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हालात बदलने पर भी मन की शांति बनाए रखिए

हालात बदलने पर भी मन की शांति बनाए रखिए

“मैंने बेशक अपने जी को शांत किया है, अपने मन को चुप कराया है।”​—भज. 131:2.

गीत: 24, 154

1, 2. (क) जब अचानक हालात बदल जाते हैं, तो इसका हम पर क्या असर होता है? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।) (ख) भजन 131 के मुताबिक हम अपना मन शांत कैसे रख सकते हैं?

लॉयड और ऐलेक्सैन्ड्रा को बेथेल में सेवा करते 25 साल से भी ऊपर हो गए थे। फिर उन्हें पायनियर बनाकर भेजा गया। यह सुनकर पहले वे दुखी हुए। लॉयड कहता है, “मुझे ऐसा लगता था कि बेथेल में सेवा करना ही मेरी ज़िंदगी है। जब हमें जाने के लिए कहा गया और इसकी वजह बतायी गयी, तो मैं समझ गया। लेकिन उसके बाद कई हफ्तों तक, यहाँ तक कि महीनों तक अकसर मेरे मन में आता था कि मुझे ठुकरा दिया गया है।” एक पल लॉयड को यह बदलाव ठीक लगता था, मगर दूसरे ही पल वह इस बारे में सोचकर मायूस हो जाता था।

2 हमारी ज़िंदगी में कई बार ऐसे बदलाव होते हैं, जिनकी हमें उम्मीद भी नहीं होती। इस वजह से हम चिंता में डूब जाते हैं और बहुत तनाव में रहते हैं। (नीति. 12:25) जब किसी बदलाव को स्वीकार करना या उसके मुताबिक खुद को ढालना मुश्‍किल होता है, तो हम अपना मन कैसे शांत रख सकते हैं? (भजन 131:1-3 पढ़िए।) आइए देखें कि पुराने ज़माने में और आज के समय में जब यहोवा के कुछ सेवकों के हालात अचानक बदले, तो उन्होंने मन की शांति कैसे बनाए रखी।

‘परमेश्‍वर की शांति’ हमारी मदद कैसे करती है?

3. यूसुफ की ज़िंदगी अचानक कैसे बदल गयी?

3 ज़रा यूसुफ के बारे में सोचिए। अपने सभी भाइयों में से वह अपने पिता याकूब का चहेता था। इस वजह से उसके भाई उससे जलते थे। जब वह 17 साल का था, तब उन्होंने उसे गुलामी में बेच दिया। (उत्प. 37:2-4, 23-28) वह मिस्र में करीब 13 साल तक ज़ुल्म सहता रहा। पहले उसे गुलामी करनी पड़ी और बाद में उसे जेल में डाल दिया गया। यूसुफ अपने पिता से बहुत दूर था, जिससे वह बेहद प्यार करता था। ऐसे में वह कड़वाहट से भर सकता था और सारी उम्मीदें खो सकता था। लेकिन उसने ऐसी भावनाएँ खुद पर हावी नहीं होने दीं। इसके लिए उसने क्या किया?

4. (क) जेल में यूसुफ ने क्या किया होगा? (ख) यहोवा ने यूसुफ की प्रार्थनाओं का जवाब कैसे दिया?

4 जेल में यूसुफ ने इस बात पर ध्यान दिया होगा कि यहोवा उसकी मदद कैसे कर रहा है। (उत्प. 39:21; भज. 105:17-19) शायद उसने उन सपनों के बारे में भी सोचा होगा, जो उसने बचपन में देखे थे और जो असल में भविष्यवाणी थे। इससे उसका यकीन बढ़ा होगा कि यहोवा उसके साथ है। (उत्प. 37:5-11) मुमकिन है कि उसने बार-बार प्रार्थना की होगी और अपने दिल का सारा हाल यहोवा को बताया होगा। (भज. 145:18) जवाब में यहोवा ने उसे यकीन दिलाया कि वह मुश्‍किल-से-मुश्‍किल हालात में भी “यूसुफ के साथ” रहेगा।​—प्रेषि. 7:9, 10. *

5. ‘परमेश्‍वर की शांति’ उसकी सेवा करते रहने का हमारा इरादा कैसे मज़बूत करती है?

