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आपको दूसरों को क्यों सिखाते रहना चाहिए?

आपको दूसरों को क्यों सिखाते रहना चाहिए?

“मैं ने तुम को उत्तम शिक्षा दी है।”—नीति. 4:2.

गीत: 45, 44

1, 2. परमेश्वर से मिली ज़िम्मेदारियाँ सम्भालने में हम नए लोगों की कैसे मदद कर सकते हैं?

यीशु ने राज की खुशखबरी सुनाने में बहुत मेहनत की। उसने अपने चेलों को सिखाने में भी बहुत समय बिताया। उसने दिखाया कि कैसे परमेश्वर के लोगों को सिखाना चाहिए और उनकी देखभाल करनी चाहिए। यीशु के चेले सीख पाए कि वे ऐसे चरवाहे बन सकते हैं जो अपनी भेड़ों की देखभाल करते हैं। (मत्ती 10:5-7) फिलिप्पुस भी प्रचार काम में बहुत व्यस्त था, लेकिन उसने अपनी बेटियों को भी वही काम करना सिखाया। (प्रेषि. 21:8, 9) आज हमें भी दूसरों को सिखाना चाहिए। क्यों?

2 दुनिया-भर की मंडलियों में बहुत-से नए लोग हैं जिन्होंने बपतिस्मा नहीं लिया है। इन नए लोगों को सिखाने की ज़रूरत है। उन्हें समझाइए कि उन्हें क्यों खुद बाइबल पढ़नी चाहिए और उसका अध्ययन करना चाहिए। हमें उन्हें प्रचार करने की और दूसरों को सिखाने की तालीम भी देनी चाहिए। हाल ही में बपतिस्मा पाए भाइयों को तालीम की ज़रूरत है ताकि वे आगे चलकर सहायक सेवक और प्राचीन के नाते सेवा कर सकें। मंडली के सभी भाई-बहन, नए लोगों की मदद करने के लिए बहुत कुछ कर सकते हैं।—नीति. 4:2.

नए लोगों को सिखाइए कि निजी बाइबल अध्ययन कैसे करना चाहिए

3, 4. (क) पौलुस ने कैसे बताया कि शास्त्र का अध्ययन करने और असरदार तरह से प्रचार करने के बीच क्या नाता है? (ख) बाइबल विद्यार्थी को निजी बाइबल अध्ययन करने का बढ़ावा देने से पहले, हमें खुद क्या करना चाहिए?

3 यहोवा के हरेक सेवक को बाइबल पढ़नी चाहिए और उसका अध्ययन करना चाहिए, ताकि वह परमेश्वर की मरज़ी जान सके। यह बात समझाने के लिए प्रेषित पौलुस ने कुलुस्से के भाई-बहनों से कहा, “हमने तुम्हारे लिए प्रार्थना करना और यह माँगना नहीं छोड़ा कि तुम . . . उसकी मरज़ी के बारे में सही-सही ज्ञान से भरपूर हो जाओ।” उनके लिए बाइबल पढ़ना और उसका अध्ययन करना क्यों इतना ज़रूरी था? ऐसा करने से वे बुद्धिमान बनते। वे समझ पाते कि कैसे उनका ‘चालचलन ऐसा हो सकता है जैसा यहोवा के सेवक का होना चाहिए जिससे कि वे उसे पूरी तरह खुश कर सकें।’ इससे वे ‘हर भला काम’ कर पाते हैं, जो यहोवा उनसे चाहता था, खासकर खुशखबरी का प्रचार करने में। (कुलु. 1:9, 10) इसलिए अगर हम किसी का अध्ययन करवा रहे हैं, तो हम उन्हें समझा सकते हैं कि नियमित तौर पर बाइबल पढ़ने और उसका अध्ययन करने से वे यहोवा की सेवा कर पाएँगे।

4 अगर हम खुद निजी बाइबल अध्ययन न करें तो हम अपने बाइबल विद्यार्थियों को इसकी अहमियत कैसे समझा पाएँगे? अगर हम रोज़ाना बाइबल पढ़ें और उसका अध्ययन करें, तो इससे हमें अपनी ज़िंदगी में और प्रचार काम में मदद मिलेगी। उदाहरण के लिए, प्रचार में अगर हमसे कोई मुश्किल सवाल करे, तो हम बाइबल का इस्तेमाल करके उस सवाल का जवाब दे पाएँगे। जब हम यीशु, पौलुस और दूसरों के बारे में पढ़ते हैं जिन्होंने प्रचार में हार नहीं मानी, तो इससे हमारा हौसला बढ़ेगा और हम मुश्किलों के बावजूद प्रचार करते रह पाएँगे। जब हम दूसरों को बताते हैं कि हमने अपने अध्ययन से क्या सीखा और हमें क्या मदद मिली, तो हम उन्हें बाइबल का गहराई से अध्ययन करने का बढ़ावा दे रहे होते हैं ताकि उन्हें भी फायदा हो।

