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शायद 1920 में, योहानस राऊथे प्रचार काम में हिस्सा लेते हुए

अतीत के झरोखे से

“मुझे प्रचार में अच्छे नतीजे मिल रहे हैं, जिनसे यहोवा की महिमा हो रही है”

“मुझे प्रचार में अच्छे नतीजे मिल रहे हैं, जिनसे यहोवा की महिमा हो रही है”

एक सितंबर, 1915 की प्रहरीदुर्ग (अँग्रेज़ी) में पहले विश्व युद्ध के बारे में कुछ ऐसा बताया गया था, “बीते ज़माने के सभी युद्ध . . . यूरोप में हो रहे महा-युद्ध के सामने फीके पड़ जाते हैं।” इस युद्ध में करीब 30 देश शामिल थे। प्रहरीदुर्ग में यह भी बताया गया था कि युद्ध का माहौल होने की वजह से, “[राज के] कामों में कुछ हद तक रुकावट आयी है, खासकर जर्मनी और फ्राँस में।”

दुनिया-भर में बढ़ रहे लड़ाई-झगड़ों का सामना करनेवाले बाइबल विद्यार्थी पूरी तरह नहीं समझ पाए कि वे इन मामलों में निष्पक्ष कैसे रह सकते हैं। फिर भी उन्होंने खुशखबरी का ऐलान करने की ठान ली थी। विलहेल्म हिल्डेब्रांट, राज के कामों में अपना भरसक करना चाहता था, इसलिए उसने फ्रेंच भाषा में द बाइबल स्टूडेन्टस मँथली नाम की पत्रिका मँगवायीं। वह फ्राँस में एक कॉलपोर्टर (पूरे समय के प्रचारक) के तौर पर नहीं आया था, बल्कि जर्मनी के एक सैनिक के तौर पर आया था। यह भाई वहाँ से गुज़र रहे लोगों को शांति का संदेश सुना रहा था हालाँकि उसने दुश्मनों की सेना की वर्दी पहनी हुई थी। लोग उसे देखकर बहुत हैरान थे।

प्रहरीदुर्ग में छपे खतों से पता चलता है कि जर्मनी के और भी कई बाइबल विद्यार्थियों को लगा कि सेना में रहते हुए भी उन्हें खुशखबरी सुनानी चाहिए। भाई लैमके नौसेना में थे और उनके साथ काम करनेवाले पाँच लोगों ने खुशखबरी में दिलचस्पी ली थी। उन्होंने लिखा, “इस जहाज़ पर भी, मुझे प्रचार में अच्छे नतीजे मिल रहे हैं, जिनसे यहोवा की महिमा हो रही है।”

गेऑर्ग काइज़र गया था एक सैनिक बनकर मगर लौटा सच्चे परमेश्वर का एक सेवक बनकर। यह कैसे हुआ? उसे कहीं से बाइबल विद्यार्थियों की एक पत्रिका मिली। उसमें दी राज की सच्चाई उसके दिल को छू गयी और उसने युद्ध में हिस्सा लेना बंद कर दिया। वह ऐसा काम करने लगा जिसमें उसे हथियार न उठाना पड़े। युद्ध के बाद उसने कई साल जोश से पायनियर सेवा की।

बाइबल विद्यार्थियों को निष्पक्ष रहने के बारे में पूरी समझ नहीं थी फिर भी उनका रवैया और व्यवहार उन लोगों से बिलकुल अलग था, जो युद्ध का समर्थन करते थे। एक तरफ नेता और चर्च के पादरी युद्ध का समर्थन करते थे जबकि बाइबल विद्यार्थियों ने ‘शान्ति के राजकुमार’ का साथ दिया। (यशा. 9:6) कुछ मसीही, निष्पक्षता के मामले में पूरी तरह खरे नहीं उतरे। फिर भी उन्होंने बाइबल की उस अहम शिक्षा पर चलना नहीं छोड़ा जिसके बारे में भाई कॉनराड म्योर्टर ने कहा, “मैं परमेश्वर के वचन से यह साफ देख पाया कि एक मसीही को खून नहीं करना चाहिए।”—निर्ग. 20:13. *

