अध्ययन लेख 32
यहोवा की तरह लिहाज़ करनेवाले हों!
“सब लोग जान जाएँ कि तुम लिहाज़ करनेवाले इंसान हो।”—फिलि. 4:5.
गीत 89 सुन के अमल करें
एक झलक a
1. मसीहियों को किस तरह एक पेड़ की तरह होना चाहिए? (तसवीर भी देखें।)
“जो पेड़ झुक जाता है, उसे तेज़ हवाएँ भी गिरा नहीं पातीं।” इस अफ्रीकी कहावत से पता चलता है कि कुछ पेड़ इसलिए मज़बूती से खड़े रह पाते हैं, क्योंकि ज़रूरत पड़ने पर वे झुक जाते हैं। उसी तरह अगर एक मसीही खुशी से यहोवा की सेवा करते रहना चाहता है, तो उसे झुकने के लिए तैयार रहना चाहिए। इसका मतलब, जब हमारे हालात बदल जाएँ, तो हमें फेरबदल करने के लिए तैयार रहना चाहिए और जब दूसरों की सोच या उनके फैसले हमसे अलग हों, तो हमें उनका लिहाज़ करना चाहिए।
2. (क) कौन-से गुण बढ़ाने से हम बदलते हालात का सामना कर पाएँगे? (ख) इस लेख में हम क्या जानेंगे?
2 हम यहोवा के सेवक हैं, इसलिए हम भी चाहते हैं कि हम दूसरों का लिहाज़ करें और फेरबदल करने को तैयार रहें। हम नम्र भी होना चाहते हैं और चाहते हैं कि हमारे दिल में दूसरों के लिए करुणा हो। इस लेख में हम जानेंगे कि ये गुण बढ़ाने से कैसे कुछ मसीही बदलते हालात का सामना कर पाए और इन्हें बढ़ाने से हमें कैसे फायदा हो सकता है। लेकिन आइए पहले यहोवा और यीशु से सीखें जो लिहाज़ और फेरबदल करने के मामले में हमारे लिए सबसे बढ़िया मिसाल हैं।
यहोवा और यीशु हैं एक बढ़िया मिसाल
3. किस बात से यह साबित होता है कि यहोवा लिहाज़ करनेवाला परमेश्वर है और फेरबदल करने को तैयार रहता है?
3 यहोवा के बारे में कहा गया है कि वह “चट्टान” है, क्योंकि वह अटल रहता है। (व्यव. 32:4) लेकिन वह लिहाज़ करनेवाला परमेश्वर भी है और ज़रूरत पड़ने पर फेरबदल करने को भी तैयार रहता है। जैसे-जैसे दुनिया के हालात बदलते हैं, वह अपना मकसद पूरा करने के लिए फेरबदल करता है। यहोवा ने इंसानों को भी अपनी छवि में बनाया है। इसलिए हममें ऐसी काबिलीयत है कि हम बदलते हालात में खुद को ढाल सकते हैं। उसने बाइबल में ऐसे सिद्धांत भी दिए हैं, जिन्हें ध्यान में रखकर हम सही फैसले कर सकते हैं, फिर चाहे हमारे सामने कैसे भी हालात आएँ। यहोवा की मिसाल से और उसने जो सिद्धांत दिए हैं, उनसे साबित होता है कि वह “चट्टान” की तरह अटल है, साथ ही वह लिहाज़ करने और फेरबदल करने के लिए भी तैयार रहता है।
4. एक उदाहरण देकर समझाइए कि यहोवा किस तरह लिहाज़ करनेवाला परमेश्वर है। (लैव्यव्यवस्था 5:7, 11)
4 यहोवा जिस तरह इंसानों के साथ पेश आता है, उससे भी पता चलता है कि वह लिहाज़ करनेवाला परमेश्वर है। वह हमेशा वही करता है जो सही है, वह कभी लोगों के साथ कठोरता से पेश नहीं आता, बल्कि फेरबदल करने के लिए तैयार रहता है। उदाहरण के लिए, ध्यान दीजिए कि यहोवा ने इसराएलियों का किस तरह लिहाज़ किया। उसने हमेशा यह उम्मीद नहीं की कि सभी इसराएली एक ही तरह का बलिदान चढ़ाएँ, फिर चाहे वे गरीब हों या अमीर। कुछ मामलों में उसने हर किसी को अपनी हैसियत के हिसाब से बलिदान चढ़ाने की इजाज़त दी।—लैव्यव्यवस्था 5:7, 11 पढ़िए।
