अध्ययन लेख 1
“यहोवा की खोज करनेवालों को अच्छी चीज़ की कमी नहीं होगी”
सन् 2022 का सालाना वचन है: “यहोवा की खोज करनेवालों को अच्छी चीज़ की कमी नहीं होगी।”—भज. 34:10.
गीत 4 “यहोवा मेरा चरवाहा है”
एक झलक *
1. दाविद किस मुश्किल में था?
इसराएल का राजा शाऊल, दाविद की जान के पीछे पड़ा हुआ था। इसलिए दाविद को अपनी जान बचाकर भागना पड़ा। जब उसे भूख लगी तो वह नोब शहर गया और वहाँ याजक अहीमेलेक से उसने ज़्यादा नहीं, सिर्फ पाँच रोटियाँ माँगी। (1 शमू. 21:1, 3) बाद में उसे अपने आदमियों के साथ एक गुफा में रहना पड़ा। (1 शमू. 22:1) लेकिन शाऊल दाविद को क्यों मार डालना चाहता था?
2. शाऊल ने कौन-से बुरे-बुरे काम किए? (1 शमूएल 23:16, 17)
2 शाऊल दाविद से बहुत जलता था, क्योंकि दाविद ने कई युद्ध जीते थे और बहुत-से लोग उसे पसंद करते थे और उसकी तारीफ करते थे। शाऊल यह भी जानता था कि अपनी गलती की वजह से यहोवा ने उसे ठुकरा दिया है और दाविद को अगला राजा चुना है। (1 शमूएल 23:16, 17 पढ़िए।) लेकिन शाऊल के पास अब भी अधिकार था। वह इसराएल का राजा था और उसके पास एक बड़ी सेना थी। इसलिए उसने दाविद को अपने रास्ते से हटाने की कोशिश की। क्या शाऊल को लगा कि दाविद को राजा बनाने से वह यहोवा को रोक पाएगा? (यशा. 55:11) बाइबल में इस बारे में कुछ नहीं बताया गया है। लेकिन एक बात है, शाऊल बहुत बड़ी गलती कर रहा था। जो लोग परमेश्वर के खिलाफ जाते हैं, वे कभी कामयाब नहीं होते!
3. मुश्किल दौर में दाविद ने क्या किया और क्या नहीं किया?
3 दाविद नम्र था। उसने कभी राजा बनने की ख्वाहिश नहीं की, लेकिन यहोवा ने उसे राजा चुना था। (1 शमू. 16:1, 12, 13) फिर भी, शाऊल उसे अपना जानी दुश्मन समझता था। दाविद ने इस मुसीबत के लिए यहोवा को दोष नहीं दिया। उसके पास खाने-पीने के लिए ज़्यादा कुछ नहीं था और उसे गुफा में रहना पड़ रहा था, फिर भी उसने शिकायत नहीं की। इसके बजाय, शायद गुफा में रहते वक्त उसने यहोवा की तारीफ में एक खूबसूरत गीत रचा। इस लेख की मुख्य आयत उसी गीत से ली गयी है। उस आयत में लिखा है, “यहोवा की खोज करनेवालों को अच्छी चीज़ की कमी नहीं होगी।”—भज. 34:10.
4. हम किन सवालों पर चर्चा करेंगे और क्यों?
4 आज भी यहोवा के कई सेवकों को खाने की या दूसरी ज़रूरत की चीज़ों की कमी होती है। * खासकर हाल की महामारी में बहुत-से भाई-बहनों को ऐसी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। और जब “महा-संकट” शुरू होगा, तो हालात और भी बिगड़ जाएँगे। (मत्ती 24:21) इसलिए आइए हम चार सवालों के जवाब जानें: दाविद ने ऐसा क्यों कहा कि उसे “अच्छी चीज़ की कमी नहीं” है? हमारे पास जो कुछ है, उसमें हमें संतुष्ट क्यों रहना चाहिए? हम क्यों भरोसा रख सकते हैं कि यहोवा हमारा खयाल रखेगा? आनेवाली मुश्किलों का सामना करने के लिए हम अभी से क्या कर सकते हैं?
“मुझे कोई कमी नहीं होगी”
5-6. यहोवा के सेवकों को “अच्छी चीज़ की कमी नहीं होगी,” इस बात को हम भजन 23:1-6 से कैसे समझ सकते हैं?
