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अध्ययन लेख 32

तुम्हारा प्यार बढ़ता जाए

तुम्हारा प्यार बढ़ता जाए

“मैं यही प्रार्थना करता रहता हूँ कि . . . तुम्हारा प्यार और भी बढ़ता जाए।”—फिलि. 1:9.

गीत 106 प्यार का गुण बढ़ाएँ

लेख की एक झलक *

1. फिलिप्पी की मंडली को शुरू करने में किनका हाथ था?

प्रेषित पौलुस, सीलास, लूका और तीमुथियुस रोमी बस्ती फिलिप्पी में प्रचार करने आए। वहाँ उन्होंने देखा कि कई लोग खुशखबरी सुनना चाहते हैं। इन जोशीले भाइयों ने वहाँ एक मंडली की शुरूआत की और नए चेले सभा के लिए इकट्ठा होने लगे। शायद वे लुदिया नाम की बहन के घर पर मिलते थे, जो भाइयों की खूब मेहमान-नवाज़ी करती थी।—प्रेषि. 16:40.

2. जल्द ही फिलिप्पी की मंडली को किस मुश्‍किल का सामना करना पड़ा?

2 जल्द ही इस नयी मंडली को एक मुश्‍किल का सामना करना पड़ा। शैतान ने सच्चाई के दुश्‍मनों को पौलुस और उसके साथियों के खिलाफ भड़काया। दुश्‍मनों ने उनका प्रचार काम बंद करने की कोशिश की। पौलुस और सीलास को गिरफ्तार कर लिया गया, उन्हें बेंतों से पीटा गया और फिर जेल में डाल दिया गया। जब वे रिहा हुए, तो वे नए चेलों से मिलने गए और उनका हौसला बढ़ाया। इसके बाद पौलुस, सीलास और तीमुथियुस शहर से चले गए, मगर ऐसा मालूम होता है कि लूका वहीं रुक गया। अब ये नए भाई-बहन क्या करते? यहोवा की पवित्र शक्‍ति की मदद से वे जोश से उसकी सेवा करते रहे। (फिलि. 2:12) पौलुस को उन पर बहुत नाज़ हुआ होगा!

3. जैसे फिलिप्पियों 1:9-11 में बताया गया है, पौलुस ने किन बातों के बारे में प्रार्थना की?

3 इस घटना के करीब दस साल बाद पौलुस ने फिलिप्पी की मंडली को एक खत लिखा। उस खत से आप तुरंत समझ जाएँगे कि पौलुस वहाँ के भाइयों से बहुत प्यार करता था। उसने लिखा, “मैं तुम सबसे मिलने के लिए कितना तरस रहा हूँ, क्योंकि मैं तुमसे वैसा ही गहरा लगाव रखता हूँ जैसा मसीह यीशु रखता है।” (फिलि. 1:8) पौलुस ने उन्हें बताया कि वह उनके लिए प्रार्थना कर रहा है। यहोवा से उसकी यही बिनती थी कि उन भाइयों का प्यार बढ़ता जाए, वे पहचान सकें कि ज़्यादा अहमियत रखनेवाली बातें क्या हैं, उनमें कोई खामी न हो, वे दूसरों को ठोकर न खिलाएँ और नेकी के फल पैदा करते जाएँ। बेशक पौलुस के शब्दों से आज हमें भी फायदा हो सकता है। आइए पढ़ें कि उसने फिलिप्पी के मसीहियों से क्या कहा। (फिलिप्पियों 1:9-11 पढ़िए।) पौलुस ने जो बातें बतायीं, उन पर हम एक-एक करके चर्चा करेंगे और देखेंगे कि हम उन्हें अपनी ज़िंदगी में कैसे लागू कर सकते हैं।

तुम्हारा प्यार बढ़ता जाए

4. (क) 1 यूहन्‍ना 4:9, 10 के मुताबिक यहोवा ने अपने प्यार का सबूत कैसे दिया? (ख) हमें उससे कितना प्यार करना चाहिए?

