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आपकी शादीशुदा ज़िंदगी कामयाब हो सकती है!

आपकी शादीशुदा ज़िंदगी कामयाब हो सकती है!

“तुम में से हरेक अपनी पत्नी से वैसा ही प्यार करे जैसा वह अपने आप से करता है। और पत्नी भी अपने पति का गहरा आदर करे।”—इफि. 5:33.

गीत: 36, 3

1. हालाँकि शादीशुदा ज़िंदगी खुशियों से शुरू होती है, लेकिन जो शादी करते हैं उन्हें क्या उम्मीद करनी चाहिए? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)

शादी के दिन जब एक खूबसूरत दुल्हन, दूल्हे के सामने आती है, तो उन्हें जो खुशी होती है, वह शब्दों में बयान नहीं की जा सकती। शादी से पहले उनकी एक-दूसरे से इतनी अच्छी जान-पहचान हुई कि एक-दूसरे के लिए उनका प्यार बढ़ा और उन्होंने शादी करने का फैसला किया। उन्होंने ज़िंदगी-भर एक-दूसरे के वफादार रहने का वादा किया। शादी के बाद जब उनकी नयी ज़िंदगी शुरू होगी, तो उसमें उन्हें कुछ बदलाव करने होंगे ताकि उनके बीच एकता बनी रहे। यहोवा ने शादी के बंधन की शुरूआत की है। वह चाहता है कि पति-पत्नी अपनी शादीशुदा ज़िंदगी में खुशी और कामयाबी हासिल करे, इसलिए उसने अपने वचन बाइबल में कारगर सलाह दी हैं। (नीति. 18:22) फिर भी बाइबल हमें साफ बताती है कि जब दो असिद्ध लोग शादी करते हैं तो “उन्हें शारीरिक दु:ख-तकलीफें झेलनी पड़ेंगी।” (1 कुरिं. 7:28) तो फिर इन दुख-तकलीफों को कैसे कम किया जा सकता है? और मसीही, अपनी शादीशुदा ज़िंदगी को कामयाब कैसे बना सकते हैं?

2. पति-पत्नी के बीच किस तरह का प्यार होना चाहिए?

2 बाइबल बताती है कि प्यार एक ज़रूरी गुण है। लेकिन पति-पत्नी अलग-अलग तरह के प्यार ज़ाहिर कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, पति-पत्नी के बीच गहरा लगाव होना चाहिए और साथ-साथ रोमानी प्यार भी होना चाहिए। अगर उनके बच्चे हैं, तो परिवार के सदस्यों के बीच प्यार होना और भी ज़रूरी हो जाता है। मगर सिद्धांतों पर आधारित प्यार होने से शादीशुदा ज़िंदगी वाकई कामयाब होती है। इस प्यार के बारे में प्रेषित पौलुस ने लिखा, “तुम में से हरेक अपनी पत्नी से वैसा ही प्यार करे जैसा वह अपने आप से करता है। और पत्नी भी अपने पति का गहरा आदर करे।”—इफि. 5:33.

पति-पत्नी की ज़िम्मेदारियों पर एक नज़र

3. पति-पत्नी के बीच का प्यार कितना मज़बूत होना चाहिए?

3 पौलुस ने कहा, “हे पतियो, अपनी-अपनी पत्नी से प्यार करते रहो, ठीक जैसे मसीह ने भी मंडली से प्यार किया और अपने आपको उसकी खातिर दे दिया।” (इफि. 5:25) यीशु की मिसाल पर चलते हुए आज मसीही एक-दूसरे से वैसा ही प्यार करते हैं जैसा यीशु ने अपने चेलों से किया। (यूहन्ना 13:34, 35; 15:12, 13 पढ़िए।) पति-पत्नी के बीच का प्यार इतना मज़बूत होना चाहिए कि वक्‍त आने पर वे एक-दूसरे के लिए जान देने को भी तैयार हों। लेकिन जब उनके बीच कोई गंभीर मसला उठता है, तो शायद कुछ को लगे कि उनका प्यार इतना मज़बूत नहीं है। क्या बात उनकी मदद कर सकती है? सिद्धांतों पर आधारित प्यार “सबकुछ बरदाश्त कर लेता है, सब बातों पर यकीन करता है, सब बातों की आशा रखता है, सबकुछ धीरज के साथ सह लेता है।” जी हाँ, इस तरह का “प्यार कभी नहीं मिटता।” (1 कुरिं. 13:7, 8) पति-पत्नी को याद रखना चाहिए कि उन्होंने एक-दूसरे को प्यार करने और एक-दूसरे के वफादार बने रहने का वादा किया था। अपने वादे को याद रखने से उनको बढ़ावा मिलेगा कि वे यहोवा से मदद माँगे और मिलकर समस्याओं को सुलझाएँ।

4, 5. (क) पत्नी का मुखियापन के बारे में कैसा नज़रिया होना चाहिए? (ख) परिवार का मुखिया होने के नाते पति की क्या ज़िम्मेदारी होती है? (ग) एक पति-पत्नी को क्या फेरबदल करने पड़े?

