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अध्ययन लेख 18

‘अपनी दौड़ पूरी कीजिए’

‘अपनी दौड़ पूरी कीजिए’

“मैंने अपनी दौड़ पूरी कर ली है।”—2 तीमु. 4:7.

गीत 129 हम धीरज धरेंगे

लेख की एक झलक *

1. हम सबको क्या करते रहना है?

क्या आप एक ऐसी दौड़ में हिस्सा लेना चाहेंगे जो बहुत मुश्‍किल है? शायद नहीं। अगर आप बीमार हैं या थके हुए हैं, तो आप बिलकुल भी हिस्सा नहीं लेना चाहेंगे। लेकिन प्रेषित पौलुस ने एक ऐसी दौड़ के बारे में बताया जिसमें सभी सच्चे मसीही दौड़ रहे हैं। (इब्रा. 12:1) चाहे हम बूढ़े हों या जवान, अच्छा दमखम रखते हों या कमज़ोर हों, हम सबको अंत तक दौड़ते रहना है। तभी हमें यहोवा से इनाम मिलेगा।​—मत्ती 24:13.

2. दूसरा तीमुथियुस 4:7, 8 के मुताबिक पौलुस दौड़ पूरी करने की सलाह क्यों दे पाया?

2 प्रेषित पौलुस ने “अपनी दौड़ पूरी कर ली” थी, इसलिए वह मसीहियों को दौड़ पूरी करने की सलाह दे पाया। (2 तीमुथियुस 4:7, 8 पढ़िए।) लेकिन वह जिस दौड़ की बात कर रहा था, वह असल में क्या है?

यह दौड़ क्या है?

3. पौलुस ने किस दौड़ की बात की?

3 पौलुस कभी-कभी कुछ अहम बातें सिखाने के लिए प्राचीन यूनान में होनेवाले खेलों की मिसाल देता था। (1 कुरिं. 9:25-27; 2 तीमु. 2:5) उसने कई बार बताया कि मसीहियों की ज़िंदगी एक दौड़ जैसी है। (1 कुरिं. 9:24; गला. 5:7; फिलि. 2:16) जब एक व्यक्‍ति समर्पण करके बपतिस्मा लेता है, तो वह “दौड़” शुरू करता है। (1 पत. 3:21) और जब वह अंतिम रेखा पार कर लेगा, तो यहोवा उसे इनाम में हमेशा की ज़िंदगी देगा।​—मत्ती 25:31-34, 46; 2 तीमु. 4:8.

4. इस लेख में हम क्या गौर करेंगे?

4 लंबी दूरी की दौड़ और मसीही ज़िंदगी में कुछ समानताएँ हैं। इस लेख में हम इस तरह की तीन समानताओं पर गौर करेंगे। एक यह है कि हमें नियमों के मुताबिक दौड़ना होता है। दूसरी, हमारा ध्यान अंतिम रेखा पर होना चाहिए और तीसरी, हमें रास्ते में आनेवाली रुकावटों को पार करना है।

नियमों के मुताबिक दौड़िए

हम सबको नियमों के मुताबिक दौड़ना चाहिए (पैराग्राफ 5-7 देखें) *

5. हमें कैसी ज़िंदगी जीनी चाहिए? क्यों?

5 एक दौड़ में धावकों को उन नियमों के मुताबिक दौड़ना होता है जो उनके लिए तय किया जाता है। तभी उन्हें इनाम मिलता है। उसी तरह हमें बाइबल के सिद्धांतों के मुताबिक जीना चाहिए, तभी हम इनाम के तौर पर हमेशा की ज़िंदगी पाएँगे। (प्रेषि. 20:24; 1 पत. 2:21) लेकिन शैतान और उसके लोग नहीं चाहते कि हम इस राह पर दौड़ें। शैतान के लोग चाहते हैं कि हम उनकी तरह पुराने तौर-तरीके से जीएँ। (1 पत. 4:4) वे हमारा मज़ाक उड़ाते हैं क्योंकि हम बाइबल के सिद्धांतों को मानते हैं। वे कहते हैं कि उनके जीने का तरीका ही सही है। उन्हें लगता है कि वे आज़ाद हैं, क्योंकि वे जो चाहे कर सकते हैं। लेकिन उनकी यह सोच गलत है।​—2 पत. 2:19.

