अध्ययन लेख 36
क्या लेकर दौड़ें और क्या फेंक दें?
“आओ हम हरेक बोझ को . . . उतार फेंकें और उस दौड़ में जिसमें हमें दौड़ना है धीरज से दौड़ते रहें।”—इब्रा. 12:1.
गीत 33 अपना बोझ यहोवा पर डाल दे!
एक झलक a
1. इब्रानियों 12:1 के मुताबिक जीवन की दौड़ पूरी करने के लिए हमें क्या करना होगा?
बाइबल में हम मसीहियों के जीवन की तुलना एक दौड़ से की गयी है। जो लोग यह दौड़ पूरी कर लेते हैं, उन्हें हमेशा की ज़िंदगी का इनाम मिलेगा। (2 तीमु. 4:7, 8) तो हम सबको पूरा ज़ोर लगाकर दौड़ते रहना है, खासकर इसलिए कि आज हम इस दौड़ के एकदम आखिरी पड़ाव में हैं, बहुत जल्द यह दौड़ पूरी होनेवाली है! प्रेषित पौलुस ने जीवन की दौड़ पूरी कर ली थी और उसने बताया कि ऐसी कौन-सी बातें हैं जो यह दौड़ पूरी करने में हमारी मदद कर सकती हैं। उसने कहा, “हम हरेक बोझ को . . . उतार फेंकें और उस दौड़ में जिसमें हमें दौड़ना है धीरज से दौड़ते रहें।”—इब्रानियों 12:1 पढ़िए।
2. ‘हरेक बोझ उतार फेंकने’ का क्या मतलब है?
2 जब पौलुस ने कहा कि ‘हम हरेक बोझ उतार फेंकें,’ तो क्या उसके कहने का यह मतलब था कि मसीहियों को कोई बोझ नहीं उठाना चाहिए? नहीं, ऐसी बात नहीं है। उसका मतलब था कि हम ऐसा हर बोझ उतार फेंकें जिसे उठाना ज़रूरी नहीं है। वह इसलिए कि इस तरह खुद पर बेवजह बोझ लादने से हम थक सकते हैं और अपनी दौड़ में धीमे पड़ सकते हैं। तो हमें इस बात पर हमेशा ध्यान देना चाहिए कि कहीं हम कोई ऐसा बोझ लेकर तो नहीं दौड़ रहे। और अगर ऐसा है, तो हमें फौरन उसे उतार फेंकना चाहिए। लेकिन कुछ ऐसे बोझ भी हैं जो हम सबको उठाने हैं। अगर हम उन्हें ना उठाएँ, तो हम इस दौड़ में दौड़ने के योग्य नहीं रहेंगे। (2 तीमु. 2:5) ये बोझ कौन-से हैं?
3. (क) गलातियों 6:5 के मुताबिक हम सबको क्या करना है? (ख) इस लेख में हम क्या जानेंगे और क्यों?
3 गलातियों 6:5 पढ़िए। पौलुस ने इस आयत में बताया कि ‘हर किसी को अपना बोझ खुद उठाना है।’ पौलुस यहाँ उन ज़िम्मेदारियों की बात कर रहा था जो यहोवा चाहता है कि उसका हर सेवक खुद पूरी करे। इस लेख में हम जानेंगे कि कौन-सी बातें ऐसा ‘बोझ हैं जो हमें उठाना है’ और हम उसे कैसे उठा सकते हैं। फिर हम जानेंगे कि कौन-सी बातें ऐसा भारी बोझ हैं, जिसे शायद हम उठाकर दौड़ रहे हों और हम उसे कैसे फेंक सकते हैं। अगर हम अपना बोझ उठाए रहें और गैर-ज़रूरी भारी बोझ उतारकर फेंक दें, तो हम जीवन की दौड़ पूरी कर पाएँगे।
बोझ जो हमें उठाने हैं
4. समर्पण का वादा क्यों एक भारी बोझ नहीं है? (तसवीर भी देखें।)
4 समर्पण का वादा। जब हमने यहोवा को अपनी ज़िंदगी समर्पित की थी, तो हमने उससे वादा किया था कि हम सिर्फ और सिर्फ उसकी उपासना करेंगे और उसकी मरज़ी पूरी करेंगे। हम सबको यह वादा निभाना है। यह वादा निभाना एक बड़ी ज़िम्मेदारी तो है, लेकिन यह इतना भारी बोझ नहीं कि हम इसे उठा ना सकें। आखिर यहोवा ने हमें बनाया ही इसलिए है कि हम उसकी मरज़ी पूरी करें। (प्रका. 4:11) उसने हमारे अंदर उसे जानने और उसकी उपासना करने की इच्छा डाली है और हममें वे गुण डालें हैं जो उसमें हैं। इस वजह से हम यहोवा के करीब आ पाते हैं और उसकी मरज़ी पूरी करने से हमें खुशी मिलती है। (भज. 40:8) यही नहीं, जब हम यहोवा की मरज़ी पूरी करते हैं और उसके बेटे की तरह बनने की कोशिश करते हैं, तो हमें “ताज़गी” मिलती है।—मत्ती 11:28-30.
