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अध्ययन लेख 44

अपनी आशा पक्की करते रहिए!

अपनी आशा पक्की करते रहिए!

“यहोवा पर आशा रख।”​—भजन 27:14.

गीत 144 इनाम पे रखो नज़र!

एक झलक a

1. यहोवा ने हमें क्या आशा दी है?

 यहोवा ने हमें हमेशा तक जीने की आशा दी है। हममें से ज़्यादातर लोगों को धरती पर हमेशा के लिए जीने की आशा है। उस वक्‍त सबकी सेहत अच्छी रहेगी और हर कोई खुश होगा। (प्रका. 21:3, 4) और हममें से कुछ को स्वर्ग में अमर जीवन पाने की आशा है। (1 कुरिं. 15:50, 53) चाहे हमारी आशा स्वर्ग में जीने की हो या धरती पर, हम कितने खुश हैं कि यहोवा ने हमें यह आशा दी है और हम उस वक्‍त का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हैं जब यह पूरी होगी।

2. हम क्यों यकीन रख सकते हैं कि हमारी आशा पूरी होगी?

2 बाइबल में जब “आशा” की बात की गयी है तो इसका मतलब है, कुछ अच्छा होने का बेसब्री से इंतज़ार करना। हमारी आशा कोई सपना नहीं है, हमारे पास इस बात के पक्के सबूत हैं कि यह पूरी होगी। यह आशा हमें खुद यहोवा ने दी है। (रोमि. 15:13) उसने हमें साफ-साफ बताया है कि वह क्या करनेवाला है और हम अच्छी तरह जानते हैं कि वह हमेशा अपने वादे पूरे करता है। (गिन. 23:19) हम यह भी जानते हैं कि यहोवा के पास अपने वादे पूरे करने की इच्छा भी है और ताकत भी। इन बातों को ध्यान में रखकर हम यकीन रख सकते हैं कि हमारी आशा ज़रूर पूरी होगी।

3. हम इस लेख में क्या जानेंगे? (भजन 27:14)

3 यहोवा हमारा पिता है और वह हमसे बहुत प्यार करता है। वह चाहता है कि हम उस पर पूरा भरोसा करें। (भजन 27:14 पढ़िए।) जब हम यहोवा पर भरोसा करेंगे, उस पर आशा रखेंगे, तो मुश्‍किलें आने पर भी हम हिम्मत रख पाएँगे और खुश रह पाएँगे। इस लेख में हम जानेंगे कि हमारी आशा कैसे एक लंगर और टोप की तरह हमारी हिफाज़त करती है। फिर हम यह भी जानेंगे कि हम अपनी आशा को और पक्का कैसे कर सकते हैं।

हमारी आशा एक लंगर की तरह है

4. हमारी आशा कैसे एक लंगर की तरह है? (इब्रानियों 6:19)

4 पौलुस ने इब्रानियों के नाम जो चिट्ठी लिखी, उसमें उसने कहा कि हमारी आशा एक लंगर की तरह है। (इब्रानियों 6:19 पढ़िए।) पौलुस अकसर जहाज़ों से सफर किया करता था, इसलिए वह अच्छी तरह जानता था कि एक लंगर डालने से जहाज़ सँभल जाता है। ध्यान दीजिए कि एक बार क्या हुआ। पौलुस एक जहाज़ से सफर कर रहा था कि अचानक समुंदर में एक ज़बरदस्त तूफान उठा। तब पौलुस ने देखा कि नाविकों ने समुंदर में लंगर डाल दिए ताकि जहाज़ सँभल जाए और चट्टानों से ना टकराए। (प्रेषि. 27:29, 39-41) कई बार हमारी ज़िंदगी में भी मुसीबतों का तूफान आता है। उस वक्‍त हमारी आशा हमें सँभाले रहती है ताकि हम यहोवा से दूर ना चले जाएँ। हम बहुत ज़्यादा बेचैन या परेशान नहीं होते, क्योंकि हम जानते हैं कि यह तूफान थम जाएगा। यीशु ने भी कहा था कि हमें सताया जाएगा। (यूह. 15:20) इसलिए अगर हम अपनी आशा पर ध्यान लगाए रखेंगे, तो हमारा विश्‍वास नहीं डगमगाएगा और हम मुश्‍किलें आने पर भी यहोवा की सेवा करते रहेंगे।

5. जब यीशु की मौत होनेवाली थी, तो आशा होने की वजह से वह वफादार कैसे रह पाया?

