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अध्ययन लेख 5

हम तुम्हारे साथ चलेंगे

हम तुम्हारे साथ चलेंगे

“हम तुम्हारे साथ चलना चाहते हैं क्योंकि हमने सुना है, परमेश्‍वर तुम्हारे साथ है।”—जक. 8:23.

गीत 26 तुमने मेरे लिए किया

लेख की एक झलक *

धरती पर जीने की आशा रखनेवाले (“दस लोग”) अभिषिक्‍त जनों (“एक यहूदी”) के साथ मिलकर यहोवा की उपासना करना सम्मान की बात समझते हैं (पैराग्राफ 1-2 देखें)

1. यहोवा ने हमारे दिनों के बारे में क्या भविष्यवाणी की थी?

यहोवा ने हमारे दिनों के बारे में भविष्यवाणी की थी, “अलग-अलग भाषा बोलनेवाले सब राष्ट्रों में से दस लोग, एक यहूदी के कपड़े का छोर पकड़ लेंगे। हाँ, वे उसका छोर पकड़कर कहेंगे, ‘हम तुम्हारे साथ चलना चाहते हैं क्योंकि हमने सुना है, परमेश्‍वर तुम्हारे साथ है।’” (जक. 8:23) यहाँ बताया “यहूदी” उन लोगों को दर्शाता है, जिनका पवित्र शक्‍ति से अभिषेक हुआ है। उन्हें ‘परमेश्‍वर का इसराएल’ भी कहा जाता है। (गला. 6:16) “दस लोग” उन लोगों को दर्शाते हैं, जिन्हें धरती पर हमेशा जीने की आशा है। उन्हें पता है कि यहोवा ने अभिषिक्‍त मसीहियों को आशीष दी है, इसलिए वे उनके साथ मिलकर परमेश्‍वर की उपासना करना सम्मान की बात समझते हैं।

2. “दस लोग” किस मायने में अभिषिक्‍त मसीहियों ‘के साथ चलते’ हैं?

2 आज धरती पर जो अभिषिक्‍त मसीही मौजूद हैं, उन सभी के नाम जानना शायद मुमकिन न हो। * तो फिर, धरती पर जीने की आशा रखनेवाले किस मायने में उन अभिषिक्‍त मसीहियों ‘के साथ चल सकते’ हैं? बाइबल बताती है कि “दस लोग,” ‘एक यहूदी  के कपड़े का छोर पकड़कर कहेंगे, “हम तुम्हारे  साथ चलना चाहते हैं क्योंकि हमने सुना है, परमेश्‍वर तुम्हारे  साथ है।”’ इस आयत में एक यहूदी का ज़िक्र किया गया है। लेकिन उसके लिए इस्तेमाल हुआ शब्द, “तुम्हारे” बहुवचन में है। इससे पता चलता है कि यहाँ एक-से-ज़्यादा लोगों की बात की गयी है। इसका मतलब, इस आयत में ज़िक्र किया गया यहूदी अभिषिक्‍त मसीहियों के पूरे समूह  को दर्शाता है। जब धरती पर जीने की आशा रखनेवाले लोग, इन अभिषिक्‍त मसीहियों के साथ मिलकर यहोवा की सेवा करते हैं, तो वे मानो उनके साथ चल रहे होते हैं। वे इन अभिषिक्‍त मसीहियों को अपना अगुवा नहीं मानते, क्योंकि उनका एक ही अगुवा है, यीशु मसीह।—मत्ती 23:10.

3. इस लेख में किन सवालों के जवाब दिए जाएँगे?

3 आज भी यहोवा के लोगों के बीच अभिषिक्‍त मसीही मौजूद हैं, इसलिए कुछ लोगों के मन में शायद ये सवाल उठें: (1) अभिषिक्‍त मसीहियों को खुद के बारे में कैसी सोच रखनी चाहिए? (2) अगर कोई स्मारक के दौरान रोटी और दाख-मदिरा लेता है, तो आपको उसके साथ किस तरह पेश आना चाहिए? और (3) अगर रोटी और दाख-मदिरा लेनेवालों की गिनती बढ़ती जाती है, तो क्या हमें इस बात को लेकर चिंता करनी चाहिए? इस लेख में इन सवालों के जवाब दिए जाएँगे।

अभिषिक्‍त मसीहियों को खुद के बारे में कैसी सोच रखनी चाहिए?

