जीवन कहानी
मेरी कमज़ोरियों में परमेश्वर की ताकत साफ दिखायी दी
1985 में मैं और मेरी पत्नी कोलंबिया आए। उस वक्त पूरे देश में आतंक मचा हुआ था। सरकार शहरों में बड़े-बड़े ड्रग माफिया से और पहाड़ी इलाके में गुरिल्ला गुट से लड़ने में लगी हुई थी। मेडेलिन में, जहाँ बाद में हमने सेवा की, छोटे-छोटे लड़कों का गैंग बंदूक लिए यहाँ-वहाँ घूमता नज़र आता था। वे ड्रग्स बेचते थे, धमकी देकर पैसे वसूलते थे और लोगों की जान लेने के लिए पैसे लेते थे। इस वजह से छोटी उम्र में ही कई लड़के अपनी जान गँवा बैठते थे। वहाँ पहुँचकर हमें ऐसा लगा मानो हम एक अलग ही दुनिया में आ गए हैं।
मैं और मेरी पत्नी फिनलैंड से हैं और हम बहुत-ही मामूली लोग हैं। लेकिन हम उत्तर से इतनी दूर दक्षिण अमरीका में कैसे आए और समय के चलते हमने क्या-क्या सीखा? आइए बताता हूँ।
मैं फिनलैंड में बड़ा हुआ
मेरा जन्म 1955 में हुआ था। मेरे दो बड़े भाई हैं और मैं परिवार में सबसे छोटा हूँ। मैं वांटा शहर में पला-बड़ा जो फिनलैंड के दक्षिणी तट के पास है।
मेरे पैदा होने से कुछ साल पहले ही मम्मी बपतिस्मा लेकर यहोवा की साक्षी बन गयी थीं। लेकिन पापा को यह सब पसंद नहीं था और उन्होंने मम्मी से साफ कह दिया था कि वे हम बच्चों को ना तो बाइबल से कुछ सिखाएँ और ना ही सभाओं में लेकर जाएँ। इसलिए जब पापा घर पर नहीं होते थे, तब मम्मी हमें बाइबल की कुछ बातें सिखाती थीं।
बचपन से ही मैं यहोवा की बात मानना चाहता था। जैसे, जब मैं सात साल का था, तो स्कूल में मेरी टीचर ने मुझे वेरीलाट्या खिलाने की कोशिश की (एक तरह का चीला जिसमें खून मिला होता है)। लेकिन जब मैंने मना कर दिया, तब मेरी टीचर बहुत गुस्सा हो गयीं। उन्होंने एक हाथ से मेरा मुँह पकड़ा और दूसरे हाथ से मुझे वेरीलाट्या खिलाने की कोशिश की, लेकिन मैंने उनका हाथ झटक दिया और वे मुझे नहीं खिला पायीं।
जब मैं 12 साल का था, तो पापा गुज़र गए। इसके बाद मैं सभाओं में जाने लगा। मंडली के भाई मुझसे बहुत प्यार करते थे और उन्होंने मेरी बहुत मदद की। इससे मेरे अंदर यहोवा के और करीब आने की इच्छा जागी। मैं हर दिन बाइबल पढ़ने लगा और किताबों-पत्रिकाओं का अच्छी तरह अध्ययन करने लगा। इन अच्छी आदतों की वजह से मेरा विश्वास इतना मज़बूत हो गया कि 8 अगस्त, 1969 को मैंने बपतिस्मा ले लिया। उस वक्त मैं बस 14 साल का ही था।
स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद मैंने पायनियर सेवा शुरू कर दी। फिर कुछ हफ्तों बाद मैं पीलावेसी नाम की जगह पर जाकर सेवा करने लगा जहाँ प्रचारकों की ज़्यादा ज़रूरत थी। यह जगह फिनलैंड के बीचों-बीच है।