5 चाहे कितने भी मुश्‍किल हालात खड़े हो जाएँ, हम ‘परमेश्‍वर की शांति’ पा सकते हैं। यह हमारे “दिमाग के सोचने की ताकत” की हिफाज़त करती है और हमारे मन को शांत रखती है। (फिलिप्पियों 4:6, 7 पढ़िए।) जब हम चिंता और तनाव में होते हैं, तब ‘परमेश्‍वर की शांति’ हमें हिम्मत दे सकती है, ताकि हम हार न माने और यहोवा की सेवा करते रहें। आइए कुछ भाई-बहनों के उदाहरणों पर ध्यान दें, जिन्हें ‘परमेश्‍वर की शांति’ मिली है।

मन की शांति बनाए रखने के लिए यहोवा से बिनती कीजिए

6, 7. प्रार्थना करने से हमें मन की शांति बनाए रखने में कैसे मदद मिलती है? उदाहरण दीजिए।

6 रायन और जूलीयट अस्थायी खास पायनियर थे। जब उन्हें पता चला कि अब वे खास पायनियर नहीं रह पाएँगे, तो वे दुखी हो गए। रायन कहता है, “हमने फौरन यहोवा से प्रार्थना की। हम समझ गए कि यह एक खास मौका है, जिसमें हम दिखा सकते हैं कि हमें यहोवा पर भरोसा है। हमारी मंडली के बहुत-से भाई-बहन सच्चाई में नए थे, इसलिए हमने यहोवा से बिनती की, ताकि हम उनके लिए विश्‍वास की बढ़िया मिसाल रख सकें।”

7 यहोवा ने उनकी प्रार्थनाओं का जवाब कैसे दिया? रायन कहता है, “प्रार्थना करने के फौरन बाद हमारा सारा डर और चिंताएँ गायब हो गयीं। वाकई परमेश्‍वर की शांति ने हमारे दिल और हमारे दिमाग के सोचने की ताकत की हिफाज़त की। हमें एहसास हो गया कि अगर हम सही नज़रिया रखें, तो हम आगे भी यहोवा के काम आ सकते हैं।”

8-10. (क) चिंताओं का सामना करने में पवित्र शक्‍ति हमारी मदद कैसे कर सकती है? (ख) जब हम यहोवा की सेवा करने पर पूरा ध्यान लगाए रखते हैं, तो वह हमारी मदद कैसे कर सकता है?

8 परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति न सिर्फ हमारे मन को शांत रखती है, बल्कि हमें बाइबल की ऐसी आयतें भी याद दिला सकती है, जिनसे हम समझ पाते हैं कि ज़िंदगी में कौन-सी बात ज़्यादा अहमियत रखती है। (यूहन्‍ना 14:26, 27 पढ़िए।) फिलिप और उसकी पत्नी मैरी पर ध्यान दीजिए। उन्हें बेथेल सेवा करते हुए करीब 25 साल हो गए थे। बेथेल से निकल जाने के बाद, चार महीनों के अंदर ही उन दोनों की माँओं की और एक रिश्‍तेदार की मौत हो गयी। इसके बाद से उन्हें मैरी के पिता की देखभाल करनी पड़ी, जिनकी दिमागी हालत ठीक नहीं है।

9 फिलिप कहता है, “कुछ वक्‍त तक मुझे लगा कि मैं अपने हालात का अच्छे से सामना कर रहा हूँ। लेकिन असल में कुछ कमी थी। एक बार मैंने प्रहरीदुर्ग के एक अध्ययन लेख में कुलुस्सियों 1:11 की आयत पढ़ी। तब मुझे एहसास हुआ कि मैं धीरज तो रख रहा हूँ, मगर पूरी तरह नहीं। मुझे ‘खुशी से और सब्र रखते हुए धीरज धरना’ था। इस आयत से मुझे एहसास हुआ कि मेरी खुशी हालात पर नहीं, बल्कि इस बात पर निर्भर करती है कि पवित्र शक्‍ति मेरी ज़िंदगी में किस हद तक काम कर रही है।”