6. ब्रायन ने जो किया उससे आपने क्या सीखा?

6 कुछ मसीही शैतान की दुनिया के बहकावे में आ जाते हैं और उसके लोगों के साथ दौड़ने लगते हैं। मगर उन्हें आगे चलकर एहसास होता है कि वे आज़ाद नहीं हैं बल्कि शैतान के और अपनी इच्छाओं के गुलाम बन गए हैं। (रोमि. 6:16) ब्रायन नाम के एक लड़के के साथ ऐसा ही हुआ। जब वह छोटा था, तो उसके माता-पिता ने उसे सच्चाई की राह पर जीना सिखाया था। लेकिन जब वह बड़ा हुआ, तो उसे लगा कि एक मसीही की ज़िंदगी जीने से वह खुश नहीं रह पाएगा। इसलिए वह दुनियावी लोगों से दोस्ती करने लगा और उनकी दौड़ में शामिल हो गया। वह कहता है, ‘उस वक्‍त मुझे एहसास नहीं हुआ कि जिस आज़ादी के पीछे मैं भाग रहा था, उसी वजह से मैं कई तरह की बुरी आदतों का गुलाम बन जाऊँगा। समय के गुज़रते, मैंने ड्रग्स लेना, शराब पीना और बदचलनी की ज़िंदगी जीना शुरू कर दिया। अगले कई सालों तक मैं और भी खतरनाक ड्रग्स आज़माने लगा और इनमें से कई ड्रग्स का आदी हो गया। मेरी ये लत दिन-ब-दिन बढ़ती गयी, इसलिए इन्हें पूरा करने के लिए मैं ड्रग्स बेचने लगा।’ बाद में ब्रायन ने फैसला किया कि वह यहोवा के बताए तरीके से जीएगा। उसने गलत राह पर दौड़ना छोड़ दिया और साल 2001 में बपतिस्मा ले लिया। इस तरह उसने जीवन की दौड़ में दौड़ना शुरू किया। आज वह सही मायनों में खुश है, क्योंकि वह उस राह पर दौड़ रहा है जो मसीहियों के लिए तय की गयी है। *

7. मत्ती 7:13, 14 के मुताबिक हमारे सामने कौन-से दो रास्ते हैं?

7 यह बहुत ज़रूरी है कि हम सही रास्ता चुनें। शैतान चाहता है कि हम सब तंग रास्ते पर दौड़ना छोड़ दें जो “जीवन की तरफ ले जाता है” और उस खुले रास्ते पर दौड़ने लगें जिस पर दुनिया के ज़्यादातर लोग दौड़ रहे हैं। खुले रास्ते पर दौड़ना बहुत आसान है, मगर यह “विनाश की तरफ ले जाता है।” (मत्ती 7:13, 14 पढ़िए।) हमें ध्यान रखना है कि हम तंग रास्ते पर ही दौड़ते रहें और उससे न भटकें। इसके लिए हमें यहोवा पर भरोसा रखना चाहिए और उसकी बात सुननी चाहिए।

अपनी नज़र इनाम पर रखिए

हमें इनाम पर नज़र रखनी है और दूसरों को ठोकर नहीं खिलाना है (पैराग्राफ 8-12 देखें) *

8. जब धावक गिर जाते हैं, तो वे क्या करते हैं?

8 लंबी दौड़ में हिस्सा लेनेवाले सामने की तरफ सड़क को देखते हुए दौड़ते हैं ताकि किसी चीज़ से ठोकर खाकर गिर न पड़ें। लेकिन दौड़ते वक्‍त अगर एक धावक का पैर दूसरे धावक से लग जाए या अनजाने में उसका पैर किसी गड्ढे में चला जाए, तो वह गिर सकता है। ऐसे में भी धावक तुरंत उठ जाते हैं और फिर से दौड़ने लगते हैं। वे रुककर यह नहीं देखते कि वे क्यों गिर गए थे। वे बस अपनी नज़र अंतिम रेखा पर और इनाम पर लगाए रखते हैं।

9. अगर हमें ठोकर लग जाए, तो हमें क्या करना चाहिए?

