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अध्ययन लेख 15

यीशु के आखिरी शब्दों से सीखिए

यीशु के आखिरी शब्दों से सीखिए

“यह मेरा प्यारा बेटा है जिसे मैंने मंज़ूर किया है। इसकी सुनो।”​—मत्ती 17:5.

गीत 17 मैं चाहता हूँ

लेख की एक झलक *

1-2. यीशु के आखिरी पल में उसके साथ क्या-क्या हुआ?

ईसवी सन्‌ 33, नीसान 14 के दिन का वक्‍त है। यीशु पर मुकदमा चलाया गया है और उसे मुजरिम ठहराया गया है, वह भी ऐसे अपराध के लिए जो उसने नहीं किया। उसका मज़ाक उड़ाया जा रहा है, उसे तड़पाया जा रहा है। उसके हाथ-पैर में कील ठोंककर उसे काठ पर लटका दिया गया है। वह इतने दर्द में है कि उसके लिए एक-एक साँस लेना, एक-एक शब्द बोलना मुश्‍किल है। फिर भी वह चुप नहीं रहता, क्योंकि उसे कुछ ज़रूरी बातें कहनी हैं।

2 आइए जानें कि यीशु ने अपनी ज़िंदगी के आखिरी पल में क्या कहा और हम उसकी बातों से क्या सीख सकते हैं। दूसरे शब्दों में कहें, तो आइए ‘उसकी सुनते हैं।’​—मत्ती 17:5.

“पिता, इन्हें माफ कर दे”

3. यीशु किन लोगों को माफ करने की बात कर रहा था?

3 यीशु ने क्या कहा?  जब यीशु यातना के काठ पर लटका हुआ था तो उसने प्रार्थना की, “पिता, इन्हें माफ कर दे।” यीशु किन्हें माफ करने की बात कर रहा था? ध्यान दीजिए कि इसके तुरंत बाद उसने कहा, “ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं।” (लूका 23:33, 34) यीशु शायद रोमी सैनिकों की बात कर रहा था, जो नहीं जानते थे कि वह परमेश्‍वर का बेटा है। यीशु के मन में शायद वे लोग भी थे, जो पहले चिल्ला-चिल्लाकर कह रहे थे कि यीशु को काठ पर लटका दिया जाए, लेकिन उनमें से कुछ लोग बाद में उस पर विश्‍वास करते। (प्रेषि. 2:36-38) उनके हाथों यीशु ने बहुत अन्याय सहा, फिर भी उसका दिल कड़वाहट से नहीं भरा। (1 पत. 2:23) इसके बजाय उसने यहोवा से बिनती की कि वह उन्हें माफ कर दे।

4. दूसरों को माफ करने के बारे में हम यीशु से क्या सीख सकते हैं?

4 यीशु की बातों से हम क्या सीखते हैं?  हमें दूसरों को माफ करना चाहिए। (कुलु. 3:13) हो सकता है, हमारे रिश्‍तेदार समझ न पाते हों कि हम क्या मानते हैं और ऐसा क्यों मानते हैं। इस वजह से शायद वे हमारे बारे में झूठ बोलें, दूसरों के सामने हमारी बेइज़्ज़ती करें, हमारी किताबें-पत्रिकाएँ फाड़कर फेंक दें या हमें मारे-पीटें। उनसे नाराज़ होने के बजाय हम प्रार्थना कर सकते हैं कि वे भी सच्चाई सीखें। (मत्ती 5:44, 45) लेकिन हर बार ऐसा करना आसान नहीं होता, खासकर तब जब उन्होंने हमारे साथ बहुत बुरा बरताव किया हो। अगर हम उनके लिए अपने दिल में नफरत पालेंगे, तो इससे हमें ही तकलीफ होगी। एक बहन बताती है, “माफ करने का मतलब यह नहीं है कि दूसरों ने मेरे साथ जो किया उसे मैं सही ठहरा रही हूँ या मैं उन्हें छूट दे रही हूँ कि वे मेरे साथ ऐसा बरताव करते रहें। इसका मतलब है कि मैं उनसे नाराज़ नहीं रहना चाहती और इस बात को भुला देना चाहती हूँ।” (भज. 37:8) जब हम दूसरों को माफ कर देते हैं, तो हम पुरानी बातों को लेकर मन में कड़वाहट नहीं पालते।​—इफि. 4:31, 32.

