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अध्ययन लेख 14

गीत 56 सच्चाई को अपना बनाएँ

‘पूरा ज़ोर लगाकर प्रौढ़ता के लक्ष्य की तरफ बढ़ते जाइए’

‘पूरा ज़ोर लगाकर प्रौढ़ता के लक्ष्य की तरफ बढ़ते जाइए’

“आओ हम पूरा ज़ोर लगाकर प्रौढ़ता के लक्ष्य की तरफ बढ़ते जाएँ।”​—इब्रा. 6:1.

क्या सीखेंगे?

हम जानेंगे कि एक प्रौढ़ मसीही हर मामले में उसी तरह सोचता है और काम करता है जैसा परमेश्‍वर चाहता है और इस वजह से वह अच्छे फैसले कर पाता है।

1. यहोवा हमसे क्या चाहता है?

 जब एक बच्चा पैदा होता है, तो माँ-बाप की खुशी देखने लायक होती है। वे अपने नन्हे-मुन्‍ने से बहुत प्यार करते हैं, पर वे यह नहीं चाहते कि वह हमेशा छोटा ही रहे। अगर वह बड़ा ना हो, तो उन्हें चिंता होने लगेगी। ठीक उसी तरह जब हम यहोवा के बारे में सीखना शुरू करते हैं, मानो अपना पहला कदम बढ़ाते हैं, तो यह देखकर उसे बहुत खुशी होती है। लेकिन वह चाहता है कि हम आगे भी सीखते रहें और “सयाने” होते जाएँ।​—1 कुरिं. 3:1; 14:20.

2. इस लेख में हम क्या जानेंगे?

2 इस लेख में हम इन सवालों के जवाब जानेंगे: सयाने या प्रौढ़ बनने का क्या मतलब है? एक मसीही प्रौढ़ कैसे बन सकता है? प्रौढ़ बनने के लिए “ठोस आहार” लेना क्यों ज़रूरी है? और प्रौढ़ बने रहने के लिए हमें क्यों मेहनत करते रहनी होगी?

प्रौढ़ बनने का क्या मतलब है?

3. सयाने या प्रौढ़ बनने का क्या मतलब है?

3 जिस यूनानी शब्द का अनुवाद “सयाने” किया गया है, उसका मतलब “प्रौढ़,” “परिपूर्ण” या “पूरी तरह से विकसित” भी हो सकता है। a (1 कुरिं. 2:6, फु.) जैसे एक बच्चा धीरे-धीरे बड़ा होता है और समझदार हो जाता है, वैसे ही जब यहोवा के साथ हमारा रिश्‍ता मज़बूत होता जाता है, तो हम सयाने या प्रौढ़ बन जाते हैं। लेकिन इसके बाद भी हमें यहोवा के साथ अपना रिश्‍ता मज़बूत करते जाना है। (1 तीमु. 4:15) चाहे हम उम्र में छोटे हों या बड़े, हम सब प्रौढ़ बन सकते हैं। पर हम कैसे पता लगा सकते हैं कि हम प्रौढ़ हैं या नहीं?

4. एक प्रौढ़ मसीही कौन होता है?

4 एक प्रौढ़ या समझदार मसीही परमेश्‍वर की सभी आज्ञाएँ मानता है, उन आज्ञाओं को भी जो उसे मुश्‍किल लगती हैं या जो उसे इतनी पसंद नहीं। इसका यह मतलब नहीं कि उससे कोई गलती नहीं होती। लेकिन हर दिन वह जिस तरह अपनी ज़िंदगी जीता है, उससे पता चलता है कि वह परमेश्‍वर को खुश करना चाहता है। वह अपने अंदर मसीही गुण बढ़ाता है और लगातार कोशिश करता है कि हर मामले के बारे में परमेश्‍वर के जैसी सोच रखे। (इफि. 4:22-24) कोई भी फैसला लेने के लिए उसे नियमों की एक लंबी-चौड़ी लिस्ट की ज़रूरत नहीं होती। वह परमेश्‍वर के नियमों और सिद्धांतों को अच्छी तरह जानता है और कोई फैसला लेते वक्‍त इन्हें ध्यान में रखता है। और फिर उस फैसले के हिसाब से काम भी करता है।​—1 कुरिं. 9:26, 27.