5 जब दाविद ने कहा कि यहोवा के सेवकों को “अच्छी चीज़ की कमी नहीं होगी,” तो उसका क्या मतलब था? इसे समझने के लिए आइए भजन 23 पर गौर करें, जिसे दाविद ने ही रचा था और जिसमें उसने यही बात लिखी थी। (भजन 23:1-6 पढ़िए।) इस भजन की शुरूआत में उसने कहा, “यहोवा मेरा चरवाहा है, मुझे कोई कमी नहीं होगी।” फिर उसने बताया कि उसके लिए कौन-सी बात सबसे ज़रूरी है। उसने कहा कि यहोवा को अपना चरवाहा मानने की वजह से उसे ढेरों आशीषें मिली हैं। जैसे, यहोवा उसे “नेकी की डगर पर ले चलता है” और अच्छे और बुरे, दोनों समय में उसका साथ देता है। लेकिन दाविद ने यह भी माना कि यहोवा के ‘हरे-भरे चरागाहों में बैठने’ का यह मतलब नहीं कि उसकी ज़िंदगी अच्छी कटेगी। कई बार समस्याएँ आएँगी। उसे शायद “काली अँधेरी घाटी” से गुज़रना पड़े, यानी निराश होना पड़े और दुश्मनों का सामना करना पड़े। फिर भी उसे “कोई डर नहीं” होगा, क्योंकि उसका चरवाहा, यहोवा उसके साथ होगा।
6 इससे पता चलता है कि दाविद ने क्यों कहा कि उसे “अच्छी चीज़ की कमी नहीं” है। वह इसलिए कि यहोवा के साथ उसका अच्छा रिश्ता था। हालाँकि उसके पास ज़्यादा कुछ नहीं था, फिर भी वह खुश था। यहोवा ने उसे जो भी दिया था, उसमें वह संतुष्ट था। यहोवा उसे आशीष दे रहा था और उसकी हिफाज़त कर रहा था, यही बात उसके लिए सबसे ज़रूरी थी।
7. लूका 21:20-24 के मुताबिक, यहूदिया के मसीहियों को किन मुश्किलों का सामना करना पड़ा?
7 दाविद से हम सीखते हैं कि पैसों, चीज़ों और संपत्ति के बारे में सही नज़रिया रखना कितना ज़रूरी है। हमारे पास जो कुछ है उसका हम मज़ा ले सकते हैं, लेकिन हमें उसे सबसे ज़्यादा अहमियत नहीं देनी चाहिए। यह बात यहूदिया में रहनेवाले मसीहियों ने समझी थी। (लूका 21:20-24 पढ़िए।) यीशु ने उन्हें खबरदार किया था कि एक वक्त आएगा, जब यरूशलेम “फौजों से घिरा” होगा। तब उन्हें “पहाड़ों की तरफ भागना शुरू कर” देना चाहिए। यीशु की यह बात मानने से उनकी जान बचती, लेकिन इसके लिए उन्हें बहुत कुछ छोड़कर भागना पड़ता। कुछ साल पहले प्रहरीदुर्ग में लिखा था, ‘वे अपना खेत, अपना घर-बार, अपना सबकुछ पीछे छोड़कर भाग गए थे। उन्हें पूरा यकीन था कि यहोवा उनकी मदद करेगा और उनकी रक्षा करेगा। इसलिए उन्होंने ज़िंदगी की ज़रूरी चीज़ों को नहीं, बल्कि यहोवा की उपासना को सबसे ज़्यादा अहमियत दी।’
8. यहूदिया के मसीहियों से हम कौन-सी ज़रूरी बात सीखते हैं?
8 हम यहूदिया के मसीहियों से क्या सीख सकते हैं? उसी प्रहरीदुर्ग में यह भी लिखा था, ‘हम पर ऐसी परीक्षाएँ आ सकती हैं, जिनसे यह परखा जाएगा कि हम किसे सबसे ज़्यादा ज़रूरी समझते हैं, अपनी धन-संपत्ति को या फिर यहोवा से मिलनेवाले उद्धार को। हमारे लिए भागने का मतलब हो सकता है कि हमें बहुत सारी मुसीबतें झेलनी पड़ें या फिर काफी कुछ त्याग करना पड़े। तब हमें वह सब करने के लिए तैयार रहना होगा जो यहूदिया के मसीहियों ने किया था।’ *
9. पौलुस की सलाह से आप क्या सीखते हैं?
