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अध्ययन लेख 31

“हम हार नहीं मानते”

“हम हार नहीं मानते”

“हम हार नहीं मानते।”—2 कुरिं. 4:16.

गीत 128 हमें अंत तक धीरज रखना है

लेख की एक झलक *

1. जीवन की दौड़ पूरी करने के लिए सबसे ज़रूरी क्या है?

सब मसीही जीवन की दौड़ में हिस्सा ले रहे हैं। हममें से कुछ लोगों ने शायद अभी दौड़ना शुरू किया है, तो कुछ सालों से ऐसा कर रहे हैं। हमने चाहे जब भी दौड़ना शुरू किया हो, सबसे ज़रूरी बात यह है कि हम तब तक दौड़ते रहें, जब तक कि हमारी दौड़ पूरी न हो जाए। प्रेषित पौलुस ने फिलिप्पी के मसीहियों को जो सलाह दी, उससे हमें अपनी दौड़ पूरी करने का बढ़ावा मिल सकता है। जब पौलुस ने वह सलाह दी, उस वक्‍त फिलिप्पी के कुछ मसीहियों को यहोवा की सेवा करते कई साल हो चुके थे। वे अच्छे से दौड़ रहे थे, लेकिन पौलुस ने उन्हें याद दिलाया कि उन्हें धीरज से दौड़ते रहना है। वह चाहता था कि भाई-बहन उसकी मिसाल पर चलें और अपने ‘लक्ष्य तक पहुँचने के लिए पुरज़ोर कोशिश करते रहें।’—फिलि. 3:14.

2. यह क्यों कहा जा सकता है कि फिलिप्पी के मसीहियों के लिए पौलुस की सलाह एकदम सही वक्‍त पर थी?

2 फिलिप्पी के मसीहियों के लिए पौलुस की सलाह एकदम सही वक्‍त पर थी। वह क्यों? दरअसल जब से फिलिप्पी मंडली की शुरूआत हुई, तभी से वहाँ के भाई विरोध का सामना कर रहे थे। ईसवी सन्‌ 50 की बात है, पौलुस और सीलास, यहोवा के कहने पर ‘इस पार मकिदुनिया आए’ और उन्होंने फिलिप्पी में गवाही दी। (प्रेषि. 16:9) वहाँ लुदिया नाम की एक औरत जब उनकी “बातें सुन रही थी, तो यहोवा ने उसके दिल के दरवाज़े पूरी तरह खोल दिए।” (प्रेषि. 16:14) लुदिया और उसके घराने ने बिना देर किए बपतिस्मा लिया। लेकिन शैतान चुप बैठनेवाला नहीं था, उसने तुरंत मुश्‍किलें खड़ी कर दीं। शहर के आदमियों ने पौलुस और सीलास को पकड़ लिया, उन्हें घसीटकर नगर-अधिकारियों के पास ले गए और उन पर झूठा इलज़ाम लगाया कि वे शहर में गड़बड़ी मचा रहे हैं। इस वजह से उन्हें बेंतों से पीटा गया, जेल में डाल दिया गया और बाद में शहर से निकल जाने के लिए कहा गया। (प्रेषि. 16:16-40) क्या इस घटना के बाद पौलुस और सीलास ने हार मान ली? बिलकुल नहीं! क्या फिलिप्पी में उस नयी मंडली के भाई-बहनों ने हार मान ली? नहीं, वे भी धीरज से यहोवा की सेवा करते रहे। इसमें कोई शक नहीं कि उन्हें पौलुस और सीलास की मिसाल से बहुत हिम्मत मिली होगी।

3. (क) पौलुस क्या जानता था? (ख) इस लेख में हम किन सवालों पर चर्चा करेंगे?