9 जीवन पाने की दौड़ में भी हम कई बार ठोकर खाकर गिर सकते हैं। कभी हमारे मुँह से कुछ गलत बात निकल जाती है, तो कभी हम कुछ गलत कर बैठते हैं। या फिर हमारे भाई-बहनों की गलतियों की वजह से हम ठोकर खा सकते हैं। जब ऐसा होता है तो हमें हैरान नहीं होना चाहिए, क्योंकि हम सब गलती करनेवाले इंसान हैं। हम सब तंग रास्ते में दौड़ रहे हैं, इसलिए हो सकता है हम कभी एक-दूसरे को ठोकर खिला दें। पौलुस ने कहा कि हम सबको कभी-कभी एक-दूसरे से “शिकायत” हो सकती है। (कुलु. 3:13) लेकिन हमें बैठकर यह नहीं सोचते रहना है कि हमें क्यों ठोकर लगी है बल्कि हमें अपनी नज़र इनाम पर लगाए रखनी है। हमें तुरंत उठ जाना है और दौड़ते रहना है। अगर हम नाराज़ रहें और यहोवा की सेवा करना छोड़ दें, तो हम अंतिम रेखा नहीं पार कर पाएँगे और इनाम नहीं पाएँगे। हमारी वजह से दूसरे भाई-बहन भी खुशी से यहोवा की सेवा नहीं कर पाएँगे जो तंग रास्ते पर दौड़ने के लिए बहुत मेहनत कर रहे हैं।

10. हम और किस बात का ध्यान रख सकते हैं ताकि दूसरों को ठोकर न लगे?

10 हमारी वजह से दूसरों को “ठोकर” न लगे, इसके लिए हम एक और बात का ध्यान रख सकते हैं। वह यह कि जहाँ तक हो सके हमें भाई-बहनों को अपनी पसंद-नापसंद के हिसाब से जीने देना चाहिए। हमें यह कोशिश नहीं करनी चाहिए कि वे हमारे मुताबिक ही काम करें। (रोमि. 14:13, 19-21; 1 कुरिं. 8:9, 13) हम उन धावकों की तरह नहीं हैं जो सचमुच की दौड़ में हिस्सा लेते हैं। वे एक-दूसरे से आगे निकलने की कोशिश करते हैं और हर कोई सिर्फ अपने बारे में सोचता है कि इनाम किसी तरह उसी को मिलना चाहिए। हर कोई सबसे आगे रहना चाहता है। लेकिन जीवन की दौड़ में हम एक-दूसरे को हराने की कोशिश नहीं करते। (गला. 5:26; 6:4) हम चाहते हैं कि ज़्यादा-से-ज़्यादा लोग अंतिम रेखा पार करें और उन्हें भी इनाम मिले। हम पौलुस की यह सलाह मानते हैं, “हर एक सिर्फ अपने भले की फिक्र में न रहे, बल्कि दूसरे के भले की भी फिक्र करे।”​—फिलि. 2:4.

11. दौड़नेवाले अपनी नज़र किस पर लगाए रखते हैं और क्यों?

11 दौड़ में हिस्सा लेनेवाले न सिर्फ सड़क को देखते हुए दौड़ते हैं बल्कि अपनी नज़र अंतिम रेखा पर लगाए रखते हैं। वे अंतिम रेखा को देख नहीं सकते, फिर भी वे कल्पना करते हैं कि वे अंतिम रेखा को पार कर रहे हैं और उन्हें इनाम मिल रहा है। हमेशा इनाम के बारे में सोचने से उन्हें दौड़ते रहने की हिम्मत मिलती है।

12. यहोवा ने हमसे क्या वादा किया है?

12 यहोवा ने वादा किया है कि जो लोग जीवन की दौड़ पूरी करेंगे, उन्हें वह ज़रूर इनाम देगा। कुछ लोगों को स्वर्ग में हमेशा की ज़िंदगी मिलेगी और कुछ लोगों को धरती पर। बाइबल में बताया गया है कि हमेशा की ज़िंदगी कैसी होगी, इसलिए हम कल्पना कर सकते हैं कि आनेवाले समय में हमारी ज़िंदगी कितनी खुशहाल होगी। इस इनाम के बारे में सोचते रहने से हम हर मुश्‍किल को सह पाएँगे। अगर हम ठोकर खाकर गिर जाएँ, तो भी उठ जाएँगे।

मुश्‍किलों के बावजूद दौड़ते रहिए

मुश्‍किलों के बावजूद हमें जीवन की दौड़ में दौड़ते रहना है (पैराग्राफ 13-20 देखें) *

13. हमारे पास ऐसा क्या है जो यूनान के धावकों के पास नहीं था?