पीलावेसी में मेरी मुलाकात सीरका से हुई। वह मुझे बहुत अच्छी लगी, क्योंकि वह नम्र थी और यहोवा से बहुत प्यार करती थी। वह अपना नाम या अपनी तारीफ नहीं चाहती थी और कम चीज़ों में भी खुश रहना जानती थी। हम दोनों की यही ख्वाहिश थी कि यहोवा की सेवा में हमसे जितना हो सकेगा, हम करेंगे और हमें जो भी काम मिलेगा, उसे दिलो-जान से करेंगे। 23 मार्च, 1974 को हमने शादी कर ली। फिर हनीमून पर जाने के बजाय हम सेवा करने के लिए कार्टटूला निकल गए, जहाँ प्रचारकों की और भी ज़्यादा ज़रूरत थी।
यहोवा ने हमारा खयाल रखा
जब से हमारी शादी हुई है, यहोवा ने हमेशा हमारा खयाल रखा है। हमने देखा है कि जब हमने उसके राज को ज़िंदगी में पहली जगह दी, तो हमें कभी किसी चीज़ की कमी नहीं हुई। (मत्ती 6:33) जैसे, जब हम कार्टटूला में थे, तो हमारे पास कार नहीं थी। हम हर जगह साइकिल से आते-जाते थे। लेकिन वहाँ सर्दियों में बहुत बर्फ पड़ती थी और कड़ाके की ठंड होती थी और हमें प्रचार के लिए दूर-दूर जाना होता था। इसलिए हमें कार की ज़रूरत थी। पर कार खरीदने के लिए हमारे पास पैसे नहीं थे।
फिर एक दिन अचानक मेरे भैया हमसे मिलने आए। उन्होंने अपनी कार हमें दे दी। उन्होंने उसका इंश्योरेंस भी करा रखा था, हमें बस उसमें पेट्रोल भरना था। इस तरह हमारे पास एक कार आ गयी!
हमें तो ऐसा लगा जैसे यहोवा हमसे कह रहा हो, ‘तुम बस राज को पहली जगह दो, बाकी सारी ज़रूरतें मैं देख लूँगा!’
हम गिलियड स्कूल गए
1978 में हम ‘पायनियर सेवा स्कूल’ के लिए गए। वहाँ हमारे एक शिक्षक, भाई राइमो क्वोकानेन a ने हमसे कहा, ‘तुम गिलियड की अर्ज़ी क्यों नहीं भरते?’ इसलिए हमने अँग्रेज़ी सीखनी शुरू कर दी, क्योंकि गिलियड जाने के लिए यह बहुत ज़रूरी थी। लेकिन इससे पहले कि हम गिलियड की अर्ज़ी भरते, 1980 में हमें फिनलैंड के दफ्तर में सेवा करने के लिए बुलाया गया। और उस वक्त बेथेल में सेवा करनेवाले गिलियड की अर्ज़ी नहीं भर सकते थे। हमारा मन तो गिलियड जाने का था, लेकिन हमें पता था कि यहोवा जानता है कि हम कहाँ उसकी सबसे अच्छी तरह सेवा कर सकते हैं और हम वहीं सेवा करना चाहते थे। इसलिए हमने बेथेल जाने का फैसला किया। पर हम अँग्रेज़ी भी सीखते रहे, यह सोचकर कि अगर कभी हमें गिलियड के लिए बुलाया गया तो हम तैयार हों।
कुछ साल बाद शासी निकाय ने यह फैसला किया कि बेथेल में सेवा करनेवाले भाई-बहन भी गिलियड की अर्ज़ी भर सकते हैं। फिर क्या था, हमने तुरंत अर्ज़ी भर दी! लेकिन इसलिए नहीं कि हम बेथेल में खुश नहीं थे, बल्कि इसलिए कि हम वहाँ सेवा करना चाहते थे जहाँ ज़्यादा ज़रूरत हो। फिर हमें गिलियड के लिए बुला लिया गया। सितंबर 1985 में हम गिलियड की 79वीं क्लास से ग्रैजुएट हुए और हमें कोलंबिया भेजा गया।
मिशनरी सेवा शुरू की
कोलंबिया में हमें शाखा दफ्तर में सेवा करने के लिए कहा गया। एक साल तक मैंने तन-मन से वहाँ सेवा की। लेकिन फिर मैंने भाइयों से कहा कि हम कहीं और सेवा करना चाहते हैं। यह पहली और आखिरी बार था जब मैंने भाइयों से ऐसा कुछ कहा। इसके बाद हमें मिशनरी सेवा के लिए व्हीला इलाके के नेवा शहर भेजा गया।
