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दूसरी भाषा बोलनेवाली मंडली में भी यहोवा के करीब रहिए

दूसरी भाषा बोलनेवाली मंडली में भी यहोवा के करीब रहिए

“मैं ने तेरे वचन को अपने हृदय में रख छोड़ा है।”—भज. 119:11.

गीत: 142, 47

1-3. (क) हम मसीहियों के लिए क्या बात सबसे ज़्यादा ज़रूरी है? (ख) नयी भाषा सीखनेवालों को किन मुश्किलों का सामना करना पड़ता है? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।) (ग) इससे क्या सवाल उठते हैं?

आज बहुत-से यहोवा के साक्षी इस भविष्यवाणी को पूरा करने में लगे हुए हैं, “हर राष्ट्र और गोत्र और भाषा और जाति के लोगों को” खुशखबरी सुनायी जाए। (प्रका. 14:6) क्या आप उनमें से एक हैं जो दूसरी भाषा सीख रहे हैं? कुछ मसीही ऐसे हैं जो मिशनरी सेवा कर रहे हैं या फिर उन इलाकों में सेवा कर रहे हैं, जहाँ प्रचारकों की ज़्यादा ज़रूरत है। कुछ ऐसे भी हैं जो अपने ही देश में दूसरी भाषा बोलनेवाली मंडली में सेवा कर रहे हैं।

2 परमेश्वर के सेवक होने के नाते हम सबके लिए ज़रूरी है कि हम यहोवा के साथ अपना और अपने परिवार का रिश्ता मज़बूत बनाए रखें। (मत्ती 5:3) लेकिन कभी-कभी हमारे पास शायद इतना काम हो कि हम अच्छी तरह निजी अध्ययन न कर पाएँ। जो लोग दूसरी भाषा बोलनेवाली मंडली में सेवा करते हैं उन्हें और भी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।

3 दूसरी भाषा बोलनेवाली मंडली में सेवा करनेवालों को एक नयी भाषा सीखनी होती है। लेकिन उनके लिए यह भी ज़रूरी है कि वे नियमित तौर पर परमेश्वर की गहरी बातों का अध्ययन करें। (1 कुरिं. 2:10) वे यह कैसे कर सकते हैं जब उन्हें मंडली की भाषा ही अच्छी तरह समझ नहीं आती? मसीही माता-पिताओं को क्यों इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि दूसरी भाषा बोलनेवाली मंडली में सेवा करते वक्‍त सच्चाई उनके बच्चों के दिल तक पहुँचे?

यहोवा के साथ हमारे रिश्ते के लिए एक खतरा

4. किस वजह से यहोवा के साथ हमारा रिश्ता खतरे में पड़ सकता है? एक उदाहरण दीजिए।

4 जब हम दूसरी भाषा में बाइबल की शिक्षाएँ नहीं समझ पाते तो यहोवा के साथ हमारा रिश्ता खतरे में पड़ सकता है। नहेमायाह के समय में कुछ ऐसा ही हुआ था। जब वह यरूशलेम लौटा तो उसने गौर किया कि कुछ बच्चों को इब्रानी भाषा नहीं आती। (नहेमायाह 13:23, 24 पढ़िए।) इसलिए वे परमेश्वर के वचन की बातें नहीं समझ पा रहे थे। नतीजा, यहोवा और उसके चुने हुए लोगों के साथ उनका रिश्ता मज़बूत नहीं था।—नहे. 8:2, 8.

5, 6. (क) दूसरी भाषा की मंडली में सेवा करनेवाले कुछ माता-पिताओं ने क्या गौर किया है? (ख) इस समस्या की क्या वजह है?

5 दूसरी भाषा बोलनेवाली मंडली में सेवा करनेवाले कुछ माता-पिताओं ने गौर किया है कि यहोवा के साथ उनके बच्चों का रिश्ता कमज़ोर हो गया है। वजह? उनके बच्चे सभाओं में बतायी जानेवाली बातें पूरी तरह नहीं समझ पाते। परमेश्वर की बातें उनके दिल को नहीं छूतीं और इसलिए उनका दिल उन्हें कदम उठाने के लिए नहीं उभारता। दक्षिण अमरीका का रहनेवाला पेड्रो, [1] जो अब अपने परिवार के साथ ऑस्ट्रेलिया में जा बसा है, कहता है, “जब हम सच्चाई से जुड़ी कोई बात करते हैं तो इसमें हमारा दिल और हमारी भावनाएँ शामिल होनी चाहिए।”—लूका 24:32.

