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अध्ययन लेख 42

सच्चाई को मज़बूती से थामे रहिए

सच्चाई को मज़बूती से थामे रहिए

“सब बातों को परखो, जो बढ़िया है उसे थामे रहो।”​—1 थिस्स. 5:21.

गीत 142 अपनी आशा कसकर थामे रहें

लेख की एक झलक *

1. आज बहुत-से लोग किस उलझन में हैं और क्यों?

आज दुनिया में बहुत-से धर्म हैं, जो दावा करते हैं कि उनका धर्म सही है। इसलिए कई लोग उलझन में हैं। वे सोचते हैं, ‘क्या कोई सच्चा धर्म है? या सभी धर्म परमेश्‍वर की ओर ले जाते हैं?’ लेकिन हम अपने बारे में क्या कहेंगे? क्या हमें पूरा यकीन है कि हम जो मानते हैं, वही सच है और हम जिस तरीके से यहोवा की उपासना करते हैं, वही सही तरीका है? क्या इसके कोई सबूत हैं? आइए जानें।

2. पौलुस को क्यों पक्का यकीन था कि वह जो मानता है, वह सच है? (1 थिस्सलुनीकियों 1:5)

2 प्रेषित पौलुस को पक्का यकीन था कि वह जो मानता है, वह सच है। (1 थिस्सलुनीकियों 1:5 पढ़िए।) उसे सिर्फ इसलिए यकीन नहीं था, क्योंकि उसे ये बातें अच्छी लगती थीं। वह मानता था कि “पूरा शास्त्र परमेश्‍वर की प्रेरणा से लिखा गया है।” (2 तीमु. 3:16) इसलिए उसने परमेश्‍वर के वचन का गहराई से अध्ययन किया। अध्ययन करके उसे सबूत मिले कि यीशु ही वादा किया गया मसीह है। ये ऐसे सबूत थे, जिन्हें कोई भी ठुकरा नहीं सकता था। फिर भी धर्म गुरुओं ने इन्हें मानने से इनकार कर दिया। वे कहते थे कि वे परमेश्‍वर के बारे में सिखा रहे हैं, लेकिन दरअसल वे ऐसे काम करते थे, जिनसे परमेश्‍वर को नफरत है। (तीतु. 1:16) पौलुस उनकी तरह नहीं था। उसने शास्त्र की सिर्फ वे बातें नहीं मानीं, जो उसे अच्छी लगती थीं। इसके बजाय, उसने परमेश्‍वर की मरज़ी से जुड़ी “सारी बातें” दूसरों को सिखायीं और उन्हें खुद भी लागू किया।​—प्रेषि. 20:27.

3. क्या सच्चे धर्म के लोगों के पास सभी  सवालों के जवाब होने चाहिए? समझाइए। (“ यहोवा के काम और मकसद बेशुमार हैं” बक्स पढ़ें।)

3 कुछ लोगों का मानना है कि सच्चे धर्म के लोगों के पास सभी सवालों के जवाब होने चाहिए। उन सवालों के भी, जिनके जवाब बाइबल में नहीं हैं। लेकिन क्या यह मानना सही है? पौलुस के उदाहरण पर गौर कीजिए। उसने दूसरे मसीहियों से कहा, “सब बातों को परखो।” (1 थिस्स. 5:21) लेकिन उसने यह भी कहा, “हमारा ज्ञान अधूरा है . . . अभी हम धुँधला आकार देखते हैं, मानो हम एक धातु के आईने में देख रहे हों।” (1 कुरिं. 13:9, 12) पौलुस को सबकुछ नहीं पता था और न ही हम सबकुछ जान सकते हैं। लेकिन पौलुस को परमेश्‍वर के बारे में बुनियादी सच्चाइयाँ पता थीं। उसे जितना पता था, उससे उसे पूरा यकीन हो गया कि वह जो मानता है, वह सच है।

4. (क) हमारे पास सच्चाई है, इस बात पर यकीन बढ़ाने के लिए हम क्या कर सकते हैं? (ख) सच्चे मसीही क्या करते हैं?