4 यहोवा ने अपने बेटे को धरती पर भेजा, ताकि वह हमारे पापों के लिए अपनी जान दे। ऐसा करके यहोवा ने अपने महान प्यार का सबूत दिया। (1 यूहन्‍ना 4:9, 10 पढ़िए।) परमेश्‍वर का निस्वार्थ प्यार हमें उभारता है कि हम भी उससे प्यार करें। (रोमि. 5:8) लेकिन सवाल है कि हमें उससे कितना प्यार करना चाहिए? एक फरीसी से बात करते वक्‍त यीशु ने इसका जवाब दिया। उसने कहा, “तुम अपने परमेश्‍वर यहोवा से अपने पूरे दिल, अपनी पूरी जान और अपने पूरे दिमाग से प्यार करना।” (मत्ती 22:36, 37) हम कभी नहीं चाहेंगे कि हम आधे-अधूरे मन से यहोवा से प्यार करें। इसके बजाय हम चाहते हैं कि उसके लिए हमारा प्यार दिन-ब-दिन गहरा होता जाए। यही बात पौलुस ने फिलिप्पी के भाइयों से कही थी, “तुम्हारा प्यार और भी बढ़ता जाए।” हम ऐसा क्या कर सकते हैं, ताकि परमेश्‍वर के लिए हमारा प्यार गहरा होता जाए?

5. परमेश्‍वर के लिए हमारा प्यार कैसे गहरा हो सकता है?

5 परमेश्‍वर से प्यार करने के लिए ज़रूरी है कि हम उसे अच्छी तरह जानें। बाइबल बताती है, “जो प्यार नहीं करता उसने परमेश्‍वर को नहीं जाना क्योंकि परमेश्‍वर प्यार है।” (1 यूह. 4:8) प्रेषित पौलुस ने समझाया कि यहोवा के बारे में “सही ज्ञान और पैनी समझ” हासिल करने से उसके लिए हमारा प्यार गहरा होता है। (फिलि. 1:9) जब हमने बाइबल का अध्ययन करना शुरू किया, तो हमें परमेश्‍वर के लाजवाब गुणों की थोड़ी-बहुत समझ मिली और उसकी वजह से हम परमेश्‍वर से प्यार करने लगे। लेकिन जैसे-जैसे हम यहोवा को और जानने लगे, उसके लिए हमारा प्यार बढ़ता गया। इसीलिए यह कितना ज़रूरी है कि हम नियमित तौर पर बाइबल का अध्ययन करें और मनन करें!—फिलि. 2:16.

6. पहला यूहन्‍ना 4:11, 20, 21 के मुताबिक हमें परमेश्‍वर के अलावा और किससे प्यार करना चाहिए?

6 परमेश्‍वर का महान प्यार हमें उभारता है कि हम अपने भाई-बहनों से भी प्यार करें। (1 यूहन्‍ना 4:11, 20, 21 पढ़िए।) शायद हम सोचें, यह तो कोई बड़ी बात नहीं है, आखिर हम सब यहोवा की उपासना करते हैं और उसके जैसे गुण बढ़ाने की कोशिश करते हैं। हम यीशु की मिसाल पर चलते हैं, जिसने हमसे इतना प्यार किया कि अपनी जान तक कुरबान कर दी। मगर कभी-कभी शायद हमें एक-दूसरे से प्यार करना बहुत मुश्‍किल लगे। ज़रा फिलिप्पी मंडली के ही एक उदाहरण पर ध्यान दीजिए।

7. यूओदिया और सुन्तुखे को पौलुस ने जो सलाह दी, उससे हम क्या सीखते हैं?

7 यूओदिया और सुन्तुखे बहुत जोशीली मसीही बहनें थीं और उन्होंने प्रेषित पौलुस के साथ “कंधे-से-कंधा मिलाकर” सेवा की थी। फिर भी शायद किसी बात को लेकर उन दोनों में अनबन हो गयी और उनका रिश्‍ता पहले जैसा नहीं रहा। पौलुस ने वहाँ की मंडली को खत लिखते वक्‍त खासकर यूओदिया और सुन्तुखे का ज़िक्र किया और उनसे साफ-साफ कहा कि वे “एक जैसी सोच रखें” यानी आपस में एकता बनाए रखें। (फिलि. 4:2, 3) पौलुस ने पूरी मंडली को भी यह हिदायत देना ज़रूरी समझा, “सब काम बिना कुड़कुड़ाए और बिना बहस के करते रहो।” (फिलि. 2:14) पौलुस ने उन बहनों को जो साफ-साफ सलाह दी, उससे न सिर्फ उन दोनों को, बल्कि पूरी मंडली को फायदा हुआ होगा। उनके बीच प्यार का बंधन ज़रूर मज़बूत हुआ होगा।

