इस जानकारी को छोड़ दें

विषय-सूची को छोड़ दें

अध्ययन लेख 33

दानियेल की मिसाल से सीखिए

दानियेल की मिसाल से सीखिए

“तू परमेश्‍वर के लिए बहुत अनमोल है।”​—दानि. 9:23.

गीत 73 दे निडरता का वरदान!

एक झलक a

1. बैबिलोन के लोगों को दानियेल क्यों अच्छा लगा?

 जब भविष्यवक्‍ता दानियेल नौजवान ही था, तब उसे बंदी बना लिया गया। उसे यरूशलेम में उसके घर से बहुत दूर बैबिलोन ले जाया गया। जब बैबिलोन के अधिकारियों ने उसका “बाहरी रूप” देखा, जब उन्होंने देखा कि उसमें ‘कोई खामी नहीं है, वह दिखने में सुंदर है’ और एक ऊँचे खानदान से है, तो वह उन्हें बहुत अच्छा लगा। (1 शमू. 16:7) इसलिए उन्होंने सोचा कि वे उसे ऐसी शिक्षा देंगे कि वह आगे चलकर राजमहल में सेवा कर सके।​—दानि. 1:3, 4, 6.

2. यहोवा को दानियेल कैसा लगता था? समझाइए। (यहेजकेल 14:14)

2 यहोवा भी दानियेल से प्यार करता था, पर इसलिए नहीं कि वह दिखने में सुंदर था या वह एक ऊँचे ओहदे पर था। यहोवा ने देखा कि वह अंदर से कैसा इंसान है, उसका दिल कैसा है। उसने दानियेल के बारे में कहा कि वह नूह और अय्यूब के जैसा नेक है। नूह और अय्यूब ने तो काफी लंबे समय तक वफादारी से यहोवा की सेवा की थी और उसकी नज़र में एक अच्छा नाम कमाया था। पर क्या आप जानते हैं, जब यहोवा ने दानियेल के बारे में यह बात कही, तब वह शायद 19-20 साल का ही था! (उत्प. 5:32; 6:9, 10; अय्यू. 42:16, 17; यहेजकेल 14:14 पढ़िए।) दानियेल ने एक लंबी ज़िंदगी जी और उसकी ज़िंदगी में बहुत-से उतार-चढ़ाव आए, लेकिन यहोवा ने कभी उसका साथ नहीं छोड़ा और हमेशा उससे प्यार करता रहा।​—दानि. 10:11, 19.

3. इस लेख में हम किस बारे में चर्चा करेंगे?

3 इस लेख में हम दानियेल के ऐसे दो गुणों पर चर्चा करेंगे जिनकी वजह से वह यहोवा को बहुत पसंद था, उसके लिए अनमोल था। सबसे पहले हम उन गुणों के बारे में थोड़ा बात करेंगे और देखेंगे कि किन हालात में दानियेल ने वे गुण ज़ाहिर किए। फिर हम देखेंगे कि दानियेल किस तरह वे गुण बढ़ा पाया। आखिर में हम जानेंगे कि हम दानियेल की तरह कैसे बन सकते हैं और वे गुण कैसे ज़ाहिर कर सकते हैं। यह लेख खास तौर से नौजवानों को ध्यान में रखकर लिखा गया है, लेकिन हम सब दानियेल के उदाहरण से सीख सकते हैं।

