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जीवन कहानी

मेरे फैसले पर यहोवा की ढेरों आशीषें

मेरे फैसले पर यहोवा की ढेरों आशीषें

सन्‌ 1939 की बात है। आधी रात को हम अपने बिस्तर से उठे और गाड़ी से करीब एक घंटे का सफर तय करके एक छोटे-से शहर जॉप्लीन गए। यह शहर अमरीकी राज्य मिज़ूरी के दक्षिण-पश्‍चिम में है। वहाँ पहुँचने पर हम उस इलाके में गए, जो हमें पहले से बताया गया था। हम चुपके से हर घर में दरवाज़े के नीचे से परचा डालने लगे। सब घरों में परचे डालने के बाद हम कार में बैठकर उस जगह आए, जहाँ हम सबको मिलना था। तब तक भोर हो गयी थी। लेकिन उस दिन हम रात में प्रचार करने क्यों गए और सुबह होने से पहले ही इलाके से क्यों निकल आए? यह कहानी मैं आपको बाद में बताऊँगा।

मेरा जन्म 1934 में हुआ था। मेरे माता-पिता फ्रेड मौलाहैन और ऐडना 20 साल से बाइबल विद्यार्थी थे। (उन दिनों यहोवा के साक्षी इसी नाम से जाने जाते थे।) मैं उनका बहुत शुक्रगुज़ार हूँ कि उन्होंने मुझे बचपन से यहोवा से प्यार करना सिखाया। हम एक छोटे-से कसबे पारसन्ज़ में रहते थे, जो कैन्सास राज्य के दक्षिण-पूरब में है। हमारी मंडली के लगभग सभी भाई-बहन अभिषिक्‍त थे। हमारा परिवार नियमित तौर पर सभाओं में और प्रचार करने जाता था। आम तौर पर हम शनिवार को दोपहर में सड़क गवाही के लिए जाते थे, जिसे आज सरेआम गवाही कहा जाता है। कभी-कभी हम बहुत थक जाते थे, मगर पिताजी हमें प्रचार के बाद आइसक्रीम खिलाने ले जाते थे, जिससे हम अपनी थकान भूल जाते थे।

हमारी मंडली छोटी थी, मगर हमारा प्रचार का इलाका बहुत बड़ा था। इसमें बहुत-से छोटे-छोटे कसबे और कई फार्म आते थे। जब हम फार्म में प्रचार करने जाते थे, तो अकसर लोग किताबों-पत्रिकाओं के बदले हमें सब्ज़ी, ताज़े-ताज़े अंडे, यहाँ तक कि ज़िंदा मुर्गी भी देते थे। मंडली से किताबें-पत्रिकाएँ लेते वक्‍त पिताजी पहले से ही पैसे दान कर देते थे, इसलिए ये चीज़ें हम अपने खाने के लिए इस्तेमाल कर लेते थे।

अलग-अलग प्रचार अभियान

मेरे माता-पिता ने एक ग्रामोफोन (फोनोग्राफ) लिया था, जिसके ज़रिए वे प्रचार करते थे। मैं काफी छोटा था, इसलिए मैं उसे नहीं चलाता था, मगर उसे चलाने में मदद ज़रूर करता था। माता-पिता अपने वापसी भेंट और बाइबल अध्ययन के दौरान ग्रामोफोन से भाई रदरफर्ड के भाषण सुनाते थे।

लाउडस्पीकरवाली गाड़ी के सामने माता-पिता के साथ

पिताजी के पास 1936 मॉडल की एक फोर्ड गाड़ी थी, जिसके ऊपर उन्होंने एक बड़ा-सा लाउडस्पीकर लगा दिया। इस तरह उन्होंने उसे लाउडस्पीकरवाली गाड़ी बना दिया। यह गाड़ी जगह-जगह राज का संदेश सुनाने में हमारे बहुत काम आयी। आम तौर पर लोगों का ध्यान खींचने के लिए पहले हम संगीत का रिकॉर्ड बजाते थे, फिर बाइबल पर आधारित भाषण की रिकॉर्डिंग सुनाते थे। भाषण के बाद हम दिलचस्पी रखनेवालों को किताबें-पत्रिकाएँ देते थे।

