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अध्ययन लेख 2

आपसे दूसरों को “बहुत दिलासा” मिल सकता है

आपसे दूसरों को “बहुत दिलासा” मिल सकता है

“ये लोग . . . परमेश्‍वर के राज के लिए मेरे सहकर्मी हैं और इनसे मुझे बहुत दिलासा मिला है।”—कुलु. 4:11.

गीत 90 एक-दूसरे की हिम्मत बँधाएँ

लेख की एक झलक *

1. यहोवा के कई वफादार सेवक किन चिंताओं और दुखों का सामना करते हैं?

पूरी दुनिया में यहोवा के कई वफादार सेवक चिंताओं और दुखों का सामना करते हैं। ऐसे भाई-बहन हमारी मंडली में भी हो सकते हैं। कुछ भाई-बहन किसी बड़ी बीमारी से जूझ रहे हैं, तो कुछ लोग अपनों की मौत का गम सह रहे हैं। या फिर कुछ मसीही इस बात से दुखी हैं कि उनके परिवार के सदस्य या एक अच्छे दोस्त ने सच्चाई छोड़ दी है। कुछ ऐसे भी हैं जो प्राकृतिक विपत्तियों की मार झेल रहे हैं। इन भाई-बहनों को सच में दिलासे की ज़रूरत है! लेकिन सवाल है कि इन्हें दिलासा देने के लिए हम क्या कर सकते हैं?

2. प्रेषित पौलुस को कभी-कभी दिलासे की ज़रूरत क्यों थी?

2 पौलुस के उदाहरण पर ध्यान दीजिए। उसके सामने ऐसे कई हालात आए जिनमें उसकी जान जा सकती थी। (2 कुरिं. 11:23-28) शायद वह किसी बीमारी से भी लड़ रहा था, जिसे उसने अपने “शरीर में एक काँटा” कहा। (2 कुरिं. 12:7) कभी-कभी उसे कुछ लोगों की वजह से निराशा का भी सामना करना पड़ा। जैसे, एक मौके पर देमास नाम का एक भाई जो उसका सहकर्मी था, “इस दुनिया के मोह में पड़कर” उसे छोड़कर चला गया। (2 तीमु. 4:10) पौलुस एक दिलेर अभिषिक्‍त मसीही था और हमेशा दूसरों की मदद करता था, लेकिन कभी-कभी वह भी दुखी हो जाता था। इस वजह से उसे दिलासे की ज़रूरत थी।​—रोमि. 9:1, 2.

3. पौलुस को किन लोगों से मदद और दिलासा मिला?

3 पौलुस को मदद और दिलासा कैसे मिला? यहोवा ने अपनी पवित्र शक्‍ति के ज़रिए उसे हिम्मत दी। (2 कुरिं. 4:7; फिलि. 4:13) उसने मसीही भाइयों के ज़रिए भी पौलुस की मदद की। इन भाइयों के बारे में पौलुस ने कहा, “इनसे मुझे बहुत दिलासा मिला है।” (कुलु. 4:11) इनमें से कुछ भाई थे अरिस्तरखुस, तुखिकुस और मरकुस। उनसे पौलुस को बहुत हिम्मत मिली और वह अपनी मुश्‍किलों का धीरज से सामना कर पाया। इन तीनों भाइयों में ऐसे कौन-से गुण थे जिस वजह से वे पौलुस को दिलासा दे पाए? आज हम उनकी तरह दूसरों को कैसे दिलासा दे सकते हैं और उनकी हिम्मत बँधा सकते हैं?

अरिस्तरखुस जैसा सच्चा दोस्त

अरिस्तरखुस की तरह हम “मुसीबत की घड़ी” में भी मसीही भाई-बहनों का साथ देंगे (पैराग्राफ 4-5 देखें) *

4. यह क्यों कहा जा सकता है कि अरिस्तरखुस पौलुस का वफादार साथी था?