4. पहला कुरिंथियों 11:27-29 के मुताबिक अभिषिक्‍त मसीहियों को कौन-सी चेतावनी याद रखनी चाहिए और क्यों?

4 अभिषिक्‍त मसीहियों को 1 कुरिंथियों 11:27-29 में दी चेतावनी को गंभीरता से लेना चाहिए। (पढ़िए।) एक अभिषिक्‍त मसीही स्मारक के दौरान शायद कैसे ‘दोषी ठहरे’? अगर वह रोटी और दाख-मदिरा लेता है, लेकिन परमेश्‍वर के नेक स्तरों के मुताबिक नहीं जीता, तो वह दोषी ठहरता है। (इब्रा. 6:4-6; 10:26-29) अभिषिक्‍त मसीही अच्छी तरह जानते हैं कि “परमेश्‍वर ने मसीह यीशु के ज़रिए ऊपर का जो बुलावा दिया है, उस इनाम” को पाने के लिए उन्हें वफादार रहना होगा।—फिलि. 3:13-16.

5. अभिषिक्‍त मसीहियों को खुद के बारे में कैसी सोच रखनी चाहिए?

5 यहोवा की पवित्र शक्‍ति उसके सेवकों को घमंडी होने के बजाय नम्र रहने के लिए उभारती है। (इफि. 4:1-3; कुलु. 3:10, 12) इस वजह से अभिषिक्‍त मसीही खुद को दूसरों से बेहतर नहीं समझते। वे यह नहीं सोचते कि यहोवा उन्हें बाकी सेवकों से ज़्यादा पवित्र शक्‍ति देता है, न ही उन्हें यह लगता है कि वे बाइबल की सच्चाइयाँ दूसरों से ज़्यादा अच्छी तरह समझते हैं। इसके अलावा, वे किसी से यह नहीं कहते कि वह भी उसकी तरह अभिषिक्‍त है और उसे स्मारक में रोटी और दाख-मदिरा लेनी चाहिए। इसके बजाय, वे नम्र रहते हैं और यह मानते हैं कि सिर्फ यहोवा ही लोगों को स्वर्ग का बुलावा देता है।

6. पहला कुरिंथियों 4:7, 8 के मुताबिक अभिषिक्‍त मसीहियों को किस तरह पेश आना चाहिए?

6 अभिषिक्‍त मसीही मानते हैं कि स्वर्ग की आशा एक सम्मान है, लेकिन वे यह उम्मीद नहीं करते कि दूसरे उनका खास मान-सम्मान करें। (फिलि. 2:2, 3) वे यह भी जानते हैं कि जब यहोवा ने पवित्र शक्‍ति से उनका अभिषेक किया, तो उसने यह बात हर किसी पर ज़ाहिर नहीं की। उन्हें पता है कि बाइबल सलाह देती है कि हमें फौरन किसी ऐसे व्यक्‍ति पर विश्‍वास नहीं कर लेना चाहिए, जो कहता है कि उसे परमेश्‍वर से खास ज़िम्मेदारी मिली है। इस वजह से उन्हें हैरानी नहीं होती कि कुछ लोग उनके अभिषिक्‍त होने पर तुरंत यकीन नहीं करते। (प्रका. 2:2) अभिषिक्‍त मसीही कभी-भी दूसरों का ध्यान अपनी तरफ खींचने की कोशिश नहीं करते। यही वजह है कि जब वे किसी से पहली बार मिलते हैं, तो उन्हें यह नहीं बताते कि वे अभिषिक्‍त हैं और न ही अपने अभिषिक्‍त होने पर शेखी मारते हैं।—1 कुरिंथियों 4:7, 8 पढ़िए।

7. अभिषिक्‍त मसीही क्या नहीं करते और क्यों?

7 अभिषिक्‍त मसीहियों को यह नहीं लगता कि उन्हें सिर्फ दूसरे अभिषिक्‍त मसीहियों के साथ वक्‍त बिताना चाहिए, मानो वे किसी क्लब या समाज के सदस्य हों। वे दूसरे अभिषिक्‍त मसीहियों को ढूँढ़कर अपने स्वर्ग के बुलावे के बारे में चर्चा नहीं करते या फिर एक खास समूह बनाकर बाइबल का अध्ययन नहीं करते। (गला. 1:15-17) अगर अभिषिक्‍त मसीही ऐसा करते हैं, तो मंडली में एकता नहीं रहेगी। वे पवित्र शक्‍ति के खिलाफ भी काम कर रहे होंगे, वही पवित्र शक्‍ति जिसकी मदद से परमेश्‍वर के लोगों के बीच शांति और एकता है।—रोमि. 16:17, 18.