मुझे हमेशा से ही प्रचार काम बहुत पसंद था। जब मेरी शादी नहीं हुई थी, तब फिनलैंड में मैं अकसर सुबह से लेकर शाम तक प्रचार करता था। और शादी के बाद भी मैं और सीरका कई बार पूरा-पूरा दिन प्रचार करते थे। हम दूर-दूर के इलाकों में जाते थे और कभी-कभी तो अपनी गाड़ी में ही सो जाते थे, क्योंकि इससे हमारा काफी समय बचता था और हम अगले दिन जल्दी प्रचार शुरू कर पाते थे।
मिशनरी सेवा करने से हममें एक बार फिर प्रचार के लिए पहले जैसा जोश आ गया। धीरे-धीरे मंडली में प्रचारकों की गिनती बढ़ने लगी। वहाँ के भाई-बहन भी बहुत अच्छे थे। वे एक-दूसरे से प्यार करते थे, एक-दूसरे का आदर करते थे और छोटी-छोटी बातों के लिए भी उनके दिल में बहुत कदर थी।
प्रार्थना में बहुत ताकत होती है
हम नेवा शहर में सेवा कर रहे थे, लेकिन पास के कुछ इलाके ऐसे थे जहाँ एक भी साक्षी नहीं था। मैं सोचता था कि उन इलाकों में खुशखबरी कैसे पहुँचेगी, क्योंकि गुरिल्ला गुट की वजह से विदेशियों के लिए वहाँ जाना खतरे से खाली नहीं था। मैं यहोवा से प्रार्थना करने लगा कि वह हमें किसी ऐसे व्यक्ति से मिलवा दे जो उन इलाकों का रहनेवाला हो ताकि वह सच्चाई सीखे और साक्षी बन जाए। इतना ही नहीं, मैंने प्रार्थना में यह भी कहा कि उस व्यक्ति का विश्वास इतना मज़बूत हो जाए कि वह नेवा से अपने गाँव लौटकर वहाँ प्रचार करे। लेकिन मुझे नहीं पता था कि यहोवा ने इससे भी कुछ अच्छा सोच रखा है।
कुछ ही समय बाद मैं एक जवान आदमी के साथ अध्ययन करने लगा। उसका नाम फरनैनडो गनज़ालेस था और वह अल्जेसीरास में रहता था। उस जगह एक भी साक्षी नहीं था। फरनैनडो काम के लिए नेवा आता था। उसके गाँव से नेवा करीब 50 किलोमीटर (30 मील) दूर था। वह हर हफ्ते अध्ययन की बहुत अच्छे-से तैयारी करता था। और जब से उसने अध्ययन करना शुरू किया था, तब से वह सभाओं में भी आने लगा था। पहले हफ्ते से ही फरनैनडो गाँव लौटकर लोगों को इकट्ठा करता था और उन्हें वे बातें सिखाता था जो वह खुद बाइबल से सीख रहा था।
अध्ययन करने के छ: महीने बाद, जनवरी 1990 में फरनैनडो ने बपतिस्मा ले लिया। फिर वह पायनियर सेवा करने लगा। अब अल्जेसीरास का रहनेवाला एक व्यक्ति साक्षी बन गया था, इसलिए शाखा दफ्तर को लगा कि वहाँ खास पायनियरों को भेजना सुरक्षित है। इस तरह फरवरी 1992 में वहाँ एक मंडली बन गयी।
फरनैनडो ने सिर्फ अपने ही गाँव में प्रचार नहीं किया। शादी के बाद, वह और उसकी पत्नी सैन विसेंट डेल कैगुआन नाम की एक जगह में जाकर बस गए जहाँ कोई साक्षी नहीं था।
वहाँ उन्होंने एक मंडली शुरू की। 2002 में फरनैनडो को सर्किट निगरान बनाया गया। तब से लेकर आज तक वह और उसकी पत्नी ऑल्गा अलग-अलग मंडलियों का दौरा कर रहे हैं।इस अनुभव से मैंने सीखा कि यहोवा की सेवा से जुड़ी छोटी-छोटी बातों के बारे में भी प्रार्थना करना बहुत ज़रूरी है। यहोवा वह कर सकता है जो हम नहीं कर सकते। आखिर खेत का मालिक वही है, हम नहीं।—मत्ती 9:38.
