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अध्ययन लेख 42

क्या आप “आज्ञा मानने के लिए तैयार” हैं?

क्या आप “आज्ञा मानने के लिए तैयार” हैं?

‘जो बुद्धि स्वर्ग से मिलती है वह आज्ञा मानने के लिए तैयार होती है।’​—याकू. 3:17.

गीत 101 एकता बनाए रखें

एक झलक a

1. हमें दूसरों की आज्ञा मानना क्यों मुश्‍किल लग सकता है?

 क्या आपको कभी दूसरों की बात मानना मुश्‍किल लगा है? राजा दाविद को भी लगा था, इसलिए उसने यहोवा से प्रार्थना की, “मेरे अंदर ऐसी इच्छा जगा कि मैं तेरी आज्ञा मानूँ।” (भज. 51:12) दाविद यहोवा से बहुत प्यार करता था, फिर भी उसे कभी-कभी उसकी बात मानना मुश्‍किल लगता था। आज हमें भी यहोवा की बात मानना कभी-कभी मुश्‍किल लग सकता है। वह क्यों? पहली बात, जन्म से ही हमारे अंदर आज्ञा ना मानने का झुकाव होता है। दूसरी बात, शैतान की हमेशा यही कोशिश रहती है कि हम यहोवा के खिलाफ काम करें, ठीक जैसे उसने किया था। (2 कुरिं. 11:3) तीसरी बात, हम ऐसी दुनिया में रहते हैं जहाँ ज़्यादातर लोग बगावती हैं। उनकी “फितरत” ही ऐसी है कि वे ‘आज्ञा नहीं मानते।’ (इफि. 2:2) इसलिए यह बहुत ज़रूरी है कि हमारे अंदर गलत काम करने का जो झुकाव है, उससे हम लड़ें और शैतान और इस दुनिया की तरह बगावती ना बनें। साथ ही, हमें यहोवा और जिन्हें उसने अधिकार दिया है, उनकी आज्ञा मानने की पूरी कोशिश करनी चाहिए।

2. “आज्ञा मानने के लिए तैयार” रहने का क्या मतलब है? (याकूब 3:17)

2 याकूब 3:17 पढ़िए। यहोवा ने याकूब से लिखवाया कि जो लोग बुद्धिमान होते हैं, वे “आज्ञा मानने के लिए तैयार” रहते हैं। इसका मतलब, जिन लोगों को यहोवा ने कुछ अधिकार दिया है, हमें उनकी बात मानने के लिए तैयार रहना चाहिए और ऐसा खुशी-खुशी करना चाहिए। हाँ, अगर वे हमसे कुछ ऐसा करने को कहते हैं जो यहोवा की आज्ञाओं के खिलाफ है, तब यहोवा नहीं चाहता कि हम उनकी बात मानें।—प्रेषि. 4:18-20.

3. हमें उन लोगों की बात क्यों माननी चाहिए जिन्हें हम पर अधिकार दिया गया है?

3 हमें यहोवा की बात मानना तो आसान लगता है, लेकिन इंसानों की बात मानना शायद मुश्‍किल लगे। वह इसलिए कि यहोवा जो हिदायतें देता है, वे हमेशा सही होती हैं। (भज. 19:7) लेकिन यही बात उन इंसानों के बारे में नहीं कही जा सकती जिनके पास अधिकार होता है। फिर भी परमेश्‍वर यहोवा ने माता-पिताओं, सरकारी अधिकारियों और प्राचीनों को कुछ अधिकार दिए हैं। (नीति. 6:20; 1 थिस्स. 5:12; 1 पत. 2:13, 14) जब हम उनकी बात मानते हैं, तो असल में हम यहोवा की बात मान रहे होते हैं। लेकिन कई बार शायद वे हमसे कोई ऐसी बात कहें जिससे हम सहमत ना हों या जिसे मानने का हमारा मन ना कर रहा हो। आइए देखें कि तब भी हम उनकी बात कैसे मान सकते हैं।

अपने मम्मी-पापा की बात मानिए

4. बहुत-से बच्चे अपने मम्मी-पापा की बात क्यों नहीं मानते?

