अध्ययन लेख 35
“एक-दूसरे को मज़बूत करते रहो”
“एक-दूसरे का हौसला बढ़ाते रहो और एक-दूसरे को मज़बूत करते रहो।”—1 थिस्स. 5:11.
गीत 90 एक-दूसरे की हिम्मत बँधाएँ
एक झलक a
1. पहला थिस्सलुनीकियों 5:11 के मुताबिक हम सबको क्या करना चाहिए?
क्या आपने कभी राज-घर बनाने में हाथ बँटाया है? जब वह बनकर तैयार हो गया होगा और आप पहली बार सभा के लिए आए होंगे, तो आपकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा होगा! शायद राज-गीत गाते वक्त आपका गला भी भर आया हो। या फिर अगर आपने राज-घर का रख-रखाव करने या उसकी मरम्मत करने में हाथ बँटाया है, तो भी आपको बहुत खुशी हुई होगी। जब हमारे राज-घर अच्छी हालत में रहते हैं और सुंदर दिखते हैं, तो इससे यहोवा की महिमा होती है। लेकिन एक और काम है जो इमारतों की मरम्मत करने और उन्हें मज़बूत करने से कहीं ज़्यादा ज़रूरी है। वह है एक-दूसरे को मज़बूत करना और एक-दूसरे का हौसला बढ़ाना। इससे भी यहोवा की महिमा होती है। प्रेषित पौलुस ने थिस्सलुनीके के मसीहियों को ऐसा ही करने का बढ़ावा दिया। उसने उनसे जो कहा, वह हम 1 थिस्सलुनीकियों 5:11 में पढ़ सकते हैं। (पढ़िए।) यह इस लेख की मुख्य आयत भी है।
2. हम इस लेख में क्या सीखेंगे?
2 पौलुस को भाई-बहनों से हमदर्दी थी। इसी वजह से वह उनका हौसला बढ़ा पाया और उन्हें मज़बूत कर पाया। इस लेख में हम जानेंगे कि उसने कैसे भाई-बहनों की मदद की जिससे वे (1) मुश्किलें सह पाए, (2) एक-दूसरे के साथ शांति बनाए रख पाए और (3) यहोवा पर अपना विश्वास बढ़ा पाए। हम यह भी सीखेंगे कि हम उसकी तरह भाई-बहनों का हौसला कैसे बढ़ा सकते हैं।—1 कुरिं. 11:1.
पौलुस ने मुश्किलें सहने में भाई-बहनों की मदद की
3. पौलुस ने किस तरह अपना मन यहोवा की सेवा पर लगाए रखा?
3 पौलुस भाई-बहनों से बहुत प्यार करता था और उसे उनसे हमदर्दी थी। जब दूसरे भाई-बहन मुश्किलें झेल रहे थे, तो वह उनके हालात समझ पाया क्योंकि उसने खुद कई मुश्किलें सही थीं। एक बार पौलुस को पैसों की दिक्कत हो गयी और खुद का और अपने साथियों का गुज़ारा चलाने के लिए उसे काम करना पड़ा। (प्रेषि. 20:34) उसे तंबू बनाने का काम आता था। इसलिए जब वह कुरिंथ आया, तो उसने अक्विला और प्रिस्किल्ला के साथ मिलकर तंबू बनाए। लेकिन “हर सब्त के दिन” वह सभा-घर में जाकर यहूदियों और यूनानियों को प्रचार करता था। फिर जब सीलास और तीमुथियुस भी वहाँ आ गए, तो पौलुस “और भी ज़ोर-शोर से वचन का प्रचार करने लगा।” (प्रेषि. 18:2-5) पौलुस बहुत मेहनती था और अपना गुज़ारा चलाने के लिए उसने काम भी किया। लेकिन यहोवा की सेवा करना उसके लिए सबसे ज़्यादा ज़रूरी था, उसने अपना मन उसी पर लगाए रखा। तभी वह भाई-बहनों को भी ऐसा करने का बढ़ावा दे पाया। उसने उनसे कहा कि वे ज़िंदगी की चिंताओं और परिवार की ज़रूरतें पूरी करने के बारे में हद-से-ज़्यादा ना सोचें, बल्कि अपना ध्यान ‘ज़्यादा अहमियत रखनेवाली बातों’ पर लगाए रखें।—फिलि. 1:10.
