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“वह थके हुओं में दम भर देता है”

“वह थके हुओं में दम भर देता है”

सन्‌ 2018 का हमारा सालाना वचन है: “यहोवा पर भरोसा रखनेवालों को नयी ताकत मिलती रहेगी।”​—यशा. 40:31.

गीत: 152, 51

1. हम मसीहियों को किन समस्याओं का सामना करना पड़ता है? यहोवा अपने वफादार सेवकों से क्यों खुश है? (लेख की शुरूआत में दी तसवीरें देखिए।)

शैतान की इस दुनिया में जीना आसान नहीं। आपमें से कई भाई-बहन गंभीर बीमारी से जूझ रहे हैं। कुछ ऐसे हैं जिनकी उम्र ढल चुकी है लेकिन उन्हें खुद परिवार के किसी बुज़ुर्ग सदस्य की देखभाल करनी होती है। वहीं दूसरी तरफ, कुछ भाई-बहनों को अपने परिवार का पेट पालने के लिए कड़ा संघर्ष करना पड़ता है। हम जानते हैं कि आपमें से कई लोग एक समस्या का नहीं बल्कि कई समस्याओं का सामना कर रहे हैं। इसमें आपका काफी समय, ताकत और पैसा खर्च होता है। लेकिन आपको पूरा यकीन है कि यहोवा आपकी मदद करेगा। आपको भरोसा है कि हालात सुधरेंगे क्योंकि परमेश्‍वर ने एक अच्छे समय का वादा किया है। इसमें कोई शक नहीं कि आपका मज़बूत विश्‍वास देखकर यहोवा ज़रूर खुश होता होगा!

2. यशायाह 40:29 से हमें क्या हिम्मत मिलती है? हम क्या बड़ी भूल कर सकते हैं?

2 लेकिन क्या कभी-कभी आपको लगता है कि आप जिस परेशानी से गुज़र रहे हैं उसे सहना आपके बस के बाहर है? अगर हाँ, तो यकीन रखिए कि आप अकेले नहीं हैं। बीते ज़माने में परमेश्‍वर के कुछ वफादार सेवकों को भी ऐसा ही लगा था। (1 राजा 19:4; अय्यू. 7:7) लेकिन धीरज धरने में किस बात ने उनकी मदद की? उन्होंने यहोवा पर भरोसा रखा कि वह उन्हें सहने की ताकत देगा। बाइबल यहोवा के बारे में बताती है, “वह थके हुओं में दम भर देता है।” (यशा. 40:29) पर अफसोस, आज परमेश्‍वर के कुछ सेवकों को लगता है कि अगर वे कुछ समय के लिए यहोवा की सेवा करना छोड़ दें, तो वे अपनी परेशानियों से जूझ पाएँगे। इस तरह वे यहोवा की सेवा को सम्मान नहीं बल्कि बोझ समझते हैं, इसलिए वे बाइबल पढ़ना, सभाओं में जाना और प्रचार करना बंद कर देते हैं। शैतान यही तो चाहता है कि वे यहोवा की सेवा करना बंद कर दें।

3. (क) हम ऐसा क्या कर सकते हैं ताकि शैतान हमें कमज़ोर न कर दे? (ख) इस लेख में हम क्या चर्चा करेंगे?

3 शैतान जानता है कि जब हम परमेश्‍वर की सेवा में लगे रहते हैं, तो हम मज़बूत बने रहते हैं और वह हरगिज़ नहीं चाहता कि हम मज़बूत रहें। इसलिए जब आप ज़िंदगी की मुश्‍किलों से थककर पस्त हो जाते हैं, तो यहोवा से दूर मत जाइए बल्कि उसके और करीब आइए। वह आपको “मज़बूत करेगा, शक्‍तिशाली बनाएगा।” (1 पत. 5:10; याकू. 4:8) इस लेख में हम यशायाह 40:26-31 पर ध्यान देंगे जिससे हमारा भरोसा बढ़ेगा कि यहोवा हमें मज़बूत कर सकता है। फिर हम ऐसे दो हालात पर गौर करेंगे जिनमें हम यहोवा की सेवा में धीमे पड़ सकते हैं। हम यह भी देखेंगे कि बाइबल सिद्धांतों को लागू करने से कैसे हम धीरज धर सकते हैं।

यहोवा पर भरोसा रखनेवालों को नयी ताकत मिलती रहेगी

4. यशायाह 40:26 से हम क्या सीखते हैं?