4 हमारे पास सच्चाई है, इस बात पर अपना यकीन बढ़ाने के लिए गौर कीजिए कि यीशु ने किस तरह परमेश्‍वर की उपासना की थी और आज यहोवा के साक्षी किस तरह उपासना करते हैं। इस लेख में हम जानेंगे कि सच्चे मसीही (1) मूर्तिपूजा नहीं करते, (2) यहोवा के नाम की महिमा करते हैं, (3) सच्चाई से प्यार करते हैं और (4) एक-दूसरे से दिल से प्यार करते हैं।

हम मूर्तिपूजा नहीं करते

5. यीशु ने किस तरह उपासना की और उससे हम क्या सीखते हैं?

5 यीशु, यहोवा से बहुत प्यार करता था। इसलिए स्वर्ग में रहते वक्‍त और धरती पर भी, उसने सिर्फ और सिर्फ यहोवा की उपासना की। (लूका 4:8) उसने अपने चेलों को भी ऐसा ही करना सिखाया। यीशु और उसके चेलों ने कभी-भी मूर्तिपूजा नहीं की। वह क्यों? क्योंकि किसी ने भी परमेश्‍वर को नहीं देखा है, वह अदृश्‍य है। इसलिए कोई भी उसकी तसवीर या मूरत नहीं बना सकता। (यशा. 46:5) लेकिन क्या संतों की मूर्तियाँ बनाना और उनकी पूजा करना सही है? यहोवा की दस आज्ञाओं में से दूसरी आज्ञा यह थी, “तुम अपने लिए कोई मूरत न तराशना। ऊपर आसमान में, नीचे ज़मीन पर और पानी में जो कुछ है, उनमें से किसी के भी  आकार की कोई चीज़ न बनाना। तुम उनके आगे दंडवत न करना।” (निर्ग. 20:4, 5) जो परमेश्‍वर को खुश करना चाहते हैं, वे मूर्तिपूजा नहीं करते।

6. आज यहोवा के साक्षी किस तरह उपासना करते हैं?

6 इतिहासकार मानते हैं कि पहली सदी के मसीही सिर्फ परमेश्‍वर की उपासना करते थे। उदाहरण के लिए, इतिहास की एक किताब में लिखा है कि उन्हें मूर्तिपूजा के खयाल से ही नफरत थी। आज हम भी उनकी तरह उपासना करते हैं। हम संतों और स्वर्गदूतों की उपासना नहीं करते, न ही यीशु की उपासना करते हैं। हम झंडे को सलामी नहीं देते, न ही किसी और तरीके से देश की भक्‍ति करते हैं। चाहे कोई हमारे साथ ज़बरदस्ती करे, फिर भी हम हर हाल में यीशु की यह बात मानते हैं, “तू सिर्फ अपने परमेश्‍वर यहोवा की उपासना कर।”​—मत्ती 4:10.

7. दूसरे धर्म के लोगों में और यहोवा के साक्षियों में क्या फर्क है?

7 आज कई लोग जाने-माने धर्म गुरुओं को बहुत मानते हैं। वे उनके पीछे इस कदर पागल होते हैं कि वे उनकी उपासना करने लगते हैं। वे उनकी सभाओं में जाते हैं, उनकी किताबें खरीदते हैं, उन्हें और उनकी संस्थाओं को बड़ी-बड़ी रकम दान करते हैं। कुछ लोग उनकी कही हर बात मानते हैं। चर्च में कई लोग पादरियों को इतना मानते हैं कि अगर उनके सामने यीशु भी आ जाए, तो वे उस पर भी ध्यान नहीं देंगे। लेकिन हम साक्षी सिर्फ यहोवा की बात मानते हैं, इंसानों की नहीं। हालाँकि हम अगुवाई लेनेवाले भाइयों का आदर करते हैं, लेकिन हम यीशु की यह बात भी मानते हैं, “तुम सब भाई हो।” (मत्ती 23:8-10) हम इंसानों की उपासना नहीं करते। फिर चाहे वह कोई धर्म गुरु हो या कोई नेता। हम उनकी योजनाओं का साथ नहीं देते। हम निष्पक्ष रहते हैं और दुनिया के कामों में हिस्सा नहीं लेते। इन सब मामलों में हम दूसरे धर्मों के लोगों से अलग हैं।​—यूह. 18:36.

