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यहोवा की तरह बनिए​—जो हौसला बढ़ानेवाला परमेश्‍वर है

यहोवा की तरह बनिए​—जो हौसला बढ़ानेवाला परमेश्‍वर है

‘परमेश्‍वर की तारीफ हो। वह हमारी सब परीक्षाओं में हमें हौसला देता है।’​—2 कुरिं. 1:3, 4, फु.

गीत: 23, 152

1. आदम-हव्वा की बगावत के बाद यहोवा ने किस तरह इंसानों को हिम्मत और आशा दी?

यहोवा हौसला देनेवाला परमेश्‍वर है और शुरू से ही इंसानों का हौसला बढ़ाता आया है। जब आदम और हव्वा ने बगावत की तो ऐसा लगा कि सबकुछ खत्म हो गया। लेकिन यहोवा ने तुरंत एक ऐसी भविष्यवाणी की जिससे आदम की आनेवाली संतानों को हिम्मत और आशा मिलती। यह भविष्यवाणी उत्पत्ति 3:15 में दर्ज़ है जिसमें वादा किया गया है कि शैतान और उसके सारे दुष्ट कामों को नष्ट कर दिया जाएगा।​—1 यूह. 3:8; प्रका. 12:9.

बीते समय में यहोवा ने अपने सेवकों का हौसला बढ़ाया

2. यहोवा ने किस तरह नूह का हौसला बढ़ाया?

2 ध्यान दीजिए कि यहोवा ने अपने सेवक नूह का किस तरह हौसला बढ़ाया। नूह के ज़माने में हर तरफ खून-खराबा हो रहा था और लोग बदचलन ज़िंदगी जी रहे थे। नूह ही अकेला ऐसा था जो अपने परिवार के साथ यहोवा की उपासना कर रहा था। ऐसे माहौल में वह बड़ी आसानी से निराश हो सकता था। (उत्प. 6:4, 5, 11; यहू. 6) मगर यहोवा ने नूह को बताया कि वह जल्द ही उस दुष्ट दुनिया का नाश करनेवाला है। उसने नूह से यह भी कहा कि उसे अपनी और अपने परिवार की जान बचाने के लिए क्या करना होगा। (उत्प. 6:13-18) इस तरह नूह को यहोवा की सेवा में लगे रहने और सही काम करते रहने की हिम्मत मिली। (उत्प. 6:9) सच, यहोवा ने क्या ही बढ़िया तरीके से नूह की हौसला-अफज़ाई की।

3. यहोवा ने यहोशू की हिम्मत बँधाने के लिए क्या किया? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)

3 आगे चलकर यहोवा ने अपने सेवक यहोशू का भी हौसला बढ़ाया जिसे एक भारी ज़िम्मेदारी दी गयी थी। उसे परमेश्‍वर के लोगों को वादा किए गए देश में ले जाना था। यह कोई आसान काम नहीं था क्योंकि उसे वहाँ रहनेवाले ताकतवर राष्ट्रों पर जीत हासिल करनी थी। यहोवा जानता था कि यहोशू के मन में डर समा सकता है, इसलिए उसने मूसा से कहा, “तू यहोशू को अगुवा ठहरा और उसकी हिम्मत बँधा और उसे मज़बूत कर क्योंकि वही इन लोगों के आगे-आगे चलकर यरदन पार करेगा और उस देश को उनके अधिकार में कर देगा जो तू देखनेवाला है।” (व्यव. 3:28) यही नहीं, यहोवा ने खुद भी यहोशू की हिम्मत बँधायी। उसने उससे कहा, “मैं एक बार फिर तुझसे कहता हूँ, हिम्मत से काम लेना और हौसला रखना। तू न डरना, न खौफ खाना क्योंकि तू जहाँ-जहाँ जाएगा तेरा परमेश्‍वर यहोवा तेरे साथ रहेगा।” (यहो. 1:1, 9) ज़रा सोचिए, इन शब्दों से यहोशू को कितनी हिम्मत मिली होगी!

4, 5. (क) बीते समय में यहोवा ने कैसे अपने लोगों की हिम्मत बँधायी? (ख) यहोवा ने किस तरह अपने बेटे का हौसला बढ़ाया?