5. नए लोगों को नियमित तौर पर निजी बाइबल अध्ययन करने के लिए हम कैसे मदद कर सकते हैं, इस बारे में सुझाव दीजिए।

5 आप शायद खुद से पूछें, ‘मैं कैसे अपने विद्यार्थी को नियमित तौर पर बाइबल पढ़ना सिखा सकता हूँ?’ आप उसे दिखा सकते हैं कि जिस किताब या पत्रिका से उसका अध्ययन चल रहा है, उसमें दी जानकारी की तैयारी कैसे करनी चाहिए। आप उसे बाइबल असल में क्या सिखाती है? किताब के अतिरिक्‍त लेखों में दी जानकारी और उसमें दी आयतें पढ़ने का सुझाव दे सकते हैं। फिर आप उसे सभाओं की तैयारी करना सिखा सकते हैं, ताकि वह उनमें जवाब दे सके। उसे प्रहरीदुर्ग और सजग होइए! पत्रिकाओं का हर अंक पढ़ने का बढ़ावा दीजिए। आप उसे दिखा सकते हैं कि वह अपने सवालों के जवाब ढूँढ़ने के लिए वॉचटावर लाइब्रेरी या वॉचटावर ऑनलाइन लाइब्रेरी का इस्तेमाल कैसे कर सकता है। जब वह निजी अध्ययन करने के ये अलग-अलग तरीके अपनाता है, तो उसे अध्ययन करने में मज़ा आएगा और वह ज़्यादा सीखना चाहेगा।

6. (क) अपने विद्यार्थी के दिल में बाइबल के लिए प्यार बढ़ाने में आप कैसे उसकी मदद कर सकते हैं? (ख) अगर एक बाइबल विद्यार्थी के दिल में वचन के लिए गहरा प्यार होगा, तो वह क्या करना चाहेगा?

6 जब हम किसी का अध्ययन करवाते हैं, तो हमारी यही इच्छा होती है कि उसे एहसास हो कि बाइबल परमेश्वर की तरफ से अनमोल तोहफा है क्योंकि इससे वह यहोवा को और अच्छी तरह जान पाएगा। उस पर अध्ययन करने का दबाव डालने के बजाय हम उसे बता सकते हैं कि वह अध्ययन को मज़ेदार बनाने के लिए क्या कर सकता है। बाइबल से वह जितना ज़्यादा सीखेगा, उतना ही ज़्यादा वह भजनहार की तरह महसूस करेगा, जिसने कहा, “परमेश्वर के समीप रहना, यही मेरे लिये भला है; मैंने प्रभु यहोवा को अपना शरणस्थान माना है।” (भज. 73:28) यहोवा अपनी पवित्र शक्ति के ज़रिए उन लोगों की मदद ज़रूर करेगा जो उसके करीब आना चाहते हैं।

नए लोगों को प्रचार करने और सिखाने की तालीम दीजिए

7. यीशु ने राज की खुशखबरी का प्रचार करनेवालों को कैसे तालीम दी? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)

7 यीशु ने जिस तरह अपने चेलों को सिखाया, उससे हम बहुत कुछ सीख सकते हैं। यीशु उन्हें अपने साथ प्रचार में ले गया और चेले देख पाए कि वह लोगों को कैसे सिखाता है। उसने उन्हें साफ निर्देश भी दिए कि उन्हें कैसे प्रचार करना है। (मत्ती, अध्याय 10) [1] कुछ ही समय में, चेले यीशु से यह सीख गए कि उन्हें लोगों को सच्चाई कैसे सिखानी है। (मत्ती 11:1) हम नए लोगों को असरदार तरीके से गवाही देना कैसे सिखा सकते हैं? आइए इसके दो तरीकों पर गौर करें।

8, 9. (क) प्रचार में जब यीशु लोगों से अलग से मिलता था, तो वह उनके साथ कैसे पेश आता था? (ख) हम नए प्रचारकों की कैसे मदद कर सकते हैं ताकि वे लोगों से उस तरह बात करें, जैसे यीशु ने की?