यहोवा “इच्छा पैदा करता है और उसे पूरा करने की ताकत भी देता है”
1990 में मुझे सफरी निगरान बनाया गया। हमारा पहला सर्किट कोलंबिया की राजधानी बोगोटा में था। जब हमें यह ज़िम्मेदारी मिली, तो हम बहुत डर गए। हमें लगा कि पता नहीं हम यह काम अच्छे-से कर पाएँगे भी या नहीं। हम दोनों बहुत-ही मामूली लोग हैं, हमारे पास कोई खास हुनर भी नहीं है और हम पहले किसी बड़े शहर में भी नहीं रहे थे। लेकिन यहोवा ने फिलिप्पियों 2:13 में जो वादा किया है, उसे पूरा किया। वहाँ लिखा है, “परमेश्वर ही अपनी मरज़ी के मुताबिक तुम्हें मज़बूत करता है और तुम्हारे अंदर इच्छा पैदा करता है और उसे पूरा करने की ताकत भी देता है।”
बाद में हमें सर्किट काम के लिए मेडेलिन शहर भेजा गया जिसके बारे में मैंने शुरू में बताया था। यहाँ लोग लड़ाई-झगड़े के इतने आदी हो गए थे कि गोलियाँ चलती थीं तब भी उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता था। एक बार मैं एक घर में बाइबल अध्ययन चला रहा था और बाहर गोलियाँ चलने लगीं। मैं ज़मीन पर लेटने ही वाला था, लेकिन मैंने देखा कि मेरा बाइबल विद्यार्थी पैराग्राफ पढ़े ही जा रहा है, उसे कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा है। पैराग्राफ पढ़ने के बाद उसने मुझसे कहा कि मैं अभी आया। फिर कुछ देर बाद वह अपने दोनों बच्चों को लेकर अंदर आया और उसने कहा, “माफ करना, मैं ज़रा बच्चों को लेने गया था।”
ऐसा और भी कई बार हुआ जब हम मरते-मरते बचे। एक बार हम घर-घर का प्रचार कर रहे थे कि तभी सीरका मेरे पास दौड़ती हुई आयी। उसके चेहरे का रंग उड़ा हुआ था। उसने कहा कि किसी ने उस पर गोली चलायी। यह सुनकर मेरे होश ही उड़ गए। बाद में हमें पता चला कि वह आदमी सीरका को नहीं, बल्कि एक दूसरे आदमी को मारने की कोशिश कर रहा था जो सीरका के पास से गुज़र रहा था।
धीरे-धीरे हमारा डर भी दूर होने लगा। हमें वहाँ के भाई-बहनों से बहुत हिम्मत मिली जिन्होंने ऐसे और इससे भी बुरे हालात का सामना किया था। हमने सोचा कि अगर यहोवा उनकी मदद कर रहा है, तो वह हमारी भी मदद करेगा। हमने हमेशा प्राचीनों की हिदायतें मानीं, एहतियात बरता और बाकी यहोवा पर छोड़ दिया।
लेकिन हालात हमेशा उतने खराब नहीं होते थे जितना हम सोचते थे। जैसे कि एक बार मैं किसी के घर प्रचार करने गया कि तभी बाहर से दो औरतों के चीखने-चिल्लाने की आवाज़ आने लगी। मैं उनकी बहस सुनना नहीं चाहता था, लेकिन मैं जिनके घर पर था, वे मुझे बार-बार बाहर बुलाने लगीं। जब मैं बाहर गया, तो पता चला कि असल में दो तोते पड़ोस में रहनेवाली औरतों की नकल कर रहे थे, जो हमेशा एक-दूसरे से झगड़ती रहती थीं।
कुछ और ज़िम्मेदारियाँ और मुश्किलें
1997 में मुझे ‘मंडली सेवक प्रशिक्षण स्कूल’ b में सिखाने की ज़िम्मेदारी दी गयी। वैसे तो मुझे संगठन के स्कूलों में हाज़िर होना बहुत अच्छा लगता था, लेकिन मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि मुझे भी किसी स्कूल में सिखाने का मौका मिलेगा।
बाद में मैंने ज़िला निगरान के तौर पर सेवा की। जब यह इंतज़ाम बंद कर दिया गया, तब मैं वापस सर्किट का काम करने लगा। मैंने 30 से भी ज़्यादा सालों तक अलग-अलग ज़िम्मेदारियाँ सँभालीं, जैसे संगठन के स्कूल में सिखाया और सफरी काम किया। इस वजह से मुझे ढेरों आशीषें मिलीं। लेकिन ये ज़िम्मेदारियाँ निभाना हमेशा आसान नहीं था। आइए इस बारे में आपको थोड़ा और बताता हूँ।
मैं कुछ ज़्यादा ही जोशीला हूँ और जो सही लगता है, वही करता हूँ। इस वजह से मैं मुश्किल-से-मुश्किल हालात का सामना कर पाया। लेकिन कई बार ऐसा भी हुआ कि मंडली के मामलों को सुलझाते वक्त मैंने दूसरों का लिहाज़ नहीं किया। एक मौके पर मैंने जोश में आकर भाइयों से कहा कि उन्हें दूसरों के साथ और भी प्यार से पेश आना चाहिए और उनका लिहाज़ करना चाहिए। लेकिन अफसोस कि उस वक्त मैंने खुद ऐसा नहीं किया।—रोमि. 7:21-23.