5. जो मसीही प्रौढ़ नहीं होते, उनके साथ क्या हो सकता है? (इफिसियों 4:14, 15)

5 लेकिन जो मसीही प्रौढ़ या समझदार नहीं होते, उनके बारे में क्या कहा जा सकता है? वे बड़ी आसानी से उन लोगों की बातों में आ सकते हैं ‘जो छल से और बड़ी चालाकी से धोखा देकर बहकाते हैं।’ जैसे शायद वे सोशल मीडिया और अखबारों में आनेवाली अफवाहों और झूठी खबरों को सच मान बैठें और धर्मत्यागियों की बातों में आ जाएँ। b (इफिसियों 4:14, 15 पढ़िए।) यही नहीं, हो सकता है कि वे जल्दी दूसरों की बात का बुरा मान जाएँ, दूसरों से जलने लगें, झगड़ने लगें और जब उन्हें लुभाया जाए, तो गलत काम कर बैठें।​—1 कुरिं. 3:3.

6. समझाइए कि एक मसीही कैसे धीरे-धीरे प्रौढ़ या समझदार बनता है। (तसवीर भी देखें।)

6 जैसे हमने शुरू में देखा था, बच्चे धीरे-धीरे बड़े होते हैं और समझदार हो जाते हैं। उसी तरह बाइबल में बताया है कि हमें भी बच्चे नहीं रहना है, बल्कि प्रौढ़ या समझदार बनते जाना है। एक बच्चे में ज़्यादा समझ नहीं होती, इसलिए किसी बड़े को उसे बताना पड़ता है कि उसे क्या करना चाहिए और क्या नहीं। जैसे, जब एक बच्ची छोटी होती है, तो उसकी माँ उसका हाथ पकड़कर उसे सड़क पार करवाती है। लेकिन जब वह थोड़ी बड़ी हो जाती है, तो उसकी माँ शायद उसे खुद सड़क पार करने दे। पर फिर भी वह उससे कहती है, ‘बेटा, दाएँ-बाँए देखकर सड़क पार करना।’ मगर जब बेटी बड़ी हो जाती है, समझदार हो जाती है, तब क्या? तब माँ को उसे बताना नहीं पड़ता, वह खुद ही सड़क पार कर लेती है। कुछ मसीही भी छोटे बच्चों की तरह होते हैं। सही फैसला लेने के लिए उन्हें प्रौढ़ मसीहियों की मदद चाहिए होती है, वरना वे कुछ ऐसा कर बैठेंगे जिससे यहोवा के साथ उनका रिश्‍ता खराब हो जाए। लेकिन जब वे प्रौढ़ हो जाते हैं, तो वे खुद अपने लिए फैसले लेते हैं। वे बाइबल के सिद्धांतों के बारे में सोचते हैं और यह जानने की कोशिश करते हैं कि किसी मामले में यहोवा की क्या सोच है और फिर वही करते हैं।

जिन्हें बच्चों की तरह कम अनुभव होता है, उन्हें सीखना होता है कि बाइबल के सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए सही फैसले कैसे लें (पैराग्राफ 6)


7. क्या प्रौढ़ मसीही दूसरों से मदद लेते हैं?

7 लेकिन क्या इसका यह मतलब है कि समझदार मसीहियों को कभी किसी की मदद की ज़रूरत नहीं पड़ती? ऐसी बात नहीं है। समझदार मसीही भी कभी-कभी दूसरों से मदद लेते हैं। पर वे कभी यह उम्मीद नहीं करते कि कोई दूसरा उनके लिए फैसला ले या उन्हें बताए कि उन्हें क्या करना चाहिए। ऐसा तो वे करते हैं जिनके पास कम अनुभव होता है। जब एक प्रौढ़ मसीही किसी से सलाह लेता है, तो वह उसके अनुभव से सीखता है। पर साथ ही वह याद रखता है कि फैसला उसे खुद ही लेना होगा, क्योंकि यहोवा चाहता है कि ‘हर कोई अपना बोझ खुद उठाए।’​—गला. 6:5.

8. प्रौढ़ मसीही किस तरह एक-दूसरे से अलग होते हैं?