8 लोगों से बातचीत कीजिए। यीशु न सिर्फ भीड़ को सिखाता था बल्कि लोगों को अलग से भी सिखाता था और उनसे दोस्त की तरह पेश आता था। मिसाल के लिए, सूखार शहर के पास कुँए से पानी निकालने आयी एक स्त्री से यीशु की काफी दिलचस्प बातचीत हुई। (यूह. 4:5-30) यीशु ने कर वसूलनेवाले मत्ती से भी बात की। वह यीशु का चेला बनने के लिए तैयार हो गया और उसने यीशु और दूसरे लोगों को अपने घर खाने पर बुलाया। वहाँ यीशु ने कई लोगों से बात की।—मत्ती 9:9; लूका 5:27-39.

9 एक और मौके पर, यीशु ने नतनएल से भी दोस्ताना अंदाज़ में बात की, जबकि उसने नासरत के लोगों के बारे में बुरा-भला कहा था। यीशु नासरत से ही था, लेकिन उसके दोस्ताना अंदाज़ की वजह से, नतनएल ने उसके बारे में अपनी राय बदल ली। (यूह. 1:46-51) यीशु के उदाहरण से हम सीखते हैं कि जब हम लोगों से प्यार से बात करते हैं, तो वे हमारी बात सुनने के लिए तैयार होंगे। [2] जब हम नए लोगों को इस तरह बात करना सिखाते हैं, तो इससे उन्हें प्रचार काम में और मज़ा आता है।

10-12. (क) खुशखबरी में लोगों ने जो दिलचस्पी दिखायी, उसे बढ़ाने के लिए यीशु ने क्या किया? (ख) बाइबल की सच्चाइयाँ सिखाने में अपना हुनर बढ़ाने के लिए हम नए प्रचारकों की मदद कैसे कर सकते हैं?

10 उन्हें सिखाइए जो सुनने के लिए तैयार हैं। यीशु बहुत व्यस्त रहता था। लेकिन जब लोग उसकी बात सुनना चाहते थे, तब उसने उनके साथ वक्‍त बिताया और उन्हें बहुत-सी बातें सिखायीं। मिसाल के लिए, एक दिन लोगों की भीड़ नदी किनारे यीशु की बातें सुनने के लिए इकट्ठा हुई। तो यीशु पतरस के साथ एक नाव पर बैठा और लोगों को सिखाने लगा। इसके बाद वह पतरस को भी एक ज़रूरी बात सिखाना चाहता था। उसने एक चमत्कार किया जिसकी वजह से पतरस बहुत सारी मछलियाँ पकड़ पाया। फिर उसने पतरस से कहा, “अब से तू जीते-जागते इंसानों को पकड़ा करेगा।” इसके बाद पतरस और उसके साथी फौरन “अपनी-अपनी नाव किनारे पर ले आए और सबकुछ छोड़कर” यीशु के पीछे हो लिए।—लूका 5:1-11.

11 नीकुदेमुस यीशु से और सीखना चाहता था। लेकिन नीकुदेमुस महा-सभा का एक सदस्य था। इसलिए वह इस बात से डरता था कि अगर लोगों ने उसे यीशु से बात करते देखा तो वे क्या कहेंगे। इस वजह से वह यीशु से मिलने रात में गया। यीशु ने उसे वापस नहीं भेजा बल्कि उसके साथ समय बिताया और उसे ज़रूरी सच्चाइयाँ सिखायीं। (यूह. 3:1, 2) यीशु ने हमेशा लोगों को सिखाने और उनका विश्वास मज़बूत करने के लिए वक्‍त निकाला। उसी तरह, हमें भी लोगों को उस समय मिलने के लिए तैयार रहना चाहिए जब उन्हें ठीक लगे। और उन्हें बाइबल की शिक्षाएँ समझाने के लिए हमें उनके साथ समय बिताना चाहिए।

