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आपने पूछा

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यीशु ने अपनी मौत से पहले यह क्यों कहा, “मेरे परमेश्‍वर, मेरे परमेश्‍वर, तूने मुझे क्यों छोड़ दिया?”

क्या यीशु निराश हो गया था? या उसका विश्‍वास कमज़ोर पड़ गया था? नहीं। ऐसा कहना गलत होगा। जैसे मत्ती 27:46 में लिखा है, यीशु ने ऐसा कहकर वह भविष्यवाणी पूरी की जो भजन 22:1 में लिखी हुई है। (मर. 15:34) यीशु अच्छी तरह जानता था कि उसे क्यों मरना होगा। और वह मरने के लिए तैयार भी था। (मत्ती 16:21; 20:28) यीशु यह भी जानता था कि उसकी मौत के समय यहोवा उसकी “हिफाज़त” नहीं करेगा। (अय्यू. 1:10) तभी यीशु साबित कर पाएगा कि चाहे उसे कितनी ही दर्दनाक मौत सहनी पड़े, वह यहोवा का वफादार रहेगा।​—मर. 14:35, 36.

तो फिर यीशु ने यह क्यों कहा कि परमेश्‍वर ने उसे छोड़ दिया है? हम इसकी वजह ठीक-ठीक तो नहीं जानते, मगर अंदाज़ा लगा सकते हैं कि किन कारणों से उसने ऐसा कहा होगा। *

ऐसा कहकर शायद यीशु यह बता रहा था कि यहोवा उसे मरने से नहीं बचाएगा।  यीशु को यहोवा की मदद के बिना फिरौती की रकम चुकानी थी। वह एक इंसान था और दुनिया के हर इंसान के लिए उसे “मौत का दुख” झेलना था।​—इब्रा. 2:9.

भजन के वे शब्द कहकर शायद यीशु उस पूरे भजन की तरफ चेलों का ध्यान खींच रहा था।  पुराने ज़माने में यहूदी लोग बहुत-से भजनों को ज़बानी याद कर लेते थे। जब वे किसी भजन की एक आयत सुनते, तो उन्हें पूरा भजन याद आ जाता था। शायद यीशु भी भजन 22 की कुछ बातें कहकर चेलों को वह पूरा भजन याद दिलाना चाहता था, क्योंकि उस भजन में भविष्यवाणी की गयी थी कि उसकी मौत के वक्‍त क्या-क्या होगा। (भज. 22:7, 8, 15, 16, 18, 24) उस भजन की आखिरी आयतों में यहोवा की बड़ाई की गयी है और बताया गया है कि वह पूरी धरती पर राज करेगा।​—भज. 22:27-31.

भजन के वे शब्द कहकर शायद यीशु यह बता रहा था कि वह निर्दोष है।  यीशु की मौत से पहले उस पर गैर-कानूनी तरीके से मुकदमा चलाया गया। उस पर झूठा इलज़ाम लगाया गया कि उसने परमेश्‍वर की निंदा की है। (मत्ती 26:65, 66) मुकदमा जल्दबाज़ी में और देर रात को किया गया। कानून में जैसा बताया गया था, वैसा नहीं बल्कि उसके बिलकुल खिलाफ किया गया। (मत्ती 26:59; मर. 14:56-59) तो जब यीशु ने भजन 22:1 के शब्द कहे, तो वह मानो कह रहा था, ‘हे परमेश्‍वर, तूने मुझे क्यों छोड़ दिया? मैंने तो कोई गलती नहीं की।’ शायद उसके कहने का मतलब था कि वह निर्दोष है।

