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अध्ययन लेख 4

साधारण मगर खास सभा हमारे राजा के बारे में क्या सिखाती है?

साधारण मगर खास सभा हमारे राजा के बारे में क्या सिखाती है?

“यह मेरे शरीर की निशानी है। . . . यह मेरे खून की निशानी है, जो करार को पक्का करता है।”​—मत्ती 26:26-28.

गीत 16 अभिषिक्‍त बेटे के लिए याह की तारीफ करें!

लेख की एक झलक *

1-2. (क) हमें यह जानकर हैरानी क्यों नहीं होती कि यीशु ने अपनी मौत की यादगार मनाने का एक साधारण तरीका बताया? (ख) हम यीशु के किन गुणों के बारे में चर्चा करेंगे?

हर साल मसीह की मौत की यादगार मनायी जाती है। क्या आप बता सकते हैं कि इस समारोह में क्या होता है? हममें से ज़्यादातर लोग जानते हैं कि प्रभु के संध्या-भोज में आम तौर पर क्या होता है। वह इसलिए कि यह समारोह एकदम साधारण तरीके से मनाया जाता है। फिर भी इसका बहुत खास मतलब है। शायद हम सोचें, ‘तो फिर इसे इतने साधारण तरीके से क्यों मनाया जाता है?’

2 धरती पर अपनी सेवा के दौरान यीशु अकसर अहम सच्चाइयाँ साफ और सरल शब्दों में सिखाता था और लोग इन्हें आसानी से समझ जाते थे। (मत्ती 7:28, 29) उसी तरह उसने अपनी मौत की यादगार मनाने * के बारे में एक साधारण-सा, मगर अहम तरीका बताया। आइए इस समारोह की और इस दौरान यीशु ने जो कहा और किया, उसकी करीब से जाँच करें। इससे हम और अच्छी तरह समझ पाएँगे कि यीशु कितना नम्र, हिम्मतवाला और प्यार करनेवाला शख्स है। हम यह भी सीख पाएँगे कि हम उसके नक्शे-कदम पर और नज़दीकी से कैसे चल सकते हैं।

यीशु की नम्रता

स्मारक में इस्तेमाल होनेवाली रोटी और दाख-मदिरा याद दिलाती हैं कि यीशु ने हमारे लिए अपनी जान दी और अब वह स्वर्ग में राज कर रहा है (पैराग्राफ 3-5 देखें)

3. (क) मत्ती 26:26-28 के मुताबिक यीशु ने जिस समारोह की शुरूआत की, वह कितना साधारण था? (ख) इसमें इस्तेमाल की गयी दो चीज़ें किन बातों की निशानी थीं?

3 यीशु ने 11 वफादार प्रेषितों की मौजूदगी में अपनी मौत के स्मारक की शुरूआत की। उसने फसह के खाने में से बची हुई चीज़ें लेकर यह समारोह एकदम साधारण तरीके से मनाया। (मत्ती 26:26-28 पढ़िए।) उसने सिर्फ बिन-खमीर की रोटी और दाख-मदिरा इस्तेमाल की थी। यीशु ने प्रेषितों से कहा कि ये दो चीज़ें उसके परिपूर्ण शरीर और खून की निशानी हैं, जिन्हें वह जल्द ही उनकी खातिर अर्पित करनेवाला है। प्रेषित इस नए भोज में इतनी कम चीज़ें देखकर हैरान नहीं हुए होंगे। ऐसा क्यों?

4. (क) यीशु ने मारथा को क्या समझाया? (ख) बाद में वही बात उसने खुद पर कैसे लागू की?

4 गौर कीजिए कि कुछ महीनों पहले यानी यीशु की सेवा के तीसरे साल में एक बार क्या हुआ। यीशु अपने करीबी दोस्तों लाज़र, मारथा और मरियम के घर आया हुआ था। फुरसत के इन पलों में यीशु उन्हें कुछ बातें सिखाने लगा। मारथा भी घर में थी, मगर उसका ध्यान अपने खास मेहमान के लिए ढेर सारे पकवान बनाने में लगा हुआ था। यह देखकर यीशु ने प्यार से मारथा को समझाया कि हमेशा बड़ी दावत रखना ज़रूरी नहीं है। (लूका 10:40-42) आगे चलकर जब यीशु की मौत करीब थी, तब उसने वही किया जो उसने मारथा को समझाया था। उसने स्मारक का भोज एकदम सादा रखा। इससे यीशु के बारे में हम क्या सीखते हैं?

