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अध्ययन लेख 16

तन-मन से यहोवा की सेवा कीजिए और खुश रहिए

तन-मन से यहोवा की सेवा कीजिए और खुश रहिए

“हर कोई अपने काम की जाँच करे।”​—गला. 6:4.

गीत 37 दिलो-जान से यहोवा की सेवा करें

एक झलक a

1. हमें क्या करने से बहुत खुशी मिलती है?

 यहोवा चाहता है कि हम खुश रहें। यह बात हम इसलिए जानते हैं, क्योंकि उसकी पवित्र शक्‍ति के फल का एक गुण है खुशी। (गला. 5:22) बाइबल में यह भी लिखा है कि लेने से ज़्यादा खुशी देने में है। (प्रेषि. 20:35) इसलिए जब हम दूसरों को गवाही देते हैं और कई तरीकों से अपने भाई-बहनों की मदद करते हैं, तो हमें बहुत खुशी मिलती है।

2-3. (क) गलातियों 6:4 के मुताबिक, अगर हम खुश रहना चाहते हैं तो हमें क्या करना होगा? (ख) इस लेख में हम क्या सीखेंगे?

2 गलातियों 6:4 में प्रेषित पौलुस ने बताया कि अगर हम खुश रहना चाहते हैं, तो हमें दो चीज़ें करनी होंगी। (पढ़िए।) पहली, यहोवा की सेवा करने के लिए हमसे जितना बन पड़ता है, हमें जी-जान से करना चाहिए। (मत्ती 22:36-38) दूसरी, हमें खुद की तुलना दूसरों से नहीं करनी चाहिए। हमें याद रखना चाहिए कि हम जो भी कर पा रहे हैं, वह यहोवा की वजह से है। उसी ने हमें सिखाया है और हमें ताकत और हुनर दिया है। और अगर दूसरे हमसे ज़्यादा कर रहे हैं, तब भी हमें खुश होना चाहिए। वे अपने हुनर का इस्तेमाल खुद का नाम बनाने के लिए नहीं बल्कि यहोवा की महिमा करने के लिए कर रहे हैं। इसलिए उनसे होड़ लगाने के बजाय हमें उनसे सीखना चाहिए।

3 कई बार हमारे हालात ठीक नहीं होते और हम यहोवा की ज़्यादा सेवा नहीं कर पाते। इस वजह से हम निराश हो सकते हैं। या फिर हो सकता है कि हमारे हालात ठीक हों और हमारे पास कोई हुनर या काबिलीयत भी हो, पर हम उसका अच्छा इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं। इस लेख में हम सीखेंगे कि हमारे हालात चाहे जैसे भी हों, हम जी-जान से यहोवा की सेवा कर सकते हैं और खुशी पा सकते हैं। हम यह भी जानेंगे कि हम दूसरों की अच्छी मिसाल से क्या सीख सकते हैं।

जब हमारे हालात ठीक न हों

अगर हम ज़िंदगी के हर मोड़ पर जी-जान से यहोवा की सेवा करें, तो वह बहुत खुश होगा (पैराग्राफ 4-6) b

4. एक उदाहरण देकर बताइए कि हम कब निराश हो सकते हैं।

4 यहोवा के कई सेवकों की उम्र ढल चुकी है या वे बीमार हैं, इसलिए वे उसकी सेवा ज़्यादा नहीं कर पाते। इस वजह से वे कभी-कभी निराश हो जाते हैं। इसका एक उदाहरण है कैरल। एक वक्‍त था जब वह ऐसी जगह सेवा करती थी, जहाँ प्रचारकों की ज़्यादा ज़रूरत है। उसके पास 35 बाइबल अध्ययन थे और उसने कई लोगों को बपतिस्मा लेने में मदद दी। वह बहुत खुश रहती थी। पर फिर वह बीमार हो गयी और अब उसे ज़्यादातर समय घर पर ही रहना पड़ता है। वह कहती है, “मैं जानती हूँ कि अपनी खराब सेहत की वजह से मैं ज़्यादा नहीं कर सकती। फिर भी जब मैं दूसरों को ज़्यादा सेवा करते देखती हूँ, तो मुझे लगता है कि मैं उनके जितनी वफादार नहीं हूँ। यही बात सोच-सोचकर मैं बहुत निराश हो जाती हूँ।” भले ही कैरल बीमार है, फिर भी वह जी-जान से यहोवा की सेवा करना चाहती है। उसकी यही इच्छा देखकर यहोवा कितना खुश होता होगा!

5. (क) ज़्यादा सेवा न कर पाने की वजह से अगर हम निराश हैं, तो हम क्या याद रख सकते हैं? (ख) जैसे तसवीर में दिखाया गया है, एक भाई ने किस तरह ज़िंदगी-भर यहोवा की जी-जान से सेवा की?