3 पौलुस ने ठान लिया था कि वह कभी हार नहीं मानेगा। (2 कुरिं. 4:16) लेकिन वह जानता था कि अगर उसे अपनी दौड़ पूरी करनी है, तो उसे अपना ध्यान लक्ष्य पर रखना होगा। पौलुस की मिसाल से हम क्या सीख सकते हैं? हमारे दिनों में वफादार लोगों के कौन-से उदाहरण हैं, जो दिखाते हैं कि हम किसी भी मुश्‍किल के बावजूद धीरज से यहोवा की सेवा कर सकते हैं? भविष्य के बारे में हमारी आशा किस तरह हमारा यह इरादा मज़बूत कर सकती है कि हम कभी हार न मानें? आइए इन सवालों पर गौर करें।

पौलुस की मिसाल से हम क्या सीखते हैं?

4. पौलुस कैसे मुश्‍किल हालात के बावजूद यहोवा की सेवा में लगा रहा?

4 ज़रा सोचिए, जब पौलुस ने फिलिप्पी के मसीहियों को खत लिखा, उस वक्‍त वह क्या-क्या कर रहा था। उसे रोम में एक घर में कैद करके रखा गया था, जिस वजह से वह खुलकर प्रचार नहीं कर सकता था। फिर भी पौलुस यहोवा की सेवा में लगा रहा। उससे मिलने जो भी आता था, उसे वह गवाही देता था और दूर-दूर की मंडलियों को चिट्ठियाँ लिखता था। आज भी कई मसीही मुश्‍किल हालात की वजह से घर से बाहर नहीं जा सकते। फिर भी वे प्रचार करने की हर मुमकिन कोशिश करते हैं। उनसे मिलने जो भी आता है, उसे वे खुशखबरी सुनाते हैं या वे उन लोगों को खत लिखकर गवाही देते हैं, जिनसे मिलना संभव नहीं है।

5. फिलिप्पियों 3:12-14 के मुताबिक पौलुस किस वजह से अपने लक्ष्य पर ध्यान लगाए रख पाया?

5 पौलुस ने बीते समय में बुरे काम भी किए थे और अच्छे काम भी। लेकिन इस वजह से उसने अपना ध्यान यहोवा की सेवा से भटकने नहीं दिया। दरअसल उसने कहा कि “जो बातें पीछे रह गयी हैं, उन्हें भूलकर” ही वह ‘उन बातों की तरफ बढ़ सकता है, जो आगे रखी हैं’ और इस तरह अपनी दौड़ पूरी कर सकता है। (फिलिप्पियों 3:12-14 पढ़िए।) ऐसी कौन-सी बातें हैं जो पौलुस का ध्यान भटका सकती थीं? पहली बात, पौलुस ने यहूदी धर्म में कई उपलब्धियाँ हासिल की थीं। लेकिन मसीही बनने के बाद वह इन्हें “ढेर सारा कूड़ा” समझता था। (फिलि. 3:3-8) दूसरी बात, उसे इस बात का बहुत अफसोस था कि उसने मसीहियों पर ज़ुल्म ढाए हैं। लेकिन इन भावनाओं की वजह से उसने यहोवा की सेवा करना नहीं छोड़ा। तीसरी बात, उसने यह नहीं सोचा, ‘मैंने यहोवा की सेवा में बहुत कुछ कर लिया है, अब मुझे और मेहनत करने की ज़रूरत नहीं है।’ पौलुस ने अपनी ज़िंदगी में कई मुश्‍किलों का सामना किया। जैसे, उसे जेल हुई, पीटा गया, पत्थरों से मारा गया, जिन जहाज़ों में वह सफर कर रहा था वे समुंदर में टूट गए, कई बार वह भूखे पेट रहा और उसने कपड़ों की कमी झेली। फिर भी वह प्रचार काम में लगा रहा और उसे अच्छे नतीजे मिले। (2 कुरिं. 11:23-27) लेकिन पौलुस जानता था कि भले ही उसने कई तकलीफें झेली हैं और उसे बहुत-से अच्छे नतीजे मिले हैं, मगर उसे अब भी यहोवा की सेवा में पुरज़ोर कोशिश करते रहना है। हमें भी ऐसा ही करना है।

6. ‘पीछे रह गयी कुछ बातें’ क्या हो सकती हैं, जिन्हें हमें भूलना है?