5. समर्पण का वादा पूरा करने के लिए आप क्या कर सकते हैं? (1 यूहन्ना 5:3)
5 आप यह बोझ कैसे उठा सकते हैं? दो बातें आपकी मदद कर सकती हैं। पहली बात, यहोवा के लिए अपना प्यार बढ़ाते रहिए। आप यह कैसे कर सकते हैं? इस बारे में सोचिए कि यहोवा ने अब तक आपके लिए क्या-क्या किया है और आगे चलकर वह आपको कौन-सी आशीषें देनेवाला है। जितना ज़्यादा आप यहोवा से प्यार करेंगे, उतना ही उसकी आज्ञाएँ मानना आपको आसान लगेगा। उसकी आज्ञाएँ आपको भारी बोझ नहीं लगेंगी जिसे आप उठा ना सकें। (1 यूहन्ना 5:3 पढ़िए।) दूसरी बात, यीशु की तरह बनने की कोशिश कीजिए। यीशु ने यहोवा से मदद के लिए प्रार्थना की और उस इनाम पर नज़र टिकाए रखी जो उसे आगे चलकर मिलनेवाला था, इसलिए वह यहोवा की मरज़ी पूरी कर पाया। (इब्रा. 5:7; 12:2) तो यीशु की तरह यहोवा से मदद माँगिए और हमेशा की ज़िंदगी की आशा पर ध्यान लगाए रखिए। जब हम यहोवा से और भी प्यार करने लगेंगे और उसके बेटे की तरह बनने की कोशिश करेंगे, तो हम अपना समर्पण का वादा पूरा कर पाएँगे।
6. हमें अपने परिवार की ज़िम्मेदारियाँ क्यों पूरी करनी चाहिए? (तसवीर भी देखें।)
6 परिवार की ज़िम्मेदारियाँ। जीवन की दौड़ में दौड़ते रहने के लिए यह बहुत ज़रूरी है कि हम अपने परिवारवालों से ज़्यादा यहोवा और यीशु से प्यार करें। (मत्ती 10:37) लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि हम परिवार की ज़िम्मेदारियों से मुँह मोड़ लें जैसे ये हमें यहोवा और यीशु को खुश करने से रोक रही हों। उल्टा उन्हें खुश करने के लिए तो यह बहुत ज़रूरी है कि हम अपने परिवार की ज़िम्मेदारियाँ निभाएँ। (1 तीमु. 5:4, 8) और जब हम ऐसा करेंगे, तो हम और भी खुश रहेंगे। यहोवा ने हमें बनाया ही इस तरह है कि जब हममें से हरेक परिवार में अपनी ज़िम्मेदारी निभाता है, तो सब खुश रहते हैं। जैसे जब पति-पत्नी एक-दूसरे से प्यार करते हैं और एक-दूसरे की इज़्ज़त करते हैं, माता-पिता बच्चों से प्यार करते हैं और उन्हें सिखाते हैं और बच्चे माता-पिता की आज्ञा मानते हैं, तो परिवार में खुशी का माहौल बना रहता है।—इफि. 5:33; 6:1, 4.
7. परिवार में हर कोई अपनी ज़िम्मेदारी कैसे निभा सकता है?