4. पौलुस और तीमुथियुस ने मुश्किलें सहने में भाई-बहनों की कैसे मदद की?
4 जब थिस्सलुनीके में नयी-नयी मंडली बनी थी, तो उसके कुछ ही समय बाद वहाँ के भाइयों का विरोध होने लगा। एक बड़ी भीड़ पौलुस और सीलास को पकड़ना चाहती थी। लेकिन जब वे उन्हें नहीं मिले, तो उन्होंने ‘कुछ और भाइयों को पकड़ लिया और उन्हें घसीटकर नगर अधिकारियों के पास ले गए और चिल्ला-चिल्लाकर कहने लगे, “ये आदमी सम्राट के आदेशों के खिलाफ बगावत करते हैं।”’ (प्रेषि. 17:6, 7) सोचिए, यह सब देखकर वे नए भाई-बहन कितने सहम गए होंगे। पौलुस नहीं चाहता था कि उनका विश्वास डगमगा जाए और वे यहोवा की सेवा करने से पीछे हट जाएँ। वह और सीलास भाई-बहनों की मदद करने के लिए वहाँ रुक नहीं सकते थे, इसलिए उन्होंने एक इंतज़ाम किया। उन्होंने भाई-बहनों को मज़बूत करने और उन्हें दिलासा देने के लिए तीमुथियुस को उनके पास भेजा। पौलुस ने थिस्सलुनीके के भाई-बहनों को लिखा, ‘हमने अपने भाई तीमुथियुस को तुम्हारे पास भेजा ताकि वह तुम्हें मज़बूत करे और तुम्हारे विश्वास के मामले में तुम्हें दिलासा दे और तुममें से कोई भी इन दुख-तकलीफों की वजह से न डगमगाए।’ (1 थिस्स. 3:2, 3) तीमुथियुस ने खुद भी शायद अपने शहर लुस्त्रा में ऐसे ही ज़ुल्म सहे थे। उसने यह भी देखा था कि पौलुस ने वहाँ के भाइयों की कैसे हिम्मत बँधायी थी। इसलिए वह थिस्सलुनीके के भाई-बहनों को यकीन दिला पाया होगा कि यहोवा उनकी भी मदद करेगा और सबकुछ ठीक हो जाएगा।—प्रेषि. 14:8, 19-22; इब्रा. 12:2.
5. टोनी ने ब्रायंट की कैसे मदद की? इससे ब्रायंट को क्या फायदा हुआ?
5 पौलुस ने एक और तरीके से भाई-बहनों को मज़बूत किया। जब वह और बरनबास लुस्त्रा, इकुनियुम और अंताकिया लौटे, तो उन्होंने ‘हर मंडली में प्राचीनों’ को नियुक्त किया। (प्रेषि. 14:21-23) इन प्राचीनों ने ज़रूर मुश्किल घड़ी में वहाँ के भाई-बहनों की हिम्मत बँधायी होगी। आज भी प्राचीन ऐसा ही करते हैं। ब्रायंट नाम का एक भाई बताता है कि एक प्राचीन ने कैसे उसकी हिम्मत बँधायी। वह कहता है, “जब मैं 15 साल का था, तो पापा घर छोड़कर चले गए और मम्मी का भी बहिष्कार हो गया। ऐसा लग रहा था कि मेरा अपना कोई नहीं है। मैं बहुत दुखी रहने लगा।” ब्रायंट यह मुश्किल वक्त कैसे काट पाया? वह बताता है, “उस वक्त मेरी मंडली में टोनी नाम के एक प्राचीन थे। वे हमेशा मुझसे बात किया करते थे, जब मैं सभाओं में जाता था तब भी और दूसरे मौकों पर भी। वे मुझे ऐसे लोगों के बारे में बताते थे जिन्होंने कई मुश्किलें सहीं पर फिर भी खुश रहे। उन्होंने मेरे साथ भजन 27:10 पढ़ा। वे मेरे साथ अकसर हिजकियाह के बारे में भी बात करते थे। हिजकियाह का पिता यहोवा की सेवा नहीं करता था, लेकिन हिजकियाह वफादार बना रहा।” भाई टोनी की बातों से ब्रायंट को बहुत मदद मिली। वह कहता है, “भाई टोनी ने मेरा बहुत हौसला बढ़ाया और इसी वजह से मैं आगे चलकर पूरे समय की सेवा करने लगा।” प्राचीनो, मंडली के भाई-बहनों पर ध्यान दीजिए। सोचिए कि आप किसे कोई “अच्छी बात” बताकर उसका हौसला बढ़ा सकते हैं।—नीति. 12:25.