4 यशायाह 40:26 पढ़िए। पूरे विश्‍व में इतने तारे हैं कि आज तक कोई भी इंसान इनकी गिनती नहीं कर सका है। वैज्ञानिकों का मानना है कि हमारी ही मंदाकिनी में करीब 400 अरब तारे हैं। फिर भी यहोवा उनमें से एक-एक का नाम लेकर उन्हें पुकारता है। इससे हम यहोवा के बारे में क्या सीखते हैं? अगर यहोवा को निर्जीव तारों में इतनी दिलचस्पी है कि वह उनके नाम रखता है, तो सोचिए वह आपमें कितनी दिलचस्पी रखता है जो उसकी उपासना ज़ोर-ज़बरदस्ती से नहीं बल्कि प्यार की वजह से करते हैं। (भज. 19:1, 3, 14) आपका प्यारा पिता आपके बारे में सबकुछ जानता है। बाइबल बताती है कि आपके “सिर का एक-एक बाल तक गिना हुआ है।” (मत्ती 10:30) भजन का लेखक हमें भरोसा दिलाता है, “यहोवा जानता है कि निर्दोष लोग किन हालात से गुज़रते हैं।” (भज. 37:18) तो ज़ाहिर है कि यहोवा आपकी हर मुश्‍किल जानता है और उसका सामना करने की ताकत दे सकता है।

5. हम क्यों यकीन रख सकते हैं कि यहोवा हमें ताकत दे सकता है?

5 यशायाह 40:28 पढ़िए। यहोवा के पास ज़बरदस्त ताकत है। ज़रा सोचिए, उसने जो सूरज बनाया है उसमें कितनी ऊर्जा है। विज्ञान के एक लेखक डेविड बोडानिस ने बताया कि हर सेकंड सूरज इतनी ऊर्जा पैदा करता है जितनी अरबों परमाणु बमों के फटने से निकलती है। एक और खोजकर्ता का अनुमान है कि सूरज एक सेकंड में जितनी ऊर्जा पैदा करता है, उससे धरती के सब इंसानों का जीवन दो लाख साल तक आसानी से चल सकता है! तो फिर, यहोवा जिसने सूरज को इतनी ऊर्जा दी है, क्या हम इंसानों को अपनी समस्याओं का सामना करने की ताकत नहीं देगा?

6. यीशु का जुआ उठाना आसान क्यों है और इससे हम पर क्या असर होता है?

6 यशायाह 40:29 पढ़िए। यहोवा की सेवा करने से हमें बहुत खुशी मिलती है। यीशु ने अपने चेलों से कहा था, “मेरा जुआ उठाओ।” फिर उसने कहा, “तुम ताज़गी पाओगे। इसलिए कि मेरा जुआ उठाना आसान है और मेरा बोझ हलका है।” (मत्ती 11:28-30) यह बात बिलकुल सच है! कभी-कभी हम इतने थक जाते हैं कि सभा या प्रचार में जाने की हमारे पास ताकत ही नहीं होती। फिर भी जब हम जाते हैं तो उसके बाद हमें कैसा लगता है? हम तरो-ताज़ा महसूस करते हैं और अपनी समस्याओं का और भी अच्छी तरह सामना कर पाते हैं। वाकई यीशु का जुआ उठाना आसान है!