हमें अपने भाइयों की अच्छाइयों पर क्यों ध्यान देना चाहिए? (पैराग्राफ 8 देखें) *

8. (क) भाई-बहनों से प्यार करना खासकर क्यों मुश्‍किल हो सकता है? (ख) हम इस रुकावट को कैसे पार कर सकते हैं?

8 हो सकता है कि कभी-कभी दूसरों से प्यार करना हमारे लिए बहुत मुश्‍किल हो। शायद इसकी एक बड़ी वजह यह हो कि हम उनकी कमियों पर बहुत ध्यान देते हों, जैसे यूओदिया और सुन्तुखे ने किया था। हम सब हर दिन गलतियाँ करते हैं। अगर हम दूसरों की कमियों पर ही ध्यान देते रहें, तो उनके लिए हमारा प्यार धीरे-धीरे ठंडा पड़ जाएगा। उदाहरण के लिए, अगर कोई भाई राज-घर की सफाई में हाथ बँटाने के बजाय कुछ और करने में लग जाए, तो शायद हम उससे चिढ़ने लगें। फिर उसने जो-जो गलतियाँ की हैं, उन सबके बारे में अगर हम सोचने लगें, तो हम और भी ज़्यादा उससे चिढ़ने लगेंगे और उसके लिए हमारा प्यार बिलकुल कम हो जाएगा। अगर कभी हमारे साथ ऐसा होता है, तो हमें एक अहम सच्चाई याद रखनी चाहिए। वह यह कि यहोवा हमारी कमियाँ देखता है और हमारे भाइयों की भी, फिर भी वह हमसे और हमारे भाइयों से प्यार करता है। क्या हमें भी यहोवा की मिसाल पर नहीं चलना चाहिए? क्या हमें लगातार भाई-बहनों की अच्छाइयों पर ध्यान नहीं देना चाहिए? जब हम भाई-बहनों से प्यार करने की पूरी-पूरी कोशिश करते हैं, तो हमारे बीच एकता का बंधन मज़बूत होता है।—फिलि. 2:1, 2.

“ज़्यादा अहमियत रखनेवाली बातें”

9. ‘ज़्यादा अहमियत रखनेवाली बातों’ में क्या शामिल है?

9 यहोवा ने पवित्र शक्‍ति के ज़रिए पौलुस को निर्देश दिया कि वह फिलिप्पी के मसीहियों को यह हिदायत दे: “तुम पहचान सको कि ज़्यादा अहमियत रखनेवाली बातें क्या हैं।”  (फिलि. 1:10) आज हमें भी यह हिदायत माननी है। अहमियत रखनेवाली बातों में क्या शामिल है? इसमें यहोवा का नाम पवित्र किया जाना, उसका मकसद पूरा होना और मंडली में शांति और एकता होना शामिल है। (मत्ती 6:9, 10; यूह. 13:35) जब ये बातें हमारी ज़िंदगी में पहली जगह पर आती हैं, तो हम ज़ाहिर करते हैं कि हम यहोवा से प्यार करते हैं।

10. हमें ऐसा क्या करना चाहिए, ताकि यहोवा हमें इस नज़र से देखे मानो हममें कोई खामी न हो?

10 पौलुस ने यह भी कहा कि हमारे अंदर “कोई खामी न हो।”  इसका मतलब यह नहीं कि हमें यहोवा की तरह परिपूर्ण होना है। उसमें ज़रा भी खामी नहीं है, लेकिन यही बात हमारे बारे में नहीं कही जा सकती। फिर भी अगर हम अपने अंदर प्यार बढ़ाने की हर मुमकिन कोशिश करें और ज़्यादा अहमियत रखनेवाली बातों को पहचानें, तो यहोवा हमें इस नज़र से देखेगा मानो हममें कोई खामी न हो। प्यार बढ़ाने का एक तरीका यह है कि हम दूसरों के विश्‍वास में बाधा न बनें या उन्हें ठोकर न खिलाएँ।

11. यह क्यों बहुत ज़रूरी है कि हम दूसरों को ठोकर न खिलाएँ?