6 हम कैसे पौलुस की तरह ‘उन बातों को भूल सकते हैं जो पीछे रह गयी हैं?’ शायद हममें से कई लोग पिछले पापों की वजह से अब भी दोष की भावना से लड़ रहे हों। अगर ऐसा है, तो क्यों न हम मसीह के फिरौती बलिदान पर गहराई से अध्ययन करें? अगर हम हौसला बढ़ानेवाले इस विषय का अध्ययन करें, उस पर मनन करें और उस बारे में प्रार्थना करें, तो हमें दोष की भावना से काफी हद तक राहत मिलेगी। हम शायद उन पापों के लिए भी खुद को सज़ा देना बंद कर दें, जो यहोवा ने पहले ही माफ कर दिए हैं। आइए गौर करें कि हम पौलुस से और क्या सीख सकते हैं। हममें से कई लोग ऐसे हैं जो दुनिया में काफी नाम और दौलत कमा सकते थे। मगर राज के कामों को पहली जगह देने के लिए शायद हमने वह सब त्याग दिया हो। ऐसे में क्या हम बार-बार यह सोचते हैं कि हमने कितने बढ़िया मौके गँवा दिए? या फिर जो बातें हम पीछे छोड़ आए हैं, उन्हें भुलाने की कोशिश करते हैं? (गिन. 11:4-6; सभो. 7:10) इसके अलावा, अब तक हमने यहोवा की सेवा में जो अच्छे काम किए और धीरज से जिन परीक्षाओं का सामना किया, वह सब भी ‘पीछे रह गयी बातों’ में शामिल हो सकता है। यह सच है कि यहोवा ने हमें अब तक जो आशीषें दीं और सालों के दौरान उसने जिस तरह हमें सँभाला, उस बारे में सोचने से हम उसके करीब आते हैं। फिर भी हम कभी नहीं चाहेंगे कि हम इन्हीं बातों से संतुष्ट हो जाएँ या यह सोचें कि हमें जितना करना था, वह कर लिया।—1 कुरिं. 15:58.

जीवन की दौड़ में हमें ध्यान भटकानेवाली बातों से खबरदार रहना चाहिए और अपने लक्ष्य पर नज़र टिकाए रखना चाहिए (पैराग्राफ 7 देखें)

7. पहला कुरिंथियों 9:24-27 के मुताबिक जीवन की दौड़ जीतने के लिए क्या करना ज़रूरी है? उदाहरण देकर समझाइए।

7 एक बार यीशु ने कहा, “जी-तोड़ संघर्ष करो।” (लूका 13:23, 24) पौलुस यीशु के इन शब्दों का मतलब अच्छी तरह समझता था। वह जानता था कि मसीह की तरह उसे भी आखिरी साँस तक जी-तोड़ संघर्ष करते रहना है। इस वजह से उसने मसीहियों के जीवन की तुलना एक दौड़ से की। (1 कुरिंथियों 9:24-27 पढ़िए।) एक धावक अपना पूरा ध्यान दौड़ पूरी करने पर लगाता है, वह किसी भी बात से अपना ध्यान भटकने नहीं देता। मान लीजिए, कुछ धावक ऐसी सड़क पर दौड़ रहे हैं, जिसके दोनों तरफ बहुत सारी दुकानें हैं। क्या आपको लगता है कि कोई धावक थोड़ी देर रुककर दुकानों पर लगी चीज़ें देखेगा? अगर वह दौड़ जीतना चाहता है, तो ऐसा कभी नहीं करेगा! जीवन की दौड़ में हमें भी उन बातों से खबरदार रहना होगा, जो हमारा ध्यान भटका सकती हैं। अगर पौलुस की तरह हम अपना ध्यान दौड़ पूरी करने पर लगाए रखें और जी-तोड़ संघर्ष करें, तो हम ज़रूर इनाम पाएँगे!