6. पौलुस ने पहली सदी के मसीहियों का हौसला कैसे बढ़ाया?
6 पौलुस ने पहली सदी के मसीहियों को बीते ज़माने के वफादार लोगों के बारे में बताया जो यहोवा की मदद से कई तरह की मुश्किलें सह पाए। पौलुस ने उन्हें ‘गवाहों का घना बादल’ कहा। (इब्रा. 12:1) वह जानता था कि जब भाई-बहन उन वफादार लोगों के बारे में सोचेंगे, तो उन्हें अपनी मुश्किलों का सामना करने की हिम्मत मिलेगी और वे अपना ध्यान “जीवित परमेश्वर की नगरी” यानी परमेश्वर के राज पर लगाए रख पाएँगे। (इब्रा. 12:22) आज हम भी जब इस बारे में पढ़ते हैं कि यहोवा ने किस तरह गिदोन, बाराक, दाविद, शमूएल और दूसरे सेवकों की मदद की, तो हमें बहुत हिम्मत मिलती है। (इब्रा. 11:32-35) हमारे ज़माने में भी यहोवा ने बहुत-से भाई-बहनों की मदद की है। जब हम उनके बारे में पढ़ते हैं, तब भी हमारा हौसला बढ़ता है। यहोवा के साक्षियों के विश्व मुख्यालय में अकसर ऐसे खत आते हैं जिनमें भाई-बहन बताते हैं कि जब उन्होंने दूसरे भाई-बहनों की जीवन कहानियाँ पढ़ीं, तो उनका विश्वास कितना बढ़ा।
पौलुस ने भाई-बहनों को सिखाया कि शांति कैसे बनाए रखें
7. रोमियों 14:19-21 में लिखी पौलुस की सलाह से आप क्या सीखते हैं?
7 जब हम ऐसी बातें और ऐसे काम करते हैं जिससे मंडली में शांति बनी रहती है, तो इससे भी भाई-बहनों का हौसला बढ़ता है और वे मज़बूत होते हैं। अगर किसी मामले में दूसरों की राय हमारी राय से अलग है और वह बाइबल सिद्धांतों के खिलाफ नहीं है, तो हम अपनी बात पर अड़े नहीं रहेंगे। पहली सदी में रोम की मंडली में भी ऐसा ही एक मसला खड़ा हुआ था। वहाँ गैर-यहूदी मसीही भी थे और यहूदी मसीही भी। उस वक्त तक मूसा का कानून रद्द हो चुका था और खाने की कोई भी चीज़ अशुद्ध नहीं थी। (मर. 7:19) इसलिए कुछ यहूदी मसीही सबकुछ खाने लगे। लेकिन कुछ यहूदी मसीहियों को यह बात हज़म नहीं हुई। इस वजह से भाई-बहनों में फूट पड़ गयी। पौलुस जानता था कि ऐसे मसलों की वजह से दूसरों को ठोकर लग सकती है और मंडली के भाई-बहनों के बीच दूरियाँ आ सकती हैं। इसलिए उसने वहाँ के भाई-बहनों को सलाह दी, ‘अच्छा तो यह है कि तुम न माँस खाओ, न दाख-मदिरा पीओ, न ही ऐसा कुछ करो जिससे तुम्हारे भाई को ठोकर लगे।’ (रोमियों 14:19-21 पढ़िए।) पौलुस चाहता था कि मंडली में शांति बनी रहे, इसलिए वह खुद को भी बदलने के लिए तैयार था ताकि किसी को ठोकर ना लगे। (1 कुरिं. 9:19-22) हम भी ऐसा ही कर सकते हैं। अगर किसी मामले में दूसरों की राय हमसे अलग हो और वह बाइबल के सिद्धांतों के खिलाफ ना हो, तो हम अपनी बात पर अड़े नहीं रहेंगे। इस तरह हम शांति बनाए रख पाएँगे।
8. जब मंडली में एक बड़ा मसला खड़ा हुआ, तो शांति बनाए रखने के लिए पौलुस ने क्या किया?
