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“वे बातें विश्वासयोग्य आदमियों को सौंप दे”

“वे बातें विश्वासयोग्य आदमियों को सौंप दे”

“वे बातें विश्वासयोग्य आदमियों को सौंप दे ताकि वे बदले में दूसरों को सिखाने के लिए ज़रूरत के हिसाब से योग्य बनें।”—2 तीमु. 2:2.

गीत: 42, 53

1, 2. कई लोग अपने काम के बारे में क्या नज़रिया रखते हैं?

कई लोगों को लगता है कि उनकी पहचान उनके काम या पेशे से होती है। वे सोचते हैं, अगर मैं किसी बड़े ओहदे पर हूँ तो मैं कुछ हूँ, नहीं तो मैं कुछ भी नहीं। इसलिए कुछ संस्कृति में जब लोग पहली बार किसी से मिलते हैं तो पूछते हैं, “आप क्या काम करते हैं?”

2 बाइबल में कभी-कभी लोगों के नाम के साथ-साथ उनका पेशा भी बताया गया है। जैसे, “कर-वसूलनेवाला मत्ती,” ‘चमड़े का काम करनेवाला शमौन’ और “वैद्य लूका।” (मत्ती 10:3; प्रेषि. 10:6; कुलु. 4:14) दूसरी आयतों में यह बताया गया है कि कुछ लोगों ने यहोवा की सेवा में क्या ज़िम्मेदारियाँ निभायीं। मिसाल के लिए, दाविद राजा था, एलियाह भविष्यवक्ता था और पौलुस प्रेषित था। यहोवा ने इन आदमियों को जो ज़िम्मेदारी दी थी उसे वे बहुत अनमोल समझते थे। हमें भी यहोवा की सेवा में जो ज़िम्मेदारी मिलती है, हमें उसे अनमोल समझना चाहिए।

3. बुज़ुर्ग मसीहियों को क्यों जवान भाइयों को प्रशिक्षण देना चाहिए? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)

3 हमें यहोवा की सेवा करना बहुत अच्छा लगता है और उसकी सेवा में हमें जो काम मिलता है, वह किसी खज़ाने से कम नहीं। हममें से कई लोगों को अपना काम इतना पसंद है कि हम इसे हमेशा तक करते रहना चाहते हैं। लेकिन अफसोस, जब लोगों की उम्र ढल जाती है तो वे उतना नहीं कर पाते जितना जवानी में करते थे। (सभो. 1:4) इससे यहोवा के सेवकों के सामने नयी मुश्किलें खड़ी होती हैं। आज प्रचार काम बढ़ता ही जा रहा है और यहोवा का संगठन नयी टेकनॉलजी का इस्तेमाल करके ज़्यादा-से-ज़्यादा लोगों तक खुशखबरी पहुँचा रहा है। लेकिन कभी-कभी बुज़ुर्ग मसीहियों के लिए ये नए-नए तरीके सीखना मुश्किल हो सकता है। (लूका 5:39) यही नहीं, ढलती उम्र की वजह से आम तौर पर इंसान की ताकत और दमखम कम हो जाता है। (नीति. 20:29) इसलिए बुज़ुर्ग मसीही, जवान भाइयों को यहोवा के संगठन में और भी ज़िम्मेदारी सँभालने के लिए प्रशिक्षण देते हैं। इस तरह वे उनके लिए अपना प्यार ज़ाहिर करते हैं और इससे कई फायदे भी होते हैं।—भजन 71:18 पढ़िए।

4. कुछ भाइयों के लिए दूसरों को ज़िम्मेदारी सौंपना क्यों मुश्किल हो सकता है? (“ हमें दूसरों को ज़िम्मेदारी देना क्यों मुश्किल लग सकता है?” नाम का बक्स देखिए।)

4 ज़िम्मेदारी के पद पर काम करनेवाले भाइयों के लिए यह हमेशा आसान नहीं होता कि वे किसी जवान भाई को ज़िम्मेदारी दें। कुछ भाई यह सोचकर परेशान हो सकते हैं कि उन्हें उस काम से हाथ धोना पड़ेगा जिससे उन्हें बहुत लगाव है। वे शायद यह सोचकर बहुत दुखी भी हो जाएँ। या फिर उन्हें यह चिंता हो सकती है कि अगर वे किसी काम की निगरानी खुद नहीं करेंगे, तो वह काम ठीक से नहीं होगा। यह भी हो सकता है कि उन्हें लगे कि उनके पास दूसरों को प्रशिक्षण देने का समय नहीं है। वहीं दूसरी तरफ, जब जवान भाइयों को और ज़िम्मेदारी नहीं मिलती तो उन्हें सब्र रखना चाहिए।

5. इस लेख में हम किन सवालों पर चर्चा करेंगे?