6 जब हम दूसरी भाषा में कुछ पढ़ते हैं तो वह हमारे दिल पर उतना असर नहीं करता, जितना कि जब हम वही बात अपनी भाषा में पढ़ते हैं। इसके अलावा, दूसरी भाषा में बात करते वक्‍त हमारे दिमाग पर इतना ज़ोर पड़ता है कि हम शायद थक जाएँ और यहोवा की उपासना करने के लिए हमारे पास ताकत ही न बचे। इसलिए दूसरी भाषा बोलनेवाली मंडली में सेवा करने के अपने जोश को बरकरार रखने के अलावा, हमें यहोवा के साथ अपने रिश्ता की हिफाज़त भी करनी चाहिए।—मत्ती 4:4.

उन्होंने यहोवा के साथ अपने रिश्ते की हिफाज़त की

7. बैबिलोन के लोगों ने किस तरह दानिय्येल पर उनकी संस्कृति और धर्म अपनाने का दबाव डाला?

7 जब दानिय्येल और उसके दोस्तों को बैबिलोन ले जाया गया तो वहाँ के लोगों ने उन पर दबाव डाला कि वे उनकी संस्कृति और धर्म अपना लें। उन्होंने यह कैसे किया? उन्होंने उन्हें ‘कसदियों की भाषा की शिक्षा दी’ और उनके नाम बदलकर उन्हें बैबिलोनी नाम दिए। (दानि. 1:3-7) दानिय्येल का नया नाम बैबिलोन के मुख्य देवता बेल के नाम पर रखा गया। शायद राजा नबूकदनेस्सर दानिय्येल को यकीन दिलाना चाहता था कि बैबिलोन का देवता उसके परमेश्वर यहोवा से ज़्यादा ताकतवर है।—दानि. 4:8.

8. दानिय्येल ने यहोवा के साथ अपना रिश्ता कैसे मज़बूत बनाए रखा?

8 बैबिलोन में दानिय्येल पर एक और दबाव आया। उससे कहा गया कि उसे राजा के यहाँ से लज़ीज़ खाना दिया जाएगा। लेकिन उसने वह खाना खाने से मना कर दिया, क्योंकि उसने “अपने मन में ठान लिया” था कि वह परमेश्वर का नियम नहीं तोड़ेगा। (दानि. 1:8) दानिय्येल पवित्र “शास्त्र” का अध्ययन करता था जो इब्रानी भाषा में था। इसलिए वह दूसरे देश में रहते हुए भी यहोवा के साथ अपना रिश्ता मज़बूत बनाए रख पाया। (दानि. 9:2) यही नहीं, बैबिलोन में 70 साल रहने के बाद भी उसे उसके इब्रानी नाम दानिय्येल से जाना जाता था।—दानि. 5:13.

9. भजन 119 के लेखक पर परमेश्वर के वचन का क्या असर हुआ?

9 अब भजन 119 के लेखक को लीजिए। कुछ दरबारी उसके खिलाफ बातें करते थे। इस मुश्किल का सामना करने के लिए उसे परमेश्वर के वचन से हिम्मत मिली। इस वजह से वह दूसरों से अलग नज़र आया। (भज. 119:23, 61) उसने परमेश्वर के वचन को अपने दिल पर गहरा असर करने दिया।—भजन 119:11, 46 पढ़िए।

यहोवा के साथ अपने रिश्ते को मज़बूत बनाए रखिए

10, 11. (क) बाइबल का अध्ययन करते वक्‍त हमारा क्या लक्ष्य होना चाहिए? (ख) हम अपना यह लक्ष्य कैसे पा सकते हैं? एक उदाहरण दीजिए।

10 हो सकता है हमारा ज़्यादातर समय मंडली की ज़िम्मेदारियाँ पूरी करने और अपनी नौकरी में चला जाए। फिर भी हमें निजी बाइबल अध्ययन और पारिवारिक उपासना के लिए समय निकालना चाहिए। (इफि. 5:15, 16) अध्ययन करने का हमारा लक्ष्य यह नहीं होना चाहिए कि हम ढेर सारी जानकारी पढ़ें या सभाओं में जवाब देने की तैयारी करें। इसके बजाय हमारा लक्ष्य होना चाहिए कि हम परमेश्वर के वचन को अपने दिल में उतारें और अपना विश्वास मज़बूत करें।

11 इसके लिए ज़रूरी है कि अध्ययन करते वक्‍त हम सिर्फ यह न सोचें कि यह जानकारी दूसरों पर कैसे लागू होती है, बल्कि यह भी सोचें कि यह मुझ पर कैसे लागू होती है। (फिलि. 1:9, 10) हमें यह बात समझनी चाहिए कि जब हम प्रचार, सभाओं या भाषणों की तैयारी करते हैं तो यह ज़रूरी नहीं कि हम जो कुछ पढ़ते हैं उसे खुद पर लागू करते हों। उदाहरण के लिए, एक बावरची दूसरों को खाना परोसने से पहले खुद उसे चखता है। मगर वह सिर्फ खाना चखकर ज़िंदा नहीं रह सकता। अगर उसे सेहतमंद बने रहना है तो उसे खुद भी खाना खाना होगा। उसी तरह अगर हम यहोवा के साथ अपने रिश्ते को मज़बूत करना चाहते हैं तो हमें नियमित तौर पर बाइबल का अध्ययन करना होगा। इस तरह हम अपनी ज़रूरत पूरी कर पाएँगे।

12, 13. कई लोगों को क्यों लगता है कि अपनी मातृ-भाषा में बाइबल का अध्ययन करना फायदेमंद है?