13 प्राचीन यूनान में जो लोग दौड़ में हिस्सा लेते थे, उनके सामने कुछ मुश्‍किलें आती थीं। दौड़ते-दौड़ते वे थक जाते थे और उन्हें दर्द भी होने लगता था। उन्हें जो प्रशिक्षण दिया जाता और उनमें जो ताकत होती थी, उसी के बल पर वे दौड़ते थे। हमें भी सिखाया जाता है कि हम कैसे जीवन की दौड़ में दौड़ते रह सकते हैं। लेकिन यूनान के धावकों और हममें एक फर्क है। हम उनकी तरह अपने बल पर नहीं दौड़ते। हमें यहोवा से ताकत मिलती है। चाहे किसी भी तरह की मुश्‍किल आए, यहोवा हमारी मदद कर सकता है ताकि हम दौड़ते रहें। अगर हम यहोवा पर निर्भर रहेंगे, तो वह हमें सिखाएगा कि हम कैसे दौड़ते रह सकते हैं। वह हमें मज़बूत भी करेगा।​—1 पत. 5:10.

14. दूसरा कुरिंथियों 12:9, 10 से हम मुश्‍किलें सहने के बारे में क्या सीखते हैं?

14 पौलुस को कई मुश्‍किलों का सामना करना पड़ा था। विरोधियों ने कई बार उसकी बेइज़्ज़ती की और उस पर ज़ुल्म किए। इसके अलावा, वह खुद भी कई बार कमज़ोर महसूस करता था। उसे एक ऐसी तकलीफ से गुज़रना पड़ा जो उसके ‘शरीर में काँटे’ जैसी थी। (2 कुरिं. 12:7) लेकिन उन मुश्‍किलों की वजह से उसने यहोवा की सेवा करना नहीं छोड़ा। वह यहोवा की ताकत से दौड़ता रहा। (2 कुरिंथियों 12:9, 10 पढ़िए।) पौलुस मुश्‍किलों के बावजूद डटा रहा, इसलिए यहोवा ने उसकी मदद की।

15. पौलुस की तरह डटे रहने से हम क्या देख सकेंगे?

15 सच्चाई की वजह से हमें भी ज़ुल्म सहना पड़ सकता है और हमारी बेइज़्ज़ती हो सकती है। या फिर बीमारी या बुढ़ापे की वजह से शायद हम कमज़ोर हो जाएँ। ऐसे में भी अगर हम पौलुस की तरह डटे रहें, तो हम देख सकेंगे कि यहोवा कैसे हमें सँभालता है।

16. अगर आप बीमार रहते हैं, तो भी आप क्या कर सकते हैं?

16 क्या आप बीमारी की वजह से बिस्तर से उठ नहीं सकते या आपको व्हीलचेयर का सहारा लेना पड़ता है? क्या आपको घुटनों में दर्द रहता है या आपकी आँखें कमज़ोर हो गयी हैं? ऐसी कमज़ोरियों के होते हुए क्या आप उन लोगों के साथ दौड़ सकते हैं जो जवान और सेहतमंद हैं? आप ज़रूर दौड़ सकते हैं। बहुत-से भाई-बहन बुज़ुर्ग और बीमार होते हुए भी जीवन की दौड़ में दौड़ रहे हैं। वे अपनी ताकत से नहीं दौड़ते। वे सभाओं के ज़रिए यहोवा से ताकत पाते हैं। वे भले ही राज-घर नहीं जा पाते, मगर फोन या स्ट्रीमिंग से सभाओं का आनंद लेते हैं। वे चेले बनाने का काम भी करते हैं। वे डॉक्टरों, नर्सों और रिश्‍तेदारों को गवाही देते हैं।

17. जिन भाई-बहनों की सेहत ठीक नहीं रहती, उनके बारे में यहोवा कैसा महसूस करता है?

