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अध्ययन लेख 41

गीत 13 मसीह, हमारा आदर्श

जाते-जाते भी यीशु हमें बहुत कुछ सिखा गया

जाते-जाते भी यीशु हमें बहुत कुछ सिखा गया

“वह 40 दिन तक उन्हें दिखायी देता रहा और उन्हें परमेश्‍वर के राज के बारे में बताता रहा।”प्रेषि. 1:3.

क्या सीखेंगे?

हम जानेंगे कि यीशु ने धरती पर अपने आखिरी 40 दिनों में जो कुछ किया, उससे हम क्या सीख सकते हैं।

1-2. जब यीशु के दो चेले इम्माऊस की ओर जा रहे थे, तब क्या हुआ?

 ईसवी सन्‌ 33, नीसान 16 की बात है। यीशु के दो चेले यरूशलेम से निकलकर इम्माऊस की तरफ जा रहे हैं जो वहाँ से करीब 11 किलोमीटर (7 मील) दूर है। ये चेले यीशु के बाकी चेलों की तरह दुख से बेहाल हैं और उन पर डर छाया हुआ है। लेकिन क्यों? क्योंकि कुछ ही समय पहले उनके गुरु को मार डाला गया है। उन्होंने सोचा था कि उनका यह मसीहा उनके लिए बहुत कुछ करेगा, लेकिन उनकी उम्मीदों पर पानी फिर गया। पर अब कुछ ऐसा होनेवाला है कि ये चेले अपना दुख भूल जाएँगे।

2 रास्ते में एक अजनबी उनके साथ-साथ चलने लगता है। वे उसे बताते हैं कि वे बहुत परेशान हैं, क्योंकि उनके गुरु के साथ बहुत बुरा हुआ। उनकी बातें सुनने के बाद वह उनसे कुछ ऐसा कहता है जिससे उनका नज़रिया ही बदल जाता है। वह ‘मूसा की किताबों से और सारे भविष्यवक्‍ताओं की किताबों’ से उन्हें समझाता है कि मसीहा के लिए दुख उठाना और मरना ज़रूरी था। इम्माऊस पहुँचने के बाद इन दोनों चेलों को एहसास होता है कि यह अजनबी कोई और नहीं, उनका गुरु यीशु है जिसे परमेश्‍वर ने मरे हुओं में से ज़िंदा कर दिया है। ज़रा सोचिए, यह जानकर वे कैसे खुशी से उछल पड़े होंगे कि मसीहा ज़िंदा हो गया है!—लूका 24:13-35.

3-4. (क) जब यीशु अपने चेलों से मिला, तो इसका उन पर क्या असर हुआ? (प्रेषितों 1:3) (ख) इस लेख में हम क्या जानेंगे?

3 धरती पर अपने आखिरी 40 दिनों के दौरान यीशु कई मौकों पर अपने चेलों से मिला। a (प्रेषितों 1:3 पढ़िए।) उसके चेले बहुत निराश और परेशान थे, लेकिन उसने उनका हौसला बढ़ाया। इस वजह से वे हिम्मत से भर गए और जोश से परमेश्‍वर के राज का प्रचार करने लगे और इस बारे में दूसरों को सिखाने लगे।

4 इन 40 दिनों में यीशु ने जो कुछ किया, उस पर ध्यान देने से हम बहुत कुछ सीख सकते हैं। इस लेख में हम चर्चा करेंगे कि अपने आखिरी दिनों के दौरान यीशु ने कैसे (1) अपने चेलों की हिम्मत बँधायी, (2) उन्हें शास्त्र की गहरी बातों की समझ दी और (3) उन्हें ट्रेनिंग दी ताकि वे और भी ज़िम्मेदारियाँ सँभाल सकें। हम यह भी जानेंगे कि हम यीशु की तरह कैसे बन सकते हैं।

दूसरों की हिम्मत बँधाइए

5. यीशु के चेलों को क्यों हिम्मत की ज़रूरत थी?