हम यहोवा के नाम की महिमा करते हैं

सच्चे मसीही गर्व से दूसरों को यहोवा के बारे में बताते हैं (पैराग्राफ 8-10 देखें) *

8. हमें कैसे पता कि यहोवा चाहता है कि पूरी दुनिया में उसके नाम की महिमा हो?

8 एक बार यीशु ने प्रार्थना की, “पिता अपने नाम की महिमा कर।” तब यहोवा ने कहा कि उसके नाम की महिमा होगी। (यूह. 12:28) यीशु ने भी लोगों को यहोवा का नाम बताया और उसकी महिमा की। (यूह. 17:26) इसलिए आज सच्चे मसीही भी गर्व से परमेश्‍वर का नाम लेते हैं और इसके बारे में दूसरों को बताते हैं।

9. पहली सदी के मसीहियों ने किस तरह परमेश्‍वर के नाम की महिमा की?

9 मसीही मंडली की शुरूआत के कुछ ही समय बाद, यहोवा ने ‘गैर-यहूदी राष्ट्रों की तरफ ध्यान दिया ताकि उनके बीच से ऐसे लोगों को इकट्ठा करे जो उसके नाम से पहचाने जाएँ।’ (प्रेषि. 15:14) उन मसीहियों ने गर्व से परमेश्‍वर का नाम लिया और दूसरे को इसके बारे में बताया। बाइबल की किताबें लिखते वक्‍त भी, उन्होंने परमेश्‍वर का नाम लिखा। * इस तरह उन्होंने साबित किया कि सिर्फ वे लोग हैं, जो परमेश्‍वर के नाम से जाने जाते हैं।​—प्रेषि. 2:14, 21.

10. यह क्यों कहा जा सकता है कि सिर्फ यहोवा के साक्षी ही परमेश्‍वर के नाम की महिमा करते हैं?

10 आज कौन यहोवा के नाम की महिमा कर रहे हैं? कई पादरियों ने परमेश्‍वर के नाम को छिपाने की बहुत कोशिश की है। उन्होंने बाइबल के अनुवादों से परमेश्‍वर का नाम हटा दिया है। और अपने चर्चों में परमेश्‍वर का नाम लेने से लोगों को मना किया है। * लेकिन यहोवा के साक्षी उनसे बहुत अलग हैं। हम यहोवा के नाम की महिमा करते हैं। (यशा. 43:10-12) हमने पवित्र शास्त्र का नयी दुनिया अनुवाद  बाइबल की 24 करोड़ कॉपियाँ छापी हैं। इस बाइबल में उन सभी आयतों में यहोवा का नाम है, जहाँ दूसरे बाइबल अनुवादों में यहोवा का नाम नहीं पाया जाता। हमने 1,000 से भी ज़्यादा भाषाओं में बाइबल पर आधारित किताबें और पत्रिकाएँ प्रकाशित की हैं, जिनमें यहोवा का नाम है। इससे पता चलता है कि सिर्फ यहोवा के साक्षी ही परमेश्‍वर के नाम की महिमा करते हैं।

हमें सच्चाई से प्यार है

11. पहली सदी के मसीहियों ने कैसे ज़ाहिर किया कि उन्हें सच्चाई से प्यार है?

