच्चे के समान जो अपने प्रिय पिता पर विश्‍वास रखता है आपको परमेश्‍वर पर विश्‍वास रखना उसकी सेवा करने में आपकी सहायता कैसे करेगा?

आप कैसे प्रदर्शित करते हैं कि आपने जीवन को चुना है? सबसे पहले आपका यहोवा में और उसकी प्रतिज्ञाओं में विश्‍वास करना आवश्‍यक है। क्या आप दृढ़तापूर्वक इस बात के कायल हैं कि परमेश्‍वर अस्तित्व मैं है “और उनको जो यत्नपूर्वक उसकी खोज करते हैं, प्रतिफल देता है?” (इब्रानियों ११:६) आपको परमेश्‍वर में उसी प्रकार विश्‍वास करने की आवश्‍यकता है जिस प्रकार कोई पुत्री या पुत्र अपने प्रिय और करुणामय पिता में विश्‍वास रखता है। (भजन संहिता १०३:१३, १४; नीतिवचन ३:११, १२) इस प्रकार का विश्‍वास रखने से आपको इस बात पर कि उसका परामर्श बुद्धिपूर्ण या उसके तरीके सही हैं, संदेह नहीं रहेगा, यद्यपि कि आप कभी-कभी पूर्ण रूप से कुछेक बातों को नहीं समझते हों।

३. (क) विश्‍वास के अतिरिक्‍त किस अन्य बात की आवश्‍यकता है? (ख) यह प्रदर्शित करने के लिए कि आप जीवन को चुन रहे हैं किन कार्यों को करने की आवश्‍यकता है?

तथापि विश्‍वास से कुछ अधिक करने की आवश्‍यकता है। यह प्रदर्शन करने के लिए यहोवा के विषय में आपकी सत्य भावनाएं क्या हैं, कार्यों का भी होना आवश्‍यक है। (याकूब २:२०, २६) इस विषय में यह प्रदर्शित करने के लिए कि अतीत में, जो सही है उसे न करने का आपको अफसोस है, क्या आपने कुछ किया है? क्या आप अपने जीवन मार्ग को यहोवा की इच्छा के सामंजस्य में लाने के लिये अपने जीवन में परिवर्तन करने अथवा पश्‍चाताप करने के लिये प्रेरित हुए हैं? क्या आपने अपना रास्ता बदल लिया है या गलत मार्ग को जिसपर आप चल रहे थे, छोड़ दिया है, और क्या आपने वही कार्य करने आरंभ किये हैं जो परमेश्‍वर चाहता है? (प्रेरितों के काम ३:१९; १७:३०) इस प्रकार के कार्य यह प्रदर्शित करेंगे कि आपने जीवन को चुना है।

समर्पण और बपतिस्मा

४. (क) वह क्या है जिसे आपको परमेश्‍वर की इच्छा पूरी करने के लिए प्रेरित करना चाहिये? (ख) जब आप निर्णय कर लें कि आप परमेश्‍वर की सेवा करना चाहते हैं तो आपके लिए क्या करना उचित है?

किस बात से आपको प्रेरणा मिलनी चाहिये कि आपने परमेश्‍वर की इच्छा पूरी करके जीवन को चुना है? उसके महत्व को समझने से प्रेरणा मिलनी चाहिये। जरा सोचिये: यहोवा ने आपके लिए सारे रोग, दुःख यहाँ तक कि मृत्यु से छुटकारा देना संभव किया है! अपने पुत्र के मूल्यवान वरदान द्वारा उसने आपके लिए परादीस रूपी पृथ्वी पर अनन्त जीवन का रास्ता खोल दिया है। (१ कुरिन्थियों ६:१९, २०; ७:२३; यूहन्‍ना ३:१६) जब यहोवा का प्रेम आपको उसके बदले में उससे प्रेम करने के लिए प्रेरित करता है तो आपको क्या करना चाहिये? (१ यूहन्‍ना ४:९, १०; ५:२, ३) आपको यीशु के नाम में परमेश्‍वर के पास जाना चाहिये और अपनी प्रार्थना में उससे कहना चाहिये कि आप उसके सेवक बनना चाहते हैं और आप उसके होना चाहते हैं। इस तरीके से आप अपने आपको परमेश्‍वर को समर्पित करते हैं। यह एक व्यक्‍तिगत निजी विषय है। कोई दूसरा आपके लिए यह कार्य नहीं कर सकता है।

५. (क) जब आप अपने आपको परमेश्‍वर के प्रति समर्पित कर लें तो वह आपसे क्या करने की प्रत्याशा करता है? (ख) अपने समर्पण के अनुसार जीवन व्यतीत करने के लिए आपको कौनसी सहायता उपलब्ध है?