5 अगर आप अपने हालात की वजह से यहोवा की ज़्यादा सेवा नहीं कर पा रहे हैं और निराश हैं, तो आप क्या कर सकते हैं? आप याद रख सकते हैं कि यहोवा आपसे क्या चाहता है। वह चाहता है कि आपसे जितना हो सके उतना आप जी-जान से करें। मान लीजिए, एक 80 साल की बहन यह सोचकर बहुत निराश है कि वह उतना नहीं कर पा रही है, जितना कि वह 40 साल की उम्र में कर रही थी। हालाँकि वह अब भी तन-मन से सेवा कर रही है, फिर भी उसे लगता है कि यहोवा उससे खुश नहीं है। क्या वाकई ऐसा है? जब वह बहन 40 साल की थी, तब भी वह यहोवा की जी-जान से सेवा कर रही थी। और अब 80 साल की उम्र में भी वह जी-जान से सेवा कर रही है। इसलिए देखा जाए, तो उसने जी-जान से यहोवा की सेवा करना कभी छोड़ा ही नहीं और यही बात यहोवा के लिए मायने रखती है। जब भी हमें उस बहन की तरह लगता है कि यहोवा हमारी सेवा से खुश नहीं है, तो हम खुद को याद दिला सकते हैं कि वह जानता है कि हम कितना कर सकते हैं। और अगर हम जी-जान से सेवा करें, तो यहोवा बहुत खुश होगा।​—मत्ती 25:20-23 से तुलना कीजिए।

6. मारिया से हम क्या सीख सकते हैं?

6 चाहे हमारे हालात ठीक ना हों, फिर भी हम खुश रह सकते हैं। हम जो नहीं कर सकते, उस पर ध्यान देने के बजाय अच्छा होगा कि हम इस बात पर ध्यान दें कि हम क्या कर सकते हैं।  मारिया नाम की एक बहन ऐसा ही करती है। उसे एक बीमारी है जिस वजह से वह ज़्यादा प्रचार नहीं कर पाती। शुरू-शुरू में उसे लगता था कि वह किसी काम की नहीं और वह निराश हो जाती थी। लेकिन फिर उसने ध्यान दिया कि उसकी मंडली में एक बहन है, जो बिस्तर से नहीं उठ पाती। उसने उस बहन की मदद करने की सोची। वह कहती है, “मैं उस बहन के साथ टेलिफोन के ज़रिए और चिट्ठी लिखकर गवाही देने लगी। जब-जब हम मिलकर प्रचार करते तो मुझे बहुत खुशी मिलती। उसकी मदद करना मुझे बहुत अच्छा लगता था।” मारिया की तरह आइए हम भी इस बात पर ध्यान दें कि क्या करना हमारे बस में है। तब हम खुश रह पाएँगे। लेकिन अगर हमारे पास कोई हुनर है और हम यहोवा की ज़्यादा सेवा कर सकते हैं, तब और भी खुशी पाने के लिए हमें क्या करना होगा?

जब आपके पास कोई हुनर हो

7. पतरस ने भाई-बहनों को क्या करने का बढ़ावा दिया?

7 प्रेषित पतरस ने अपनी पहली चिट्ठी में भाई-बहनों को बढ़ावा दिया कि उनके पास जो भी हुनर या काबिलीयत है, वे उसका इस्तेमाल करके दूसरों का हौसला बढ़ाएँ। उसने लिखा, “परमेश्‍वर ने जो महा-कृपा अलग-अलग तरीके से दिखायी है, तुम उसके बढ़िया प्रबंधक हो। प्रबंधक होने के नाते तुममें से हर किसी को जो वरदान मिला है उसका इस्तेमाल  दूसरों की सेवा में करो।” (1 पत. 4:10) इससे हम सीखते हैं कि हमें यह सोचकर पीछे नहीं हटना चाहिए कि अगर हम अपने हुनर का इस्तेमाल करेंगे, तो दूसरे जलेंगे या वे निराश हो जाएँगे। अगर हम पीछे हटेंगे, तो हम यहोवा की सेवा जी-जान से नहीं कर रहे होंगे।

8. पहला कुरिंथियों 4:6, 7 के मुताबिक, हमें अपने हुनर के बारे में शेखी क्यों नहीं माननी चाहिए?