8 जब मंडली में कुछ बड़े मसले खड़े हुए, तब भी पौलुस ने शांति बनाए रखने की कोशिश की। जैसे, कुछ भाइयों को लग रहा था कि जो गैर-यहूदी लोग मसीही बन गए हैं, उन्हें भी खतना करवाना चाहिए। और वे हर हाल में अपनी बात मनवाना चाहते थे। उन्हें शायद डर था कि अगर वे ऐसा ना करवाएँ, तो बाहरवाले उन पर उँगली उठाएँगे। (गला. 6:12) पौलुस अच्छी तरह जानता था कि वे बेवजह मसला खड़ा कर रहे हैं, गैर-यहूदी मसीहियों को खतना करवाने की कोई ज़रूरत नहीं थी। लेकिन पौलुस नम्र था, अपनी राय दूसरों पर थोपने के बजाय उसने “प्रेषितों और प्राचीनों” से सलाह ली, जो उस वक्त यरूशलेम में थे। (प्रेषि. 15:1, 2) ऐसा करने से भाइयों के बीच शांति बनी रही और मंडली में खुशी का माहौल बना रहा।—प्रेषि. 15:30, 31.
9. हम पौलुस की तरह मंडली में शांति कैसे बनाए रख सकते हैं?
9 हो सकता है, हमारी मंडली में भी कोई बड़ा मसला खड़ा हो जाए। ऐसे में हमें क्या करना चाहिए? दूसरों पर अपनी राय थोपने के बजाय अच्छा होगा कि हम उन भाइयों से सलाह लें जिन्हें यहोवा ने मंडली की देखभाल करने के लिए ठहराया है। हम बाइबल पर आधारित प्रकाशनों में खोजबीन भी कर सकते हैं और संगठन ने जो हिदायतें दी हैं, उन्हें पढ़ सकते हैं। उन हिदायतों को मानकर हम मंडली में शांति बनाए रख पाएँगे।
10. पौलुस ने मंडली में प्यार और शांति का माहौल बनाए रखने के लिए और क्या किया?
10 मंडली में प्यार और शांति का माहौल बनाए रखने के लिए पौलुस ने कुछ और भी किया। उसने भाई-बहनों की कमियों पर नहीं, बल्कि उनकी अच्छाइयों पर ध्यान दिया। जैसे, जब उसने रोम के मसीहियों को चिट्ठी लिखी, तो उस चिट्ठी के आखिर में उसने कुछ लोगों का नाम लेकर उनकी तारीफ की या उनके बारे में कुछ अच्छा कहा। पौलुस की तरह हमें भी भाई-बहनों की अच्छाइयों पर ध्यान देना चाहिए और उनकी खुलकर तारीफ करनी चाहिए। अगर हम ऐसा करें, तो हमारे आपसी रिश्ते मज़बूत हो जाएँगे, हम सब एक-दूसरे के और करीब आ जाएँगे और हमारे बीच प्यार बढ़ जाएगा।
11. अगर हमारी किसी से अनबन हो जाए, तो हमें क्या करना चाहिए?