7 आप यह बोझ कैसे उठा सकते हैं? भरोसा रखिए कि बाइबल में पति-पत्नियों, माता-पिताओं और बच्चों के लिए जो बढ़िया सलाह दी गयी है, उसे मानने से हमेशा भला होता है। आज दुनिया में लोग वही करते हैं जो उन्हें ठीक लगता है या जो उनके आस-पास के लोग करते हैं या फिर वे बड़े-बड़े सलाहकारों की सुनते हैं। (नीति. 24:3, 4) लेकिन ऐसा करने के बजाय बाइबल के हिसाब से चलिए। बाइबल पर आधारित प्रकाशन पढ़िए। उनमें समझाया जाता है कि हम बाइबल के सिद्धांत कैसे मान सकते हैं। जैसे “परिवार के लिए मदद” शृंखला की बात लीजिए। आज पति-पत्नियों, माता-पिताओं और नौजवानों को जिन समस्याओं का सामना करना पड़ता है, खासकर उन्हें ध्यान में रखकर इस शृंखला में दिए लेख तैयार किए जाते हैं और बढ़िया सुझाव दिए जाते हैं। b अगर आपके परिवार के बाकी लोग बाइबल की सलाह ना भी मानें, फिर भी ठान लीजिए कि आप ऐसा करेंगे। इससे आपके पूरे परिवार को फायदा होगा और यहोवा आपको ढेरों आशीषें देगा।—1 पत. 3:1, 2.
8. हमारे फैसलों का हम पर क्या असर हो सकता है?
8 अपने फैसलों के लिए खुद ज़िम्मेदार होना। यहोवा ने हमें अपने फैसले खुद करने की आज़ादी दी है। और वह चाहता है कि हम अच्छे फैसले करें और खुश रहें। लेकिन जब हम कोई गलत फैसला करते हैं, तो वह हमें उसके अंजामों से नहीं बचाता। (गला. 6:7, 8) इसलिए अगर हम कोई गलत फैसला ले लें, किसी को कुछ बुरा-भला कह दें या बिना सोचे-समझे कुछ कर बैठें, तो हम मानते हैं कि इसके अंजामों के लिए हम खुद ही ज़िम्मेदार हैं। हमने जो गलत किया है, उस वजह से शायद हमारा ज़मीर हमें कचोट रहा हो। पर यह एहसास होना अच्छी बात है कि हम अपने फैसलों के लिए खुद ज़िम्मेदार हैं, क्योंकि इस वजह से शायद हम अपनी गलती मान लें, सुधार करें और कोशिश करें कि हमसे दोबारा वह गलती ना हो। ये कदम उठाने से हम ज़िंदगी की दौड़ दौड़ते रह पाएँगे।
9. अगर आपने कोई गलत फैसला किया है, तो आप क्या कर सकते हैं? (तसवीर भी देखें।)
9 आप यह बोझ कैसे उठा सकते हैं? अगर आपने कोई गलत फैसला ले लिया है, तो इस बात को मानिए कि आप बीते कल को बदल नहीं सकते। यह सफाई देने की कोशिश मत कीजिए कि आपने जो किया, वह सही था। या फिर खुद को कोसते मत रहिए या दूसरों पर दोष मढ़ने की कोशिश मत कीजिए। इससे आपका समय भी बरबाद होगा और आप पस्त हो जाएँगे। इसके बजाय अपनी गलती मानिए और हालात सुधारने के लिए आपसे जो हो सकता है, वह कीजिए। अगर आपने कोई पाप किया है और उस बारे में सोच-सोचकर आपको बुरा लग रहा है, तो यहोवा से प्रार्थना कीजिए, उसके सामने अपना पाप कबूल कीजिए और उससे माफी माँगिए। (भज. 25:11; 51:3, 4) अगर आपकी वजह से किसी को चोट पहुँची है, तो उससे माफी माँगिए और ज़रूरी हो, तो प्राचीनों की मदद लीजिए। (याकू. 5:14, 15) अपनी गलतियों से सीखिए और कोशिश कीजिए कि आप उन्हें दोहराएँ ना। अगर आप ऐसा करें, तो आप यकीन रख सकते हैं कि यहोवा आप पर दया करेगा और आपको जो भी मदद चाहिए, वह देगा।—भज. 103:8-13.