4 अरिस्तरखुस मकिदुनिया ज़िले के थिस्सलुनीके मंडली का एक मसीही था। वह पौलुस का वफादार साथी था। ऐसा हम क्यों कह सकते हैं? बाइबल में अरिस्तरखुस का पहली बार ज़िक्र तब मिलता है, जब पौलुस अपने तीसरे मिशनरी दौरे पर इफिसुस जाता है। उस सफर में अरिस्तरखुस पौलुस के साथ था और उसी दौरान एक भीड़ ने उसे पकड़ लिया। (प्रेषि. 19:29) बाद में जब भीड़ ने उसे छोड़ दिया, तब वह चाहता तो वहाँ से अपनी जान बचाकर भाग सकता था, लेकिन उसने पौलुस का साथ नहीं छोड़ा। कुछ महीने बाद, पौलुस यूनान गया और वहाँ दुश्‍मन उसकी जान लेना चाहते थे। उस वक्‍त भी अरिस्तरखुस उसके साथ रहा। (प्रेषि. 20:2-4) फिर ईसवी सन्‌ 58 में जब पौलुस को कैदी बनाकर रोम ले जाया जा रहा था, तब उसे एक लंबा सफर तय करना था और इस दौरान उसका जहाज़ समुंदर में टूट गया। उस मुश्‍किल घड़ी में भी अरिस्तरखुस पौलुस के साथ था। (प्रेषि. 27:1, 2, 41) ऐसा मालूम होता है कि रोम पहुँचने पर अरिस्तरखुस कुछ समय तक पौलुस के साथ कैद में रहा। (कुलु. 4:10) ज़रा सोचिए, अरिस्तरखुस जैसे वफादार साथी से पौलुस को कितना हौसला और दिलासा मिला होगा!

5. नीतिवचन 17:17 के मुताबिक हम कैसे सच्चे दोस्त बन सकते हैं?

5 अरिस्तरखुस की तरह हम भी सिर्फ अच्छे वक्‍त में नहीं, बल्कि “मुसीबत की घड़ी” में भी मसीही भाई-बहनों का साथ देंगे। इस तरह हम उनके सच्चे दोस्त साबित होंगे। (नीतिवचन 17:17 पढ़िए।) कभी-कभी मुश्‍किल घड़ी बीतने के बाद भी भाई-बहनों को दिलासे की ज़रूरत होती है। मोहित * का उदाहरण लीजिए। तीन महीने के अंदर ही उसके माँ-बाप की मौत कैंसर से हो गयी। वह कहता है, “जब हमारे साथ कोई हादसा होता है, तो उस सदमे से निकलना आसान नहीं होता, वक्‍त लगता है। यह बात मेरे दोस्त अच्छी तरह समझते थे, इसलिए वे मुझे दिलासा देते रहे भले ही मेरे माता-पिता को गुज़रे कुछ वक्‍त हो चुका था। मैं अपने दोस्तों का बहुत शुक्रगुज़ार हूँ।”

6. अगर हम सच्चे दोस्त हैं, तो हम क्या करने से पीछे नहीं हटेंगे?

6 सच्चे दोस्त भाई-बहनों की मदद करने के लिए अपना समय और अपनी ताकत लगाने से पीछे नहीं हटते। उदाहरण के लिए, रोहन नाम के एक भाई को पता चला कि उसे ऐसी बीमारी है जो जानलेवा हो सकती है। उसकी पत्नी किरन बताती है, “जब हमें रोहन की बीमारी का पता चला, उस वक्‍त हमारी मंडली के एक पति-पत्नी हमारे साथ थे। उन्होंने उसी वक्‍त तय कर लिया कि इस मुश्‍किल हालात का सामना करने में वे हमारा साथ देंगे। और ऐसा ही हुआ! जब-जब हमें उनकी ज़रूरत थी, वे हाज़िर थे!” वाकई, मुश्‍किल घड़ी में सच्चे दोस्तों का साथ पाकर कितना दिलासा मिलता है!

