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पहले पेज का विषय | यीशु ने क्यों दुख-तकलीफें सहीं और अपनी जान दी?

क्या ऐसा सच में हुआ था?

क्या ऐसा सच में हुआ था?

आज से करीब दो हज़ार साल पहले ईसवी सन्‌ 33 के वसंत ऋतु में यीशु को मार डाला गया। उस पर झूठे इलज़ाम लगाए गए, बुरी तरह पीटा गया और काठ पर कीलों से ठोंक दिया गया। आखिरकार वह दर्द से तड़प-तड़पकर मर गया, लेकिन फिर उसे ज़िंदा किया गया। इसके 40 दिन बाद वह परमेश्‍वर के पास स्वर्ग चला गया।

यीशु के बारे में ये बातें पवित्र किताब बाइबल के उस हिस्से में लिखी हैं, जिसे नया नियम कहा जाता है। पर अगर ये सारी बातें सिर्फ कथा-कहानियाँ हैं, तो मसीहियों की सारी शिक्षाएँ बेकार हैं और धरती पर हमेशा के लिए जीने की उनकी आशा बस एक सपना है। (1 कुरिंथियों 15:14) लेकिन अगर ये सचमुच में हुई थीं, तो इंसानों का भविष्य उज्जवल है। फिर सवाल उठता है कि आखिर सच क्या है?

सबूतों से क्या पता चलता है?

कथा-कहानियों से बिलकुल अलग यीशु के बारे में बाइबल में दर्ज़ घटनाएँ बिलकुल सही हैं और इन्हें काफी बारीकी से लिखा गया है। जैसे, इसमें ऐसी कई जगहों के बारे में बताया गया है, जो आज भी हैं। इसके अलावा, इस किताब में ऐसे लोगों का भी ज़िक्र है, जिनके बारे में इतिहास की कई किताबों में बताया गया है।—लूका 3:1, 2, 23.

बाइबल के अलावा यीशु के बारे में ऐसी कई किताबों में ज़िक्र किया गया है, जो यीशु के समय में लिखी गयी थीं या फिर उसके 100-150 साल बाद। * यीशु को मारने के लिए जो तरीका अपनाया गया था, उसी तरीके से उस ज़माने में रोम देश के लोग अपराधियों को मौत के घाट उतारते थे। इसके अलावा बाइबल में घटनाएँ बिलकुल वैसे ही बतायी गयी हैं, जैसे वे घटी थीं। उदाहरण के लिए, यीशु के शिष्यों की खामियाँ छिपायी नहीं गयीं, बल्कि उनके बारे में भी खुलकर बताया है। (मत्ती 26:56; लूका 22:24-26; यूहन्‍ना 18:10, 11) इन सारी बातों से साफ पता चलता है कि बाइबल में यीशु के बारे में जो लिखा गया है, वह सौ फीसदी सच है।

क्या यीशु सच में मरने के बाद ज़िंदा हुआ था?

आज कई लोगों का मानना है कि यीशु धरती पर जीया था और उसे मार दिया गया था। लेकिन जहाँ तक उसके ज़िंदा होने की बात है, इस पर कई लोग सवाल खड़ा करते हैं। यहाँ तक कि उसके कुछ शिष्यों ने भी शुरू में उसके जी उठने की बात पर यकीन नहीं किया था। (लूका 24:11) लेकिन जब उन्होंने और दूसरे शिष्यों ने जी उठे यीशु को कई मौकों पर खुद अपनी आँखों से देखा, तब जाकर उन्हें इस बात पर यकीन हुआ। एक मौके पर तो 500 लोगों ने यीशु को देखा।—1 कुरिंथियों 15:6.

यीशु के शिष्यों ने हर किसी को बताया कि यीशु ज़िंदा किया गया है, हालाँकि इसके लिए उन्हें जेल की सज़ा, या फिर मौत की सज़ा भी हो सकती थी। शिष्यों ने उन लोगों को भी यीशु के बारे में बताया, जिन्होंने उसे मरवा डाला था। (प्रेषितों 4:1-3, 10, 19, 20; 5:27-32) अगर उन्हें इस बात का पूरा यकीन नहीं होता कि यीशु सचमुच ज़िंदा किया गया है, तो क्या वे इस तरह सरेआम सबको उसके बारे में बताते? सच तो यह है कि यीशु जी उठाया गया था, तभी तो उस ज़माने में बहुत-से लोगों ने यीशु की शिक्षाएँ मानीं और आज भी काफी बड़ी तादाद में लोग ऐसा कर रहे हैं।

यीशु की मौत के बारे में और उसे ज़िंदा किए जाने के बारे में बाइबल में जो लिखा है, वह एक सच्ची ऐतिहासिक घटना है। इन ब्यौरों को ध्यान से पढ़ने पर आपको यकीन हो जाएगा कि ये घटनाएँ वाकई घटी थीं। और जब आप समझ जाएँगे कि ये घटनाएँ क्यों घटीं, तो यीशु पर आपका यकीन और भी पक्का हो जाएगा। इस बारे में और जानने के लिए अगला लेख पढ़िए। (w16-E No.2)

^ पैरा. 7 इनमें से एक किताब टैसीटस नाम के इतिहासकार ने लिखी थी, जिसका जन्म ईसवी सन्‌ 55 में हुआ था। उसने यीशु मसीह के बारे में लिखा कि उसके नाम से ही मसीहियों का नाम पड़ा। उसने यह भी लिखा कि सम्राट तिबिरियुस के राज में गवर्नर पुन्तियुस पीलातुस ने यीशु को मौत की सज़ा दी थी। इतिहासकार सूटोनियस (जन्म ईसवी सन्‌ 69), यहूदी इतिहासकार जोसीफस (जन्म ईसवी सन्‌ 37 या 38) और बितूनिया प्रदेश के राज्यपाल, प्लीनी द यंगर (जन्म ईसवी सन्‌ 61 या 62) ने भी यीशु के बारे में लिखा।