12 दूसरी भाषा बोलनेवाली मंडलियों में सेवा करनेवाले भाई-बहनों ने पाया है कि “अपनी ही मातृ-भाषा” में निजी बाइबल अध्ययन करना फायदेमंद है। (प्रेषि. 2:8) यहाँ तक कि मिशनरी भाई-बहन भी जानते हैं कि विदेश में सेवा करते रहने के लिए यहोवा के साथ एक मज़बूत रिश्ता होना ज़रूरी है। मगर इस रिश्ते को मज़बूत बनाए रखने के लिए हम सभाओं में जो बातें सीखते हैं, वे काफी नहीं हैं।

13 एलन, जो करीब 8 साल से फारसी भाषा सीख रहा है, कहता है, “जब मैं फारसी में सभाओं की तैयारी करता हूँ तो मेरा पूरा ध्यान भाषा पर लगा रहता है। इससे मेरी सिर्फ दिमागी कसरत होती है, वे बातें मेरे दिल को नहीं छूतीं। इसलिए मैं अपनी मातृ-भाषा में बाइबल और दूसरे साहित्यों का अध्ययन करने के लिए अलग से समय रखता हूँ।”

अपने बच्चों के दिल तक पहुँचने की कोशिश कीजिए

14. माता-पिताओं को क्या ध्यान रखना चाहिए और क्यों?

14 मसीही माता-पिताओं को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि सच्चाई उनके बच्चों के दिलो-दिमाग तक पहुँचे। माइकल और उसकी पत्नी मिनी को लीजिए, जिन्होंने तीन से भी ज़्यादा साल दूसरी भाषा बोलनेवाली मंडली में सेवा की। उस दौरान उन्होंने गौर किया कि उनके 17 साल के बेटे का मन प्रचार और सभाओं में नहीं लग रहा। मिनी बताती है, “दूसरी भाषा में प्रचार करने से उसे चिढ़ होने लगी, जबकि पहले उसे अपनी भाषा फ्रेंच में प्रचार करना बहुत अच्छा लगता था।” माइकल कहता है, “जब हमने देखा कि हमारा बेटा सच्चाई में तरक्की नहीं कर रहा है तब हमने वापस अपनी पुरानी मंडली में जाने का फैसला किया।”

ध्यान रखिए कि सच्चाई आपके बच्चों के दिल तक पहुँचे (पैराग्राफ 14, 15 देखिए)

15. (क) क्या बात एक माता-पिता को यह फैसला लेने में मदद दे सकती है कि उन्हें मंडली बदलनी चाहिए या नहीं? (ख) व्यवस्थाविवरण 6:5-7 में माता-पिताओं के लिए क्या हिदायत दी गयी है?

15 क्या बात एक माता-पिता को यह फैसला लेने में मदद दे सकती है कि उन्हें अपने बच्चों की खातिर मंडली बदलनी चाहिए या नहीं? सबसे पहले उन्हें यह देखना चाहिए कि क्या उनके पास इतना वक्‍त और ताकत है कि वे अपने बच्चों को यहोवा से प्यार करना सिखा सकें और एक नयी भाषा भी सिखा सकें। दूसरी, वे शायद गौर करें कि उनके बच्चे न तो प्रचार में और न ही सभाओं में जाना चाहते हैं। यहाँ तक कि उनमें दूसरी भाषा बोलनेवाली मंडली में सेवा करने की इच्छा भी नहीं है। ऐसे में माता-पिता उस मंडली में जाने का फैसला कर सकते हैं जिसकी भाषा उनके बच्चों को अच्छी तरह समझ में आती हो। फिर एक बार जब बच्चे यहोवा के साथ एक मज़बूत रिश्ता बना लेते हैं, तब माता-पिता चाहें तो दूसरी भाषा बोलनेवाली मंडली में लौटने का फैसला कर सकते हैं।—व्यवस्थाविवरण 6:5-7 पढ़िए।

16, 17. कुछ माता-पिता कैसे अपने बच्चों को यहोवा के बारे में सिखा पाए हैं?