5 यीशु के चेलों को हिम्मत की ज़रूरत थी। वह क्यों? क्योंकि उनमें से कुछ चेले अपना घर-बार, कारोबार, सबकुछ छोड़कर यीशु के पीछे चलने लगे थे। (मत्ती 19:27) और कुछ ऐसे थे जिन्हें लोग नीची नज़रों से देखते थे, क्योंकि वे यीशु के चेले बन गए थे। (यूह. 9:22) वे यह सब इसलिए सह पाए, क्योंकि उन्हें पूरा यकीन था कि यीशु ही वादा किया गया मसीहा है। (मत्ती 16:16) लेकिन जब यीशु की मौत हुई, तो उनकी सारी उम्मीदें चकनाचूर हो गयीं और वे बहुत निराश हो गए।

6. ज़िंदा किए जाने के बाद यीशु ने क्या किया?

6 यीशु जानता था कि उसके चेले इसलिए दुखी हैं, क्योंकि उन्हें अपने गुरु को खोने का गम सता रहा है, ना कि इसलिए कि उनमें विश्‍वास की कमी है। इसलिए जिस दिन उसे ज़िंदा किया गया, उसी दिन उसने अपने दोस्तों की हिम्मत बँधायी। जैसे, जब मरियम मगदलीनी उसकी कब्र के बाहर खड़ी रो रही थी, तो यीशु उसके सामने प्रकट हुआ। (यूह. 20:11, 16) वह उन दो चेलों को भी दिखायी दिया जिनके बारे में हमने इस लेख की शुरूआत में देखा था। इसके अलावा, वह प्रेषित पतरस से भी मिला। (लूका 24:34) आइए सबसे पहले देखते हैं कि जब यीशु मरियम मगदलीनी से मिला, तो क्या हुआ और उससे हम क्या सीख सकते हैं।

7. यीशु मरियम के बारे में क्या गौर करता है और फिर वह उसके लिए क्या करता है? (यूहन्‍ना 20:11-16) (तसवीर भी देखें।)

7 यूहन्‍ना 20:11-16 पढ़िए। नीसान 16 के दिन सुबह-सुबह कुछ वफादार स्त्रियाँ यीशु की कब्र पर आती हैं। (लूका 24:1, 10) उनमें से एक मरियम मगदलीनी है। आइए उस पर थोड़ा ध्यान देते हैं। जैसे ही मरियम कब्र पर आती है, तो देखती है कि कब्र खाली है। वह भागी-भागी पतरस और यूहन्‍ना के पास जाती है और उन्हें इस बारे में बताती है। तब वे दोनों दौड़ते हुए कब्र पर आते हैं और मरियम भी उनके पीछे-पीछे आती है। जब वे देखते हैं कि कब्र सच में खाली है, तो वे मायूस हो जाते हैं और घर लौट जाते हैं। लेकिन मरियम वहीं खड़ी-खड़ी रोती रहती है। पर वह एक बात से अनजान है। वह नहीं जानती कि यीशु सबकुछ देख रहा है। मरियम का दुख, उसके आँसू देखकर यीशु से रहा नहीं जाता और वह उसके सामने प्रकट होता है। वह उससे प्यार से बात करता है और उसकी हिम्मत बँधाता है। फिर वह उसे एक ज़रूरी काम देता है। यीशु उससे कहता है कि वह जाकर बाकी चेलों को बताए कि उसे ज़िंदा कर दिया गया है।—यूह. 20:17, 18.

यीशु की तरह ध्यान दीजिए कि लोगों पर क्या गुज़र रही है और उनसे हमदर्दी रखिए और प्यार से बात कीजिए (पैराग्राफ 7)


8. हम यीशु की तरह क्या कर सकते हैं?

8 हम यीशु की तरह कैसे बन सकते हैं? हम अपने भाई-बहनों का हौसला बढ़ा सकते हैं। इससे वे यहोवा की सेवा में लगे रहेंगे। इसके लिए हम क्या कर सकते हैं? यीशु की तरह हमें यह समझने की कोशिश करनी चाहिए कि हमारे भाई-बहन किन मुश्‍किलों से गुज़र रहे हैं, वे कैसा महसूस कर रहे हैं और फिर अपनी बातों से उन्हें दिलासा देना चाहिए। ज़रा बहन जोसलिन के अनुभव पर ध्यान दीजिए। एक हादसे में उसकी बहन गुज़र गयी थी। वह बताती है, “कई महीनों तक मैं बहुत दुखी थी। रह-रहकर मुझे अपनी बहन की याद सताती थी।” फिर एक भाई और उनकी पत्नी ने जोसलिन को अपने घर बुलाया। उन्होंने बहुत ध्यान से उसकी बातें सुनीं और उसे यकीन दिलाया कि यहोवा उससे बहुत प्यार करता है। जोसलिन बताती है, “पहले मुझे लग रहा था कि मैं मानो समुंदर की लहरों में डूबती जा रही हूँ। लेकिन फिर यहोवा ने एक नाव भेजी और ऐन वक्‍त पर मुझे बचा लिया। उस भाई और बहन से बात करने के बाद मुझमें फिर से यहोवा की सेवा करने का जोश भर आया।” हम भी इसी तरह भाई-बहनों की मदद सकते हैं। जब कोई हमें अपने दिल का हाल बताता है, तो हम ध्यान से उसकी सुन सकते हैं, उससे हमदर्दी रख सकते हैं और प्यार से बात कर सकते हैं। ऐसा करने से हम उसकी हिम्मत बँधा पाएँगे और वह यहोवा की सेवा करता रहेगा।—रोमि. 12:15.