परमेश्‍वर के प्रति अपने आपको समर्पित करने के पश्‍चात्‌ वह आपसे उसके अनुसार जीवन व्यतीत करने की प्रत्याशा करेगा। अतः जब तक आप जीवित रहें इस समर्पण अथवा निर्णय पर कायम रहकर सिद्ध कीजिए कि आप अपने वचन के पक्के हैं। (भजन संहिता ५०:१४) यदि आप परमेश्‍वर के दृश्‍य संगठन के नज़दीक रहेंगे तो आपका अपने संगी मसीहियों से सहायता मिल सकती है जो आपके खुशी से अपना प्रिय प्रोत्साहन और समर्थन देंगे।—१ थिस्सलुनीकियों ५:११.

६. (क) जब आप अपने जीवन को परमेश्‍वर के प्रति समर्पित कर दें तो फिर क्या करने की आवश्‍यकता है? (ख) बपतिस्मा का अर्थ क्या है?

तथापि आपको निजी तौर पर यहोवा को यह बताने की अपेक्षा कि आप उसके होना चाहते हैं, कुछ अधिक करने की आवश्‍यकता है। आपको दूसरों के सम्मुख यह बताने की आवश्‍यकता है कि आपने परमेश्‍वर की सेवा करने के लिये अपने आपको समर्पित किया है। यह आप कैसे करते हैं? पानी में बपतिस्मा लेकर। इस प्रकार के पानी का बपतिस्मा एक सार्वजनिक प्रदर्शन है कि एक व्यक्‍ति ने अपना जीवन यहोवा के प्रति समर्पित किया है और उसकी इच्छा पूरी करने के लिये अपने आपको प्रस्तुत कर रहा है।

७. (क) मसीहियों के लिए यीशु ने क्या उदाहरण प्रस्तुत किया था? (ख) यीशु द्वारा आदेशित बपतिस्मा छोटे बच्चों के लिए क्यों नहीं है?

पानी का बपतिस्मा एक महत्वपूर्ण आवश्‍यकता है, यह यीशु मसीह के उदाहरण द्वारा प्रदर्शित हुआ है। यीशु ने अपने पिता से केवल यह नहीं कहा था कि वह उसकी इच्छा पूरी करने आया है। (इब्रानियों १०:७) जब वह परमेश्‍वर के राज्य के प्रचारक के रूप में अपनी सेवा को आरंभ करने जा रहा था तो यीशु ने अपने आपको यहोवा के प्रति प्रस्तुत किया और पानी में बपतिस्मा लिया। (मत्ती ३:१३-१७) क्योंकि यीशु ने नमूना प्रस्तुत किया इसलिये उन सबको जो आज यहोवा के प्रति उसकी इच्छा पूरी करने के लिए अपने आपको समर्पित करते हैं, पानी में बपतिस्मा लेना चाहिये। (१ पतरस २:२१; ३:२१) वास्तविकता यह है कि यीशु ने अपने अनुयायियों को सब राष्ट्रों में से लोगों को शिष्य बनाने और तब इन नये शिष्यों को बपतिस्मा देने का आदेश दिया था। यह बच्चों का बपतिस्मा नहीं है। यह उन व्यक्‍तियों का बपतिस्मा है जो विश्‍वासी बन गये हैं और जिन्होंने यहोवा की सेवा करने के लिये निर्णय किया है।—मत्ती २८:१९; प्ररितों के काम ८:१२.

८. यदि आप बपतिस्मा लेना चाहते हैं तो आप मंडली में किसको इसकी जानकारी देंगे और क्यों?

यदि आपने यहोवा की सेवा करने का निर्णय कर लिया है और बपतिस्मा लेना चाहते हैं, तो आपको क्या करना चाहिये? तब आप यहोवा के गवाहों की उस मंडली जिससे आप संबद्ध हैं उसके प्रधान सर्वेक्षक को अपनी इच्छा की जानकारी दें। वह मंडली में अन्य प्रौढ़ जनों के साथ खुशी से आपके साथ उस सूचना पर पुनर्विचार करेगा जिसका जानना आपके लिए आवश्‍यक है जिससे कि आप स्वीकार्य तरीके से परमेश्‍वर की सेवा करें। तब आपके लिए बपतिस्मा का प्रबंध किया जा सकता है।

परमेश्‍वर की इच्छा आज आपके लिए

९. जलप्रलय से पहले नूह ने क्या किया था जो आज भी आपके करने के लिए परमेश्‍वर की इच्छा है?