7. एक अनुभव बताइए जो दिखाता है कि मत्ती 11:28-30 में कही बात एकदम सच है।

7 एक बहन के अनुभव पर गौर कीजिए। उसे लंबे समय से ऐसी बीमारी है जिसमें बहुत थकावट होती है। इतना ही नहीं, वह गहरी निराशा और सिर दर्द से भी परेशान रहती है। इसलिए कभी-कभी सभाओं में आना उसके लिए बहुत मुश्‍किल होता है। लेकिन एक दिन जब वह अपनी तकलीफ के बावजूद सभा में आयी, तो उसने लिखा, “सभा में निराशा के बारे में भाषण दिया गया था। भाई के भाषण में प्यार और हमदर्दी साफ झलक रही थी। इससे मेरी आँखें भर आयीं! मुझे एहसास हुआ कि सभाओं में जाना कितना ज़रूरी है!” यह बहन बहुत खुश थी कि वह सभा में गयी।

8, 9. पौलुस के इन शब्दों का क्या मतलब था, “जब मैं कमज़ोर होता हूँ, तभी ताकतवर होता हूँ”?

8 यशायाह 40:30 पढ़िए। हम चाहे कितने ही हुनरमंद क्यों न हों, हमारी कुछ सीमाएँ होती हैं। हम सारे काम अपने दम पर नहीं कर सकते और यह बात हमें हमेशा याद रखनी चाहिए। प्रेषित पौलुस बहुत काबिल इंसान था लेकिन वह सारे काम अपनी ताकत से नहीं कर सका। जब उसने इस बारे में यहोवा को बताया तो यहोवा ने कहा, “जब तू कमज़ोर होता है तब मेरी ताकत पूरी तरह दिखायी देती है।” पौलुस यहोवा की बात समझ गया, इसलिए उसने कहा, “जब मैं कमज़ोर होता हूँ, तभी ताकतवर होता हूँ।” (2 कुरिं. 12:7-10) पौलुस के कहने का क्या मतलब था?

9 पौलुस को एहसास हुआ कि उसे यहोवा की मदद की ज़रूरत है जो उससे कहीं ज़्यादा शक्‍तिशाली है। उसने देखा कि जब वह कमज़ोर था तो कैसे यहोवा की पवित्र शक्‍ति ने उसमें ताकत भरी। यही नहीं, पवित्र शक्‍ति ने उसे वह काम करने के काबिल बनाया जो वह अपनी ताकत से कभी नहीं कर सकता था। इस तरह पौलुस कमज़ोर होने पर भी ताकतवर बना। आज भी जब यहोवा हमें अपनी पवित्र शक्‍ति देता है, तो हम ताकतवर बन सकते हैं।

10. यहोवा ने मुश्‍किल घड़ी में दाविद की मदद कैसे की?

10 भजन के एक लेखक दाविद ने कई बार अनुभव किया कि कैसे यहोवा की पवित्र शक्‍ति ने उसे ताकत दी। उसने एक गीत में कहा, “तेरी मदद से मैं लुटेरे-दल का मुकाबला कर सकता हूँ, परमेश्‍वर की ताकत से मैं दीवार लाँघ सकता हूँ।” (भज. 18:29) कभी-कभी हमारी समस्याएँ ऊँची दीवारों जैसी हो सकती हैं, जिन्हें हम अपनी ताकत से सुलझा नहीं सकते। ऐसे में सिर्फ यहोवा ही हमारी मदद कर सकता है!

11. समस्याओं का सामना करने में पवित्र शक्‍ति कैसे हमारी मदद करती है?

