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अध्ययन लेख 35

मंडली के हर भाई और बहन का आदर कीजिए

मंडली के हर भाई और बहन का आदर कीजिए

“आँख हाथ से नहीं कह सकती, ‘मुझे तेरी कोई ज़रूरत नहीं,’ या सिर पैरों से नहीं कह सकता, ‘मुझे तुम्हारी कोई ज़रूरत नहीं।’”—1 कुरिं. 12:21.

गीत 124 हमेशा वफादार

लेख की एक झलक *

1. यहोवा अपने हर वफादार सेवक को किस नज़र से देखता है?

यहोवा अपने हर वफादार सेवक को मंडली में बहुत अहमियत देता है। हालाँकि मंडली में हम सब अलग-अलग काम करते हैं, मगर हममें से हर कोई अनमोल है और हमें एक-दूसरे की ज़रूरत है। प्रेषित पौलुस ने भी हमें यही बात समझायी। आइए देखें कि उसने क्या कहा।

2. इफिसियों 4:16 के मुताबिक हमें क्यों एक-दूसरे का आदर करना चाहिए और मिलकर काम करना चाहिए?

2 जैसे इस लेख की मुख्य आयत में बताया गया है, हम किसी भी भाई या बहन से नहीं कह सकते कि “मुझे तेरी कोई ज़रूरत नहीं,” क्योंकि वे भी यहोवा के सेवक हैं। (1 कुरिं. 12:21) हमें एक-दूसरे का आदर करना चाहिए और साथ मिलकर काम करना चाहिए, तभी मंडली में शांति बनी रहेगी। (इफिसियों 4:16 पढ़िए।) ऐसा करने से सबके बीच प्यार होगा और मंडली मज़बूत रहेगी।

3. इस लेख में हम क्या चर्चा करेंगे?

3 हम मंडली के सभी भाई-बहनों का आदर कैसे कर सकते हैं? इस लेख में हम देखेंगे कि प्राचीन कैसे एक-दूसरे का आदर कर सकते हैं। फिर हम जानेंगे कि हम कैसे अविवाहित भाई-बहनों का आदर कर सकते हैं। आखिर में हम इस बारे में बात करेंगे कि हम उन भाई-बहनों का आदर कैसे कर सकते हैं जो हमारी भाषा ठीक से नहीं बोल पाते।

प्राचीनो​—एक-दूसरे का आदर कीजिए

4. रोमियों 12:10 में दी कौन-सी सलाह प्राचीनों को माननी चाहिए?

4 मंडली के सभी प्राचीनों को पवित्र शक्‍ति से नियुक्‍त किया गया है। लेकिन सबके पास अलग-अलग काबिलीयतें होती हैं। (1 कुरिं. 12:17, 18) कुछ लोग अभी-अभी प्राचीन बने हैं और उनके पास दूसरे प्राचीनों के मुकाबले कम तजुरबा है। कुछ प्राचीन बीमारी या बुढ़ापे की वजह से मंडली में ज़्यादा काम नहीं कर पाते। फिर भी एक प्राचीन को किसी भी प्राचीन के बारे में यह नहीं सोचना चाहिए कि मंडली में उसकी कोई अहमियत नहीं है, मानो वह उससे कह रहा हो, “मुझे तेरी कोई ज़रूरत नहीं” है। इसके बजाय हर प्राचीन को रोमियों 12:10 में दी सलाह माननी चाहिए। (पढ़िए।)

प्राचीन एक-दूसरे का आदर करते हैं, इसलिए वे एक-दूसरे की बात ध्यान से सुनते हैं (पैराग्राफ 5-6 देखें)

5. (क) प्राचीन कैसे एक-दूसरे का आदर कर सकते हैं? (ख) ऐसा करना क्यों ज़रूरी है?

5 प्राचीनों को कैसे एक-दूसरे का आदर करना चाहिए? एक तरीका यह है कि उन्हें एक-दूसरे की बात ध्यान से सुननी चाहिए, खासकर तब जब वे किसी गंभीर मामले पर बात करने के लिए इकट्ठा होते हैं। ऐसा करना क्यों ज़रूरी है? ध्यान दीजिए कि 1 अक्टूबर, 1988 की अँग्रेज़ी प्रहरीदुर्ग  में क्या कहा गया था, “प्राचीनों को जब कोई ज़रूरी फैसला करना होता है या किसी मामले को निपटाना होता है, तो वे एक बात याद रखते हैं। वह यह कि यीशु किसी भी प्राचीन के ध्यान में ला सकता है कि उन्हें बाइबल का कौन-सा सिद्धांत लागू करना चाहिए। (प्रेषितों 15:6-15) पवित्र शक्‍ति किसी एक प्राचीन पर नहीं बल्कि मंडली के सभी प्राचीनों पर काम करती है।”

6. (क) मंडली के प्राचीन कैसे मिलकर काम कर सकते हैं? (ख) इससे मंडली को क्या फायदा होता है?