11 कई बार अनुभवी मसीहियों के बीच भी किसी बात को लेकर अनबन हो सकती है। पौलुस और बरनबास अच्छे दोस्त थे, पर एक बार उनके बीच बहस हो गयी। जब वे अपने मिशनरी दौरे पर निकलनेवाले थे, तो बरनबास मरकुस को भी साथ ले जाना चाहता था। लेकिन पौलुस इस बात से बिलकुल राज़ी नहीं था। इस बात पर उन दोनों के बीच “ज़बरदस्त तकरार हुई” और बरनबास अपने रास्ते चला गया और पौलुस अपने। (प्रेषि. 15:37-39) लेकिन वे जानते थे कि मंडली में शांति और एकता बनाए रखना कितना ज़रूरी है, इसलिए उन्होंने एक-दूसरे को माफ कर दिया। बाद में पौलुस ने अपनी चिट्ठियों में बरनबास और मरकुस की अच्छाइयों के बारे में भी लिखा। (1 कुरिं. 9:6; कुलु. 4:10, 11) पौलुस से हम सीखते हैं कि अगर हमारी किसी के साथ अनबन हो जाए, तो हमें उसे माफ कर देना चाहिए और उसकी अच्छाइयों पर ध्यान देना चाहिए। इस तरह मंडली में शांति और एकता बनी रहेगी।—इफि. 4:3.
पौलुस ने भाई-बहनों का विश्वास मज़बूत किया
12. हमारे भाई-बहनों पर किस तरह की मुश्किलें आती हैं?
12 भाई-बहनों को मज़बूत करने का एक और तरीका है, यहोवा पर उनका विश्वास बढ़ाना। आज कई भाई-बहनों के रिश्तेदार, उनके साथ काम करनेवाले या उनके साथ पढ़नेवाले उनका मजाक उड़ाते हैं या उन्हें बुरा-भला कहते हैं। कुछ भाई-बहनों को कोई बड़ी बीमारी है और कुछ शायद बहुत दुखी हैं क्योंकि उन्हें किसी बात का बहुत बुरा लग गया है। कुछ भाई-बहन लंबे समय से यहोवा की सेवा कर रहे हैं और अंत का इंतज़ार करते-करते उन्हें कई साल हो गए हैं। इन वजहों से उनका विश्वास कमज़ोर पड़ सकता है। पहली सदी के मसीहियों पर भी कुछ ऐसी ही मुश्किलें आयी थीं। ऐसे में पौलुस ने उनका विश्वास मज़बूत करने के लिए क्या किया?
13. पौलुस ने उन मसीहियों का विश्वास कैसे मज़बूत किया जिनका मज़ाक उड़ाया जाता था?
13 पौलुस ने शास्त्र से तर्क देकर भाई-बहनों का विश्वास मज़बूत किया। जो यहूदी लोग मसीही बन गए थे, शायद उनके घरवाले उन पर ताने कसते होंगे और कहते होंगे, “हमारा यहूदी धर्म इतना पुराना है, कहाँ तुम मसीही बन गए हो!” शायद उन मसीहियों को यह समझ में नहीं आता होगा कि वे उन्हें क्या जवाब दें। पर जब उन्होंने इब्रानियों के नाम पौलुस की चिट्ठी पढ़ी होगी, तो उनका विश्वास बढ़ गया होगा। (इब्रा. 1:5, 6; 2:2, 3; 9:24, 25) पौलुस ने अपनी चिट्ठी में कई ज़बरदस्त तर्क दिए थे। और अब वे मसीही भी अपने घरवालों को वही तर्क दे सकते थे। आज भी लोग हमारे कुछ भाई-बहनों का मज़ाक उड़ाते हैं या उन्हें बुरा-भला कहते हैं। पौलुस की तरह हम उन भाई-बहनों की मदद कर सकते हैं ताकि वे बाइबल पर आधारित प्रकाशनों से उन लोगों को तर्क दे सकें। जैसे हो सकता है, हमारी मंडली के नौजवानों का स्कूल में मज़ाक उड़ाया जाता हो, क्योंकि वे जन्मदिन या त्योहार नहीं मनाते। ऐसे में हम उन्हें खुशी से जीएँ हमेशा के लिए! किताब के पाठ 44 में दी जानकारी से तर्क देना सिखा सकते हैं।
14. पौलुस प्रचार और सिखाने के काम में व्यस्त रहता था, फिर भी उसने क्या किया?