एक बार कैन्सास के शैरीवेल नाम के एक छोटे-से कसबे में पिताजी एक पार्क में अपनी गाड़ी लगाकर लाउडस्पीकर चला रहे थे। उस पार्क में रविवार को बहुत-से लोग आराम करने आते थे। तब पुलिसवाले वहाँ आए और उन्होंने पिताजी से कहा कि वे गाड़ी पार्क के बाहर लगाएँ। पिताजी ने पार्क के सामने की सड़क पर गाड़ी लगायी, ताकि पार्क में बैठे लोग आसानी से संदेश सुन सकें। पिताजी और अपने बड़े भाई जेरी के साथ इस तरह प्रचार सेवा में जाना मुझे बहुत अच्छा लगता था।

सन्‌ 1940 से पहले हमने खास “धुआँधार” अभियानों में हिस्सा लिया। इन अभियानों का मकसद था, थोड़े-से समय में पूरे इलाके में प्रचार करना, जहाँ साक्षियों का काफी विरोध हो रहा था। हम लोग सूरज निकलने से पहले उठ जाते और चुपके से लोगों के घरों में दरवाज़े के नीचे से परचे या पुस्तिकाएँ डाल देते थे (जैसे हमने मिज़ूरी के जॉप्लीन में किया)। फिर हम यह देखने के लिए शहर के बाहर एक जगह मिलते कि किसी को पुलिस ने पकड़ तो नहीं लिया।

उन सालों के दौरान हमारी प्रचार सेवा की एक और खासियत थी, गले में पोस्टर लटकाकर चलना। राज का संदेश देने के लिए हम गले में पोस्टर लटकाते थे और एक कतार बनाकर पूरे शहर में घूमते थे। मुझे याद है कि एक बार हमारे कसबे में ऐसा ही किया गया। हमारे कुछ दोस्तों ने गले में जो पोस्टर लटकाए थे, उन पर लिखा था, “धर्म एक फँदा और झाँसा है।” वे हमारे घर से करीब डेढ़ कि.मी. तक चलकर गए, फिर वापस आ गए। अच्छी बात थी कि उनका किसी ने विरोध नहीं किया। इसके बजाय बहुत-से लोग ऐसे थे, जो जानना चाहते थे कि आखिर वे क्या कर रहे हैं।

शुरू के अधिवेशन

अकसर हमारा परिवार अधिवेशन में हाज़िर होने के लिए कैन्सास से टेक्सस जाता था। पिताजी रेलवे में नौकरी करते थे, इसलिए हमारा पूरा परिवार रिश्‍तेदारों से मिलने और अधिवेशन के लिए मुफ्त में सफर कर सकता था। मेरे बड़े मामा-मामी फ्रेड विज़मार और यूलाली, टेक्सस के टेम्पल शहर में रहते थे। सन्‌ 1900 के कुछ समय बाद जब मामा नौजवान ही थे, तभी उन्होंने सच्चाई सीखी और बपतिस्मा लिया। उन्होंने अपनी छोटी बहनों को भी सच्चाई सिखायी, जिनमें से एक मेरी माँ थीं। पूरे मध्य टेक्सस में मेरे मामा को भाई-बहन अच्छी तरह जानते थे, क्योंकि एक समय में वे वहाँ ज़ोन सेवक के तौर पर सेवा करते थे। (ज़ोन सेवक को आज सर्किट निगरान कहा जाता है।) उनका स्वभाव बहुत अच्छा था और वे हमेशा खुश रहते थे। उनमें सच्चाई के लिए बहुत जोश था और वे मेरे लिए बहुत अच्छी मिसाल थे।

सन्‌ 1941 में हमारा परिवार ट्रेन से मिज़ूरी के सेंट लुईस शहर में एक बड़े अधिवेशन के लिए गया। उस अधिवेशन में 15,000 से भी ज़्यादा बच्चे थे। यह घोषणा की गयी कि भाई रदरफर्ड का भाषण सुनने के लिए सभी बच्चे स्टेज के पास आकर बैठें। उनके भाषण का विषय था, “राजा के बच्चे।” भाषण की समाप्ति में भाई रदरफर्ड और उनकी मदद करनेवाले भाइयों ने हर बच्चे को एक तोहफा दिया। वह तोहफा था, अँग्रेज़ी में एक नयी किताब बच्चे। यह किताब पाकर हम सब बहुत खुश हुए!

