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अध्ययन लेख 44

क्या आपके बच्चे बड़े होकर परमेश्‍वर की सेवा करेंगे?

क्या आपके बच्चे बड़े होकर परमेश्‍वर की सेवा करेंगे?

“यीशु डील-डौल और बुद्धि में बढ़ता गया और परमेश्‍वर और लोगों की कृपा उस पर बनी रही।”​—लूका 2:52.

गीत 134 बच्चे यहोवा की अमानत

लेख की एक झलक *

1. एक इंसान की ज़िंदगी का सबसे बेहतरीन फैसला क्या हो सकता है?

अकसर देखा गया है कि माता-पिता जो फैसले करते हैं, उसका बच्चों की ज़िंदगी पर काफी असर पड़ता है। अगर माता-पिता गलत फैसले करें, तो उनकी वजह से बच्चों को कई दुख झेलने पड़ सकते हैं। लेकिन अगर वे सही फैसले करें, तो मुमकिन है कि बच्चे बड़े होकर खुश रहेंगे और अपने जीवन से संतुष्ट रहेंगे। मगर सिर्फ माता-पिता की नहीं बल्कि बच्चों की भी ज़िम्मेदारी बनती है कि वे सोच-समझकर सही फैसले करें। अगर वे बड़े होकर यहोवा की सेवा करने का फैसला करते हैं, तो यह बहुत बढ़िया बात है! क्योंकि यहोवा की सेवा करना एक इंसान की ज़िंदगी का सबसे बेहतरीन फैसला होता है।​—भज. 73:28.

2. हम क्यों कह सकते हैं कि यीशु और उसके माता-पिता ने सही फैसले किए थे?

2 यूसुफ और मरियम माता-पिताओं के लिए अच्छी मिसाल हैं। वे अपने बच्चों की इस तरह परवरिश करना चाहते थे कि वे बड़े होकर यहोवा की सेवा करें। उन्होंने खुद भी अपनी ज़िंदगी में यहोवा की सेवा को पहली जगह दी थी और यह उनके फैसलों से साफ दिखता था। (लूका 2:40, 41, 52) जब यीशु की ज़िंदगी में भी फैसला करने की घड़ी आयी, तो उसने सही फैसला किया। यही वजह है कि यहोवा ने अपना मकसद पूरा करने के लिए उसे जो ज़िम्मेदारी दी थी उसे वह पूरा कर सका। (मत्ती 4:1-10) यीशु बड़ा होकर एक अच्छा इंसान बना। वह दूसरों पर कृपा करता था, एक वफादार इंसान था और बड़ा हिम्मतवाला था। यहोवा से प्यार करनेवाले हर माँ-बाप का यही अरमान होगा कि उनके बेटे-बेटियाँ बड़े होकर यीशु के जैसे बनें।

3. इस लेख में हम किन सवालों के जवाब जानेंगे?

3 इस लेख में हम आगे दिए सवालों के जवाब जानेंगे: यहोवा ने यीशु की परवरिश के मामले में कैसे सही फैसला किया? यूसुफ और मरियम ने किस तरह के फैसले किए थे और आज मसीही माता-पिता उनसे क्या सीख सकते हैं? यीशु ने किस तरह के फैसले किए थे और आज बच्चे उससे क्या सीख सकते हैं?

माता-पिताओ, यहोवा से सीखिए

4. यहोवा ने यीशु की परवरिश के बारे में जो फैसला किया वह क्यों सही था?

4 यहोवा ने यीशु की परवरिश करने के लिए यूसुफ और मरियम को चुना। उनसे अच्छे माता-पिता शायद ही कोई और हो सकते थे। (मत्ती 1:18-23; लूका 1:26-38) ऐसा हम क्यों कह सकते हैं? मरियम को यहोवा और उसके वचन से गहरा लगाव था। एक मौके पर उसके दिल से जो शब्द निकले थे, उनसे साफ पता चलता है कि वह यहोवा से कितना प्यार करती थी और उसके वचन का कितना अध्ययन करती थी। (लूका 1:46-55) यूसुफ भी परमेश्‍वर का डर माननेवाला इंसान था और उसे खुश करना चाहता था। यह हम इसलिए कह सकते हैं क्योंकि जब परमेश्‍वर ने उसे एक आज्ञा दी, तो उसने तुरंत माना।​—मत्ती 1:24.