“तू मेरे साथ फिरदौस में होगा”

5. (क) यीशु ने एक अपराधी से क्या वादा किया? (ख) वह यह वादा क्यों कर पाया?

5 यीशु ने क्या कहा?  यीशु के साथ दो अपराधियों को लटकाया गया था। पहले तो वे उसे बुरा-भला कह रहे थे। (मत्ती 27:44) लेकिन बाद में एक ने माना कि यीशु ने “कुछ बुरा नहीं किया” है। (लूका 23:40, 41) उसने यह भी माना कि यीशु को ज़िंदा किया जाएगा और एक दिन वह राजा बनेगा। उसने यीशु से कहा, “जब तू अपने राज में आए तो मुझे याद करना।” (लूका 23:42) सच में उस अपराधी में गज़ब का विश्‍वास था! गौर कीजिए कि यीशु ने उस अपराधी से क्या वादा किया, “मैं आज तुझसे सच कहता हूँ, तू मेरे साथ फिरदौस में होगा।” (लूका 23:43) * यीशु यह वादा इसलिए कर पाया क्योंकि वह जानता था कि उसका पिता दयालु है और वह उस अपराधी पर ज़रूर दया करेगा।​—भज. 103:8.

6. यीशु ने उस अपराधी से जो कहा, उससे हम क्या सीखते हैं?

6 यीशु की बातों से हम क्या सीखते हैं?  यीशु हू-ब-हू अपने पिता जैसा है। (इब्रा. 1:3) उसके शब्दों से पता चलता है कि यहोवा बहुत दयालु है। अगर हम अपने पापों पर अफसोस करें और यीशु के फिरौती बलिदान पर विश्‍वास करें, तो यहोवा हमें माफ करेगा। (1 यूह. 1:7) कुछ भाई-बहनों को लगता है कि उन्होंने पहले जो बुरे काम किए थे, उनके लिए यहोवा उन्हें कभी माफ नहीं करेगा। लेकिन ज़रा सोचिए, अगर यीशु उस अपराधी पर दया कर सकता है जिसने अभी-अभी विश्‍वास करना शुरू किया था, तो यहोवा अपने उन सेवकों पर दया क्यों नहीं करेगा, जो सालों से उसकी सेवा कर रहे हैं?​—भज. 51:1; 1 यूह. 2:1, 2.

“देख! तेरा बेटा! . . . देख! तेरी माँ!”

7. (क) यूहन्‍ना 19:26, 27 के मुताबिक, यीशु ने मरियम और यूहन्‍ना से क्या कहा? (ख) उसने ऐसा क्यों कहा?

7 यीशु ने क्या कहा?  (यूहन्‍ना 19:26, 27 पढ़िए।) यीशु को अपनी माँ मरियम की चिंता हो रही थी, जो शायद विधवा हो चुकी थी। उसके भाई-बहन मरियम की रोज़मर्रा की ज़रूरतें पूरी कर सकते थे। लेकिन वे यहोवा की सेवा करने में उसकी मदद नहीं कर पाते, क्योंकि शायद वे तब तक यीशु के चेले नहीं बने थे। फिर यीशु ने यूहन्‍ना के बारे में सोचा, क्योंकि वह उसका सबसे अच्छा दोस्त और वफादार प्रेषित था। यीशु उन लोगों को अपना परिवार मानता था, जो यहोवा की सेवा करते थे। (मत्ती 12:46-50) इसलिए उसने अपनी माँ की ज़िम्मेदारी यूहन्‍ना को सौंप दी। उसने मरियम से कहा, “देख! तेरा बेटा!” और यूहन्‍ना से कहा, “देख! तेरी माँ!” यीशु को पूरा यकीन था कि यूहन्‍ना यहोवा की सेवा करने में मरियम की मदद करेगा। उस दिन से यूहन्‍ना मरियम को अपनी माँ मानने लगा और उसकी देखभाल करने लगा। सच में, यीशु अपनी माँ से कितना प्यार करता था, जिसने उसे जन्म दिया था और जो मौत के वक्‍त भी उसके साथ थी!

8. यीशु ने मरियम और यूहन्‍ना से जो कहा, उससे हम क्या सीखते हैं?

