2 समस्याओं का हल कैसे करें?
ज़िंदगी में कुछ समस्याएँ ऐसी होती हैं, जो सालों तक हमारा पीछा नहीं छोड़तीं। कई बार तो हमें एहसास ही नहीं होता कि वे कितना गंभीर रूप ले चुकी हैं। मगर बाइबल में इस बारे में भी अच्छी सलाह दी गयी है। ध्यान दीजिए कि कुछ समस्याओं का क्या हल बताया गया है।
हद-से-ज़्यादा चिंता
रोज़ी कहती है, “मैं कुछ परेशानियों को लेकर हद-से-ज़्यादा चिंता करती थी और हरदम सोचती रहती कि कहीं कुछ बुरा न हो जाए, जबकि असल में डरने की कोई बात नहीं होती।” बाइबल में लिखी कुछ सलाह को लागू करने से रोज़ी अपनी चिंताओं को काबू में कर पायी। उनमें से एक सलाह थी, “अगले दिन की चिंता कभी न करना क्योंकि अगले दिन की अपनी ही चिंताएँ होंगी। आज के लिए आज की परेशानियाँ काफी हैं।” (मत्ती 6:34) इस नसीहत को मानने की वजह से रोज़ी ने कल की चिंता करना छोड़ दिया। वह कहती है, “मेरी ज़िंदगी में वैसे ही बहुत परेशानियाँ थीं, मैं समझ गयी कि मुझे बेकार में उन बातों के बारे में सोचकर अपनी चिंताएँ नहीं बढ़ानी चाहिए, जो अब तक नहीं हुईं और शायद होंगी भी नहीं।”
यासमीन भी बहुत ज़्यादा चिंता करती थी। वह कहती है, “मैं हफ्ते में कई दिन रोती थी और कई बार रात को मुझे नींद नहीं आती थी। मेरी चिंताएँ मुझे खाए जा रही थीं।” बाइबल में 1 पतरस 5:7 में दी सलाह से उसे बहुत मदद मिली। वहाँ लिखा है, ‘अपनी सारी चिंताओं का बोझ परमेश्वर पर डाल दो क्योंकि उसे तुम्हारी परवाह है।’ यासमीन कहती है, “मैंने बार-बार यहोवा से प्रार्थना की और उसने मेरी सुनी। मेरी चिंताओं का बोझ उतर गया और मेरा मन हलका हो गया। आज भी कभी-कभी मैं बहुत परेशान हो जाती हूँ, पर मैंने गलत सोच पर काबू पाना सीख लिया है।”
टाल-मटोल करने की आदत
इसाबेला नाम की एक लड़की कहती है, “टाल-मटोल करने की आदत मुझे शायद विरासत में मिली है, क्योंकि मेरे पापा भी ऐसा ही करते हैं। मैं कई सारे ज़रूरी काम बाद में करने के लिए टाल देती थी, ताकि थोड़ा आराम कर लूँ या टीवी देख लूँ। यह आदत नुकसानदेह है, क्योंकि इससे तनाव बढ़ जाता है और हम काम भी अच्छी तरह नहीं कर पाते।” जब इसाबेला ने बाइबल में 2 तीमुथियुस 2:15 में लिखी बात पढ़ी, तो वह अपनी सोच बदल पायी। वहाँ लिखा है, “तू अपना भरसक कर ताकि तू खुद को परमेश्वर के सामने ऐसे सेवक की तरह पेश कर सके जिसे परमेश्वर मंज़ूर करे और जिसे अपने काम पर शर्मिंदा न होना पड़े।” इसाबेला कहती है, “मैं नहीं चाहती थी कि मेरी वजह से यहोवा को शर्मिंदा होना पड़े, क्योंकि मैं टाल-मटोल करने की वजह से काम ढंग से नहीं करती थी।” इसाबेला ने अपने अंदर काफी सुधार किया है।
कैल्सी की भी यही कमज़ोरी थी। वह कहती है, “जो काम मुझे तय समय पर पूरे करने होते थे, उन्हें भी मैं टालती रहती और आखिरी पल उसे हड़बड़ी में निपटाती थी। मैं परेशान हो जाती, रोने लगती और मेरी नींद उड़ जाती थी। टाल-मटोल करने की आदत मुझ पर भारी पड़ रही थी।” कैल्सी ने नीतिवचन 13:16 में लिखी यह बात पढ़ी, “होशियार अपने कामों से ज्ञान का सबूत देता है, लेकिन मूर्ख अपनी मूर्खता दिखा देता है।” कैल्सी ने इस बारे में बहुत सोचा। वह बताती है कि उसने क्या सीखा, “अपने काम की ठीक-ठीक योजना बनाने में ही अक्लमंदी है। अब मैं अपनी मेज़ पर एक नोटबुक रखती हूँ, जिसमें मैं लिख लेती हूँ कि मुझे आनेवाले दिनों में कौन-कौन-से काम करने हैं और कब तक पूरे करने हैं। इस वजह से मैं वक्त पर काम निपटा लेती हूँ और टाल-मटोल नहीं करती।”