8 सभी बच्चे बड़े होकर एक-जैसे नहीं दिखते। उसी तरह समझदार मसीही भी एक-जैसे नहीं होते, हर किसी में अलग-अलग गुण होते हैं। कुछ दूसरों से ज़्यादा बुद्धिमान होते हैं, तो कुछ ज़्यादा हिम्मतवाले। कुछ बहुत दरियादिल होते हैं, तो कुछ दूसरों से बहुत हमदर्दी रखते हैं। यह भी हो सकता है कि दो समझदार मसीही एक-जैसे हालात का सामना करें, लेकिन उनके फैसले एक-दूसरे से अलग हों और दोनों ही बाइबल के हिसाब से सही हों, खासकर ऐसे मामलों में जो ज़मीर पर छोड़े गए हैं। प्रौढ़ मसीही इस बात को समझते हैं, इसलिए वे एक-दूसरे के फैसले में नुक्स नहीं निकालते। इसके बजाय वे एक-दूसरे का आदर करते हैं और मिलकर यहोवा की सेवा करते हैं।​—रोमि. 14:10; 1 कुरिं. 1:10.

प्रौढ़ कैसे बनें?

9. क्या एक मसीही अपने आप प्रौढ़ बन जाता है? समझाइए।

9 जैसे-जैसे समय बीतता है, बच्चे अपने आप बड़े हो जाते हैं। लेकिन मसीही अपने आप प्रौढ़ नहीं बन जाते। परमेश्‍वर के साथ अपना रिश्‍ता मज़बूत करने के लिए उन्हें मेहनत करनी होती है। ज़रा कुरिंथ के भाई-बहनों के बारे में सोचिए। उन्होंने खुशखबरी कबूल की और बपतिस्मा लिया। फिर उन्हें परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति मिली। इतना ही नहीं, उन्हें पौलुस से सीखने का बढ़िया मौका भी मिला। (प्रेषि. 18:8-11) पर अफसोस, बपतिस्मे के कुछ साल बाद भी वे प्रौढ़ नहीं बने थे। (1 कुरिं. 3:2) हम क्या कर सकते हैं, ताकि हमारे साथ ऐसा ना हो?

10. प्रौढ़ बनने के लिए हमें क्या करना होगा? (यहूदा 20)

10 प्रौढ़ बनने के लिए हममें सबसे पहले प्रौढ़ बनने की इच्छा होनी चाहिए। लेकिन कुछ लोग ‘नादान’ रहना चाहते हैं, इसलिए वे प्रौढ़ नहीं बन पाते। (नीति. 1:22) वे उन बच्चों की तरह हैं जो बड़े तो हो गए हैं लेकिन खुद कोई फैसला या ज़िम्मेदारी नहीं लेते, बल्कि हमेशा अपने माँ-बाप पर निर्भर रहते हैं। हम उनकी तरह नहीं बनना चाहते, बल्कि प्रौढ़ बनना चाहते हैं। हम इस बात को समझते हैं कि यहोवा के साथ रिश्‍ता मज़बूत करना हमारी अपनी ज़िम्मेदारी है। (यहूदा 20 पढ़िए।) अगर आप प्रौढ़ बनना चाहते हैं, तो आप क्या कर सकते हैं? यहोवा से प्रार्थना कीजिए कि वह आपके अंदर प्रौढ़ बनने की ‘इच्छा पैदा करे और उसे पूरा करने की ताकत भी दे।’​—फिलि. 2:13.

11. प्रौढ़ बनने में यहोवा किस तरह हमारी मदद करता है? (इफिसियों 4:11-13)

11 यहोवा जानता है कि हम खुद-ब-खुद प्रौढ़ नहीं बन सकते। इसलिए उसने मंडली में चरवाहे और शिक्षक ठहराए हैं जो यहोवा के साथ रिश्‍ता मज़बूत करने में हमारी मदद करते हैं। उनकी मदद से हम “पूरी तरह से विकसित” हो सकते हैं और “मसीह की पूरी कद-काठी हासिल” कर सकते हैं। (इफिसियों 4:11-13 पढ़िए।) यहोवा ने हमें अपनी पवित्र शक्‍ति भी दी है, ताकि हम “मसीह के जैसी सोच” रख पाएँ। (1 कुरिं. 2:14-16) इसके अलावा, यहोवा ने हमें खुशखबरी की चार किताबें दी हैं जिनमें बताया गया है कि यीशु कैसा इंसान था, उसने धरती पर रहते वक्‍त क्या किया था और कहा था। अगर हम इन्हें पढ़ें और यीशु की तरह सोचें और काम करें, तो हम भी प्रौढ़ बन पाएँगे।

“ठोस आहार” लेना क्यों ज़रूरी है?