9 ज़रा सोचिए, उन मसीहियों के लिए अपना सबकुछ छोड़कर एक नयी जगह जाकर बसना कितना मुश्किल रहा होगा। उन्हें भरोसा करना था कि यहोवा उनकी ज़रूरतें पूरी करेगा। वे कैसे भरोसा करते? यरूशलेम की घेराबंदी से पाँच साल पहले, प्रेषित पौलुस ने इब्रानी मसीहियों को एक अच्छी सलाह दी। उसने कहा, “तुम्हारे जीने का तरीका दिखाए कि तुम्हें पैसे से प्यार नहीं और जो कुछ तुम्हारे पास है उसी में संतोष करो। क्योंकि परमेश्वर ने कहा है, ‘मैं तुझे कभी नहीं छोड़ूँगा, न कभी त्यागूँगा।’ इसलिए हम पूरी हिम्मत रखें और यह कहें, ‘यहोवा मेरा मददगार है, मैं नहीं डरूँगा। इंसान मेरा क्या कर सकता है?’” (इब्रा. 13:5, 6) जिन मसीहियों ने पौलुस की यह सलाह मानी, उनके लिए एक नयी जगह जाकर कम चीज़ों में गुज़ारा करना आसान रहा होगा। उन्हें यकीन था कि यहोवा उनकी ज़रूरतें पूरी करेगा। पौलुस की सलाह से हमारा भी यकीन बढ़ता है कि यहोवा हमारा खयाल रखेगा।
“हमें उसी में संतोष करना चाहिए”
10. पौलुस की खुशी का “राज़” क्या था?
10 पौलुस ने यही सलाह तीमुथियुस को भी दी। उसने कहा, “अगर हमारे पास खाने और पहनने को है, तो हमें उसी में संतोष करना चाहिए।” (1 तीमु. 6:8) हमें भी यह सलाह माननी चाहिए। क्या इसका मतलब है कि हम बढ़िया-बढ़िया खाना नहीं खा सकते, अच्छे घर में नहीं रह सकते, या नए-नए कपड़े नहीं खरीद सकते? नहीं, इस सलाह का यह मतलब नहीं है। पौलुस यह कह रहा था कि हमारे पास जो कुछ है, उसमें हमें संतोष करना चाहिए। (फिलि. 4:12) यही पौलुस की खुशी का “राज़” था। इससे हम यह सीखते हैं कि हमारी सबसे बड़ी दौलत है, यहोवा के साथ हमारा रिश्ता, न कि दुनिया की चीजें।—हब. 3:17, 18.
11. मूसा ने इसराएलियों से जो कहा, उससे हम क्या सीखते हैं?
11 हमें किन चीज़ों की ज़रूरत है, इस बारे में यहोवा की सोच हमारी सोच से अलग हो सकती है। ध्यान दीजिए कि मूसा ने उन इसराएलियों से क्या कहा, जिन्हें वीराने में भटकते 40 साल हो गए थे। उसने कहा, “तुम्हारे परमेश्वर यहोवा ने तुम्हारे हर काम पर आशीष दी है। तुमने इस बड़े वीराने में जो सफर तय किया है, वह परमेश्वर अच्छी तरह जानता है। इन 40 सालों के दौरान तुम्हारा परमेश्वर यहोवा तुम्हारे साथ रहा, इसलिए तुम्हें कभी किसी चीज़ की कमी नहीं हुई।” (व्यव. 2:7) उन 40 सालों के दौरान यहोवा ने इसराएलियों को खाने के लिए मन्ना दिया। वे जो कपड़े पहनकर मिस्र से बाहर आए थे, वे न तो पुराने हुए, न ही फटे। (व्यव. 8:3, 4) हालाँकि कुछ इसराएलियों को लगा होगा कि खाने और पहनने की ये चीजें काफी नहीं हैं, लेकिन मूसा ने उन्हें बताया कि ये जीने के लिए काफी हैं। उसी तरह, यहोवा चाहता है कि वह हमें जो भी छोटी-मोटी चीज़ें देता है, हम उनकी कदर करें और उसका एहसान मानें। अगर हम कम चीज़ों में संतुष्ट रहना सीखेंगे, तो यहोवा हमसे खुश होगा।
भरोसा रखिए, यहोवा आपकी देखभाल करेगा
12. दाविद की कही किस बात से पता चलता है कि उसे खुद पर नहीं, बल्कि यहोवा पर भरोसा था?