12 नए लोगों के साथ प्रचार करते वक्‍त उन्हें सिखाइए कि वे दिलचस्पी दिखानेवाले लोगों से दोबारा मिलकर क्या कह सकते हैं। हम नए लोगों को अपनी वापसी भेंट और बाइबल अध्ययन पर भी ले जा सकते हैं। इससे वे जान पाएँगे कि दूसरों को कैसे सिखाना है और यहोवा के बारे में लोगों को सच्चाई सिखाने से कितनी खुशी मिलती है। इससे उन्हें भी वापसी भेंट करने और बाइबल सिखाने में मज़ा आएगा। साथ ही, दोबारा जाने पर जब लोग घर पर नहीं मिलते तब वे धीरज रखना सीखेंगे और हार नहीं मानेंगे।—गला. 5:22; “ उसने हार नहीं मानी” बक्स देखिए।

नए लोगों को भाई-बहनों की सेवा करना सिखाइए

13, 14. (क) बाइबल में दी उन लोगों की मिसाल के बारे में आप क्या सोचते हैं जिन्होंने दूसरों की खातिर बड़े-बड़े बलिदान किए? (ख) आप किन व्यवहारिक तरीकों से नए प्रचारकों को और जवानों को भाई-बहनों से प्यार करना सिखा सकते हैं?

13 यहोवा चाहता है कि उसके सेवक एक-दूसरे से भाई-बहनों की तरह प्यार करें और एक-दूसरे की सेवा करें। (1 पतरस 1:22; लूका 22:24-27 पढ़िए।) यीशु ने दूसरों की मदद करने के लिए अपना सबकुछ दे दिया, यहाँ तक कि अपनी जान भी। (मत्ती 20:28) दोरकास “बहुत-से भले काम करती और दान दिया करती थी।” (प्रेषि. 9:36, 39) मरियम, रोम की मंडली के भाई-बहनों के लिए “बहुत मेहनत” करती थी। (रोमि. 16:6) हम नए लोगों को यह कैसे समझा सकते हैं कि भाई-बहनों के लिए भले काम करना कितना ज़रूरी है?

नए लोगों को भाइयों से प्यार करना और उनकी सेवा करना सिखाइए (पैराग्राफ 13, 14 देखिए)

14 जब हम बुज़ुर्ग या बीमार भाई-बहनों से मिलने जाते हैं, तो हम नए लोगों को भी अपने साथ ले जा सकते हैं। जब माता-पिता ऐसे भाई-बहनों को मिलने जाते हैं तो अगर मुमकिन हो तो वे अपने बच्चों को भी साथ ले जा सकते हैं। जब बुज़ुर्गों के लिए खाने का इंतज़ाम करना होता है या उनके घर में कोई मरम्मत का काम करना होता है तब प्राचीन, जवानों को या नए लोगों को अपने साथ ले जा सकते हैं। जब जवान और नए लोग यह देखेंगे कि भाई-बहन एक-दूसरे की कितनी देखभाल करते हैं, तब वे भी ऐसा ही करना सीखेंगे। मिसाल के लिए, जब एक प्राचीन दूर-दराज़ के इलाकों में प्रचार करने जाता था तो अकसर वहाँ के भाई-बहनों से मिलकर उनका हाल-चाल भी पूछता था। एक जवान भाई भी उनके साथ जाता था। प्राचीन की अच्छी मिसाल देखकर उसने भी अपने भाई-बहनों की मदद करने के बारे में सोचा।—रोमि. 12:10.

15. यह क्यों ज़रूरी है कि प्राचीन मंडली में भाइयों की तरक्की में दिलचस्पी लें?

15 यहोवा ने भाइयों को मंडली में परमेश्वर के वचन से सिखाने की ज़िम्मेदारी दी है। इसलिए भाषण देते वक्‍त, भाइयों को अपने सिखाने के तरीके पर और ध्यान देना चाहिए। जब एक सहायक सेवक अपने भाषण की तैयारी करता है, तो प्राचीन ध्यान से सुन सकता है और बता सकता है कि उसे कहाँ सुधार करना है।—नहे. 8:8. [3]

16, 17. (क) पौलुस ने तीमुथियुस की तरक्की में कैसे दिलचस्पी दिखायी? (ख) आगे चलकर जो मंडली के चरवाहे बनेंगे, उन्हें प्राचीन कैसे असरदार तरीके से तालीम दे सकते हैं?