तुखिकुस जैसा भरोसेमंद साथी

तुखिकुस की तरह हम उन भाई-बहनों के लिए भरोसेमंद दोस्त साबित हो सकते हैं, जो मुश्‍किलों का सामना कर रहे हैं (पैराग्राफ 7-9 देखें) *

7-8. कुलुस्सियों 4:7-9 के मुताबिक तुखिकुस कैसे एक भरोसेमंद साथी था?

7 तुखिकुस रोमी प्रांत एशिया का रहनेवाला था। वह पौलुस का बहुत भरोसेमंद साथी था। (प्रेषि. 20:4) करीब ईसवी सन्‌ 55 में पौलुस यहूदिया के मसीहियों के लिए दान इकट्ठा करने का इंतज़ाम कर रहा था। इस ज़रूरी काम में हाथ बँटाने के लिए उसने तुखिकुस को चुना। (2 कुरिं. 8:18-20) फिर जब रोम में पौलुस को पहली बार कैद किया गया, तो तुखिकुस ने उसकी तरफ से मंडलियों को संदेश पहुँचाने का काम किया। उसने एशिया की कई मंडलियों तक पौलुस की चिट्ठियाँ और हौसला बढ़ानेवाले संदेश पहुँचाए।​—कुलु. 4:7-9.

8 वक्‍त के बीतने पर तुखिकुस बदला नहीं, वह अब भी पौलुस का भरोसेमंद साथी था। (तीतु. 3:12) लेकिन उस समय के कुछ मसीही तुखिकुस के जैसे नहीं थे। करीब ईसवी सन्‌ 65 की बात लीजिए। पौलुस दूसरी बार कैद में था। उस दौरान उसने लिखा कि एशिया प्रांत के कई भाई उससे किनारा कर रहे थे। वे शायद विरोधियों के डर से ऐसा कर रहे थे। (2 तीमु. 1:15) लेकिन पौलुस तुखिकुस पर पूरा भरोसा कर सकता था, इसलिए उसने तुखिकुस को एक और काम सौंपा। (2 तीमु. 4:12) इसमें कोई शक नहीं कि पौलुस तुखिकुस जैसे भरोसेमंद साथी की बहुत कदर करता था।

9. हम तुखिकुस की तरह कैसे भरोसेमंद हो सकते हैं?

9 तुखिकुस की तरह हम भी भाई-बहनों के लिए एक भरोसेमंद दोस्त साबित हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, हम भाई-बहनों की मदद करने का सिर्फ वादा नहीं करते बल्कि सच में उनकी मदद करते हैं। (मत्ती 5:37; लूका 16:10) जब भाई-बहनों को पता होता है कि ज़रूरत की घड़ी में वे हम पर भरोसा कर सकते हैं, तो उन्हें इस बात से कितनी राहत मिलती है। एक बहन बताती है, “हमें इस बात की चिंता नहीं सताती कि भाई-बहन ऐन मौके पर मुकर जाएँगे।”

10. जैसे नीतिवचन 18:24 में बताया गया है, आज़माइशों या निराशा का सामना करनेवालों को किन लोगों से दिलासा मिल सकता है?

10 आज़माइशों या निराशा का सामना करते वक्‍त किसी भरोसेमंद दोस्त से बात करने से काफी दिलासा मिलता है। (नीतिवचन 18:24 पढ़िए।) जब विजय के बेटे का मंडली से बहिष्कार हुआ, तो विजय बहुत निराश हो गया। वह कहता है, “मेरे मन में बहुत कुछ चल रहा था और मैं किसी भरोसेमंद दोस्त से बात करना चाहता था, उसे बताना चाहता था कि मुझ पर क्या बीत रही है।” ज़रा भाई कार्तिक पर भी ध्यान दीजिए। वह अपनी गलती की वजह से मंडली में अपनी ज़िम्मेदारी से हाथ धो बैठा। वह बताता है कि वह एक ऐसे भरोसेमंद मसीही से बात करना चाहता था, जो सब्र से उसकी सुने, उसके जज़्बात समझे और पहले से कोई राय कायम न करे। प्राचीन उसके लिए ऐसे ही भरोसेमंद दोस्त साबित हुए। उनसे बात करके कार्तिक को बहुत दिलासा मिला। उसे इस बात से भी दिलासा मिला कि प्राचीन उसकी बातें अपने तक ही रखेंगे। सच में, प्राचीनों ने इस मुश्‍किल दौर से निकलने में कार्तिक की बहुत मदद की।

11. हम भरोसेमंद दोस्त कैसे साबित हो सकते हैं?