6 जो प्राचीन दूसरे प्राचीनों का आदर करता है, वह प्राचीनों की बैठक में दूसरों को बोलने का मौका देगा। हर बैठक में वही पहले बात नहीं करेगा। पूरी चर्चा के दौरान वह खुद ही नहीं बोलता जाएगा और न ही यह सोचेगा कि उसकी राय ही हमेशा सही होती है। इसके बजाय, वह अपनी मर्यादा में रहेगा और जब बोलना चाहिए तभी बोलेगा। वह बाकी प्राचीनों की बात ध्यान से सुनेगा। सबसे ज़रूरी बात यह है कि वह अपनी राय बताने के बजाय बाइबल के सिद्धांतों पर चर्चा करेगा और “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” के निर्देशों को मानेगा। (मत्ती 24:45-47) जब प्राचीन अपनी बैठक में एक-दूसरे के साथ प्यार और आदर से बात करेंगे, तो उन पर पवित्र शक्‍ति काम करेगी। तब वे सही फैसले कर पाएँगे और इससे मंडली मज़बूत होगी।​—याकू. 3:17, 18.

अविवाहित भाई-बहनों का आदर कीजिए

7. यीशु ने अविवाहित लोगों को किस नज़र से देखा?

7 मंडली में शादीशुदा जोड़ों और परिवारों के अलावा कई अविवाहित भाई और बहन भी होते हैं। हमें अविवाहित भाई-बहनों को किस नज़र से देखना चाहिए? हमें उन्हें उसी नज़र से देखना चाहिए जैसे यीशु देखता है। जब यीशु इस धरती पर आया, तो उसने शादी नहीं की बल्कि अपना पूरा समय और ध्यान यहोवा की सेवा करने में लगाया। लेकिन उसने कभी यह नहीं सिखाया कि एक मसीही के लिए शादी करना ज़रूरी है। उसने यह भी नहीं कहा कि एक मसीही को अविवाहित रहना है। मगर उसने यह ज़रूर कहा कि कुछ मसीही अविवाहित रहने का फैसला करेंगे। (मत्ती 19:11, 12; कृपया मत्ती 19:12 का अध्ययन नोट देखें।) यीशु अविवाहित लोगों का आदर करता था। उसने उन्हें कभी नीचा नहीं समझा, न ही उसने ऐसा सोचा कि शादी के बिना ज़िंदगी अधूरी होती है।

8. पहला कुरिंथियों 7:7-9 के मुताबिक पौलुस ने मसीहियों को क्या सलाह दी?

8 यीशु की तरह प्रेषित पौलुस ने भी अविवाहित रहकर परमेश्‍वर की सेवा की। मगर उसने भी यह नहीं सिखाया कि शादी करना गलत है। वह जानता था कि एक व्यक्‍ति शादी करेगा या नहीं, यह उसकी मरज़ी है। फिर भी पौलुस ने मसीहियों को यह सलाह दी कि अगर वे अविवाहित रहकर परमेश्‍वर की सेवा करेंगे, तो ज़्यादा अच्छा रहेगा। (1 कुरिंथियों 7:7-9 पढ़िए।) इससे पता चलता है कि पौलुस ने कभी-भी अविवाहित भाई-बहनों को नीचा नहीं समझा। उसने तो तीमुथियुस को, जो एक अविवाहित भाई था, भारी ज़िम्मेदारियाँ सौंपी थीं। * (फिलि. 2:19-22) इसलिए ऐसा सोचना गलत होगा कि अगर एक भाई शादीशुदा नहीं है, तो वह मंडली की ज़िम्मेदारियाँ उठाने के काबिल नहीं है।​—1 कुरिं. 7:32-35, 38.

9. शादी करने या न करने के बारे में हमें कैसी सोच रखनी चाहिए?