8 हमें अपने हुनर का अच्छा इस्तेमाल तो करना है, लेकिन उसका घमंड नहीं करना है। (1 कुरिंथियों 4:6, 7 पढ़िए।) उदाहरण के लिए, हो सकता है कि आप आसानी से बाइबल अध्ययन शुरू कर लेते हों। यह आपका हुनर है और आपको बेशक इसका इस्तेमाल करना चाहिए। लेकिन आपको शेखी नहीं मारनी चाहिए। मान लीजिए कि आपने अभी-अभी प्रचार काम खत्म किया है और आप एक बाइबल अध्ययन भी शुरू कर पाए हैं। आप बहुत खुश हैं और दूसरे भाई-बहनों को इस बारे में बताना चाहते हैं। लेकिन जब आप उनसे मिलते हैं, तो देखते हैं कि एक बहन अपना अनुभव बता रही है कि उसने कैसे एक व्यक्‍ति को पत्रिका दी। अब आप क्या करेंगे? आप जानते हैं कि आपके अनुभव से भाई-बहनों का हौसला बढ़ेगा। पर सोचिए कि उस बहन को कैसा लगेगा। शायद आपका अनुभव सुनकर उसकी खुशी छिन जाए। उसे लगेगा कि उसने जो किया, वह आपके सामने कुछ भी नहीं। इस तरह सोचने से आप शायद अपना अनुभव फिर कभी सुनाने का फैसला करें। यह दिखाएगा कि आपको उस बहन की परवाह है। लेकिन आप अपना हुनर इस्तेमाल करना मत छोड़िए!

9. हमें अपना हुनर क्या करने के लिए इस्तेमाल करना चाहिए?

9 हमें याद रखना चाहिए कि हममें जो भी हुनर और काबिलीयतें हैं, वे हमें परमेश्‍वर से मिली हैं। हमें इनका इस्तेमाल खुद को बड़ा दिखाने के लिए नहीं बल्कि मंडली की मदद करने के लिए करना चाहिए। (फिलि. 2:3) जब हम इस बात का ध्यान रखेंगे और अपनी ताकत और काबिलीयतों का इस्तेमाल परमेश्‍वर की मरज़ी पूरी करने के लिए करेंगे, तो हम यहोवा की महिमा कर रहे होंगे। इससे हमें खुशी मिलेगी।

10. हमें दूसरों को क्यों नीचा नहीं समझना चाहिए?

10 अगर हममें कोई हुनर या काबिलीयत है, तो हमें ध्यान रखना चाहिए कि हम दूसरों को नीचा न समझें। जैसे, हो सकता है कि एक भाई के पास अच्छे भाषण देने का हुनर हो। लेकिन वह शायद एक ऐसे भाई को नीचा समझने लगे जो उसकी तरह अच्छे भाषण न देता हो। पर उसका ऐसा करना गलत होगा क्योंकि हो सकता है कि वही भाई दूसरे मामलों में उससे ज़्यादा अच्छा हो, जैसे मेहमान-नवाज़ी करने में, अपने बच्चों को सिखाने में या फिर जोश से प्रचार करने में। इसलिए दूसरों को नीचा समझने के बजाय हमें देखना चाहिए कि उनमें क्या हुनर है और वे अपना हुनर यहोवा की और दूसरों की सेवा करने में कैसे इस्तेमाल कर रहे हैं। 

दूसरों से सीखिए 

11. हमें क्यों यीशु की तरह बनने की कोशिश करनी चाहिए?

11 हालाँकि हमें खुद की तुलना दूसरों से नहीं करनी चाहिए, लेकिन हम अच्छी मिसालों से सीख ज़रूर सकते हैं, जैसे यीशु से। हालाँकि वह परिपूर्ण था, फिर भी उसने जो गुण ज़ाहिर किए और जो काम किए उनसे हम बहुत कुछ सीख सकते हैं। (1 पत. 2:21) अगर हम यीशु की तरह बनने की पूरी कोशिश करें तो हम अच्छी तरह से यहोवा की सेवा कर पाएँगे और प्रचार करने का हुनर बढ़ा पाएँगे। 

12-13. दाविद से हम क्या सीख सकते हैं?

12 बाइबल में और भी कई लोगों के बारे में बताया गया है जिन्होंने अपरिपूर्ण होने के बावजूद अच्छी मिसाल रखी। (इब्रा. 6:12) उनमें से एक है दाविद। उसने कुछ गंभीर पाप किए, फिर भी उसके बारे में यहोवा ने कहा, “वह एक ऐसा इंसान है जो मेरे दिल को भाता है।” (प्रेषि. 13:22) यहोवा ने ऐसा क्यों कहा? क्योंकि गलती करने के बाद जब दाविद को सुधारा गया और सख्ती से सलाह दी गयी, तो उसने खुद की सफाई नहीं दी। इसके बजाय उसने अपनी गलती मानी और दिल से माफी माँगी। इस वजह से यहोवा ने उसे माफ कर दिया।​—भज. 51:3, 4, 10-12.