अप्रैल 1943 में कैन्सास के कॉफीविल शहर में एक सम्मेलन रखा गया, जिसका विषय था, “कदम उठाने का बुलावा।” इसमें बताया गया कि अब से सब मंडलियों में ‘परमेश्‍वर की सेवा स्कूल’ चलाया जाएगा। स्कूल के लिए 52 पाठवाली एक नयी पुस्तिका भी निकाली गयी। उसी साल के आखिर में मैंने अपना पहला विद्यार्थी भाग पेश किया। वह सम्मेलन एक और वजह से मेरे लिए खास था। उस सम्मेलन में मैंने, साथ ही दो और लोगों ने पास के एक फार्म में तालाब के ठंडे पानी में बपतिस्मा लिया।

मेरी दिली-तमन्‍ना​—बेथेल सेवा

सन्‌ 1951 में मेरी स्कूल की पढ़ाई पूरी हो गयी। अब मुझे फैसला करना था कि मैं आगे क्या करूँ। मेरे भाई जेरी ने पहले बेथेल में सेवा की थी, इसलिए मैं भी बेथेल जाना चाहता था। मैंने अर्ज़ी भर दी। जल्द ही मुझे बेथेल बुलाया गया और मैंने 10 मार्च, 1952 से अपनी सेवा शुरू कर दी। यह मेरा बहुत ही अच्छा फैसला था, जिस वजह से मैं यहोवा की सेवा बहुत अच्छी तरह कर पाया हूँ।

मैं बेथेल के छपाई-खाने में काम करना चाहता था, ताकि किताबों-पत्रिकाओं की छपाई में हिस्सा ले सकूँ। मगर मुझे यह मौका कभी नहीं मिला। इसके बजाय पहले मुझे वेटर का काम दिया गया, फिर रसोई में काम करने के लिए कहा गया। ये दोनों काम करके मुझे बहुत अच्छा लगा और मैंने काफी कुछ सीखा। रसोई विभाग के भाइयों के काम करने का समय बदलता रहता है, इससे मुझे दिन में थोड़ा वक्‍त मिल जाता था। अकसर मैं बेथेल की लाइब्रेरी में जाकर निजी अध्ययन करता था। वहाँ मैंने बहुत-सी किताबों का अध्ययन किया, जिस वजह से परमेश्‍वर के साथ मेरा रिश्‍ता मज़बूत हुआ और मेरा विश्‍वास भी बढ़ा। मेरा यह इरादा भी मज़बूत हुआ कि जब तक हो सके, मैं बेथेल में सेवा करूँगा। मेरे भाई जेरी ने 1949 में बेथेल छोड़ा था और पट्रिशिया से शादी की थी। मगर उनका घर बेथेल के पास ही था, इसलिए उन्होंने मेरी बेथेल सेवा के शुरूआती सालों में मेरा हौसला बढ़ाया और मेरी बहुत मदद की।

मेरे बेथेल आने के कुछ ही समय बाद बेथेल के भाई भाषण देनेवालों की सूची में कुछ और भाइयों को जोड़ना चाहते थे। सूची में जिन भाइयों का नाम होता था, उन्हें उन मंडलियों में जन भाषण देने और उनके साथ प्रचार करने के लिए भेजा जाता था, जो ब्रुकलिन शहर के 322 कि.मी. के घेरे में आती थीं। इस सूची में मेरा भी नाम था। जब मैंने मंडलियों में जन भाषण देना शुरू किया, तो मुझे थोड़ी घबराहट होती थी। उन दिनों जन भाषण एक घंटे का होता था। अकसर मैं मंडलियों में ट्रेन से जाया करता था। सन्‌ 1954 का एक सफर मुझे आज भी याद है। सर्दी का मौसम था और रविवार दोपहर को मैंने न्यू यॉर्क शहर जाने के लिए एक ट्रेन पकड़ी, ताकि मैं शाम तक बेथेल पहुँच जाऊँ। लेकिन तभी एक ज़ोरदार आँधी चली और बर्फ भी गिरी। इतनी कड़ाके की ठंड थी कि ट्रेन के इंजन की बिजली कट जाती थी और वह बंद हो जाता था। किसी तरह ट्रेन न्यू यॉर्क शहर के स्टेशन पर सोमवार सुबह पाँच बजे पहुँची। मैंने जल्दी से ब्रुकलिन के लिए मेट्रो पकड़ी और वहाँ पहुँचते ही मैं सीधे रसोई की तरफ भागा। मुझे थोड़ी देर हो गयी थी। इसके अलावा पूरी रात ट्रेन में बैठे रहने की वजह से मैं बहुत थक गया था, फिर भी मैं खुश था। इस तरह के खास शनिवार-रविवार के दिन भाइयों की सेवा करके और नए दोस्तों से मिलकर मुझे जो खुशी होती थी, उससे मैं ऐसी परेशानियाँ भूल जाता था।