अभिषिक्‍त मसीहियों के साथ हमें किस तरह पेश आना चाहिए?

अभिषिक्‍त मसीहियों या अगुवाई करनेवाले भाइयों के साथ हमें इस तरह पेश नहीं आना चाहिए मानो वे कोई बड़ी हस्ती हों (पैराग्राफ 8 देखें) *

8. जो स्मारक में रोटी और दाख-मदिरा लेते हैं, हमें उनके साथ किस तरह पेश नहीं आना चाहिए और क्यों? (फुटनोट भी देखें।)

8 हमें अभिषिक्‍त भाई-बहनों के साथ किस तरह पेश आना चाहिए? किसी भी मसीही की हद-से-ज़्यादा तारीफ करना सही नहीं होगा, भले ही वह मसीही अभिषिक्‍त क्यों न हो। (मत्ती 23:8-12) जब बाइबल में प्राचीनों का ज़िक्र आता है, तो हमें बढ़ावा दिया जाता है कि हम “उनके विश्‍वास  की मिसाल” पर चलें। लेकिन हमसे यह नहीं कहा गया है कि हम किसी इंसान  को अपना अगुवा मान लें। (इब्रा. 13:7) यह सच है कि बाइबल के मुताबिक कुछ लोग “दुगने आदर के योग्य” हैं, इसलिए नहीं कि वे अभिषिक्‍त हैं, बल्कि इसलिए कि वे “बढ़िया तरीके से अगुवाई करते हैं” और “बोलने और सिखाने में कड़ी मेहनत करते हैं।” (1 तीमु. 5:17) अगर हम अभिषिक्‍त मसीहियों की हद-से-ज़्यादा तारीफ करें या उन पर बहुत ज़्यादा ध्यान दें, तो हम उन्हें शर्मिंदा कर रहे होंगे। * या हो सकता है कि हमारी तारीफ सुनकर उनमें घमंड आ जाए। (रोमि. 12:3) हम हरगिज़ नहीं चाहेंगे कि हमारी वजह से कोई भी अभिषिक्‍त भाई ऐसी बड़ी गलती कर बैठे।—लूका 17:2.

9. हम अभिषिक्‍त मसीहियों का आदर कैसे कर सकते हैं?

9 यहोवा ने जिनका पवित्र शक्‍ति से अभिषेक किया है, हम उनका आदर कैसे कर सकते हैं? हम उनसे यह नहीं पूछेंगे कि वे अभिषिक्‍त कैसे बने। यह उनका निजी मामला है, हमें इस बारे में जानने का कोई हक नहीं है। (1 थिस्स. 4:11; 2 थिस्स. 3:11) हमें यह भी नहीं मान लेना चाहिए कि उनके पति या पत्नी, माता-पिता या परिवार का कोई और सदस्य भी अभिषिक्‍त है। एक मसीही को स्वर्ग की आशा अपने परिवार से विरासत में नहीं मिलती। यह आशा उन्हें यहोवा से मिलती है। (1 थिस्स. 2:12) हमें उनसे ऐसे सवाल नहीं करने चाहिए जिससे उन्हें बुरा लग सकता है। जैसे, हम एक अभिषिक्‍त भाई की पत्नी से यह नहीं पूछेंगे कि अपने पति के बिना धरती पर हमेशा तक जीने के बारे में उसे कैसा लगता है। ऐसा पूछना क्यों सही नहीं होगा? क्योंकि हम यकीन रख सकते हैं कि नयी दुनिया में यहोवा “हरेक जीव की इच्छा पूरी” करेगा।—भज. 145:16.

10. “खास लोगों की वाह-वाही” न करने से किस तरह हमारी हिफाज़त होती है?

10 अगर हम अभिषिक्‍त मसीहियों को दूसरों से ज़्यादा अहमियत न दें, तो इससे हमारी भी हिफाज़त होगी। वह कैसे? बाइबल बताती है कि ऐसा हो सकता है कि कुछ अभिषिक्‍त मसीही वफादार न रहें। (मत्ती 25:10-12; 2 पत. 2:20, 21) अगर हम “खास लोगों की वाह-वाही” न करें, फिर चाहे वे अभिषिक्‍त मसीही हों, या जिनका संगठन में बहुत नाम हो या फिर जो लंबे समय से यहोवा की सेवा कर रहे हों, तो हम उनके नक्शे-कदम पर नहीं चलेंगे। (यहू. 16, फु.) जब वे यहोवा के वफादार नहीं रहते या मंडली छोड़कर चले जाते हैं, तो हमारा विश्‍वास कमज़ोर नहीं होगा और न ही हम यहोवा की सेवा करना छोड़ेंगे।

अगर गिनती बढ़ती है, तो क्या आपको चिंता करनी चाहिए?