दानियेल की तरह हिम्मतवाले बनिए

4. दानियेल ने किस तरह हिम्मत से काम लिया? एक उदाहरण दीजिए।

4 जो लोग हिम्मतवाले होते हैं, कई बार उन्हें भी डर लगता है। लेकिन इस वजह से वे सही काम करने से पीछे नहीं हटते। दानियेल बहुत हिम्मतवाला था। ज़रा ऐसी दो घटनाओं पर गौर कीजिए जब उसने हिम्मत से काम लिया। पहली घटना शायद उस वक्‍त हुई थी जब बैबिलोन के हाथों यरूशलेम का नाश हुए करीब दो साल हो गए थे। बैबिलोन के राजा नबूकदनेस्सर ने सपने में एक विशाल मूरत देखी, जिस वजह से वह बहुत बेचैन हो गया। उसने अपने ज्ञानियों से कहा कि वे उसका सपना और उसका मतलब बताएँ और अगर वे नहीं बता पाए, तो उन्हें जान से मार डाला जाएगा। दानियेल की जान को भी खतरा था। (दानि. 2:3-5) उसे फौरन कदम उठाना था, क्योंकि बहुत-से लोगों की जान दाँव पर लगी थी। वह “राजा के सामने गया और उससे गुज़ारिश की कि अगर राजा उसे थोड़ा वक्‍त दे, तो वह उसे सपने का मतलब बता सकता है।” (दानि. 2:16) इससे पता चलता है कि दानियेल कितना हिम्मतवाला था और उसे परमेश्‍वर पर कितना विश्‍वास था। हम यह क्यों कह सकते हैं? क्योंकि बाइबल में ऐसा कहीं नहीं लिखा है कि दानियेल ने पहले कभी किसी सपने का मतलब बताया था। दानियेल के तीन दोस्त थे जिनके बैबिलोन की भाषा में नाम थे, शदरक, मेशक और अबेदनगो। उसने “उनसे यह प्रार्थना करने के लिए कहा कि स्वर्ग का परमेश्‍वर दया करे और इस रहस्य का खुलासा करे।” (दानि. 2:18) यहोवा ने उनकी प्रार्थनाएँ सुन लीं। परमेश्‍वर की मदद से दानियेल नबूकदनेस्सर के सपने का मतलब बता पाया। इससे दानियेल और उसके दोस्तों की जान बच गयी।

5. दानियेल को किन हालात में एक बार फिर हिम्मत से काम लेना पड़ा?

5 जब दानियेल ने राजा को विशाल मूरत के सपने का मतलब बताया था, उसके कुछ समय बाद एक और ऐसी घटना हुई जब उसे हिम्मत से काम लेना था। राजा नबूकदनेस्सर ने एक और डरावना सपना देखा। इस बार उसने सपने में एक ऊँचा और विशाल पेड़ देखा। दानियेल ने हिम्मत से काम लिया और राजा को उसके सपने का मतलब बताया। उसने राजा से कहा कि वह पागल हो जाएगा और कुछ वक्‍त के लिए राज नहीं कर पाएगा। (दानि. 4:25) राजा सोच सकता था कि दानियेल उससे राजद्रोह कर रहा है और उसे मौत की सज़ा सुना सकता था। फिर भी दानियेल ने हिम्मत से काम लिया और उसे यह संदेश सुनाया।

6. दानियेल शायद किस वजह से हिम्मत से काम ले पाया?

6 दानियेल ने अपनी पूरी ज़िंदगी हिम्मत से काम लिया। वह यह कैसे कर पाया? जब वह छोटा था, तो ज़रूर उसने अपने माता-पिता की अच्छी मिसाल से सीखा होगा। यहोवा ने इसराएली माता-पिताओं को जो हिदायतें दी थीं, उसके माता-पिता ने वे मानी होंगी और दानियेल को परमेश्‍वर के कानून के बारे में सिखाया होगा। (व्यव. 6:6-9) इसलिए दानियेल ना सिर्फ कानून की मोटी-मोटी बातें जानता था, जैसे दस आज्ञाएँ, बल्कि छोटी-छोटी बातें भी जानता था, जैसे इसराएली क्या खा सकते हैं और क्या नहीं। b (लैव्य. 11:4-8; दानि. 1:8, 11-13) दानियेल यह भी जानता था कि बीते दिनों में परमेश्‍वर के लोगों के साथ क्या-क्या हुआ था और जब उन्होंने परमेश्‍वर के स्तर नहीं माने, तो उन्हें क्या अंजाम भुगतने पड़े। (दानि. 9:10, 11) और खुद दानियेल की ज़िंदगी में ऐसा बहुत कुछ हुआ जिससे उसे यकीन हो गया कि यहोवा और उसके स्वर्गदूत उसके साथ हैं।​—दानि. 2:19-24; 10:12, 18, 19.