डब्ल्यू.बी.बी.आर. रेडियो स्टेशन में कार्यक्रम पेश करने की तैयारी करते हुए

मेरी बेथेल सेवा के शुरूआती सालों में मुझे डब्ल्यू.बी.बी.आर. रेडियो स्टेशन के प्रसारण में भाग लेने के लिए कहा गया। इसका स्टूडियो उस समय 124 कोलंबिया हाइट्‌स की दूसरी मंज़िल पर था। मुझे बाइबल अध्ययन कार्यक्रम के दौरान एक व्यक्‍ति का किरदार निभाना होता था। यह कार्यक्रम हफ्ते में एक बार प्रसारित होता था। भाई ए. एच. मैकमिलन, जो बेथेल में काफी समय से सेवा कर रहे थे, इस तरह के रेडियो कार्यक्रमों में नियमित तौर पर भाग लेते थे। उन्हें लोग प्यार से भाई मैक बुलाते थे। कई मुश्‍किलों के बावजूद उन्होंने वफादारी से परमेश्‍वर की सेवा की थी, इसलिए वे बेथेल के हम जवान सदस्यों के लिए एक बढ़िया मिसाल थे।

हम डब्ल्यू.बी.बी.आर. का यह परचा लोगों को देते थे

सन्‌ 1958 में मुझे गिलियड स्कूल से ग्रैजुएट होनेवाले भाई-बहनों की मदद करने का काम सौंपा गया। मैं जोश से सेवा करनेवाले इन भाई-बहनों की वीज़ा पाने में मदद करता और उनके सफर का इंतज़ाम करता था। उन दिनों हवाई यात्रा बहुत महँगी होती थी, इसलिए सिर्फ कुछ भाई-बहनों के सफर का इंतज़ाम हवाई-जहाज़ से किया जाता था। जिन भाई-बहनों को अफ्रीका और पूर्वी देशों में भेजा जाता था, उनमें से ज़्यादातर मालवाहक जहाज़ से सफर करते थे। जब हवाई यात्रा सस्ती हो गयी, तो ज़्यादातर मिशनरियों के सफर का इंतज़ाम हवाई-जहाज़ से किया जाने लगा।

गिलियड ग्रैजुएशन से पहले मिशनरियों के डिप्लोमा तरतीब से रखते हुए

अधिवेशनों के लिए सफर

सन्‌ 1960 में मेरा काम और भी बढ़ गया। अगले साल यूरोप में कुछ अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशन होनेवाले थे और मुझे कई हवाई-जहाज़ किराए पर बुक करने थे, ताकि भाई-बहन अमरीका से यूरोप जा सकें। एक अधिवेशन में मैं भी गया। मैं उस हवाई-जहाज़ में गया, जिसे न्यू यॉर्क से जर्मनी के हैमबर्ग शहर जाने के लिए बुक किया गया था। अधिवेशन के बाद मैंने, साथ में तीन और भाइयों ने मिलकर एक कार किराए पर ली। उस कार से हमने जर्मनी से इटली तक सफर किया और वहाँ हम रोम के शाखा दफ्तर गए। फिर हम फ्रांस गए। इसके बाद हम पिरेनीज़ पर्वतमाला पार करते हुए स्पेन गए, जहाँ साक्षियों के प्रचार काम पर रोक लगी थी। हमने कुछ किताबें-पत्रिकाएँ तोहफे की तरह पैक कीं, ताकि किसी को पता न चले। हमने ये किताबें-पत्रिकाएँ बार्सिलोना शहर के भाइयों तक पहुँचायीं। इन भाइयों से मिलकर हमें बहुत अच्छा लगा! इसके बाद हम ऐमस्टरडैम शहर गए और वहाँ से हवाई-जहाज़ पकड़कर न्यू यॉर्क लौट आए।