5 बुज़ुर्ग भाइयों के लिए यह क्यों ज़रूरी है कि वे जवान भाइयों को और ज़िम्मेदारी लेने के लिए तैयार करें? वे यह कैसे कर सकते हैं? (2 तीमु. 2:2) दूसरी तरफ, जवान भाई जब बुज़ुर्ग और अनुभवी भाइयों के साथ काम करते हैं तो उन्हें क्यों सही रवैया बनाए रखना चाहिए और उनसे सीखना चाहिए? आइए देखें कि राजा दाविद ने अपने बेटे को किस तरह एक ज़रूरी काम के लिए तैयार किया।

दाविद ने सुलैमान को तैयार किया

6. (क) राजा दाविद क्या करना चाहता था? (ख) मगर यहोवा ने उससे क्या कहा?

6 कई सालों तक दाविद ने एक भगोड़े की ज़िंदगी जी। फिर राजा बनने के बाद, वह एक शानदार महल में आराम से जीने लगा। एक दिन उसने भविष्यवक्ता नातान से कहा, “देख, मैं तो देवदार से बने महल में रह रहा हूँ, जबकि यहोवा के करार का संदूक कपड़े से बने तंबू में है।” दाविद की बहुत इच्छा थी कि वह यहोवा के लिए एक खूबसूरत मंदिर बनाए। नातान ने उससे कहा, “तेरे मन में जो कुछ है वह कर क्योंकि सच्चा परमेश्वर तेरे साथ है।” लेकिन यहोवा की कुछ और ही इच्छा थी। उसने नातान से कहा कि वह जाकर दाविद को यह बताए, “मेरे निवास के लिए भवन बनानेवाला तू नहीं होगा।” हालाँकि यहोवा ने दाविद से वादा किया था कि वह हमेशा उसके साथ रहेगा। लेकिन जहाँ तक मंदिर बनाने की बात है, तो दाविद को बताया गया कि वह नहीं बल्कि उसका एक बेटा मंदिर बनाएगा। इस पर दाविद ने कैसा रवैया दिखाया?—1 इति. 17:1-4, 8, 11, 12; 29:1.

7. दाविद ने यहोवा से मिली हिदायत के बारे में कैसा रवैया दिखाया?

7 दाविद दिल से यहोवा के लिए एक मंदिर बनाना चाहता था इसलिए यह सुनकर वह शायद बहुत निराश हुआ होगा कि वह मंदिर नहीं बना पाएगा। लेकिन उसने इस काम में अपने बेटे सुलैमान का पूरा साथ दिया। उसने कारीगरों का इंतज़ाम किया और लकड़ी, लोहा, ताँबा, चाँदी और सोना इकट्ठा किया। उसे यह चिंता नहीं थी कि मंदिर बनाने का श्रेय किसे मिलेगा। और देखा जाए तो आगे चलकर यह मंदिर सुलैमान का मंदिर कहलाया न कि दाविद का। दाविद ने सुलैमान की हिम्मत भी बढ़ायी। उसने कहा, “बेटे, मैं दुआ करता हूँ कि यहोवा तेरे साथ रहे और तू अपने परमेश्वर यहोवा के लिए एक भवन बनाने में कामयाब हो, ठीक जैसे उसने तेरे बारे में कहा है।”—1 इति. 22:11, 14-16.

8. (क) दाविद को यह क्यों लगा होगा कि सुलैमान मंदिर बनाने के लिए अभी तैयार नहीं है? (ख) दाविद ने क्या किया?