मुश्‍किलें आने पर भी यहोवा की सेवा कैसे करें?

8. अब हम कौन-सी तीन मुश्‍किलों पर चर्चा करेंगे?

8 अब आइए ऐसी तीन मुश्‍किलों पर ध्यान दें, जिनकी वजह से हम जीवन की दौड़ में धीमे पड़ सकते हैं। पहली है, जब हमें लगे कि हमारी उम्मीदें पूरी होने में देर हो रही है; दूसरी, ढलती उम्र और तीसरी, लंबे समय तक रहनेवाली परीक्षाएँ। इन हालात का सामना दूसरों ने कैसे किया? इस बारे में जानने से हमें बहुत फायदा हो सकता है।—फिलि. 3:17.

9. जब उम्मीदें पूरी होने में देर होने लगे, तो इसका हम पर क्या असर हो सकता है?

9 जब उम्मीदें पूरी होने में देर होने लगे।  हम सब उन अच्छी बातों को सच होते देखना चाहते हैं, जिनका वादा यहोवा ने किया है। दरअसल भविष्यवक्‍ता हबक्कूक भी उस दिन की आस लगाए था, जब यहोवा यहूदा से दुष्टता को मिटा देता। मगर यहोवा ने उससे कहा कि वह उस वक्‍त का “इंतज़ार” करे। (हब. 2:3) जब हमें लगता है कि हमारी उम्मीदें पूरी होने में देर हो रही है, तो शायद हमारा जोश ठंडा पड़ने लगे, यहाँ तक कि हम निराश हो जाएँ। (नीति. 13:12) ऐसा ही कुछ 20वीं सदी की शुरूआत में हुआ था। बहुत-से अभिषिक्‍त मसीहियों को उम्मीद थी कि 1914 में वे स्वर्ग चले जाएँगे। लेकिन जब उन वफादार मसीहियों की उम्मीद उस वक्‍त पूरी नहीं हुई, तो उन्होंने क्या किया?

भाई रॉयल और बहन पर्ल की उम्मीदें 1914 में पूरी नहीं हुईं, फिर भी वे कई दशकों तक यहोवा की सेवा करते रहे (पैराग्राफ 10 देखें)

10. जब एक पति-पत्नी को लगा कि उनकी उम्मीदें पूरी होने में देर हो रही है, तो उन्होंने क्या किया?

10 ज़रा ऐसे दो वफादार मसीहियों पर गौर कीजिए, जिन्होंने निराश होने के बावजूद हार नहीं मानी। भाई रॉयल स्पाट्‌ज़ का बपतिस्मा 1908 में 20 साल की उम्र में हुआ था। उन्हें पूरा भरोसा था कि बहुत जल्द वे स्वर्ग जाएँगे। इसी वजह से 1911 में जब उन्होंने बहन पर्ल से शादी की बात की, तो उन्होंने कहा, “तुम अच्छी तरह जानती हो कि 1914 में क्या होनेवाला है, इसलिए अगर हम शादी करना चाहते हैं, तो हमें देर नहीं करनी चाहिए।” लेकिन जब 1914 में उनकी उम्मीद पूरी नहीं हुई, तो क्या उन्होंने जीवन की दौड़ में दौड़ना छोड़ दिया? जी नहीं, क्योंकि उनका पूरा ध्यान इनाम पाने पर नहीं, बल्कि वफादारी से परमेश्‍वर की मरज़ी पूरी करने पर था। उन्होंने ठान लिया था कि वे धीरज से दौड़ते रहेंगे और कई दशकों तक उन्होंने ऐसा ही किया। धरती पर अपनी मौत तक वे पूरे जोश और वफादारी से सेवा करते रहे। इसमें कोई शक नहीं कि आप भी यह देखने के लिए बेताब होंगे कि यहोवा का नाम और उसकी हुकूमत बुलंद की जाए और उसके सारे वादे पूरे हों। यकीन मानिए, ये सारी बातें यहोवा के तय समय पर पूरी होंगी। लेकिन तब तक आइए हम जी-जान से परमेश्‍वर की सेवा करते रहें और अगर हमें लगे कि हमारी उम्मीदें पूरी होने में देर हो रही है, तब भी हम धीमे न पड़ें।