5 यीशु जानता था कि उसे बुरी तरह मार डाला जाएगा। लेकिन अपनी आशा की वजह से वह उस वक्‍त भी वफादार रह पाया। ईसवी सन्‌ 33 के पिन्तेकुस्त के दिन पतरस ने अपने भाषण में यीशु के बारे में लिखी एक भविष्यवाणी के बारे में बताया। भजन की किताब में लिखी उस भविष्यवाणी से पता चलता है कि यीशु को किस बात का यकीन था और उसने मन में क्या ठान लिया होगा। वह मानो सोच रहा था, ‘मैं पूरी आशा के साथ जीऊँगा। क्योंकि तू मुझे कब्र में नहीं छोड़ देगा, तू अपने वफादार जन को सड़ने नहीं देगा। तू अपने सामने मुझे खुशी से भर देगा।’ (प्रेषि. 2:25-28; भज. 16:8-11) यीशु जानता था कि उसे मार डाला जाएगा। लेकिन उसे इस बात की पक्की आशा थी कि यहोवा उसे दोबारा ज़िंदा कर देगा और वह एक बार फिर उसके साथ स्वर्ग में होगा।​—इब्रा. 12:2, 3.

6. एक भाई ने अपनी आशा के बारे में क्या कहा?

6 आशा होने की वजह से हमारे बहुत-से भाई-बहन मुश्‍किलें सह पाए हैं। इंग्लैंड के रहनेवाले भाई लैनर्ड चिन भी अपनी आशा की वजह से डटे रह पाए। उन्होंने पहले विश्‍व युद्ध के दौरान सेना में भरती होने से इनकार कर दिया और इस वजह से उन्हें जेल में डाल दिया गया। दो महीने तक उन्हें अकेले कैद में रखा गया और फिर उनसे कड़ी मज़दूरी करवायी गयी। भाई ने बाद में लिखा, “उस दौरान मैंने सीखा कि आशा होना कितना ज़रूरी है। इससे हमें बड़ी-से-बड़ी मुश्‍किल सहने की हिम्मत मिलती है। यीशु, प्रेषित और दूसरे भविष्यवक्‍ता आशा होने की वजह से ही मुश्‍किलें सह पाए थे। जब हम उनके बारे में सोचते हैं और बाइबल में दिए परमेश्‍वर के वादों पर मनन करते हैं, तो हमारी आशा और भी पक्की हो जाती है और हम मुश्‍किलों के दौरान हौसला रख पाते हैं।” भाई लैनर्ड के लिए उनकी आशा एक लंगर की तरह थी। हमारे लिए भी यह एक लंगर का काम कर सकती है।

7. मुश्‍किलें आने पर हमारी आशा कैसे और पक्की हो जाती है? (रोमियों 5:3-5; याकूब 1:12)

7 जब हमने पहली बार बाइबल से यहोवा के वादों के बारे में जाना, तो हमें एक आशा मिली। लेकिन जब हम मुश्‍किलों से गुज़रते हैं और यहोवा हमारा साथ देता है, तब हमारी यह आशा और पक्की हो जाती है क्योंकि हमें पता होता है कि यहोवा हमसे खुश है। (रोमियों 5:3-5; याकूब 1:12 पढ़िए।) शैतान चाहता है कि जब हम पर मुश्‍किलें आएँ, तो हम सहम जाएँ और हिम्मत हार बैठें। लेकिन यहोवा की मदद से हम हर मुश्‍किल का डटकर सामना कर सकते हैं।

हमारी आशा सैनिक के टोप की तरह है

8. हमारी आशा कैसे एक टोप की तरह है? (1 थिस्सलुनीकियों 5:8)

8 बाइबल में यह भी लिखा है कि हमारी आशा एक टोप की तरह है। (1 थिस्सलुनीकियों 5:8 पढ़िए।) सैनिक अपने सिर पर टोप पहनते हैं ताकि जब दुश्‍मन हमला करे, तो उनके सिर की हिफाज़त हो सके। आज शैतान भी हम पर अलग-अलग तरह से हमले करता है। वह हमें कई तरह से लुभाता है और चाहता है कि हम ऐसी बातें सोचें जो सही नहीं हैं। इसलिए हमें अपनी सोच की हिफाज़त करनी है। जिस तरह टोप पहनने से एक सैनिक के सिर की हिफाज़त होती है, उसी तरह अगर हम अपनी आशा के बारे में सोचते रहें, तो हमारी सोच की भी हिफाज़त होगी और हम यहोवा के वफादार बने रह पाएँगे।

9. जिन लोगों के पास कोई आशा नहीं है, वे कैसी ज़िंदगी जीते हैं?