हाँस हयोल्तेर्होफ ने इस हाथ गाड़ी के ज़रिए द गोल्डन एज का ऐलान किया

जर्मनी के कानून में अपने विश्वास की वजह से युद्ध में लड़ने से छूट पाने का कोई इंतज़ाम नहीं था। बीस से भी ज़्यादा बाइबल विद्यार्थियों ने लड़ाई में हिस्सा लेने से बिलकुल मना कर दिया। इस वजह से उनमें से कुछ लोगों को कहा गया कि वे मानसिक तौर पर बीमार हैं और उन्हें पागलखाने भेज दिया गया। भाई गुस्ताव कुयाथ के साथ ऐसा ही हुआ था। उन्हें दवाइयाँ देकर बेहोशी के हालत में छोड़ दिया गया था। हाँस हयोल्तेर्होफ ने भी सेना में भर्ती होने से मना कर दिया जिस वजह से उन्हें जेल में डाल दिया गया। वहाँ उन्होंने युद्ध से जुड़े किसी भी काम में हिस्सा नहीं लिया। नतीजा, सैनिकों ने उन्हें एक जैकिट पहनायी और उसमें कसकर बाँध दिया, जिससे उनके हाथ-पैर नम हो गए। इतना होने पर भी जब वे अपने विश्वास पर बने रहे, तो सैनिकों ने उन्हें मारने का झूठ-मूठ का नाटक किया। मगर हाँस युद्ध के दौरान वफादार बने रहे।

जिन भाइयों को सेना में भरती होने के लिए बुलाया गया, उन्होंने हथियार उठाने से साफ इनकार कर दिया और यह गुज़ारिश की कि उन्हें ऐसे काम दिए जाएँ जिनमें उन्हें लड़ाई न करनी पड़े। * योहानस राऊथे ने भी कुछ ऐसा ही किया और उसे रेलवे में काम करने के लिए भेज दिया गया। कॉनराड म्योर्टर को अस्पताल में कुछ काम दिया गया और राइनहोल्ड वेबर ने नर्स का काम किया। आउगुस्त क्राफसिग खुश था कि उसे ऐसा काम मिला जिसमें उसे लड़ाई नहीं करनी पड़ेगी। इन बाइबल विद्यार्थियों ने और इन्हीं की तरह दूसरों ने, प्यार और वफादारी के बारे में उनकी जो समझ थी, उसके आधार पर ठान लिया था कि वे यहोवा की सेवा करते रहेंगे।

युद्ध में निष्पक्ष रहने की वजह से बाइबल विद्यार्थी सरकारी अधिकारियों की नज़र में आ गए। आनेवाले सालों में, जर्मनी के साक्षियों को प्रचार काम की वजह से अदालत में हज़ारों मुकद्दमे लड़ने पड़े। उनकी मदद करने के लिए जर्मनी के शाखा दफ्तर ने माग्डेबुर्ग में स्थित बेथेल में एक कानून विभाग बनाया।

यहोवा के साक्षी मसीही निष्पक्षता के बारे में अपनी समझ और बढ़ाते गए। जब दूसरा विश्व युद्ध शुरू हुआ, तो उन्होंने युद्ध या उससे जुड़े किसी भी काम में हिस्सा नहीं लिया और इस तरह अपनी निष्पक्षता बनाए रखी। इसलिए उन्हें जर्मनी के दुश्मन माना गया और उन पर बहुत ज़ुल्म ढाए गए। लेकिन इसके बारे में हम आगे आनेवाले “अतीत के झरोखे से” लेख में सीखेंगे।—मध्य यूरोप के अतीत के झरोखे से।

^ पैरा. 7 पहले विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटेन में रहनेवाले बाइबल विद्यार्थियों के बारे में 15 मई, 2013 की प्रहरीदुर्ग में दिया लेख “अतीत के झरोखे से—वे ‘परीक्षा की घड़ी’ में दृढ़ खड़े रहे” देखिए।

^ पैरा. 9 मिलेनियल डॉन नाम की किताब (1904) के छठे खंड और अगस्त 1906 की ज़ायन्स वॉच टावर में दिए सुझाव पढ़कर उन्होंने यह फैसला लिया। सितंबर 1915 की द वॉच टावर से हम और अच्छी तरह समझ पाए कि बाइबल विद्यार्थियों को सेना में भर्ती नहीं होना चाहिए। मगर यह लेख जर्मनी के लिए तैयार की गयी पत्रिका में नहीं डाला गया था।