शायद यीशु अपनी तुलना भजन के लेखक दाविद से कर रहा था।  दाविद ने भी दुख झेला था, मगर इसका यह मतलब नहीं था कि यहोवा ने उसे ठुकरा दिया था। जब दाविद ने भजन में लिखा कि “मेरे परमेश्‍वर, तूने मुझे क्यों छोड़ दिया?” तो इसका यह मतलब नहीं था कि परमेश्‍वर पर उसका विश्‍वास कमज़ोर पड़ गया था। (भज. 22:23, 24, 27) दाविद ने आगे की आयतों में कहा कि उसे यहोवा पर भरोसा है कि वह उसे बचाएगा। और वाकई यहोवा ने उसे बचाया और उसे आशीष दी। उसी तरह ‘दाविद का वंशज’ यीशु भी भले ही उस वक्‍त यातना काठ पर दुख झेल रहा था, मगर इसका यह मतलब नहीं था कि यहोवा ने उसे ठुकरा दिया है।​—मत्ती 21:9.

शायद यीशु अपना यह दर्द बयान कर रहा था कि यहोवा चाहते हुए भी उसकी हिफाज़त नहीं कर सकता, क्योंकि यीशु को साबित करना था कि वह हर हाल में यहोवा की बात मानेगा।  यहोवा ने शुरू में कभी नहीं चाहा था कि उसका बेटा इतने दुख झेले और इस तरह की मौत मरे। आदम के पाप की वजह से ही यह सब ज़रूरी हो गया। यीशु ने कुछ भी गलत नहीं किया था। फिर भी उसे इतना कुछ सहना पड़ रहा था और उस पर इस तरह की मौत आयी थी। तभी शैतान के सवालों का जवाब मिलता और यीशु फिरौती की रकम चुका पाता ताकि इंसान ने जो खो दिया है वह उसे वापस मिल जाए। (मर. 8:31; 1 पत. 2:21-24) और यह सब तभी हो पाता जब यहोवा कुछ देर के लिए यीशु की हिफाज़त करना छोड़ देता। यीशु की ज़िंदगी में ऐसा पहली बार हुआ कि यहोवा ने उसकी मदद नहीं की।

शायद यीशु अपने चेलों का ध्यान इस बात की तरफ खींच रहा था कि यहोवा ने क्यों उस पर ऐसी मौत आने दी है।  * यीशु जानता था कि जब यातना काठ पर वह एक अपराधी की मौत मरेगा, तो बहुत-से लोग ठोकर खा जाएँगे। (1 कुरिं. 1:23) लेकिन अगर उसके चेले याद रखते कि वह क्यों ऐसी मौत मरा, तो वे उसे अपराधी नहीं बल्कि उद्धारकर्ता मानते।​—गला. 3:13, 14.

यीशु ने चाहे किसी भी कारण से भजन के वे शब्द कहे हों, मगर एक बात वह अच्छी तरह जानता था। यहोवा की मरज़ी थी कि वह ऐसी मौत मरे। भजन के वे शब्द कहने के कुछ समय बाद यीशु ने यह भी कहा, “पूरा हुआ!” (यूह. 19:30; लूका 22:37) जी हाँ, यीशु को धरती पर जो भी करने के लिए भेजा गया था वह सब उसने पूरा किया। वह इसलिए ऐसा कर सका क्योंकि यहोवा ने कुछ वक्‍त के लिए उसकी हिफाज़त करना छोड़ दिया था। वह उन सारी भविष्यवाणियों को भी पूरा कर सका जो ‘मूसा के कानून में और भविष्यवक्‍ताओं की किताबों और भजनों में’ उसके बारे में लिखी थीं।​—लूका 24:44.

^ पैरा. 2 इस अंक के लेख, “यीशु के आखिरी शब्दों से सीखिए” के पैराग्राफ 9 और 10 भी पढ़ें।

^ पैरा. 8 यीशु कभी-कभी कुछ ऐसी बातें कहता था और कुछ ऐसे सवाल करता था जो उसके चेलों के मन में चल रहे थे। ये उसके अपने सवाल नहीं थे। वह ऐसी बातें या सवाल कहकर जानना चाहता था कि उसके चेले क्या कहेंगे।​—मर. 7:24-27; यूह. 6:1-5; 15 अक्टूबर, 2010 की प्रहरीदुर्ग  के पेज 4-5 पढ़ें।