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हम क्यों बूढ़े होकर मर जाते हैं?

हम क्यों बूढ़े होकर मर जाते हैं?

परमेश्‍वर कभी नहीं चाहता था कि इंसान की मौत हो। हमारे पहले माता-पिता, आदम और हव्वा तन और मन से परिपूर्ण थे। अगर वे परमेश्‍वर की बात मानते, तो आज ज़िंदा होते। हम यह कैसे कह सकते हैं? ध्यान दीजिए कि परमेश्‍वर ने आदम को अदन के बगीचे में एक पेड़ के बारे में क्या कहा था।

यहोवा ने आदम से कहा, ‘जिस दिन तू उस पेड़ का फल खाएगा उस दिन ज़रूर मर जाएगा।’ (उत्पत्ति 2:17) अगर आदम को बूढ़ा होकर मरना ही था, तो इस आज्ञा का कोई मतलब ही नहीं रहता। आदम जानता था कि अगर वह उस पेड़ का फल न खाए, तो वह नहीं मरेगा।

परमेश्‍वर कभी नहीं चाहता था कि इंसान मरे

ऐसा नहीं था कि ज़िंदा रहने के लिए आदम और हव्वा को उसी पेड़ का फल खाना था। क्यों? क्योंकि बगीचे में और भी बहुत सारे फल देनेवाले पेड़ थे। (उत्पत्ति 2:9) अगर आदम-हव्वा उस पेड़ का फल नहीं खाते, तो वे दिखाते कि वे अपने सृष्टिकर्ता के अधीन रहना चाहते हैं। वे यह भी दिखाते कि क्या सही है, क्या गलत इसका फैसला करने का अधिकार सिर्फ परमेश्‍वर को है।

आदम और हव्वा क्यों मरे

आदम और हव्वा क्यों मरे, यह जानने के लिए आइए एक ऐसी बातचीत पर गौर करें, जिसका असर हम पर भी पड़ा। शैतान ने एक साँप के ज़रिए बहुत बड़ा झूठ बोला। बाइबल में लिखा है, “यहोवा परमेश्‍वर ने जितने भी जंगली जानवर बनाए थे, उन सबमें साँप सबसे सतर्क रहनेवाला जीव था। साँप ने औरत से कहा, ‘क्या यह सच है कि परमेश्‍वर ने तुमसे कहा है कि तुम इस बाग के किसी भी पेड़ का फल मत खाना?’”—उत्पत्ति 3:1.

इस पर हव्वा ने कहा, “हम बाग के सब पेड़ों के फल खा सकते हैं। मगर जो पेड़ बाग के बीच में है उसके फल के बारे में परमेश्‍वर ने हमसे कहा है, ‘तुम उसका फल मत खाना, उसे छूना तक नहीं, वरना मर जाओगे।’” तब साँप ने औरत से कहा, “तुम हरगिज़ नहीं मरोगे। परमेश्‍वर जानता है कि जिस दिन तुम उस पेड़ का फल खाओगे उसी दिन तुम्हारी आँखें खुल जाएँगी, तुम परमेश्‍वर के जैसे हो जाओगे और खुद जान लोगे कि अच्छा क्या है और बुरा क्या।” ऐसा कहकर शैतान ने दावा किया कि यहोवा झूठा है और आदम-हव्वा को किसी अच्छी चीज़ से दूर रख रहा है।—उत्पत्ति 3:2-5.

हव्वा ने शैतान की बातों पर यकीन कर लिया। उसने उस पेड़ पर नज़र डाली। वह उसकी आँखों को भा गया! उसने हाथ बढ़ाया और फल तोड़कर खाने लगी। उसके बाद बाइबल बताती है, “जब उसका पति उसके साथ था, तो उसने उसे भी फल दिया और वह भी खाने लगा।”—उत्पत्ति 3:6.

परमेश्‍वर ने आदम से कहा, “जिस दिन तू उसका फल खाएगा उस दिन ज़रूर मर जाएगा।”—उत्पत्ति 2:17

यहोवा को कितना दुख हुआ होगा कि उसके प्यारे बच्चों ने जानबूझकर उसकी आज्ञा तोड़ दी! उसने क्या किया? उसने आदम से कहा, “तू मिट्टी में मिल जाएगा क्योंकि तू उसी से बनाया गया है। तू मिट्टी ही है और वापस मिट्टी में मिल जाएगा।” (उत्पत्ति 3:17-19) और ऐसा ही हुआ। “आदम कुल मिलाकर 930 साल जीया और फिर मर गया।” (उत्पत्ति 5:5) मरने के बाद वह न तो स्वर्ग गया, न ही किसी और जगह। परमेश्‍वर ने आदम को मिट्टी से बनाया था, उससे पहले उसका कोई अस्तित्त्व नहीं था। और जब वह मरा, तो वह वापस मिट्टी में मिल गया और उसका वजूद पूरी तरह मिट गया। कितनी दुख की बात है!

हम परिपूर्ण क्यों नहीं हैं?

जानबूझकर आज्ञा तोड़ने की वजह से आदम और हव्वा ने अपना परिपूर्ण जीवन तो खोया ही, उसके साथ-साथ हमेशा तक जीने की आशा भी गँवा दी। इस वजह से वे पहले की तरह परिपूर्ण नहीं रहे, बल्कि पापी हो गए। लेकिन उनके पाप का असर सिर्फ उन पर ही नहीं, उनके बच्चों पर भी पड़ा। रोमियों 5:12 बताता है, “एक आदमी [आदम] से पाप दुनिया में आया और पाप से मौत आयी और इस तरह मौत सब इंसानों में फैल गयी क्योंकि सबने पाप किया।”

बाइबल बताती है कि पाप और मौत ऐसी “चादर” की तरह है “जो देश-देश के लोगों को ढके है,” ऐसा ‘परदा जो सब राष्ट्रों पर पड़ा है।’ (यशायाह 25:7) इन शब्दों से पता चलता है कि इंसानों के लिए पाप और मौत से बच पाना नामुमकिन है। सच में, “आदम की वजह से सभी मर रहे हैं।” (1 कुरिंथियों 15:22) लेकिन एक सवाल उठता है, जो बाइबल के एक लेखक, पौलुस के मन में भी उठा था, “मुझे इस शरीर से, जो मर रहा है, कौन छुड़ाएगा?” क्या कोई है जो वाकई हमें इससे छुड़ा सकता है?—रोमियों 7:24.