4 यहोवा ने एक समूह के तौर पर भी अपने लोगों का हौसला बढ़ाया। मिसाल के लिए, यहोवा अच्छी तरह जानता था कि जब यहूदी बैबिलोन की बँधुआई में जाएँगे तो उन्हें हौसले की ज़रूरत होगी। इसलिए उसने एक भविष्यवाणी के ज़रिए उनकी हौसला-अफज़ाई की। उसने कहा, “डर मत क्योंकि मैं तेरे साथ हूँ, घबरा मत क्योंकि मैं तेरा परमेश्‍वर हूँ। मैं तेरी हिम्मत बँधाऊँगा, तेरी मदद करूँगा, नेकी के दाएँ हाथ से तुझे सँभाले रहूँगा।” (यशा. 41:10) आगे चलकर यहोवा ने शुरू के मसीहियों का भी हौसला बढ़ाया और आज हमारा भी हौसला बढ़ाता है।​—2 कुरिंथियों 1:3, 4 पढ़िए।

5 यहोवा ने अपने बेटे का भी हौसला बढ़ाया। यीशु के बपतिस्मे पर स्वर्ग से एक आवाज़ आयी जो यह कह रही थी, “यह मेरा प्यारा बेटा है। मैंने इसे मंज़ूर किया है।” (मत्ती 3:17) ज़रा सोचिए, इससे यीशु को धरती पर अपनी सेवा पूरी करने की कितनी हिम्मत मिली होगी!

यीशु ने दूसरों का हौसला बढ़ाया

6. तोड़ों की मिसाल से हमें क्या बढ़ावा मिलता है?

6 यीशु ने भी अपने पिता की तरह दूसरों की हिम्मत बँधायी। उसने उन्हें यहोवा के वफादार रहने का बढ़ावा दिया। यह बात हमें तोड़ों की मिसाल से पता चलती है। उस मिसाल में मालिक ने अपने हरेक दास की तारीफ की और कहा, “शाबाश, अच्छे और विश्‍वासयोग्य दास! तू थोड़ी चीज़ों में विश्‍वासयोग्य रहा। मैं तुझे बहुत-सी चीज़ों पर अधिकार दूँगा। अपने मालिक के साथ खुशियाँ मना।” (मत्ती 25:21, 23) बेशक, इन शब्दों से यीशु के चेलों को वफादारी से यहोवा की सेवा करते रहने का बढ़ावा मिला होगा।

7. यीशु ने किस तरह अपने प्रेषितों का और खासकर पतरस का हौसला बढ़ाया?

7 यीशु ने हमेशा अपने प्रेषितों का हौसला बढ़ाया, तब भी जब वे उसे निराश करते थे। कई बार जब वे बहस करते थे कि उनमें सबसे बड़ा कौन है, तो यीशु उनके साथ सब्र से पेश आया। उसने उन्हें बढ़ावा दिया कि वे नम्र रहें और दूसरों से अपनी सेवा करवाने के बजाय उनकी सेवा करें। (लूका 22:24-26) उनमें से एक प्रेषित, पतरस ने तो कई बार गलतियाँ कीं और यीशु को निराश किया। (मत्ती 16:21-23; 26:31-35, 75) मगर यीशु ने उससे अपना नाता नहीं तोड़ लिया। इसके बजाय, उसने उसका हौसला बढ़ाया और अपने भाइयों को मज़बूत करने की ज़िम्मेदारी भी दी।​—यूह. 21:16.

पुराने ज़माने में किन्हें हौसले की ज़रूरत थी?

8. हिजकियाह ने यहूदा के सेनापतियों और लोगों का हौसला बढ़ाने के लिए क्या किया?

8 यीशु ने हौसला बढ़ाने के मामले में एक अच्छी मिसाल रखी। लेकिन यीशु के दिनों से पहले भी यहोवा के वफादार सेवकों को पता था कि दूसरों का हौसला बढ़ाना कितना ज़रूरी है! राजा हिजकियाह इसकी एक मिसाल है। जब अश्‍शूरी, यरूशलेम पर हमला करनेवाले थे, तो हिजकियाह ने सेनापतियों और लोगों को इकट्ठा किया और उनकी हिम्मत बँधायी। नतीजा, उसके “शब्दों से लोगों को बहुत हौसला मिला।”​—2 इतिहास 32:6-8 पढ़िए।

9. हौसला देने के बारे में हम अय्यूब से क्या सीखते हैं?