4 आज हमारे नौजवान ऐसे बच्चों से घिरे रहते हैं जो अपने ‘माता-पिता की नहीं मानते।’ (2 तीमु. 3:1, 2) वे बच्चे ऐसा क्यों करते हैं? वे सोचते हैं, ‘मम्मी-पापा हमें जो करने को कह रहे हैं, वे खुद तो करते नहीं। यह क्या बात हुई?’ वहीं कुछ बच्चों को लगता है कि अब ज़माना बदल गया है और उनके मम्मी-पापा उन्हें जो सलाह दे रहे हैं, वह आज किसी काम की नहीं या वे उनके साथ कुछ ज़्यादा ही सख्ती बरत रहे हैं। अगर आप एक नौजवान हैं, तो क्या आपको भी कभी ऐसा लगा है? बहुत-से बच्चों को यहोवा की यह आज्ञा मानना मुश्‍किल लगता है, “प्रभु में अपने माता-पिता का कहना माननेवाले बनो क्योंकि यह परमेश्‍वर की नज़र में सही है।” (इफि. 6:1) आप यहोवा की यह आज्ञा कैसे मान सकते हैं?

5. अपने माता-पिता की बात मानने में यीशु क्यों सबसे बढ़िया मिसाल है? (लूका 2:46-52)

5 जब आज्ञा मानने की बात आती है, तो यीशु से बढ़कर कोई नहीं। (1 पत. 2:21-24) आप उससे बहुत कुछ सीख सकते हैं। वह परिपूर्ण था, लेकिन उसके माता-पिता अपरिपूर्ण थे। कई बार उनसे गलतियाँ हो गयीं और कुछ मौकों पर उन्हें कुछ गलतफहमी भी हुई, फिर भी यीशु ने हमेशा उनका आदर किया। (निर्ग. 20:12) ज़रा एक किस्से पर ध्यान दीजिए। यह तब की बात है जब यीशु 12 साल का था। (लूका 2:46-52 पढ़िए।) उसका परिवार यरूशलेम में एक त्योहार मनाने गया था। लेकिन जब वे लौट रहे थे, तो यीशु यरूशलेम में ही रह गया। आखिर में जब यूसुफ और मरियम ने उसे ढूँढ़ लिया, तो मरियम उसे दोष देने लगी और कहने लगी कि उसकी वजह से उन्हें कितनी परेशानी उठानी पड़ी। देखा जाए तो यूसुफ और मरियम को इस बात का खयाल रखना चाहिए था कि सारे बच्चे उनके साथ हों। इसलिए यीशु चाहता तो कह सकता था कि गलती मेरी नहीं, आपकी थी। लेकिन उसने ऐसा कुछ नहीं कहा। उसने बहुत ही कम शब्दों में और आदर से अपनी बात कही। यूसुफ और मरियम “उसकी बात का मतलब नहीं समझ सके,” फिर भी यीशु “लगातार उनके अधीन रहा।”

6-7. अपने मम्मी-पापा की बात मानने में क्या बात नौजवानों की मदद कर सकती है?

6 नौजवानो, जब आपके मम्मी-पापा से गलतियाँ हो जाती हैं या जब उन्हें कोई गलतफहमी हो जाती है, तो क्या आपको उनकी बात मानना मुश्‍किल लगता है? अगर हाँ, तो क्या बात आपकी मदद कर सकती है? पहली बात, सोचिए कि जब आप उनकी बात मानते हैं, तो यहोवा को कैसा लगता होगा। बाइबल में लिखा है कि जब बच्चे माता-पिता की बात मानते हैं, तो “प्रभु इससे खुश होता है।” (कुलु. 3:20) यहोवा जानता है कि कई बार आपके मम्मी-पापा आपको पूरी तरह नहीं समझ पाते या शायद कभी-कभी वे कुछ ऐसे नियम बनाएँ जिन्हें मानना आसान ना हो। फिर भी जब आप उनकी बात मानते हैं, तो आप यहोवा का दिल खुश कर रहे होते हैं।