दानियेल ने शास्त्र का अध्ययन किया, प्रार्थना की और यहोवा पर भरोसा रखा, इस वजह से वह हिम्मत से काम ले पाया (पैराग्राफ 7)

7. दानियेल और किस वजह से हिम्मतवाला बन पाया? (तसवीर भी देखें।)

7 दानियेल परमेश्‍वर के भविष्यवक्‍ताओं की लिखी बातों का भी अध्ययन करता था, जैसे यिर्मयाह की भविष्यवाणियों का। इस वजह से वह आगे चलकर समझ गया कि जो यहूदी काफी लंबे समय से बैबिलोन में बंदी थे, वे बहुत जल्द अपने देश लौटनेवाले हैं। (दानि. 9:2) जब दानियेल ने देखा कि बाइबल की भविष्यवाणियाँ किस तरह पूरी हो रही हैं, तो यहोवा पर उसका भरोसा और भी बढ़ गया होगा। और जिन लोगों को परमेश्‍वर पर पूरा भरोसा होता है, उनमें कमाल की हिम्मत आ जाती है! (रोमियों 8:31, 32, 37-39 से तुलना करें।) सबसे बढ़कर, दानियेल बार-बार परमेश्‍वर यहोवा से प्रार्थना करता था। (दानि. 6:10) वह परमेश्‍वर के सामने अपने पाप कबूल करता था और उसे अपने दिल की हर बात बताता था। वह परमेश्‍वर से मदद भी माँगता था। (दानि. 9:4, 5, 19) दानियेल भी हमारे जैसा ही इंसान था, वह जन्म से हिम्मतवाला नहीं था। उसने शास्त्र का अध्ययन किया, प्रार्थना की और यहोवा पर भरोसा रखा, इस वजह से वह हिम्मतवाला बन पाया।

8. हम हिम्मतवाले कैसे बन सकते हैं?

8 तो हम कैसे हिम्मतवाले बन सकते हैं? हमारे माता-पिता शायद हमसे कहें कि हमें हिम्मत से काम लेना है, लेकिन हिम्मत कोई ऐसी चीज़ नहीं जो वे हमें विरासत में दे सकते हैं। हमें खुद हिम्मतवाले बनना होगा। देखा जाए तो हिम्मतवाले बनना कोई नया हुनर सीखने जैसा है। कोई हुनर सीखने का एक तरीका है कि हम सिखानेवाले को ध्यान से देखें और फिर जैसे वह करता है, वैसे ही करने की कोशिश करें। उसी तरह हिम्मतवाले बनने के लिए ज़रूरी है कि हम दूसरों को ध्यान से देखें कि वे कैसे हिम्मत से काम लेते हैं और फिर उनकी तरह बनने की कोशिश करें। तो हमने दानियेल से क्या सीखा? उसकी तरह हमें परमेश्‍वर के वचन में लिखी बातें अच्छी तरह समझनी हैं। हमें यहोवा से दिल खोलकर और लगातार प्रार्थना करनी है और इस तरह उसके साथ एक मज़बूत रिश्‍ता कायम करना है। और हमें यहोवा पर भरोसा रखना है, पूरा यकीन रखना है कि वह हमेशा हमारा साथ देगा। फिर जब कभी हमारे विश्‍वास की परख होगी, तब हम हिम्मत से काम ले पाएँगे।

9. हिम्मत से काम लेने से कौन-से फायदे होते हैं?

9 जब हम हिम्मत से काम लेते हैं, तो इससे बहुत-से फायदे होते हैं। ज़रा बेन के उदाहरण पर ध्यान दीजिए। वह जर्मनी के एक स्कूल में पढ़ता था, जहाँ सभी बच्चे विकासवाद की शिक्षा मानते थे। उन्हें लगता था कि बाइबल में दुनिया की रचना के बारे में जो लिखा है, वह सच नहीं हो सकता। एक बार बेन को पूरी क्लास के सामने यह बताने का मौका मिला कि वह क्यों यह मानता है कि पेड़-पौधों, जानवरों और इंसानों को किसी ने बनाया है। उसने हिम्मत से काम लिया और सबको इस बारे में बताया। इसका नतीजा क्या हुआ? बेन कहता है, “मेरे टीचर ने बहुत ध्यान से मेरी बात सुनी और मैंने जिस लेख के आधार पर अपनी बात कही थी, उन्होंने उसकी कई कॉपियाँ बनायीं और क्लास के सभी बच्चों को एक-एक दी।” बेन की क्लास के बच्चों का कैसा रवैया था? बेन कहता है, “उनमें से कई बच्चों ने मेरी बात ध्यान से सुनी और उन्होंने मेरी तारीफ की।” बेन के अनुभव से पता चलता है कि जो लोग हिम्मत से काम लेते हैं, उनका अकसर लोग आदर करते हैं। उनकी वजह से अच्छे दिल के लोग शायद यहोवा के बारे में भी जानना चाहें। तो क्यों ना हम सब हिम्मतवाले बनने की कोशिश करें?