14 पौलुस ने “भले काम” किए और भाई-बहनों को भी ऐसा करने का बढ़ावा दिया। (इब्रा. 10:24) पौलुस ने सिर्फ तर्क देकर ही भाई-बहनों का विश्वास नहीं बढ़ाया। उसने कुछ ऐसे काम भी किए जिससे भाई-बहनों का विश्वास मज़बूत हुआ होगा। जैसे, एक बार जब यहूदिया में अकाल पड़ा, तो पौलुस ने वहाँ के भाई-बहनों तक राहत का सामान पहुँचाया। (प्रेषि. 11:27-30) पौलुस प्रचार और सिखाने के काम में व्यस्त रहता था। फिर भी वह ज़रूरतमंद भाइयों की मदद करने से पीछे नहीं हटा। (गला. 2:10) ऐसा करके उसने भाई-बहनों को यकीन दिलाया कि यहोवा हमेशा उनका खयाल रखेगा। आज जब हम राहत काम करने में अपनी काबिलीयतों का इस्तेमाल करते हैं और अपना समय और अपनी ताकत लगाते हैं, तो हम भी अपने भाई-बहनों का विश्वास मज़बूत कर रहे होते हैं। इसके अलावा जब हम पूरी दुनिया में होनेवाले काम के लिए दान करते हैं और दूसरे तरीकों से भाई-बहनों की मदद करते हैं, तो हम इस बात पर उनका विश्वास मज़बूत कर रहे होते हैं कि यहोवा उन्हें कभी नहीं छोड़ेगा।
15-16. जिनका विश्वास कमज़ोर पड़ गया है, हम उनका हौसला कैसे बढ़ा सकते हैं?
15 पौलुस ने उन भाई-बहनों का हौसला बढ़ाया जिनका विश्वास कमज़ोर पड़ गया था। पौलुस ने यह नहीं सोचा कि वे गए-गुज़रे हैं और उनका कुछ नहीं हो सकता। इसके बजाय उसने उनसे बहुत प्यार से और अच्छी तरह बात की। (इब्रा. 6:9; 10:39) जैसे जब उसने इब्रानियों को चिट्ठी लिखी, तो उन्हें सलाह देते वक्त उसने “हम” करके बात की। इस तरह उसने उन्हें नीचा नहीं दिखाया, बल्कि एहसास दिलाया कि उसे खुद भी उस सलाह को मानना है। (इब्रा. 2:1, 3) आइए पौलुस की तरह हम भी उन भाई-बहनों का हौसला बढ़ाएँ जिनका विश्वास कमज़ोर पड़ गया है। ऐसा करने का एक तरीका है, उनके साथ वक्त बिताना और उनसे बातें करना। इस तरह हम उनके लिए अपना प्यार जता पाएँगे। हमें इस बात पर भी ध्यान देना चाहिए कि हम किस तरह अपनी बात कहते हैं, क्योंकि इससे भी भाई-बहनों का बहुत हौसला बढ़ सकता है।
16 पौलुस ने भाई-बहनों को यकीन दिलाया कि उन्होंने बीते सालों में जो मेहनत की थी, जो अच्छे काम किए थे, यहोवा को वह सब याद है। (इब्रा. 10:32-34) अगर हम देखते हैं कि किसी भाई या बहन का विश्वास कमज़ोर पड़ रहा है, तो हम भी ऐसा ही कर सकते हैं। हम उनसे पूछ सकते हैं कि जब उन्होंने सच्चाई के बारे में जाना, तो क्या बात उनके दिल को छू गयी और वे कैसे यहोवा के साक्षी बने। हम उन्हें किसी ऐसे किस्से के बारे में बताने के लिए भी कह सकते हैं जब वे किसी मुश्किल में थे और यहोवा ने उनकी मदद की। हम उन्हें भरोसा दिला सकते हैं कि उन्होंने यहोवा के लिए जो कुछ किया है, वह उसे भूला नहीं है। और वह उन्हें कभी नहीं छोड़ेगा। (इब्रा. 6:10; 13:5, 6) ऐसी बातों से उनका विश्वास बढ़ सकता है और फिर शायद उन्हें दोबारा जोश से यहोवा की सेवा करने का मन करे।
“एक-दूसरे का हौसला बढ़ाते रहो”
17. हमें क्या सीखते रहना है?