5. (क) यीशु की मौत की याद में रखे जानेवाले साधारण भोज से उसके बारे में क्या पता चलता है? (ख) यह बात फिलिप्पियों 2:5-8 में दर्ज़ बातों से कैसे मेल खाती है?

5 यीशु की हर बात और काम से झलकता था कि वह नम्र है। इसलिए यह कोई हैरानी की बात नहीं कि उसने अपनी ज़िंदगी की आखिरी रात भी जो किया, उससे उसकी नम्रता ज़ाहिर हुई। (मत्ती 11:29) यीशु जानता था कि वह इतिहास का सबसे बड़ा बलिदान करनेवाला है और इसके बाद यहोवा उसे ज़िंदा करके स्वर्ग में बहुत ऊँचा ओहदा देगा। इसके बावजूद उसने यह नहीं कहा कि उसकी मौत की यादगार धूम-धाम से मनायी जाए। उसने लोगों का ध्यान हद-से-ज़्यादा अपनी तरफ खींचने की कोशिश नहीं की। उसने अपने चेलों से सिर्फ इतना कहा कि वे हर साल एक साधारण भोज रखकर उसे याद करें। (यूह. 13:15; 1 कुरिं. 11:23-25) इस साधारण भोज से साफ ज़ाहिर होता है कि यीशु कितना नम्र है। यह कितनी खुशी की बात है कि नम्रता हमारे राजा का एक खास गुण है।​—फिलिप्पियों 2:5-8 पढ़िए।

6. परीक्षाओं के दौरान हम कैसे दिखा सकते हैं कि हम यीशु की तरह नम्र हैं?

6 यीशु की तरह हम नम्र कैसे रह सकते हैं? हमें खुद से ज़्यादा दूसरों की फिक्र करनी चाहिए। (फिलि. 2:3, 4) ज़रा धरती पर यीशु की आखिरी रात के बारे में एक बार फिर सोचिए। यीशु को पता था कि बहुत जल्द उसकी दर्दनाक मौत होगी। इसके बावजूद उसे अपनी नहीं, बल्कि अपने वफादार प्रेषितों की चिंता थी, जो उसकी मौत से बहुत दुखी और निराश होते। इसीलिए उसने अपनी आखिरी रात प्रेषितों को हिदायतें देने, दिलासा देने और उनका हौसला बढ़ाने में बितायी। (यूह. 14:25-31) यीशु ने खुद से ज़्यादा दूसरों के भले की फिक्र की। नम्रता की क्या ही बढ़िया मिसाल!

यीशु की हिम्मत

7. संध्या-भोज की शुरूआत करने के बाद यीशु ने किस तरह हिम्मत से काम लिया?

7 यीशु ने संध्या-भोज की शुरूआत करने के कुछ ही समय बाद अपनी हिम्मत का ज़बरदस्त सबूत दिया। वह कैसे? उसने खुशी-खुशी अपने पिता की मरज़ी पूरी की, जबकि उसे पता था कि ऐसा करने के लिए उसे भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। उस पर परमेश्‍वर की निंदा करने का दोष लगाया जाएगा और फिर उसे मार डाला जाएगा। (मत्ती 26:65, 66; लूका 22:41, 42) यीशु पूरी तरह यहोवा का वफादार रहा। इस तरह उसने यहोवा के नाम का आदर किया, उसकी हुकूमत बुलंद की और पश्‍चाताप करनेवाले इंसानों के लिए हमेशा की ज़िंदगी का रास्ता खोल दिया। यही नहीं, यीशु ने अपने चेलों को आनेवाली परीक्षाओं का सामना करने के लिए तैयार किया।

8. (क) यीशु ने अपने वफादार प्रेषितों को क्या बताया? (ख) यीशु की मौत के बाद उसके चेलों ने कैसे उसकी तरह हिम्मत से काम लिया?

