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आज़ादी दिलानेवाले परमेश्‍वर, यहोवा की सेवा कीजिए

आज़ादी दिलानेवाले परमेश्‍वर, यहोवा की सेवा कीजिए

“जहाँ यहोवा की पवित्र शक्‍ति है, वहाँ आज़ादी है।”​—2 कुरिं. 3:17.

गीत: 11, 137

1, 2. (क) पौलुस के दिनों में लोगों को गुलामी और आज़ादी जैसे विषयों में क्यों दिलचस्पी थी? (ख) पौलुस के मुताबिक कौन सच्ची आज़ादी दिला सकता है?

शुरू के मसीही, रोमी साम्राज्य में रहते थे। वहाँ लोग अपने नियम-कानून, न्याय-व्यवस्था और अपनी आज़ादी पर बहुत घमंड करते थे। लेकिन यह शक्‍तिशाली साम्राज्य अपने ज़्यादातर काम गुलामों से करवाता था। कहा जाता है कि इस साम्राज्य में हर तीसरा व्यक्‍ति गुलाम था। ज़ाहिर-सी बात है कि गुलामी और आज़ादी ऐसे विषय थे जिनमें आम लोगों को यहाँ तक कि मसीहियों को भी खास दिलचस्पी थी।

2 प्रेषित पौलुस ने अपनी चिट्ठियों में अकसर आज़ादी के बारे में लिखा। मगर उसकी सेवा का मकसद समाज या सरकार को बदलना नहीं था। इसके बजाय, वह और दूसरे मसीही परमेश्‍वर के राज की खुशखबरी सुनाते थे और लोगों को मसीह यीशु के फिरौती बलिदान की अहमियत के बारे में बताते थे। पौलुस ने अपने मसीही भाइयों को बताया कि उन्हें सच्ची आज़ादी कौन दिला सकता है। उसने लिखा, “यहोवा अदृश्‍य है और जहाँ यहोवा की पवित्र शक्‍ति है, वहाँ आज़ादी है।”​—2 कुरिं. 3:17.

3, 4. (क) दूसरा कुरिंथियों 3:17 से पहले की आयतों में पौलुस ने क्या बताया? (ख) यहोवा जो आज़ादी दिलाता है, उसे पाने के लिए हमें क्या करना होगा?

3 ध्यान दीजिए कि 2 कुरिंथियों 3:17 से पहले की आयतों में पौलुस ने किस बारे में बात की। उसने बताया कि जब मूसा, यहोवा के स्वर्गदूत की मौजूदगी में रहने के बाद सीनै पहाड़ से नीचे उतरा तो क्या हुआ। उसके चेहरे से तेज चमक रहा था! इसराएली उसका तेज देखकर डर गए इसलिए मूसा ने अपना चेहरा परदे से ढक लिया। (निर्ग. 34:29, 30, 33; 2 कुरिं. 3:7, 13) पौलुस ने फिर समझाया, “मगर जब कोई पलटकर यहोवा के पास आता है, तो वह परदा हटा दिया जाता है।” (2 कुरिं. 3:16) उसके कहने का क्या मतलब था?

4 जैसा कि हमने पिछले लेख में सीखा था, सिर्फ हमारे सृष्टिकर्ता यहोवा के पास पूरी आज़ादी है और उसकी आज़ादी की कोई सीमा नहीं। इसलिए “जहाँ यहोवा की पवित्र शक्‍ति है,” वहाँ आज़ादी होगी ही। पौलुस ने कहा कि अगर हम यह आज़ादी पाना चाहते हैं, तो हमें यहोवा के पास आना होगा। इसका मतलब है कि हमें उसके साथ एक करीबी रिश्‍ता बनाना होगा। वीराने में रहते वक्‍त इसराएलियों ने ऐसा नहीं किया। उन्होंने यहोवा का नज़रिया अपनाने के बजाय इंसानी सोच अपनायी। यह ऐसा था मानो उनके दिलो-दिमाग पर परदा पड़ा था। मिस्र से उन्हें जो आज़ादी मिली थी, उसका इस्तेमाल वे अपने स्वार्थ के लिए करना चाहते थे।​—इब्रा. 3:8-10.