8 यीशु की बातों से हम क्या सीखते हैं?  मंडली के भाई-बहनों के साथ हमारा रिश्‍ता मज़बूत हो सकता है, इतना मज़बूत जितना कि हमारे अपनों के साथ भी न हो। परिवार के लोग शायद हमारा विरोध करें, हमें ठुकरा दें। लेकिन अगर हम यहोवा के करीब रहें और उसके संगठन से जुड़े रहें, तो यीशु ने वादा किया है कि हमने जो खोया है उसका हम “100 गुना” पाएँगे। यानी हमें मंडली में बहुत-से बेटे-बेटियाँ और माँ-बाप मिलेंगे। (मर. 10:29, 30) यह जानकर आपको कैसा लगता है कि आप एक ऐसे परिवार का हिस्सा हैं, जहाँ सब एक-दूसरे से प्यार करते हैं और यहोवा की उपासना करते हैं?​—कुलु. 3:14; 1 पत. 2:17.

“मेरे परमेश्‍वर, तूने मुझे क्यों छोड़ दिया?”

9. मत्ती 27:46 में लिखे यीशु के शब्दों से क्या पता चलता है?

9 यीशु ने क्या कहा?  यीशु ने अपनी मौत के ठीक पहले कहा, “मेरे परमेश्‍वर, मेरे परमेश्‍वर, तूने मुझे क्यों छोड़ दिया?” (मत्ती 27:46) बाइबल साफ-साफ नहीं बताती कि यीशु ने ये शब्द क्यों कहे। लेकिन उसने जो कहा, उससे हमें कुछ बातें पता चलती हैं। पहली बात, ये शब्द कहकर यीशु उस भविष्यवाणी को पूरा कर रहा था, जो भजन 22:1 में लिखी है। * दूसरी बात, यहोवा ने अपने बेटे की “हिफाज़त के लिए [उसके] चारों तरफ बाड़ा” नहीं बाँधा। (अय्यू. 1:10) यीशु जानता था कि यहोवा ने उसके दुश्‍मनों को छूट दी है कि वे उसके विश्‍वास को पूरी तरह परखें। यीशु को जिस हद तक परखा गया, उतना किसी और इंसान को नहीं परखा गया। तीसरी बात, उसके शब्दों से यह भी पता चलता है कि उसने ऐसा कोई अपराध नहीं किया था, जिसके लिए उसे मौत की सज़ा दी जाए।

10. यीशु ने अपने पिता से जो कहा, उससे हम क्या सीखते हैं?

10 यीशु की बातों से हम क्या सीखते हैं?  एक, यहोवा हमें हर परीक्षा से नहीं बचाएगा। जिस तरह यीशु के विश्‍वास को पूरी तरह परखा गया था, उसी तरह हमारा विश्‍वास भी परखा जाएगा, यहाँ तक कि हमारी जान भी जा सकती है। (मत्ती 16:24, 25) लेकिन हम भरोसा रख सकते हैं कि यहोवा हमें ऐसी किसी भी परीक्षा में नहीं पड़ने देगा, जो हमारी बरदाश्‍त के बाहर हो। (1 कुरिं. 10:13) दो, हमारे साथ भी अन्याय हो सकता है। (1 पत. 2:19, 20) हमें इसलिए नहीं सताया जाता कि हमने कुछ गलत किया है, बल्कि इसलिए सताया जाता है कि हम दुनिया के नहीं हैं और हम सच्चाई की गवाही देते हैं। (यूह. 17:14; 1 पत. 4:15, 16) यीशु जानता था कि यहोवा ने उसे ये तकलीफें क्यों सहने दीं। लेकिन जब कुछ वफादार लोगों पर मुश्‍किलें आयीं, तो वे यह नहीं समझ पाए कि यहोवा ने उनके साथ ऐसा क्यों होने दिया। (हब. 1:3) मगर परमेश्‍वर ने उनके साथ सब्र रखा। वह जानता था कि उनमें विश्‍वास की कमी नहीं थी बल्कि उन्हें दिलासे की ज़रूरत थी।​—2 कुरिं. 1:3, 4.

“मैं प्यासा हूँ”

11. यीशु ने यूहन्‍ना 19:28 में लिखे शब्द क्यों कहे?