शास्त्र की बातें समझने में दूसरों की मदद कीजिए

9. यीशु के चेले किस कशमकश में थे और यीशु ने कैसे उनकी मदद की?

9 यीशु के चेले शास्त्र को परमेश्‍वर का वचन मानते थे और उसके हिसाब से चलने की पूरी कोशिश करते थे। (यूह. 17:6) लेकिन जब यीशु को अपराधी की तरह काठ पर लटकाकर मार डाला गया, तो उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसा क्यों हुआ और उनके मन में कई सवाल उठ रहे थे। पर यीशु समझ गया कि चेले इसलिए कशमकश में हैं क्योंकि वे शास्त्र की बातें ठीक से समझ नहीं पाए हैं, ना कि इसलिए कि उनमें विश्‍वास की कमी है। (लूका 9:44, 45; यूह. 20:9) इस वजह से यीशु ने उन्हें शास्त्र की बातें समझने में मदद दी। आइए उस किस्से पर गौर करें जब यीशु उन दो चेलों से बात करता है जो इम्माऊस जा रहे थे।

10. यीशु ने कैसे अपने चेलों को यकीन दिलाया कि वही मसीहा है? (लूका 24:18-27)

10 लूका 24:18-27 पढ़िए। ध्यान दीजिए कि यीशु ने तुरंत उन दोनों चेलों पर यह ज़ाहिर नहीं किया कि वह कौन है। इसके बजाय उसने उनसे कुछ सवाल किए। वह शायद चाहता था कि चेले उसे खुलकर बताएँ कि उनके मन में क्या चल रहा है। चेलों ने उसे बताया कि वे सोच रहे थे कि यीशु उन्हें रोमी हुकूमत से छुटकारा दिलाएगा। उनकी बात ध्यान से सुनने के बाद उसने उन्हें शास्त्र से समझाया कि मसीहा के साथ जो कुछ हुआ, वह इसलिए हुआ क्योंकि भविष्यवाणियाँ पूरी होनी थीं। b फिर उसी शाम वह अपने दूसरे चेलों से भी मिला और उसने उन्हें भी ये बातें समझायीं। (लूका 24:33-48) हम इस किस्से से क्या सीख सकते हैं?

11-12. (क) यीशु ने जिस तरह लोगों को शास्त्र से सिखाया, उससे हम क्या सीख सकते हैं? (तसवीरें भी देखें।) (ख) नौरटे के बाइबल टीचर ने कैसे उसकी मदद की?

11 हम यीशु की तरह कैसे बन सकते हैं? अपने बाइबल विद्यार्थी को सिखाते वक्‍त सोच-समझकर ऐसे सवाल कीजिए जिससे वह खुलकर बता सके कि उसके मन में क्या चल रहा है। (नीति. 20:5) इसके बाद, ऐसी आयतें ढूँढ़ने में उसकी मदद कीजिए जो उसके काम आ सकें। लेकिन उसे यह मत बताइए कि उसे क्या करना चाहिए और क्या नहीं। इसके बजाय उन आयतों पर सवाल कीजिए। यह समझने में उसकी मदद कीजिए कि वह उन आयतों में लिखी बातों पर कैसे अमल कर सकता है। अब ज़रा घाना में रहनेवाले भाई नौरटे के उदाहरण पर ध्यान दीजिए।