11. स्मारक में रोटी और दाख-मदिरा लेनेवालों की गिनती में क्या बदलाव हो रहा है?

11 कई सालों से स्मारक में रोटी और दाख-मदिरा लेनेवालों की गिनती कम हो रही थी। लेकिन पिछले कुछ सालों से यह गिनती बढ़ती जा रही है। क्या हमें इस बारे में चिंता करनी चाहिए? नहीं। आइए इसके कुछ कारणों पर ध्यान दें।

12. स्मारक में रोटी और दाख-मदिरा लेनेवालों की गिनती के बारे में हमें क्यों चिंता नहीं करनी चाहिए?

12 “यहोवा उन्हें जानता है जो उसके अपने हैं।”  (2 तीमु. 2:19) यहोवा जानता है कि स्मारक में रोटी और दाख-मदिरा लेनेवालों में से कौन सच में अभिषिक्‍त हैं। लेकिन यह बात वह भाई नहीं जानता जो स्मारक में रोटी और दाख-मदिरा लेनेवालों की गिनती करता है। इस गिनती में वे लोग भी शामिल हैं, जिन्हें लगता है कि वे अभिषिक्‍त हैं, लेकिन हैं नहीं। जैसे, कुछ लोग पहले रोटी और दाख-मदिरा लेते थे, लेकिन बाद में उन्होंने ऐसा करना बंद कर दिया। वहीं कुछ ऐसे भी हैं जो मानसिक बीमारी या निराशा की वजह से सोचते हैं कि वे यीशु के साथ स्वर्ग में राज करेंगे। इस वजह से हम ठीक-ठीक नहीं जानते कि धरती पर कितने अभिषिक्‍त मसीही रह गए हैं।

13. क्या बाइबल यह बताती है कि महा-संकट के शुरू होने पर कितने अभिषिक्‍त मसीही धरती पर मौजूद होंगे?

13 जब यीशु अभिषिक्‍त मसीहियों को स्वर्ग ले जाने आएगा, तब वे धरती के अलग-अलग इलाकों में होंगे।  (मत्ती 24:31) बाइबल बताती है कि आखिरी दिनों में अभिषिक्‍त मसीहियों में से कुछ लोग धरती पर होंगे। (प्रका. 12:17) लेकिन इसमें यह नहीं बताया गया कि जब महा-संकट शुरू होगा, तब उनमें से कितने अभिषिक्‍त मसीही धरती पर मौजूद होंगे।

अगर स्मारक के दौरान कोई रोटी और दाख-मदिरा लेता है, तो हमारा क्या रवैया होना चाहिए? (पैराग्राफ 14 देखें)

14. अभिषिक्‍त मसीहियों के चुने जाने के बारे में हमें रोमियों 9:11, 16 से क्या पता चलता है?

14 यहोवा तय करता है कि वह कब अभिषिक्‍त मसीहियों को चुनेगा।  (रोमि. 8:28-30) उसने अभिषिक्‍त मसीहियों को यीशु के ज़िंदा किए जाने के बाद से चुनना शुरू किया। ऐसा लगता है कि पहली सदी के सभी सच्चे मसीही अभिषिक्‍त थे। उसके बाद के सालों में जो लोग खुद को मसीही कहते थे, उनमें से ज़्यादातर लोग यीशु की शिक्षाओं पर नहीं चल रहे थे। इसके बावजूद, उस दौरान यहोवा ने कुछ सच्चे मसीहियों को स्वर्ग में राज करने के लिए चुना। वे मसीही यीशु की मिसाल में बताए गए गेहूँ की तरह थे जो जंगली पौधों के बीच बोए गए थे। (मत्ती 13:24-30) इन आखिरी दिनों में भी यहोवा उन लोगों को चुन रहा है, जो 1,44,000 अभिषिक्‍त मसीहियों में गिने जाएँगे। * इस वजह से अगर अंत आने से ठीक पहले यहोवा कुछ मसीहियों को स्वर्ग की आशा के लिए चुनता है, तो हमें उसकी बुद्धि और समझ पर शक नहीं करना चाहिए। (रोमियों 9:11, 16 पढ़िए।) * हमें ध्यान रखना चाहिए कि हम यीशु की मिसाल में बताए उन मज़दूरों की तरह न बनें जो मालिक से शिकायत कर रहे थे कि उन्हें और दिन के आखिर में आए मज़दूरों को बराबर मज़दूरी दी गयी।—मत्ती 20:8-15.