9 यीशु और पौलुस ने यह नहीं सिखाया कि मसीहियों के लिए शादी करना ज़रूरी है। न ही उन्होंने यह सिखाया कि उन्हें अविवाहित रहना चाहिए। तो फिर शादी करने या न करने के बारे में हमें कैसी सोच रखनी चाहिए? इसका जवाब 1 अक्टूबर, 2012 की अँग्रेज़ी प्रहरीदुर्ग  में दिया गया है। वहाँ लिखा है, “शादी करना और अविवाहित रहना, दोनों ही परमेश्‍वर की तरफ से आशीष है। . . . यहोवा ऐसा नहीं मानता कि अविवाहित रहना दुख की बात है या शर्म की बात है।” हमें भी यहोवा की तरह अविवाहित भाई-बहनों का आदर करना चाहिए।

अगर हम अविवाहित भाई-बहनों का आदर करते हैं, तो हम क्या नहीं करेंगे? (पैराग्राफ 10 देखें)

10. हम अविवाहित भाई-बहनों का आदर कैसे कर सकते हैं?

10 हमें अविवाहित भाई-बहनों की भावनाओं को चोट नहीं पहुँचानी चाहिए और इस बात को समझना चाहिए कि वे अलग-अलग कारणों से अविवाहित हैं। कुछ भाई-बहनों ने तो शादी न करने का फैसला किया है। वहीं कुछ मसीही शादी तो करना चाहते हैं पर उन्हें सही साथी नहीं मिल रहा। कुछ लोगों के जीवन-साथी की मौत हो गयी है। चाहे एक मसीही किसी भी कारण से अविवाहित हो, हमें उससे यह नहीं पूछना चाहिए कि वह शादी क्यों नहीं कर रहा। न ही उससे यह कहना चाहिए कि हम उसे साथी ढूँढ़कर देंगे। यह बात अलग है कि कुछ मसीही दूसरों से साथी ढूँढ़ने के लिए कहते हैं। लेकिन जिन अविवाहित भाई-बहनों ने हमसे मदद नहीं माँगी है, उनसे अगर हम कहें कि हम आपके लिए साथी ढूँढ़ेंगे, तो उन्हें कैसा लगेगा? (1 थिस्स. 4:11; 1 तीमु. 5:13) जानने के लिए आइए देखें कि कुछ अविवाहित भाई-बहन क्या कहते हैं।

11-12. हमारी वजह से अविवाहित भाई-बहन कैसे निराश हो सकते हैं?

11 सबसे पहले आइए एक सर्किट निगरान की बात करें जो अविवाहित है और अपनी ज़िम्मेदारी बहुत अच्छी तरह निभाता है। वह बताता है कि अविवाहित रहने के कई फायदे हैं। लेकिन कुछ भाई-बहन उससे पूछते रहते हैं कि “तुम शादी क्यों नहीं कर लेते?” हालाँकि ये भाई-बहन उसके बारे में अच्छा सोचते हैं, लेकिन जब वे ऐसा पूछते हैं, तो वह निराश हो जाता है। बेथेल में सेवा करनेवाला एक अविवाहित भाई कहता है, “मंडली के कुछ लोग अविवाहित भाई-बहनों पर तरस खाते हैं। वे हमें यह महसूस कराते हैं कि अविवाहित रहना एक बोझ है, न कि आशीष।”

12 बेथेल में सेवा करनेवाली एक अविवाहित बहन कहती है, “कुछ भाई-बहन सोचते हैं कि सभी अविवाहित लोग साथी ढूँढ़ रहे हैं। वे सोचते हैं कि जब भी एक अविवाहित व्यक्‍ति दो-चार लोगों के बीच होता है, तो वह साथी तलाश रहा है। एक बार मुझे बेथेल के काम के लिए दूसरे देश भेजा गया था। मैं जिस दिन वहाँ पहुँची, उस दिन मंडली की सभा थी। मैं जिस बहन के यहाँ रुकी, उसने मुझे बताया कि उसकी मंडली में दो अविवाहित भाई हैं जो मेरी उम्र के हैं। उसने मुझे यकीन दिलाया कि वह मेरे लिए जोड़ी बिठाने की कोशिश नहीं कर रही है। लेकिन जैसे ही हम राज-घर पहुँचे, वह मुझे उन दो भाइयों के पास ले गयी। मैं और वे दोनों भाई बहुत शर्मिंदा हो गए।”

13. किन लोगों ने एक अविवाहित बहन के लिए अच्छी मिसाल रखी है?