12 जब नौरटे 16 साल का था, तब उसने बाइबल का अध्ययन करना शुरू किया। लेकिन फिर उसके घरवाले उसका विरोध करने लगे। पर उसने अध्ययन करना नहीं छोड़ा। वह किस वजह से डटा रहा? जो भाई उसका अध्ययन कराता था, उसने नौरटे के साथ मत्ती अध्याय 10 पर चर्चा की थी और उसे यह समझने में मदद दी थी कि जब एक व्यक्‍ति यीशु के पीछे चलने लगता है, तो लोग उसका विरोध करते हैं। नौरटे कहता है, “इसलिए जब मेरा विरोध होने लगा, तो मैं समझ गया कि मुझे सच्चाई मिल गयी है।” उस भाई ने नौरटे के साथ मत्ती 10:16 पर भी चर्चा की। इससे नौरटे समझ गया कि घरवालों से धर्म के बारे में बात करते वक्‍त उसे सोच-समझकर बात करनी है और आदर के साथ अपनी बात कहनी है। फिर बपतिस्मा लेने के बाद नौरटे पायनियर सेवा करना चाहता था। लेकिन उसके पापा चाहते थे कि वह स्कूल के बाद यूनिवर्सिटी की पढ़ाई करे। तब नौरटे ने इस बारे में उस भाई से बात की जो उसका अध्ययन कराता था। भाई ने उसे यह नहीं बताया कि उसे क्या करना चाहिए। इसके बजाय उसने नौरटे से कुछ सवाल किए और कुछ बाइबल सिद्धांतों पर सोचने में उसकी मदद की। नतीजा क्या हुआ? नौरटे ने पूरे समय की सेवा करने का फैसला किया। तब उसके पापा ने उसे घर से निकाल दिया। लेकिन नौरटे को अपने फैसले पर कोई अफसोस नहीं है। वह कहता है, “मुझे पूरा यकीन है कि मैंने बिलकुल सही फैसला लिया है।” हम भी बाइबल की आयतों पर गहराई से सोचने में दूसरों की मदद कर सकते हैं। तब उनका विश्‍वास मज़बूत होगा और वे मुश्‍किलों में भी यहोवा की सेवा करते रहेंगे।—इफि. 3:16-19.

यीशु की तरह दूसरों को शास्त्र की बातें समझने में मदद दीजिए (पैराग्राफ 11) e


भाइयों को ट्रेनिंग दीजिए जिससे वे “आदमियों के रूप में तोहफे” बन सकें

13. यीशु के स्वर्ग जाने के बाद भी प्रचार काम जारी रहे, इसके लिए उसने क्या किया? (इफिसियों 4:8)

13 धरती पर यहोवा ने यीशु को जो काम दिया था, वह उसने अच्छी तरह पूरा किया। (यूह. 17:4) लेकिन उसने कभी यह नहीं सोचा, ‘अगर कोई काम ढंग से करना है, तो उसे खुद ही करना पड़ेगा।’ इसके बजाय यीशु को अपने चेलों पर भरोसा था। इसलिए अपनी साढ़े तीन साल की सेवा के दौरान, उसने उन्हें ट्रेनिंग दी। यही नहीं, धरती पर अपने आखिरी 40 दिनों के दौरान भी उसने उन्हें सिखाया और उन्हें यह ज़िम्मेदारी दी कि वे यहोवा की अनमोल भेड़ों की देखभाल करें और प्रचार काम में और सिखाने के काम में अगुवाई लें। (इफिसियों 4:8 पढ़िए।) जब यीशु ने उन्हें यह भारी ज़िम्मेदारी सौंपी, तो कुछ चेलों की उम्र शायद 30 से भी कम रही होगी। ये आदमी बहुत मेहनती थे और यीशु के वफादार थे। इस वजह से यीशु ने उन्हें ट्रेनिंग दी ताकि वे “आदमियों के रूप में तोहफे” बन सकें। यीशु ने यह कैसे किया?