11 एक भरोसेमंद दोस्त बनने के लिए सब्र का गुण होना बहुत ज़रूरी है। जीया का उदाहरण लीजिए। उसके पति ने उसे छोड़ दिया था। ऐसे में अपने दोस्तों से बात करके उसका दिल हलका हुआ। वह अपने दोस्तों के बारे में बताती है, “मैं एक ही बात शायद बार-बार दोहरा रही थी, फिर भी उन्होंने सब्र से मेरी सुनी।” जब हम सब्र से दूसरों की सुनते हैं, तो हम भी अच्छे दोस्त साबित हो सकते हैं।

मरकुस की तरह खुशी-खुशी सेवा कीजिए

मरकुस ने पौलुस की मदद की जिस वजह से वह धीरज रख पाया। हम भी मुसीबत की घड़ी में भाई-बहनों की मदद कर सकते हैं (पैराग्राफ 12-14 देखें) *

12. (क) मरकुस कौन था? (ख) उसने कैसे खुशी-खुशी दूसरों की सेवा की?

12 मरकुस यरूशलेम का रहनेवाला एक यहूदी मसीही था। वह बरनबास का भाई लगता था, जो एक जाना-माना मिशनरी था। (कुलु. 4:10) ऐसा मालूम होता है कि मरकुस एक अमीर परिवार से था, लेकिन उसने कभी-भी पैसों और ऐशो-आराम की चीज़ों को पहली जगह नहीं दी। वह हमेशा दूसरों की सेवा करने को तैयार रहता था और ऐसा खुशी-खुशी करता था। उदाहरण के लिए, उसने अलग-अलग मौकों पर प्रेषित पौलुस और प्रेषित पतरस के साथ मिलकर सेवा की। हो सकता है, इस दौरान उसने उनके रहने और खाने-पीने की ज़रूरतों का ध्यान रखा हो। (प्रेषि. 13:2-5; 1 पत. 5:13) पौलुस ने मरकुस और दूसरे भाइयों के बारे में कहा कि ‘ये लोग परमेश्‍वर के राज के लिए मेरे सहकर्मी हैं’ और “मेरी हिम्मत बँधानेवाले मददगार हैं।”​—कुलु. 4:10, 11, फु.

13. दूसरा तीमुथियुस 4:11 से कैसे पता चलता है कि पौलुस मरकुस की सेवा के लिए बहुत एहसानमंद था?

13 मरकुस और पौलुस अच्छे दोस्त बन गए। यह हम कैसे जानते हैं? करीब ईसवी सन्‌ 65 में पौलुस आखिरी बार रोम में कैद था। उसने तीमुथियुस के नाम दूसरी चिट्ठी लिखी और उससे कहा कि वह रोम आए और मरकुस को भी अपने साथ लाए। (2 तीमु. 4:11) मरकुस ने जिस तरह वफादारी से पौलुस की सेवा की थी, उसके लिए पौलुस बहुत एहसानमंद था और वह चाहता था कि अब उसकी आखिरी घड़ी में मरकुस उसके साथ रहे। मरकुस ने अलग-अलग तरीकों से पौलुस की मदद की जैसे, उसके खाने-पीने का इंतज़ाम किया और लिखने के लिए ज़रूरी सामान जुटाया। इस तरह पौलुस को बहुत हिम्मत मिली और वह अपनी मौत से पहले धीरज रख पाया।

14-15. मत्ती 7:12 से हम छोटे-छोटे तरीकों से दूसरों की मदद करने के बारे में क्या सीखते हैं?