5. हम क्यों कह सकते हैं कि यहोवा नम्र है और करुणा करनेवाला परमेश्वर है? उदाहरण देकर समझाइए।
5 यहोवा इसलिए लिहाज़ करता है और फेरबदल करने को तैयार रहता है, क्योंकि वह नम्र है और उसके दिल में लोगों के लिए करुणा है। ज़रा एक उदाहरण पर ध्यान दीजिए जिससे पता चलता है कि यहोवा कितना नम्र है। उसने फैसला कर लिया था कि वह सदोम के दुष्ट लोगों का नाश कर देगा। उसने अपने स्वर्गदूतों को भेजकर अपने नेक सेवक लूत को हिदायत दी कि वह पहाड़ी प्रदेश में भाग जाए। पर लूत वहाँ जाने से डर रहा था, इसलिए उसने परमेश्वर से गुज़ारिश की कि क्या वह और उसका परिवार पास के छोटे-से नगर सोआर में जा सकते हैं। यहोवा सोआर का भी नाश करनेवाला था, इसलिए वह लूत से कह सकता था कि उससे जो कहा गया है, वह वैसा ही करे। लेकिन उसने लूत का लिहाज़ किया और उसकी गुज़ारिश मान ली। इस वजह से उसने सोआर को बख्श दिया। (उत्प. 19:18-22) सदियों बाद यहोवा ने नीनवे के लोगों पर करुणा की। कैसे? उसने भविष्यवक्ता योना को वहाँ यह ऐलान करने के लिए भेजा था कि वह जल्द ही उस शहर और वहाँ के सभी दुष्ट लोगों का नाश करनेवाला है। लेकिन फिर नीनवे के लोगों ने पश्चाताप किया। इसलिए यहोवा को उन पर तरस आया और उसने उनका और उनके शहर का नाश नहीं किया।—योना 3:1, 10; 4:10, 11.
6. उदाहरण देकर समझाइए कि यीशु ने कैसे यहोवा की तरह दूसरों का लिहाज़ किया।
6 यहोवा की तरह यीशु भी लोगों का लिहाज़ करता है। उसे धरती पर “इसराएल के घराने की खोयी हुई भेड़ों को” प्रचार करने के लिए भेजा गया था। लेकिन यह ज़िम्मेदारी निभाते वक्त वह लकीर का फकीर नहीं बना रहा। एक मौके पर एक गैर-इसराएली औरत ने उससे गिड़गिड़ाकर बिनती की कि वह उसकी बेटी को ठीक कर दे, जिसे “एक दुष्ट स्वर्गदूत ने बुरी तरह काबू में कर लिया” था। यीशु के दिल में उस औरत के लिए करुणा भर आयी और उसने उसकी बेटी को ठीक कर दिया। (मत्ती 15:21-28) एक और उदाहरण पर ध्यान दीजिए। धरती पर सेवा करते वक्त एक बार यीशु ने कहा था, ‘जो कोई मेरा इनकार करता है, मैं भी उसका इनकार कर दूँगा।’ (मत्ती 10:33) लेकिन जब पतरस ने उसे जानने से तीन बार इनकार कर दिया, तब यीशु ने क्या किया? यीशु जानता था कि पतरस को अपने किए पर सच्चा पछतावा है और वह एक विश्वासयोग्य सेवक है, इसलिए उसने पतरस को ठुकरा नहीं दिया। ज़िंदा होने के बाद वह पतरस से मिला और उसने ज़रूर उसे यकीन दिलाया होगा कि उसने उसे माफ कर दिया है और वह अब भी उससे प्यार करता है।—लूका 24:33, 34.