9 अब आइए अय्यूब की मिसाल पर ध्यान दें जिस पर कई मुसीबतें आयीं। हालाँकि खुद उसे हौसले की ज़रूरत थी, लेकिन उसने दूसरों का हौसला बढ़ाने में एक अच्छी सीख दी। उसने अपने तीन साथियों से कहा कि अगर वह उनकी जगह होता, तो उनकी तकलीफ बढ़ाने के बजाय ‘अपने शब्दों से उन्हें हिम्मत देता और अपनी बातों से उनका दुख हलका करता।’ (अय्यू. 16:1-5) आखिरकार अय्यूब को जिस हौसले की ज़रूरत थी, उसे वह एलीहू और खुद यहोवा से मिला।​—अय्यू. 33:24, 25; 36:1, 11; 42:7, 10.

10, 11. (क) यिप्तह की बेटी को हौसले की ज़रूरत क्यों थी? (ख) आज हम किन लोगों का हौसला बढ़ा सकते हैं?

10 न्यायी यिप्तह की बेटी को भी हौसले की ज़रूरत थी। जब उसका पिता अम्मोनियों से लड़ने जा रहा था, तो उसने यहोवा से एक मन्‍नत मानी। यिप्तह ने कहा कि अगर यहोवा मुझे लड़ाई में जीत दिलाए, तो मेरे घर से जो व्यक्‍ति सबसे पहले मुझसे मिलने आएगा, उसे मैं यहोवा की सेवा में दे दूँगा। यहोवा ने इसराएल को जीत दिलायी और यिप्तह से मिलने सबसे पहले उसकी इकलौती बेटी आयी। यह देखकर यिप्तह बहुत दुखी हुआ! मगर उसने अपनी मन्‍नत पूरी की और अपनी बेटी को पवित्र डेरे में भेज दिया ताकि वह वहाँ रहकर ज़िंदगी-भर यहोवा की सेवा करे।​—न्यायि. 11:30-35.

11 यह सच है कि यिप्तह के लिए अपनी मन्‍नत पूरी करना आसान नहीं था, लेकिन उसकी बेटी के लिए यह और भी मुश्‍किल था। फिर भी, उसने खुशी-खुशी अपने पिता की मन्‍नत पूरी की। (न्यायि. 11:36, 37) वह जानती थी कि इस मन्‍नत को मानने से वह ज़िंदगी-भर कुँवारी रहती, उसके कभी बच्चे नहीं होते और उसके खानदान का नाम मिट जाता। ज़ाहिर-सी बात है कि उसे दिलासे और हौसले की बहुत ज़रूरत थी। उसे हौसला कहाँ से मिला? बाइबल बताती है, “इसराएल में यह दस्तूर बन गया कि हर साल चार दिन के लिए इसराएली लड़कियाँ, गिलादी यिप्तह की बेटी की तारीफ करने उसके पास जाया करती थीं।” (न्यायि. 11:39, 40) यिप्तह की बेटी की तरह आज ऐसे कई मसीही हैं जो अविवाहित रहते हैं ताकि वे यहोवा की सेवा में ज़्यादा-से-ज़्यादा कर पाएँ। क्यों न हम ऐसे भाई-बहनों की तारीफ करें और उनका हौसला बढ़ाएँ?​—1 कुरिं. 7:32-35.

प्रेषितों ने भाइयों का हौसला बढ़ाया

12, 13. पतरस ने कैसे “अपने भाइयों को मज़बूत” किया?

12 यीशु ने अपनी ज़िंदगी की आखिरी रात प्रेषित पतरस से कहा, “शमौन, शमौन, देख! शैतान ने तुम लोगों को गेहूँ की तरह फटकने की माँग की है। मगर मैंने तेरे लिए मिन्‍नत की है कि तू अपना विश्‍वास खो न दे। जब तू पश्‍चाताप करके लौट आए, तो अपने भाइयों को मज़बूत करना।”​—लूका 22:31, 32.