11 यशायाह 40:31 पढ़िए। उकाब सिर्फ अपनी ताकत से नहीं उड़ता। वह धरती से उठनेवाली गरम हवाओं का सहारा लेता है जिस वजह से वह घंटों आकाश में उड़ पाता है और अपनी ताकत को बचाए रख पाता है। जब आपके सामने कोई बड़ी समस्या आती है, तो उकाब के बारे में सोचिए। यहोवा से प्रार्थना कीजिए कि वह आपको “मददगार यानी पवित्र शक्‍ति” दे ताकि आप अपनी समस्या का सामना कर सकें। (यूह. 14:26) हम कभी-भी यहोवा से उसकी पवित्र शक्‍ति माँग सकते हैं। हमें खासकर तब यहोवा से मदद माँगनी पड़ सकती है जब मंडली में किसी भाई या बहन के साथ हमारी कुछ अनबन हो जाती है। लेकिन ऐसी समस्याएँ क्यों उठती हैं?

12, 13. (क) कभी-कभी मसीही भाई-बहनों के बीच क्यों अनबन हो सकती है? (ख) यूसुफ के ब्यौरे से हम यहोवा के बारे में क्या सीखते हैं?

12 हम सभी अपरिपूर्ण हैं, इस वजह से हमारे बीच अनबन हो सकती है। कभी-कभी दूसरों की बातों या कामों से हम चिढ़ सकते हैं या हम दूसरों को चिढ़ दिला सकते हैं। यह हमारे लिए एक मुश्‍किल परीक्षा हो सकती है। लेकिन जब हम इन हालात में भी भाई-बहनों के साथ मिलकर काम करते हैं, तो हम यहोवा के लिए अपनी वफादारी का सबूत देते हैं। यहोवा भाई-बहनों की कमज़ोरियों के बावजूद उनसे प्यार करता है और हमें भी ऐसा करना चाहिए।

यहोवा ने यूसुफ का साथ नहीं छोड़ा; वह आपका साथ भी नहीं छोड़ेगा (पैराग्राफ 13 देखिए)

13 जब यहोवा के सेवकों पर परीक्षाएँ आती हैं, तो वह उन परीक्षाओं को नहीं रोकता। यूसुफ की ज़िंदगी से हमें यह बात साफ समझ आती है। जब वह लड़का ही था तब उसके भाई उससे जलने लगे। उन्होंने उसे गुलाम होने के लिए बेच दिया और उसे मिस्र ले जाया गया। (उत्प. 37:28) यहोवा ठीक-ठीक जानता था कि उसके दोस्त और वफादार सेवक यूसुफ के साथ क्या ज़्यादती हो रही थी और यह देखकर उसे बहुत दुख भी हुआ। फिर भी उसने यह सब होने दिया। बाद में जब यूसुफ पर पोतीफर की पत्नी का बलात्कार करने का इलज़ाम लगाया गया और उसे जेल में डाल दिया गया, तब भी यहोवा ने यूसुफ को नहीं बचाया। लेकिन क्या यहोवा ने कभी उसका साथ छोड़ा? नहीं! बाइबल बताती है, “यहोवा यूसुफ के साथ था और यहोवा हर काम में उसे कामयाबी दे रहा था।”​—उत्प. 39:21-23.

14. गुस्सा छोड़ देने से क्या फायदे होते हैं?

14 एक और मिसाल है दाविद की। दाविद के साथ जो अन्याय हुए, वे शायद ही हममें से किसी के साथ हुए हों। फिर भी परमेश्‍वर के इस दोस्त ने नाराज़गी नहीं पाली। उसने लिखा, “गुस्सा करना छोड़ दे, क्रोध त्याग दे, झुँझलाना मत और बुराई में मत लग जाना।” (भज. 37:8) गुस्सा ‘छोड़ देने’ की सबसे बड़ी वजह है कि हम यहोवा की मिसाल पर चलना चाहते हैं। यहोवा ने “हमारे पापों के मुताबिक हमारे साथ सलूक नहीं किया” बल्कि हमें माफ किया है। (भज. 103:10) क्या गुस्सा छोड़ देने के कुछ और फायदे हैं? बिलकुल हैं! हम उन तकलीफों से बचे रहते हैं जो गुस्सा करने से आती हैं, जैसे हाई ब्लड प्रेशर, साँस की तकलीफ, लिवर और पैंक्रियाज़ को नुकसान और पाचन से जुड़ी समस्याएँ। इसके अलावा, जब हमें गुस्सा आता है तो हम ठीक से सोच नहीं पाते। हम कुछ ऐसा कह देते या कर देते हैं जिससे दूसरों को ठेस पहुँचती है और हम निराशा में डूब सकते हैं। इसलिए गुस्सा करने के बजाय शांत रहने में हमारी भलाई है। बाइबल ठीक कहती है, “शांत मन से शरीर भला-चंगा रहता है।” (नीति. 14:30) लेकिन तब क्या, जब दूसरे हमें ठेस पहुँचाते हैं? हम उनके साथ सुलह कैसे कर सकते हैं? बाइबल की बुद्धि-भरी सलाह मानने से हमें फायदा हो सकता है।