16 ज़्यादा-से-ज़्यादा भाइयों को मंडली में चरवाहे बनने की तालीम देना ज़रूरी है। पौलुस ने तीमुथियुस को तालीम दी और उसे बढ़ावा दिया कि वह दूसरों को सिखाए। पौलुस ने कहा, “मसीह यीशु के साथ एकता में होने से जो महा-कृपा मिलती है, तू उसी में बने रहकर शक्ति हासिल करता जा। और जो बातें तू ने मुझसे सुनी हैं और जिसकी बहुतों ने गवाही दी है, वे बातें विश्वासयोग्य पुरुषों को सौंप दे ताकि वे बदले में दूसरों को सिखाने के लिए ज़रूरत के हिसाब से योग्य बनें।” (2 तीमु. 2:1, 2) पौलुस एक प्राचीन और प्रेषित था और तीमुथियुस ने उससे बहुत कुछ सीखा, जैसे असरदार तरीके से प्रचार कैसे करें और मंडली में दूसरों की मदद कैसे करें।—2 तीमु. 3:10-12.

17 पौलुस ने तीमुथियुस के साथ काफी समय बिताया क्योंकि वह चाहता था कि उसे अच्छी तालीम मिले। (प्रेषि. 16:1-5) प्राचीन भी पौलुस की मिसाल पर चलते हुए, काबिल सहायक सेवकों को कुछ चरवाही भेंट पर ले जा सकते हैं। इससे सहायक सेवक प्राचीनों से सीख पाएँगे कि वे दूसरों को कैसे सिखा सकते हैं, कैसे सब्र रख सकते हैं, प्यार से पेश आ सकते हैं और झुंड की देखभाल करते वक्‍त कैसे यहोवा पर निर्भर रह सकते हैं।—1 पत. 5:2.

सिखाना ज़रूरी है

18. यहोवा की सेवा में दूसरों को सिखाना हमारे लिए क्यों ज़रूरी है?

18 अंत के समय में, यह ज़रूरी हो गया है कि हम नए लोगों को प्रचार में अपना हुनर बढ़ाना सिखाएँ। इसके अलावा, ज़्यादा भाइयों को सिखाने की ज़रूरत है, ताकि वे मंडली का खयाल रख सकें। यहोवा चाहता है कि उसके सभी सेवकों को अच्छी तालीम मिले और उसने हमें यह सम्मान दिया है कि हम नए लोगों की मदद करें। यह ज़रूरी है कि हम दूसरों को सिखाने में मेहनत करें, ठीक जैसे यीशु और पौलुस ने की थी। हमसे जितना हो सके, हमें उतने लोगों को सिखाने की कोशिश करनी चाहिए क्योंकि अंत आने से पहले हमारे पास प्रचार में करने के लिए बहुत काम है।

19. आप क्यों यकीन रख सकते हैं कि दूसरों को सिखाने के लिए आप जो कड़ी मेहनत करते हैं वह ज़रूर रंग लाएगी?

19 नए लोगों को सिखाने के लिए वक्‍त चाहिए और मेहनत लगती है। लेकिन हम यकीन रख सकते हैं कि यहोवा और यीशु, दूसरों को अच्छी तालीम देने में हमारी मदद करेंगे। जिन लोगों को हमने तालीम दी है, उन्हें मंडली में और प्रचार काम में “कड़ी मेहनत करते हुए संघर्ष” करता देखकर हमें कितनी खुश मिलेगी (1 तीमु. 4:10) इसके साथ-साथ हमें सच्चाई में तरक्की करने की पूरी कोशिश करनी चाहिए, मसीह के जैसे गुण बढ़ाते जाना चाहिए और यहोवा के करीब आते जाना चाहिए।

^ [1] (पैराग्राफ 7) उदाहरण के लिए, यीशु ने चेलों को बताया कि (1) वे राज का प्रचार करें; (2) खाने और कपड़े के लिए यहोवा पर निर्भर रहें; (3) लोगों के साथ बहस न करें; (4) जब लोग उनका विरोध करते हैं, तो यहोवा पर भरोसा रखें; और (5) इस बात की चिंता न करें कि उनके साथ क्या होगा।

^ [2] (पैराग्राफ 9) हमें प्रचार में लोगों से कैसे बात करनी चाहिए, इस बारे में परमेश्वर की सेवा स्कूल से फायदा उठाइए किताब के पेज 62-64 में कारगर सुझाव दिए गए हैं।

^ [3] (पैराग्राफ 15) भाई जिस तरह मंडली में अपना भाषण पेश करते हैं, उसमें वे कैसे सुधार कर सकते हैं, इस बारे में परमेश्वर की सेवा स्कूल से फायदा उठाइए किताब के पेज 52-61 में समझाया गया है।