16 मगर कुछ माता-पिता हैं जो दूसरी भाषा बोलनेवाली मंडली या समूह की सभाओं में हाज़िर होने के साथ-साथ, बच्चों को अपनी भाषा में यहोवा के बारे में सिखा पा रहे हैं। चार्ल्स को ही लीजिए। उसकी तीन बेटियाँ हैं जिनकी उम्र 9, 12 और 13 है। उसका परिवार लिंगाला भाषा बोलनेवाले एक समूह के साथ संगति करता है। वह कहता है, “हमने तय किया कि हम अपनी भाषा में बच्चों का अध्ययन कराएँगे और पारिवारिक उपासना करेंगे। साथ ही हम लिंगाला में रिहर्सल करते हैं और खेल भी खेलते हैं ताकि बच्चों को यह भाषा सीखने में मज़ा आए।”

नयी भाषा सीखने में मेहनत कीजिए और सभाओं में हिस्सा लीजिए (पैराग्राफ 16, 17 देखिए)

17 केविन की दो बेटियाँ हैं, जिनकी उम्र पाँच और आठ साल है। उसका परिवार दूसरी भाषा बोलनेवाली मंडली की सभाओं में जाता है, मगर उसकी बेटियों को वह भाषा पूरी तरह नहीं आती। इसलिए केविन उन्हें सच्चाई सिखाने में कड़ी मेहनत करता है। वह कहता है, “मैं और मेरी पत्नी फ्रेंच भाषा में अपनी बेटियों का अध्ययन कराते हैं, जो उनकी मातृ-भाषा है। साथ ही हमने महीने में एक बार फ्रेंच भाषा की सभाओं में जाने का लक्ष्य रखा है। इसके अलावा, छुट्टियों में हम अपनी भाषा में होनेवाले किसी अधिवेशन में हाज़िर होने की भी कोशिश करते हैं।”

18. (क) अपने बच्चों की मदद करने के लिए आप रोमियों 15:1, 2 में दिया सिद्धांत कैसे लागू कर सकते हैं? (ख) कुछ माता-पिताओं ने क्या सुझाव दिए हैं? (और जानकारी देखिए।)

18 हर परिवार को तय करना है कि उनके बच्चों के लिए और यहोवा के साथ उनका रिश्ता मज़बूत बनाए रखने के लिए क्या अच्छा रहेगा। [2] (गला. 6:5) मिनी कहती है कि उसकी और उसके पति की बड़ी इच्छा थी कि वे दूसरी भाषा बोलनेवाली मंडली में सेवा करें। फिर भी उन्होंने अपनी पुरानी मंडली में लौटने का फैसला किया ताकि वे अपने बेटे को यहोवा के साथ अपना रिश्ता मज़बूत करने में मदद दे सकें। (रोमियों 15:1, 2 पढ़िए।) आज माइकल देख सकता है कि उन्होंने जो फैसला लिया वह सही था। वह कहता है, “जब से हम फ्रेंच भाषा बोलनेवाली मंडली में वापस आए हैं, तब से हमारे बेटे ने सच्चाई में अच्छी तरक्की की है और बपतिस्मा लिया है। आज वह एक पायनियर है और दूसरी भाषा बोलनेवाले समूह में सेवा करने के बारे में भी सोच रहा है!”

परमेश्वर के वचन का अपने दिल पर असर होने दीजिए

19, 20. हम कैसे दिखा सकते हैं कि हमें परमेश्वर के वचन से प्यार है?

19 यहोवा सभी लोगों से प्यार करता है। इसलिए उसने बहुत-सी भाषाओं में बाइबल उपलब्ध करवायी है ताकि “सब किस्म के लोगों” को सच्चाई का सही ज्ञान मिले। (1 तीमु. 2:4) वह जानता है कि जब हम अपनी भाषा में बाइबल पढ़ते हैं तो उसके साथ हमारा रिश्ता मज़बूत होता जाता है।

20 यहोवा के साथ अपना रिश्ता मज़बूत बनाए रखने के लिए हम सभी को मेहनत करनी चाहिए। इसके लिए ज़रूरी है कि हम नियमित तौर पर अपनी भाषा में बाइबल का अध्ययन करें। तब हम अपने परिवारवालों की भी मदद कर पाएँगे कि वे यहोवा के साथ अपना रिश्ता मज़बूत बनाए रखें। हम यह भी दिखा पाएँगे कि हमें परमेश्वर के वचन से सचमुच प्यार है।—भज. 119:11.

^ [1] (पैराग्राफ 5) नाम बदल दिए गए हैं।

^ [2] (पैराग्राफ 18) बाइबल के किन सिद्धांतों से आपके परिवार को मदद मिल सकती है, यह जानने के लिए 15 अक्टूबर, 2002 की प्रहरीदुर्ग में दिया यह लेख देखिए, “विदेश में बच्चों की परवरिश—चुनौतियाँ और आशीषें।