12. ‘मसीह के बारे में बुनियादी शिक्षाएँ’ क्या हैं?

12 प्रौढ़ बनने के लिए ‘मसीह के बारे में बुनियादी शिक्षाएँ’ जानना काफी नहीं। हमें इनके ‘आगे बढ़ना होगा।’ लेकिन ये बुनियादी शिक्षाएँ क्या हैं? पश्‍चाताप करना, परमेश्‍वर पर विश्‍वास करना, बपतिस्मे की शिक्षा, मरे हुओं के ज़िंदा होने की शिक्षा और ऐसी ही दूसरी शिक्षाएँ। (इब्रा. 6:1, 2) ये कुछ अहम शिक्षाएँ हैं जिन्हें सभी मसीही मानते हैं। तभी प्रेषित पतरस ने पिन्तेकुस्त के दिन लोगों को गवाही देते वक्‍त इनके बारे में बताया। (प्रेषि. 2:32-35, 38) मसीह का शिष्य होने के लिए यह बहुत ज़रूरी है कि हम भी इन बुनियादी शिक्षाओं को मानें। पौलुस ने कहा था कि जो मरे हुओं के ज़िंदा होने की शिक्षा नहीं मानता, वह यीशु का शिष्य हो ही नहीं सकता। (1 कुरिं. 15:12-14) लेकिन बुनियादी शिक्षाओं के अलावा हमें कुछ और भी जानना होगा।

13. “ठोस आहार” लेने के लिए हमें क्या करना होगा? (इब्रानियों 5:14) (तसवीर भी देखें।)

13 हमारे लिए बुनियादी शिक्षाएँ जानना ज़रूरी है, लेकिन हमें “ठोस आहार” भी लेना होगा। इसका मतलब, हमें यहोवा के नियमों के अलावा उसके सिद्धांतों को भी समझना होगा। ऐसा करने से हम यहोवा की सोच जान पाएँगे। “ठोस आहार” लेने के लिए हमें परमेश्‍वर के वचन का अध्ययन करना होगा, उस पर गहराई से सोचना होगा और जो बातें हम सीखते हैं, उन्हें मानने की पूरी कोशिश करनी होगी। ऐसा करने से हम सही फैसले लेना सीखेंगे और यहोवा का दिल खुश कर पाएँगे। c​—इब्रानियों 5:14 पढ़िए।

“ठोस आहार” लेने से हम ऐसे फैसले ले पाएँगे जिनसे यहोवा का दिल खुश हो (पैराग्राफ 13) d


14. पौलुस ने कुरिंथ के भाई-बहनों को कैसे प्रौढ़ बनना सिखाया?

14 कुछ मामले ऐसे होते हैं जिनके बारे में बाइबल में सीधे-सीधे नियम नहीं दिए गए हैं। ऐसे में सिद्धांतों को ध्यान में रखकर फैसले लेने होते हैं। लेकिन जो मसीही समझदार नहीं होते, उन्हें ऐसे मामलों में फैसले करना मुश्‍किल लगता है। कुछ तो वही करते हैं, जो उन्हें सही लगता है। और कुछ को लगता है कि इस बारे में कोई नियम बना दिया जाना चाहिए। बीते ज़माने में कुरिंथ की मंडली में भी कुछ मसीही ऐसे ही थे। उनके मन में यह सवाल था कि वे मूर्तियों के आगे चढ़ायी गयी चीज़ें खा सकते हैं या नहीं। जब उन्होंने पौलुस से इस बारे में सवाल किया, शायद इस इरादे से कि वह कोई नियम बना दे, तो पौलुस ने कोई नियम नहीं बनाया। इसके बजाय उसने बताया कि यह मामला ज़मीर पर छोड़ा गया है और हरेक के पास ‘अपना चुनाव करने का हक है।’ उसने उन्हें कुछ सिद्धांत बताए जिससे वे सही फैसला ले सकते थे, ऐसा फैसला जिससे उनका ज़मीर भी उन्हें नहीं कचोटता और वे दूसरों को ठोकर भी नहीं खिलाते। (1 कुरिं. 8:4, 7-9) तो पौलुस ने उन्हें समझाया कि कोई भी फैसला लेने के लिए उन्हें दूसरों पर निर्भर नहीं रहना चाहिए, ना ही कोई नियम ढूँढ़ने की कोशिश करनी चाहिए। इसके बजाय उन्हें अपनी सोचने-समझने की शक्‍ति का इस्तेमाल करके खुद सही फैसले लेने चाहिए। इस तरह पौलुस उन्हें प्रौढ़ बनना सिखा रहा था।