5-6. यहोवा ने अपने बेटे को किन हालात से गुज़रने दिया?

5 यहोवा ने यीशु की परवरिश करने के लिए ऐसे माता-पिता को चुना जो अमीर नहीं थे। यीशु के जन्म के बाद यूसुफ और मरियम ने भेंट में सिर्फ दो चिड़ियाँ दीं। इससे पता चलता है कि वे गरीब थे। (लूका 2:24) यूसुफ नासरत में बढ़ई का काम करता था। उसकी एक छोटी-सी दुकान रही होगी जो शायद उसके घर से ही लगी थी। यूसुफ और मरियम ज़रूर एक सादी ज़िंदगी जीते होंगे। उनके पास शायद ज़्यादा पैसे नहीं होते थे, क्योंकि बाइबल के मुताबिक उनके सात-आठ बच्चे थे।​—मत्ती 13:55, 56.  

6 यहोवा ने यीशु को कुछ खतरों से बचाया था, मगर उसे कुछ मुश्‍किलों से भी गुज़रने दिया। (मत्ती 2:13-15) मिसाल के लिए, उसके परिवार के कुछ लोग उस पर विश्‍वास नहीं करते थे। यीशु कभी-कभी यह देखकर कितना निराश होता होगा कि उसके अपने ही लोग उसे मसीहा नहीं मानते। (मर. 3:21; यूह. 7:5) जब यीशु छोटा था, तभी शायद उसके पिता यूसुफ की मौत हो गयी थी। अपने पिता की मौत का गम सहने के साथ-साथ उसे परिवार का कारोबार भी सँभालना पड़ा होगा, क्योंकि वह घर का बड़ा लड़का था। (मर. 6:3) यीशु जैसे-जैसे बड़ा हुआ उसने अपने परिवार की देखभाल करना और ज़िम्मेदारियाँ उठाना सीखा। उसे परिवार का गुज़ारा चलाने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ी होगी। वह जानता था कि रोज़ी-रोटी कमाने के लिए कितनी मेहनत करनी पड़ती है, खून-पसीना एक करना होता है।

माता-पिताओ, बच्चों को मुश्‍किलों का सामना करना सिखाइए। उन्हें दिखाइए कि वे बाइबल से सलाह कैसे पा सकते हैं (पैराग्राफ 7 देखें) *

7. (क) बच्चों की सही तरह से परवरिश करने के लिए पति-पत्नी को किन सवालों पर गौर करना चाहिए? (ख) नीतिवचन 2:1-6 के मुताबिक आपको अपने बच्चों को क्या सिखाना चाहिए?

7 अगर आप शादीशुदा हैं और बच्चे चाहते हैं, तो खुद से पूछिए, ‘क्या हम दोनों नम्र हैं और यहोवा जैसी सोच रखते हैं? क्या यहोवा हम पर भरोसा कर सकता है कि जब हमारा बच्चा होगा, तो हम सही तरीके से उसकी परवरिश करेंगे?’ (भज. 127:3, 4) अगर आपके बच्चे हैं, तो खुद से पूछिए, ‘क्या मैं अपने बच्चों के मन में यह बात बिठा रहा हूँ कि उन्हें मेहनत का काम भी करना चाहिए?’ (सभो. 3:12, 13) ‘क्या मैं उन्हें शैतान की दुनिया से बचाता हूँ? दुनिया में बच्चों के साथ जो घिनौने काम किए जाते हैं और उन पर बुरी बातों का जो असर होता है, क्या मैं उन सबसे बच्चों की रक्षा करता हूँ?’ (नीति. 22:3) अपने बच्चों को इस तरह के खतरों से बचाने के लिए आप बहुत कुछ कर सकते हैं। पर यह भी याद रखिए कि ज़िंदगी में आनेवाली हर मुश्‍किल से आप उन्हें नहीं बचा सकते। आप उन्हें यह ज़रूर सिखा सकते हैं कि वे कैसे बाइबल से सलाह पाकर मुश्‍किलों का सामना कर सकते हैं। (नीतिवचन 2:1-6 पढ़िए।) एक मुश्‍किल तब आ सकती है जब आपके परिवार में कोई सच्चाई छोड़ देता है। ऐसे में बच्चे को परमेश्‍वर के वचन से सिखाइए कि इस तरह के हालात में यहोवा के वफादार रहना क्यों ज़रूरी है। (भज. 31:23) या अगर परिवार में किसी की मौत हो जाए, तो यह दुख झेलना बच्चे के लिए मुश्‍किल हो सकता है। ऐसे में बच्चे को बाइबल की कुछ ऐसी आयतें दिखाइए जिससे वह अपना दर्द सह पाए।​—2 कुरिं. 1:3, 4; 2 तीमु. 3:16.