7. जैसे फिलिप्पियों 4:5 में बढ़ावा दिया गया है, हम कैसा नाम कमाना चाहते हैं?
7 अब तक हमने देखा कि यहोवा और यीशु लिहाज़ करनेवाले शख्स हैं। और यहोवा चाहता है कि हम भी लिहाज़ करनेवाले हों। (फिलिप्पियों 4:5 पढ़िए।) इस आयत का एक बाइबल में इस तरह अनुवाद किया गया है, “लिहाज़ करनेवाले इंसान के तौर पर तुम्हारा नाम हो।” तो हम खुद से पूछ सकते हैं, ‘लोग मेरे बारे में क्या सोचते हैं? क्या मैं लिहाज़ करनेवाला इंसान हूँ? क्या मैं झुकने या फेरबदल करने के लिए तैयार रहता हूँ? या वे मुझे कठोर या अड़ियल समझते हैं? क्या मैं यह सोचता हूँ कि मेरी बात पत्थर की लकीर है और सबको मेरी सुननी चाहिए? या मैं दूसरों की सुनने के लिए तैयार रहता हूँ और जब मुनासिब होता है तो उनकी बात मान लेता हूँ?’ जितना हम दूसरों का लिहाज़ करते हैं या फेरबदल करने को तैयार रहते हैं, उतना ही हम यहोवा और यीशु की तरह बन रहे होते हैं। अब आइए ऐसे दो मामलों पर गौर करें जहाँ हमें फेरबदल करने को तैयार रहना चाहिए। पहला, जब हमारे हालात बदल जाएँ। और दूसरा, जब लोगों की सोच और उनके फैसले हमसे अलग हों।
हालात बदलने पर फेरबदल करने के लिए तैयार रहें
8. क्या करने से हम बदलते हालात के मुताबिक खुद को ढाल पाएँगे? (फुटनोट भी देखें।)
8 फेरबदल करना हमारे लिए तब ज़रूरी हो जाता है, जब हमारे हालात बदल जाते हैं। कुछ बदलावों की वजह से हमारे सामने ऐसी मुश्किलें आ सकती हैं जिनके बारे में शायद हमने सोचा भी ना हो। हो सकता है, अचानक हमारी सेहत खराब हो जाए या आर्थिक या राजनीतिक बदलाव की वजह से शायद रातों-रात हमारी ज़िंदगी उलट-पुलट हो जाए। (सभो. 9:11; 1 कुरिं. 7:31) यह भी हो सकता है कि यहोवा के संगठन में हमें जो ज़िम्मेदारी या काम दिया गया है, उसमें कोई बदलाव हो। हमारे सामने चाहे जैसे भी हालात हों, अगर हम आगे बताए चार कदम उठाएँ, तो हमारे लिए नए हालात में खुद को ढालना आसान हो जाएगा: (1) यह मान लीजिए कि हालात बदल गए हैं, (2) आगे की ओर देखिए, (3) अच्छी बातों पर मन लगाइए और (4) दूसरों के लिए कुछ कीजिए। b अब आइए ऐसे कुछ भाई-बहनों के उदाहरणों पर गौर करें जिन्हें ये कदम उठाने से काफी मदद मिली।
9. जब एक मिशनरी पति-पत्नी के हालात अचानक बदल गए, तो उन्होंने कैसे उनका सामना किया?