13 दाविद के उदाहरण पर ध्यान देते वक्‍त हम खुद से पूछ सकते हैं, ‘जब मुझे सलाह दी जाती है तो मैं क्या करता हूँ? क्या मैं खुद की सफाई देने लगता हूँ? क्या मैं अपनी गलती का दोष दूसरों पर डालता हूँ? या क्या मैं अपनी गलती मान लेता हूँ और कोशिश करता हूँ कि दोबारा वह गलती ना करूँ?’ जब आप बाइबल में दूसरे वफादार लोगों के बारे में पढ़ते हैं तो आप खुद से इसी तरह के सवाल कर सकते हैं। हो सकता है कि उन्होंने आपकी जैसी समस्याओं का सामना किया हो। ऐसे में आप सोच सकते हैं कि उन्होंने कौन-से गुण ज़ाहिर किए और खुद से पूछ सकते हैं, ‘मैं उनकी तरह कैसे बन सकता हूँ?’

14. हम अपने भाई-बहनों से क्या सीख सकते हैं?

14 हम अपने भाई-बहनों से भी काफी कुछ सीख सकते हैं, फिर चाहे वे जवान हों या बुज़ुर्ग। क्या आपकी मंडली में ऐसा कोई है जो मुश्‍किलों का सामना कर रहा है, फिर भी यहोवा की सेवा करने में लगा हुआ है? हो सकता है वह स्कूल में साथियों के दबाव का सामना कर रहा हो, या उसका परिवार उसका विरोध कर रहा हो, या फिर वह किसी बीमारी से जूझ रहा हो। अगर आप ऐसे भाई-बहनों के बारे में सोचें तो आप उनसे बहुत कुछ सीख सकते हैं। आप उनके जैसे गुण ज़ाहिर करने की कोशिश कर सकते हैं या आप उनसे अपनी समस्याओं का सामना करना सीख सकते हैं। हम बहुत खुश हैं कि ये भाई-बहन हमारे लिए एक अच्छी मिसाल हैं।​—इब्रा. 13:7; याकू. 1:2, 3.

खुशी-खुशी यहोवा की सेवा कीजिए

15. आज हम पौलुस की कौन-सी सलाह मान सकते हैं?

15 अगर हममें से हरेक अपने हालात के मुताबिक जी-जान से यहोवा की सेवा करे, तो इससे मंडली में एकता और शांति बनी रहेगी। पहली सदी के मसीहियों का उदाहरण लीजिए। उनके पास अलग-अलग वरदान, काबिलीयतें और ज़िम्मेदारियाँ थीं। (1 कुरिं. 12:4, 7-11) लेकिन इसका यह मतलब नहीं था कि वे एक-दूसरे से होड़ लगाना शुरू कर दें। पौलुस ने उन्हें बढ़ावा दिया कि वे अपनी काबिलीयतों का इस तरह इस्तेमाल करें कि मसीह का शरीर बढ़ता जाए, यानी मंडली मज़बूत होती जाए। पौलुस ने लिखा, “जब शरीर का हर अंग सही तरीके से काम करता है तो इससे शरीर बढ़ता जाता है और प्यार में मज़बूत होता जाता है।” (इफि. 4:1-3, 11, 12, 16) कई मसीहियों ने यह सलाह मानी और इस वजह से मंडली में शांति और एकता बनी रही। यही बात आज की मंडलियों में भी देखी जा सकती है।

16. इस लेख से हमने क्या सीखा? (इब्रानियों 6:10)

16 खुद की तुलना दूसरों से मत कीजिए। इसके बजाय यीशु से सीखिए और उसके जैसे गुण बढ़ाने की कोशिश कीजिए। बाइबल में बताए वफादार लोगों और भाई-बहनों से सीखिए। आप जो कर रहे हैं, अगर उसे जी-जान से करते रहें तो यहोवा आपके काम को कभी नहीं भूलेगा। (इब्रानियों 6:10 पढ़िए) इसलिए तन-मन से यहोवा की सेवा करते रहिए। इससे न सिर्फ आपको खुशी मिलेगी बल्कि यहोवा भी बहुत खुश होगा।

गीत 65 आगे बढ़!

a दूसरे जिस तरह यहोवा की सेवा करते हैं, उससे हम बहुत कुछ सीख सकते हैं। लेकिन हमें खुद की तुलना उनसे नहीं करनी चाहिए। ऐसा करने से हम या तो घमंडी बन सकते हैं या फिर निराश हो सकते हैं। इस लेख से हम सीखेंगे कि हम कैसे खुद को तुलना करने से रोक सकते हैं और खुशी-खुशी यहोवा की सेवा कर सकते हैं।

b तसवीर के बारे में: एक भाई ने अपनी जवानी में बेथेल में सेवा की। फिर उसकी शादी हो गयी और उसने अपनी पत्नी के साथ पायनियर सेवा की। कुछ समय बाद जब उसके बच्चे हुए, तो उसने उन्हें प्रचार करना सिखाया। अब वह बुज़ुर्ग हो गया है और चिट्ठी लिखकर लोगों को गवाही दे रहा है। उसने ज़िंदगी-भर यहोवा की जी-जान से सेवा की।