4 पति और पत्नी की क्या-क्या ज़िम्मेदारियाँ हैं, इस पर ध्यान दिलाते हुए पौलुस ने लिखा, “पत्नियाँ अपने-अपने पति के ऐसे अधीन रहें जैसे प्रभु के, क्योंकि पति अपनी पत्नी का सिर है, ठीक जैसे मसीह भी अपने शरीर यानी मंडली का सिर है।” (इफि. 5:22, 23) इस इंतज़ाम से यह नहीं समझ लेना चाहिए कि पत्नी का दर्जा पति से कम है। यहोवा ने पत्नी की अहम ज़िम्मेदारी के बारे में कहा था, “आदम का अकेला रहना अच्छा नहीं; मैं उसके लिये एक ऐसा सहायक बनाऊंगा जो उस से मेल खाए।” (उत्प. 2:18) पत्नी को अपने पति की मदद करनी चाहिए ताकि वह परिवार का एक अच्छा मुखिया बन सके। और पति को यीशु के प्यार-भरे उदाहरण पर चलना चाहिए, जो “मंडली का सिर” है। जब वह ऐसा करता है, तो उसकी पत्नी सुरक्षित महसूस करती है। और उसके लिए अपने पति का आदर करना और उसे सहयोग देना आसान हो जाता है।

5 काजल [1] कहती है, “शादी से पहले मैं किसी पर निर्भर नहीं थी और अपना खयाल खुद रखती थी। शादी के बाद मुझे फेरबदल करने पड़े क्योंकि मैंने अपने पति पर निर्भर होना सीखा। ऐसा करना हमेशा आसान नहीं था, लेकिन यहोवा के तरीके से काम करने की वजह से हम एक-दूसरे के बहुत करीब आ पाए हैं।” उसका पति अरुन कहता है, “फैसले लेना मेरे लिए कभी आसान नहीं था। और शादीशुदा ज़िंदगी में दो लोगों की भावनाओं का खयाल रखते हुए ऐसा करना और मुश्किल है। लेकिन प्रार्थना में यहोवा से मार्गदर्शन माँगने से और अपनी पत्नी के सुझावों को ध्यान से सुनने से ऐसा करना और आसान हो जाता है। मुझे लगता है कि हम सच में एक टीम हैं!”

6. जब पति-पत्नी के बीच समस्याएँ होती हैं, तब प्यार कैसे “पूरी तरह से एकता में जोड़नेवाला जोड़” साबित होता है?

6 शादी का बंधन तब मज़बूत होता है, जब पति-पत्नी ‘एक-दूसरे की सहते रहते हैं और एक-दूसरे को दिल खोलकर माफ करते हैं।’ यह सच है कि असिद्धता की वजह से दोनों से गलतियाँ होंगी। जब ऐसा होता है, तो उनके पास मौका होगा कि वे उन गलतियों से सीखें, एक-दूसरे को माफ करें और बाइबल सिद्धांतों पर आधारित प्यार दिखाएँ। यह प्यार “पूरी तरह से एकता में जोड़नेवाला जोड़” है। (कुलु. 3:13, 14) इससे भी बढ़कर, यह “प्यार सहनशील और कृपा करनेवाला होता है। . . . यह चोट का हिसाब नहीं रखता।” (1 कुरिं. 13:4, 5) जब पति-पत्नी के बीच अनबन हो जाए, तो जितनी जल्दी हो सके, उन्हें सूरज ढलने से पहले उसे सुलझा लेना चाहिए। (इफि. 4:26, 27) किसी के लिए यह कहना आसान नहीं होता, “तुम्हें ठेस पहुँचाने के लिए मैं माफी चाहता हूँ।” इसके लिए हिम्मत और नम्रता चाहिए। ऐसा कहने से पति-पत्नी को समस्याएँ सुलझाने में बहुत मदद मिलती है और वे एक-दूसरे के और करीब आ पाते हैं।

कोमलता की खास ज़रूरत क्यों है

7, 8. (क) शादीशुदा ज़िंदगी में लैंगिक संबंध के बारे में बाइबल क्या सलाह देती है? (ख) मसीही पति-पत्नी को एक-दूसरे के साथ कोमलता से क्यों पेश आना चाहिए?