7 दूसरी बात, सोचिए कि मम्मी-पापा की बात मानने से उन्हें कैसा लगेगा। उन्हें खुशी होगी और वे आप पर और भी भरोसा करने लगेंगे। (नीति. 23:22-25) जब आप उनकी बात मानेंगे, तो उनके साथ आपका रिश्‍ता भी और अच्छा हो जाएगा। बेल्जियम का रहनेवाला हमारा एक भाई, ऐलेक्ज़ेन्डर कहता है, “मैंने देखा कि जब मैं मम्मी-पापा की और भी सुनने लगा, तो हमारा रिश्‍ता और अच्छा हो गया। हम एक-दूसरे के और करीब आ गए और पहले से ज़्यादा खुश रहने लगे।” b तीसरी बात, सोचिए कि अगर आप अभी अपने मम्मी-पापा की बात मानेंगे, तो इससे आपको आगे चलकर कौन-से फायदे होंगे। ब्राज़ील का रहनेवाला पाउलो कहता है, “जब मैं मम्मी-पापा की बात मानने लगा, तो मेरे लिए यहोवा और दूसरों की बात मानना भी आसान हो गया।” अपने मम्मी-पापा की बात मानने के बारे में बाइबल में कितनी बढ़िया वजह दी गयी है। इसमें लिखा है कि ऐसा करने से ‘आपका भला होगा और आप धरती पर लंबी उम्र जीएँगे।’​—इफि. 6:2, 3.

8. बहुत-से नौजवान क्यों अपने मम्मी-पापा की बात मानते हैं?

8 बहुत-से नौजवानों ने देखा है कि जब वे अपने मम्मी-पापा की बात मानते हैं, तो इससे उनका ही भला होता है। ब्राज़ील में रहनेवाली लुईज़ा बताती है कि जब उसके मम्मी-पापा ने कहा कि उसे मोबाइल लेने के लिए कुछ वक्‍त इंतज़ार करना होगा, तो उसे समझ में नहीं आया कि वे क्यों मना कर रहे हैं। उसे ऐसा इसलिए लगा क्योंकि उसकी उम्र के ज़्यादातर बच्चों के पास अपना मोबाइल था। लेकिन फिर बाद में उसे एहसास हुआ कि उसके मम्मी-पापा उसकी हिफाज़त के लिए ऐसा कर रहे थे। अब उसे ऐसा नहीं लगता कि उसके मम्मी-पापा उसके लिए जो नियम बनाते हैं, उनसे मानो वह बँध जाती है, क्योंकि उसे पता है कि उनकी बात मानने में उसी की भलाई है। अमरीका में रहनेवाली एक जवान बहन एलीज़बेथ को अब भी कभी-कभार अपने मम्मी-पापा की बात मानना मुश्‍किल लगता है। वह बताती है, “कई बार मुझे पूरी तरह समझ में नहीं आता कि मम्मी-पापा ने क्यों कोई नियम बनाया है। तब मैं सोचती हूँ कि पहले उनकी बात मानने से कैसे मेरी हिफाज़त हुई थी।” और आर्मीनिया में रहनेवाली मोनिका कहती है कि जब भी उसने अपने मम्मी-पापा की बात मानी, तो उसे ज़्यादा फायदा हुआ।

“ऊँचे अधिकारियों” की आज्ञा मानिए

9. बहुत-से लोगों को सरकार के नियम मानने के बारे में कैसा लगता है?

9 बाइबल में सरकारों को ‘ऊँचे अधिकारी’ कहा गया है। और बहुत-से लोगों का मानना है कि सरकारें या ऊँचे अधिकारी होने चाहिए और उनके बनाए कुछ नियम तो मानने ही चाहिए। (रोमि. 13:1) लेकिन अगर उन्हीं लोगों को सरकार का कोई नियम सही नहीं लगता या उसे मानने का उनका मन नहीं करता, तो वे उसे मानने में आना-कानी करते हैं। टैक्स भरने की ही बात ले लीजिए। यूरोप के एक देश में कुछ लोगों का सर्वे लिया गया और देखा गया कि हर चार में से एक का मानना था, “अगर सरकार कुछ ज़्यादा ही टैक्स की माँग कर रही है, तो हम नहीं भरेंगे और इसमें कुछ गलत नहीं है।” इसलिए यह कोई हैरानी की बात नहीं कि उस देश के नागरिक सरकार को पूरा टैक्स नहीं देते, बस दो तिहाई हिस्सा (करीब 65 प्रतिशत) ही देते हैं।