9 यह मान लीजिए कि हालात बदल गए हैं। भाई एमानवेला और उनकी पत्नी फ्रैंचेस्का को एक दूसरे देश में मिशनरी के तौर पर सेवा करने के लिए कहा गया। उन्होंने वहाँ की भाषा सीखनी बस शुरू ही की थी और वे मंडली के भाई-बहनों को अभी जानने की कोशिश ही कर रहे थे कि कोविड-19 महामारी शुरू हो गयी। अब वे वहाँ किसी भाई-बहन से नहीं मिल सकते थे। फिर अचानक बहन फ्रैंचेस्का की माँ की मौत हो गयी। बहन का बहुत मन कर रहा था कि वे अपने परिवार के साथ हों, लेकिन महामारी की वजह से वे उनके पास नहीं जा पायीं। बहन इस मुश्किल हालात का सामना कैसे कर पायीं? पहली बात, भाई एमानवेला और बहन फ्रैंचेस्का हर दिन यहोवा से बुद्धि के लिए प्रार्थना करते थे कि वे किसी तरह आज का दिन काट पाएँ। यहोवा ने उनकी प्रार्थनाएँ सुनीं और संगठन के ज़रिए सही समय पर उनकी मदद की। उदाहरण के लिए, एक वीडियो में एक भाई ने जो बात कही थी, उससे उन्हें बहुत हिम्मत मिली। उस भाई ने कहा था, “नए हालात में हम खुद को जितनी जल्दी ढालेंगे, उतनी ही जल्दी हमारी खुशी लौट आएगी। और इस नए हालात में हम अच्छे से यहोवा की सेवा कर पाएँगे।” c दूसरी बात, उन्होंने सोचा कि वे फोन पर गवाही देने का हुनर बढ़ाएँगे और जब उन्होंने ऐसा किया, तो वे एक बाइबल अध्ययन भी शुरू कर पाए। तीसरी बात, उनकी मंडली के भाई-बहनों ने जब उनका हौसला बढ़ाने की कोशिश की और उनकी तरफ मदद का हाथ बढ़ाया, तो उन्होंने खुशी-खुशी उसे कबूल किया और उनका एहसान माना। जैसे, एक बहन हर दिन उन्हें एक मैसेज भेजती थीं जिसमें वे बाइबल की एक आयत भी लिखती थीं और ऐसा वे एक साल तक करती रहीं। अगर हम भी यह मान लें कि हमारे हालात बदल गए हैं, तो हम अपने नए हालात में खुद को ढाल पाएँगे और हमसे जो हो सकेगा, उससे खुशी पाएँगे।
10. हालात बदलने पर एक बहन ने क्या फेरबदल किए?
10 आगे की ओर देखिए और अच्छी बातों पर मन लगाइए। रोमानिया की एक बहन क्रिस्टीना जापान में सेवा करती हैं। पहले वे वहाँ एक अँग्रेज़ी मंडली में थीं। फिर बाद में वह मंडली बंद कर दी गयी। इससे बहन को थोड़ा दुख तो हुआ, पर वे उसी बारे में सोचती नहीं रहीं। इसके बजाय उन्होंने तय किया कि वे जापानी भाषावाली मंडली में जाएँगी और उस भाषा में अच्छी तरह प्रचार करने की पूरी कोशिश करेंगी। बहन जापानी भाषा अच्छी तरह सीखना चाहती थीं, इसलिए उन्होंने एक औरत से मदद माँगी जो पहले उनके साथ काम करती थी। उन्होंने उस औरत से यह भी पूछा कि क्या वह बाइबल और खुशी से जीएँ हमेशा के लिए! ब्रोशर से उन्हें जापानी भाषा सिखा सकती है। वह औरत राज़ी हो गयी। इससे ना सिर्फ बहन क्रिस्टीना अच्छी तरह जापानी भाषा बोलने लगीं, बल्कि वह औरत भी बाइबल के संदेश में दिलचस्पी लेने लगी। इस अनुभव से हम क्या सीखते हैं? यही कि अगर हम आगे की ओर देखें और अच्छी बातों पर मन लगाएँ, तो अचानक हालात बदलने पर भी हमें ऐसी आशीषें मिल सकती हैं जिनके बारे में शायद हमने सोचा भी ना हो।
11. जब एक पति-पत्नी को पैसों की तंगी हुई, तो उन्होंने उसका सामना कैसे किया?