13 बेथेल में काम करनेवाली एक और अविवाहित बहन कहती है, “मैं कुछ पायनियरों को जानती हूँ जो कई सालों से अविवाहित हैं। वे सच्चाई में बहुत मज़बूत हैं और बहुत त्याग करते हैं। वे अपनी सेवा से बहुत खुश हैं और मंडली की बहुत मदद करते हैं। अविवाहित होने की वजह से वे खुद को दूसरों से बड़ा नहीं समझते। न ही यह सोचकर नीचा महसूस करते हैं कि उनका न कोई साथी है, न ही बच्चे हैं।” जब मंडली में सब एक-दूसरे का आदर करते हैं और एक-दूसरे को अनमोल समझते हैं, तो सब खुश रहते हैं। न कोई किसी को बेचारा समझता है, न ही किसी से जलता है। कोई किसी को अनदेखा नहीं करता, न ही किसी को सिर आँखों पर बिठाता है। हर कोई हर किसी से प्यार करता है।

14. हम अविवाहित भाई-बहनों का आदर कैसे कर सकते हैं?

14 अगर हम अविवाहित भाई-बहनों को उनके अच्छे गुणों की वजह से अनमोल समझें, तो उन्हें बहुत खुशी होगी। हमें उन्हें बेचारे नहीं समझना चाहिए। हमें यह देखना चाहिए कि वे यहोवा के कितने वफादार हैं। तब हमारे अविवाहित भाई-बहनों को यह नहीं लगेगा कि हम उनसे कह रहे हैं कि “मुझे तुम्हारी कोई ज़रूरत नहीं।” (1 कुरिं. 12:21) उन्हें खुशी होगी कि हम उनका आदर करते हैं और मंडली में उन्हें अनमोल समझते हैं।

उनका आदर कीजिए जो आपकी भाषा ठीक से नहीं बोल पाते

15. ज़्यादा प्रचार करने के लिए कुछ भाई-बहनों ने कौन-से त्याग किए हैं?

15 बीते कुछ सालों से कुछ प्रचारक नयी भाषा सीख रहे हैं ताकि वे ज़्यादा सेवा कर सकें। इसके लिए उन्होंने कई त्याग किए हैं। पहले वे ऐसी मंडली में होते थे जहाँ उनकी मातृ-भाषा बोली जाती थी। मगर अब वे ऐसी मंडली में चले गए हैं जहाँ दूसरी भाषा बोली जाती है और जहाँ प्रचारकों की ज़्यादा ज़रूरत है। (प्रेषि. 16:9) उन्होंने यह फैसला अपनी मरज़ी से किया है क्योंकि वे यहोवा की ज़्यादा सेवा करना चाहते हैं। यह सच है कि नयी भाषा सीखने में उन्हें सालों लगेंगे, फिर भी वे अपनी नयी मंडली की बहुत मदद करते हैं। उनके अच्छे गुणों और अनुभव की वजह से मंडली मज़बूत होती है। हम इन भाई-बहनों का बहुत आदर करते हैं जिन्होंने ये त्याग किए हैं।

16. किसी भाई की सिफारिश करने के लिए प्राचीन किस बात पर ध्यान देंगे?

16 भले ही एक भाई नयी मंडली की भाषा अच्छी तरह न बोल पाता हो, फिर भी अगर वह प्राचीन या सहायक सेवक बनने के काबिल है, तो प्राचीनों का निकाय उसकी सिफारिश करेगा। वे यह देखेंगे कि प्राचीनों या सहायक सेवकों के लिए बाइबल में बतायी योग्यताएँ उसमें हैं या नहीं, न कि यह कि वह मंडली की भाषा अच्छी तरह बोलता है या नहीं।​—1 तीमु. 3:1-10, 12, 13; तीतु. 1:5-9.

17. दूसरे देश में बसनेवालों को क्या फैसला करना होता है?

17 कुछ मसीही परिवार अपने देश के बुरे हालात से बचने के लिए या नौकरी पाने के लिए दूसरे देश में जा बसे हैं। वहाँ उनके बच्चों की पढ़ाई उस देश की मुख्य भाषा में होती है। माता-पिताओं को भी नौकरी पाने के लिए उस देश की भाषा सीखनी पड़ती है। अगर नए देश में उनकी भाषा की मंडली या समूह है, तो उन्हें क्या करना चाहिए? उन्हें किस मंडली में जाना चाहिए? उस देश की मुख्य भाषा की मंडली में या अपनी भाषा की मंडली में?

18. गलातियों 6:5 के मुताबिक हमें दूसरों के फैसलों की नुक्‍ताचीनी क्यों नहीं करनी चाहिए?