यूसुफ और मरियम से हम आज्ञा मानने के बारे में क्या सीखते हैं? (पैराग्राफ 10-12) c

10. जब सरकार का कोई नियम मानना हमें मुश्‍किल लगता है, तब भी हम उसे क्यों मानते हैं?

10 बाइबल में बताया गया है कि सरकारों की वजह से लोगों को बहुत तकलीफें झेलनी पड़ती हैं, ये सरकारें शैतान की मुट्ठी में हैं और बहुत जल्द उन्हें खत्म कर दिया जाएगा। (भज. 110:5, 6; सभो. 8:9; लूका 4:5, 6) लेकिन इसमें यह भी लिखा है कि “जो अधिकार का विरोध करता है, वह परमेश्‍वर के ठहराए इंतज़ाम के खिलाफ खड़ा होता है।” यहोवा ने कुछ वक्‍त के लिए सरकारों को रहने दिया है, ताकि सबकुछ कायदे से चल सके और वह चाहता है कि हम उनकी आज्ञा मानें। ‘इसलिए जिसका जो हक बनता है, हमें वह उसे देना चाहिए।’ यही वजह है कि हम टैक्स भरते हैं और सरकारी अधिकारियों का आदर करते हैं और उनकी बात मानते हैं। (रोमि. 13:1-7) हो सकता है, सरकार का कोई नियम हमें सही ना लगे या फिर उसे मानने की वजह से हमें तकलीफ उठानी पड़े या उसे मानना हमें बहुत महँगा पड़े। फिर भी हम उसे मानते हैं, क्योंकि यहोवा चाहता है कि हम सरकार की बात मानें। बस अगर सरकार हमसे कुछ ऐसा करने को कहे जो यहोवा के नियमों के खिलाफ हो, तब हम उसकी नहीं मानेंगे।​—प्रेषि. 5:29.

11-12. यूसुफ और मरियम के लिए सरकार का एक नियम मानना बहुत मुश्‍किल था, फिर भी उन्होंने क्या किया? और उसका क्या नतीजा निकला? (लूका 2:1-6) (तसवीरें भी देखें।)

11 हम यूसुफ और मरियम से बहुत कुछ सीख सकते हैं। उन्होंने तब भी ऊँचे अधिकारियों की बात मानी, जब ऐसा करना उनके लिए मुश्‍किल था। (लूका 2:1-6 पढ़िए।) बात उस वक्‍त की है जब मरियम नौ महीने पेट से थी। रोमी सम्राट औगुस्तुस ने एक फरमान जारी किया कि सब लोग अपना नाम लिखवाने के लिए उस शहर जाएँ जहाँ वे पैदा हुए थे। सरकार की यह बात मानना यूसुफ और मरियम के लिए बहुत मुश्‍किल रहा होगा। वह इसलिए कि उन्हें 150 किलोमीटर (93 मील) दूर बेतलेहेम तक सफर करना पड़ता और वह भी पहाड़ी इलाके से। यह सफर खासकर मरियम के लिए बहुत मुश्‍किल होता। उस वक्‍त उसकी हालत बहुत नाज़ुक थी और उन्हें उसकी कोख में पल रहे बच्चे की भी चिंता हो रही होगी। शायद उन्होंने सोचा हो, अगर मरियम को रास्ते में ही दर्द उठने लगा तो वे क्या करेंगे? उसकी कोख में जो बच्चा पल रहा था, वह आगे चलकर मसीहा बनता। क्या यह सब सोचकर वे सरकार की आज्ञा टाल देते?