8 पहला इतिहास 22:5 पढ़िए। दाविद को शायद लगा हो कि सुलैमान इतने बड़े काम की देखरेख करने के लिए अभी तैयार नहीं है। मंदिर को “आलीशान और सुंदर” होना था और सुलैमान ‘अभी लड़का ही था और उसे कोई तजुरबा नहीं था।’ लेकिन दाविद जानता था कि यहोवा इस खास काम को करने में सुलैमान की मदद करेगा। इसलिए दाविद ने मंदिर के लिए ढेर सारा सामान इकट्ठा करने में सुलैमान की मदद की।

दूसरों को प्रशिक्षण देने में खुशी पाइए

यह देखकर बहुत खुशी होती है कि जवान भाई और भी ज़िम्मेदारी सँभाल रहे हैं (पैराग्राफ 9 देखिए)

9. बुज़ुर्ग भाई किस तरह अपनी ज़िम्मेदारी सौंपने में खुशी पा सकते हैं? उदाहरण देकर समझाइए।

9 जब बुज़ुर्ग भाइयों को अपनी कुछ ज़िम्मेदारियाँ जवान भाइयों को देनी पड़ती है तो उन्हें निराश नहीं होना चाहिए। हम सभी जानते हैं कि सबसे ज़रूरी बात यह है कि यहोवा का काम होता रहे। जवान भाइयों को प्रशिक्षण देने से यहोवा का काम आगे बढ़ पाएगा। इसे समझने के लिए एक मिसाल लीजिए। जब आप छोटे थे तो आपने ज़रूर अपने पापा को गाड़ी चलाते देखा होगा। जैसे-जैसे आप बड़े होते गए उन्होंने आपको समझाया कि गाड़ी कैसे चलायी जाती है। फिर आगे चलकर आपने एक लाइसेंस लिया और खुद गाड़ी चलाने लगे। इसके बाद भी आपके पापा आपको गाड़ी चलाने के बारे में सलाह देते रहे। और कभी-कभी तो आप दोनों बारी-बारी से गाड़ी चलाया करते थे। लेकिन जब आपके पापा की उम्र ढल गयी तो ज़्यादातर आप ही गाड़ी चलाने लगे। क्या इससे आपके पापा नाराज़ हो गए? नहीं, उन्हें तो यह देखकर खुशी हुई कि आपने अच्छी तरह गाड़ी चलाना सीख लिया है। उसी तरह बुज़ुर्ग भाइयों को भी यह देखकर खुशी होती है कि उन्होंने जिन जवान भाइयों को प्रशिक्षण दिया था, वे अब यहोवा के संगठन में ज़िम्मेदारी सँभालने के लिए तैयार हैं।

10. मूसा को जो आदर और अधिकार मिला, उसके बारे में वह कैसा महसूस करता था?

10 हमें सावधान रहना चाहिए कि कहीं हम दूसरों की ज़िम्मेदारियों से जलने न लगे। इस बारे में हम मूसा से एक अच्छी बात सीख सकते हैं। ध्यान दीजिए कि जब कुछ इसराएली आदमी, भविष्यवक्ताओं जैसा व्यवहार करने लगे तो मूसा ने क्या किया। (गिनती 11:24-29 पढ़िए।) यहोशू उन्हें रोकना चाहता था मगर मूसा ने उससे कहा, “क्या तुझे मेरे लिए जलन हो रही है? मैं तो यही चाहूँगा कि यहोवा के सब लोग भविष्यवक्ता बन जाएँ और यहोवा उन्हें अपनी पवित्र शक्‍ति दे।” मूसा जानता था कि यहोवा ने ही उन्हें भविष्यवाणी करने के लिए उभारा है। वह चाहता था कि यहोवा के सभी सेवकों को ज़िम्मेदारियाँ मिले और लोग उनका आदर करें ठीक जैसे वे मूसा का करते थे। हमारे बारे में क्या? जब दूसरों को यहोवा की सेवा में कोई ज़िम्मेदारी मिलती है तो क्या यह देखकर हमें खुशी होती है?

11. एक भाई ने ज़िम्मेदारी सौंपने के बारे में क्या कहा?