17 अगर आप बीमारी या बुढ़ापे की वजह से यहोवा की सेवा उतनी नहीं कर पाते जितना आप चाहते हैं, तो निराश मत होइए। यह मत मान बैठिए कि आप कमज़ोर हैं और जीवन की दौड़ में अंत तक नहीं दौड़ सकते। यहोवा आपसे प्यार करता है, क्योंकि आपको उस पर मज़बूत विश्‍वास है और आपने बरसों से उसकी सेवा की है। आज आपको पहले से ज़्यादा यहोवा से मदद की ज़रूरत है, इसलिए वह आपको नहीं छोड़ेगा। (भज. 9:10) वह आपके और भी करीब आएगा। एक बहन कहती है, “मेरी तबियत दिनों-दिन बिगड़ती जा रही है, इसलिए मैं अब बहुत कम लोगों को गवाही दे पाती हूँ। लेकिन मैं जानती हूँ कि मैं जो थोड़ी-बहुत सेवा कर पाती हूँ, उससे यहोवा खुश है। यह जानकर मुझे भी खुशी होती है।” जब भी आप निराश होते हैं, तो याद रखिए कि यहोवा आपके साथ है। पौलुस को याद कीजिए कि वह कैसे मुश्‍किलों के बावजूद डटा रहा। उसके इन शब्दों से हिम्मत पाइए, ‘मैं अपनी कमज़ोरियों में खुश होता हूँ। क्योंकि जब मैं कमज़ोर होता हूँ, तभी ताकतवर होता हूँ।’​—2 कुरिं. 12:10.

18. कुछ भाई-बहन किस तरह की तकलीफ में हैं?

18 जीवन की दौड़ में कुछ भाई-बहन एक और तरह की मुश्‍किल का सामना करते हैं। उनकी तकलीफ ऐसी है कि दूसरे लोग न उसे देख सकते हैं, न ही समझ सकते हैं। जैसे, कुछ लोग हताश हैं और कुछ हद-से-ज़्यादा चिंता में डूबे रहते हैं। यह ऐसा दुख है जिसे सहना इन प्यारे भाई-बहनों को बहुत मुश्‍किल लगता है। ऐसा क्यों? अगर किसी का हाथ टूट गया है या वह व्हीलचेयर पर है, तो लोग देख सकते हैं कि वह कितनी तकलीफ में है और वे उसकी मदद करते हैं। लेकिन जो लोग हताश हैं या किसी मानसिक रोग के शिकार हैं, उन्हें देखने पर नहीं लगता कि उन्हें कोई तकलीफ है। इसलिए लोग उनका दर्द नहीं समझ पाते और उनकी मदद करने के लिए आगे नहीं बढ़ते, जबकि इनका दर्द भी उतना ही गहरा होता है जितना कि किसी का हाथ या पैर टूटने पर होता है।

19. मपीबोशेत से हम क्या सीखते हैं?

19 क्या आप भी कुछ मुश्‍किलें झेल रहे हैं और आपको लगता है कि कोई आपका दर्द नहीं समझता? अगर ऐसा है, तो मपीबोशेत को याद करने से आपको हिम्मत मिलेगी। (2 शमू. 4:4) वह अपंग होने की वजह से पहले से कई मुश्‍किलें झेल रहा था। ऊपर से दाविद ने भी उसे गलत समझा और उसके साथ अन्याय किया। उसके साथ जो भी हुआ, उसमें उसकी कोई गलती नहीं थी। फिर भी इन मुश्‍किलों की वजह से वह कड़वाहट से नहीं भर गया। इसके बजाय, उसने अपनी ज़िंदगी की अच्छी बातों पर ध्यान दिया। बहुत पहले दाविद ने उस पर जो कृपा की थी, उसके लिए वह एहसानमंद था। (2 शमू. 9:6-10) इसलिए जब दाविद ने उसके साथ अन्याय किया, तो वह नाराज़ नहीं हो गया या मन-ही-मन कुढ़ता नहीं रहा। मपीबोशेत ने इस अन्याय के लिए यहोवा पर भी दोष नहीं लगाया। उसने बस इस बात पर ध्यान दिया कि यहोवा ने दाविद को राजा चुना है और वह कैसे दाविद का साथ दे सकता है। (2 शमू. 16:1-4; 19:24-30) मपीबोशेत वाकई बेमिसाल था, इसीलिए यहोवा ने उसके बारे में बाइबल में लिखवाया ताकि हम उससे सीख सकें।​—रोमि. 15:4.

20. (क) गहरी चिंता की वजह से कुछ भाई-बहन किन मुश्‍किलों का सामना करते हैं? (ख) वे किस बात का यकीन रख सकते हैं?