9 अगर हम याद रखें कि हमारे पास हमेशा तक जीने की आशा है, तो हम आज अच्छे फैसले ले पाएँगे और सही बातों पर ध्यान लगा पाएँगे। लेकिन अगर हम अपनी आशा के बारे में ना सोचें, तो हमारा ध्यान बस अपनी ख्वाहिशें पूरी करने पर लगा रहेगा और यहोवा ने जो वादे किए हैं, हम उन्हें भूल जाएँगे। पहली सदी में कुरिंथ में रहनेवाले मसीहियों के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था। उन्हें लग रहा था कि मरे हुओं के ज़िंदा होने के बारे में यहोवा ने जो वादा किया है, वह पूरा नहीं होगा। (1 कुरिं. 15:12) पौलुस ने कहा कि ऐसे लोग सिर्फ आज के लिए जीते हैं। (1 कुरिं. 15:32) आज भी जो लोग यहोवा के वादों के बारे में नहीं जानते और जिनके पास कोई आशा नहीं है, वे मौज-मस्ती में लगे रहते हैं। उन्हें लगता है, ‘कल का क्या भरोसा, जो करना है आज ही कर लो।’ लेकिन हम उन लोगों की तरह नहीं हैं। हमें यहोवा के वादों पर पूरा भरोसा है। हमारी आशा एक टोप की तरह हमारी सोच की हिफाज़त करती है ताकि हम सिर्फ अपनी ख्वाहिशें पूरी करने में ना लगे रहें जिससे यहोवा के साथ हमारा रिश्‍ता खराब हो सकता है।​—1 कुरिं. 15:33, 34.

10. हमारी आशा किस गलत सोच से हमारी हिफाज़त कर सकती है?

10 हमारी आशा इस गलत सोच से भी हमारी हिफाज़त करती है कि यहोवा हमसे कभी खुश नहीं होगा। जैसे कुछ लोग शायद सोचें, ‘मैं तो कितनी बार यहोवा के स्तरों को मानने से चूक जाता हूँ, मुझसे कितनी गलतियाँ होतीं हैं, मुझे कहाँ हमेशा की ज़िंदगी मिलेगी!’ अय्यूब के एक साथी एलीपज ने भी उससे कुछ ऐसा ही कहा था। उसने कहा था, “अदना इंसान क्या है जो उसे शुद्ध समझा जाए?” फिर उसने परमेश्‍वर के बारे में कहा, “देख! परमेश्‍वर को अपने स्वर्गदूतों पर विश्‍वास नहीं, यहाँ तक कि स्वर्ग भी उसकी नज़र में अपवित्र है!” (अय्यू. 15:14, 15) वह जो कह रहा था, वह सरासर झूठ था! असल में शैतान चाहता है कि हम इस तरह सोचें। वह जानता है कि अगर हम इस तरह सोचेंगे, तो हमारी आशा धुँधली पड़ जाएगी। इसलिए अगर कभी आपके मन में ऐसे खयाल आएँ, तो उन्हें तुरंत अपने मन से निकाल दीजिए और यहोवा के वादों के बारे में सोचिए। यकीन मानिए, यहोवा चाहता है कि आप हमेशा के लिए जीएँ और वह आपकी मदद भी करेगा ताकि आपकी यह आशा पूरी हो।​—1 तीमु. 2:3, 4.

अपनी आशा पक्की करते जाइए

11. जब तक हमारी आशा पूरी नहीं हो जाती, हमें सब्र क्यों रखना चाहिए?

11 कई बार हमारे लिए सब्र रखना मुश्‍किल हो सकता है और हमारी आशा कमज़ोर पड़ सकती है। शायद हम सोचने लगें कि अब तक यहोवा ने अपने वादे पूरे क्यों नहीं किए। पर हमें याद रखना चाहिए कि यहोवा हमेशा से था और हमेशा तक रहेगा। इसलिए हमें जो एक बहुत लंबा समय लगता है, वह यहोवा के लिए बहुत कम होता है। (2 पत. 3:8, 9) हम यकीन रख सकते हैं कि यहोवा सही समय आने पर अपने वादे पूरे करेगा। पर ज़रूरी नहीं कि जब हम चाहते हों, वह तभी ऐसा करे। तो जब तक यहोवा के वादे पूरे नहीं होते, हम अपनी आशा और पक्की कैसे कर सकते हैं?​—याकू. 5:7, 8.