11 दूसरों को ठोकर न खिलाओ।  यह हिदायत दरअसल एक चेतावनी है। हम शायद सोचें, ‘हमारे किन कामों से दूसरों को ठोकर लग सकती है?’ मनोरंजन, पहनावे, यहाँ तक कि नौकरी के मामले में हम जो फैसले करते हैं, उनसे दूसरों को ठोकर लग सकती है। हमारे फैसले शायद अपने आप में गलत न हों। फिर भी अगर उनसे किसी मसीही के ज़मीर को ठेस लगती है और वह ठोकर खाता है या यहोवा के साथ उसका रिश्‍ता कमज़ोर हो जाता है, तो यह बहुत गंभीर बात है। यीशु ने कहा था कि जो किसी को ठोकर खिलाता है, उसके लिए तो यही अच्छा है कि उसके गले में भारी पत्थर लटकाकर उसे गहरे समुंदर में फेंक दिया जाए!—मत्ती 18:6.

12. एक पायनियर पति-पत्नी के अनुभव से हम क्या सीखते हैं?

12 ध्यान दीजिए कि एक पायनियर पति-पत्नी ने यीशु की यह चेतावनी कैसे गंभीरता से ली। उनकी मंडली में एक पति-पत्नी का हाल ही में बपतिस्मा हुआ था। ये पति-पत्नी ऐसे परिवार में पले-बढ़े थे, जहाँ कई बातों की छूट नहीं दी जाती थी। इस वजह से उन्हें लगता था कि मसीहियों को सिनेमा हॉल जाकर फिल्में नहीं देखनी चाहिए, अच्छी फिल्में भी नहीं। एक दिन उन्हें पता चला कि पायनियर सेवा करनेवाले पति-पत्नी फिल्म देखने गए थे। यह जानकर उन्हें बहुत बुरा लगा। उसके बाद से पायनियर पति-पत्नी काफी समय तक सिनेमा हॉल नहीं गए। इस बीच उस नए मसीही पति-पत्नी ने धीरे-धीरे अपना ज़मीर प्रशिक्षित किया और वे समझने लगे कि क्या सही है और क्या गलत। (इब्रा. 5:14) पायनियर पति-पत्नी ने अपनी इच्छाएँ पूरी करने के बजाय उनके बारे में सोचा। इस तरह उन्होंने सिर्फ बातों से नहीं, बल्कि कामों से दिखाया कि वे उस पति-पत्नी से सच में प्यार करते हैं।—रोमि. 14:19-21; 1 यूह. 3:18.

13. शायद हम और किस तरीके से दूसरों को ठोकर खिला सकते हैं?

13 हम शायद एक और तरीके से दूसरों को ठोकर खिला दें। हम शायद अनजाने में कुछ ऐसा कहें या करें, जिससे वे पाप कर बैठें। इसे समझने के लिए एक हालात पर ध्यान दीजिए। एक बाइबल विद्यार्थी काफी समय से शराब की लत छोड़ने की कोशिश कर रहा है। बहुत संघर्ष करने के बाद वह कामयाब होता है। उसे एहसास होता है कि फिर कभी शराब न पीने में ही उसकी भलाई है। वह अच्छी तरक्की करता है और बपतिस्मा लेता है। फिर एक दिन एक मसीही कुछ लोगों को अपने घर बुलाता है और इस नए भाई को भी न्यौता देता है। वह इस भाई के सामने शराब पेश करता है और उससे कहता है, “अब तुम मसीही बन गए हो। तुम पर यहोवा की पवित्र शक्‍ति है और पवित्र शक्‍ति का एक गुण है संयम। फिर चिंता किस बात की, तुम इसमें भी संयम रख लोगे।” सोचिए, अगर यह नया भाई वह गलत सलाह मान ले, तो कितने भयानक अंजाम हो सकते हैं!