14. धरती पर अपने आखिरी 40 दिनों के दौरान यीशु ने कैसे अपने चेलों को ट्रेनिंग दी? (तसवीर भी देखें।)

14 यीशु ने सीधे-सीधे मगर प्यार से अपने चेलों को सलाह दी। जैसे जब उसने देखा कि उसके कुछ चेले इस बात पर यकीन नहीं कर रहे कि उसे मरे हुओं में से ज़िंदा कर दिया गया है, तो उसने उन्हें सलाह दी और उनकी सोच सुधारी। (लूका 24:25-27; यूह. 20:27) यीशु ने उन्हें यह भी समझाया कि वे अपने कारोबार में या पैसा कमाने में ना लग जाएँ, बल्कि यहोवा की भेड़ों की देखभाल करने पर ज़्यादा ध्यान दें। (यूह. 21:15) उसने उन्हें यह भी याद दिलाया कि वे इस बारे में सोचकर परेशान ना हों कि दूसरों को यहोवा की सेवा में क्या ज़िम्मेदारियाँ मिल रही हैं। (यूह. 21:20-22) इसके अलावा, उसने परमेश्‍वर के राज के बारे में उनकी गलत सोच को सुधारा और उन्हें बढ़ावा दिया कि वे लोगों को खुशखबरी सुनाने पर ध्यान दें। (प्रेषि. 1:6-8) प्राचीन यीशु से क्या सीख सकते हैं?

यीशु की तरह भाइयों को ट्रेनिंग दीजिए ताकि वे और भी ज़िम्मेदारियाँ सँभालने के काबिल बन सकें (पैराग्राफ 14)


15-16. (क) समझाइए कि यीशु की तरह प्राचीन क्या कर सकते हैं। (ख) जब पैट्रिक को सलाह दी गयी, तो उसे कैसे फायदा हुआ?

15 प्राचीन कैसे यीशु की तरह बन सकते हैं? उन्हें मंडली के उन भाइयों को भी ट्रेनिंग देनी चाहिए जिनकी उम्र कम है ताकि वे और भी ज़िम्मेदारियाँ सँभालने के काबिल बन सकें। c उन्हें यह उम्मीद नहीं करनी चाहिए कि भाई एक ही बार में सबकुछ सीख जाएँगे और कोई गलती नहीं करेंगे। पर जब ज़रूरी हो, तो उन्हें जवान भाइयों को प्यार से सलाह भी देनी चाहिए ताकि वे सीख पाएँ कि उन्हें नम्र होना है, भरोसे के लायक बनना है और खुशी-खुशी दूसरों की सेवा करनी है।—1 तीमु. 3:1; 2 तीमु. 2:2; 1 पत. 5:5.

16 ध्यान दीजिए कि जब भाई पैट्रिक को सलाह दी गयी, तो उसे कैसे फायदा हुआ। वह दूसरों के साथ रुखाई से बात करता था और अच्छी तरह व्यवहार नहीं करता था, बहनों के साथ भी नहीं। एक प्राचीन ने पैट्रिक की इस कमज़ोरी पर ध्यान दिया और उसे प्यार से, मगर सीधे-सीधे सलाह दी। पैट्रिक कहता है, “मैं बहुत खुश हूँ कि उस भाई ने मुझे बताया कि मुझे सुधार करने की ज़रूरत है। मैं मंडली में ज़िम्मेदारियाँ पाना चाहता था। लेकिन जब मैं देखता था कि वही ज़िम्मेदारियाँ दूसरों को मिल रही हैं, तो मुझे बहुत बुरा लगता था। उस प्राचीन की सलाह मानने से मुझे बहुत फायदा हुआ। मैं समझ पाया कि मंडली में किसी ज़िम्मेदारी के पीछे भागने के बजाय, मुझे नम्र होकर भाई-बहनों के लिए काम करना है और प्यार से पेश आना है।” नतीजा यह हुआ कि जब पैट्रिक 23 साल का ही था, तब उसे प्राचीन नियुक्‍त किया गया।—नीति. 27:9.

17. यीशु ने कैसे दिखाया कि उसे अपने चेलों पर भरोसा है?

17 यीशु ने ना सिर्फ चेलों को प्रचार करने के लिए कहा, बल्कि उन्हें लोगों को सिखाने की ज़िम्मेदारी भी दी। (मत्ती 28:20 में “उन्हें . . . सिखाओ” पर दिया अध्ययन नोट देखें।) चेलों को शायद लगा होगा कि उनसे यह नहीं हो पाएगा। लेकिन यीशु को पूरा भरोसा था कि वे यह ज़िम्मेदारी अच्छी तरह पूरी करेंगे। इसलिए उसने उनसे कहा, “जैसे पिता ने मुझे भेजा है, मैं भी तुम्हें भेजता हूँ।”—यूह. 20:21.

18. यीशु की तरह प्राचीन क्या कर सकते हैं?