प्रेषितों की चिट्ठियों से पहली सदी के मसीहियों का हौसला बढ़ा और आज हमारा भी हौसला बढ़ता है (पैराग्राफ 12-17 देखिए)

13 पतरस उन भाइयों में से एक था जिसने पहली सदी में मसीही मंडली की अगुवाई की। (गला. 2:9) उसने पिन्तेकुस्त के दिन हिम्मत की जो मिसाल रखी, उससे भाइयों को बहुत हौसला मिला और आगे भी मिलता रहा। पतरस ने अपनी लंबी सेवा के आखिर में भाइयों को लिखा, “मैंने तुम्हें ये चंद शब्द लिखे हैं ताकि तुम्हारी हिम्मत बँधाऊँ और तुम्हें यकीन दिलाऊँ कि यही परमेश्‍वर की सच्ची महा-कृपा है। तुम इसमें मज़बूती से खड़े रहो।” (1 पत. 5:12) पतरस ने अपनी चिट्ठियों से उस समय के भाइयों का हौसला बढ़ाया और आज ये हमारा भी हौसला बढ़ाती हैं। सच, हमें इस हौसले की कितनी ज़रूरत है, खासकर इस वक्‍त जब हम यहोवा के वादों के पूरा होने का इंतज़ार कर रहे हैं।​—2 पत. 3:13.

14, 15. प्रेषित यूहन्‍ना की लिखी किताबों से कैसे हमारा हौसला बढ़ता है?

14 पतरस की तरह प्रेषित यूहन्‍ना भी मसीही मंडली की अगुवाई करता था। उसने खुशखबरी की अपनी किताब में यीशु की सेवा के बारे में रोमांचक जानकारी दी। बाइबल की इस किताब ने सदियों से मसीहियों का हौसला बढ़ाया है और आज हमारा भी हौसला बढ़ाती है। मिसाल के लिए, सिर्फ यूहन्‍ना की किताब में हम यीशु की यह बात पढ़ते हैं कि प्यार, उसके सच्चे चेलों की पहचान है।​—यूहन्‍ना 13:34, 35 पढ़िए।

15 खुशखबरी की किताब के अलावा, यूहन्‍ना की तीन चिट्ठियों में भी कई अनमोल सच्चाइयाँ बतायी गयी हैं। जैसे, जब हम अपनी गलतियों की वजह से निराश हो जाते हैं, तो यह पढ़कर हमें कितनी राहत मिलती है कि यीशु का फिरौती बलिदान “हमारे सभी पापों को धोकर हमें शुद्ध करता है।” (1 यूह. 1:7) या जब हमारा दिल हमें दोषी ठहराता है तो हमें इन शब्दों से दिलासा मिलता है, “परमेश्‍वर हमारे दिलों से बड़ा है।” (1 यूह. 3:20) बाइबल लेखकों में से सिर्फ यूहन्‍ना ने लिखा कि “परमेश्‍वर प्यार है।” (1 यूह. 4:8, 16) उसने अपनी दूसरी और तीसरी चिट्ठियों में उन मसीहियों की तारीफ की, जो “सच्चाई की राह पर चल रहे हैं।”​—2 यूह. 4; 3 यूह. 3, 4.

16, 17. प्रेषित पौलुस ने किस तरह अपने भाइयों की हिम्मत बढ़ायी?

16 अपने भाइयों का हौसला बढ़ाने में प्रेषित पौलुस एक बेहतरीन मिसाल है। यीशु की मौत के कुछ ही समय बाद, ज़्यादातर प्रेषित यरूशलेम में ही रहे जहाँ शासी निकाय था। (प्रेषि. 8:14; 15:2) यहूदिया के मसीहियों ने जिन लोगों को मसीह के बारे में प्रचार किया, वे पहले से एक ही परमेश्‍वर को मानते थे। लेकिन पवित्र शक्‍ति ने पौलुस को जिन लोगों के पास भेजा था, वे यूनानी, रोमी और गैर-यहूदी थे और कई देवी-देवताओं को पूजते थे।​—गला. 2:7-9; 1 तीमु. 2:7.