उम्र ढलने पर भी भाई आर्थर सीकॉर्ड यहोवा की सेवा में जितना हो सकता था, उतना करना चाहते थे (पैराग्राफ 11 देखें)

11-12. ढलती उम्र के बावजूद हम जीवन की दौड़ में क्यों दौड़ते रह सकते हैं? एक उदाहरण दीजिए।

11 ढलती उम्र।  एक धावक के लिए ज़रूरी होता है कि उसका शरीर चुस्त और तंदुरुस्त रहे। लेकिन यह बात जीवन की दौड़ में लागू नहीं होती। देखा जाए तो कई भाई-बहनों की सेहत पहले जितनी अच्छी नहीं रही है, फिर भी यहोवा की सेवा में उनका जोश कम नहीं हुआ है। (2 कुरिं. 4:16) उदाहरण के लिए, भाई आर्थर सीकॉर्ड  * ने 55 साल तक बेथेल में सेवा की थी, मगर 88 साल के होते-होते उनकी सेहत काफी खराब हो गयी थी और उन्हें देखभाल की ज़रूरत थी। एक दिन जब बेथेल की एक नर्स उनकी देखरेख कर रही थी, तो उसने उनकी तरफ देखा और प्यार से कहा, “भाई सीकॉर्ड, आपने यहोवा की सेवा में बहुत कुछ किया है।” भाई आर्थर ने उसकी तरफ देखा और मुस्कुराकर कहा, “हाँ, वह तो है। लेकिन यहोवा की सेवा में हमने जो किया, उससे ज़्यादा यह बात मायने रखती है कि हम आज क्या कर रहे हैं।” इससे पता चलता है कि उनका ध्यान बीते दिनों पर नहीं था, वे अब भी यहोवा की सेवा में अपना भरसक करना चाहते थे।

12 शायद आपने कई सालों तक यहोवा की सेवा की हो, लेकिन अब खराब सेहत की वजह से उतना न कर पाते हों, जितना आप चाहते हैं। ऐसे में हिम्मत मत हारिए। यकीन मानिए, आपने वफादारी से जो सेवा की है, उसकी यहोवा बहुत कदर करता है। (इब्रा. 6:10) जहाँ तक आज की बात है, तो याद रखिए, यहोवा के लिए हमारा प्यार इस बात से नहीं आँका जाता कि हम उसकी सेवा में कितना कर रहे हैं, बल्कि इस बात से आँका जाता है कि हममें कैसा जज़्बा है और क्या हम वह सब कर रहे हैं, जो हमारे बस में है। (कुलु. 3:23) यहोवा हमारी सीमाएँ जानता है और हम जितना कर सकते हैं, उससे ज़्यादा की उम्मीद नहीं करता।—मर. 12:43, 44.

भाई और बहन मेलनिक कई परीक्षाओं का सामना करने पर भी वफादार रहे (पैराग्राफ 13 देखें)

13. (क) भाई आनाटॉलये और बहन लीडीया के साथ क्या हुआ? (ख) उनके अनुभव से हमें किस बात का बढ़ावा मिलता है?