8 यीशु ने एक और तरीके से हिम्मत का सबूत दिया। उसने अपने बारे में चिंता करने के बजाय अपने वफादार प्रेषितों की ज़रूरतों पर ध्यान दिया। यहूदा को बाहर भेजने के बाद उसने जिस साधारण भोज की शुरूआत की, वह हर बार अभिषिक्‍त चेलों को याद दिलाता कि यीशु के बहाए गए खून से और नए करार में भागीदार होने से उन्हें क्या-क्या फायदे होंगे। (1 कुरिं. 10:16, 17) यीशु ने अपने वफादार प्रेषितों को बताया कि वह और उसका पिता उनसे क्या उम्मीद करते हैं, ताकि वे अंत तक वफादार रह सकें और स्वर्ग में अपना इनाम पा सकें। (यूह. 15:12-15) उसने प्रेषितों को यह भी बताया कि उन पर कैसी-कैसी परीक्षाएँ आएँगी। फिर यीशु ने उन्हें अपनी मिसाल पर चलने का बढ़ावा दिया और कहा, “हिम्मत रखो!” (यूह. 16:1-4क, 33) यीशु के चेले कई सालों बाद भी उसकी तरह त्याग की भावना दिखाते रहे और हिम्मत से काम लेते रहे। उन्होंने बहुत दुख उठाकर अलग-अलग परीक्षाओं के दौरान एक-दूसरे का साथ दिया।​—इब्रा. 10:33, 34.

9. हम किन तरीकों से दिखा सकते हैं कि हममें यीशु जैसी हिम्मत है?

9 आज हम भी यीशु की मिसाल पर चलकर हिम्मत से काम लेते हैं। जैसे, हमें उन भाइयों की मदद करने के लिए हिम्मत से काम लेना होता है, जिन्हें अपने विश्‍वास की वजह से सताया जाता है। हो सकता है कि कभी-कभी हमारे भाइयों को किसी झूठे इलज़ाम में जेल हो जाए। ऐसे में हमसे जो बन पड़ता है, हमें करना चाहिए और उनकी पैरवी करने से पीछे नहीं हटना चाहिए। (फिलि. 1:14; इब्रा. 13:19) हमें “निडर होकर” प्रचार करते रहने के लिए भी हिम्मत से काम लेना होता है। (प्रेषि. 14:3) यीशु की तरह हम हर हाल में राज का संदेश सुनाते हैं, फिर चाहे लोग हमारा विरोध करें या हम पर ज़ुल्म ढाएँ। लेकिन शायद कभी-कभी हमें लगे कि हममें हिम्मत नहीं है। ऐसे में हम क्या कर सकते हैं?

10. स्मारक से पहले के कुछ हफ्तों में हमें क्या करना चाहिए और क्यों?

10 मसीह के फिरौती बलिदान पर मनन करने से हमारी हिम्मत बढ़ सकती है। हम इस बात पर गहराई से सोच सकते हैं कि मसीह के बलिदान से हमारे लिए क्या मुमकिन हुआ है। (यूह. 3:16; इफि. 1:7) स्मारक से कुछ हफ्तों पहले हमारे पास खास मौका होता है कि हम फिरौती बलिदान के लिए अपनी कदरदानी बढ़ाएँ। कैसे? उस दौरान हमें स्मारक के बारे में दी गयी आयतें पढ़नी चाहिए और यीशु की मौत से जुड़ी घटनाओं पर गहराई से सोचना चाहिए। फिर जब हम स्मारक में हाज़िर होंगे, तो हम रोटी और दाख-मदिरा के मायने और ये जिस बेमिसाल बलिदान को दर्शाती हैं, उसकी अहमियत और अच्छी तरह समझ पाएँगे। वाकई, जब हम यह समझते हैं कि यहोवा और यीशु ने हमारे लिए कितना कुछ किया है और इससे हमें और हमारे अपनों को कितना फायदा हुआ है, तो हमारी आशा मज़बूत होती है और हमें अंत तक धीरज रखने की हिम्मत मिलती है।​—इब्रा. 12:3.

11-12. अब तक हमने क्या सीखा?

11 अब तक हमने सीखा कि प्रभु का संध्या-भोज न सिर्फ हमें फिरौती बलिदान की, बल्कि यीशु के बढ़िया गुण नम्रता और हिम्मत की भी याद दिलाता है। हम इस बात के कितने एहसानमंद हैं कि यीशु स्वर्ग में महायाजक के नाते अब भी ये गुण ज़ाहिर कर रहा है और हमारी खातिर बिनती कर रहा है! (इब्रा. 7:24, 25) अपना यह एहसान ज़ाहिर करने के लिए हमें वफादारी से यीशु की मौत की यादगार मनानी चाहिए, ठीक जैसे उसने आज्ञा दी थी। (लूका 22:19, 20) यह हम उस दिन मनाते हैं, जिस दिन नीसान 14 पड़ता है। यह दिन साल का सबसे खास दिन होता है।

12 यीशु ने यह समारोह जिस साधारण तरीके से मनाया, उससे हम यीशु के एक और गुण के बारे में सीख सकते हैं। यह वही गुण है, जिसकी वजह से यीशु ने हमारी खातिर अपनी जान दी। धरती पर रहते वक्‍त वह यह गुण ज़ाहिर करने के लिए जाना जाता था। आखिर वह कौन-सा गुण है?