भारी बोझ जो हमें उतार फेंकने हैं
10. अगर हम खुद से कुछ ज़्यादा ही उम्मीद करने लगें, तो यह कैसे एक भारी बोझ बन सकता है? (गलातियों 6:4)
10 खुद से कुछ ज़्यादा ही उम्मीद करना। अगर हम दूसरों से खुद की तुलना करने लगें, तो हम खुद से कुछ ज़्यादा ही उम्मीद करने लगेंगे और यह हमारे लिए एक भारी बोझ बन सकता है। (गलातियों 6:4 पढ़िए।) हमेशा दूसरों से अपनी तुलना करने से शायद हम उनसे ईर्ष्या करने लगें और उनसे होड़ लगाने लगें। (गला. 5:26) और अगर हम दूसरों की देखा-देखी कुछ ऐसा करने की कोशिश करें जो हमारे बस में नहीं है, तो शायद हम खुद को ही नुकसान पहुँचाने लगें। बाइबल में लिखा है, “जब उम्मीद पूरी होने में देर होती है, तो मन उदास हो जाता है।” तो सोचिए अगर हम खुद से ऐसी उम्मीद करें जो हम कभी पूरी ही नहीं कर सकते, तो हमारा मन और भी कितना उदास हो जाएगा! (नीति. 13:12) इससे हम पस्त हो सकते हैं और जीवन की दौड़ में धीमे पड़ सकते हैं।—नीति. 24:10.
11. आप खुद से कुछ ज़्यादा ही उम्मीद करने से कैसे बच सकते हैं?
11 आप यह भारी बोझ कैसे फेंक सकते हैं? यहोवा आपसे कुछ ऐसा करने की उम्मीद नहीं करता जो आप नहीं कर सकते। तो आप भी खुद से ऐसी उम्मीद मत कीजिए जो आप पूरी नहीं कर सकते। (2 कुरिं. 8:12) यकीन मानिए यहोवा कभी-भी आपकी तुलना दूसरों से नहीं करता। (मत्ती 25:20-23) वह यह देखता है कि आप किस तरह तन-मन से उसकी सेवा कर रहे हैं, आप उसके कितने वफादार हैं और आप किस तरह धीरज धर रहे हैं। यह भी समझिए कि अपनी उम्र, सेहत और हालात की वजह से अब शायद आप उतना ना कर पाएँ जितना आप पहले करते थे। अगर आपको लगता है कि आप अपनी सेहत और उम्र की वजह से कोई ज़िम्मेदारी नहीं निभा पाएँगे, तो बरजिल्लै की तरह बनिए और भाइयों को बताइए कि आपसे नहीं हो पाएगा। (2 शमू. 19:35, 36) मूसा की तरह दूसरों से मदद लीजिए और मुनासिब हो तो कुछ ज़िम्मेदारियाँ दूसरों को सौंप दीजिए। (निर्ग. 18:21, 22) इस तरह जब आप खुद से बहुत ज़्यादा उम्मीद नहीं करेंगे, तो आप थककर चूर नहीं होंगे और जीवन की दौड़ में दौड़ते रह पाएँगे।
12. क्या दूसरों के गलत फैसलों के लिए हमें खुद को कोसना चाहिए? समझाइए।
12 दूसरों के गलत फैसलों के लिए खुद को कोसना। हम दूसरों के लिए फैसले नहीं कर सकते। और जब वे कोई गलत फैसला लेते हैं, तो हमेशा उसके अंजाम से उन्हें नहीं बचा सकते। जैसे हो सकता है, कोई बच्चा यहोवा की सेवा करना छोड़ दे। ऐसे में उसके माता-पिता को जो दुख होता है, उसे शब्दों में बयाँ नहीं किया जा सकता। लेकिन जो माता-पिता अपने बच्चों के गलत फैसलों के लिए खुद को कोसते हैं, वे एक भारी बोझ उठाकर दौड़ रहे हैं। और यहोवा नहीं चाहता कि वे यह भारी बोझ उठाएँ।—रोमि. 14:12.
13. अगर किसी का बेटा या बेटी कोई गलत फैसला करता है, तो उसके माता-पिता क्या कर सकते हैं?