जब मसीही भाई हमें ठेस पहुँचाते हैं

15, 16. जब कोई हमें ठेस पहुँचाता है, तो हमें क्या करना चाहिए?

15 इफिसियों 4:26 पढ़िए। जब दुनिया के लोग हमारे साथ बुरा व्यवहार करते हैं, तो हमें हैरानी नहीं होती। लेकिन जब कोई मसीही भाई या बहन या फिर परिवार का कोई सदस्य अपनी बातों या कामों से हमें ठेस पहुँचाता है, तो हमें बहुत धक्का लगता है। अगर हम इसे भुला नहीं सकते, तब क्या? क्या हम इसी बात को लेकर सालों तक नाराज़ रहेंगे? या फिर हम बाइबल की इस बुद्धि-भरी सलाह को मानेंगे कि झगड़े को तुरंत निपटाएँ? झगड़ा निपटाने में हम जितनी देर करेंगे, हमारे लिए सुलह करना उतना ही मुश्‍किल होगा।

16 मान लीजिए कोई भाई आपको ठेस पहुँचाता है और आप इसे भुला नहीं पाते। आप उस भाई से सुलह करने के लिए क्या कर सकते हैं? एक, यहोवा से प्रार्थना कीजिए। उससे बिनती कीजिए कि आप अपने भाई से अच्छी तरह बात कर पाएँ। याद रखिए, आपका भाई भी आपकी तरह यहोवा का दोस्त है। (भज. 25:14) यहोवा उससे प्यार करता है। वह अपने दोस्तों के साथ प्यार और कृपा से पेश आता है और हमसे भी यही उम्मीद करता है। (नीति. 15:23; मत्ती 7:12; कुलु. 4:6) दो, ध्यान से सोचिए कि आप अपने भाई से क्या कहेंगे। पहले से राय कायम मत कीजिए कि उसने जानबूझकर आपको ठेस पहुँचायी थी। हो सकता है, आपको कोई गलतफहमी हुई हो। यह कबूल करने के लिए तैयार रहिए कि जो हुआ उसमें थोड़ी-बहुत गलती आपकी भी है। आप अपनी बातचीत कुछ इस तरह शुरू कर सकते हैं, “मैं शायद गलत भी हो सकता हूँ लेकिन कल जब आपने मुझसे बात की, तो मुझे ऐसा लगा कि . . .।” अगर बात करने के बाद भी आप दोनों में सुलह नहीं होती, तब भी कोशिश जारी रखिए। अपने भाई के लिए प्रार्थना कीजिए। उसके लिए यहोवा से आशीष माँगिए और उसके अच्छे गुणों पर ध्यान देने के लिए यहोवा से मदद माँगिए। जब आप अपने भाई के साथ जो यहोवा का एक दोस्त है, सुलह करने की पूरी कोशिश करते हैं, तो आप यकीन रख सकते हैं कि इससे यहोवा को बहुत खुशी होगी।

जब बीती गलतियों को लेकर हम दोषी महसूस करते हैं

17. यहोवा अपने साथ दोबारा रिश्‍ता जोड़ने में कैसे हमारी मदद करता है? हमें वह मदद क्यों कबूल करनी चाहिए?