जलप्रलय से पहले यहोवा ने नूह को जो “धार्मिकता का प्रचारक” था आनेवाले विनाश की चेतावनी देने और सुरक्षा का केवल एकमात्र स्थान की ओर संकेत करने के लिए जो जहाज़ था, प्रयोग किया था। (मत्ती २४:३७-३९; २ पतरस २:५; इब्रानियों ११:७) परमेश्‍वर की इच्छा यही है कि आप अब उसी समान प्रचार कार्य करें। यीशु ने हमारे समय के विषय में भविष्यवाणी की थी: “राज्य के इस सुसमाचार का प्रचार सारी बसी हुई पृथ्वी पर किया जायेगा जिससे सब जातियों पर गवाही हो और तब अन्त आ जायेगा।” (मत्ती २४:१४) दूसरों को ये बातें मालूम होना आवश्‍यक है जो आपने परमेश्‍वर के उद्देश्‍यों के विषय में सीखी हैं यदि उनको इस व्यवस्था से बचना है और सर्वदा जीवित रहना है। (यूहन्‍ना १७:३) क्या आपका हृदय दूसरों को ये जीवनदायक ज्ञान बताने में भाग लेने के लिए प्रेरित नहीं होता है?

१०. (क) हमें यीशु द्वारा प्रस्तुत किस उदाहरण का अनुसरण करने के लिए प्रेरित होना चाहिये? (ख) अधिकतर प्रचार कार्य कैसे किया जाता है?

१० मसीह के उदाहरण का अनुसरण कीजिए। वह लोगों का अपने पास आने का इंतज़ार नहीं करता था बल्कि वह उन लोगों की खोज में जाता था जो राज्य संदेश को सुनते। और उसने अपने अनुयायियों को अर्थात्‌ सबको ऐसा ही करने का निर्दश दिया था। (मत्ती २८:१९; प्रेरितों के काम ४:१३; रोमियों १०:१०-१५) मसीह के निर्देश और उदाहरण का अनुसरण करके प्रारंभिक मसीही लोगों को उनके घरों में मिलने जाते थे। वे “घर-घर” राज्य संदेश लेकर जाते थे। (लूका १०:१-६; प्रेरितों के काम २०:२०) हमारे दिनों में सच्चे मसीहियों के लिए सेवा कार्य करने का अब भी यह एक मुख्य तरीका है।

११. (क) परमेश्‍वर के राज्य का प्रचार करने के लिए क्यों हिम्मत चाहिये परन्तु हमें क्यों डरने की आवश्‍यकता नहीं है? (ख) जो कार्य हम करते हैं यहोवा उसे किस दृष्टिकोण से देखता है?

११ यह कार्य करने के लिए हिम्मत की आवश्‍यकता है। शैतान और उसका संसार निश्‍चय आपको रोकने का प्रयत्न करेंगे जिस प्रकार उन्होंने मसीह के प्रारंभिक अनुयायियों को प्रचार कार्य से रोकने का प्रयत्न किया था। (प्रेरितों के काम ४:१७-२१; ५:२७-२९, ४०-४२) आपको डरने की आवश्‍यकता नहीं है। जिस प्रकार यहोवा ने उन प्रारंभिक मसीहियों को प्रोत्साहन दिया और दृढ़ किया उसी समान वह आज भी आपके लिये करेगा। (२ तीमुथियुस ४:१७) अतः हिम्मत रखिये! जीवनदायक प्रचार और शिक्षा कार्य में पूर्ण रूप से भाग लेकर सिद्ध कीजिए कि आप वास्तव में यहोवा और अपने संगी मनुष्यों से प्रेम करते हैं। (१ कुरिन्थियों ९:१६; १ तीमुथियुस ४:१६) यहोवा आपके कार्य को नहीं भूलेगा बल्कि प्रचुर मात्रा में आपको प्रतिफल देगा।—इब्रानियों ६:१०-१२; तीतुस १:२.

१२. हम लूत की पत्नी के उदाहरण से क्या सीख सकते हैं?

१२ वास्तविक मूल्य की कोई भी ऐसी वस्तु नहीं है जो यह पुरानी व्यवस्था हमें दे सकती है, इसलिए उसकी ओर पीठ करके यह कभी न सोचिये कि आप कुछ खो रहे हैं। यीशु ने कहा था: “लूत की पत्नी को याद रखो।” (लूका १७:३२) जब वह और उसका परिवार सदोम से निकल भागा तो उसके पश्‍चात्‌ वह मुड़कर लालसापूर्ण रीति से उन वस्तुओं की ओर देखने लगी जो वह पीछे छोड़ आयी थी। परमेश्‍वर ने देखा कि उसका दिल कहाँ था और वह नमक का खंभा बन गयी। (उत्पत्ति १९:२६) लूत की पत्नी के समान न होइये! अपनी दृष्टि को उसपर रखिये जो आपके आगे है अर्थात्‌ परमेश्‍वर की न्याययुक्‍त व्यवस्था में “वास्तविक जीवन” पर।—१ तीमुथियुस ६:१९.