13 आप यह भारी बोझ कैसे फेंक सकते हैं? याद रखिए कि यहोवा ने हममें से हरेक को अपने फैसले खुद लेने की आज़ादी दी है। तो हरेक खुद तय कर सकता है कि वह यहोवा की सेवा करना चाहता है या नहीं। माता-पिताओ, यहोवा जानता है कि आप अपरिपूर्ण हैं और बच्चों की परवरिश करने में आपसे कुछ गलतियाँ हो सकती हैं। वह बस यह चाहता है कि आपसे जो हो सकता है, वह करें। आपका बेटा या बेटी जो भी फैसला लेता है, उसके लिए वह खुद ज़िम्मेदार है, आप नहीं। (नीति. 20:11) फिर भी हो सकता है कि आपसे जो गलतियाँ हुई हैं, उनके बारे में सोच-सोचकर आप खुद को कोस रहे हों। अगर ऐसा है, तो यहोवा को बताइए कि आप कैसा महसूस कर रहे हैं और उससे माफी माँगिए। यहोवा जानता है कि आप अपने गुज़रे कल को बदल नहीं सकते। पर वह यह भी नहीं चाहता कि आप अपने बच्चे को उसकी गलतियों का अंजाम भुगतने से बचाएँ। एक इंसान जो बोएगा, वही काटेगा भी। पर हाँ, अगर आपका बेटा या बेटी यहोवा के पास लौटने के लिए ज़रा भी मेहनत करे, तो यहोवा उसे खुशी-खुशी अपना लेगा।—लूका 15:18-20.
14. अपनी गलतियों के बारे में सोचकर बहुत ज़्यादा दुखी होना क्यों एक भारी बोझ है?
14 अपनी गलती के बारे में सोच-सोचकर बहुत ज़्यादा दुखी होना। अगर हम कोई पाप कर बैठे हैं और दोषी महसूस कर रहे हैं, तो यह गलत नहीं है। लेकिन अगर हम उसके बारे में सोच-सोचकर बहुत ज़्यादा दुखी हो जाएँ, तो यह ऐसा होगा जैसे हमने एक भारी बोझ उठाया हुआ है। हमें इस बोझ को फेंक देना चाहिए। जब हम अपना पाप कबूल कर लेते हैं, पश्चाताप करते हैं और कोशिश करते हैं कि अपनी गलती ना दोहराएँ, तो हम भरोसा रख सकते हैं कि यहोवा ने हमें माफ कर दिया है। (प्रेषि. 3:19) अगर हमने ये कदम उठाए हैं, तो हम यकीन रख सकते हैं कि यहोवा नहीं चाहता कि हम अपनी गलती के बारे में अब दोषी महसूस करें। वह जानता है कि ऐसा करने से हमें ही नुकसान होगा। (भज. 31:10) अगर हम हद-से-ज़्यादा उदास हो जाएँ, तो शायद हम हिम्मत हार बैठें और जीवन की दौड़ में आगे ना बढ़ पाएँ।—2 कुरिं. 2:7.
15. अगर आप अपनी गलती की वजह से बहुत ज़्यादा दुखी महसूस कर रहे हैं, तो आप क्या कर सकते हैं? (1 यूहन्ना 3:19, 20) (तसवीर भी देखें।)
15 आप यह भारी बोझ कैसे फेंक सकते हैं? जब भी आप अपनी गलती की वजह से बहुत ज़्यादा दोषी महसूस करें, तो याद रखिए कि यहोवा हमें “सच्ची माफी” देता है। (भज. ) जो लोग दिल से पश्चाताप करते हैं, यहोवा उन्हें माफ कर देता है और उनसे वादा करता है, ‘मैं तुम्हारा पाप फिर कभी याद नहीं करूँगा।’ ( 130:4यिर्म. 31:34) इसका मतलब, एक बार यहोवा हमें माफ कर दे, तो वह हमारे पाप भूल जाता है, उनके बारे में दोबारा नहीं सोचता। इसलिए जब आपको अपने पाप के अंजाम भुगतने पड़ें, तो ऐसा मत सोचिए कि यहोवा ने आपको माफ नहीं किया है और वह आपको सज़ा दे रहा है। या अगर अपनी गलती की वजह से अब आप यहोवा की उस तरह सेवा नहीं कर पा रहे हैं जैसे आप पहले करते थे, तो खुद को कोसिए मत। यहोवा आपकी गलतियों के बारे में सोचता नहीं रहता और आपको भी ऐसा नहीं करना चाहिए।—1 यूहन्ना 3:19, 20 पढ़िए।
ऐसे दौड़ें कि इनाम जीत सकें
16. जीवन की दौड़ में दौड़ते रहने के लिए हमें क्या पहचानना होगा?