17 कुछ मसीहियों ने गंभीर पाप किए हैं और उन्हें लगता है कि वे यहोवा की सेवा करने के योग्य नहीं हैं। दोष की भावना एक मसीही का चैन, उसकी खुशी और ताकत छीन सकती है। राजा दाविद को भी दोष की भावना से जूझना पड़ा था। उसने कहा, “जब मैं चुप रहा तो मैं दिन-भर कराहता रहा जिससे मेरी हड्डियाँ गलने लगीं। क्योंकि दिन-रात तेरा हाथ मुझ पर भारी था।” लेकिन खुशी की बात है कि दाविद ने हिम्मत नहीं हारी। उसने वह काम किया जो यहोवा चाहता था। दाविद ने लिखा, “आखिरकार, मैंने तेरे सामने अपना पाप मान लिया . . . तब तूने मेरे पाप, मेरे गुनाह माफ कर दिए।” (भज. 32:3-5) अगर आपने कोई गंभीर पाप किया है, तो यहोवा आपको भी माफ करने के लिए तैयार है। वह आपकी मदद करना चाहता है ताकि आपका रिश्‍ता दोबारा उसके साथ जुड़ सके। लेकिन इसके लिए आपको प्राचीनों की मदद कबूल करनी होगी जिन्हें यहोवा ने ठहराया है। (नीति. 24:16; याकू. 5:13-15) इसलिए देर मत कीजिए! आपकी हमेशा की ज़िंदगी दाँव पर लगी है! लेकिन तब क्या जब आपके पापों को माफ कर दिया गया है मगर अब भी आप दोष की भावना से लड़ रहे हैं?

18. जो खुद को यहोवा की सेवा के लायक नहीं समझते, उन्हें पौलुस की मिसाल से किस तरह हिम्मत मिल सकती है?

18 प्रेषित पौलुस बीते समय के अपने पापों के बारे में सोचकर कभी-कभी बहुत निराश हो जाता था। उसने कहा, “मैं प्रेषितों में सबसे छोटा हूँ, यहाँ तक कि प्रेषित कहलाने के भी लायक नहीं हूँ क्योंकि मैंने परमेश्‍वर की मंडली पर ज़ुल्म किया।” फिर उसने कहा, “मगर आज मैं जो हूँ वह परमेश्‍वर की महा-कृपा से हूँ।” (1 कुरिं. 15:9, 10) यहोवा ने पौलुस की कमज़ोरियों के बावजूद उसे अपना सेवक कबूल किया और वह चाहता था कि पौलुस इस बात को समझे। अगर आपको अपने किए पर सच्चा पछतावा है और आपने यहोवा से माफी माँगी है, साथ ही अगर आपने प्राचीनों से मदद ली है, तो आप यकीन रख सकते हैं कि यहोवा ने आपको माफ कर दिया है। इसलिए खुद को दोष मत देते रहिए बल्कि उसकी माफी कबूल कीजिए!​—यशा. 55:6, 7.

19. सन्‌ 2018 का सालाना वचन क्या है और यह क्यों एकदम सही है?

19 जैसे-जैसे इस व्यवस्था का अंत करीब आ रहा है, हमें और भी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। मगर याद रखिए, यहोवा जो “थके हुओं में दम भर देता है, कमज़ोरों को गज़ब की ताकत देता है,” वह आपकी भी मदद कर सकता है ताकि आप वफादारी से उसकी सेवा करते रहें। (यशा. 40:29; भज. 55:22; 68:19) यह एक अहम सच्चाई है और इस साल के दौरान जब भी हम राज-घर में आएँगे, तो हमें यह सच्चाई याद दिलायी जाएगी। कैसे? हमारे सालाना वचन के ज़रिए जो कहता है, “यहोवा पर भरोसा रखनेवालों को नयी ताकत मिलती रहेगी।”​यशा. 40:31.