12 यूसुफ और मरियम के हालात मुश्‍किल थे, फिर भी उन्होंने सरकार का नियम मानने का फैसला किया। और यहोवा ने उनके फैसले पर आशीष दी। मरियम सही-सलामत बेतलेहेम पहुँच गयी। और वहाँ उसने एक तंदुरुस्त बच्चे को जन्म दिया। इस तरह बाइबल की एक अहम भविष्यवाणी भी पूरी हुई!​—मीका 5:2.

13. जब हम सरकार के नियम मानते हैं, तो इससे हमारे भाई-बहनों को कैसे फायदा हो सकता है?

13 जब हम ऊँचे अधिकारियों की बात मानते हैं, तो हमें भी फायदा होता है और दूसरों को भी। वह कैसे? एक तो यह कि सरकार के नियम मानने से हमें बेवजह कोई सज़ा नहीं मिलती। (रोमि. 13:4) और जब हम सरकार के नियम मानते हैं, तो अधिकारी यह भी देख पाते हैं कि यहोवा के साक्षी अच्छे लोग हैं। ज़रा इसके एक उदाहरण पर ध्यान दीजिए। कुछ साल पहले की बात है। नाइजीरिया में एक सभा के दौरान कुछ सैनिक हमारे राज-घर में घुस आए। असल में वे कुछ ऐसे लोगों को ढूँढ़ रहे थे जो टैक्स नहीं भरना चाहते थे और इसलिए वे दंगे-फसाद कर रहे थे। लेकिन सैनिकों के अफसर ने उन्हें वहाँ से चले जाने को कहा। उसने कहा, “यहोवा के साक्षी ऐसे लोग नहीं हैं। वे हमेशा टैक्स भरते हैं।” जब भी आप सरकार का कोई नियम मानते हैं, तो अधिकारियों की नज़र में यहोवा के लोगों के लिए इज़्ज़त बढ़ जाती है। और हो सकता है, इस वजह से एक दिन हमारे भाई-बहनों की हिफाज़त हो।​—मत्ती 5:16.

14. एक बहन किस वजह से सरकारी अधिकारियों की “आज्ञा मानने के लिए तैयार” रह पायी है?

14 आज्ञा मानने से बहुत-से फायदे होते हैं, फिर भी शायद सरकार के नियम मानने का हमेशा हमारा मन ना करे। अमरीका में रहनेवाली बहन जोआना कहती है, “मुझे अधिकारियों की बात मानना बहुत मुश्‍किल लगता था। वह इसलिए कि अधिकारियों ने मेरे कुछ परिवारवालों के साथ बहुत नाइंसाफी की थी।” मगर फिर जोआना ने अधिकारियों के बारे में अपनी सोच बदलने के लिए कुछ कदम उठाए। सबसे पहले, उसने सोशल मीडिया पर ऐसी बातें पढ़ना बंद कर दिया जिससे वह अधिकारियों के बारे में बुरा-भला ना सोचे। (नीति. 20:3) दूसरा, उसने यहोवा से प्रार्थना की कि वह उस पर भरोसा कर सके, ना कि यह सोचे कि सरकार बदल जाए। (भज. 9:9, 10) तीसरा, उसने निष्पक्षता के बारे में हमारे प्रकाशनों में आए लेख पढ़े। (यूह. 17:16) अब जोआना कहती है कि अधिकारियों का आदर करने और उनकी बात मानने की वजह से उसे “मन की ऐसी शांति मिली है जिसका शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता।”

यहोवा के संगठन से मिलनेवाली हिदायतें मानिए

15. हमें यहोवा के संगठन से मिलनेवाली कोई हिदायत मानना क्यों मुश्‍किल लग सकता है?