15. पौलुस ने इब्री मसीहियों को प्रौढ़ बनने में कैसे मदद दी?

15 पौलुस ने इब्री मसीहियों को जो लिखा, उससे हम एक ज़रूरी बात सीख सकते हैं। कुछ इब्री मसीहियों ने प्रौढ़ बनने के लिए मेहनत नहीं की थी। उनका यह हाल हो गया था कि “ठोस आहार” के बजाय उन्हें “फिर से दूध की  ज़रूरत” थी। (इब्रा. 5:12) उनका यह हाल क्यों हुआ? क्योंकि यहोवा मंडली के ज़रिए जो बातें सिखा रहा था, जो नयी समझ दे रहा था, उस पर उन्होंने कोई ध्यान नहीं दिया। (नीति. 4:18) उदाहरण के लिए, कुछ यहूदी मसीही अभी-भी मूसा का कानून मानने पर ज़ोर दे रहे थे, जबकि यीशु की मौत पर वह रद्द हो चुका था और इस बात को 30 साल हो चुके थे। (रोमि. 10:4; तीतु. 1:10) इतना समय बीत चुका था, फिर भी वे इस बात को नहीं समझ पाए कि उन्हें मूसा का कानून मानने की कोई ज़रूरत नहीं है। इसलिए पौलुस ने उन्हें ठोस आहार दिया यानी उन्हें कुछ गहरी बातें बतायीं। उसने अपनी चिट्ठी में उन्हें समझाया कि यहोवा ने यीशु के बलिदान के आधार पर उपासना करने का एक नया इंतज़ाम शुरू किया है जो पुराने इंतज़ाम से कहीं बेहतर है। पौलुस की इन बातों से मसीहियों को ज़रूर हिम्मत मिली होगी, तभी वे यहूदियों के विरोध के बावजूद प्रचार करते रहे।​—इब्रा. 10:19-23.

प्रौढ़ बने रहने के लिए मेहनत क्यों करें?

16. प्रौढ़ बनने के बाद भी हमें क्या करते रहना है?

16 यह सच है कि प्रौढ़ बनने के लिए हमें मेहनत करनी है, लेकिन इसके बाद भी हमें कोशिश करनी चाहिए कि हम आगे भी प्रौढ़ बने रहें। हमें कभी ऐसा नहीं सोचना चाहिए, ‘मेरा तो यहोवा के साथ मज़बूत रिश्‍ता है, मुझे और मेहनत करने की ज़रूरत नहीं।’ (1 कुरिं. 10:12) इसके बजाय हमें लगातार ‘खुद की जाँच’ करनी है और यहोवा के साथ अपना रिश्‍ता मज़बूत करते जाना है।​—2 कुरिं. 13:5.

17. पौलुस की चिट्ठी से कैसे पता चलता है कि हमारे लिए प्रौढ़ बने रहना ज़रूरी है?