अकेलापन
क्रिस्टी कहती है, “मेरे पति ने मुझे छोड़ दिया। अब मुझे अपने चार छोटे-छोटे बच्चों की परवरिश अकेले ही करनी थी।” उसने इस मुश्किल दौर का सामना कैसे किया? उसने बाइबल में दिए एक सिद्धांत को मानकर सच्चे दोस्तों का सहारा लिया, जो उसकी तरह यहोवा परमेश्वर की सेवा करते हैं। यह सिद्धांत नीतिवचन 17:17 में लिखा है, “सच्चा दोस्त हर समय प्यार करता है और मुसीबत की घड़ी में भाई बन जाता है।” अपने इन दोस्तों के बारे में वह कहती है, “उन सबने मिलकर मुझे सहारा दिया। कुछ दोस्त हमारे दरवाज़े पर खाने-पीने की चीज़ें और फूल रख जाते थे। तीन बार ऐसा हुआ कि हमें अपना घर बदलना पड़ा। तब नए घर में सामान पहुँचाने के लिए दोस्तों की पूरी टोली आ गयी। एक दोस्त ने तो मुझे नौकरी दिलवायी। जब भी मुझे कोई मदद चाहिए होती, तो वे दौड़े चले आते थे।”
डायना को भी, जिसका पहले ज़िक्र किया गया है, अकेलेपन से जूझना पड़ा था। वह बताती है कि अपना सबकुछ खो देने के बाद उसे कैसा लगा, “जब मैं देखती थी कि दूसरों की ज़िंदगी कैसे खुशियों से आबाद है, जबकि मैं कितनी अकेली और बेसहारा हूँ, तो मैं बहुत निराश हो जाती थी।” ऐसे में भजन 68:6 में लिखी इस बात ने उसे सँभलने में मदद दी, ‘जो अकेले हैं उन्हें परमेश्वर रहने को घर देता है।’ वह कहती है, “मैं जानती थी कि शास्त्र की इस बात का यह मतलब नहीं कि आज ही मुझे घर-परिवार मिल जाएगा, बल्कि यह है कि यहोवा मुझे सच्चे दोस्त देगा, जो उससे प्यार करते हैं। उनका साथ पाकर मुझे घर जैसा अपनापन और सुरक्षा का एहसास होगा। पर मैं यह भी जानती थी कि इन दोस्तों को पाने के लिए पहले मुझे यहोवा को अपना दोस्त बनाना होगा। मैंने भजन 37:4 में दी सलाह को माना, जहाँ लिखा है, ‘यहोवा में अपार खुशी पा और वह तेरे दिल की मुरादें पूरी करेगा।’”
डायना कहती है, “मैंने सीखा कि मुझे यहोवा के और भी करीब आना होगा। उससे अच्छा दोस्त और कोई नहीं हो सकता! इसके बाद मैंने सोचा कि यहोवा के लोगों के साथ मिलकर मैं क्या-क्या कर सकती हूँ ताकि वे भी मेरे दोस्त बनें। मैंने दूसरों के अच्छे गुणों पर ध्यान देना और उनकी खामियों को नज़रअंदाज़ करना सीखा।”
माना कि परमेश्वर के सेवक यानी यहोवा के साक्षी भी गलती करनेवाले इंसान हैं। इतना ही नहीं, उनके जीवन में भी दुख-तकलीफें हैं। मगर बाइबल से अच्छी शिक्षा पाने की वजह से समस्याओं का सामना करने में वे दूसरों की मदद कर पाते हैं। उनसे दोस्ती करने से आपको भी मदद मिल सकती है। लेकिन कुछ समस्याएँ ऐसी हैं जिनका आज कोई हल नहीं है, जैसे कोई लाइलाज बीमारी या किसी की मौत का गम। क्या बाइबल में ऐसी समस्याओं का अच्छी तरह सामना करने के लिए भी कोई सलाह दी गयी है?
बाइबल की सलाह मानने से आपको ऐसे दोस्त मिलेंगे, जो मुसीबत में आपका साथ देंगे