17 पौलुस ने यूनान, इटली और उस इलाके में प्रचार किया जो आज तुर्की के नाम से जाना जाता है। वहाँ उसने गैर-यहूदियों को खुशखबरी सुनायी और उन जगहों में मंडलियाँ शुरू कीं। इन नए मसीहियों के लिए ज़िंदगी आसान नहीं थी। मसीही बनने की वजह से उन्हें अपने ही देश के लोगों के हाथों ज़ुल्म सहने पड़े। इस वजह से उन्हें हौसला-अफज़ाई की ज़रूरत थी। (1 थिस्स. 2:14) ईसवी सन्‌ 50 के आस-पास पौलुस ने चिट्ठी लिखकर थिस्सलुनीके की नयी मंडली की हिम्मत बढ़ायी। उसमें उसने कहा, ‘हम जब भी प्रार्थनाओं में तुम्हारा ज़िक्र करते हैं, तो हमेशा परमेश्‍वर का धन्यवाद करते हैं। हम हर वक्‍त तुम्हें याद करते हैं कि तुम कैसे विश्‍वासयोग्य रहकर सेवा करते हो, प्यार से कड़ी मेहनत करते हो और धीरज धरते हो।’ (1 थिस्स. 1:2, 3) फिर उसने नए भाइयों को एक-दूसरे की हिम्मत बँधाने का बढ़ावा भी दिया। उसने लिखा, “एक-दूसरे का हौसला बढ़ाते रहो और एक-दूसरे को मज़बूत करते रहो।”​—1 थिस्स. 5:11.

शासी निकाय हौसला बढ़ाता है

18. पहली सदी के शासी निकाय ने क्या किया जिससे फिलिप्पुस का हौसला बढ़ा?

18 पहली सदी में यहोवा ने शासी निकाय के ज़रिए सभी मसीहियों का हौसला बढ़ाया, उनका भी जो मंडलियों की अगुवाई करते थे। मिसाल के लिए, जब फिलिप्पुस सामरिया के लोगों को मसीह के बारे में प्रचार करने लगा, तो शासी निकाय के भाइयों ने उसे पूरा सहयोग दिया। उन्होंने अपने दो सदस्य, पतरस और यूहन्‍ना को सामरिया भेजा। इन भाइयों ने नए मसीहियों के लिए प्रार्थना की ताकि वे पवित्र शक्‍ति पाएँ। (प्रेषि. 8:5, 14-17) शासी निकाय के इस सहयोग से फिलिप्पुस और उन नए भाई-बहनों का कितना हौसला बढ़ा होगा!

19. शासी निकाय की चिट्ठी पढ़कर शुरू के मसीहियों को कैसा लगा?

19 आगे चलकर शासी निकाय को एक ज़रूरी फैसला करना था कि क्या गैर-यहूदी मसीहियों को मूसा के कानून के मुताबिक खतना करवाना चाहिए? (प्रेषि. 15:1, 2) शासी निकाय ने पवित्र शक्‍ति के लिए प्रार्थना की और शास्त्र से तर्क-वितर्क किया। फिर वे इस नतीजे पर पहुँचे कि अब से खतना करवाना ज़रूरी नहीं। उन्होंने अपना फैसला एक चिट्ठी के ज़रिए समझाया और भाइयों के हाथ अलग-अलग मंडलियों तक पहुँचायी। जब मसीहियों ने यह चिट्ठी पढ़ी, तो “उन्हें बहुत हौसला मिला और वे बेहद खुश हुए।”​—प्रेषि. 15:27-32.

20. (क) आज शासी निकाय किन लोगों का हौसला बढ़ाता है और कैसे? (ख) अगले लेख में हम क्या चर्चा करेंगे?

20 आज यहोवा के साक्षियों का शासी निकाय बेथेल में और बेथेल के बाहर सेवा करनेवाले खास पूरे समय के सेवकों का और हम सबका हौसला बढ़ाता है। पहली सदी के मसीहियों की तरह हम भी यह हौसला पाकर बेहद खुश होते हैं। इसके अलावा, शासी निकाय ने 2015 में यहोवा के पास लौट आइए ब्रोशर तैयार किया ताकि वह उन लोगों को वापस आने का बढ़ावा दे सके जो सच्चाई छोड़कर चले गए हैं। लेकिन सवाल उठता है कि क्या सिर्फ अगुवाई करनेवाले भाइयों की यह ज़िम्मेदारी है कि वे दूसरों का हौसला बढ़ाएँ? क्या यह हम सबकी भी ज़िम्मेदारी नहीं? इस बारे में हम अगले लेख में चर्चा करेंगे।