5. (क) यहोवा की पवित्र शक्‍ति हमें किस तरह की आज़ादी दिलाती है? (ख) समझाइए कि कैसे एक व्यक्‍ति गुलाम होने या जेल में कैद होने के बावजूद आज़ादी पा सकता है? (ग) हम किन सवालों पर चर्चा करेंगे?

5 यहोवा की पवित्र शक्‍ति हमें ऐसी आज़ादी दिलाती है जो इंसान कभी नहीं दिला सकता। यह हमें पाप और मौत की गुलामी से और झूठे धर्म और उसके रीति-रिवाज़ों से आज़ाद करती है। (रोमि. 6:23; 8:2) यह आज़ादी वाकई लाजवाब है! जो व्यक्‍ति गुलाम है या जेल में कैद है, वह भी यह आज़ादी पा सकता है। (उत्प. 39:20-23) भाई हैरल्ड किंग को अपने विश्‍वास के लिए कई साल जेल में कैद किया गया था फिर भी उनके पास वह आज़ादी थी जो पवित्र शक्‍ति ने उन्हें दी थी। आप उनका इंटरव्यू JW ब्रॉडकास्टिंग पर देख सकते हैं। (इंटरव्यू और अनुभव > परीक्षाओं का सामना कैसे करें में देखिए।) अब आइए हम दो सवालों पर चर्चा करें। एक, हम कैसे दिखा सकते हैं कि हम अपनी आज़ादी को अनमोल समझते हैं? और दो, हम अपनी आज़ादी का सही इस्तेमाल कैसे कर सकते हैं?

यहोवा जो आज़ादी दिलाता है, वह अनमोल है

6. इसराएलियों ने कैसे दिखाया कि वे अपनी आज़ादी के लिए एहसानमंद नहीं थे?

6 जब कोई हमें अनमोल तोहफा देता है तो हम उस व्यक्‍ति के कितने एहसानमंद होते हैं! लेकिन जब यहोवा ने इसराएलियों को मिस्र से आज़ाद किया तो वे उसका एहसान भूल गए। उन्हें आज़ाद हुए कुछ ही महीने हुए थे कि वे मिस्र की खाने-पीने की चीज़ों के लिए तरसने लगे। जब यहोवा ने उन्हें खाने के लिए मन्‍ना दिया, तो वे कुड़कुड़ाने लगे। बात इस हद तक बढ़ गयी कि वे वापस मिस्र जाना चाहते थे! ज़रा सोचिए, अब वे गुलाम नहीं थे बल्कि यहोवा की उपासना करने के लिए आज़ाद थे। फिर भी उन्हें इस अनमोल आज़ादी की नहीं बल्कि मिस्र की ‘मछलियों, खीरे, तरबूज़, लहसुन और प्याज़’ की पड़ी थी! इसीलिए यहोवा का क्रोध उन पर भड़क उठा। (गिन. 11:5, 6, 10; 14:3, 4) इससे हमें एक अहम सीख मिलती है। वह क्या?

7. पौलुस खुद उस सलाह पर कैसे चला जो उसने 2 कुरिंथियों 6:1 में दी थी और हम कैसे उस पर चल सकते हैं?

7 यहोवा ने अपने बेटे मसीह के ज़रिए हमें आज़ादी दिलायी है। पौलुस ने सभी मसीहियों को सलाह दी कि वे यहोवा के इस एहसान को कभी न भूलें। (2 कुरिंथियों 6:1 पढ़िए।) पौलुस अपरिपूर्ण था और पाप और मौत का गुलाम था। इस वजह से वह खुद को बहुत लाचार महसूस करता था। फिर भी उसने कहा, “हमारे प्रभु, यीशु मसीह के ज़रिए परमेश्‍वर का धन्यवाद हो!” पौलुस ने ऐसा क्यों कहा? इस बारे में वह भाइयों को समझाता है, “क्योंकि पवित्र शक्‍ति के कानून ने, जो मसीह यीशु में जीवन देता है, तुम्हें पाप और मौत के कानून से आज़ाद कर दिया है।” (रोमि. 7:24, 25; 8:2) पौलुस की तरह हमें भी कभी नहीं भूलना चाहिए कि यहोवा ने हमें पाप और मौत की गुलामी से आज़ाद किया है। फिरौती बलिदान की बदौलत हम साफ ज़मीर से यहोवा की सेवा कर पाते हैं और हमें सच्ची खुशी मिलती है।​—भज. 40:8.