15. क्या सभी अभिषिक्‍त मसीही “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” का भाग हैं? समझाइए।

15 स्वर्ग की आशा रखनेवाले सभी मसीही, “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” का भाग नहीं हैं।  (मत्ती 24:45-47 पढ़िए।) पहली सदी में यहोवा और यीशु कुछ लोगों के ज़रिए बहुतों को खाना खिलाते थे यानी उन्हें सिखाते थे। मसीही यूनानी शास्त्र की किताबें भी कुछ अभिषिक्‍त मसीहियों ने लिखी थीं, सबने नहीं। उसी तरह, आज हमारे समय में भी परमेश्‍वर के लोगों को “सही वक्‍त पर खाना” देने की ज़िम्मेदारी सिर्फ कुछ अभिषिक्‍त मसीहियों को दी गयी है।

16. इस लेख से आपने क्या सीखा?

16 इस लेख से हमने क्या-क्या सीखा? हमने देखा कि यहोवा ने सिर्फ कुछ लोगों को स्वर्ग में जीने और यीशु के साथ राज करने के लिए चुना है। लेकिन उसने अपने बाकी सेवकों को धरती पर हमेशा की ज़िंदगी देने का फैसला किया है। यहोवा अपने सभी सेवकों को इनाम देता है, फिर चाहे वे एक “यहूदी” में से हों या ‘दस लोगों’ में से। वह इन दोनों समूह से उम्मीद करता है कि वे उसके वफादार रहेंगे और उसकी आज्ञाएँ मानेंगे। इन्हें नम्र भी रहना है और एकता में रहकर उसकी उपासना करनी है। यही नहीं, मंडली की शांति बनाए रखने के लिए इन सभी को मेहनत करनी है। तो फिर, जैसे-जैसे अंत करीब आ रहा है, आइए हम ठान लें कि हम यहोवा की सेवा करते रहेंगे और “एक झुंड” होकर मसीह के पीछे चलते रहेंगे।—यूह. 10:16.

^ पैरा. 5 इस साल मंगलवार, 7 अप्रैल को हम मसीह की मौत का स्मारक मनाएँगे। इस शाम जो लोग रोटी और दाख-मदिरा लेते हैं, उनके बारे में हमें कैसी सोच रखनी चाहिए? अगर रोटी और दाख-मदिरा लेनेवालों की गिनती बढ़ती जाती है, तो क्या हमें इस बात को लेकर चिंता करनी चाहिए? इस लेख में हमें इन सवालों के जवाब मिलेंगे। यह लेख जनवरी 2016 की प्रहरीदुर्ग  में दी जानकारी पर आधारित है।

^ पैरा. 2 भजन 87:5, 6 के मुताबिक भविष्य में परमेश्‍वर शायद उन सभी के नाम ज़ाहिर करे जो स्वर्ग में यीशु के साथ राज करेंगे।—रोमि. 8:19.

^ पैरा. 8 जनवरी 2016 की प्रहरीदुर्ग  के पेज 27 में दिया बक्स, “प्यार ‘बदतमीज़ी से पेश नहीं आता’” देखें।

^ पैरा. 14 हालाँकि प्रेषितों 2:33 में बताया गया है कि पवित्र शक्‍ति यीशु के ज़रिए उँडेली जाती है, लेकिन असल में यहोवा लोगों को स्वर्ग का बुलावा देता है।

^ पैरा. 14 ज़्यादा जानकारी के लिए 1 मई, 2007 की प्रहरीदुर्ग  (अँग्रेज़ी) में पेज 30-31 पर दिया लेख देखें।

गीत 34 चलते रहें वफा की राह

^ पैरा. 56 तसवीर के बारे में: कल्पना कीजिए: मुख्यालय से एक भाई और उनकी पत्नी अधिवेशन के लिए आते हैं। भाई-बहन उन्हें घेर लेते हैं और उनकी तसवीरें खींचने लगते हैं। आपको क्या लगता है, ऐसा करके क्या ये भाई-बहन उनका आदर कर रहे होंगे? बिलकुल नहीं!