20 जो भाई-बहन गहरी चिंता के शिकार हैं, वे जब दूसरों के बीच होते हैं, तो घबराए हुए से होते हैं। वे यह सोचकर परेशान हो जाते हैं कि दूसरे उनके बारे में क्या सोचते होंगे। उन्हें बहुत सारे लोगों के बीच रहना मुश्‍किल लगता है, फिर भी वे सभाओं, सम्मेलनों और अधिवेशनों में आते हैं। उन्हें अजनबियों से बात करना मुश्‍किल लगता है, फिर भी वे दूसरों को प्रचार करते हैं। अगर आपको भी गहरी चिंता होती है, तो याद रखिए कि और भी कई लोग आपके जैसी तकलीफ झेल रहे हैं। यह भी याद रखिए कि आप यहोवा के लिए जो भी करते हैं, उससे वह खुश है। आपने अभी तक हार नहीं मानी है। यह इस बात का सबूत है कि यहोवा की आशीष आप पर है और वह आपको सहने की ताकत दे रहा है। * (फिलि. 4:6, 7; 1 पत. 5:7) चाहे आप किसी बीमारी की वजह से तकलीफ में हों या मन की चिंता की वजह से, आप यकीन रख सकते हैं कि यहोवा आपसे खुश है।

21. यहोवा की मदद से हम सब क्या कर पाएँगे?

21 खुशी की बात है कि सचमुच की दौड़ और जीवन की दौड़ में कुछ फर्क भी है। बाइबल के ज़माने में दौड़ में सिर्फ एक व्यक्‍ति को इनाम मिलता था। लेकिन जीवन की दौड़ में सिर्फ एक व्यक्‍ति को नहीं बल्कि उन सबको हमेशा की ज़िंदगी मिलेगी जो अंत तक डटे रहेंगे। (यूह. 3:16) सचमुच की दौड़ में हिस्सा लेनेवालों का सेहतमंद होना ज़रूरी होता है, वरना वे इनाम नहीं जीत पाएँगे। लेकिन हम जिस दौड़ में हैं, उसमें ऐसे कई भाई-बहन भी दौड़ रहे हैं जिनकी सेहत ठीक नहीं रहती। (2 कुरिं. 4:16) हम सब डटे हुए हैं। हम यकीन रख सकते हैं कि हम यहोवा की मदद से यह दौड़ पूरी कर लेंगे!

गीत 144 इनाम पे रखो नज़र!

^ पैरा. 5 आज यहोवा के कई सेवक बीमारी और बुढ़ापे की वजह से तकलीफें झेल रहे हैं। और हम सब कभी-कभी बहुत थक जाते हैं। इसलिए दौड़ में हिस्सा लेने के खयाल से ही हम शायद घबरा जाएँ। लेकिन जीवन की दौड़ एक ऐसी दौड़ है जिसमें हम सब हिस्सा ले सकते हैं और जीत सकते हैं। इस लेख में बताया जाएगा कि जीतने के लिए हम क्या कर सकते हैं।

^ पैरा. 6 जनवरी 1, 2013 की प्रहरीदुर्ग  का लेख “ज़िंदगी सँवार देती है बाइबल” पढ़िए।

^ पैरा. 20 हम गहरी चिंता का सामना कैसे कर सकते हैं, यह जानने के लिए jw.org® पर प्रकाशन > JW ब्रॉडकास्टिंग भाग में मई 2019 का कार्यक्रम देखें। उसमें कुछ भाई-बहनों का अनुभव भी दिखाया गया है जो गहरी चिंता का अच्छी तरह सामना कर रहे हैं।

^ पैरा. 63 तसवीर के बारे में: प्रचार काम में व्यस्त रहने की वजह से यह बुज़ुर्ग भाई नियमों के मुताबिक दौड़ रहा है।

^ पैरा. 65 तसवीर के बारे में: अगर हम ज़्यादा शराब पीएँ या दूसरों को ज़्यादा पीने के लिए ज़बरदस्ती करें, तो उन्हें ठोकर लग सकती है।

^ पैरा. 67 तसवीर के बारे में: एक भाई अस्पताल में है और बिस्तर से उठ नहीं सकता, फिर भी वह डॉक्टर को गवाही दे रहा है। इस तरह वह अब भी दौड़ रहा है।