7 बाइबल पति-पत्नी को सलाह देती है कि वे लैंगिक संबंध के बारे में सही नज़रिया रखें। (1 कुरिंथियों 7:3-5 पढ़िए।) उन्हें एक-दूसरे की भावनाओं और ज़रूरतों का खयाल रखना चाहिए। अगर पति, पत्नी के साथ कोमलता से पेश नहीं आता तो उसे शादीशुदा ज़िंदगी के इस पहलू से खुशी पाना मुश्किल लगेगा। पतियों को यह सलाह दी गयी है कि वे अपनी पत्नी के साथ “समझदारी से” पेश आएँ। (1 पत. 3:7) उन्हें लैंगिक संबंध रखने के लिए एक-दूसरे से ज़बरदस्ती नहीं करनी चाहिए, न ही इसकी माँग करनी चाहिए, बल्कि यह इच्छा उनमें खुद-ब-खुद जागनी चाहिए। यह इच्छा शायद औरत के मुकाबले आदमी में जल्दी उठे, मगर दोनों ही इस बात के लिए राज़ी होने चाहिए।

8 बाइबल में ऐसा कोई नियम नहीं है जो बताता है कि पति-पत्नी लैंगिक संबंध के दौरान किस तरह से या किस हद तक प्यार जता सकते हैं। लेकिन बाइबल में प्यार जताने के बारे में बताया गया है। (श्रेष्ठ. 1:2; 2:6) मसीही पति-पत्नी को एक-दूसरे के साथ कोमलता से पेश आना चाहिए।

9. अपने जीवन-साथी को छोड़ किसी और के लिए लैंगिक इच्छाएँ रखना क्यों परमेश्वर को मंज़ूर नहीं है?

9 अगर हम परमेश्वर और पड़ोसियों से गहरा प्यार करेंगे तो हम किसी भी चीज़ या कोई भी व्यक्ति को हमारी शादी के बंधन के बीच नहीं आने देंगे। पोर्नोग्राफी देखने की वजह से कुछ लोगों की शादीशुदा ज़िंदगी खतरे में पड़ गयी, यहाँ तक कि बरबाद भी हो गयी हैं। अगर पोर्नोग्राफी की तरफ हमारा झुकाव है या अपने जीवन-साथी को छोड़ किसी और के लिए हमारे दिल में लैंगिक इच्छाएँ हैं, तो हमें फौरन कदम उठाना चाहिए। हमें अपने साथी को छोड़ किसी और से ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिए जिससे लगे कि हम इश्कबाज़ी कर रहे हैं। ऐसा करने से हम अपने साथी के लिए प्यार नहीं दिखा रहे होंगे। हमें याद रखना चाहिए कि यहोवा हमारी हर सोच और हमारा हर काम जानता है। इसलिए हम उसे खुश करने की और अपने साथी के वफादार रहने की पूरी कोशिश करेंगे।मत्ती 5:27, 28; इब्रानियों 4:13 पढ़िए।

जब शादीशुदा ज़िंदगी में मुश्किलें आएँ

10, 11. (क) आज तलाक कितना आम हो गया है? (ख) बाइबल अलग होने के बारे में क्या कहती है? (ग) पति या पत्नी को क्या बात मदद करेगी ताकि वे अलग होने में जल्दबाज़ी न करें?

10 अगर शादीशुदा ज़िंदगी में उठनेवाली समस्याओं को सुलझाया न जाए तो हो सकता है कि पति-पत्नी अलग होने की सोचें या तलाक ले लें। कुछ देशों में आधे से भी ज़्यादा शादीशुदा लोग तलाक ले लेते हैं। ऐसा चलन मसीही मंडली में इतना आम नहीं है। लेकिन कई मसीही जोड़ों के बीच समस्याएँ बढ़ रही हैं।