करीब एक साल बाद मुझे एक और ज़िम्मेदारी दी गयी। सन्‌ 1963 में यूरोप, एशिया और दक्षिण प्रशांत महासागर के द्वीपों में अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशन आयोजित किए गए थे, जिनका विषय था, “सनातन सुसमाचार।” इन अधिवेशनों में हाज़िर होने के लिए 583 भाई-बहनों को चुना गया। मुझे इन सभी भाई-बहनों के सफर का इंतज़ाम करना था। यात्रा के आखिर में इन भाई-बहनों को हवाई द्वीप के होनोलुलु शहर और कैलिफोर्निया राज्य के पासाडीना शहर भी जाना था। इसके अलावा उन्हें लेबनान और जोर्डन जाना था, ताकि वे बाइबल में बतायी जगहों का शैक्षणिक भ्रमण कर सकें। इन सारी जगहों पर आने-जाने और होटलों में उनके रहने का इंतज़ाम हमारे विभाग को करना था और अलग-अलग देशों का वीज़ा भी उन्हें दिलवाना था।

एक नया हमसफर

सन्‌ 1963 में मेरी ज़िंदगी के सफर में एक नया मोड़ आया। उनतीस जून को लीला रॉजर्स से मेरी शादी हुई। लीला मिज़ूरी से थी और तीन साल से बेथेल में सेवा कर रही थी। हमारी शादी के एक हफ्ते बाद हम एक समूह के साथ दुनिया की अलग-अलग जगहों में अधिवेशन के लिए गए। हम ग्रीस, मिस्र और लेबनान गए। फिर लेबनान के बेरूत से हवाई-जहाज़ लेकर हम जोर्डन गए, जो कुछ ही समय का सफर था। वहाँ साक्षियों के काम पर कुछ पाबंदियाँ लगी थीं और हमें बताया गया था कि साक्षियों को जोर्डन के लिए वीज़ा नहीं दिया जाता। हमें चिंता होने लगी कि अब क्या होगा। लेकिन जब हम यरूशलेम पहुँचे, तो हम हैरान रह गए। वहाँ के छोटे-से हवाई-अड्डे पर कुछ भाई-बहन बड़ा-सा बैनर लिए खड़े थे, जिस पर लिखा था, ‘यहोवा के साक्षियो, आपका स्वागत है!’ यह देखकर हम बहुत खुश हुए! जोर्डन में हमने बाइबल में बतायी वे सारी जगहें देखीं, जहाँ अब्राहम, इसहाक और याकूब रहते थे, जहाँ यीशु और उसके प्रेषितों ने प्रचार किया और जहाँ से मसीहियत की शुरूआत हुई। अपनी आँखों से इन जगहों को देखना बहुत ही रोमांचक था!​—प्रेषि. 13:47.

55 सालों से लीला मेरी वफादार हमसफर रही है। मुझे जहाँ भी भेजा गया, वह मेरे साथ थी। जब स्पेन और पुर्तगाल में साक्षियों के काम पर रोक लगी थी, तब हम कई बार उन देशों में गए। हम भाई-बहनों की हिम्मत बँधाते थे, साथ ही उन्हें किताबें-पत्रिकाएँ और दूसरी ज़रूरी चीज़ें देकर आते थे। यहाँ तक कि हम स्पेन के काडिज़ जेल में कैद कुछ भाइयों से भी मिल पाए। बाइबल पर आधारित एक भाषण के ज़रिए उन भाइयों का हौसला बढ़ाकर मुझे बहुत खुशी हुई।

1969 में अपने बड़े भाई जेरी मौलाहैन और उनकी पत्नी पट्रिशिया के साथ “पृथ्वी पर शांति” अधिवेशन के लिए जाते हुए