12 दाविद जानता था कि यहोवा अपने सेवकों की देखभाल करता है और उनका साथ कभी नहीं छोड़ता। जब उसने भजन 34 लिखा तब उसकी जान खतरे में थी, फिर भी उसे यकीन था कि ‘यहोवा के स्वर्गदूत’ ने उसके “चारों तरफ छावनी” डाली है। (भज. 34:7, फु.) दाविद ने शायद यहोवा के स्वर्गदूत की तुलना एक ऐसे सैनिक से की, जो मैदान में तैनात है। वह चारों तरफ नज़र रखे हुए है कि कहीं से दुश्मन तो नहीं आ रहा। दाविद खुद एक वीर योद्धा था। उसे गोफन और तलवार चलाना अच्छी तरह आता था। और यहोवा ने उससे वादा किया था कि वह राजा बनेगा। मगर दाविद ने यह नहीं सोचा कि वह अपना बचाव खुद कर सकता है। (1 शमू. 16:13; 24:12) इसके बजाय उसने यहोवा पर भरोसा किया कि वह अपना स्वर्गदूत भेजकर ‘उन लोगों को छुड़ाएगा जो उसका डर मानते हैं।’ बेशक हम यह उम्मीद नहीं करते कि यहोवा कोई चमत्कार करके हमें बचाएगा। लेकिन हमें यकीन है कि अगर आज हमारी मौत भी हो जाए, तो यहोवा भविष्य में हमें हमेशा की ज़िंदगी देगा।
13. (क) जब मागोग देश का गोग हम पर हमला करेगा तो उसे क्या लगेगा? (ख) उस वक्त हमें क्यों नहीं डरना चाहिए? (बाहर दी तसवीर देखें।)
13 बहुत जल्द मागोग देश का गोग, यानी कई देशों का समूह हम पर हमला करेगा। उस वक्त हमारी जान खतरे में होगी। हमें यहोवा पर भरोसा करना होगा कि वह हमें बचा सकता है और बचाएगा भी। उन देशों को लगेगा कि हम उन भेड़ों की तरह हैं, जिनकी रक्षा करनेवाला कोई नहीं। (यहे. 38:10-12) हमारे पास न हथियार होंगे और न ही हम अपना बचाव कर पाएँगे, इसलिए उन्हें लगेगा कि वे आसानी से हमें मिटा सकते हैं। लेकिन उन्हें वह नहीं पता होगा जो हमें पता है। वह यह कि हमें बचाने के लिए स्वर्गदूत हमारे चारों तरफ छावनी डाले हुए हैं। उन्हें यह बात क्यों नहीं पता होगी? क्योंकि वे परमेश्वर पर विश्वास नहीं करते। इसलिए जब स्वर्गदूत हमें बचाने आएँगे, तो वे हैरान रह जाएँगे।—प्रका. 19:11, 14, 15.
भविष्य के लिए तैयार रहिए
14. आनेवाली मुश्किलों का सामना करने के लिए हमें अभी से क्या करना चाहिए?
14 आनेवाली मुश्किलों का सामना करने के लिए हमें अभी से कुछ कदम उठाने चाहिए। पहला, हमें अपनी चीज़ों को सबसे ज़्यादा अहमियत नहीं देनी चाहिए, क्योंकि एक दिन हमें इन्हें छोड़ना पड़ेगा। दूसरा, हमारे पास जो कुछ है, हमें उसी में संतुष्ट रहना चाहिए और इस बात से खुश होना चाहिए कि यहोवा के साथ हमारा एक अच्छा रिश्ता है। हम जितना ज़्यादा यहोवा को जानेंगे, उतना हमारा यकीन बढ़ेगा कि मागोग देश के गोग के हमले के वक्त वह हमें बचाएगा।
15. दाविद को क्यों यकीन था कि यहोवा हमेशा उसकी मदद करेगा?