दानियेल की तरह हमेशा वफादार रहिए

10. समझाइए कि वफादारी का मतलब क्या है।

10 बाइबल में जिस इब्रानी शब्द का अनुवाद, “वफादारी” या “अटल प्यार” किया गया है, वह अकसर यह बताने के लिए इस्तेमाल हुआ है कि परमेश्‍वर को अपने सेवकों से कितना गहरा लगाव या प्यार है। वही शब्द तब भी इस्तेमाल हुआ है जब परमेश्‍वर के सेवकों के आपसी प्यार की बात की गयी है। (2 शमू. 9:6, 7, फु.) जैसे-जैसे वक्‍त बीतता है, किसी के वफादार रहने का हमारा इरादा और भी पक्का हो सकता है। आइए गौर करें कि दानियेल के मामले में यह बात कैसे सच साबित हुई।

यहोवा दानियेल की वफादारी से खुश था, इसलिए उसने एक स्वर्गदूत को भेजकर शेरों का मुँह बंद कर दिया (पैराग्राफ 11)

11. जब दानियेल बुज़ुर्ग हो गया था, तब उसकी वफादारी की परख कैसे हुई? (बाहर दी तसवीर देखें।)

11 दानियेल की ज़िंदगी में ऐसा कई बार हुआ जब उसके लिए यहोवा का वफादार रहना मुश्‍किल था। लेकिन जब वह 90 से भी ऊपर था, तब उसके सामने एक बहुत बड़ी मुश्‍किल आयी। उस वक्‍त तक मादी और फारस के लोगों ने बैबिलोन पर कब्ज़ा कर लिया था और वहाँ राजा दारा हुकूमत करने लगा था। उसके राज-दरबारी दानियेल को पसंद नहीं करते थे और ना ही उसके परमेश्‍वर की कोई इज़्ज़त करते थे। इसलिए उन्होंने दानियेल को फँसाने और जान से मार डालने की साज़िश रची। उन्होंने राजा से एक फरमान जारी करवाया जिससे इस बात की परख होती कि दानियेल राजा का वफादार रहेगा या अपने परमेश्‍वर का। अगर दानियेल 30 दिन के लिए यहोवा से प्रार्थना करना छोड़ देता, तो यह आसानी से साबित हो जाता कि वह राजा का वफादार है और किसी की नज़रों में नहीं आता। लेकिन दानियेल ने समझौता नहीं किया, वह प्रार्थना करता रहा। उसने ठान लिया था कि वह हर हाल में यहोवा का वफादार रहेगा। इसका नतीजा यह हुआ कि उसे शेरों की माँद में फेंक दिया गया। लेकिन यहोवा दानियेल की वफादारी से खुश था, इसलिए उसने उसे शेरों के मुँह से बचा लिया। (दानि. 6:12-15, 20-22) हम दानियेल की तरह हर हाल में यहोवा के वफादार कैसे रह सकते हैं?

12. दानियेल क्यों हर हाल में यहोवा का वफादार रह पाया?