क्या आप अपनी आज़ादी का इस्तेमाल यहोवा की सेवा करने के लिए करते हैं या अपनी इच्छाएँ पूरी करने के लिए? (पैराग्राफ 8-10 देखिए)

8, 9. (क) हमारी आज़ादी के बारे में प्रेषित पतरस ने क्या चेतावनी दी? (ख) एक व्यक्‍ति शायद किस तरह अपनी आज़ादी का गलत इस्तेमाल करे?

8 यहोवा का एहसान मानने के अलावा, हमें अपनी आज़ादी का गलत इस्तेमाल करने से दूर रहना चाहिए। प्रेषित पतरस ने चेतावनी दी कि हम अपनी आज़ादी को बुरे काम करने के लिए बहाना न बनाएँ। (1 पतरस 2:16 पढ़िए।) इस चेतावनी से हमें याद आता है कि वीराने में इसराएलियों के साथ क्या हुआ था। आज हमें पहले से कहीं ज़्यादा इस चेतावनी पर ध्यान देना है। शैतान और उसकी दुनिया पहनावे, खाने-पीने और मनोरंजन के मामले में हमें लुभाने की कोशिश करते हैं। विज्ञापन बनानेवाले बड़ी चालाकी से खूबसूरत लोगों का इस्तेमाल करके चीज़ों का विज्ञापन करते हैं। उन्हें देखकर शायद हम भी वे चीज़ें खरीदने के लिए लुभाए जाएँ जिनकी हमें ज़रूरत नहीं। सच, यह दुनिया बड़ी आसानी से हमें अपनी आज़ादी का गलत इस्तेमाल करने के लिए उकसा सकती है।

9 हमें पतरस की चेतावनी पर तब भी ध्यान देना चाहिए जब हम शिक्षा, नौकरी या करियर के बारे में गंभीर फैसले करते हैं। मिसाल के लिए, आज नौजवानों पर बहुत दबाव डाला जाता है कि वे मेहनत करें ताकि उन्हें बड़ी-बड़ी यूनिवर्सिटी में दाखिला मिले। उनसे कहा जाता है कि ऊँची शिक्षा लेने से उन्हें अच्छी नौकरी मिल सकती है और वे बहुत पैसा, नाम और इज़्ज़त कमा सकते हैं। लोग उन्हें शायद कुछ ऐसी बातें बताएँ जिनसे लग सकता है कि यूनिवर्सिटी से ग्रैजुएट हुए लोग, हाई स्कूल तक पढ़े लोगों से ज़्यादा पैसा कमाते हैं। इन सब बातों से नौजवानों को शायद लगे कि ऊँची शिक्षा हासिल करना ही फायदेमंद होगा। मगर उन्हें और उनके माता-पिताओं को क्या बात याद रखनी चाहिए?

10. निजी मामलों में फैसला लेते वक्‍त हमें क्या याद रखना चाहिए?

10 कुछ लोगों को लग सकता है कि शिक्षा या करियर चुनना एक व्यक्‍ति का निजी मामला है और सबको अपने ज़मीर के मुताबिक फैसला करने की आज़ादी है। शायद वे सोचें, “दूसरों के ज़मीर की वजह से मेरी आज़ादी पर रोक क्यों लगे?” यह सच है कि निजी मामलों में हमारे पास फैसले करने की आज़ादी है, लेकिन हमें याद रखना चाहिए कि हमारी आज़ादी की कुछ सीमाएँ हैं और हमारे फैसले के अच्छे या बुरे अंजाम होते हैं। इसलिए पौलुस ने कहा, “सब बातों की मुझे इजाज़त है, मगर सब बातें फायदेमंद नहीं। सब बातें जायज़ तो हैं, मगर सब बातें हौसला नहीं बढ़ातीं।” (1 कुरिं. 10:23, फु.) तो फिर, भले ही निजी मामलों में हमारे पास फैसला करने की आज़ादी है, लेकिन हमारी इच्छाएँ सबसे ज़्यादा अहमियत नहीं रखतीं।

अपनी आज़ादी का सही इस्तेमाल कीजिए यहोवा की सेवा कीजिए

11. यहोवा ने हमें क्यों आज़ाद किया है?