12. इब्रानियों 11:1, 6 के मुताबिक आशा होने के लिए विश्‍वास होना क्यों ज़रूरी है?

12 यहोवा ने ही हमें आशा दी है और वही इसे पूरी करेगा। इसलिए अगर हम यहोवा पर अपना विश्‍वास बढ़ाएँगे और उसके साथ एक अच्छा रिश्‍ता बनाएँगे, तो हमारी आशा और पक्की हो जाएगी। बाइबल में भी बताया गया है कि जब हमें यह विश्‍वास होगा कि यहोवा सचमुच में है और “वह उन लोगों को इनाम देता है जो पूरी लगन से उसकी खोज करते हैं,” तभी हम आशा रख पाएँगे कि उसके वादे पूरे होंगे। (इब्रानियों 11:1, 6 पढ़िए।) अब आइए देखें कि हम यहोवा के साथ अपना रिश्‍ता कैसे मज़बूत कर सकते हैं जिससे हमारी आशा और पक्की हो जाएगी।

प्रार्थना करने और मनन करने से हमारी आशा पक्की होगी (पैराग्राफ 13-15) b

13. हम यहोवा के करीब कैसे आ सकते हैं?

13 यहोवा से प्रार्थना कीजिए और बाइबल पढ़िए।  हम यहोवा को देख तो नहीं सकते, फिर भी उसके करीब आ सकते हैं। हम प्रार्थना करके यहोवा से बात कर सकते हैं और यकीन रख सकते हैं कि वह हमारी सुनेगा। (यिर्म. 29:11, 12) और जब हम बाइबल पढ़ते हैं और उस पर मनन करते हैं, तो हम यहोवा की सुन रहे होते हैं। जब हम बाइबल में पढ़ते हैं कि यहोवा ने किस तरह अपने वफादार लोगों की मदद की, उन्हें सँभाला, तो हमारी आशा और पक्की हो जाती है। दरअसल बाइबल में जो भी बातें लिखी गयी थीं, “वे इसलिए लिखी गयीं कि हम उनसे सीखें और शास्त्र से हमें धीरज धरने में मदद मिले और हम दिलासा पाएँ ताकि हमारे पास आशा हो।”​—रोमि. 15:4.

14. हमें इस बारे में क्यों सोचना चाहिए कि यहोवा ने बीते समय में अपने वादे कैसे पूरे किए?

14 सोचिए कि अब तक यहोवा ने कैसे अपने वादे पूरे किए हैं।  ज़रा अब्राहम और सारा के बारे में सोचिए। यहोवा ने उनसे वादा किया था कि उनके एक बेटा होगा। (उत्प. 18:10) लेकिन वे दोनों बूढ़े हो चुके थे और उनके बच्चा होने की कोई उम्मीद नज़र नहीं आ रही थी। फिर भी अब्राहम को पूरा यकीन था कि यहोवा अपना वादा ज़रूर पूरा करेगा। (रोमि. 4:19-21) बाइबल में लिखा है, ‘उसने विश्‍वास किया कि वह बहुत-सी जातियों का पिता बनेगा।’ (रोमि. 4:18) और ठीक ऐसा ही हुआ। वक्‍त आने पर यहोवा ने अपना वादा पूरा किया और उनके एक बेटा हुआ। इस तरह के किस्सों पर मनन करने से हमारा यकीन बढ़ जाता है कि यहोवा हमेशा अपने वादे पूरे करता है, फिर चाहे हमें कोई बात नामुमकिन क्यों ना लगे।

15. हमें इस बारे में क्यों सोचना चाहिए कि यहोवा ने हमारे लिए क्या-क्या किया है?