17 जो लोग इमारतें बनाते हैं, वे उन्हें और भी अच्छी तरह और मज़बूत बनाने के लिए अपना हुनर बढ़ाते रहते हैं। उसी तरह हमें भी सीखते रहना है कि भाई-बहनों का हौसला कैसे बढ़ाएँ और उन्हें मज़बूत कैसे करें। जो भाई-बहन तकलीफें सह रहे हैं, हम उन्हें ऐसे लोगों की मिसालें याद दिला सकते हैं जो मुश्किलें आने पर भी वफादार रहे। हम खुलकर अपने भाई-बहनों की तारीफ कर सकते हैं। अपनी बात पर अड़े रहने के बजाय हम दूसरों की सुन सकते हैं और अगर किसी से हमारी अनबन हो जाए, तो उसे माफ कर सकते हैं। इस तरह हम मंडली में प्यार और शांति का माहौल बनाए रख पाएँगे। और अपने भाई-बहनों का विश्वास मज़बूत करने के लिए हम उनसे बाइबल की सच्चाइयों के बारे में बात कर सकते हैं, ज़रूरत की घड़ी में उनकी मदद कर सकते हैं और जिनका विश्वास कमज़ोर पड़ गया है, उनकी हिम्मत बँधा सकते हैं।
18. आपने क्या करने की सोच ली है?
18 जो भाई-बहन निर्माण काम में हाथ बँटाते हैं, उन्हें इससे बहुत खुशी मिलती है। उसी तरह जब हम भाई-बहनों का हौसला बढ़ाते हैं और उन्हें मज़बूत करते हैं, तो हमें भी खुशी मिलती है और बहुत अच्छा लगता है। चाहे एक इमारत कितनी ही मज़बूत क्यों ना हो, एक वक्त पर वह कमज़ोर पड़ जाती है और गिर भी सकती है। लेकिन अगर हम भाई-बहनों को मज़बूत करें, तो उन्हें हमेशा-हमेशा के लिए फायदा होगा! तो आइए, हम सब ‘एक-दूसरे का हौसला बढ़ाते रहें और एक-दूसरे को मज़बूत करते रहें।’—1 थिस्स. 5:11.
गीत 100 मेहमान-नवाज़ी किया करें
a इस दुनिया में एक-एक दिन काटना बहुत मुश्किल है। हमारे कई भाई-बहन बहुत-सी तकलीफें सह रहे हैं। ऐसे में अगर हम उनका हौसला बढ़ाएँ, तो वे हिम्मत से मुश्किलों का सामना कर पाएँगे। इस लेख में हम जानेंगे कि पौलुस ने भाई-बहनों का हौसला कैसे बढ़ाया और हम उससे क्या सीख सकते हैं।
b तसवीर के बारे में: एक पिता अपनी बेटी को बता रहा है कि वह हमारे प्रकाशनों में दिए सुझाव अपनाकर किस तरह क्रिसमस मनाने से इनकार कर सकती है।
c तसवीर के बारे में: एक पति-पत्नी राहत काम में हाथ बँटाने के लिए अपने घर से दूर किसी दूसरी जगह गए हैं।
d तसवीर के बारे में: एक प्राचीन एक ऐसे भाई से मिलने गया है जिसका विश्वास कमज़ोर पड़ गया है। वह उस भाई को पायनियर सेवा स्कूल की कुछ तसवीरें दिखा रहा है, जिसमें वे दोनों कई साल पहले गए थे। उन्हें देखकर वे अपनी यादें ताज़ा कर रहे हैं। भाई का हौसला बढ़ जाता है और उसका मन करता है कि वह फिर से यहोवा की सेवा करे। कुछ समय बाद वह मंडली में लौट आता है।