12 जैसे हमने देखा, हम तभी किसी के वफादार रह पाते हैं जब हमें उससे बहुत प्यार होता है। दानियेल भी इसलिए हर हाल में यहोवा का वफादार रह पाया, क्योंकि वह अपने पिता यहोवा से बहुत प्यार करता था। वह यह प्यार कैसे बढ़ा पाया? वह ज़रूर इस बारे में सोचता होगा कि यहोवा कैसा परमेश्‍वर है, उसमें कौन-कौन-से गुण हैं और उसने ये गुण कैसे ज़ाहिर किए। (दानि. 9:4) दानियेल यह भी सोचता था कि यहोवा ने उसके और अपने लोगों के लिए कितना कुछ किया है और वह इसके लिए बहुत एहसानमंद था।​—दानि. 2:20-23; 9:15, 16.

दानियेल की तरह अगर आप भी यहोवा से प्यार करें, तो आप हर हाल में उसके वफादार रह पाएँगे (पैराग्राफ 13)

13. (क) किन हालात में हमारे नौजवान भाई-बहनों के लिए वफादार रहना मुश्‍किल हो जाता है? एक उदाहरण दीजिए। (तसवीर भी देखें।) (ख) अगर कोई आपसे पूछे कि क्या यहोवा के साक्षी समलैंगिक लोगों का साथ देते हैं, तो आप क्या कह सकते हैं? (jw.org पर दिया वीडियो “सच्ची नेकी की बदौलत हर तरफ शांति होगी”  देखें।)

13 दानियेल की तरह हमारे नौजवान भाई-बहनों को भी आज ऐसे लोगों का सामना करना पड़ता है जो यहोवा और उसके स्तरों की ज़रा भी कदर नहीं करते। शायद वे ऐसे लोगों को बिलकुल पसंद ना करें जिनका धर्म या जिनकी सोच उनसे अलग हो। और कुछ लोग तो हमारे नौजवानों को शायद इतना परेशान करें कि उनके लिए यहोवा का वफादार रहना मुश्‍किल हो जाए। ज़रा ध्यान दीजिए कि ऑस्ट्रेलिया में रहनेवाले ग्रेहम नाम के एक नौजवान के साथ क्या हुआ। जब वह स्कूल में था, तब उसे एक मुश्‍किल हालात का सामना करना पड़ा। एक बार उसकी टीचर ने क्लास के सभी बच्चों से पूछा कि अगर आपका कोई दोस्त आपसे कहे कि वह समलैंगिक है, तो आप क्या करेंगे। फिर टीचर ने कहा कि जिन बच्चों को लगता है, समलैंगिक होने में कोई बुराई नहीं है, वे एक तरफ खड़े हो जाएँ और जिन्हें लगता है यह गलत है, वे दूसरी तरफ। ग्रेहम कहता है, “मुझे और एक दूसरे साक्षी को छोड़ क्लास के सभी बच्चे एक तरफ जाकर खड़े हो गए। उन्हें लगता था कि समलैंगिक होने में कोई बुराई नहीं है।” इसके बाद जो हुआ, उससे ग्रेहम की वफादारी की और भी परख हुई। वह बताता है, “करीब एक घंटे तक वह टीचर और दूसरे बच्चे हमारा मज़ाक उड़ाते रहे और हमारी बेइज़्ज़ती करते रहे। मैंने पूरी कोशिश की कि मैं जो मानता हूँ उस बारे में शांति से उन्हें समझाऊँ, पर वे मेरी सुन ही नहीं रहे थे।” उस वक्‍त ग्रेहम को कैसा लगा? वह बताता है, “उन्होंने मुझे बहुत कुछ कहा। मुझे बुरा तो लगा, पर मैं इस बात से बहुत खुश था कि मैं यहोवा का वफादार रह पाया और मैं जो मानता हूँ उस बारे में उन्हें बता पाया।”

14. हर हाल में यहोवा के वफादार रहने का एक तरीका क्या है?