13 लंबे समय तक रहनेवाली परीक्षाएँ।  कुछ साक्षियों ने सालों तक ज़ुल्म और परीक्षाओं का धीरज से सामना किया है। मौलदोवा में रहनेवाले भाई आनाटॉलये मेलनिक * का उदाहरण लीजिए। जब वे 12 साल के थे, तभी उनके पिता को गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया गया। फिर उन्हें अपने परिवार से अलग कर दिया गया। उन्हें देश निकाला देकर करीब 7,000 किलोमीटर दूर साइबेरिया भेज दिया गया। इसके एक साल बाद भाई आनाटॉलये, उनकी माँ और उनके नाना-नानी को भी साइबेरिया भेज दिया गया। कुछ समय बाद वहाँ उन्हें एक दूसरे गाँव में सभाओं में जाने का मौका मिला। इसके लिए उन्हें कड़ाके की ठंड और बर्फ में 30 किलोमीटर पैदल चलकर जाना होता था। फिर सालों बाद भाई आनाटॉलये को अपनी पत्नी लीडीया और एक साल की बेटी से दूर कर दिया गया, क्योंकि उन्हें तीन साल जेल की सज़ा काटनी पड़ी। इतने सालों तक परीक्षाओं का सामना करने के बाद भी भाई आनाटॉलये और उनका परिवार वफादारी से यहोवा की सेवा करते रहे। अब भाई 82 साल के हैं और मध्य एशिया की शाखा-समिति में सेवा कर रहे हैं। आइए हम भी भाई आनाटॉलये और बहन लीडीया की मिसाल पर चलें और परीक्षाओं में हार न मानें। इसके बजाय धीरज रखते हुए हमसे जितना हो सकता है, यहोवा की सेवा में करें।—गला. 6:9.

भविष्य की आशा पर ध्यान लगाए रखें

14. अपना लक्ष्य हासिल करने के बारे में पौलुस क्या जानता था?

14 पौलुस को पक्का यकीन था कि वह अपनी दौड़ पूरी करके अपना लक्ष्य हासिल करेगा। अभिषिक्‍त मसीही होने के नाते उसे “ऊपर का जो बुलावा दिया [गया था], उस इनाम” को पाने की उसे आशा थी। लेकिन वह जानता था कि उस लक्ष्य को हासिल करने के लिए उसे “पुरज़ोर कोशिश” करते रहना है। (फिलि. 3:14) पौलुस ने फिलिप्पी के मसीहियों को एक दिलचस्प उदाहरण दिया, ताकि वे लक्ष्य पर ध्यान लगाए रख सकें।

15. पौलुस ने फिलिप्पी के मसीहियों को “पुरज़ोर कोशिश” करने का बढ़ावा देते वक्‍त नागरिकता का उदाहरण क्यों दिया?

15 पौलुस ने फिलिप्पी के मसीहियों को याद दिलाया कि उनके पास स्वर्ग की नागरिकता है। (फिलि. 3:20) उन्हें यह बात क्यों याद रखनी थी? उन दिनों रोम की नागरिकता बहुत मायने रखती थी, क्योंकि इससे लोगों को कई फायदे मिलते थे। * लेकिन अभिषिक्‍त मसीही रोमी सरकार से कहीं बेहतर सरकार के नागरिक थे, वह सरकार उन्हें रोमी नागरिकों से बढ़कर फायदे देती। इसके आगे रोमी नागरिकता कुछ भी नहीं थी! इसी वजह से पौलुस ने फिलिप्पी के मसीहियों को बढ़ावा दिया कि वे ‘नागरिकों जैसा बरताव करें’ और “मसीह की खुशखबरी के योग्य” रहें। (फिलि. 1:27, फु.) आज भी अभिषिक्‍त मसीही स्वर्ग में हमेशा की ज़िंदगी का लक्ष्य पाने की पुरज़ोर कोशिश करते हैं। इस तरह वे हमारे लिए एक अच्छी मिसाल हैं।

16. फिलिप्पियों 4:6, 7 के मुताबिक हमें क्या करते रहना चाहिए, फिर चाहे हमारी आशा स्वर्ग की हो या धरती की?