15 आइए एक बार फिर दाविद पर गौर करें और उससे सीखें कि परीक्षाओं का सामना करने के लिए हम और क्या कर सकते हैं। जब दाविद अपनी जान बचाकर भाग रहा था, तो उसने कहा, “परखकर देखो कि यहोवा कितना भला है, सुखी है वह इंसान जो उसकी पनाह में आता है।” (भज. 34:8) इस आयत से पता चलता है कि दाविद को क्यों यहोवा पर भरोसा था। पहले भी कई मौकों पर उसने यहोवा से मदद माँगी थी और यहोवा ने उसकी मदद की थी। जैसे, जब वह एक नौजवान था तो वह अपने से ताकतवर दुश्मन से लड़ने गया। उसने पलिश्ती गोलियात से कहा, “आज ही के दिन यहोवा तुझे मेरे हाथ में कर देगा।” (1 शमू. 17:46) बाद में जब दाविद राजा शाऊल के यहाँ सेवा करता था, तो शाऊल ने कई बार उसे मार डालने की कोशिश की। मगर वह नाकाम रहा क्योंकि “यहोवा दाविद के साथ” था। (1 शमू. 18:12) इसलिए दाविद को पूरा यकीन था कि मुश्किलों का सामना करने में यहोवा उसकी मदद करेगा।
16. हम कैसे ‘परख सकते हैं कि यहोवा भला है’?
16 दाविद की तरह हमें भी ‘परखकर देखना चाहिए कि यहोवा कितना भला है।’ हमें यहोवा से मदद माँगते रहना चाहिए और ध्यान देना चाहिए कि वह किस तरह हमारी मदद कर रहा है। इस तरह हमारा यकीन बढ़ेगा कि वह हमें भविष्य में भी बचाएगा। उदाहरण के लिए, हो सकता है कि सम्मेलन और अधिवेशन में हाज़िर होने के लिए हमें काम से छुट्टी लेनी पड़े। ऐसे में हमें यहोवा पर विश्वास करना चाहिए और अपने मालिक से इस बारे में बात करनी चाहिए। या फिर हमें शायद अपने मालिक से कहना पड़े कि वह हमारी नौकरी के घंटों में कुछ फेरबदल करे, ताकि हम सभाओं में जा सकें और प्रचार में ज़्यादा हिस्सा ले सकें। लेकिन हो सकता है कि मालिक हमारी न माने और हमारी नौकरी छूट जाए। क्या हम तब भी यहोवा पर भरोसा करेंगे कि वह हमें कभी नहीं छोड़ेगा और हमारी ज़रूरतें पूरी करेगा? (इब्रा. 13:5) हम चाहें तो इस बारे में पूरे समय की सेवा करनेवाले भाई-बहनों से बात कर सकते हैं। वे हमें बता सकते हैं कि जब भी उन्हें यहोवा की मदद की ज़रूरत थी, यहोवा ने कैसे उनकी मदद की। यहोवा वफादार है, वह हमें कभी नहीं छोड़ेगा।
17. (क) सन् 2022 का सालाना वचन क्या है? (ख) यह आयत क्यों चुनी गयी है?
17 यहोवा हमेशा हमारे साथ रहेगा। इसलिए हमें आनेवाली मुश्किलों से नहीं डरना चाहिए। अगर हम उसके राज के कामों को अपनी ज़िंदगी में पहली जगह दें, तो यहोवा हमें कभी नहीं छोड़ेगा। शासी निकाय चाहता है कि हम आनेवाली मुश्किलों के लिए अभी से तैयार रहें और यहोवा पर भरोसा रखें। इसलिए शासी निकाय ने भजन 34:10 को 2022 का सालाना वचन चुना है, जहाँ लिखा है, “यहोवा की खोज करनेवालों को अच्छी चीज़ की कमी नहीं होगी।”
गीत 38 वह तुम्हें मज़बूत करेगा
^ सन् 2022 का सालाना वचन भजन 34:10 से लिया गया है, जहाँ लिखा है: “यहोवा की खोज करनेवालों को अच्छी चीज़ की कमी नहीं होगी।” लेकिन यहोवा के कई सेवक गरीब हैं, उनके पास ज़्यादा कुछ नहीं है। तो फिर यह कैसे कहा जा सकता है कि उन्हें “अच्छी चीज़ की कमी नहीं” है? इस लेख में हम इस सवाल का जवाब जानेंगे। हम यह भी जानेंगे कि इस आयत की मदद से हम आनेवाली मुश्किलों का सामना कैसे कर सकते हैं।
^ 1 मई, 1999 की प्रहरीदुर्ग का पेज 19 पढ़ें।