10 फिलिप और मैरी ने अपना पूरा ध्यान यहोवा की सेवा करने पर लगाए रखा, इसलिए यहोवा ने उन्हें बहुत-सी आशीषें दीं। बेथेल छोड़ने के कुछ ही समय बाद उन्हें कई अच्छे बाइबल अध्ययन मिले। उनके विद्यार्थी चाहते थे कि उन्हें हफ्ते में एक से ज़्यादा बार अध्ययन कराया जाए। वे अच्छी तरक्की करने लगे। मैरी कहती है, “उन्हें देखकर हमें बहुत खुशी होती थी। हमें लगता था कि इस तरह यहोवा मानो हमसे कह रहा है कि सबकुछ ठीक हो जाएगा।”

कुछ ऐसा कीजिए, जिससे यहोवा आपको आशीष दे

हमारे हालात चाहे जैसे भी हों, हम यूसुफ की मिसाल पर कैसे चल सकते हैं? (पैराग्राफ 11-13 देखिए)

11, 12. (क) यूसुफ ने ऐसा क्या किया, जिसकी वजह से यहोवा ने उसे आशीष दी? (ख) यहोवा ने उसे क्या आशीष दी?

11 जब ज़िंदगी के हालात अचानक बदल जाते हैं, तब शायद हम चिंताओं में इस कदर डूब जाएँ कि हमें कुछ न सूझे। ऐसा यूसुफ के साथ भी हो सकता था। मगर उसने ठान लिया कि अपने हालात में उससे जितना हो सकता है, वह अच्छा करेगा। जिस तरह उसने पोतीफर के घर में कड़ी मेहनत की थी, उसी तरह उसने जेल में रहते वक्‍त भी की। जेल के दारोगा ने उसे जो भी काम दिया, वह उसने अच्छे से किया।​—उत्प. 39:21-23.

12 एक दिन यूसुफ को दो कैदियों की देखभाल करने के लिए कहा गया, जो फिरौन के दरबारी थे। यूसुफ ने उनके साथ इतना अच्छा बरताव किया कि उन्होंने उसे अपनी सारी चिंताएँ बतायीं। उन्होंने उसे बताया कि एक रात पहले उन्होंने ऐसा सपना देखा, जिससे वे बहुत परेशान हो गए। (उत्प. 40:5-8) उस वक्‍त यूसुफ को पता नहीं था कि उस बातचीत की वजह से आगे चलकर उसे रिहाई मिल जाएगी। मगर दो साल बाद ऐसा ही हुआ। उसे जेल से रिहा कर दिया गया और वह मिस्र का एक बड़ा अधिकारी बना। दरअसल फिरौन के बाद वही सबसे बड़ा अधिकारी था!​—उत्प. 41:1, 14-16, 39-41.

13. चाहे हमारे हालात जैसे भी हों, हमें क्या करना चाहिए, जिससे यहोवा हमें आशीष दे?

13 यूसुफ की तरह शायद हमारी ज़िंदगी में भी ऐसे हालात उठें, जिन पर हमारा कोई बस नहीं। फिर भी हमें सब्र रखना चाहिए और जितना हो सके, अपनी तरफ से अच्छा करना चाहिए। तभी यहोवा हमें आशीष देगा। (भज. 37:5) यहाँ तक कि जब हम “उलझन” में होते हैं या चिंताएँ हमें आ घेरती हैं, तब भी ‘हमें मायूस नहीं छोड़ा जाएगा’ यानी ऐसा नहीं होगा कि हमारे पास कोई उम्मीद न रह जाए। (2 कुरिं. 4:8; फु.) यहोवा हमेशा हमारे साथ रहेगा, खासकर अगर हम अपना पूरा ध्यान प्रचार सेवा में लगाए रखें।

अपना पूरा ध्यान प्रचार सेवा में लगाए रखिए

14-16. फिलिप्पुस ने बदलते हालात में भी अपना पूरा ध्यान प्रचार सेवा में कैसे लगाए रखा?