माता-पिताओ, यूसुफ और मरियम से सीखिए

8. व्यवस्थाविवरण 6:6, 7 के मुताबिक यूसुफ और मरियम को क्या करना था?

8 यूसुफ और मरियम ने यीशु की परवरिश बिलकुल उसी तरीके से की जैसे कानून में यहोवा ने माता-पिताओं को बताया था। इसलिए यीशु बड़ा होकर यहोवा को खुश करनेवाला इंसान बना। (व्यवस्थाविवरण 6:6, 7 पढ़िए।) यूसुफ और मरियम के दिल में यहोवा के लिए गहरा प्यार था और उन्होंने अपने बच्चों के दिल में भी ऐसा प्यार बढ़ाने के लिए बहुत मेहनत की।

9. यूसुफ और मरियम ने उपासना के मामले में कैसे अच्छे फैसले किए?

9 यूसुफ और मरियम ने अपने बच्चों के लिए कुछ अच्छे फैसले किए थे। वे उन्हें लेकर हर हफ्ते नासरत के सभा-घर में जाया करते थे और साल में एक बार फसह मनाने यरूशलेम भी जाया करते थे। (लूका 2:41; 4:16) जब वे अपने बच्चों के साथ यरूशलेम तक का लंबा सफर तय करते थे, तो शायद वे रास्ते में यीशु और उसके भाई-बहनों को बताते थे कि बीते समय में यहोवा के लोगों के साथ क्या-क्या घटनाएँ घटीं। शायद वे रास्ते में पड़नेवाली उन जगहों पर भी जाया करते थे जिनका ज़िक्र बाइबल में किया गया है। जब यूसुफ और मरियम का परिवार बढ़ता गया, तो पूरे परिवार के साथ नियमित तौर पर यहोवा की उपासना करना उनके लिए मुश्‍किल रहा होगा, फिर भी उन्होंने ऐसा किया। पर उन्हें अपनी मेहनत का फल भी मिला। यूसुफ और मरियम की तरह उनके बच्चों ने भी यहोवा के साथ एक गहरा रिश्‍ता कायम किया।

10. माता-पिता यूसुफ और मरियम से क्या सीख सकते हैं?

10 माता-पिताओ, आप यूसुफ और मरियम से क्या सीख सकते हैं? अपने बच्चों को सिखाइए कि वे दिल से यहोवा से प्यार करें और आप खुद भी ऐसा कीजिए। ऐसा करना बहुत ज़रूरी है। अगर आप उन्हें यहोवा से प्यार करना सिखाएँगे, तो यह आपकी तरफ से उनके लिए सबसे अनमोल विरासत होगी। अध्ययन करने, प्रार्थना करने, सभाओं और प्रचार में जाने की एक अच्छी आदत उनमें डालिए, क्योंकि यही चीज़ें ज़िंदगी में उनके बहुत काम आएँगी। (1 तीमु. 6:6) पर इसका यह मतलब नहीं कि आप बच्चों को पैसे या ज़रूरत की चीज़ें न दें, ये भी ज़रूरी हैं। (1 तीमु. 5:8) मगर याद रखिए कि जब शैतान की दुनिया का नाश होगा, तब पैसा या दौलत बच्चों की जान नहीं बचा सकती। अगर यहोवा के साथ उनका अच्छा रिश्‍ता होगा, तो वे नयी दुनिया में जा सकेंगे। *​—यहे. 7:19; 1 तीमु. 4:8.