अपनी कमज़ोरियों की वजह से कई बार मैं बहुत निराश हो जाता हूँ। (रोमि. 7:24) एक बार तो मैं इतना निराश हो गया कि मैंने यहोवा से कहा कि मेरे लिए यही सही रहेगा कि मैं मिशनरी सेवा छोड़ दूँ और फिनलैंड वापस चला जाऊँ। लेकिन उसी शाम जब मैं सभा में गया, तो वहाँ मैंने कुछ ऐसा सुना जिससे मेरा बहुत हौसला बढ़ा। मुझे यकीन हो गया कि यहोवा चाहता है कि मैं अपनी कमज़ोरियों से लड़ूँ और अपनी सेवा जारी रखूँ। आज भी जब मैं सोचता हूँ कि यहोवा ने उस वक्त किस तरह मेरी प्रार्थना का जवाब दिया था, तो मुझे बहुत खुशी होती है। और मैं यहोवा का बहुत एहसान मानता हूँ कि उसने मुझे अपनी कमज़ोरियों पर काबू पाने में मदद दी है।
यहोवा हमें आगे भी सँभालेगा
मैंने और सीरका ने अपनी ज़िंदगी के ज़्यादातर साल पूरे समय की सेवा में बिताए हैं और इसके लिए मैं यहोवा का बहुत शुक्रगुज़ार हूँ। मैं इस बात के लिए भी यहोवा का एहसान मानता हूँ कि उसने मुझे इतनी प्यारी पत्नी दी जिसने हमेशा मेरा साथ निभाया है।
कुछ ही समय में मैं 70 साल का हो जाऊँगा। मुझे स्कूल में सिखाने की ज़िम्मेदारी और सफरी काम छोड़ना होगा। लेकिन इस वजह से मैं निराश नहीं हूँ। क्यों नहीं? क्योंकि यहोवा की महिमा करने के लिए यह ज़रूरी नहीं कि संगठन में हमारे पास बड़ी-बड़ी ज़िम्मेदारियाँ हों। उसे तो यह देखकर खुशी होती है कि हम मर्यादा में रहकर उसकी सेवा करते हैं और हमारा दिल उसके लिए प्यार और एहसानमंदी से भरा हुआ है।—मीका 6:8; मर. 12:32-34.
मुझे संगठन में जो अलग-अलग ज़िम्मेदारियाँ मिलीं, वे इसलिए नहीं मिलीं क्योंकि मैं दूसरों से अच्छा था या मेरे अंदर अनोखी काबिलीयतें थीं, बल्कि यहोवा की महा-कृपा की वजह से ही वे मुझे मिलीं। यहोवा मेरी कमज़ोरियाँ जानता था, फिर भी उसने मुझे ज़िम्मेदारियाँ दीं और उन्हें पूरा करने में मेरी मदद की। सच में, मेरी कमज़ोरियों में परमेश्वर की ताकत साफ दिखायी दी है।—2 कुरिं. 12:9.
a 1 अप्रैल, 2006 की प्रहरीदुर्ग में आयी भाई राइमो क्वोकानेन की जीवन-कहानी, “हमने यहोवा की सेवा करने की ठान ली” पढ़ें।
b इसकी जगह अब ‘राज प्रचारकों के लिए स्कूल’ ने ले ली है।