18 प्राचीन कैसे यीशु की तरह बन सकते हैं? अनुभवी प्राचीन दूसरों को ज़िम्मेदारियाँ सौंपते हैं। (फिलि. 2:19-22) जैसे वे जवान भाइयों के साथ मिलकर राज-घर की साफ-सफाई और उसका रख-रखाव करते हैं। जब वे उन्हें कोई काम देते हैं, तो उन्हें ट्रेनिंग भी देते हैं और यकीन दिलाते हैं कि वे यह काम अच्छी तरह करेंगे। भाई मैथ्यू के उदाहरण पर ध्यान दीजिए। उन्हें कुछ ही समय पहले प्राचीन बनाया गया है। उन्होंने बताया कि वे उन अनुभवी प्राचीनों के बहुत एहसानमंद हैं जिन्होंने उन्हें काम देने के साथ-साथ ट्रेनिंग भी दी और भरोसा रखा कि वे उस काम को अच्छी तरह पूरा करेंगे। भाई मैथ्यू कहते हैं, “मुझसे गलतियाँ तो हुईं, लेकिन प्राचीनों ने हमेशा मेरी मदद की। इस वजह से मैं अपनी गलतियों से सीख पाया और अपनी ज़िम्मेदारी और अच्छी तरह पूरी कर पाया।” d

19. हमें क्या पक्का इरादा कर लेना चाहिए?

19 धरती पर अपने आखिरी 40 दिनों में यीशु ने अपने चेलों की हिम्मत बँधायी, उन्हें सिखाया और उन्हें ट्रेनिंग दी। आइए हम भी पक्का इरादा कर लें कि हम यीशु की तरह बनेंगे और उसके नक्शे-कदम पर नज़दीकी से चलेंगे। (1 पत. 2:21) और ऐसा करने में वह हमारी मदद ज़रूर करेगा। क्योंकि उसने वादा किया है, “मैं दुनिया की व्यवस्था के आखिरी वक्‍त तक हमेशा तुम्हारे साथ रहूँगा।”—मत्ती 28:20.

गीत 15 यहोवा के पहलौठे की तारीफ करें!

a खुशखबरी की किताबों और बाइबल की दूसरी किताबों में बताया है कि ज़िंदा किए जाने के बाद यीशु किन लोगों के सामने प्रकट हुआ। वे लोग हैं: मरियम मगदलीनी (यूह. 20:11-18); कुछ दूसरी औरतें (मत्ती 28:8-10; लूका 24:8-11); 2 चेले (लूका 24:13-15); पतरस (लूका 24:34); प्रेषितों के सामने, जब थोमा नहीं था (यूह. 20:19-24); प्रेषित के सामने, जब थोमा था (यूह. 20:26); 7 चेले (यूह. 21:1, 2); 500 से भी ज़्यादा चेले (मत्ती 28:16; 1 कुरिं. 15:6); अपने भाई याकूब के सामने (1 कुरिं. 15:7); सारे प्रेषितों के सामने (प्रेषि. 1:4); और बैतनियाह के पास प्रेषितों के सामने। (लूका 24:50-52) हो सकता है, यीशु और भी मौकों पर अपने चेलों से मिला हो जिनके बारे में बाइबल में नहीं बताया है।—यूह. 21:25.

b मसीहा के बारे में की गयी भविष्यवाणियों के बारे में जानने के लिए jw.org पर दिया यह लेख पढ़ें, “क्या मसीहा से जुड़ी भविष्यवाणियों से साबित होता है कि यीशु ही मसीहा था?

c कुछ काबिल भाइयों को 25-30 साल की उम्र में भी सर्किट निगरान के तौर पर नियुक्‍त किया जा सकता है। लेकिन इससे पहले उन्हें कुछ समय तक प्राचीन के तौर पर सेवा करने का अनुभव होना चाहिए।

d हम कैसे जवान भाइयों की मदद कर सकते हैं ताकि वे ज़िम्मेदारियाँ उठाने के काबिल बनें? इस बारे में कुछ सुझाव जानने के लिए अगस्त 2018 की प्रहरीदुर्ग, पेज 11-12, पैरा. 15-17 और 15 अप्रैल, 2015 के अंक के पेज 3-13 पढ़ें।

e तसवीर के बारे में: एक बाइबल विद्यार्थी के टीचर ने शास्त्र की बातें समझने में उसकी मदद की। अब वह विद्यार्थी क्रिसमस से जुड़ी सजावट की चीज़ें फेंक रहा है।