11 यीशु अपने पिता यहोवा और उसके मकसदों के बारे में सच्चाई जानता था। उसे इन सच्चाइयों से बहुत प्यार था। इसलिए यीशु ने अपनी ज़िंदगी इसके मुताबिक जी और इसके बारे में दूसरों को भी बताया। (यूह. 18:37) यीशु के चेलों को भी सच्चाई से बहुत प्यार था। (यूह. 4:23, 24) प्रेषित पतरस ने कहा कि मसीही होने का मतलब है, “सच्चाई की राह” पर चलना। (2 पत. 2:2) पहली सदी के मसीहियों को सच्चाई से बहुत प्यार था। इसलिए उन्होंने ऐसी शिक्षाएँ, धारणाएँ और परंपराएँ ठुकरा दीं जो बाइबल के हिसाब से सही नहीं थीं। (कुलु. 2:8) उसी तरह, आज भी सच्चे मसीही “सच्चाई की राह” पर चलने की पूरी कोशिश करते हैं। उनकी शिक्षाएँ और जीने का तरीका बाइबल के आधार पर होता है।​—3 यूह. 3, 4.

12. जब शासी निकाय को एहसास होता है कि कोई फेरबदल करना है, तो वे क्या करते हैं और क्यों?

12 यहोवा के साक्षी यह दावा नहीं करते कि उन्हें बाइबल की पूरी समझ है। कई बार उन्होंने बाइबल की बातों को जिस तरह समझाया है और जिस तरह संगठन को चलाया है, उसमें उनसे गलतियाँ हुई हैं। लेकिन यह बात जानकर हमें हैरानी नहीं होनी चाहिए। बाइबल में लिखा है कि यहोवा धीरे-धीरे सच्चाई की समझ देता है। (नीति. 4:18; कुलु. 1:9, 10) इसलिए हमें उसके वक्‍त का इंतज़ार करना चाहिए और सब्र रखना चाहिए। जब शासी निकाय को एहसास होता है कि उन्हें किसी समझ में फेरबदल करनी चाहिए या संगठन चलाने के तरीके को बदलना चाहिए, तो वे ऐसा फौरन करते हैं, हिचकिचाते नहीं। ईसाई धर्म के लोग जब अपनी शिक्षाओं में फेरबदल करते हैं, तो वे लोगों को और दुनिया को खुश करने के लिए ऐसा करते हैं। लेकिन जब यहोवा के साक्षी कोई फेरबदल करते हैं, तो वे ऐसा इसलिए करते हैं ताकि वे यहोवा को खुश कर सकें और यीशु की तरह उपासना कर सकें। (याकू. 4:4) हम दुनिया के बदलते चलन की वजह से फेरबदल नहीं करते, लेकिन तब करते हैं, जब हमें बाइबल की बेहतर समझ मिलती है।​—1 थिस्स. 2:3, 4.

हम एक-दूसरे को दिल से प्यार करते हैं

13. (क) पहली सदी के मसीहियों में सबसे खास गुण कौन-सा था? (ख) कैसे पता चलता है कि आज यहोवा के साक्षियों में वही गुण है?

13 पहली सदी के मसीहियों में बहुत-से अच्छे गुण थे। लेकिन सबसे खास गुण था, प्यार। यीशु ने कहा था, “अगर तुम्हारे बीच प्यार होगा, तो इसी से सब जानेंगे कि तुम मेरे चेले हो।” (यूह. 13:34, 35) आज दुनिया-भर में यहोवा के साक्षियों के बीच प्यार और एकता है। हालाँकि हम अलग-अलग देश और संस्कृति से हैं, लेकिन फिर भी हम एक परिवार जैसे हैं। सभाओं, सम्मेलनों और अधिवेशनों में हम यह प्यार महसूस कर पाते हैं। इससे हमारा यकीन बढ़ जाता है कि हम सही तरीके से यहोवा की उपासना कर रहे हैं।

14. कुलुस्सियों 3:12-14 के मुताबिक, हम एक-दूसरे को दिल की गहराइयों से प्यार कैसे कर सकते हैं?