11 जब पतरस ने आज़ादी का गलत इस्तेमाल करने की चेतावनी दी, तो उसने यह भी कहा कि हम अपनी आज़ादी का सही इस्तेमाल कैसे कर सकते हैं। वह है कि हमें ‘परमेश्‍वर का दास बनकर’ जीना है। यहोवा ने यीशु के ज़रिए हमें पाप और मौत की गुलामी से इसलिए आज़ाद किया ताकि हम अपनी ज़िंदगी उसे समर्पित करें और उसकी सेवा करें।

12. नूह और उसका परिवार कैसे हमारे लिए एक अच्छी मिसाल है?

12 अपनी आज़ादी का इस्तेमाल करने का सबसे बेहतरीन तरीका है, अपना समय और ताकत यहोवा की सेवा में लगाना। जब हम ऐसा करते हैं, तो हम दुनियावी लक्ष्यों और अपनी इच्छाओं को ज़िंदगी में सबसे पहली जगह नहीं देते। (गला. 5:16) नूह और उसके परिवार की मिसाल लीजिए। वे ऐसी दुनिया में जी रहे थे जो खूँखार और बदचलन लोगों से भरी थी। मगर उन्होंने उनकी देखा-देखी नहीं की। इसके बजाय, वे उस काम में लगे रहे जो यहोवा ने उन्हें दिया था। उन्होंने जहाज़ बनाया, अपने लिए और जानवरों के लिए खाना इकट्ठा किया और आनेवाले जलप्रलय के बारे में लोगों को खबरदार किया। बाइबल बताती है, “नूह ने हर काम वैसा ही किया जैसा परमेश्‍वर ने उसे आज्ञा दी थी। उसे जैसा बताया गया था, उसने ठीक वैसा ही किया।” (उत्प. 6:22) नतीजा, नूह और उसका परिवार उस दुष्ट दुनिया के विनाश से ज़िंदा बचे।​—इब्रा. 11:7.

13. यहोवा ने हमें क्या आज्ञा दी है?

13 आज यहोवा ने हमें भी एक आज्ञा दी है। यीशु के चेले होने के नाते हमें प्रचार करने की आज्ञा मिली है। (लूका 4:18, 19 पढ़िए।) आज शैतान ने ज़्यादातर लोगों को इस कदर अंधा कर दिया है कि उन्हें एहसास तक नहीं कि वे झूठे धर्म, धन-दौलत और राजनैतिक व्यवस्था के गुलाम हैं। (2 कुरिं. 4:4) यीशु की मिसाल पर चलते हुए हमें लोगों की मदद करनी है ताकि वे आज़ादी दिलानेवाले परमेश्‍वर यहोवा को जानें और उसकी उपासना करें। (मत्ती 28:19, 20) लेकिन प्रचार करना आसान नहीं। कुछ जगहों में लोग परमेश्‍वर में दिलचस्पी नहीं रखते और कुछ लोग तो हमें प्रचार करते देख भड़क जाते हैं। लेकिन यहोवा ने हमें प्रचार करने की आज्ञा दी है, इसलिए हमें खुद से पूछना चाहिए, ‘क्या मैं यहोवा की सेवा में और ज़्यादा करने के लिए अपनी आज़ादी का इस्तेमाल करूँगा?’

14, 15. यहोवा के कई सेवकों ने क्या करने का फैसला किया है? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)

14 यह देखकर हमें बहुत हौसला मिलता है कि इन आखिरी दिनों में यहोवा के कई सेवकों ने अपनी ज़िंदगी को सादा किया है और पायनियर सेवा शुरू की है। (1 कुरिं. 9:19, 23) कुछ भाई-बहनों ने अपनी मंडली में ही पायनियर सेवा की है तो कुछ ने दूसरी मंडलियों में जाकर सेवा की है। पिछले पाँच सालों में 2,50,000 से भी ज़्यादा भाई-बहनों ने पायनियरिंग शुरू की है और 11,00,000 से भी ज़्यादा भाई-बहन पायनियर सेवा कर रहे हैं। यह कितनी अच्छी बात है कि यहोवा के बहुत-से सेवक अपनी आज़ादी का सही इस्तेमाल कर रहे हैं!​—भज. 110:3.