यीशु का प्यार

13. (क) यूहन्‍ना 15:9 और 1 यूहन्‍ना 4:8-10 में यहोवा और यीशु के प्यार के बारे में क्या बताया गया है? (ख) उनके प्यार से किन्हें फायदा होता है?

13 यीशु ने अपने हर काम से ज़ाहिर किया कि जैसे यहोवा को हमसे गहरा प्यार है, वैसे उसे भी हमसे प्यार है। (यूहन्‍ना 15:9; 1 यूहन्‍ना 4:8-10 पढ़िए।) अपने प्यार का सबसे बड़ा सबूत उसने इस बात से दिया कि उसने हमारी खातिर अपनी जान दे दी। फिरौती बलिदान के ज़रिए यहोवा और उसके बेटे ने जो प्यार ज़ाहिर किया, उससे हम सबको फायदा होता है, फिर चाहे हम अभिषिक्‍त मसीही हों या ‘दूसरी भेड़’ के लोग। (यूह. 10:16; 1 यूह. 2:2) ज़रा स्मारक में इस्तेमाल होनेवाली रोटी और दाख-मदिरा के बारे में भी सोचिए। ये चीज़ें ज़ाहिर करती हैं कि यीशु अपने चेलों से बहुत प्यार करता है और उसे उनकी परवाह है। वह कैसे?

यीशु ने स्मारक इतने साधारण तरीके से मनाया कि उसके चेले अलग-अलग दौर में और अलग-अलग हालात में भी इसे मना पाए। यह उसके प्यार का सबूत था (पैराग्राफ 14-16 देखें) *

14. यीशु ने अपने चेलों के लिए प्यार कैसे ज़ाहिर किया?

14 जब यीशु ने संध्या-भोज की शुरूआत की, तो उसने कोई लंबी-चौड़ी रस्म नहीं की बल्कि समारोह को बहुत ही सादा रखा। ऐसा करके उसने अपने अभिषिक्‍त चेलों के लिए प्यार ज़ाहिर किया। जैसे-जैसे समय बीतता गया, चेलों को हर साल अलग-अलग हालात में यह स्मारक मनाना था, कभी-कभी तो जेल की सलाखों के पीछे भी। (प्रका. 2:10) क्या वे यीशु की आज्ञा मानकर स्मारक मना पाए? बिलकुल!

15-16. बताइए कि कुछ लोग मुश्‍किल हालात में भी स्मारक कैसे मना पाए।

15 पहली सदी से लेकर अब तक सच्चे मसीहियों ने स्मारक मनाने की पूरी कोशिश की है। जिस तरह यीशु ने यह समारोह मनाया था, वे उसी तरह मनाते हैं। लेकिन ऐसा करना हमेशा आसान नहीं होता। कुछ उदाहरणों पर ध्यान दीजिए। चीन देश में भाई हैरल्ड किंग को काल-कोठरी में अकेले रखा गया था। स्मारक मनाने के लिए उन्हें कोई उपाय निकालना था। उनके पास जो चीज़ें थीं, उन्हीं से उन्होंने चुपके से स्मारक के लिए रोटी और दाख-मदिरा तैयार की। फिर उन्होंने हिसाब लगाया कि स्मारक कौन-सी तारीख को पड़ेगा। जब स्मारक का दिन आया, तो उन्होंने अपनी जेल की कोठरी में अकेले ही गीत गाए, प्रार्थना की और शास्त्र पर आधारित भाषण दिया।