14. फिलिप्पियों 1:10 में दी हिदायतें लागू करने में मसीही सभाएँ कैसे मदद करती हैं?

14 फिलिप्पियों 1:10 में जो हिदायतें दी गयी हैं, उन्हें अलग-अलग तरीके से लागू करने में मसीही सभाएँ हमारी काफी मदद करती हैं। पहला तरीका है, सभाओं में सीखी बेहतरीन बातों से हम समझ पाते हैं कि यहोवा के लिए कौन-सी बातें ज़्यादा अहमियत रखती हैं। दूसरा, वहाँ हमें बताया जाता है कि हम सीखी हुई बातें ज़िंदगी में कैसे लागू कर सकते हैं, ताकि हममें कोई खामी न हो। तीसरा, हमें “प्यार और भले काम करने” का बढ़ावा मिलता है। (इब्रा. 10:24, 25) जितना ज़्यादा हमें भाई-बहनों से हौसला मिलता है, उतना ही यहोवा और भाई-बहनों के लिए हमारा प्यार बढ़ता है। जब इस प्यार से हमारा दिल उमड़ने लगता है, तो हम पूरी-पूरी कोशिश करते हैं कि हम भाई-बहनों को ठोकर न खिलाएँ।

“नेकी के फलों से लद जाओ”

15. “नेकी के फलों से लद” जाने का क्या मतलब है?

15 पौलुस ने दिल से प्रार्थना की कि फिलिप्पी के मसीही “नेकी के फलों से लद” जाएँ।  (फिलि. 1:11) इसमें कोई शक नहीं कि “नेकी के फलों” में यहोवा और उसके लोगों से प्यार करना शामिल है। इसमें यह भी शामिल है कि वे यीशु पर अपने विश्‍वास के बारे में साथ ही, अपनी बेहतरीन आशा के बारे में दूसरों को बताएँ। फिलिप्पियों 2:15 में पौलुस ने एक और मिसाल दी। उसने फिलिप्पी के मसीहियों के बारे में कहा कि वे “इस दुनिया में रौशनी की तरह चमक रहे” हैं। यह मिसाल एकदम सही थी, क्योंकि यीशु ने अपने चेलों को “दुनिया की रौशनी” कहा था। (मत्ती 5:14-16) उसने अपने चेलों को यह भी आज्ञा दी, “लोगों को मेरा चेला बनना सिखाओ।” उसने उनके बारे में कहा कि वे “दुनिया के सबसे दूर के इलाकों में . . . गवाही” देंगे। (मत्ती 28:18-20; प्रेषि. 1:8) यह आज सबसे ज़रूरी काम है और जब हम इसमें पूरे जोश से हिस्सा लेते हैं, तो हम ‘नेकी के फल’ पैदा कर रहे होते हैं।

जब पौलुस रोम में एक घर में कैद था, तो उसने फिलिप्पी की मंडली को चिट्ठी लिखी। इसी दौरान मौके का फायदा उठाकर उसने सैनिकों और उससे मिलने आए लोगों को प्रचार किया (पैराग्राफ 16 देखें)

16. फिलिप्पियों 1:12-14 से कैसे पता चलता है कि हम मुश्‍किल हालात में भी रौशनी की तरह चमकते रह सकते हैं? (बाहर दी तसवीर देखें।)

16 हमारे हालात चाहे जैसे भी हों, हम रौशनी की तरह चमक सकते हैं। कुछ मामलों में जो बातें प्रचार के लिए रुकावट पैदा करती हैं, वही हमें खुशखबरी सुनाने का मौका दे सकती हैं। उदाहरण के लिए, जब प्रेषित पौलुस ने फिलिप्पी के मसीहियों को खत लिखा, तब वह रोम में एक घर में कैद था। लेकिन उसकी ज़ंजीरें उसे रोक नहीं पायीं। उसने पहरा देनेवाले सैनिकों और उन लोगों को गवाही दी, जो उससे मिलने आते थे। इन हालात में पौलुस ने जोश से प्रचार किया और उसकी मिसाल से भाइयों को काफी हौसला मिला, जिससे वे “बेधड़क होकर परमेश्‍वर का वचन” सुनाते रहे।—फिलिप्पियों 1:12-14 पढ़िए; 4:22.