15 सोचिए कि यहोवा ने आपके लिए क्या-क्या किया है।  यीशु ने कहा था कि उसका पिता हमारी ज़रूरतें पूरी करेगा। (मत्ती 6:32, 33) उसने यह भी कहा था कि जब भी हम यहोवा से पवित्र शक्‍ति माँगेंगे, तो वह हमें देगा। (लूका 11:13) यहोवा ने हमसे यह भी वादा किया है कि वह हमें माफ करेगा, हमें दिलासा देगा और कई इंतज़ाम करेगा जिससे हम उसके बारे में सीख पाएँ और उसके साथ हमारा रिश्‍ता मज़बूत बना रहे। (मत्ती 6:14; 24:45; 2 कुरिं. 1:3) क्या आपने यहोवा के इन सभी वादों को पूरा होते हुए देखा है? जब आप इस बारे में सोचेंगे कि यहोवा ने आपके लिए क्या-क्या किया है, तो आपकी आशा और पक्की हो जाएगी। आपको यकीन हो जाएगा कि वह भविष्य में भी अपने वादे ज़रूर पूरे करेगा।

अपनी आशा की वजह से खुशी मनाइए

16. हमारी आशा क्यों इतनी अनमोल है?

16 यहोवा ने हमें कितनी बढ़िया आशा दी है कि हम हमेशा तक जी सकते हैं। हमें उस वक्‍त का बेसब्री से इंतज़ार है जब यह पूरी होगी और हमें यकीन है कि ऐसा ज़रूर होगा। हमारी आशा एक लंगर  की तरह है और तूफान जैसी मुश्‍किलों में हमें सँभाले रहती है। आशा होने की वजह से हम हर ज़ुल्म सह पाते हैं और यहोवा के वफादार रह पाते हैं, फिर चाहे हमारी जान पर ही क्यों ना बन आए। हमारी आशा एक टोप  की तरह भी है और हमारी सोच की हिफाज़त करती है। इससे हम गलत बातों के बारे में सोचने के बजाय अच्छी बातों पर अपना ध्यान लगा पाते हैं। अपनी आशा की वजह से हम यहोवा के और करीब आ पाते हैं और हमें यकीन हो जाता है कि वह हमसे बहुत प्यार करता है। सच में, अपनी आशा को और पक्का करने से हमें कितने फायदे होते हैं।

17. हम अपनी आशा की वजह से क्यों खुशी मनाते हैं?

17 पौलुस ने रोम में रहनेवाले मसीहियों से कहा, “अपनी आशा की वजह से खुशी मनाओ।” (रोमि. 12:12) पौलुस खुश था क्योंकि वह जानता था कि अगर वह वफादार रहेगा, तो उसे स्वर्ग में हमेशा की ज़िंदगी मिलेगी। हम भी अपनी आशा की वजह से खुशी मना सकते हैं, क्योंकि हमें यकीन है कि यहोवा अपने वादे ज़रूर पूरे करेगा। भजन के एक लेखक ने भी कहा था, ‘सुखी है वह जो अपने परमेश्‍वर यहोवा पर आशा रखता है। उस परमेश्‍वर पर जो हमेशा विश्‍वासयोग्य रहता है।’​—भज. 146:5, 6.

गीत 139 खुद को नयी दुनिया में देखें!

a यहोवा ने हमें एक लाजवाब आशा दी है। इस आशा पर ध्यान देने से हमारा हौसला बढ़ता है और हम अपनी तकलीफों के बारे में सोच-सोचकर परेशान नहीं होते। इससे हमें हिम्मत भी मिलती है और हम मुश्‍किलों के बावजूद यहोवा के वफादार बने रहते हैं। इस आशा से हमारी सोच की भी हिफाज़त होती है। हम अपने मन में ऐसे खयालों को आने से रोक पाते हैं जो हमें यहोवा से दूर ले जा सकते हैं। इस लेख में हम इन तीन बातों पर चर्चा करेंगे और जानेंगे कि हम अपनी आशा और पक्की कैसे कर सकते हैं।

b तसवीर के बारे में: जिस तरह एक टोप सैनिक के सिर की हिफाज़त करता है और एक लंगर जहाज़ को सँभाले रखता है, उसी तरह हमारी आशा हमारी सोच की हिफाज़त करती है और मुसीबतें आने पर हमें सँभाले रहती है। एक बहन यहोवा से प्रार्थना कर रही है और उसे पूरा यकीन है कि वह उसकी सुन रहा है। एक भाई इस बारे में सोच रहा है कि यहोवा ने किस तरह अब्राहम से किया वादा पूरा किया। एक और भाई सोच रहा है कि यहोवा ने उसके लिए क्या-क्या किया है और उसे कितनी आशीषें दी हैं।