15 यहोवा ने हमसे कहा है कि मंडली में जो “अगुवाई करते हैं उनकी आज्ञा मानो।” (इब्रा. 13:17) हमारा अगुवा यीशु तो परिपूर्ण है, लेकिन उसने जिन लोगों को धरती पर अगुवाई लेने के लिए चुना है, वे परिपूर्ण नहीं हैं। इसीलिए कई बार शायद हमें उनकी बात मानना मुश्‍किल लगे, खासकर अगर वे हमसे कुछ ऐसा करने को कहें जिसे करने का हमारा मन ना कर रहा हो। एक बार प्रेषित पतरस के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था। एक स्वर्गदूत ने उससे कहा कि वह कुछ ऐसे जानवरों का माँस खाए जो मूसा के कानून के हिसाब से अशुद्ध थे। उसने कभी-भी अशुद्ध जानवरों का माँस नहीं खाया था, इसलिए उसे यह हिदायत सही नहीं लग रही थी। इसी वजह से पतरस ने उन्हें खाने से इनकार कर दिया, वह भी तीन बार। (प्रेषि. 10:9-16) पतरस को तो एक परिपूर्ण स्वर्गदूत की बात मानना मुश्‍किल लग रहा था, तो ज़ाहिर-सी बात है कि हमें अपरिपूर्ण इंसानों की बात मानना और भी मुश्‍किल लग सकता है।

16. पौलुस को ऐसी कौन-सी हिदायत दी गयी जो उसे बेतुकी लग सकती थी? फिर भी उसने क्या किया? (प्रेषितों 21:23, 24, 26)

16 अब ज़रा प्रेषित पौलुस के उदाहरण पर ध्यान दीजिए। एक बार उसे ऐसी हिदायत दी गयी, जो उसे बड़ी बेतुकी लग सकती थी, फिर भी वह “आज्ञा मानने के लिए तैयार” था। बात यह थी कि यहूदी मसीहियों ने पौलुस के बारे में कुछ अफवाहें सुनी थीं। उन्होंने सुना था कि वह लोगों को “मूसा के कानून के खिलाफ बगावत करना सिखा रहा है” और इस तरह मूसा के कानून का अनादर कर रहा है। (प्रेषि. 21:21) तब यरूशलेम की मसीही मंडली के बुज़ुर्गों ने पौलुस को एक हिदायत दी। उन्होंने कहा कि वह चार आदमियों को लेकर मंदिर जाए और कानून के मुताबिक खुद को शुद्ध करे, ताकि सबको पता चल जाए कि वह कानून मानता है। लेकिन पौलुस जानता था कि अब मसीही मूसा के कानून के अधीन नहीं हैं और उसने कुछ गलत नहीं किया है। फिर भी पौलुस ने बिना हिचकिचाए भाइयों की हिदायत मानी। ‘अगले ही दिन वह उन आदमियों को ले गया और कानून के मुताबिक उसने खुद को उन आदमियों के साथ शुद्ध किया।’ (प्रेषितों 21:23, 24, 26 पढ़िए।) पौलुस के आज्ञा मानने से भाइयों के बीच एकता बनी रही।​—रोमि. 14:19, 21.

17. बहन स्टेफनी के अनुभव से आपने क्या सीखा?

17 अब आइए देखें कि बहन स्टेफनी के साथ क्या हुआ। वे और उनके पति दूसरी भाषा बोलनेवाले एक समूह के साथ सेवा कर रहे थे और दोनों बहुत खुश थे। लेकिन फिर अचानक उनके देश के शाखा दफ्तर ने फैसला किया कि वह समूह बंद कर दिया जाएगा। और उनसे कहा गया कि वे वापस अपनी भाषावाली मंडली में सेवा करें। बहन स्टेफनी बताती हैं कि उन्हें वह फैसला मानना बहुत मुश्‍किल लग रहा था। वे कहती हैं, “मैं बहुत दुखी हो गयी। मुझे यह बात हज़म नहीं हो रही थी कि हमारी भाषा की मंडली में ज़्यादा ज़रूरत है।” फिर भी उन्होंने भाइयों की हिदायत मानने का फैसला किया। वे बताती हैं, ‘आगे चलकर मैं देख पायी कि उनका यह फैसला बिलकुल सही था। हम अपनी नयी मंडली में बहुत कुछ कर पा रहे हैं। हम ऐसे कई भाई-बहनों के लिए माता-पिता जैसे बन गए हैं जो सच्चाई में अकेले हैं। और अब मैं एक ऐसी बहन के साथ अध्ययन कर रही हूँ, जिसने हाल ही में फिर से सभाओं में आना और प्रचार करना शुरू कर दिया है। अब मेरे पास निजी अध्ययन के लिए भी काफी वक्‍त होता है। और मेरा ज़मीर भी साफ है, क्योंकि मैंने भाइयों की बात मानने की पूरी कोशिश की।’

18. आज्ञा मानने से हमें कौन-से फायदे होते हैं?