पृथ्वी पर परादीस में अनन्त जीवन को चुनें

१३. यीशु ने हमारे सम्मुख वे दो मार्ग क्या रखे जिनमें से एक का लेना हम सब के लिए आवश्‍यक है?

१३ वास्तव में केवल दो वस्तुएं हैं जिनमें से आपको एक को चुनना है। मसीह ने उसकी तुलना दो मार्गों में से एक मार्ग के लेने से की थी। उसने कहा था कि एक मार्ग “चौड़ा और विस्तृत” है। उस मार्ग पर यात्रियों को अपना स्वार्थ पूरा करने की स्वतंत्रता प्राप्त है। तथापि दूसरा मार्ग “तंग” है। हाँ, उस मार्ग पर जो लोग हैं उनके लिए परमेश्‍वर के नियम और निर्देशों का पालन आवश्‍यक है। यीशु ने विशेष रूप से यह बात कही कि अधिकतर लोग चौड़ा रास्ता लेते हैं। केवल थोड़े हैं जो संकीर्ण मार्ग पर जाते हैं। आप कौनसा मार्ग लेंगे? आप जिस मार्ग पर जाना पसंद करते हैं तो इस बात को दिमाग में रखिये: “चौड़ा रास्ता एक चरम अन्त पर अर्थात्‌ विनाश को जायेगा! दूसरी ओर संकीर्ण रास्ता आपको सीधे परमेश्‍वर की नयी व्यवस्था में ले जाएगा। वहाँ आप पृथ्वी को एक महिमायुक्‍त परादीस में बदलने के कार्य में भाग ले सकते हैं जहाँ आप खुशी में सर्वदा जीवित रह सकते हैं।—मत्ती ७:१३, १४.

१४. हमारे लिए परमेश्‍वर की नयी व्यवस्था में उत्तरजीवी होने के लिए किसका भाग होना आवश्‍यक है?

१४ इस निष्कर्ष पर न पहुंचिये कि परमेश्‍वर की नयी व्यवस्था में जीवन प्राप्त करने के लिए आप भिन्‍न मार्ग अथवा तरीकों का अनुसरण कर करते हैं। केवल एकमात्र चौड़ा रास्ता है। जलप्रलय से अनेक नाव नहीं बल्कि केवल एक जहाज़ बचा था। तेज़ी से निकट आनेवाले “बड़े क्लेश” से केवल एक मात्र संगठन—अर्थात परमेश्‍वर का दृश्‍य संगठन बचेगा। यह बात बिल्कुल सच नहीं कि सब धर्म एक ही लक्ष्य की ओर जाते हैं। (मत्ती ७:२१-२३; २४:२१) परमेश्‍वर द्वारा अनन्त जीवन की आशीष प्राप्त करने के लिए आपको यहोवा के संगठन का भाग होना और परमेश्‍वर की इच्छा पूरी करना आवश्‍यक है।—भजन संहिता १३३:१-३.

१५. (क) हमें प्रतिदिन क्या करने की आवश्‍यकता है? (ख) वह कौनसी आशा है जो केवल स्वप्न नहीं है?

१५ अतः परमेश्‍वर के प्रतिज्ञित नये रीति-व्यवहार के चित्र को अपने दिल और दिमाग में उज्ज्वल रखिये। प्रतिदिन उस महान पुरस्कार के विषय में सोचते रहिये जो यहोवा परमेश्‍वर ने आपको देने के लिए सुरक्षित रखा है—अर्थात्‌ पृथ्वी पर परादीस में सर्वदा जीवित रहने का पुरस्कार। यह स्वप्न नहीं है। यह वास्तविकता है! क्योंकि बाइबल की यह प्रतिज्ञा निश्‍चय पूरी होगी: “धर्मी लोग स्वयं पृथ्वी के अधिकारी होंगे और वे इसपर सर्वदा वास करेंगे . . . जब दुष्ट काट डाले जायेंगे, तब तू वह देखेगा।”—भजन संहिता ३७:२९, ३४.

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज २५१ पर तसवीरें]

यहोवा के प्रति अपने आपको समर्पित कीजिए . . . और बपतिस्मा लीजिए

[पेज २५३ पर तसवीरें]

“लूत की पत्नी को याद रखो”

[पेज २५४ पर तसवीरें]

परमेश्‍वर की नयी व्यवस्था को अपने दिमाग और हृदय में रोशन रखिये