16 हमें जीवन की दौड़ ‘इस तरह दौड़नी है कि हम इनाम जीत सकें।’ (1 कुरिं. 9:24) लेकिन इसके लिए हमें पहचानना होगा कि कौन-सी बातें ऐसा बोझ हैं जिसे हमें उठाकर दौड़ना है और कौन-सी बातें ऐसा भारी बोझ हैं जिसे हमें फेंकना है। इस लेख में हमने ऐसे ही कुछ बोझ और भारी बोझ के बारे में जाना। लेकिन ऐसे और भी कई भारी बोझ हो सकते हैं जिन्हें शायद हम उठाए हुए हों। जैसे यीशु ने कहा था, “हद-से-ज़्यादा खाने और पीने से और ज़िंदगी की चिंताओं के भारी बोझ से कहीं तुम्हारे दिल दब न जाएँ।” (लूका 21:34) इस तरह की आयतों पर ध्यान देने से हम समझ सकते हैं कि हमें कहाँ सुधार करने की ज़रूरत है ताकि हम जीवन की दौड़ पूरी कर पाएँ।
17. हम क्यों यकीन रख सकते हैं कि हम जीवन की दौड़ जीत सकते हैं?
17 हम जीवन की दौड़ जीत सकते हैं, क्योंकि अगर हम कभी कमज़ोर महसूस करें, तो यहोवा हममें दम भर देगा। (यशा. 40:29-31) तो धीमे मत पड़िए! प्रेषित पौलुस की तरह बनिए जिसने इनाम पाने के लिए अपनी पूरी जान लगा दी थी। (फिलि. 3:13, 14) यह दौड़ आपको खुद ही दौड़नी होगी, कोई और आपके लिए नहीं दौड़ सकता। लेकिन यहोवा की मदद से आप इसे पूरा कर सकते हैं। उसकी मदद से आप अपना बोझ उठा सकते हैं और भारी बोझ फेंक सकते हैं। (भज. 68:19) जब यहोवा आपके साथ है, तो यकीन रखिए, आप धीरज से जीवन की यह दौड़ दौड़ सकते हैं और इनाम जीत सकते हैं!
गीत 65 आगे बढ़!
a इस लेख में हम जानेंगे कि हम जीवन की दौड़ कैसे अच्छी तरह दौड़ सकते हैं। हम सबको कुछ बोझ या ज़िम्मेदारियाँ लेकर आगे बढ़ना है। जैसे हमें समर्पण का वादा निभाना है, परिवार की ज़िम्मेदारियाँ पूरी करनी हैं और हम जो फैसले लेते हैं, उनकी ज़िम्मेदारी लेनी है। पर शायद हम कोई गैर-ज़रूरी बोझ लेकर भी दौड़ रहे हों जिससे हम धीमे पड़ सकते हैं। इस तरह का भारी बोझ हमें उतार फेंकना है। इस लेख में हम जानेंगे कि यह भारी बोझ क्या है।
b आप “परिवार के लिए मदद” शृंखला में दिए लेख jw.org पर पढ़ सकते हैं, जैसे पति-पत्नियों के लिए, “अपने साथी की खामियों में ढूँढ़ें खूबियाँ” और “जताइए कि आपको अपने साथी की कदर है”; माता-पिताओं के लिए, “बच्चों को खुद पर काबू रखना सिखाइए” और “अपने किशोर बच्चे से कैसे बात करें”; और नौजवानों के लिए, “लुभानेवाले हालात का विरोध कैसे करें?” और “अकेलेपन को कैसे दूर करें।” इस शृंखला में ऐसे ही और भी कई लेख हैं।