आज यह देखकर कितनी खुशी होती है कि बहुत-से माता-पिताओं ने अपने बच्चों के लिए सही फैसले किए हैं (पैराग्राफ 11 देखें) *

11. (क) माता-पिताओं को 1 तीमुथियुस 6:17-19 में दी गयी सलाह क्यों माननी चाहिए? (ख) आप अपने परिवार के लिए कौन-से लक्ष्य रख सकते हैं? इससे आपको क्या आशीषें मिल सकती हैं? (“ आप क्या लक्ष्य रखेंगे?” नाम का बक्स पढ़ें।)

11 आज यह देखकर कितनी खुशी होती है कि बहुत-से माता-पिताओं ने अपने बच्चों के लिए सही फैसले किए हैं। वे उनके साथ मिलकर नियमित तौर पर यहोवा की सेवा करते हैं। वे सभाओं और अधिवेशनों में जाते हैं और प्रचार में भी जाते हैं। कुछ परिवार तो ऐसे इलाकों में सेवा कर रहे हैं जहाँ बहुत कम प्रचार हुआ है। कुछ परिवार बेथेल देखने जाते हैं या किसी निर्माण काम में हाथ बँटाते हैं। इस तरह के काम करने के लिए परिवारों को काफी पैसा खर्च करना पड़ता है और वे शायद कुछ मुश्‍किलों का भी सामना करें। मगर वे जो त्याग करते हैं उसके बदले यहोवा उन्हें बहुत-सी आशीषें देता है। (1 तीमुथियुस 6:17-19 पढ़िए।) ऐसे परिवारों में पलनेवाले बच्चे छुटपन में जो आदतें सीखते हैं वे आगे भी जारी रखते हैं। वे अपने माता-पिता के बहुत एहसानमंद हैं कि उन्होंने बचपन से उन्हें यह सब सिखाया। *​—नीति. 10:22.

बच्चो, यीशु से सीखिए

12. जब यीशु बड़ा होने लगा, तो उसे क्या करना पड़ा?

12 यीशु का पिता यहोवा हमेशा सही फैसले करता है और धरती पर उसके माता-पिता यूसुफ और मरियम ने भी उसके लिए सही फैसले किए। मगर जब यीशु बड़ा होने लगा, तो उसे खुद भी कुछ फैसले करने पड़े। (गला. 6:5) हम सबकी तरह यीशु के पास यह आज़ादी थी कि वह जो चाहे करे। वह चाहे तो सिर्फ अपने बारे में सोच सकता था, न कि परमेश्‍वर की मरज़ी के बारे में। मगर उसने ऐसा नहीं किया। उसने यहोवा के साथ एक अच्छा रिश्‍ता बनाए रखने का फैसला किया। (यूह. 8:29) आइए देखें कि यीशु ने किस तरह के फैसले किए और आज बच्चे उससे क्या सीख सकते हैं।

बच्चो, अपने माता-पिता से सीखिए, उनकी बात मत टालिए (पैराग्राफ 13 देखें) *

13. यीशु ने छुटपन से ही क्या किया?

13 यीशु ने छुटपन से ही अपने माता-पिता का कहना माना। उसने अपनी मन-मरज़ी नहीं की और कभी अपने माता-पिता की बात नहीं टाली। उसने यह नहीं सोचा कि वह उनसे ज़्यादा जानता है। इसके बजाय वह “लगातार उनके अधीन रहा।” (लूका 2:51) घर का बड़ा बेटा होने के नाते उसने अपनी ज़िम्मेदारी अच्छे से निभायी। उसने अपने पिता यूसुफ से बढ़ई का काम सीखने के लिए बहुत मेहनत की होगी ताकि घर के लिए वह भी कुछ कमा सके।

14. हम क्यों कह सकते हैं कि यीशु परमेश्‍वर के वचन का अच्छा अध्ययन करता था?