16 हमारी आशा चाहे स्वर्ग में हमेशा जीने की हो या धरती पर, हमें इस लक्ष्य को हासिल करने की पुरज़ोर कोशिश करते रहना चाहिए। हमारे हालात चाहे जैसे भी रहे हों, हमें पीछे छोड़ी हुई चीज़ों के बारे में सोचते नहीं रहना चाहिए और न ही किसी बात को यहोवा की सेवा में आड़े आने देना चाहिए। (फिलि. 3:16) शायद हमें लगे कि हमारी उम्मीदें पूरी होने में देर हो रही है या हो सकता है कि हमारी उम्र ढलती जा रही हो, जिस वजह से हममें पहले जितना करने की ताकत न हो। शायद हम कई सालों से ज़ुल्मों और परीक्षाओं का सामना कर रहे हों। हम चाहे जैसे भी हालात से गुज़र रहे हों, हमें “किसी भी बात को लेकर चिंता” नहीं करनी चाहिए। इसके बजाय हमें परमेश्‍वर से मिन्‍नतें और बिनतियाँ करनी चाहिए। तब वह हमें ऐसी शांति देगा, जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते।—फिलिप्पियों 4:6, 7 पढ़िए।

17. अगले लेख में क्या चर्चा की जाएगी?

17 एक धावक जब अपनी दौड़ पूरी करने ही वाला होता है, तो उसका पूरा ध्यान अंतिम रेखा पर होता है और वह अपनी पूरी ताकत लगा देता है। उसी तरह जैसे-जैसे हम जीवन की दौड़ पूरी करने की तरफ बढ़ रहे हैं, हमें अपना पूरा ध्यान भविष्य में मिलनेवाली बढ़िया आशीषों पर लगाए रखना चाहिए। साथ ही, हमसे जितना हो सकता है, वह सब हमें करना चाहिए। लेकिन सवाल है कि सही कामों के लिए पुरज़ोर कोशिश करने और अपना जोश बनाए रखने के लिए हमें क्या करना चाहिए? अगले लेख में बताया जाएगा कि हमें किन बातों को पहली जगह देनी है और हम यह कैसे ‘पहचान सकते हैं कि ज़्यादा अहमियत रखनेवाली बातें क्या हैं।’—फिलि. 1:9, 10.

गीत 79 उन्हें मज़बूत रहना सिखाओ

^ पैरा. 5 हम सब चाहते हैं कि हम लगातार प्रौढ़ मसीही बनते जाएँ और यहोवा की सेवा और अच्छी तरह करें, फिर चाहे हम कितने भी सालों से सच्चाई में हों। प्रेषित पौलुस ने फिलिप्पी के मसीहियों को एक खत में बढ़ावा दिया कि वे कभी हार न मानें। उस खत पर ध्यान देने से हमारा भी हौसला बढ़ेगा कि हम जीवन की दौड़ में धीरज से दौड़ते रहें। इस लेख में हम देखेंगे कि हम पौलुस की सलाह पर कैसे चल सकते हैं।

^ पैरा. 11 15 जून, 1965 की अँग्रेज़ी प्रहरीदुर्ग  में भाई सीकॉर्ड की जीवन कहानी देखें, जिसका शीर्षक है, “माय पार्ट इन एडवांसिंग राइट वर्शिप।

^ पैरा. 13 8 जनवरी, 2005 की सजग होइए!  में भाई आनाटॉलये मेलनिक की जीवन कहानी देखें, जिसका शीर्षक है, “बचपन से ही परमेश्‍वर से प्यार करना सिखाया गया।

^ पैरा. 15 फिलिप्पी शहर एक रोमी बस्ती था, इसलिए वहाँ के लोगों के पास कुछ हद तक वे अधिकार थे, जो रोमी नागरिकों के पास होते थे। इस वजह से फिलिप्पी के मसीही, पौलुस का उदाहरण अच्छी तरह समझ सकते थे।