हमेशा लोगों को गवाही देने के लिए तैयार रहिए (पैराग्राफ 17 देखें) *

17. आज हमारे भाई-बहन किस तरह मुश्‍किल हालात में भी लोगों को खुशखबरी सुनाते हैं? एक उदाहरण दीजिए।

17 हमारे बहुत-से भाई-बहन पौलुस की तरह हिम्मत से काम लेते हैं। वे ऐसे देश में रहते हैं, जहाँ वे खुलकर प्रचार नहीं कर सकते या घर-घर जाकर गवाही नहीं दे सकते। इस वजह से वे खुशखबरी सुनाने के दूसरे तरीके ढूँढ़ निकालते हैं। (मत्ती 10:16-20) ऐसे ही एक देश में सर्किट निगरान ने सुझाव दिया कि हर प्रचारक को अपना-अपना “प्रचार का इलाका” पूरा करना है यानी उसे अपने रिश्‍तेदारों, पड़ोसियों, स्कूल के साथियों, साथ काम करनेवालों और जान-पहचानवालों को गवाही देनी है। करीब दो साल के अंदर ही उस सर्किट में मंडलियों की गिनती काफी बढ़ गयी। शायद हम जिस देश में रहते हैं, वहाँ प्रचार करने पर कोई रोक-टोक न हो। फिर भी उन भाई-बहनों से हम एक अहम बात सीखते हैं: हमेशा लोगों को गवाही देने के लिए तैयार रहिए। अगर आप ऐसा करेंगे, तो यहोवा आपको हर रुकावट पार करने की ताकत देगा।—फिलि. 2:13.

18. हमें क्या करने की ठान लेना चाहिए?

18 आज हम बहुत नाज़ुक वक्‍त में जी रहे हैं। इस वजह से हमें ठान लेना चाहिए कि हम हर हाल में पौलुस की सलाह मानेंगे, जो उसने फिलिप्पी के मसीहियों को दी थी। आइए हम ज़्यादा अहमियत रखनेवाली बातों को पहचानें, ऐसा व्यवहार करें कि हममें कोई खामी न हो, कभी दूसरों को ठोकर न खिलाएँ और नेकी के फलों से लदे रहें। ऐसा करने से हमारा प्यार बढ़ता जाएगा और हम अपने प्यारे पिता यहोवा की महिमा कर पाएँगे।

गीत 17 मैं चाहता हूँ

^ पैरा. 5 आज पहले से कहीं ज़्यादा हमें भाई-बहनों के लिए प्यार बढ़ाना है। फिलिप्पी के मसीहियों को लिखे खत से हम समझ पाएँगे कि हम यह प्यार कैसे बढ़ा सकते हैं, तब भी जब ऐसा करना आसान न हो।

^ पैरा. 54 तसवीर के बारे में: राज-घर की सफाई हो रही है और जॉन सफाई छोड़कर एक दूसरे भाई और उसके बेटे से बात कर रहा है। एक और भाई माइक वैक्यूम क्लीनर से सफाई कर रहा है और वह जॉन को बातें करते देख चिढ़ जाता है। वह सोचता है, ‘जॉन को इस वक्‍त बात करने के बजाय काम करना चाहिए।’ बाद में माइक देखता है कि जॉन एक बुज़ुर्ग बहन की प्यार से मदद कर रहा है। यह देखकर माइक को एहसास होता है कि उसे जॉन के अच्छे गुणों पर ज़्यादा ध्यान देना चाहिए।

^ पैरा. 58 तसवीर के बारे में: एक देश में, जहाँ भाई-बहन खुलेआम प्रचार नहीं कर सकते, एक भाई अपने किसी जान-पहचानवाले से बात कर रहा है। वह लोगों का ध्यान खींचे बगैर उसे राज की खुशखबरी सुनाता है। बाद में वही भाई लंच के दौरान अपने साथ काम करनेवाले व्यक्‍ति को गवाही दे रहा है।