18 ऐसे में परिवार के मुखिया को फैसला करना चाहिए कि उसका परिवार किस भाषा की मंडली में जाएगा। उसे देखना होगा कि उसके परिवार के लिए क्या ठीक रहेगा। (गलातियों 6:5 पढ़िए।) यह एक परिवार का निजी मामला है, इसलिए परिवार का मुखिया जो भी फैसला करता है, हमें उसकी नुक्‍ताचीनी नहीं करनी चाहिए। जब ऐसे परिवार हमारी मंडली में आते हैं, तो हमें प्यार से उनका स्वागत करना चाहिए।​—रोमि. 15:7.

19. परिवार के मुखियाओं को कौन-सा फैसला सोच-समझकर करना चाहिए?

19 कुछ परिवार ऐसी मंडलियों में सेवा करते हैं जहाँ उनकी भाषा में सभाएँ होती हैं, लेकिन उनके बच्चे अपनी मातृ-भाषा ठीक से नहीं बोल पाते। ऐसे में बच्चे सभाओं से कुछ सीख नहीं पाते और सच्चाई में तरक्की नहीं कर पाते। यह इसलिए होता है क्योंकि बच्चों की पढ़ाई उस देश की भाषा में होती है, न कि उनकी मातृ-भाषा में। इन हालात में परिवार के मुखियाओं को क्या करना चाहिए? उन्हें यहोवा से प्रार्थना करनी चाहिए और सोच-समझकर फैसला करना चाहिए। उन्हें देखना होगा कि क्या करना सही रहेगा ताकि उनके बच्चे यहोवा के साथ एक रिश्‍ता कायम कर सकें और भाई-बहनों से दोस्ती कर सकें। परिवार के मुखिया या तो अपने बच्चों को मातृ-भाषा अच्छे से सिखा सकते हैं या वे अपने परिवार को उस मंडली में ले जा सकते हैं जहाँ बच्चों को समझ आनेवाली भाषा में सभाएँ होती हैं। परिवार के मुखिया जो भी फैसला करें, यह उनका निजी मामला है। जब ऐसे परिवार हमारी मंडली में आते हैं, तो हमें उनका आदर करना चाहिए और उन्हें अनमोल समझना चाहिए।

नयी भाषा सीखनेवाले भाई-बहनों का हम कैसे आदर कर सकते हैं? (पैराग्राफ 20 देखें)

20. हम उन भाई-बहनों का कैसे आदर कर सकते हैं जो एक नयी भाषा सीख रहे हैं?

20 जैसे हमने देखा, कई मंडलियों में ऐसे भाई-बहन हैं जो एक नयी भाषा सीखने के लिए मेहनत कर रहे हैं। हालाँकि उन्हें नयी भाषा ठीक से नहीं आती, लेकिन वे यहोवा से बहुत प्यार करते हैं और उसकी सेवा करना चाहते हैं। अगर हम उनके अच्छे गुणों पर ध्यान दें, तो हम दिल से उनका आदर करेंगे। हम उनसे यह नहीं कहेंगे कि हमें “तुम्हारी कोई ज़रूरत नहीं” है, बस इसलिए कि वे हमारी भाषा ठीक से नहीं बोल पाते।

यहोवा हम सबको अनमोल समझता है

21-22. हम किस बात के लिए शुक्रगुज़ार हैं?

21 हम यहोवा के कितने शुक्रगुज़ार हैं कि वह अपनी मंडली में हममें से हरेक को अनमोल समझता है। चाहे हम पुरुष हों या स्त्री, शादीशुदा हों या नहीं, उम्र में छोटे हों या बड़े, एक भाषा अच्छी तरह बोलते हों या नहीं, हम सब यहोवा की नज़र में अनमोल हैं और एक-दूसरे के लिए भी अनमोल हैं।​—रोमि. 12:4, 5; कुलु. 3:10, 11.

22 पौलुस ने शरीर की जो मिसाल दी, उससे हमने बहुत-सी अच्छी बातें सीखी हैं। आइए हम उन बातों को लागू करते रहें। तब हम इस बात को समझेंगे कि यहोवा की मंडली में हमारी बहुत अहमियत है और हम दूसरे भाई-बहनों का भी आदर करेंगे।

गीत 90 एक-दूसरे की हिम्मत बँधाएँ

^ पैरा. 5 यहोवा के लोगों का परिवार कई तरह के लोगों से मिलकर बना है और सब मंडली में अलग-अलग भूमिका निभाते हैं। इस लेख में हम जानेंगे कि हमें हरेक भाई और बहन का आदर क्यों करना चाहिए।

^ पैरा. 8 तीमुथियुस सारी ज़िंदगी कुँवारा रहा या नहीं, यह हम पक्के तौर पर नहीं कह सकते।