11 दूसरों के लिए कुछ कीजिए। एक पति-पत्नी एक ऐसे देश में रहते हैं जहाँ हमारे काम पर रोक लगी है। जब वह देश दिवालिया हो गया, तो उन्हें पैसों की तंगी झेलनी पड़ी। इस बदलते हालात में उन्होंने खुद को कैसे ढाला? सबसे पहले उन्होंने अपने खर्चे कम करने की कोशिश की। फिर उन्होंने तय किया कि वे अपनी समस्याओं के बारे में बहुत ज़्यादा सोचने के बजाय प्रचार काम पर ज़्यादा ध्यान देंगे और इस तरह दूसरों की मदद करेंगे। (प्रेषि. 20:35) भाई कहते हैं, “प्रचार काम में लगे रहने की वजह से अपनी समस्याओं के बारे में सोचने का हमारे पास वक्त ही नहीं बचता था। हम परमेश्वर की मरज़ी पूरी करने पर ज़्यादा ध्यान देते थे।” जब हमारे हालात बदल जाते हैं, तो हमें याद रखना चाहिए कि दूसरों की मदद करते रहना बहुत ज़रूरी है, खासकर प्रचार काम करके।
12. प्रचार में फेरबदल करने के मामले में हम प्रेषित पौलुस से क्या सीख सकते हैं?
12 हमें प्रचार में भी फेरबदल करने के लिए तैयार रहना चाहिए। हम जिन लोगों को प्रचार करते हैं, वे अलग-अलग माहौल में पले-बढ़े होते हैं, उनके तौर-तरीके और रहन-सहन अलग-अलग होता है। और ईश्वर को मानने की बात आती है, तो सबका अपना-अपना विश्वास होता है। लोगों के हालात को ध्यान में रखकर उनसे बात करने के मामले में पौलुस एक अच्छी मिसाल है। पौलुस को यीशु मसीह ने “गैर-यहूदी राष्ट्रों के लिए प्रेषित” चुना था। (रोमि. 11:13) पर उसने यहूदियों, यूनानियों, पढ़े-लिखे लोगों, गाँववालों, बड़े-बड़े अधिकारियों और राजाओं सबको प्रचार किया। इतने अलग-अलग तरह के लोगों के दिलों में सच्चाई का बीज बोने के लिए पौलुस “सब किस्म के लोगों के लिए सबकुछ बना।” (1 कुरिं. 9:19-23) वह इस बात पर ध्यान देता था कि वह जिन लोगों को प्रचार कर रहा है, वे किस संस्कृति से हैं, किस माहौल में पले-बढ़े हैं और वे क्या मानते हैं। फिर उसके हिसाब से वह प्रचार करने के तरीके में फेरबदल करता था। उसी तरह अगर हम यह सोचें कि हमें अलग-अलग लोगों से किस तरह बात करनी चाहिए और फिर उस हिसाब से अपने प्रचार करने के तरीके में फेरबदल करें, तो हम उन्हें अच्छी तरह गवाही दे पाएँगे।
दूसरों के फैसलों का आदर कीजिए
13. अगर हम दूसरों की सोच और उनके फैसलों का आदर करें, तो 1 कुरिंथियों 8:9 के मुताबिक हम क्या करने से बच सकते हैं?
13 दूसरों का लिहाज़ करने से हम उनकी सोच और फैसलों का भी आदर करेंगे। उदाहरण के लिए, कुछ बहनों को मेकअप करना अच्छा लगता है, पर कुछ को नहीं। कुछ मसीही एक हद में रहकर शराब पीते हैं, पर कुछ इसे छूते तक नहीं। और हम सब चाहते हैं कि हमारी सेहत अच्छी रहे। लेकिन जब इलाज के तरीकों की बात आती है, तो हर मसीही की सोच अलग-अलग होती है। अगर हम यह सोचें कि हम जो मानते हैं वही सही है और अपनी राय मंडली में दूसरों पर थोपने की कोशिश करें, तो इससे लोगों को ठोकर लग सकती है और मंडली में फूट पड़ सकती है। हम ऐसा कभी नहीं करना चाहेंगे! (1 कुरिंथियों 8:9 पढ़िए; 10:23, 24) अब आइए दो उदाहरणों पर ध्यान दें। इनसे हम समझ पाएँगे कि बाइबल के सिद्धांत ध्यान में रखने से हम कैसे अच्छे फैसले कर सकते हैं और शांति बनाए रख सकते हैं।
14. पहनावे और बनाव-सिंगार के मामले में फैसले करते वक्त हमें बाइबल के कौन-से सिद्धांत ध्यान में रखना चाहिए?