11 ऐसे कई भाई हैं जिन्होंने दशकों से यहोवा की सेवा में खूब मेहनत की है। उन्होंने कई जवान भाइयों को प्रशिक्षण दिया ताकि वे यहोवा की सेवा में और भी ज़िम्मेदारियाँ सँभाल सकें। पीटर नाम के एक भाई की मिसाल लीजिए। वह 74 साल से पूरे समय की सेवा कर रहा है। पिछले 35 साल उसने यूरोप के एक शाखा दफ्तर में सेवा की है। वहाँ कई सालों तक वह सेवा विभाग का निगरान था। फिर उसकी ज़िम्मेदारी पॉल नाम के एक जवान भाई को दी गयी। पीटर ने काफी समय पॉल के साथ काम किया था और उसे प्रशिक्षण दिया था। क्या इस बदलाव से पीटर नाखुश हुआ? नहीं। वह कहता है, “मैं बहुत खुश हूँ कि ऐसे भी भाई हैं जिन्हें बड़ी-बड़ी ज़िम्मेदारियाँ सँभालने के लिए प्रशिक्षण दिया गया है और वे काम को बहुत ही बढ़िया तरीके से सँभाल रहे हैं।”

बुज़ुर्ग भाइयों की कदर कीजिए

12. रहूबियाम के उदाहरण से हम क्या सीख सकते हैं?

12 जब सुलैमान का बेटा रहूबियाम राजा बना तो उसने कुछ बुज़ुर्गों से सलाह की कि उसे कैसे अपनी नयी ज़िम्मेदारी सँभालनी चाहिए। लेकिन उसने उनकी सलाह ठुकरा दी! इसके बजाय, उसने उन जवानों की सलाह मानी जो उसके साथ पले-बढ़े थे। इसका क्या नतीजा हुआ? बरबादी! (2 इति. 10:6-11, 19) इससे हम क्या सीख सकते हैं? जब हमें किसी मामले के बारे में सलाह चाहिए तो बुद्धिमानी यही होगी कि हम उन लोगों से सलाह लें जो उम्र में बड़े हैं और जिन्हें ज़्यादा तजुरबा है। जवान भाइयों को किसी भी तरह यह नहीं लगना चाहिए कि उन्हें कोई काम ठीक उसी तरीके से करना है जिस तरीके से वह होता आया है। लेकिन फिर भी उन्हें बुज़ुर्गों की सलाह का दिल से आदर करना चाहिए और तुरंत यह नहीं सोचना चाहिए कि उनका तरीका इतना असरदार नहीं और इसे बदलने की ज़रूरत है।

13. जवान भाइयों को कैसे बुज़ुर्ग भाइयों के साथ मिलकर काम करना चाहिए?

13 कभी-कभी जवान भाइयों को बुज़ुर्ग और तजुरबेकार भाइयों पर निगरान ठहराया जाता है। ऐसे में जवान भाइयों के लिए अच्छा होगा कि वे इन बुज़ुर्ग भाइयों से सीखें। पॉल ने ऐसा ही किया, जिसे पीटर की जगह बेथेल के एक विभाग का निगरान बनाया गया। वह कहता है, “मैंने कई मामलों में भाई पीटर से सलाह ली और मैंने हमारे विभाग में काम करनेवाले भाइयों को भी ऐसा करने का बढ़ावा दिया।”

14. तीमुथियुस और प्रेषित पौलुस ने जिस तरह मिलकर काम किया उससे हम क्या सीख सकते हैं?

14 तीमुथियुस उम्र में प्रेषित पौलुस से बहुत छोटा था मगर उन दोनों ने कई सालों तक साथ मिलकर काम किया। (फिलिप्पियों 2:20-22 पढ़िए।) पौलुस ने कुरिंथ के भाई-बहनों से कहा, “मैं तुम्हारे पास तीमुथियुस को भेज रहा हूँ जो प्रभु में मेरा प्यारा और विश्वासयोग्य बच्चा है। वह मसीह की सेवा से जुड़े मेरे तौर-तरीके तुम्हें याद दिलाएगा, जिन्हें आज़माकर मैं जगह-जगह हर मंडली में सिखा रहा हूँ।” (1 कुरिं. 4:17) इससे हम साफ देख सकते हैं कि पौलुस और तीमुथियुस ने साथ मिलकर कितनी अच्छी तरह काम किया और एक-दूसरे को सहयोग दिया। पौलुस ने तीमुथियुस को ‘मसीह की सेवा से जुड़े अपने तौर-तरीके’ सिखाने में काफी समय बिताया था और तीमुथियुस ने उन तरीकों को अच्छी तरह सीखा। पौलुस को तीमुथियुस से गहरा लगाव था और उसे यकीन था कि तीमुथियुस कुरिंथ के भाई-बहनों की अच्छी तरह देखभाल करेगा। पौलुस ने प्राचीनों के लिए क्या ही बढ़िया मिसाल रखी! आज प्राचीन जब दूसरे भाइयों को मंडली की अगुवाई करने के लिए प्रशिक्षण देते हैं तो वे उसकी मिसाल पर चल सकते हैं।

हम सबकी एक अहम भूमिका है

15. बदलावों का सामना करने में रोमियों 12:3-5 में लिखी बात कैसे हमारी मदद कर सकती है?