11 यीशु ने क्या कहा?  (यूहन्‍ना 19:28 पढ़िए।) यीशु ने क्यों कहा कि “मैं प्यासा हूँ”? ताकि “शास्त्र में लिखी बात पूरी हो” यानी वह भविष्यवाणी जो भजन 22:15 में लिखी है। वहाँ बताया है, “मेरी ताकत ठीकरे की तरह सूख गयी है, मेरी जीभ तालू से चिपक गयी है।” यीशु को सच में प्यास भी लगी थी, क्योंकि उसने बहुत तकलीफें सहीं। वह काठ पर दर्द से तड़प रहा था। इसलिए उसने कहा कि वह प्यासा है।

12. यीशु ने जो कहा, उससे हम क्या सीखते हैं?

12 यीशु की बातों से हम क्या सीखते हैं?  जब यीशु ने कहा कि उसे प्यास लगी है, तो उसने यह नहीं सोचा कि लोग उसके बारे में क्या सोचेंगे। हमें भी ऐसा नहीं सोचना चाहिए। दूसरों से मदद माँगना कमज़ोरी नहीं होती। हो सकता है, हमने अब तक अपना सारा काम खुद ही किया हो। लेकिन अब जब हमें सच में मदद चाहिए, तो हमें दूसरों से मदद माँगने से हिचकिचाना नहीं चाहिए। जैसे, अगर हम बुज़ुर्ग हैं या बीमार हैं, तो डॉक्टर के पास जाने के लिए या खरीदारी करने के लिए हमें अपने किसी दोस्त की मदद लेनी चाहिए। अगर हम निराश हैं, तो हमें किसी प्राचीन या अपने अच्छे दोस्त के पास जाना चाहिए। हम उससे कह सकते हैं कि वह हमारी बात ध्यान से सुने। या फिर उससे कह सकते हैं कि वह कोई “अच्छी बात” कहकर हमारा हौसला बढ़ाए। (नीति. 12:25) याद रखिए कि भाई-बहन हमसे बहुत प्यार करते हैं और “मुसीबत की घड़ी” में हमारी मदद करना चाहते हैं। (नीति. 17:17) लेकिन वे तभी हमारी मदद कर पाएँगे जब हम खुद उनसे मदद माँगेंगे।

“पूरा हुआ!”

13. अपनी आखिरी साँस तक वफादार रहकर यीशु ने क्या किया?

13 यीशु ने क्या कहा?  नीसान 14, दोपहर के करीब तीन बजे यीशु ने ज़ोर से कहा, “पूरा हुआ!” (यूह. 19:30) उसके बाद उसने दम तोड़ दिया। अपनी आखिरी साँस तक वफादार रहकर यीशु ने वही किया जो यहोवा उससे चाहता था। सबसे पहले, यीशु ने शैतान को झूठा साबित किया। उसने दिखा दिया कि एक परिपूर्ण इंसान मुश्‍किलों में भी यहोवा का वफादार रह सकता है। दूसरा, यीशु ने हमारी खातिर अपनी जान कुरबान की, जिसकी वजह से हम परमेश्‍वर के साथ एक अच्छा रिश्‍ता बना सकते हैं और हमेशा की ज़िंदगी पा सकते हैं। तीसरा, यीशु ने साबित किया कि सिर्फ यहोवा को ही पूरे विश्‍व पर हुकूमत करने का हक है और उसने परमेश्‍वर के नाम पर लगा कलंक मिटाया।

14. बताइए कि हमें हर दिन किस तरह जीना चाहिए।

14 यीशु की बातों से हम क्या सीखते हैं?  हमें हर दिन यहोवा का वफादार रहना चाहिए। गिलियड स्कूल के शिक्षक भाई मैक्सवल फ्रेंड ने एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में वफादारी पर भाषण दिया। उन्होंने कहा, “कोई भी काम कल के लिए मत टालिए, क्योंकि आपको नहीं पता कि कल आप ज़िंदा रहेंगे भी या नहीं। इसलिए हर दिन यहोवा के वफादार रहिए और इस तरह जीइए कि आपको हमेशा की ज़िंदगी मिले।” भाई ने कितना सच कहा! हमें हर दिन यहोवा का वफादार रहना चाहिए मानो यह हमारी ज़िंदगी का आखिरी दिन हो। फिर अगर हमारी जान भी चली जाए, तो हम यहोवा से कह पाएँगे, “मैं आपका वफादार रहा, मैंने शैतान को झूठा साबित किया और आपके नाम और हुकूमत को बुलंद किया।”

“मैं अपनी जान तेरे हवाले करता हूँ”

15. लूका 23:46 के मुताबिक यीशु को किस बात का यकीन था?