11 बाइबल यह सलाह देती है, “एक पत्नी को अपने पति से अलग नहीं होना चाहिए। लेकिन अगर वह अलग हो भी जाए, तो वह फिर शादी न करे या दोबारा अपने पति के साथ मेल कर ले। और एक पति को चाहिए कि अपनी पत्नी को न छोड़े।” (1 कुरिं. 7:10, 11) अपने जीवन-साथी से अलग होना कोई मामूली बात नहीं है। जब गंभीर परेशानियाँ आती हैं तो शायद अलग होना ही सही लगे, लेकिन इससे परेशानियाँ और बढ़ जाती हैं। यीशु ने यहोवा की बात दोहरायी कि पुरुष अपने माता-पिता को छोड़ देगा और अपनी पत्नी से जुड़ा रहेगा। इसके बाद उसने कहा, “जिसे परमेश्वर ने एक बंधन में बाँधा है, उसे कोई इंसान अलग न करे।” (मत्ती 19:3-6; उत्प. 2:24) यहोवा की नज़र में यह बंधन उम्र-भर कायम रहता है। (1 कुरिं. 7:39) हमें यह बात ध्यान रखनी चाहिए कि हम सभी अपने कामों के लिए परमेश्वर के सामने जवाबदेह हैं। इससे पति-पत्नी को बढ़ावा मिलता है कि वे परेशानियों के बढ़ने से पहले ही उन्हें जल्द-से-जल्द सुलझाएँ।

12. किस वजह से एक शादीशुदा व्यक्ति अलग होने की सोच सकता है?

12 कुछ पति-पत्नी को गंभीर समस्याओं का सामना क्यों करना पड़ता है? कुछ के लिए उनकी शादीशुदा ज़िंदगी वैसी नहीं होती, जैसी उन्होंने उम्मीद की थी, इसलिए वे निराश हो जाते हैं या गुस्से से भर जाते हैं। इसके अलावा लोगों की परवरिश अलग-अलग माहौल में होती है और वे जज़्बाती तौर पर भी एक-दूसरे से अलग होते हैं। हो सकता है कि सास-ससुर के साथ अनबन की वजह से, या पैसे और बच्चों की परवरिश को लेकर अलग-अलग राय होने की वजह से समस्याएँ उठें। लेकिन ज़्यादातर पति-पत्नी इन सब समस्याओं का हल निकाल पाते हैं क्योंकि वे परमेश्वर के मार्गदर्शन पर चलते हैं। इसके लिए वे तारीफ के काबिल हैं!

13. अलग होने के कुछ वाजिब कारण क्या हैं?

13 अलग होने के कुछ वाजिब कारण हो सकते हैं। जैसे जानबूझकर अपने परिवार की रोज़ी-रोटी का इंतज़ाम न करना, अपने साथी को बहुत ज़्यादा मारना-पीटना और एक व्यक्ति का यहोवा की उपासना करना बिलकुल ही मुश्किल कर देना। इन वजहों से कुछ ने अलग होने का फैसला किया है। जो पति-पत्नी गंभीर समस्याओं से गुज़रते हैं उन्हें प्राचीनों से मदद माँगनी चाहिए। ये तजुरबेकार भाई, मसीही जोड़ों को परमेश्वर के वचन में दी सलाह को लागू करने में मदद कर सकते हैं। हमें इन समस्याओं को सुलझाने के लिए परमेश्वर से पवित्र शक्ति के लिए प्रार्थना करनी चाहिए ताकि हम बाइबल के सिद्धांत लागू कर सकें और पवित्र शक्ति के फल पैदा कर सकें।—गला. 5:22, 23. [2]

14. बाइबल उन मसीहियों को क्या सलाह देती है, जिनका जीवन-साथी यहोवा की सेवा नहीं करता?

14 हो सकता है एक मसीही का जीवन-साथी यहोवा की सेवा नहीं करता। इस हालात में भी बाइबल साथ रहने के वाजिब कारण बताती है। (1 कुरिंथियों 7:12-14 पढ़िए।) वह अविश्वासी साथी परमेश्वर की नज़र में “पवित्र” माना जाता है क्योंकि उसका जीवन-साथी एक मसीही है। परमेश्वर की नज़र में उनके बच्चे भी पवित्र हैं और इसलिए वह उनका खयाल करता है। पौलुस ने विश्वासी साथियों का हौसला बढ़ाते हुए कहा, “पत्नी, अगर तू अपने पति के साथ रहे तो क्या जाने तू अपने पति को बचा ले? या पति, अगर तू अपनी पत्नी के साथ रहे तो क्या जाने तू अपनी पत्नी को बचा ले?” (1 कुरिं. 7:16) हमारे बीच ऐसे कई मसीही पति या पत्नी हैं जिन्होंने अपने अविश्वासी साथी को यहोवा का सेवक बनने में मदद की है और हमारे लिए अच्छी मिसाल रखी है।

15, 16. (क) बाइबल उन मसीही पत्नियों को क्या सलाह देती है, जिनके पति सच्चाई में नहीं हैं? (ख) “अगर अविश्वासी साथी अलग होना चाहता है,” तो एक मसीही साथी को क्या करना चाहिए?