16 एक और उदाहरण पर ध्यान दीजिए। दूसरे विश्‍व युद्ध के दौरान यातना शिविर में कैद कुछ बहनों ने स्मारक मनाने के लिए अपनी जान का जोखिम उठाया। लेकिन वे चुपके से स्मारक मना पायीं, क्योंकि उसमें इस्तेमाल होनेवाली चीज़ें बहुत साधारण थीं। वे बताती हैं, “हमने एक स्टूल को सफेद कपड़े से ढक दिया और उस पर रोटी और दाख-मदिरा रखीं। फिर हम उसके चारों तरफ घेरा बनाकर खड़े हो गए। पूरे कमरे में सिर्फ एक मोमबत्ती जल रही थी। हमने लाइट नहीं जलायी, वरना हम पकड़े जाते। . . . उस मौके पर हमने पिता यहोवा से किया अपना वादा दोहराया। हमने उससे कहा कि हम उसके पवित्र नाम को बुलंद करने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा देंगे।” इन बहनों में वाकई गज़ब का विश्‍वास था! इन उदाहरणों से हमें यीशु के प्यार का साफ सबूत मिलता है। उसने अपनी मौत का समारोह साधारण तरीके से मनाया, इसी वजह से उसके चेलों के लिए मुश्‍किल हालात में भी यह समारोह मनाना मुमकिन हुआ है।

17. हमें खुद से कौन-से सवाल करने चाहिए?

17 जैसे-जैसे स्मारक का दिन पास आ रहा है, हमें खुद से पूछना चाहिए, ‘मैं प्यार ज़ाहिर करने में यीशु की मिसाल पर और नज़दीकी से कैसे चल सकता हूँ? क्या मैं अपनी ज़रूरतों से ज़्यादा अपने भाई-बहनों की ज़रूरतों के बारे में सोचता हूँ? क्या मैं उनसे हद-से-ज़्यादा की उम्मीद करता हूँ या मैं उनकी सीमाओं को ध्यान में रखता हूँ?’ आइए हम यीशु की तरह बनें और दूसरों का “दर्द महसूस” करें।​—1 पत. 3:8.

स्मारक से मिलनेवाली सीख हमेशा याद रखिए

18-19. (क) हमें किस बात का यकीन है? (ख) आपने क्या ठान लिया है?

18 हमें मसीह की मौत की यादगार हमेशा नहीं मनानी होगी। महा-संकट के दौरान जब यीशु ‘आएगा,’ तो वह अपने “चुने हुओं” को यानी बचे हुए अभिषिक्‍त मसीहियों को अपने साथ स्वर्ग ले जाएगा। उसके बाद से स्मारक मनाने की ज़रूरत नहीं होगी।​—1 कुरिं. 11:26; मत्ती 24:31.

19 भले ही आगे चलकर स्मारक नहीं मनाया जाएगा, लेकिन हमें यकीन है कि यहोवा के लोग इस साधारण, मगर खास सभा को हमेशा याद रखेंगे। वह इसलिए कि अब तक जीनेवाले सबसे महान शख्स यीशु ने इस सभा के ज़रिए अपनी नम्रता, हिम्मत और प्यार का सबूत दिया था। हममें से जितनों ने स्मारक मनाया है, हम भविष्य में जीनेवाले सभी लोगों को इस खास सभा के बारे में बता पाएँगे, जिससे उन्हें फायदा होगा। लेकिन आज हमें भी इससे फायदा हो सकता है, बशर्ते हम ठान लें कि यीशु की तरह हम नम्र रहेंगे, हिम्मतवाले बनेंगे और प्यार ज़ाहिर करेंगे। ऐसा करने से हम भरोसा रख सकते हैं कि यहोवा हमें ज़रूर इनाम देगा।​—2 पत. 1:10, 11.

गीत 13 मसीह, हमारा आदर्श

^ पैरा. 5 जल्द ही हम यीशु मसीह की मौत की यादगार मनाने के लिए प्रभु के संध्या-भोज में हाज़िर होंगे। यह साधारण, मगर खास समारोह हमें यीशु की नम्रता, हिम्मत और उसके प्यार के बारे में बहुत कुछ सिखाता है। इस लेख में हम सीखेंगे कि हम ये बढ़िया गुण कैसे ज़ाहिर कर सकते हैं।

^ पैरा. 2 इसका क्या मतलब है? यादगार मनाने का मतलब है, किसी अहम घटना या खास व्यक्‍ति की याद में और उसके सम्मान में कुछ करना।

^ पैरा. 56 तसवीर के बारे में: अलग-अलग दौर में वफादार सेवकों ने जिस तरह स्मारक मनाया, उसका प्रदर्शन: पहली सदी की मंडली में; करीब 1880 में; नात्ज़ियों के एक यातना शिविर में और हमारे दिनों में दक्षिण अमरीका के एक राज-घर में। यह राज-घर एक गरम इलाके में है और चारों तरफ से खुला है।