15 यीशु ने क्या कहा?  (लूका 23:46 पढ़िए।) उसने पूरे यकीन से कहा, “पिता, मैं अपनी जान तेरे हवाले करता हूँ।” दरअसल यीशु कह रहा था कि भविष्य में उसे दोबारा जीवन मिलेगा या नहीं, यह उसने परमेश्‍वर के हाथ में छोड़ दिया है। लेकिन उसे यकीन था कि उसका पिता उसे ज़रूर याद करेगा।

16. जौशुआ के विश्‍वास से आपने क्या सीखा?

16 यीशु की बातों से हम क्या सीखते हैं?  हमें हर हाल में यहोवा का वफादार रहना चाहिए, फिर चाहे हमारी जान खतरे में हो। ऐसा हम तभी कर पाएँगे जब हम “पूरे दिल से यहोवा पर भरोसा” रखेंगे। (नीति. 3:5) पंद्रह साल के जौशुआ के उदाहरण पर ध्यान दीजिए। उसे एक जानलेवा बीमारी थी। उसे जो इलाज बताया गया था, वह परमेश्‍वर के नियम के खिलाफ था। इसलिए उसने वह इलाज करवाने से मना कर दिया। मरने से ठीक पहले उसने अपनी माँ से कहा, “मैं यहोवा के हाथ में हूँ, वह मेरा खयाल रखेगा। . . . वह मुझे ज़रूर ज़िंदा करेगा। उसने मेरा दिल देखा है, वह जानता है कि मैं उससे प्यार करता हूँ।” * हम खुद से पूछ सकते हैं, ‘अगर मेरा विश्‍वास परखा जाए और मेरी जान खतरे में हो, तो क्या मैं यहोवा का वफादार रहूँगा? क्या मैं यकीन रखूँगा कि यहोवा मुझे याद करेगा?’

17-18. हमने यीशु के शब्दों से क्या-क्या सीखा? (“ यीशु के आखिरी शब्दों से हम क्या सीखते हैं?” नाम का बक्स भी पढ़ें।)

17 यीशु के आखिरी शब्दों से हमने बहुत सारी बातें सीखीं। हमें दूसरों को माफ करना है और यकीन रखना है कि यहोवा हमें माफ करेगा। मंडली में ऐसे बहुत-से भाई-बहन हैं, जो हमारी मदद करना चाहते हैं। लेकिन वे तभी हमारी मदद कर पाएँगे, जब हम उनसे मदद माँगेंगे। हमने यह भी सीखा कि मुश्‍किलों में यहोवा हमारी मदद करेगा। हमें हर दिन उसका वफादार रहना चाहिए और ऐसे जीना चाहिए मानो यह हमारी ज़िंदगी का आखिरी दिन हो। हमें इस बात का यकीन रखना चाहिए कि अगर हम मर भी जाएँ तो यहोवा हमें ज़िंदा करेगा।

18 सच में, यीशु की बातों से हमने कितना कुछ सीखा। अगर हम उन बातों को मानेंगे, तो हम यहोवा के बेटे की सुन रहे होंगे।​—मत्ती 17:5.

गीत 126 जागते रहो, शक्‍तिशाली बनते जाओ

^ पैरा. 5 मत्ती 17:5 से पता चलता है कि यहोवा चाहता है कि हम उसके बेटे की सुनें। जब यीशु यातना के काठ पर था और उसकी मौत होनेवाली थी, तो उसने कुछ बातें कहीं। इस लेख में हम जानेंगे कि हम उसकी बातों से क्या सीख सकते हैं।

^ पैरा. 5 यीशु यह नहीं कह रहा था कि वह अपराधी स्वर्ग जाएगा, बल्कि उसे धरती पर फिरदौस में ज़िंदा किया जाएगा।

^ पैरा. 9 यीशु ने भजन 22:1 के शब्द क्यों दोहराए होंगे, इसकी वजह जानने के लिए इस प्रहरीदुर्ग  का “आपने पूछा” लेख पढ़ें।

^ पैरा. 16 जौशुआ के बारे में 22 जनवरी, 1995 की अँग्रेज़ी सजग होइए!  के पेज 11-15 पढ़ें।