14 पहनावा और बनाव-सिंगार। हमें किस तरह के कपड़े पहनने चाहिए, इस बारे में यहोवा ने बहुत सारे नियम नहीं बनाए, बल्कि उसने कुछ सिद्धांत दिए हैं, जिन्हें ध्यान में रखकर हम सही फैसले कर सकते हैं। इस मामले में कोई फैसला करते वक्त हमें ‘समझदारी से काम लेना चाहिए,’ दूसरों का लिहाज़ करना चाहिए और ऐसे कपड़े पहनने चाहिए जो सलीकेदार हों और परमेश्वर के सेवकों को शोभा देते हों। (1 तीमु. 2:9, 10, फु.; 1 पत. 3:3) इसलिए हम ऐसे कपड़े नहीं पहनते, जिनसे बेवजह लोगों का ध्यान हम पर जाए। यहोवा ने बाइबल में हमारे लिए सिद्धांत लिखवाए हैं, इस वजह से प्राचीन ध्यान रखते हैं कि वे कपड़ों और बाल बनाने के मामले में अपनी तरफ से कोई नियम ना बनाएँ। ध्यान दीजिए कि एक मंडली में प्राचीनों ने क्या किया। उस मंडली के कुछ नौजवान भाइयों ने बालों का ऐसा स्टाइल अपना लिया था, जो उस समय बहुत चलन में था। उनके बाल छोटे तो थे, पर बहुत बेढंगे दिखते थे। प्राचीनों ने कोई नियम बनाए बिना कैसे उन नौजवानों की मदद की? उनके सर्किट निगरान ने उन्हें सलाह दी कि वे उन नौजवानों से कुछ ऐसा कह सकते हैं: “मान लीजिए आप स्टेज से कोई भाग पेश कर रहे हैं। लेकिन आप जो बता रहे हैं, उस पर ध्यान देने के बजाय भाई-बहन इस बात पर ध्यान दे रहे हैं कि आप कैसे दिख रहे हैं, तो इसका मतलब कुछ तो दिक्कत है।” इस तरह आसानी से समस्या भी सुलझ गयी और भाइयों को कोई नियम भी नहीं बनाना पड़ा। d
15. बाइबल में दिए कौन-से नियम और सिद्धांत ध्यान में रखकर हम सेहत और इलाज से जुड़े फैसले ले सकते हैं? (रोमियों 14:5)
15 सेहत और इलाज। हर मसीही को खुद फैसला करना चाहिए कि वह अपनी सेहत का किस तरह खयाल रखेगा। (गला. 6:5) इलाज के मामले में जब फैसले करने की बात आती है, तो इस बारे में बाइबल में कुछ ही नियम दिए गए हैं। जैसे, हमें खून से और जादू-टोने से दूर रहना है। (प्रेषि. 15:20; गला. 5:19, 20) इसके अलावा हर मसीही को खुद तय करना है कि वह किस तरह का इलाज करवाएगा। कुछ लोगों को डॉक्टरों से इलाज करवाना सही लगता है। वहीं दूसरों को कुछ अलग तरह से इलाज करवाना सही लगता है। इलाज का कोई तरीका हमें कितना ही सही या गलत क्यों ना लगता हो, हमें अपनी राय दूसरों पर नहीं थोपनी चाहिए। हमें ध्यान रखना चाहिए कि इस मामले में हर भाई-बहन को खुद फैसला करने का हक है। तो हम सभी को आगे बतायी बातें ध्यान में रखनी चाहिए: (1) परमेश्वर के राज में ही हर तरह की बीमारी दूर होगी और हम पूरी तरह सेहतमंद रह पाएँगे। (यशा. 33:24) (2) हर मसीही को “पूरा यकीन” होना चाहिए कि उसके लिए किस तरह का इलाज करवाना सही है। (रोमियों 14:5 पढ़िए।) (3) हम दूसरों के फैसलों पर उँगली नहीं उठाते और ऐसा कुछ नहीं करते जिससे उन्हें ठोकर लगे। (रोमि. 14:13) (4) हम भाई-बहनों से प्यार करते हैं और ध्यान रखते हैं कि हमारी पसंद-नापसंद से ज़्यादा मंडली की एकता मायने रखती है। (रोमि. 14:15, 19, 20) अगर हम इन बातों को ध्यान में रखें, तो भाई-बहनों के साथ हमारा रिश्ता अच्छा होगा और मंडली में शांति बनी रहेगी।