14 यीशु के माता-पिता ने उसे ज़रूर बताया होगा कि उसका जन्म एक चमत्कार से हुआ था और यह भी कि स्वर्गदूतों और परमेश्‍वर के सेवकों ने उसके बारे में क्या बताया था। (लूका 2:8-19, 25-38) यीशु दूसरों से सीखने के अलावा खुद भी शास्त्र का अध्ययन करता था। यह हम इसलिए कह सकते हैं क्योंकि जब वह सिर्फ 12 साल का था, तब यरूशलेम के मंदिर में शिक्षक ‘उसकी समझ और उसके जवाबों से दंग’ रह गए थे। (लूका 2:46, 47) इतनी छोटी उम्र में ही यीशु ने शास्त्र का अच्छा अध्ययन किया था और उसे पूरा यकीन था कि यहोवा उसका पिता है।​—लूका 2:42, 43, 49.

15. हम कैसे कह सकते हैं कि यीशु ने यहोवा की मरज़ी पूरी करने का फैसला किया था?

15 जब यीशु ने जाना कि यहोवा उससे क्या चाहता है, तो उसने फैसला किया कि वह वही करेगा जो यहोवा की मरज़ी है। (यूह. 6:38) वह जानता था कि जब वह परमेश्‍वर की दी हुई ज़िम्मेदारी निभाएगा, तो बहुत लोग उससे नफरत करेंगे। उसे पता था कि यह उसके लिए आसान नहीं होगा, फिर भी उसने ठान लिया कि वह यहोवा की मरज़ी पूरी करेगा। ईसवी सन्‌ 29 में जब यीशु ने बपतिस्मा लिया तब से मरते दम तक उसने परमेश्‍वर की मरज़ी पूरी की। यही उसकी ज़िंदगी का मकसद था। (इब्रा. 10:5-7) जब वह यातना काठ पर तड़प रहा था, तब भी उसका इरादा कमज़ोर नहीं हुआ।​—यूह. 19:30.

16. बच्चे यीशु से क्या सीख सकते हैं?

16 माता-पिता का कहना मानिए।  यूसुफ और मरियम की तरह आपके माता-पिता भी परिपूर्ण नहीं हैं। फिर भी यहोवा ने उन्हें यह ज़िम्मेदारी सौंपी है कि वे आपकी हिफाज़त करें और आपको सिखाएँ-समझाएँ। अगर आप यीशु की तरह अपने माता-पिता की बात मानेंगे और उनके अधीन रहेंगे, तो ‘आपका भला होगा।’​—इफि. 6:1-4.

17. यहोशू 24:15 के मुताबिक बच्चों और नौजवानों को खुद क्या फैसला करना चाहिए?

17 फैसला कीजिए कि आप किसकी सेवा करेंगे।  आपको परमेश्‍वर के वचन का अध्ययन करके खुद जानना होगा कि यहोवा किस तरह का परमेश्‍वर है, उसका मकसद क्या है, उसकी मरज़ी क्या है और आप अपनी ज़िंदगी में उसकी मरज़ी कैसे पूरी कर सकते हैं। (रोमि. 12:2) तब आप यहोवा की सेवा करने का फैसला कर पाएँगे जो कि आपकी ज़िंदगी का सबसे अहम फैसला होगा। (यहोशू 24:15 पढ़िए; सभो. 12:1) नियमित तौर पर बाइबल पढ़िए और उसका अध्ययन कीजिए। तब यहोवा के लिए आपका प्यार बढ़ेगा और उस पर आपका विश्‍वास मज़बूत होगा।

18. (क) बच्चों और नौजवानों को क्या फैसला करना चाहिए? (ख) यह क्यों सही फैसला होगा?