15 प्रेषित पतरस ने मसीही पत्नियों को सलाह दी कि उन्हें अपने पति के अधीन रहना चाहिए, “ताकि अगर किसी का पति परमेश्वर के वचन की आज्ञा नहीं मानता, तो वह अपनी पत्नी के पवित्र चालचलन और गहरे आदर को देखकर तुम्हारे कुछ बोले बिना ही जीत लिया जाए।” हर वक्‍त अपने विश्वास के बारे में बताने के बजाय, एक पत्नी “शांत और कोमल स्वभाव” से पेश आकर अपने पति को सच्चाई में ला सकती है। ऐसा स्वभाव “परमेश्वर की नज़रों में अनमोल है।”—1 पत. 3:1-4.

16 तब क्या अगर अविश्वासी साथी अलग होने का फैसला करे? इस बारे में बाइबल कहती है, “अगर अविश्वासी साथी अलग होना चाहता है, तो उसे अलग होने दो। ऐसे हालात में एक भाई या बहन बंदिश में नहीं, मगर परमेश्वर ने तुम्हें शांति के लिए बुलाया है।” (1 कुरिं. 7:15) हालाँकि अलग होने से शायद एक मसीही को कुछ हद तक शांति मिले, लेकिन बाइबल उसे दोबारा शादी करने की आज़ादी नहीं देती। अगर अविश्वासी साथी अलग होना चाहता है तो विश्वासी साथी को उसे साथ रहने के लिए मजबूर करने की ज़रूरत नहीं है। आगे चलकर शायद वह अविश्वासी साथी वापस आ जाए क्योंकि वह अपनी शादी का बंधन तोड़ना नहीं चाहता। हो सकता है वक्‍त के गुज़रते वह यहोवा का उपासक भी बन जाए।

शादीशुदा ज़िंदगी में पहली जगह किस बात को देनी चाहिए?

जब हम यहोवा की उपासना पर ज़्यादा ध्यान देते हैं, तो हमारी शादीशुदा ज़िंदगी में खुशियाँ बढ़ जाती हैं (पैराग्राफ 17 देखिए)

17. मसीही जोड़ों को किस बात को पहली जगह देनी चाहिए?

17 हम “आखिरी दिनों” के भी आखिरी दौर में जी रहे हैं। यह ‘संकटों से भरा ऐसा वक्‍त है जिसका सामना करना मुश्किल’ है। (2 तीमु. 3:1-5) यहोवा के साथ एक मज़बूत रिश्ता होने से हम इस दुनिया के बुरे असर से बच सकते हैं। पौलुस ने कहा, “जो वक्‍त रह गया है उसे घटाया गया है। इसलिए जिनकी पत्नियाँ हैं, वे अब से ऐसे हों जैसे उनकी पत्नियाँ हैं ही नहीं, . . . इस दुनिया का इस्तेमाल करनेवाले ऐसे हों जो इसका पूरा-पूरा इस्तेमाल नहीं करते।” (1 कुरिं. 7:29-31) पौलुस शादीशुदा जोड़ों से यह नहीं कह रहा था कि उन्हें अपने साथी को नज़रअंदाज़ करना चाहिए। लेकिन हम आखिरी दिनों में जी रहे हैं इसलिए हमें यहोवा की उपासना को पहली जगह देनी चाहिए।—मत्ती 6:33.

18. मसीही जोड़ों के लिए शादीशुदा ज़िंदगी को खुशहाल और कामयाब बनाना कैसे मुमकिन है?

18 इस कठिन दौर में, हमारे आस-पास बहुत-सी शादियाँ टूट रही हैं। तो क्या हमारे लिए शादीशुदा ज़िंदगी को खुशहाल और कामयाब बनाना मुमकिन है? हाँ है, अगर हम यहोवा और उसके लोगों के करीब रहें, बाइबल में दिए सिद्धांतों पर चलें और यहोवा की पवित्र शक्ति से मिले निर्देशनों को मानें। इससे हम उस बंधन का आदर कर पाएँगे, जिसे परमेश्वर ने बाँधा है।—मर. 10:9.

^ [1] (पैराग्राफ 5) नाम बदल दिए गए हैं।

^ [2] (पैराग्राफ 13) खुद को परमेश्वर के प्यार के लायक बनाए रखो किताब में दिए अतिरिक्‍त लेख “तलाक और पति-पत्नी के अलग होने के बारे में बाइबल क्या कहती है” देखिए।