14 बदलते हालात में भी हमें अपना पूरा ध्यान प्रचार सेवा में लगाए रखना चाहिए। इस मामले में प्रचारक फिलिप्पुस एक बढ़िया मिसाल है। एक बार यरूशलेम में उसे सेवा करने का एक नया मौका मिला। (प्रेषि. 6:1-6) मगर फिर हालात बदल गए। स्तिफनुस के कत्ल के बाद मसीहियों पर बुरी तरह ज़ुल्म होने लगे और उन्हें यरूशलेम से भागना पड़ा। * ऐसे हालात में भी फिलिप्पुस यहोवा की सेवा करते रहना चाहता था। इस वजह से वह सामरिया शहर चला गया, जहाँ के लोगों ने अब तक खुशखबरी नहीं सुनी थी।​—मत्ती 10:5; प्रेषि. 8:1, 5.

15 फिलिप्पुस ऐसी हर जगह जाने के लिए तैयार था, जहाँ जाने के लिए पवित्र शक्‍ति उसे निर्देश देती। इस वजह से यहोवा ने उसे ऐसी जगहों में भेजा, जहाँ अब तक खुशखबरी नहीं पहुँची थी। ऐसी ही एक जगह थी, सामरिया। बहुत-से यहूदी सामरिया के लोगों को नीची नज़रों से देखते थे और उनके साथ बुरा सलूक करते थे। मगर फिलिप्पुस ने कोई भेदभाव नहीं किया। उसने बड़े जोश से सामरिया के लोगों को खुशखबरी सुनायी और उन्होंने भी “फिलिप्पुस की बातों पर ध्यान दिया और मन लगाकर उन्हें सुना।”​—प्रेषि. 8:6-8.

16 इसके बाद परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति ने फिलिप्पुस से अशदोद और कैसरिया जाने के लिए कहा, जहाँ बहुत-से गैर-यहूदी लोग रहते थे। (प्रेषि. 8:39, 40) कुछ समय बाद फिलिप्पुस के हालात फिर से बदल गए। अब उसका परिवार हो गया था। इसके बावजूद वह प्रचार सेवा में लगा रहा और यहोवा उसे और उसके परिवार पर आशीष देता रहा।​—प्रेषि. 21:8, 9.

17, 18. बदलते हालात में भी प्रचार करते रहने से हमें क्या फायदा होता है?

17 बहुत-से पूरे समय के सेवकों का कहना है कि बदलते हालात में भी प्रचार करते रहने से वे खुश रहते हैं और सही नज़रिया रख पाते हैं। दक्षिण अफ्रीका में रहनेवाले एक पति-पत्नी ऑसबॉर्न और पोलाइट का उदाहरण लीजिए। जब उन्होंने बेथेल छोड़ा, तो उन्हें लगा कि उन्हें बड़ी आसानी से पार्ट-टाइम नौकरी और रहने की जगह मिल जाएगी। मगर ऑसबॉर्न कहता है, “अफसोस की बात है कि हमें नौकरी उतनी जल्दी नहीं मिली, जितनी जल्दी हमने सोचा था।” पोलाइट कहती है, “तीन महीने तक हमें कोई नौकरी नहीं मिली और हमारे पास कोई जमा-पूँजी भी नहीं थी। वह हमारे लिए बहुत मुश्‍किल वक्‍त था।”

18 उन्हें किस बात से मदद मिली? ऑसबॉर्न कहता है, “मंडली के भाई-बहनों के साथ प्रचार करते रहने की वजह से हम अहम बातों पर ध्यान लगा पाए और सही नज़रिया रख पाए।” उन्होंने सोचा कि घर बैठे चिंता करने के बजाय अच्छा है कि हम प्रचार करते रहें। ऐसा करके उन्हें बहुत खुशी मिली! ऑसबॉर्न यह भी कहता है, “हमने हर जगह नौकरी की तलाश की और आखिरकार हमें नौकरी मिल गयी।”

यहोवा पर पूरा भरोसा रखिए

19-21. (क) हम अपने मन की शांति किस तरह बनाए रख सकते हैं? (ख) बदलते हालात के मुताबिक खुद को ढालने से क्या फायदा होता है?