18 हम आज्ञा मानना सीख सकते हैं।  बाइबल में बताया गया है कि यीशु ने भी “आज्ञा माननी सीखी।” और उसने ऐसा अच्छे हालात में नहीं, बल्कि “दुख सहकर” सीखा। (इब्रा. 5:8) यीशु की तरह अकसर हम भी मुश्‍किल हालात में आज्ञा मानना सीखते हैं। जैसे आपको याद होगा, जब कोविड-19 महामारी शुरू हुई थी तो हमसे कहा गया था कि हम राज-घरों में सभाओं के लिए इकट्ठा ना हों और कुछ वक्‍त के लिए घर-घर जाकर प्रचार ना करें। क्या आपको उस वक्‍त यह आज्ञा मानना मुश्‍किल लगा था? हो सकता है, आपको मुश्‍किल लगा हो, फिर भी आपने आज्ञा मानी। उस वजह से आपकी हिफाज़त हुई, मंडली में एकता बनी रही और आपने यहोवा का दिल खुश किया। उस वक्‍त हम सबने आज्ञा मानी, इसलिए अब हमारे लिए आज्ञा मानना पहले से थोड़ा आसान हो गया है। हमें महा-संकट में चाहे जो भी आज्ञा दी जाए, हम उसे मान पाएँगे। हो सकता है, उसे मानने से हमारी ज़िंदगी बच जाए।—अय्यू. 36:11.

19. आप क्यों आज्ञा मानने के लिए तैयार रहना चाहते हैं?

19 इस लेख में हमने जाना है कि आज्ञा मानने से ढेरों आशीषें मिलती हैं। लेकिन हम यहोवा की आज्ञा खास तौर से इसलिए मानते हैं, क्योंकि हम उससे प्यार करते हैं और उसे खुश करना चाहते हैं। (1 यूह. 5:3) यहोवा ने हमारे लिए जो भी किया है, उसका बदला हम कभी नहीं चुका सकते। (भज. 116:12) लेकिन हम एक चीज़ ज़रूर कर सकते हैं, हम उसकी और उसने जिन्हें हम पर अधिकार दिया है, उनकी आज्ञा  मान सकते हैं। अगर हम आज्ञा मानें, तो उससे पता चलेगा कि हम बुद्धिमान हैं। और जो बुद्धिमान होते हैं, वे यहोवा का दिल खुश करते हैं।​—नीति. 27:11.

गीत 89 सुन के अमल करें

a हम सब अपरिपूर्ण हैं, इसलिए कई बार हमें दूसरों की आज्ञा मानना मुश्‍किल लगता है, कभी-कभी तो यह जानते हुए भी कि जो हमें आज्ञा दे रहे हैं, उन्हें ऐसा करने का हक है। इस लेख में समझाया जाएगा कि जब हम अपने माता-पिता की, “ऊँचे अधिकारियों” की और मसीही मंडली में अगुवाई लेनेवाले भाइयों की बात मानते हैं, तो हमें कौन-से फायदे होते हैं।

b अगर आपको अपने मम्मी-पापा के बनाए नियम मानना मुश्‍किल लगता है, तो आप jw.org पर दिया लेख, “मम्मी-पापा से उनके नियमों के बारे में कैसे बात करूँ?” पढ़ सकते हैं। इसमें कई बढ़िया सुझाव दिए गए हैं, जो आपके काम आ सकते हैं।

c तसवीर के बारे में: यूसुफ और मरियम सम्राट की आज्ञा मानकर अपना नाम लिखवाने बेतलेहेम गए। आज मसीही सरकारी अधिकारियों की आज्ञा मानकर ट्रैफिक के नियम मानते हैं, टैक्स भरते हैं और सेहत से जुड़े मामलों में सरकार की हिदायतें मानते हैं।