सन्‌ 1963 से मुझे कई अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशनों में जानेवाले भाई-बहनों के सफर का इंतज़ाम करने का सम्मान मिला। ये अधिवेशन अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, मध्य और दक्षिण अमरीका, यूरोप, पूर्वी देशों, हवाई द्वीप, न्यूज़ीलैंड और पोर्टोरिको में रखे गए थे। मैं और लीला कई अधिवेशनों में हाज़िर हुए, जिनकी यादें आज भी ताज़ा हैं। इनमें से एक था, 1989 में पोलैंड के वारसा में रखा गया अधिवेशन। यह एक बड़ा अधिवेशन था, जिसमें रूस के बहुत-से भाई-बहन आए हुए थे। यह उनका सबसे पहला अधिवेशन था! हम ऐसे कई भाई-बहनों से मिले, जिन्हें अपने विश्‍वास की वजह से सोवियत संघ की जेलों में सज़ा काटनी पड़ी थी।

मुझे दुनिया के अलग-अलग शाखा दफ्तरों का दौरा करने का भी सम्मान मिला। इस दौरान मैं बेथेल परिवार के सदस्यों और मिशनरियों से मिलता और उनका हौसला बढ़ाता। हमारा आखिरी दौरा दक्षिण कोरिया के शाखा दफ्तर का था। उस वक्‍त हम सूवॉन के एक जेल में कैद 50 भाइयों से भी मिल पाए। हालाँकि वे जेल में थे, मगर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी थी और वे फिर से प्रचार में जाने के लिए बेताब थे। उनसे मिलकर हमारा बहुत हौसला बढ़ा।​—रोमि. 1:11, 12.

बढ़ोतरी देखकर मिलती खुशी

मैंने देखा है कि सालों के दौरान यहोवा ने अपने लोगों की गिनती कैसे बढ़ायी है। सन्‌ 1943 में जब मेरा बपतिस्मा हुआ था, तब करीब 1,00,000 प्रचारक थे, मगर आज 240 देशों में 80,00,000 से भी ज़्यादा प्रचारक हैं। इस बढ़ोतरी में गिलियड स्कूल से प्रशिक्षण पाए मिशनरियों का बहुत बड़ा हाथ रहा है। इन मिशनरियों की मदद करने में मुझे बहुत खुशी मिली, ताकि वे अलग-अलग देशों में जाकर सेवा कर सकें।

मैं खुश हूँ कि मैंने अपनी जवानी में बेथेल में सेवा करने का फैसला किया। ज़िंदगी के हर कदम पर यहोवा ने मुझे बहुत-सी आशीषें दी हैं। मुझे और लीला को बेथेल में सेवा करने से बहुत खुशी मिलती है। इसके अलावा करीब 50 सालों के दौरान हमें ब्रुकलिन की कई मंडलियों के साथ प्रचार करने का भी मौका मिला। इस दौरान हमने बहुत-से अच्छे दोस्त बनाए, जो आज भी हमारा साथ देते हैं।

हर दिन मैं लीला की मदद से अपनी बेथेल सेवा कर पाता हूँ। आज मैं 84 साल का हो गया हूँ, फिर भी मैं कुछ काम कर पाता हूँ। मैं शाखा के पत्राचार विभाग में मदद करता हूँ।

आज लीला के साथ

यहोवा के शानदार संगठन का भाग होना कितनी खुशी की बात है! हमें मलाकी 3:18 की बात पूरी होते देखकर भी बहुत खुशी होती है, जहाँ लिखा है, “तुम एक बार फिर यह फर्क देख पाओगे कि कौन नेक है और कौन दुष्ट, कौन परमेश्‍वर की सेवा करता है और कौन नहीं।” हर दिन हम देख सकते हैं कि शैतान की दुनिया कैसे तबाही की ओर बढ़ रही है, लोगों के पास कोई आशा नहीं है, उन्हें कोई खुशी नहीं है। लेकिन जो यहोवा से प्यार करते हैं और उसकी सेवा करते हैं, वे संकटों से भरी दुनिया में भी खुशी से जीते हैं और उन्हें एक उज्ज्वल भविष्य की आशा है। परमेश्‍वर के राज की खुशखबरी का ऐलान करना हमारे लिए कितने बड़े सम्मान की बात है! (मत्ती 24:14) हम उस दिन का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हैं, जब परमेश्‍वर का राज पुरानी दुनिया को मिटाकर नयी दुनिया लाएगा, जिसमें परमेश्‍वर के सारे वादे पूरे होंगे। उस वक्‍त यहोवा के सभी वफादार सेवक पूरी तरह सेहतमंद होंगे और हमेशा के लिए इस धरती पर जीएँगे।