16. एक प्राचीन कैसे दूसरे प्राचीनों का लिहाज़ कर सकता है? (तसवीरें भी देखें।)
16 दूसरों का लिहाज़ करने के मामले में प्राचीनों को एक अच्छी मिसाल रखनी चाहिए। (1 तीमु. 3:2, 3) जैसे एक प्राचीन को यह नहीं सोचना चाहिए कि वह बाकी प्राचीनों से उम्र में बड़ा है या उसे ज़्यादा तजुरबा है, इसलिए उन्हें हमेशा उसकी बात माननी चाहिए। उसे याद रखना चाहिए कि यहोवा की पवित्र शक्ति निकाय के किसी भी प्राचीन को ऐसी बात कहने के लिए उभार सकती है जिससे सही फैसला लिया जा सके। और अगर ज़्यादातर प्राचीन किसी एक बात से सहमत हैं और वह बात बाइबल सिद्धांतों के खिलाफ नहीं है, तो बाकी प्राचीन उनका लिहाज़ करते हैं और खुशी-खुशी उनका साथ देते हैं, फिर चाहे उस मामले में उनकी अलग ही राय हो।
लिहाज़ करनेवाले बनें और पाएँ ढेरों आशीषें
17. अगर हम लिहाज़ करनेवाले इंसान हों और फेरबदल करने को तैयार रहें, तो हमें कौन-सी आशीषें मिलेंगी?
17 जब हम लिहाज़ करनेवाले इंसान होते हैं और फेरबदल करने के लिए तैयार रहते हैं, तो हमें बहुत-सी आशीषें मिलती हैं। भाई-बहनों के साथ हमारा रिश्ता और भी अच्छा हो जाता है और मंडली में शांति बनी रहती है। हमें अलग-अलग भाई-बहनों के साथ मिलकर सेवा करने का मौका मिलता है। हम सबका स्वभाव अलग है, हम सब अलग-अलग संस्कृति से हैं, फिर भी हम एक होकर यहोवा की सेवा कर पाते हैं जिससे हमें बहुत खुशी मिलती है। और सबसे बढ़कर हमें यह जानकर खुशी होती है कि हम लिहाज़ करनेवाले परमेश्वर यहोवा की तरह बन रहे हैं।
गीत 90 एक-दूजे की हिम्मत बँधाएँ
a जब लिहाज़ करने और फेरबदल करने की बात आती है, तो यहोवा और यीशु सबसे बढ़िया मिसाल हैं। और वे चाहते हैं कि हम भी उनकी तरह बनें। जब हम फेरबदल करने के लिए तैयार रहते हैं, तो हालात बदलने पर हम खुद को आसानी से ढाल पाते हैं। जैसे, अगर हमारी सेहत खराब हो जाए या हमें पैसों की तंगी झेलनी पड़े, तो उसका सामना करना हमारे लिए थोड़ा आसान हो जाता है। और जब हम दूसरों का लिहाज़ करते हैं, तो इससे मंडली में शांति और एकता बनी रहती है।
b 2016 की सजग होइए! के अंक 4 में दिया लेख “बदलते हालात का सामना कैसे करें?” पढ़ें।
c यह वीडियो देखने के लिए jw.org पर “खोजिए” बक्स में भाई दिमित्री मिहाइलोव की ज़ुबानी टाइप करें।
d पहनावे और बनाव-सिंगार के मामले में और जानने के लिए खुशी से जीएँ हमेशा के लिए! किताब का पाठ 52 पढ़ें।