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भजन 144:12-15 में किन लोगों की बात की गयी है? परमेश्‍वर के लोगों की या उन दुष्ट परदेसियों की जिनका ज़िक्र आयत 11 में किया गया है?

मूल इब्रानी भाषा में इस भजन को पढ़कर दोनों मतलब निकाले जा सकते हैं। लेकिन आइए कुछ वजहों पर गौर करें जिनसे हम इस भजन की सही समझ पा सकते हैं:

  1. इस भजन की आयतों पर गौर कीजिए। आयत 12 में शब्द “तब” का जिस तरह इस्तेमाल हुआ है, उससे यही समझ आता है कि आयत 12-14 में जिन आशीषों की बात की गयी हैं, वे नेक जन को मिलेंगी। दूसरे शब्दों में कहें तो यह वह इंसान है जो आयत 11 में बिनती करता है कि परमेश्‍वर उसे दुष्टों से “छुड़ाकर बचा ले।” यह बात आयत 15 से भी मेल खाती है, जहाँ दो बार शब्द “सुखी” आता है और दोनों ही बार यह उन लोगों पर लागू होता है “जिनका परमेश्‍वर यहोवा है!”

  2. यह समझ बाइबल की दूसरी आयतों से मेल खाती है, जहाँ परमेश्‍वर वादा करता है कि वह अपने वफादार सेवकों को आशीषें देगा। भजन 144 से ज़ाहिर होता है कि दाविद को पक्की आशा थी कि परमेश्‍वर, इसराएल राष्ट्र को दुश्‍मनों से छुड़ाएगा और फिर अपने लोगों को आशीषें देगा। वे सुखी रहेंगे और खुशहाली का आनंद उठाएँगे। (लैव्य. 26:9, 10; व्यव. 7:13; भज. 128:1-6) मिसाल के लिए, व्यवस्थाविवरण 28:4 बताता है, “तुम्हारे बच्चों पर, तुम्हारी ज़मीन की उपज पर और तुम्हारे बछड़ों और मेम्नों पर परमेश्‍वर की आशीष बनी रहेगी।” दाविद के बेटे सुलैमान के राज में यह बात बिलकुल सच साबित हुई। पूरे देश में ऐसी शांति और खुशहाली थी जैसी पहले कभी नहीं देखी गयी! यही नहीं, सुलैमान का शासन इस बात की एक झलक थी कि मसीहा के राज में हालात कैसे होंगे।​—1 राजा 4:20, 21; भज. 72:1-20.

तो फिर, यह कहा जा सकता है कि भजन 144:12-15 में परमेश्‍वर के लोगों की बात की गयी है। इससे हमें भजन 144 की और भी साफ समझ मिलती है। वह यह कि यहोवा के सेवक बरसों से आस लगाए हुए हैं कि परमेश्‍वर दुष्टों को सज़ा देगा और उसके बाद नेक जनों के लिए शांति और खुशहाली लाएगा।​—भज. 37:10, 11.