14 आप भी हर हाल में यहोवा के वफादार रह सकते हैं। वह कैसे? अगर आप दानियेल की तरह उसके लिए अपना प्यार बढ़ाएँ। और ऐसा करने का एक तरीका है, उसके गुणों के बारे में जानना। इसके लिए हम उसकी बनायी चीज़ों का अध्ययन कर सकते हैं। (रोमि. 1:20) जितना हम ऐसा करेंगे उतना ही हम उससे प्यार करने लगेंगे और उसका आदर करने लगेंगे। इसके लिए आप चाहें तो “क्या इसे रचा गया था?” शृंखला में दिए छोटे-छोटे लेख पढ़ सकते हैं या वीडियो देख सकते हैं। या फिर आप जीवन की शुरूआत, पाँच सवाल​—जवाब पाना ज़रूरी ब्रोशर पढ़ सकते हैं। c ध्यान दीजिए कि इस तरह के प्रकाशनों के बारे में डेनमार्क में रहनेवाली हमारी एक नौजवान बहन एस्टर क्या कहती है, “इनमें तर्क करके बातें इतने बढ़िया तरीके से समझायी गयी हैं कि क्या कहूँ! इन प्रकाशनों में यह नहीं बताया गया है कि आपको क्या मानना चाहिए और क्या नहीं, बल्कि इनमें बस सही-सही जानकारी दी गयी है, जिससे आप खुद तय कर सकते हैं कि आप क्या मानेंगे।” बेन जिसके बारे में पहले बताया गया था कहता है, “यह जानकारी पढ़कर मेरा विश्‍वास बहुत बढ़ गया। इससे मुझे यकीन हो गया कि परमेश्‍वर ने ही हरेक जीव को बनाया है।” इन प्रकाशनों में दी जानकारी पढ़कर आप भी ज़रूर बाइबल में लिखी इस बात से सहमत होंगे, “हे यहोवा, हमारे परमेश्‍वर, तू महिमा, आदर और शक्‍ति पाने के योग्य है क्योंकि तू ही ने सारी चीज़ें रची हैं।”​—प्रका. 4:11. d

15. यहोवा से अपनी दोस्ती पक्की करने का एक और तरीका क्या है?

15 यहोवा के लिए अपना प्यार बढ़ाने का एक और तरीका है उसके बेटे यीशु के जीवन में हुई घटनाओं का अध्ययन करना। जर्मनी में रहनेवाली एक नौजवान बहन समीरा ने ऐसा ही किया। वह कहती है, “यीशु के बारे में जानने से मैं यहोवा को और अच्छी तरह जान पायी।” जब वह छोटी थी, तो उसे यह समझना मुश्‍किल लगता था कि यहोवा उसका दोस्त हो सकता है और वह उससे प्यार कर सकता है। लेकिन जब यीशु की बात आती थी, तो वह समझ जाती थी कि उसे कैसा महसूस होता होगा। उसने यह भी कहा, “यीशु सबके साथ बहुत अच्छे-से पेश आता था और बच्चों से बहुत प्यार करता था, इसलिए वह मुझे बहुत अच्छा लगता था।” जितना ज़्यादा उसने यीशु के बारे में जाना, उतना ही वह यहोवा को अच्छे-से जान पायी और उससे प्यार करने लगी। वह बताती है, “धीरे-धीरे मैं समझने लगी कि यीशु सबकुछ अपने पिता की तरह करता है। वे दोनों एक जैसे हैं। मैं समझ पायी कि यह एक वजह थी कि क्यों यहोवा ने यीशु को धरती पर भेजा, ताकि उसके ज़रिए सब लोग यहोवा को और अच्छी तरह जान पाएँ।” (यूह. 14:9) अगर आप यहोवा के साथ अपनी दोस्ती और पक्की करना चाहते हैं, तो क्यों ना आपसे जितना हो सके उतना यीशु के बारे में जानने की कोशिश करें? जब आप ऐसा करेंगे, तो यहोवा के लिए आपका प्यार बढ़ेगा और आप हमेशा उसके वफादार रहना चाहेंगे।

16. वफादार होने से हमें कौन-से फायदे होते हैं? (भजन 18:25; मीका 6:8)