14 मत्ती 7:12 पढ़िए। मुश्‍किल दौर से गुज़रते वक्‍त अगर कोई अलग-अलग तरीकों से हमारी मदद करता है, तो हम उसके कितने एहसानमंद होते हैं! रायन पर ध्यान दीजिए जिसके पिता की मौत एक दुर्घटना में हो गयी थी। वह बताता है, “जब हम किसी तकलीफ में होते हैं, तो रोज़मर्रा के काम करना भी भारी लग सकता है। ऐसे में अगर कोई छोटे-छोटे तरीकों से मदद करता है, तो कितनी राहत मिलती है!”

15 अगर हम दूसरों की ज़रूरतों पर ध्यान दें, तो हम अलग-अलग तरीकों से उनकी मदद कर पाएँगे। रोहन और किरन पर गौर कीजिए, जिनका पहले ज़िक्र किया गया था। उन्हें डॉक्टर के पास कई बार जाना पड़ता था, लेकिन उनमें से कोई भी गाड़ी चलाने की हालत में नहीं था। उनकी मदद के लिए वे पति-पत्नी आगे आए जिन्होंने ऐसा करने के लिए कहा था। पत्नी ने मंडली के भाई-बहनों से बात की कि वे बारी-बारी से रोहन और किरन को डॉक्टर के पास ले जाएँ। क्या इससे रोहन और किरन को मदद मिली? किरन बताती है, “हमें ऐसा लगा मानो हमारे सिर से एक भारी बोझ उतर गया हो।” इससे हम क्या सीखते हैं? यही कि छोटे-छोटे तरीकों से मदद करके भी हम दूसरों को दिलासा दे सकते हैं।

16. दिलासा देने के बारे में हमें मरकुस से कौन-सी ज़रूरी सीख मिलती है?

16 मरकुस पर एक बार फिर ध्यान दीजिए। परमेश्‍वर की सेवा में उसके पास कई अहम ज़िम्मेदारियाँ थीं। उनमें से एक थी, अपने नाम की खुशखबरी की किताब लिखना। मरकुस बहुत व्यस्त रहता था फिर भी उसने पौलुस को दिलासा देने के लिए समय निकाला। पौलुस ने भी बेझिझक उससे मदद माँगी। आज भी कई भाई-बहन मरकुस की तरह दूसरों को दिलासा देने के लिए समय निकालते हैं। दिलासा पानेवाले लोग इस मदद के लिए बहुत एहसानमंद होते हैं। अंजली का ही उदाहरण लीजिए जिसके साथ एक दर्दनाक हादसा हुआ। उसके परिवार के एक सदस्य की हत्या कर दी गयी थी। वह बताती है, “जब भाई-बहन दिल से हमारी मदद करना चाहते हैं, तो उनसे बात करना आसान हो जाता है। वे हमारी मदद करने से पीछे नहीं हटते।” हम खुद से पूछ सकते हैं, ‘क्या भाई-बहन मेरे बारे में भी यह कहेंगे कि मैं उन्हें दिलासा देने के लिए तैयार रहता हूँ?’

दूसरों को दिलासा देने की ठान लीजिए

17. दूसरा कुरिंथियों 1:3, 4 पर मनन करने से हमें क्या करने का बढ़ावा मिलता है?

17 हम शायद ऐसे कई भाई-बहनों को जानते होंगे जिन्हें दिलासे की ज़रूरत है। इन भाई-बहनों को दिलासा देते वक्‍त शायद हम वही बातें बताएँ, जो दूसरों ने हमें दिलासा देने और हमारा हौसला बढ़ाने के लिए कहे थे। नीतू, जिसकी नानी की मौत हो गयी थी, कहती है, “अगर हम चाहें, तो यहोवा हमारे ज़रिए दूसरों को दिलासा दे सकता है।” (2 कुरिंथियों 1:3, 4 पढ़िए।) मोहित, जिसका ज़िक्र पहले किया गया था, कहता है, 2 कुरिंथियों 1:4 में लिखी बात बिलकुल सच है। जिन बातों से हमें दिलासा मिला है, उन्हीं बातों से हम दूसरों को दिलासा दे सकते हैं।”