14 बाइबल में बढ़ावा दिया गया है, “एक-दूसरे को दिल की गहराइयों से प्यार करो।” (1 पत. 4:8) यह प्यार ज़ाहिर करने का एक तरीका है, एक-दूसरे को माफ करना और एक-दूसरे की गलतियों को सहना। दूसरा तरीका है, मंडली में सबको दरियादिली दिखाना और उनकी मेहमान-नवाज़ी करना, उनकी भी जिन्होंने हमारा दिल दुखाया है। (कुलुस्सियों 3:12-14 पढ़िए।) हमारे बीच का प्यार, सच्चे मसीही होने की पहचान है।

“एक ही विश्‍वास”

15. हम और किन तरीकों से पहली सदी के मसीहियों की तरह उपासना करते हैं?

15 हम दूसरे मामलों में भी पहली सदी के मसीहियों की तरह उपासना करते हैं। उदाहरण के लिए, हम उसी तरह संगठित हैं, जिस तरह वे संगठित थे। पहली सदी की तरह आज भी सफरी निगरान, प्राचीन और सहायक सेवक होते हैं। (फिलि. 1:1; तीतु. 1:5) उन मसीहियों की तरह हम लैंगिक संबंध, शादी और खून के इस्तेमाल के बारे में परमेश्‍वर के कानून मानते हैं। हम ऐसे लोगों को मंडली से दूर रखते हैं, जो परमेश्‍वर का कानून मानने से इनकार करते हैं।​—प्रेषि. 15:28, 29; 1 कुरिं. 5:11-13; 6:9, 10; इब्रा. 13:4.

16. इफिसियों 4:4-6 से हमें क्या बात पता चलती है?

16 यीशु ने कहा था कि बहुत-से लोग उसके चेले होने का ढोंग करेंगे। (मत्ती 7:21-23) आखिरी दिनों के बारे में भविष्यवाणी की गयी है कि बहुत-से लोग परमेश्‍वर की ‘भक्‍ति करने का दिखावा करेंगे।’ (2 तीमु. 3:1, 5) लेकिन बाइबल में यह भी लिखा है कि सिर्फ “एक ही विश्‍वास” है, जिसे परमेश्‍वर मंज़ूर करता है।​—इफिसियों 4:4-6 पढ़िए।

17. आज कौन एक ही विश्‍वास के मुताबिक चलते हैं?

17 वे कौन हैं, जो आज एक ही विश्‍वास के मुताबिक चलते हैं? यहोवा के साक्षी। इस लेख में हमने जाना कि यीशु और पहली सदी के मसीही जिस तरह उपासना करते थे, यहोवा के साक्षी भी आज उसी तरह करते हैं। हमें इस बात की बहुत खुशी है कि हम यहोवा के साक्षी हैं और हमें यहोवा और उसके मकसदों के बारे में सच्चाई पता है। इसलिए आइए हम सच्चाई को मज़बूती से थामे रहें।

गीत 3 हमारी ताकत, आशा और भरोसा

^ पैरा. 5 इस लेख में हम जानेंगे कि यीशु ने किस तरीके से उपासना की। हम यह भी जानेंगे कि पहली सदी के मसीहियों ने वही तरीका अपनाया और आज यहोवा के साक्षी भी उसी तरह उपासना करते हैं।

^ पैरा. 9 जनवरी-मार्च 2011 की प्रहरीदुर्ग  के पेज 18 पर “क्या शुरू के मसीही परमेश्‍वर का नाम इस्तेमाल करते थे?” बक्स पढ़ें।

^ पैरा. 10 उदाहरण के लिए, 2008 में पोप बेनेडिक्ट 16वें ने आदेश दिया कि कैथोलिक धार्मिक सभाओं के दौरान प्रार्थनाओं और भजनों में परमेश्‍वर का नाम नहीं लिया जाना चाहिए।

^ पैरा. 63 तसवीर के बारे में: यहोवा के साक्षियों ने 200 से ज़्यादा भाषाओं में नयी दुनिया अनुवाद  बाइबल निकाली है, ताकि लोग अपनी-अपनी भाषाओं में इसे पढ़ सकें। इस बाइबल में परमेश्‍वर का नाम दिया है।