15 अपनी आज़ादी का सही इस्तेमाल करने में किस बात ने इन भाई-बहनों की मदद की है? जॉन और जूडिथ की मिसाल लीजिए, जिन्होंने पिछले 30 सालों में अलग-अलग देशों में सेवा की। उन्होंने बताया कि 1977 में जब ‘पायनियर सेवा स्कूल’ शुरू हुआ, तो विद्यार्थियों को बढ़ावा दिया गया था कि वे ऐसी जगह जाकर सेवा करें जहाँ प्रचारकों की ज़्यादा ज़रूरत है। जॉन और जूडिथ ने दूसरे देश में जाकर सेवा करने का लक्ष्य रखा। इसके लिए उन्हें अपनी ज़िंदगी को सादा रखना पड़ा और जॉन को कई बार अपनी नौकरी भी बदलनी पड़ी। आखिरकार उन्होंने अपना लक्ष्य पा लिया। नए देश में उनके सामने कुछ मुश्‍किलें आयीं जैसे नयी भाषा सीखना, नयी संस्कृति और नए देश के मौसम में खुद को ढालना। इन मुश्‍किलों को पार करने में किस बात ने उनकी मदद की? उन्होंने यहोवा से प्रार्थना की और उस पर निर्भर रहे। उन सालों के दौरान यहोवा की सेवा करने के बारे में वे कैसा महसूस करते हैं? जॉन बताता है, “मैं कह सकता हूँ कि मैं सबसे बढ़िया काम में लगा हुआ था। मैं यहोवा के और भी करीब महसूस करता हूँ, ठीक जैसे एक बच्चा अपने पिता के करीब महसूस करता है। अब मैं और भी अच्छी तरह समझ पाया हूँ कि याकूब 4:8 में लिखी बात का क्या मतलब है, ‘परमेश्‍वर के करीब आओ और वह तुम्हारे करीब आएगा।’ मैं ज़िंदगी में जिस मकसद को ढूँढ़ रहा था, वह आखिरकार मुझे मिल ही गया। मैं बहुत खुश हूँ।”

16. हज़ारों भाई-बहनों ने किस तरह अपनी आज़ादी का सही इस्तेमाल किया है?

16 कुछ लोगों के हालात जॉन और जूडिथ की तरह न हों। वे शायद सिर्फ कुछ वक्‍त के लिए पूरे समय की सेवा कर पाएँ। इन हालात में भी कई भाई-बहन, दुनिया-भर में हो रहे निर्माण काम के लिए आगे आते हैं। मिसाल के लिए, न्यू यॉर्क के वॉरविक में जब विश्‍व मुख्यालय का निर्माण हो रहा था, तो करीब 27,000 भाई-बहन हाथ बँटाने आए। कुछ भाई-बहन दो हफ्ते के लिए आए, कुछ चंद महीनों के लिए तो कुछ साल-भर या उससे लंबे समय के लिए आए। वॉरविक में सेवा करने के लिए इनमें से बहुतों को त्याग करने पड़े। ये भाई-बहन वाकई हमारे लिए एक अच्छी मिसाल हैं! इन्होंने अपनी आज़ादी का सही इस्तेमाल किया है और आज़ादी दिलानेवाले परमेश्‍वर, यहोवा की तारीफ और महिमा की है।

17. अपनी आज़ादी का सही इस्तेमाल करने से हम किस शानदार भविष्य की आस लगा सकते हैं?

17 हम इस बात के लिए कितने एहसानमंद हैं कि हमने यहोवा को जाना है और हमारे पास वह आज़ादी है जो सिर्फ उसकी उपासना करने से मिलती है। तो फिर आइए हम अपने फैसलों से दिखाएँ कि हम इस आज़ादी को बहुत अनमोल समझते हैं। इस आज़ादी का गलत इस्तेमाल करने के बजाय, हम यहोवा की जी-जान से सेवा करने के लिए इसका इस्तेमाल करें। फिर हम उस शानदार भविष्य की आस लगा सकेंगे जिसका वादा यहोवा ने किया था। उस वक्‍त के बारे में यह भविष्यवाणी की गयी है, “सृष्टि भी भ्रष्टता की गुलामी से आज़ाद होकर परमेश्‍वर के बच्चे होने की शानदार आज़ादी पाएगी।”​—रोमि. 8:21.