19 अब तक हमने देखा कि जब हम अपने हालात में अपनी तरफ से अच्छा करने की कोशिश करते हैं और यहोवा पर पूरा भरोसा रखते हैं, तो हम मन की शांति बनाए रख पाते हैं। (मीका 7:7 पढ़िए।) बाद में शायद हमें एहसास हो कि बदलते हालात के मुताबिक जिस तरह हमने खुद को ढाला, उससे हम यहोवा के और करीब आ गए। पोलाइट बताती है कि बेथेल से बाहर निकलने पर उसने सीखा कि जब हालात बहुत मुश्‍किल लगते हैं, तब भी यहोवा पर निर्भर रहने का क्या मतलब है। वह कहती है, “उसके साथ मेरा रिश्‍ता और भी मज़बूत हुआ है।”

20 मैरी, जिसका ज़िक्र पहले किया गया था, अब भी अपने बुज़ुर्ग पिता की देखभाल कर रही है और पायनियर सेवा भी कर रही है। वह कहती है, “मैंने सीखा है कि जब भी मुझे चिंता सताए, तो मुझे रुककर प्रार्थना करनी चाहिए और फिर चिंता करना छोड़ देना चाहिए। मेरे लिए सबसे बड़ा सबक शायद यही रहा है कि मैं मामला यहोवा के हाथों में छोड़ दूँ। यह सबक आगे भी बहुत काम आएगा।”

21 लॉयड और ऐलेक्सैन्ड्रा बताते हैं कि उनकी ज़िंदगी में जो बदलाव हुए, उससे उनके विश्‍वास की इस तरह परख हुई, जिसकी उन्होंने उम्मीद भी नहीं की थी। मगर उन्होंने यह भी देखा है कि इस परीक्षा से उन्हें फायदा ही हुआ। उनका विश्‍वास इतना मज़बूत हो गया है कि अगर उनके सामने कोई भी मुश्‍किल आ जाए, तो वे हिम्मत से उसका सामना कर पाएँगे। वे यह भी कहते हैं कि अब वे और अच्छे इंसान बन गए हैं।

अचानक हालात बदलने से हमें आगे चलकर ऐसी आशीषें मिल सकती हैं, जिनकी हमने उम्मीद भी नहीं की होगी (पैराग्राफ 19-21 देखिए)

22. अगर हम अपने हालात में अपनी तरफ से अच्छा करने की कोशिश करें, तो हम किस बात का यकीन रख सकते हैं?

22 इस दुनिया में हमारे हालात कभी-भी बदल सकते हैं। शायद यहोवा की सेवा में आपको कोई और ज़िम्मेदारी दी जाए या सेहत से जुड़ी कोई समस्या हो जाए या फिर परिवार में कोई बड़ी ज़िम्मेदारी आप पर आ जाए। चाहे जैसे भी हालात खड़े हो जाएँ, यकीन रखिए कि यहोवा को आपकी परवाह है और वह सही वक्‍त पर आपकी मदद करेगा। (इब्रा. 4:16; 1 पत. 5:6, 7) अभी आपके जो भी हालात हैं, उनमें अपनी तरफ से अच्छा करने की कोशिश कीजिए। अपने पिता यहोवा से प्रार्थना कीजिए और उस पर पूरा भरोसा रखिए। अगर आप ऐसा करेंगे, तो हालात बदलने पर भी आप मन की शांति बनाए रख पाएँगे।

^ पैरा. 4 सालों बाद जब यूसुफ का पहला बेटा पैदा हुआ, तो उसने उसका नाम मनश्‍शे रखा, क्योंकि उसने कहा, ‘परमेश्‍वर की दया से मैंने अपने सारे गम भुला दिए हैं।’ यूसुफ समझ गया था कि यहोवा ने उसे दिलासा देने के लिए यह बेटा दिया है।​—उत्प. 41:51, फु.

^ पैरा. 14 इसी अंक में “क्या आप जानते थे?” लेख देखिए।