16 जो लोग दूसरों के वफादार रहते हैं, उनके अकसर अच्छे दोस्त बन जाते हैं जो हमेशा उनका साथ देते हैं। (रूत 1:14-17) और जो लोग यहोवा के वफादार रहते हैं, उन्हें मन की शांति और सुकून मिलता है। वह इसलिए कि यहोवा ने वादा किया है, जो उसके वफादार रहते हैं, वह भी उनका वफादार रहेगा। (भजन 18:25; मीका 6:8 पढ़िए।) ज़रा सोचिए, यह कितनी बड़ी बात है कि पूरे जहान का बनानेवाला हम इंसानों से दोस्ती करना चाहता है! और जब उसके साथ हमारी पक्की दोस्ती होती है, तो कोई भी मुश्‍किल, कोई भी विरोधी, यहाँ तक कि मौत भी उसे तोड़ नहीं सकती। (दानि. 12:13; लूका 20:37, 38; रोमि. 8:38, 39) तो क्यों ना हम सब दानियेल की तरह बनें और हमेशा यहोवा के वफादार रहें?

दानियेल से सीखते रहिए

17-18. दानियेल से हम और क्या सीख सकते हैं?

17 इस लेख में हमने दानियेल के बस दो गुणों पर चर्चा की। लेकिन हम उससे और भी बहुत कुछ सीख सकते हैं। जैसे यहोवा ने दानियेल को कई दर्शन और सपने दिखाए और उसने दानियेल को भविष्य में होनेवाली बातों का मतलब समझाने की भी काबिलीयत दी। उनमें से कई भविष्यवाणियाँ पूरी हो चुकी हैं। और दूसरी कुछ भविष्यवाणियों में आगे चलकर होनेवाली ऐसी घटनाओं के बारे में बताया गया है जिनका धरती पर रहनेवाले हर इंसान को सामना करना होगा।

18 अगले लेख में हम दानियेल की लिखी दो भविष्यवाणियों पर चर्चा करेंगे। उन्हें समझने से बूढ़े-जवान सभी को फायदा होगा और हम सब अच्छे फैसले ले पाएँगे। उन भविष्यवाणियों का अध्ययन करने से हम और भी हिम्मत से काम ले पाएँगे और वफादार रहने का हमारा इरादा और भी पक्का हो जाएगा। इससे हम उन घटनाओं के लिए खुद को तैयार कर पाएँगे जो बहुत जल्द होनेवाली हैं।

गीत 119 क्या ईमान हम में है खरा?

a आज यहोवा के नौजवान सेवकों के सामने कई बार ऐसे हालात आते हैं जिनमें हिम्मत से काम लेना और यहोवा के वफादार रहना उनके लिए मुश्‍किल हो सकता है। शायद उनकी क्लास के बच्चे उनका मज़ाक उड़ाएँ, क्योंकि वे मानते हैं कि परमेश्‍वर ने सबकुछ बनाया है। या शायद दूसरे बच्चे उन्हें यह महसूस कराने की कोशिश करें कि वे बेवकूफ हैं, क्योंकि वे परमेश्‍वर की सेवा करते हैं और सही-गलत के बारे में उसके स्तरों के हिसाब से जीते हैं। लेकिन जैसे हम इस लेख में देखेंगे, जो दानियेल की तरह हिम्मत से काम लेते हैं और वफादारी से यहोवा की सेवा करते हैं, वे ही सच में बुद्धिमान हैं।

b दानियेल ने शायद तीन वजहों से बैबिलोन के लोगों का खाना खाने से इनकार कर दिया था: (1) वह शायद ऐसे जानवरों का माँस था जिन्हें मूसा के कानून में खाने से मना किया गया था। (व्यव. 14:7, 8) (2) शायद उन जानवरों का खून अच्छी तरह बहाया नहीं गया था। (लैव्य. 17:10-12) (3) उसे खाना झूठे देवताओं की उपासना करने के बराबर माना जा सकता था, क्योंकि वहाँ अकसर जानवरों को पहले झूठे देवी-देवताओं के सामने बलिदान किया जाता था।​—लैव्यव्यवस्था 7:15 और 1 कुरिंथियों 10:18, 21, 22 से तुलना करें।

c आप चाहें तो वॉज़ लाइफ क्रिएटेड  ब्रोशर भी पढ़ सकते हैं।

d यहोवा से और भी ज़्यादा प्यार करने के लिए आप यहोवा के करीब आओ  किताब का भी अध्ययन कर सकते हैं। इसमें यहोवा के गुणों और उसके स्वभाव के बारे में खुलकर समझाया गया है।