15 हम बहुत ही रोमांचक समय में जी रहे हैं। यहोवा के संगठन का जो हिस्सा धरती पर है वह बहुत तेज़ी से आगे बढ़ा रहा है। तो ज़ाहिर-सी बात है कि कई बदलाव भी होंगे। इनमें से कुछ बदलावों का हम पर असर हो सकता है और शायद इनका सामना करना हमारे लिए आसान न हो। लेकिन अगर हम नम्र बने रहें और खुद के बारे में सोचने के बजाय इस बात पर ध्यान लगाएँ कि इस बदलाव से राज के कामों में बढ़ोतरी होगी, तो हम इन हालात का सामना कर पाएँगे। ऐसा करने से हम दूसरों के साथ एकता में रह पाएँगे। पौलुस ने रोम के मसीहियों को लिखा, “मैं तुममें से हरेक से जो वहाँ है, यह कहता हूँ कि कोई भी अपने आपको जितना समझना चाहिए, उससे बढ़कर न समझे।” उसने फिर समझाया कि जिस तरह शरीर के हर अंग का अलग-अलग काम है, उसी तरह मंडली में हर सदस्य की अलग-अलग भूमिका है।—रोमि. 12:3-5.

16. यहोवा के संगठन में शांति और एकता बनाए रखने के लिए हर मसीही क्या कर सकता है?

16 यहोवा के सभी सेवक उसके राज को सहयोग देना चाहते हैं और उनसे जो भी कहा जाता है, वे करते हैं। इसलिए बुज़ुर्ग भाइयो, जवान भाइयों को प्रशिक्षण दीजिए। जवान भाइयो, आप और भी ज़िम्मेदारी लीजिए मगर हमेशा मर्यादा में रहिए और बुज़ुर्ग भाइयों का आदर कीजिए। और आप पत्नियो, अक्विला की पत्नी प्रिस्किल्ला की तरह अपने-अपने पति को सहयोग दीजिए, उस वक्‍त भी जब हालात में कुछ बदलाव होते हैं।—प्रेषि. 18:2.

17. यीशु ने अपने चेलों को किस काम के लिए प्रशिक्षण दिया?

17 यीशु ने खुशी-खुशी दूसरों को प्रशिक्षण देने में सबसे बेहतरीन मिसाल रखी। यीशु जानता था कि उसके चेलों को उसका काम जारी रखना होगा। उसे अच्छी तरह मालूम था कि उसके चेले परिपूर्ण नहीं थे। फिर भी उसे यकीन था कि वे उससे भी बड़े-बड़े काम करेंगे। (यूह. 14:12) उसने उन्हें खुशखबरी सुनाने के काम का अच्छा प्रशिक्षण दिया इसलिए वे जिस किसी देश में जा सकते थे वहाँ उन्होंने प्रचार किया।—कुलु. 1:23.

18. (क) भविष्य में क्या होगा? (ख) आज हमारे पास क्या काम है?

18 यीशु की मौत के बाद यहोवा ने उसे ज़िंदा किया और ‘उसे हर सरकार, अधिकार, ताकत और हुकूमत’ से कहीं बढ़कर अधिकार और ज़िम्मेदारी दी। (इफि. 1:19-21) अगर हम हर-मगिदोन से पहले यहोवा के वफादार रहते हुए मर भी गए, तो हमें नयी दुनिया में फिर से ज़िंदा किया जाएगा और हमें ढेर सारा काम मिलेगा। ऐसा काम जिससे हम सच्ची खुशी पाएँगे। मगर फिलहाल हम सबके पास खुशखबरी सुनाने और चेला बनाने का रोमांचक काम है। इसलिए चाहे हम जवान हों या बुज़ुर्ग हम सबके पास “प्रभु की सेवा में . . . बहुत काम” है।—1 कुरिं. 15:58.