18. (क) दूसरों को दिलासा देने से कुछ लोग पीछे क्यों हटते हैं? (ख) हम किस तरह दूसरों को अच्छे से दिलासा दे पाएँगे? एक उदाहरण दीजिए।

18 कभी-कभी हम यह सोचकर पीछे हट जाते हैं कि हम दूसरों को कैसे दिलासा दे पाएँगे। हो सकता है, कोई बहुत दुखी और परेशान हो और हमें समझ में न आए कि हम क्या कहें या क्या करें। राजेश नाम का एक प्राचीन याद करता है कि जब उसके पिता गुज़र गए, तो कुछ भाई-बहन उसे दिलासा देने आए थे। वह बताता है, “उनके लिए ऐसा करना आसान नहीं था। उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि वे मुझसे क्या कहें। फिर भी वे मुझे दिलासा और सहारा देना चाहते थे। मैं उनकी इस कोशिश के लिए बहुत एहसानमंद हूँ।” एक और उदाहरण पर गौर कीजिए। एक ज़बरदस्त भूकंप के बाद तुशार नाम का एक भाई बताता है, “भाई-बहनों ने मुझे कई मैसेज किए। सच कहूँ तो मुझे याद नहीं कि उन्होंने क्या-क्या लिखा था, लेकिन मैं इतना ज़रूर कह सकता हूँ कि उन्हें मेरी चिंता थी और वे जानना चाहते थे कि मैं सही-सलामत हूँ या नहीं।” अगर हम भी ज़ाहिर करें कि हमें दूसरों की परवाह है, तो हम उन्हें अच्छे से दिलासा दे पाएँगे।

19. आपने क्यों ठान लिया है कि आप दूसरों को दिलासा देंगे?

19 जैसे-जैसे शैतान की दुनिया का अंत करीब आ रहा है, हालात बद-से-बदतर होते जाएँगे और ज़िंदगी और भी मुश्‍किल हो जाएगी। (2 तीमु. 3:13) पापी और अपरिपूर्ण होने की वजह से भी हमसे गलतियाँ होंगी और हम पर मुश्‍किलें आएँगी। इसमें कोई शक नहीं कि हमें लगातार दिलासे की ज़रूरत होगी। प्रेषित पौलुस को अपने मसीही भाइयों से दिलासा मिला था और यह एक वजह थी कि वह अपनी आखिरी साँस तक वफादार रह पाया। तो फिर आइए हम भी अरिस्तरखुस की तरह वफादार और सच्चे दोस्त बनें, तुखिकुस की तरह भरोसेमंद साथी साबित हों और मरकुस की तरह खुशी-खुशी दूसरों की सेवा करें। इससे मसीही भाई-बहनों का विश्‍वास मज़बूत बना रहेगा और वे यहोवा की सेवा करते रहेंगे।​—1 थिस्स. 3:2, 3.

^ पैरा. 5 प्रेषित पौलुस ने अपनी ज़िंदगी में बहुत-सी मुश्‍किलों और परेशानियों का सामना किया। उस दौरान पौलुस को कुछ भाइयों से बहुत दिलासा मिला। ये भाई किस वजह से दिलासा दे पाए? इस लेख में हम तीन गुणों के बारे में चर्चा करेंगे जिस वजह से ये भाई दिलासा दे पाए। हम यह भी सीखेंगे कि हम कैसे उनकी तरह दूसरों को दिलासा दे सकते हैं।

^ पैरा. 5 इस लेख में कुछ नाम बदल दिए गए हैं।

गीत 111 हमारी खुशी के कई कारण

^ पैरा. 56 तसवीर के बारे में: अरिस्तरखुस पौलुस के साथ था जब उनका जहाज़ समुंदर में टूट गया था।

^ पैरा. 58 तसवीर के बारे में: तुखिकुस को यह काम मिला कि वह पौलुस की चिट्ठियाँ मंडलियों तक पहुँचाए।

^ पैरा. 60 तसवीर के बारे में: मरकुस ने अलग-अलग तरीकों से पौलुस की मदद की।