18 फैसला कीजिए कि आप यहोवा की मरज़ी को पहली जगह देंगे।  शैतान की दुनिया आपको उकसाएगी कि आप सिर्फ अपने बारे में सोचें। अपना हुनर और अपनी काबिलीयतें पैसा, नाम और शोहरत कमाने में लगाएँ, क्योंकि माना जाता है कि इसी से खुशी मिलती है। लेकिन सच तो यह है कि जो इन चीज़ों के पीछे भागते हैं, वे खुद को “कई दुख-तकलीफों से छलनी” कर लेते हैं। (1 तीमु. 6:9, 10) तो बुद्धिमानी इसी में है कि आप यहोवा की बात मानें और उसकी मरज़ी को पहली जगह दें। तब आप सही मायनों में खुश रहेंगे।​—यहो. 1:8.

आप क्या करेंगे?

19. माता-पिताओं को क्या याद रखना चाहिए?

19 माता-पिताओ, अपने बच्चों की सही तरह से परवरिश करने के लिए मेहनत कीजिए ताकि वे यहोवा की सेवा करें। यहोवा पर निर्भर रहिए, उसकी मदद से आप सही फैसले कर पाएँगे। (नीति. 3:5, 6) याद रखिए कि आप जो करते हैं, उसे देखकर बच्चे ज़्यादा सीखते हैं, न कि आप जो सिखाते हैं उससे। इसलिए आप ऐसे फैसले कीजिए जिससे बाद में बच्चों का भला हो और वे यहोवा की आशीष पाएँ।

20. अगर बच्चे यहोवा की सेवा करने का फैसला करें, तो उन्हें क्या आशीषें मिलेंगी?

20 बच्चो, ज़िंदगी में सही फैसला करने में माता-पिता आपकी मदद कर सकते हैं। मगर यह फैसला आपको खुद करना है कि आप यहोवा को खुश करेंगे या नहीं। यीशु की तरह अपने पिता यहोवा की सेवा करने का फैसला कीजिए। अगर आप ऐसा करेंगे, तो आज भी आप एक संतुष्ट जीवन जी सकेंगे और यहोवा की सेवा में बहुत कुछ कर पाएँगे। (1 तीमु. 4:16) और नयी दुनिया में तो आप ऐसी खुशहाल ज़िंदगी जीएँगे जिसकी आज आप कल्पना भी नहीं कर सकते।

गीत 133 जवानी में याह की सेवा करें

^ पैरा. 5 मसीही माता-पिता चाहते हैं कि उनके बच्चे बड़े होकर यहोवा की सेवा करें और खुश रहें। माता-पिता सही फैसले कैसे कर सकते हैं ताकि उनके बच्चे बड़े होकर यहोवा के सेवक बनें? और बच्चे भी कैसे सही फैसले कर सकते हैं ताकि वे बड़े होकर एक अच्छी ज़िंदगी जी सकें? इन सवालों पर इस लेख में चर्चा की जाएगी।

^ पैरा. 11 अक्टूबर 2011 की सजग होइए!  में पेज 20 पर दिया यह बक्स पढ़ें, “मेरे मम्मी-पापा दुनिया के सबसे अच्छे मम्मी-पापा हैं” और 8 अप्रैल, 1999 की सजग होइए!  के पेज 25 पर दिया यह लेख पढ़ें, “अपने माता-पिता के नाम एक खास खत।

^ पैरा. 66 तसवीर के बारे में: जब यीशु छोटा था, तब से मरियम ने उसके दिल में यहोवा के लिए प्यार बढ़ाया होगा। उसी तरह माँएँ, अपने बच्चों के दिल में यहोवा के लिए प्यार बढ़ा सकती हैं।

^ पैरा. 68 तसवीर के बारे में: यूसुफ जानता था कि अपने बच्चों को सभा-घर ले जाना बहुत ज़रूरी है। उसी तरह आज पिताओं को अपने बच्चों को सभाओं में ले जाना चाहिए।

^ पैरा. 70 तसवीर के बारे में: यीशु ने अपने पिता से काम करने का हुनर सीखा। आज बच्चे भी अपने पिता से ऐसा हुनर सीख सकते हैं।