17 पौलुस ने कुलुस्से के मसीहियों को जो चिट्ठी लिखी, उसमें एक बार फिर उसने इस बात पर ज़ोर दिया कि हमें प्रौढ़ बने रहना है। वैसे तो वहाँ के भाई-बहन प्रौढ़ थे, फिर भी पौलुस ने उन्हें खबरदार किया कि वे दुनिया की सोच ना अपना लें। (कुलु. 2:6-10) उसने अपनी चिट्ठी में इपफ्रास का भी ज़िक्र किया जो शायद कुलुस्से के भाई-बहनों को अच्छी तरह जानता था। उसने लिखा कि इपफ्रास उनके लिए लगातार प्रार्थना कर रहा था कि वे ‘मज़बूत खड़े रहें’ यानी प्रौढ़ बने रहें। (कुलु. 4:12) पौलुस और इपफ्रास से हम क्या सीखते हैं? यही कि अगर हम प्रौढ़ बने रहना चाहते हैं, तो हमें परमेश्‍वर से मदद लेनी होगी, लेकिन साथ ही हमें खुद भी मेहनत करनी होगी। पौलुस और इपफ्रास भी यह बात जानते थे, तभी वे चाहते थे कि कुलुस्से के भाई-बहन मुश्‍किलों के बावजूद प्रौढ़ बने रहने के लिए मेहनत करते रहें।

18. एक प्रौढ़ मसीही के साथ भी क्या हो सकता है? (तसवीर भी देखें।)

18 पौलुस ने इब्री मसीहियों से कहा कि अगर एक प्रौढ़ मसीही खबरदार ना रहे, तो वह हमेशा के लिए परमेश्‍वर की मंज़ूरी खो सकता है। उसने कहा कि एक मसीही का दिल इस कदर कठोर हो सकता है कि वह कभी पश्‍चाताप ही ना करे और परमेश्‍वर से माफी ही ना माँगे। शुक्र है कि इब्री मसीहियों का इतना बुरा हाल नहीं हुआ था। (इब्रा. 6:4-9) लेकिन उन मसीहियों के बारे में क्या कहा जा सकता है जो निष्क्रिय हो गए हैं या जिनका बहिष्कार कर दिया गया है? अगर वे सच्चा पश्‍चाताप करें, तो वे उन लोगों की तरह नहीं बनेंगे जो परमेश्‍वर की मंज़ूरी हमेशा के लिए खो चुके थे और जिनके बारे में पौलुस ने इब्री मसीहियों को लिखा था। लेकिन एक बात है: जब वे यहोवा के पास लौट आएँगे, तो उन्हें मदद की ज़रूरत होगी। (यहे. 34:15, 16) इसलिए हो सकता है, प्राचीन किसी अनुभवी भाई या बहन से कहें कि वह ऐसे लोगों की मदद करे ताकि यहोवा के साथ उनका रिश्‍ता दोबारा मज़बूत हो सके।

यहोवा उन लोगों की मदद करता है जो दोबारा उसके साथ अपना रिश्‍ता मज़बूत करना चाहते हैं (पैराग्राफ 18)


19. आपका क्या लक्ष्य होना चाहिए?

19 अगर आप प्रौढ़ बनने की कोशिश कर रहे हैं, तो यकीन मानिए आप यह लक्ष्य हासिल कर सकते हैं! लगातार ठोस आहार लेते रहिए और हर मामले के बारे में यहोवा की तरह सोचने की कोशिश कीजिए। और अगर आप एक प्रौढ़ मसीही हैं, तो मेहनत करते रहिए ताकि आप हमेशा मज़बूत बने रहें।

आपका जवाब क्या होगा?

  • प्रौढ़ बनने का क्या मतलब है?

  • हम प्रौढ़ कैसे बन सकते हैं?

  • प्रौढ़ बने रहने के लिए हमें क्यों मेहनत करनी चाहिए?

गीत 65 आगे बढ़!

a वैसे तो इब्रानी शास्त्र में कहीं पर भी “प्रौढ़” शब्द नहीं आया है, लेकिन इसमें हमें प्रौढ़ बनने का बढ़ावा ज़रूर दिया गया है। जैसे नीतिवचन की किताब में बताया गया है कि हमें नादान नहीं होना चाहिए, बल्कि बुद्धिमान और समझदार बनना चाहिए।​—नीति. 1:4, 5.

b jw.org या JW लाइब्रेरी  में “कुछ और विषय” शृंखला में दिया लेख “ज़रा सँभलकर, कहीं ये अफवाहें तो नहीं?” पढ़ें।

c इस अंक में “अध्ययन के लिए विषय” नाम का छोटा लेख देखें।

d तसवीर के बारे में: एक भाई बाइबल के सिद्धांत ध्यान में रखकर सोच रहा है कि वह टीवी पर क्या देखेगा।